बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल, उनकी पत्नी और उनकी मां को भी हुआ कोरोना

चुनाव जीतने के चक्कर में नेता खुद को और अपने परिवार को खतरे में डाल ही रहे हैं, इसके साथ अन्य लोगों को भी कोविड- 19 के चपेट में ला रहे रहें। ताज़ा उदाहरण बिहार बीजेपी का मुख्यालय है, जहां अभी तक 70 से भी ज्यादा पॉजिटिव केस निकल चुका है। अभी खबर आ रही है कि – प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल भी कोरोना संक्रमित हो गए हैं। संजय जायसवाल की पत्नी और मां की रिपोर्ट भी कोरोना पॉजिटिव आई है।

इससे पहले पार्टी के पांच अन्य पदाधिकारी भी कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। बिहार में कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ज्ञात हो इसके साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास से भी कोविड- 19 के कई मामले आए चुके हैं। बिहार के मुख्य सचिव के कार्यालय में पॉजिटिव केस मिलने के बाद वे आज कल अपने घर से काम कर रहे हैं।

इस सब के बावजूद बीजेपी अपने कार्यालय से वर्चुअल रैली जारी रखी हुई है। सरकार के सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान के साथ विपक्ष के तमाम नेता राज्य में विधानसभा टालने की बात कह रही है। मगर कोरोना के इतने गंभीर स्थिति होने के बाद भी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं।

इधर, नेता प्रतिपक्ष व राजद नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा है कि बिहार प्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व विधायकों समेत कई बड़े नेता संक्रमित हो चुके हैं। उन्होंने बिहार में कोराना संक्रमण फैलाने का भाजपा के ऊपर आरोप लगाया है।ते ने अपने ट्वीट में स्वास्थ्य मंत्री पर भी निशाना साधा है।

Aam Aadmi Parti, BJP, AAP, JDU, Nitish Kumar, MAnoj Tiwari, Arvind Kejriwal, Purvanchali in Delhi, Delhi Election, Bihari in Delhi, Bihar Election, Narendra Modi, Amit Shah, Shaheen Bagh Protest, Hindu party

Delhi Eletion: दिल्ली में बिहारियों ने भी बोला, जमे रहो केजरीवाल

दिल्ली में विधानसभा चुनाव था मगर चर्चा यूपी-बिहार का भी जोड़ो पर था| कारण था कि दिल्ली के लगभग 15 सीटों पूर्वांचल बहुल है जबकि आधी से ज्यादा सीटों पर पूर्वांचली वोटर जीत-हार तय करते हैं| आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) से लेकर कांग्रेस पार्टी, सबकी नजर पूर्वांचली वोटर्स पर थी| पूर्वांचली को लुभाने के लिए बीजेपी ने जहाँ प्रसिद्ध भोजपुरी गायक मनोज तिवारी (Manoj Tiwari) को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया हुआ है, तो कांग्रेस ने चुनाव से ठीक पहले कृति आज़ाद (Kriti Azad) को प्रचार समीति का प्रमुख बनाया था| वहीं आम आदमी पार्टी को अपनी जन कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा था|

पूर्वांचलियों ने लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के पक्ष में वोट किया था| इसलिए बीजेपी को विधानसभा में भी उनसे बहुत उम्मीदें थी| मगर 11 फरवरी को रिजल्ट उसके ठीक उलट आया| बिहार और यूपी के लोगों ने बीजेपी के हिन्दू राष्ट्रवाद को नकार दिया और केजरीवाल(Arvind Kejriwal) के विकाश को अपना पूरा समर्थन दिया| यहाँ तक कि कांग्रेस और बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दलों के साथ गठबंधन में लड़ रही बिहार की तीन पार्टियों का हाथ भी खाली रहा|

जहां बीजेपी ने दो सीटें जेडीयू और एक सीट एलजेपी को दी थी वहीं कांग्रेस ने आरजेडी के लिए चार सीटें छोड़ी थी| लेकिन लगभग सभी पूर्वांचली सीटों पर आप का परचम लहराया| सबसे बुरा हाल आरजेडी का रहा जिसके चारों उम्मीदवारों की जमानत तो जब्त हुई ही, तीन को नोटा से भी कम वोट मिले|

पिछले कुछ चुनाव से लगातार इंडिया टुडे एग्जिट पोल (India Today Exit Poll) लगभग सही हो रहा है| उनके सर्वे के अनुसार इस विधानसभा चुनाव में कम्युनिटी वाइज वोट शेयर को देखा जाए तो लोगों ने आम आदमी पार्टी पर भरोसा जताया है| AAP के साथ दिल्लीवासी (55 फीसदी), पूर्वांचली (55 फीसदी), हरियाणवी (54 फीसदी), राजस्थानी (61) और अन्य (55 फीसदी) रहे| यानी इस चुनावी नतीजे से पता चलता है कि 2015 की तरह इस बार भी पूर्वांचली वोटर्स ने आम आदमी पार्टी को ही वोट दिया है|

दिल्ली में चुनाव प्रचार के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा. Image: Subhash Barolia

पूर्वांचली के वोटिंग पैटर्न को लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद एक दिलचस्प आंकड़ा सामने आया था| 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद सीएसडीएस ने पूर्वांचली वोटर्स पर एक सर्वे करवाया| इस सर्वे में जिन 56 फीसदी पूर्वांचली ने लोकसभा के चुनाव में बीजेपी को वोट दिया था, उनमें से 24 फीसदी पूर्वांचली ने कहा कि वो राज्य विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी को वोट करेंगे| मतलब बीजेपी के आधे वोटर्स पहले से ही मन बना चुके थे कि वो 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को वोट करेंगे| नतीजों से ऐसा लग भी रहा है|

धर्म के राजनीति को नकार, विकास की राजनीति को चुनकर दिया एक बड़ा सन्देश 

एक बड़ी बात ये भी रही है कि दिल्ली में पूर्वांचल के ज्यादातर वोटर्स वर्किंग क्लास से आते हैं| बहुत सारे लोग मेहनत मजदूरी करने वाले हैं| इन लोगों के लिए केजरीवाल सरकार की कल्याणकारी योजनाओं ने काम किया| इस वजह से भी एक तरफ वो मोदी के चेहरे को केंद्र में देखना चाहते थे तो राज्य में उन्हें केजरीवाल जैसा सीएम ही चाहिए था| दिल्ली का मिडिल क्लास पूर्वांचली वोटर्स भी आम आदमी पार्टी का समर्थक है- वजह है बिजली और पानी पर मिलने वाली छूट| सरकारी स्कूलों की बेहतर हालत और स्वास्थ्य सेवाओं की सुधरती स्थिति|

दिल्ली का चुनाव में बिहारियों या पूर्वांचलियों का वोट पैटर्न समझाना इसलिए भी जरुरी है कि इसी साल बिहार में भी विधानसभा चुनाव है| बिहार में भी भाजपा एक बड़ी पार्टी है| दिल्ली में उसके कट्टर हिंदूवादी प्रयोग के असफल हो जाने के बाद उसको फिर से अपनी रणनीति पर सोचना पड़ेगा| एक तरफ बीजेपी के कमजोर होने से उसके सहयोगी दल जदयू (Janta Dal United) खुश होगी, क्योकि अब वह बीजेपी से ज्यादा सीट लेने का दवाब बना सकेगी| वही दुसरे तरफ दिल्ली में शिक्षा के चुनावी मुद्दा बन जाने से नीतीश थोड़ा मुश्किल में होंगे, क्योंकि नीतीश कुमार के 15 साल के राज में शिक्षा उनकी सबसे कमजोर पक्ष है|

Narendra Modi, Fertilizer Industry, Bihar, Barauni, BJP, PMO

17 फरवरी को पीएम मोदी सात हजार करोड़ से बननेवाले बरौनी खाद कारखाना रखेंगे आधारशिला

17 फरवरी को देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी बिहार के दौरे पर आ रहे हैं और साथ में बिहार राज्य के लिए एक बड़ा तोहफा भी लेकर आ रहे हैं| 17 को पीएम मोदी उलाव हवाई अड्डे पर उतरेंगे और बेगूसराय में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे| इसके साथ ही वे बरौनी में सात हजार करोड़ से बननेवाले नये खाद कारखाने की आधारशिला रखेंगे|

अब बरौनी खाद कारखाना हिंदुस्तान उर्वरक रसायन लिमिटेड के नाम से जाना जायेगा| इस कारखाने के निर्माण पर सात हजार करोड़ खर्च होंगे| इसका निर्माण कार्य जनवरी, 2021 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है| साथ ही मई, 2021 से ही यहां यूरिया का उत्पादन शुरू हो जायेगा| 

जाहिर हैं यही से पीएम मोदी बिहार में अगामी लोकसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत करेंगे| बिहार बीजेपी के सारे नेती इसी तैयारी में लगा दिए गए हैं|

वहीं, बरौनी खाद कारखाने में करोड़ों रुपये खर्च कर प्रधानमंत्री के आगमन स्थल को तैयार किया जा रहा है| 1998 से बंद परे बरौनी खाद कारखाने में अब तेजी से चीजें बदलने लगी हैं| खंडहर पड़े भवन डेंटिंग-पेंटिंग कर सवार दिए गए हैं| कैंपस में कई एकड़ में निर्माण का कार्य चल रहा है, जिसके लिए सैकड़ों की संख्या में मजदूर, अभियंताओं की टीम और अधिकारी लगे हुए हैं|

 

bihar nda,

बिहार एनडीए में सीट का हुआ बटवारा, बीजेपी-जेडीयू को 17-17 और लोजपा को मिले 6 सीटें

बिहार एनडीए में सीट का बटवारा हो गया है|

40 लोकसभा सीटों वाले राज्य में बीजेपी 17, जेडीयू 17 और एलजेपी 6 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। लोक जन शक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान को राज्यसभा भी भेजा जाएगा।

रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये ऐलान किया। रामविलास पासवान और उनके बेटे चिराग पासवान भी इस दौरान मौजूद थे।

शेयरिंग की घोषण भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने की| शाह ने यह भी कहा कि इन सिटों के अलावे लोपजा प्रमुख रामविलास को होने वाली राज्यसभा चुनाव में एनडीए के सिट से भी लड़ेंगे| इससे पहले जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री से मिलने उनके दिल्ली स्थित आवास पर पहुंचे है| इसके साथ ही लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान और चिराग पासवान भी दिल्ली लौट आये है. दोनों कल मुंबई गये हुए थें|

 

फिर बदलेगी बिहार की राजनितिक समीकरण, एनडीए से अलग होंगे कुशवाहा!

बिहार में ठंढ़ बढ़ रही है मगर राजनीति की गर्मी बढ़ रही है| खासकर एनडीए खेमे में सीटों को लेकर खलबली मची है| हालत ऐसी है कि एनडीए के सहयोगी रालोसपा कभी भी एनडीए को छोड़ने की घोषणा कर सकती है|

रालोसपा मुखिया और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार में सीट शेयरिंग पर बात बनती न देख मोर्चा खोल दिया है| उन्होंने साफ कह दिया है कि अब वह इस मुद्दे पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिलने की जगह सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे| कुशवाहा ने चेतावनी दी कि अगर सीट शेयरिंग फार्मूले पर सहमति नहीं बनी तो 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी|

उपेंद्र कुशवाहा ने बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस में आज यह भी कहा कि नीतीश कुमार की भरसक कोशिश है कि मेरी पार्टी खत्म हो जाए। नीतीश कुमार हमारी पार्टी को बर्बाद करने में लगे हैं। उन्होंने अपने सांसद रामकुमार शर्मा को दिखाकर कहा कि ये तो हमारे साथ हैं। लेकिन, इसे लेकर क्या-क्या कहा जा रहा है?

गौरतलब है कि रालोसपा के दोनों विधायक जेदयू के संपर्क में है| इसके साथ ही सांसद राम कुमार को लेकर भी यह अटकले लगाईं जा रही है कि अगर उपेन्द्र कुशवाहा पाला बदलने का फैसला लेते हैं तो वो जेदयू में जा सकते हैं| पटना में पार्टी के बैठक में रालोसपा के दोनों विधायक ललन पासवान और सुधांशु शेखर नहीं पहुंचे। ललन पासवान ने पार्टी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि उपेन्द्र कुशवाहा महागठबंधन की बैठक’कर रहे हैं, असली रालोसपा हमलोग हैं। अब हममें से कोई भी उपेंद्र कुशवाहा के साथ नहीं है। सभी विधायक और सांसद उनसे अलग हो चुके हैं।

इस पुरे घटनाक्रम को देखें तो उपेन्द्र कुशवाहा का एनडीए से अलग होना लगभग तय है| बस सही मौके का इंतज़ार है| उपेन्द्र कुशवाहा के पाला बदलने से बिहार का राजनितिक समीकरण एक बार और बदलेगा|

BIhar, NDA, BJP, JDU,LJP, RLSP, NARENDRA MODI, AMIT SHAH, NITISH KUMAR, RAM VILAS PASWAN,Upendra Kushwaha

बिहार: एनडीए में सीटों के बटवारे की खबर लीक, बीजेपी के फ़ॉर्मूले को सहयोगी पार्टियों ने नकारा

पिछले दिनों मीडिया रिपोर्टों में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बिहार में एनडीए के सहयोगी दलों के बीच सीटों का बटवारा होने की खबर छाई रही| खबर के अनुसार बिहार के 40 लोकसभा सीटों में से बीजेपी 20, जेडयू 12, एलजेपी 5 और रालोसपा को दो सीट पर चुनाव आएगी| साथ ही, पार्टी से निलंबित सांसद अरुण कुमार को भी मैदान में उतारने की बात कही जा रही है| बताया जाता है कि जदयू को रिझाने के लिए जरूरत पड़ने पर झारखंड में एक सीट चुनाव लड़ने के लिए दी सकती है|

हालाँकि यह खबर लीक होते ही बिहार के राजनीतिक गलियारों में हरकंप मच गया| गठबंधन में सामिल सभी दल ने एक सुर में इसे अफवाह बताया| एलजेपी नेता चिराग पासवान ने एनबीटी से कहा कि सीटों के फॉर्म्युले की बात अफवाह है। अभी इस बारे में कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है। वहीं, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि सीटों पर बात के लिए पार्टी की ओर से चिराग अधिकृत हैं और वह पंजाब में हैं। अभी इस बारे में कोई बात नहीं हुई है। एनडीए के दूसरे सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि अभी यह महज अटकलें हैं। सीट समझौते को लेकर एनडीए दलों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई है। बाद में बीजेपी और जेडीयू नेताओं ने भी सीटों को लेकर कोई अंतिम सहमति बनने से इनकार किया।

वैसे,सूत्रों से मिल रही ख़बरों के अनुसार जेडीयू 15-16 सीटों पर सहमत हो सकती हैं, वहीं रालोसपा अपने लिए 7 सीटों की मांग कर रही है मगर पार्टी सूत्रों के अनुसार वह 3 सीटों पर भी मान सकती है अगर पार्टी से बागी संसद अरुण कुमार को एनडीए से दूर रखा जाता है|

गौरतलब है कि रालोसपा प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा बीजेपी पर दवाब बनाने के लिए लगातार आरजेडी के साथ जाने की संकेत दे रहे हैं| हाल ही में उनका खीर वाला बयान मीडिया के सुर्ख़ियों में छाया रहा| कुशवाहा ने हालिया बयान में कहा था कि यदुवंशियों (राजद) का दूध और कुशवाहों (रालोसपा) का चावल मिल जाए तो खीर बनने में देर नहीं… लेकिन खीर बनाने के लिए केवल दूध और चावल ही नहीं बल्कि छोटी जाति और दबे-कुचले समाज के लोगों का पंचमेवा भी चाहिए। इस बयान को कुशवाहा के महागठबंधन के प्रति रुझान के तरह देखा गया|

Narendra modi, nitish kumar, jdu, bjp, koshi, bridge

मोदी सरकार का बिहार को सौगात, कोसी नदी पर बनेगा नया फोर लेन पुल

केंद्र की मोदी सरकार ने बिहार को एक नयी सौगात दी है|  मधेपुरा जिले के फुलौत के पास कोसी नदी पर फोरलेन पुल बनेगा| आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने इसकी मंजूरी दे दी है|

नेशनल हाईवे 106 पर फुलौत में 6.930 किलोमीटर लंबे 4-लेन पुल का निर्माण होगा। सीसीईए ने बिहार में राष्‍ट्रीय राजमार्ग-106 के मौजूदा बीरपुर-बिहपुर खंड के उन्नयन व पुनर्वास को हरी झंडी दी है। इसके तहत 106 किलोमीटर से 136 किलोमीटर तक ‘पेव्‍ड शोल्‍डर के साथ 2-लेन’ दुरुस्त होंगे। मंत्रिमंडल की बैठक के बाद यह जानकारी केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मीडिया को दी|

इस परियोजना पर 1478.40 करोड़ रुपये की लागत आएगी। इस परियोजना के लिए निर्माण अवधि 3 वर्ष है और इसे जून 2022 तक पूरी होने की उम्‍मीद है। इस नये पुल से निर्माण के क्रम में लगभग 2.19 लाख श्रम दिवस के लिए प्रत्‍यक्ष रोजगार सृजित होंगे।

नए पुल के बन जाने से मधेपुरा, सुपौल, सहरसा और भागलपुर के बीच बेहतर सड़क संपर्क कायम होगा। यही नहीं इनके बीच की दूरी 60 किलोमीटर कम हो जाएगी। वर्तमान में फुलौत से बिहपुर जाने के लिए लगभग 72 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। इस परियोजना के तहत कोसी नदी पर 4-लेन वाले इस नये पुल के निर्माण होने पर फुलौत और बिहपुर के बीच की दूरी घटकर महज 12 किलोमीटर रह जाएगी।

दरअसल, राष्‍ट्रीय राजमार्ग 106 पर फुलौत और बिहपुर के बीच 10 किलोमीटर लंबा लिंक नादारद है और वह कोसी नदी के कटाव क्षेत्र में आता है। इस नये पुल के निर्माण से बिहार में राष्‍ट्रीय राजमार्ग 106 पर उदाकिशुनगंज और बिहपुर के बीच मौजूदा 30 किलोमीटर लम्‍बी खाई दूर हो जाएगी जो नेपाल, उत्‍तर बिहार, पूर्व-पश्चिम गलियारा (एनएच-57 से होते हुए) और दक्षिण बिहार, झारखंड, स्‍वर्ण चतुभुर्ज (एनएच-2 से होते हुए) के बीच संपर्क मुहैया कराएगी। इसके अलावा राष्‍ट्रीय राजमार्ग संख्‍या-31 की पूर्ण उपयोगिता सुनिश्चित होगी।

वर्तमान में यह राष्‍ट्रीय राजमार्ग केवल एक लेन (मध्‍यवर्ती लेन) के साथ खराब स्थिति में है। इसलिए इस राजमार्ग पर वाहनों के लिए औसत गति 20 किलोमीटर प्रति घंटे से कम है। लेकिन इस राजमार्ग के ‘पेव्‍ड शोल्‍डर के साथ 2-लेन’ में उन्‍नयन एवं पुल के निर्माण से यातायात की गति बढ़कर करीब 100 किलोमीटर प्रति घंटे हो जाएगी।

 

Upendra Kushwaha, RLSP, BJP, NDA, Bihar Election, Bihar news

उपेन्द्र कुशवाहा की डिमांड से एनडीए में आ सकता है भूचाल, कट सकता है नीतीश कुमार का पत्ता

चुनाव नजदीक आते ही बिहार की राजनीति दिलचस्प होती जा रही है| सीटों के बटवारे के लिए एनडीए में घमासान मचा हुआ है| बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बिहार आकर बंद कमरा में नीतीश कुमार से समझौता किया ही था कि एनडीए के दुसरे घटक दल रालोसपा ने अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर कर बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए की मुसीबत फिर से बढ़ा दी|

उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी ने एनडीए में जदयू से अधिक सीटों की डिमांड रख दी है| यही नहीं, आरएलएस ने नीतीश कुमार को नहीं बल्कि उपेन्द्र कुशवाहा को 2020 विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा भी घोषित करने की मांग रख दी है|

रालोसपा के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि पिछले 4 सालों में उनकी पार्टी का कद काफी बढ़ा है ऐसे में  उन्हें जनता दल युनाइटेड(जदयू) से ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए।

रालोसपा के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता जितेंद्र नाथ ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया कि जदयू और भाजपा के बीच सीट शेयरिंग को लेकर काफी बातें हुई है। उपेंद्र कुशवाहा बिहार की राजनीति के भविष्य हैं। बिहार में एनडीए का चेहरा बनाना चाहिए। जितेंद्र नाथ ने कहा कि जदयू ने पिछली बार लोकसभा में दो सीटें जीती थी जबकि रालोसपा ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे जीता भी।

गौरतलब है कि रालोसपा और आरजेडी नेतृत्व के बीच दो बैठकें हुई हैं। राजद के एक सूत्र की मानें तो रालोसपा ने छह से सात सीटों की मांग की थी। भाजपा की तुलना में राजद निश्चित रूप से रालोसपा को ज्यादा सीटों की पेशकश करेगी।

विश्लेषण: उपचुनाव में तेजस्वी ने नीतीश को फिर दी पटखनी, जानिए जोकिहाट में क्यों जीती आरजेडी?

बिहार में जोकिहाट विधानसभा उपचुनाव आरजेडी प्रत्याशी शहनवाज अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी और जेडीयू उम्मीदवार मोहम्मद मुर्शीद आलम को 41225 वोटों से हराया। आरजेडी उम्मीदवार शहनवाज को 81240 वोट जबकि जेडीयू उम्मीदवार मुर्शिद आलम को 40015 वोट मिले। जीत के बाद आरजेडी विधायक दल के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि यह अवसरवाद पर लालूवाद की जीत है, लालू विचार नहीं बल्कि विज्ञान है।

जोकीहाट सीट पर साल 2005 से ही जेडीयू का कब्जा रहा था। ताजा चुनाव परिणाम से साफ है कि मुस्लिम वोटरों का जेडीयू से मोह भंग हो रहा है। भाजपा के साथ जाने की वजह से जदयू की लगातार तीसरी बार हार हुई है|

साल 2005 में बिहार के अंदर लालू विरोधी लहर आई जिसकी वजह से नीतीश को सत्ता मिली थी। इसके बाद उन्होंने मुस्लिम वोटरों में सेंध लगाना शुरू किया। जिसमें वह सफल भी रहे। चुनावों में भाजपा के साथ रहने के बावजूद मुस्लिम वोटरों ने नीतीश को वोट दिया था। मगर साल 2014 में भाजपा से अलग होने की वजह से उन्हें अपने दम पर चुनाव लड़ना पड़ा और करारी हार मिली। बता दें कि इस सीट पर पहले तस्लीमुद्दीन परिवार का कब्जा था। उनके निधन के बाद उनके बेटे सरफराज आलम यहां से विधायक थे। इसी साल मार्च में उन्होंने जदयू से इस्तीफा देकर राजद के टिकट पर अररिया की लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी। उनके इस्तीफे की वजह से ही यह सीट खाली हुई थी।

 

आइए समझते हैं जोकिहाट पर क्यों जीती आरजेडी

मुस्लिम बहुल इलाका है जोकिहाट: इस सीट पर दो लाख 70 हजार वोटर हैं, जिसमें से करीब 70 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है| यहां यादवों की भी अच्छी खासी आबादी है. ऐसे में यहां इस बार आरजेडी का M+Y (मुस्लिम+यादव) समीकरण फीट बैठता हैl हालांकि जेडीयू ने भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट दिया था, लेकिन आरजेडी का समीकरण भारी पड़ रहा था।1969 में बने इस विधानसभा सीट पर हमेशा से मुस्लिम प्रत्याशी जीतते आ रहे हैं, हालांकि पार्टियां बदलती रही हैं।पिछले चार बार से जेडीयू के प्रत्याशी यहां से जीतते रहे हैं।

मोहम्मद तसलीमुद्दीन के परिवार का इस सीट पर रहा है दबदबा: जोकिहाट सीट पर मुस्लिमों के बड़े नेता मोहम्मद तसलीमुद्दीन का दबदबा रहा है। अबतक हुए 14 बार हुए विधानसभा चुनावों में नौ बार तस्लीमुद्दीन के परिवार से ही जीतते रहे हैं। इस बार भी आरजेडी के ने तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे शाहनवाज आलम आलम को टिकट दिया है। इस सीट पर जीत दर्ज करने के लिए जेडीयू ने भी तसलीमुद्दीन के परिवार को ही टिकट दिया था। तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफराज आलम 2010 और 2015 में जदयू के टिकट पर यहां से विधायक बने थे।

जेडीयू के प्रत्याशी हैं दागदार: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपराधियों और अपराध के प्रति जीरो टॉलरेंस की बात कहते हैं, लेकिन जोकिहाट पर उनकी पार्टी के प्रत्याशी मुर्शीद आलम के खिलाफ कई मुकदमें दर्ज हैं। इसमें से कई गंभीर मुकदमें भी हैं। वहीं आरजेडी प्रत्याशी शाहनवाज आलम साफ सुथरा चेहरा हैं। तेजस्वी यादव ने प्रचार के दौरान भी इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया था।

bihar news, by election, tejaswi yadav, lalu yadav, bihar, rjd, nitish kumar, bjp, jdu,

बिहार चुनाव: बीजेपी-नीतीश पर भारी पड़े तेजस्वी, RJD की जीत के बने हीरो

बिहार की अररिया लोकसभा सीट और दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे जहां एक तरफ बीजेपी और नीतीश कुमार के लिए एक जोरदार झटका है तो वहीँ दूसरी तरफ राजद नेता तेजस्वी यादव के राजनितिक भविष्य के लिए एक शुभ संकेत लेकर आया है|

लालू यादव के जेल जाने और नीतीश के साथ गठबंधन टूटने के बाद उपचुनाव के मुकाबले को जीतना अहम है| नीतीश कुमार के बीजेपी में जाने और लालू यादव के जेल जाने के बाद, बिहार में यह पहला चुनाव था| साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले अररिया लोकसभा, जहानाबाद विधानसभा और भभुआ विधानसभा पर हुए उपचुनाव का परिणाम पहले से ही कई मामलों में खास माना जा रहा था| इस चुनाव में नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा तो दाव पर थी साथ ही लालू यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी यादव के नेतृत्व क्षमता की भी परीक्षा थी|

लालू यादव के गैरमौजूदगी में राजद ने ये चुनाव पूरी तरह तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा था| अब चुनाव परिणाम आने के बाद तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल उठाने वालो का मुह बंद हो गया है|

bihar news, by election, tejaswi yadav, lalu yadav, bihar, rjd, nitish kumar, bjp, jdu,

इस तरह बढ़ा तेजस्वी का कद
लालू यादव के जेल जाने के बाद राजनीतिक गलियारों में इस बात की सुगबुगाहट तेज हो गई थी कि अब आरजेडी को कौन संभालेगा| लेकिन तेजस्वी यादव ने सुगबुगाहट पर पूर्ण विराम लगाया और ना सिर्फ विरोधियों पर हावी हुए बल्कि पार्टी की कमान को बखूबी संभाला|

राजनीति में धमक बढ़ाने में कामयाब हुए तेजस्वी
बिहार उपचुनावों के परिणाम बताते हैं कि लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव पिता की गैर मौजूदगी में राजनीति में अपनी धमक बढ़ाने का सफल प्रयास कर रहे हैं| लालू यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी जिस तरह के विरोधियों को जवाब देने और उन पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं उससे यह बात तो स्पष्ट है कि वह अब लीडिंग फ्रॉम फ्रंट की भूमिका में काम करना चाहते हैं और कर भी रहे हैं| जीत का सेहरा तेजस्वी यादव के सिर इसलिए भी सजा है, क्योंकि वह प्रदेश की राजनीति में एकमात्र ऐसा युवा चेहरा है जिस पर जनता पिछले विधानसभा चुनावों से लेकर अब तक विश्वास कर रही है|

नीतीश के लिए चुनौती का समय
उपचुनावों के नतीजे इस बात को भी स्पष्ट करते हैं कि बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव नीतीश के विकल्प के रूप में उभर कर आ रहे हैं| तेजस्वी के राजनीतिक गतिविधियों की वजह से बिहार की जनता के बीच लाजिमी तौर पर तेजस्वी की पूछ बढ़ेगी| इसके साथ ही बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों में नीतीश को तेजस्वी यादव से कड़ी टक्कर मिलेगी|

 

चार साल बाद नीतीश की हुई घर वापसी, जदयू एनडीए में हुआ सामिल

जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आज साढ़े दस बजे पटना में शुरु हो चुकी है। बैठक में जदयू के सभी आमंत्रित सदस्य शामिल हैं। बैठक मुख्यमंत्री आवास, 1 अणे मार्ग पर शुरू हुई है। बिहार के राजनीति में नाटकीय घटनाक्रम के साथ चार साल बाद फिर से जदयू एनडीए में सामिल हो गया | बैठक में जदयू नेता केसी त्यागी ने एनडीए में शामिल होने का प्रस्ताव रखा जो सर्वसम्मति से पारित हो गया। हालांकि पार्टी की तरफ से इसकी औपचाकिर घोषणा किया जाना बाकी है|

इसके साथ ही अब नीतीश कुमार के नेतृत्‍व में जदयू के केंद्र में बीजेपी के नेतृत्‍व वाले राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्‍सा बनने का रास्‍ता साफ हो गया है. दरअसल हाल में बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह ने नीतीश कुमार को एनडीए में शामिल होने का औपचारिक आमंत्रण दिया था. यह आमंत्रण नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ गठबंधन करने के बाद दिया गया था|

अब एनडीए में शामिल होने के साथ ही इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी के अगले कैबिनेट विस्‍तार में जेडीयू को भी जगह मिल सकती है और इसके कोटे से दो मंत्रियों को बनाया जा सकता है|

शरद और नीतीश गुट के लोग आपस में भिड़े 

इससे पहले पार्टी में जारी आंतरिक कलह अब हिंसक रूप लेने लगा है| शनिवार को इसकी बानगी पटना की सड़कों पर देखने को मिली जब सीएम हाउस के ठीक बाहर शरद और नीतीश गुट के लोग आपस में भिड़ गये| शनिवार को जेडीयू में बैठकों का दौर है| इसके लिये दोनों खेमों ने तैयारियां भी कर रखी थीं|

हालांकि राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में बगावती तेवर अपनाने वाले शरद यादव ने हिस्‍सा नहीं लिया| नीतीश के आवास पर आयोजित राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान शरद यादव और लालू प्रसाद यादव के समर्थकों को बाहर विरोध में नारेबाजी करते देखा गया| नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ हाथ मिलाने और महागठबंधन को तोड़ने के फैसले के खिलाफ शरद यादव ने बगावत का बिगुल बजा दिया है| भाजपा से हाथ मिलाने के नीतीश के फैसले का विरोध कर रहे शरद यादव के करीबी नेता भी एस के मेमोरियल हॉल में ‘जन अदालत’ नाम का एक कार्यक्रम करेंगे| दोनों बैठकों से साफ हो जाता है कि जदयू में दरार पड़ चुकी है और पार्टी टूट की ओर बढ़ रही है|

 

एक प्रवासी बिहारी युवा का ख़त मुख्यमंत्री जी के नाम 

I

आदरणीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी

 

आशा है की आप स्वस्थ और सुचारु होंगे। आप दुधो नहाएँ फुले-फलें और चक्रवर्ती बनें पर इस पत्र के माध्यम से एक प्रवासी युवा जिसको 6 साल पहले बिहार छोरना पड़ा था उसने अपने मन का कुछ प्रश्न अपने प्रदेश के सबसे बड़े नेता से करना चाहता है।

जब आप 2005 मे मुख्यमंत्री बने थे तो मैं बच्चा था पर आपके जीतने के खुशी मे सबके साथ मैं भी नाचा, मुझे इसका मतलब पता नही था मैं सिर्फ ग्यारह साल का था पर मैंने देखा की मेरे आस-पास के सब लोग बहुत खुश थे।

सबको एक आस थी अब बदलेगा, गरीब-बीमारु-भ्रष्ट राज्य का तमगा हमसे हटेगा। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषी, सड़क, बिजली, भ्रष्टाचार और अपराध जैसे चीजों मे आप बदलाव लाएँगे इसलिए आपको सुशासन बाबू का नाम दिया गया। ये सब देख के एक बच्चा आशान्वित था और अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस कर रहा था।

 

वक्त आगे बढ़ता गया, मैं बड़ा होता गया। अब-तक न मैंने शहर देखा था और न दूसरा राज्य। खबरों मे पढ़ता था की

बिहार अब विकास कर रहा है, आपने शिक्षकों की भर्तीयाँ कारवाई, साइकिल बांटी, सड़कें बनवाई,बिजली पहुंचवाई, अपराधियों और भ्रस्ट अफसरों पर नकेल कसी ।

ये सब मैं सुनता था और एक बच्चे के तौर पर सुकून और संतोष का अनुभव करता था। मुझे अपने गाँव और आस-पास मे कुछ बदलाव देखने को नही मिलता था पर मैं सोचता था की अभी वक्त लगेगा यहाँ तक पहुँचने में। मुझे बताया जाता था की पिछले सरकारों ने बिहार को बहुत पीछे कर दिया था इसलिए विकास को पटरी पर आने मे वक्त लगेगा, ये बात मैं भी मानता था।

 

फिर आया 2010, जनता ने आपको फिर चुना। आपने पूराने बंद पड़े मिलों और कारखानों को फिर से खुलवाने की बात की, शैक्षणिक हालात सुधारने की बात की, पलायन रोकने की बात की,  तो जनता ने आप पर फिर भरोषा किया। सबके साथ मैंने भी किया । अब तो पाँच साल हो गए हैं, अब शायद पटरी पर ट्रेन आ गयी है और अब गति पकड़ेगी।

एक साल बाद मुझे पढ़ाई के लिए दूसरे राज्य मे जाना पड़ा क्योंकि मुझे आगे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बिहार मे कोई समुचित संस्थान नहीं मिला। मैंने फिर भी सोचा की वक्त के साथ शायद हालात बदल जाएगी और पढ़ने के बाद नौकरी के लिए मुझे वापस आने का मौका मिलेगा। अब मैं बाहर था और इसलिए बिहार के जमीनी हकीकत से दूर था, जब मैंने दूसरा राज्य और शहर देखा तो फिर मुझे पता चला कि हम कितने पीछे हैं। हमारे राज्य के मजदूर ट्रेनों के जेनरल डब्बे मे भर-भर कर दिहारी मजदूरी के लिए आ रहे थे, यहाँ शहरों में फुटपाथ पर ठेला, रेडी लगा रहे थे। समय-समय पर उन्हें स्थानीय लोगों से गाली-मार सहनी पड़ती थी, बिहारी शब्द एक गाली के तौर पर प्रयुक्त होता था हमारे लिए। हमने ये सब देखा और सहा इस उम्मीद में की आगे सब बदलेगा, शायद वहाँ बिहार मे विकास हो रहा है क्योंकि खबरों में आप अब भी विकास पुरुष के तौर पर दिखाए जा रहे थे।

यहाँ बाहरी लोग बिहार को लालू से रीलेट करते थे और हंसी उड़ाते थे तो हमने उनको आप का नाम बताना शुरू किया ताकि बिहार को एक दूसरा उदाहरण मिले।

 

अब मैं वयस्क हो रहा था और चीजें मेरे समझ मे आने लगी थी। ये समझ अब मुश्किल खड़ी कर रहा था मेरे भरोसे के सामने। नए खुले दारू के ठेकों और शराब के उत्पादन से जीडीपी का ग्रोथ रेट खबरों मे था, केंद्र सरकार के हाईवे बन जाने से और पीले बल्ब वाले बिजली पहुँच जाने से विकास का ढ़ोल बजाया जा रहा था। पर अब, जब मैं गाँव जाता था तो मुझे दिखने लगा था की जिस बदलाव की खबरें हम बाहर पढ़ते हैं वो अब तक जमीन पर पहुंची ही नहीं है। लोग अब भी पलायन कर रहे थे और पहले से भी ज्यादा, शिक्षा व्यवस्था अपने निचले स्तर पर पहुँच चुका था, गांवों मे लोग खेती बंद कर रहे थे, स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव मे जब गर्भवती महिलाओं को मरते देखा तो फिर आपसे भरोसा टूटने लगा।

एक भी बंद पड़ा चीनी मिल या कोई भी कारख़ाना आप खुलवा नहीं सके, एक भी शिक्षण संस्थान या विश्वविद्यालय की हालत आप सुधार नहीं सके, एक भी खेत तक पानी आप नही पहुंचवा सके। लोग अब शिकायत नही कर रहे थे, वो थक गए थे और हार गए थे। नाउम्मीदी हावी थी। मैं अब युवा हो चुका था और ये सब देख सकता था।

 

फिर 2014 के लोकसभा चुनावों का दौर आया, राजनीति अपने चरम पर थी। उठा-पटक के इस दौर मे आपने भी क्या खूब खेल खेला!  एनडीए से नाता तोड़ा और लोकसभा चुनाव मे आपकी पार्टी के हार के बाद एक आपने एक कठपुतली मंत्री को मुख्यमंत्री के रुप में बिहार के ऊपर थोप दिया वह भी बिलकुल लालू द्वारा राबरी को मुख्यमंत्री बनाने के स्टाइल में ।

कुछ दिनों बाद जब मांझी जी ने सत्ता छोडने से मना कर दिया तो फिर से सियासत का खेल हुआ और आप पुनः मुख्यमंत्री बने। अब तक भी ठीक था पर इसके बाद का प्रकरण इतिहास में आपके उपहास का कारण जरूर बनेगा! जिस लालू जी का विरोध आपके राजनीति का केंद्र था, आपने सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए उनसे भी गठबंधन किया। फिर से सरकार बनाई और बिहार को फिर से उसी युग मे खड़ा कर दिया ।  शराब को आपने ही गाँव-गाँव तक पहुंचाया था, शराबबंदी करके आपने अपना इमेज बनाया, समारोह करवाए, रैलियाँ की, खबरों मे आए पर काम कहीं नही हुआ। बिहार अटक चुका था फिर से और अब लोगों के पास कोई उम्मीद और ऑप्शन नहीं था। शिक्षा व्यवस्था के झोल, भ्रष्टाचारी , पलायन, गरीबी और अपराध की खबरें बाहर आ रही थी। अब बाहर रह रहे बिहारियों के पास कोई बचाव नहीं था अपना मजाक बनने से रोकने के लिए !

 

कल राजनीतिक उठा-पटक का एक नया रीकोर्ड बनाते हुए आप फिर से एनडीए से मिल चुके हैं और सत्ता फिर से आपके हाथ में है।

मैं अब जॉब कर रहा हूँ यहाँ मुंबई एक सॉफ्टवेयर एमएनसी में और रात के चार बजे आपको ये ख़त लिख रहा हूँ क्योंकि आज परेशान हूँ। आज सबके तरह मैंने भी फेसबूक पर वनलाइनर पंच लिखके मजे लिए हैं इस राजनीतिक खेल का । पर अभी मैं उस बच्चे के भरोसे को पूरी तरह टूट जाने का महसूस कर पा रहा हूँ । राजनीति से मुझे कुछ नहीं मतलब, कोई नृप हो हीं हमें का हानि पर अचानक आज ये एकसास हो गया की 12 साल तो हो गए हैं आपके आए हुए।

अब भी यदि हालात नहीं बदला है तो इसका कारण है कि आप अब तक सिर्फ राजनीति करते रहें हैं और विकास का ढ़ोल सिर्फ एक छ्लावा था। आपने लोगों के उम्मीद को ठगा है,भरोसे को तोड़ा है, उसपर अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और राजनीति का महल खड़ा किया है। लोग आपसे हिसाब नहीं ले पायेंगे शायद मगर समय जरुर लेगा क्योंकि आपकी तरह यह भी किसी का नहीं है। आप राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं और आपके इस गुण का मै कायल भी हूँ मगर यह याद रहे कि राजनीतिक विज्ञान का हर चैप्टर एक दिन इतिहास होता है और इतिहास नेताओं को अपनी निर्धारित कसौटी पे तौलता है।

 

बहारों फूल बरसाओ,  पुनः सरकार आया है। 

एक बिहारी

आदित्य

पूर्वी यूपी के कद्दावर नेता योगी आदित्यनाथ बने यूपी के नये मुख्यमंत्री

विगत कुछ दिनों से यूपी सीएम को लेकर चल रही अटकलें आज खत्म हो गई। लखनऊ में बीजेपी विधायकों की बैठक में योगी आदित्य नाथ को विधायक दल का नेता चुन लिया। इसके साथ ही यह तय हो गया कि योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री होंगे। उत्तर प्रदेश में दो डिप्टी सीएम भी बनाए जाएंगे। केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा होंगे डिप्टी सीएम बनाए जाएंगे।

 

रविवार को आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में इन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई जाएगी। समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ-साथ बड़ी संख्या में केंद्रीय मंत्री भी शामिल होंगे।

 

विधायक दल की बैठक के बाद योगी आदित्यनाथ को विजय का सिंबल बना कर समर्थकोें का अभिवादन करते देखा गया। इसके साथ ही योगी को शुभकामनाएं भी आने लगी हैं।

 

बताते चलें कि आदित्यनाथ की पहचान विवादित नेता के रूप में रही है. विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा रैलियां करने वाले आदित्यनाथ पूर्वांचल के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. भाषणों में लव जिहाद और धर्मांतरण जैसे मुद्दों को उन्होंने जोर शोर से उठाया था. आदित्यनाथ का असल नाम अजय सिंह नेगी है और वह उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले से हैं. योगी आदित्यनाथ के नाम सबसे कम उम्र (26 साल) में सांसद बनने का रिकॉर्ड है. उन्‍होंने पहली बार 1998 में लोकसभा का चुनाव जीता था. इसके बाद आदित्यनाथ 1999, 2004, 2009 और 2014 में भी लगातार लोकसभा का चुनाव जीतते रहे.

Inside Story: नीतीश के लिए भाजपा को इतना क्यों आ रहा है प्यार और क्यों महागठबंधन में बढ़ रहा है तकरार

कहा जाता है कि दिल्ली में सत्ता का रास्ता बिहार और यूपी से गुजरता है । 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ी कामयाबी इन्ही दो राज्यों में मिले थे । यूपी विधानसभा चुनाव जीत बीजेपी ने 2019 के लिए अपना रास्ता तो साफ कर लिया है मगर रास्ते में अभी एक चुनौती मौजूद है और वह है बिहार । पूरे देश में मोदी हवा चला मगर लालू-नीतीश की दोस्ती ने मोदी हवा को बिहार में रोक दिया ।

 

भाजपा किसी भी हालत में बिहार में महागठबंधन को तोड़ना चाहती है। यूपी चुनाव के बाद महागठबंधन में चल रहें खटपट भी बीजेपी को काफी पसंद आ रहा है।

सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी पर नीतीश कुमार का मोदी सरकार का साथ देना भले ही लालू यादव पर दबाव बनाने की राजनीति हो मगर बीजेपी इसको एक अवसर के रूप में देख रही है।

 

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का खुले तौर पर नीतीश की प्रशंसा करना हो या खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शराबबंदी पर नीतीश के तारीफ में पूल बांधना । ये सब यू ही नहीं हुआ बल्कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया है।

 

दरअसल बीजेपी एक तीर से कई निशाना लगाना चाहती है । बीजेपी किसी भी तरह महागठबंधन को तोड़ना तो चाहती ही है साथ ही नीतीश कुमार को अपने साथ जोड़ना चाहती है । इसमें तो कोई सक नहीं की बिहार जीत के बाद नीतीश कुमार मोदी के सामने सबसे बड़े विपक्षी नेता के तौर पर राष्ट्रीय राजनीति में उभर के आए है तो शराबबंदी और प्रकाशपर्व के बाद बिहार के साथ ही देश में भी अपनी सकारात्मक छवि बनाने में कामयाब हुए है। नीतीश कुमार के साथ आने से बीजेपी को बिहार में फिर से एक चेहरा तो मिल ही जायेगा साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में भी मोदी को चुनौती देने वाला विपक्ष खत्म हो जायेगा । इसीलिए कई बड़े नेताओं द्वारा नीतीश को एनडीए में सामिल होने का निमंत्रण भी मिल चुका है।

 

सब जानते है कि भले लालू यादव और नीतीश सरकार में साथ है मगर दोनों एक दुसरे को कमजोर करने में लगें है। यह मजबूरी का गठबंधन है । अगर आपको कुछ दिनों में महागठबंधन टूटने की खबर मिले और विकास के नाम पर या बीजेपी के किसी विशेष पैकेज के बहाने नीतीश कुमार के घर वापसी की खबर आए तो हैरान नहीं होईयेगा ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

यूपी में भाजपा के जीत पर महागठबंधन में घमासान, रघुवंश ने नीतीश को कहा ‘धोखेबाज’

यूपी चुनाव में बीजेपी की भारी जीत से बीजेपी विरोधियों में हरकंप मच गया है । यूपी में मोदी विजय का असर परोसी राज्य बिहार में भी दिखने लगा है। एक तरफ बीजेपी खेमा में केसरिया होली चल जारी है तो विपक्षी खेमा बेचैन है ।

 

चुनाव के नतीजों पर राजद के बड़े नेता रघुवंश प्रसाद यादव ने सीएम नीतीश कुमार को आड़े हाथो लिया. रघुवंश प्रसाद सिंह ने नीतीश कुमार पर धोखा देने का आरोप लगाया और कहा कि नीतीश ने पहले तो नोटबंदी पर केंद्र सरकार की सराहना की, फिर उन्होंने उत्तरप्रदेश चुनाव में भी बीजेपी की मदद की. उन्होंने चुनाव प्रचार न कर के लोगों को गुमराह करने और जनता को धोखा देने का काम किया है.

 

दूसरी ओर जदयू ने नीतीश को यूपी में गठबंधन में शामिल नहीं करने का आरोप लगाया है. जदयू के नेता श्याम रजक ने आरोप लगाते हुए कहा कि यूपी में नीतीश कुमार को शामिल नहीं किया गया, जदयू हमेशा से चाहती थी कि उत्तरप्रदेश में भी बिहार की तरह महागठबंधन हो.
इसके लिए जदयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव ने काफी कोशिशें कीं, लेकिन लोगों ने सीधे नकार दिया. पार्टी प्रवक्ता संजय सिंह ने भी कहा कि महागठबंध के चुनाव से बाहर रहने के कारण बीजेपी को यह जीत मिली है.

 

राजनीति के जानकर बता रहें हैं कि अभी तो यह शुरुआत है । बीजेपी की यह जीत बिहार के राजनीति में भी असर डालेगी ।

 

बिहार भाजपा का हो रहा है अबतक का सबसे बड़ा रूपान्तरण

बिहार में करारी हार के बाद भाजपा बिहार में अब नये रूप में अपने को पेश करने में लगी है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रकाश पर्व के अवसर पर कोई तीन घंटे का पटना-प्रवास बहुआयामी राजनीतिक संदेश देकर चला गया. इसने सूबे के सत्तारूढ़ महागठबंधन की आंतरिक राजनीति में तो हलचल मचा ही दी, भारतीय जनता पार्टी के भावी नेतृत्व और राजनीति को लेकर भी कई संकेत दिए.

 

हालांकि प्रांतीय भाजपा के संदर्भ में केंद्रीय नेताओं की चिंता या रणनीति के संकेत गत एक साल में कई अवसरों पर मिलते रहे हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी की इस यात्रा के साथ पार्टी की आंतरिक राजनीति में उन संकेतों को बिहार ने जमीन पर उतरते देखा-प्रधानमंत्री के आगमन से लेकर उनकी विदाई तक.

बिहार की गैर भाजपाई राजनीति में सेंधमारी की मोदी की रणनीति की झलक तो इस यात्रा के हफ्ते भर के भीतर दिखी. जनता दल (यू) ने सूबे में पूर्ण शराबबंदी को लेकर जनजागरण अभियान के तहत 21 जनवरी को दो करोड़ लोगों की मानव-श्रृंखला बनाने का निर्णय लिया है. भाजपा ने इस कार्यक्रम के समर्थन की ही नहीं, बल्कि इसमें भाग लेने की भी घोषणा की है.

क्या यह अनायास है? ऐसा लगता नहीं है. नोटबंदी को लेकर हिन्दी पट्टी के कद्दावर नेता नीतीश कुमार से बिना शर्त मिले समर्थन का यह प्रतिदान हो सकता है. यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के बीच विकसित हो रही नई राजनीतिक केमिस्ट्री की झलक हो सकती है. इस नई केमिस्ट्री का अंदाज बिहार की जमीन से लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के कर्नाटक की सार्वजनिक सभा के भाषण और उससे पहले भी मिलता रहा है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 25 दिसम्बर 2015 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के जन्मदिन पर अचानक इस्लामाबाद पहुंचने का मामला हो या पाक की जमीन पर भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक का, नीतीश कुमार उनके साथ रहे. नोटबंदी के सवाल पर तो अन्य विपक्षी दल ही नहीं, महागठबंधन के अपने सहयोगियों से अलग होकर उन्होंने उनका समर्थन किया और अब भी उनके साथ हैं.

प्रधानमंत्री ने पटना में शराबबंदी का पुरजोर समर्थन कर और नीतीश कुमार का सार्वजनिक तौर पर अभिनंदन कर इसकी कीमत चुका दी. अब शराबबंदी को लेकर जद(यू) के अभियान में भाजपा के शामिल होने से बहुत कुछ साफ हो रहा है. यह राजनीतिक सच्चाई है कि भाजपा ने बिहार में शराबबंदी का विधानमंडल में खुल कर समर्थन किया था.

यह भी सही है कि शराबबंदी से संबंधित पहला विधेयक मार्च 2016 के अंतिम हफ्ते में, जब विधानमंडल में पारित कराया जा रहा था, तब सत्ता पक्ष की इच्छा के अनुरूप विधानमंडल के दोनों सदनों के सदस्यों को शराब नहीं पीने और इससे लोगों को दूर रखने के लिए प्रेरित करने की शपथ दिलाई गई थी. यह शपथ भाजपा के सदस्यों ने भी ली थी.

हालांकि यह भी सच है कि शराबबंदी के नए कानून के कई प्रावधानों को काले कानून की संज्ञा देकर भाजपा ने अगस्त में सदन का बहिष्कार किया था साथ ही विधेयक के खिलाफ राज्यपाल से गुहार लगाई थी. इस मसले पर प्रदेश भाजपा अब भी कड़े तेवर में है, लेकिन प्रकाश पर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री ने जिस भाव-भंगिमा के साथ शराबबंदी के लिए नीतीश का अभिनंदन किया और उनके साथ होने की घोषणा की, भाजपा के लिए अब शराबबंदी कानून के समर्थन के अलावा कोई चारा नहीं बचा था।

नरेन्द्र मोदी की इस यात्रा में प्रदेश भाजपा के लिए यह संकेत था कि यहां दल के भीतर नए युग की शुरुआत हो चुकी है. यह मात्र शब्दों में बयां नहीं किया गया, बल्कि आचरण में भी दिखा. पूरे प्रकरण को विस्तार से समझिए ।

प्रकाश पर्व के  लिए पांच जनवरी को गांधी मैदान के दरबार हॉल में आयोजित मुख्य समारोह के मंच पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद, केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान, संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद और तख्त हरमिंदर साहिब प्रबंध कमिटी के अध्यक्ष थे. मंच पर बिहार सरकार के किसी मंत्री और बिहार भाजपा के किसी नेता के लिए कोई जगह नहीं बनाई गई थी.

हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) व बिहार सरकार की सहमति से किसी और की भी व्यवस्था की जा सकती थी, पर ऐसा नहीं किया गया. यह तो मंच की व्यवस्था थी. समारोह के बाद प्रधानमंत्री के भोजन का इंतजाम किया गया था. इसमें कोई दो दर्जन लोगों के लिए कुर्सियां लगी थीं और सभी पर आमंत्रितों के नाम थे.

यहां प्रधानमंत्री के साथ दिल्ली से आए मंत्रियों के अलावा बिहार और पंजाब के मुख्यमंत्रियों, लालू प्रसाद के साथ साथ उनके दोनों पुत्रों तेजस्वी प्रसाद यादव और तेजप्रताप यादव, पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखवीर सिंह बादल और केंद्रीय मानव संसाधन राज्यमंत्री उपेन्द्र कुशवाहा के नाम लिखे थे. हालांकि कुशवाहा इस भोज में मौजूद नहीं हुए इसलिए कुर्सी खाली ही रह गई.

यहां पर भी प्रदेश भाजपा के किसी नेता के लिए कोई जगह नहीं थी, विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता डॉ. प्रेम कुमार के लिए, न विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी के लिए. पर, इससे भी महत्वूर्ण यह रहा कि बिहार में भाजपा के सबसे कद्दावर नेता के तौर पर ख्यात सुशील कुमार मोदी के साथ-साथ डॉ. प्रेम कुमार के लिए, न विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी के लिए. पर, इससे भी महत्वूर्ण यह रहा कि बिहार में भाजपा के सबसे कद्दावर नेता के तौर पर प्रख्यात सुशील कुमार मोदी के साथ-साथ डॉ. प्रेम कुमार और नंदकिशोर यादव सहित इन लोगों के किसी करीबी नेता को एयरपोर्ट पर स्वागत या विदाई का पास तक नहीं दिया गया.

 

ऐसा पास प्रांतीय भाजपा के पदाधिकारी (अध्यक्ष कहना बेहतर होगा) की सहमति से ही जारी होना था. तो क्या सुशील कुमार मोदी या दल के बड़े और पुराने नेताओं को यह मौका नहीं देने का केंद्रीय नेतृत्व का कोई निर्देश था?

 

इसका उत्तर प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय या केंद्रीय कमिटी के लोग ही दे सकते हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यक्रम में पार्टी के सूबे के जमे-जमाए और शिखर नेताओं के साथ यह सलूक यदि कोई संकेत देता है तो यह कि नए नेतृत्व को इनकी छाया से पूरी तरह मुक्त करने की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में पहुंच रही है. देखना है, यह प्रक्रिया कितने दिनों में पूरी हो जाती है.

 

यह नई परिघटना नहीं है और इसका संकेत भी नया नहीं है. विधानसभा चुनावों के बाद से केंद्रीय नेतृत्व अपने आचरण से यह जताता रहा है. विधानसभा चुनावों के तत्काल बाद विधायक दल के नेता के चयन में सुशील कुमार मोदी की रणनीति को झटका लगा था. उस समय सुशील मोदी-मंगल पांडेय की जोड़ी ने नंदकिशोर यादव को इस पद पर बैठाने की तैयारी कर ली थी. उन दिनों विधानसभा चुनावों में पार्टी की करारी शिकस्त के बावजूद मोदी-मंगल-नंदकिशोर के गुट ने पटना से दिल्ली तक अपनी रणनीति की सफलता के लिए हरसंभव जुगाड़ कर लिया था.

 

हालांकि डॉ. प्रेम कुमार अपनी उम्मीदवारी पर अड़े थे, पर उन्हें भी कोई आश्वासन नहीं था. केंद्रीय नेतृत्व ने अंतिम समय में प्रेम कुमार के दावे को स्वीकार कर स्थापित नेतृत्व को झटका दे दिया. फिर, राज्यसभा चुनाव के वक्त इन नेताओं के मत के विपरीत गोपाल नारायण सिंह को उम्मीदवारी दे दी. कहते हैं, सुशील मोदी ने बिहार से दिल्ली जाने की पूरी तैयारी की थी. केंद्रीय नेतृत्व ने सबसे बड़ा झटका प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष को लेकर सुशील मोदी व उनके समर्थकों को दिया.

 

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव पिछली फरवरी में ही होना था, पर पंचायत चुनाव व अन्य कई कारणों से यह टलता रहा. हालत यह हो गई थी कि मंगल पांडेय को ही इस पद पर बने रहने की बात अनौपचारिक तौर पर कही जाने लगी, कामकाज भी इसी मिज़ाज से हो रहा था. जब कभी अध्यक्ष के चयन की बात चलती भी थी, तो ऊंची जाति- मुख्यतः भूमिहार मैथिल ब्राह्मण- को इस पर नवाजे जाने की बात चला करती थी.

 

कुछ नाम सामने भी थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व खुल कर कुछ बोल नहीं रहा था और बिहार के प्रभारी भूपेन्द्र यादव की बिहार से प्रेषित नामों पर आपत्ति होती रही. वे यादव मतदाताओं को रिझाने के ख्याल से युवा यादव को अध्यक्ष बनाने के पक्षधर थे.

 

कहते हैं, नित्यानंद उनकी ही पसंद हैं. अर्थात केंद्रीय नेतृत्व ने बिहारी नेताओं की नहीं, प्रभारी पर ज्यादा भरोसा किया, जो उसका ही प्रतिनिधि होता है. मोदी-युग के अंत की यह ठोस अभिव्यक्ति थी और अब यह ताज़ा उदाहरण उससे भी बड़ा संकेत है. हालांकि कह सकते हैं कि राजनीति में जिस तरह कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता, उसी तरह कोई स्थिति स्थायी नहीं होती. जब तक सांस, तब तक आस.

 

भाजपा के नेतृत्व और इस वजह से राजनीति में बदलाव पार्टी के लिए कैसा रहेगा, यह कहना कठिन है. अभी यह भी नहीं कहा जा सकता है कि इससे भाजपा के नए समर्थक सामाजिक समूहों के मानस पर क्या असर पड़ेगा. यह एक तथ्य है कि कोई दो-ढाई दशक पहले तक भाजपा (जनसंघ के समय से ही) को जिस सामाजिक समूह का समर्थन था, आज वह पीछे है. कांग्रेस के निरंतर क्षरण के कारण सूबे की कांग्रेस समर्थक अगड़ी जातियों में भाजपा निरन्तर मजबूत होती गई.

 

हालांकि यह विकल्पहीनता का ही परिणाम रहा है, पर बिहार का अगड़ा मतदाता कमोबेश भाजपा के साथ है. पिछले विधानसभा चुनाव के पहले तक तो यह आक्रामक रूप से मतदान केंद्र पर भाजपा के साथ था. हालांकि भाजपा के प्रदेश नेतृत्व पर भी लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की तरह पिछड़ावादी होने का आरोप लगता रहा और अपने आचरण से वह इसे दिखाता भी रहा.

 

फिर भी, सूबे के अगड़े सामाजिक समूहों की यह सहज शरणस्थली रही. इसका एक कारण इसका उत्कट लालू विरोध रहा. इसकी समावेशी रणनीति भी कम महत्वपूर्ण कारण नहीं रही. कैलाशपति मिश्र, ताराकान्त झा, लालमुनि चौबे जैसों ने संगठन में सामाजिक समूहों के लिए समावेशी रणनीति अपनाई थी, वह उसी तरह बरकरार नहीं रही. पर सुशील कुमार मोदी ने उसे थोड़े बदलाव के साथ अपनाया. मोदी के नेतृत्व में प्रदेश भाजपा में कुछ बड़े पद, जिनमें पार्टी अध्यक्ष का पद भी शामिल है, अगड़ों के लिए ही रहते रहे.

 

हालांकि, संगठन (और जब सरकार में रही तो वहां भी) महत्वपूर्ण व निर्णायक पदों को अगड़ों से मुक्त रखने की हरसूरत चेष्टा रहती थी. न बनने पर ही कोई ऐसा पद अगड़ों को मिलता था. ऐसी रणनीति के कारण बिहार के अगड़ों को बांध रखने में सुशील कुमार मोदी को कुछ हद तक सफलता मिलती रही. इस बार यह पहला मौका है कि अगड़े सामाजिक समूहों को भाजपा ने कोई पद नहीं दिया है. पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष और विधान परिषद में विपक्ष का नेता पद पिछड़े समुदाय को है, तो विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता पद अति पिछड़ा समुदाय को.

 

अवधेश नारायण सिंह विधान परिषद में सभापति हैं. पर वह पद भाजपा की नहीं, एनडीए की देन है. सो, बिहार भाजपा का रूपान्तरण हो रहा है. यह रूपान्तरण पार्टी को क्या देता या क्या लेता है, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन फिलहाल सभी छोटे-बड़े नेता दिल थाम कर आनेवाले दौर की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

सभार: चौथी दुनिया