चेन्नई, कश्मीर, आसाम या केरल का बाढ़, बाढ़ और बिहार का बाढ़ प्राकृतिक आपदा

एक प्रोपेगेंडा के द्वारा यहां के लोगों के मन में यह बैठा दिया गया है कि बाढ़ यहां के लोगों के नसीब में लिखा है

वैसे तो असम, बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश समेत कई राज्य बाढ़ की तबाही हर साल झेलते हैं लेकिन बिहार में हालात सबसे ज्यादा गंभीर है. बिहार के करीब 74 फीसदी इलाके और 76 फीसदी आबादी बाढ़ की जद में हमेशा रहती है. खासकर उत्तरी बिहार में रहने वाले इलाके बाढ़ के खतरे के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील माने जाते हैं और इसका कारण है नेपाल से आने वाली नदियां, जिनकी उत्पति हिमालय की वादियों में होती हैं और ढलान के कारण पानी हर साल तेज रफ्तार में बिहार की ओर आ जाता है. राज्य के 38 में 28 जिले हर साल बाढ़ की विभीषिका को झेलते हैं.

तबाही का प्रमुख कारण नेपाल से आने वाला पानी है। जाहिर है समस्या का कोई स्थाई हल नेपाल के साथ मिलकर ही नकाला जा सकता है। और इसके लिए बिहार और केंद्र सरकार दोनों को ध्यान देना होगा। मगर दुर्भाग्य से आजादी के बाद से अब तक कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए।

जो थोड़ा बहुत काम हुआ है वो तटबंध बनाने को लेकर हुआ है मगर उल्टे इन सात दशकों में बिहार में बाढ़ के खतरे वाला इलाका बढ़कर 68 लाख हेक्टेयर हो गया है क्योंकि नदियों का लगातार विस्तार हो रहा है।

एक्सपर्ट और बिहार की सरकार भी मानती है कि तटबंधों का निर्माण बाढ़ का टेंपररी समाधान ही है. लेकिन इसके आगे कोई ठोस प्लान नहीं दिखता। 2008 के कोसी फ्लड के वक्त की भारी तबाही के बाद भी तमाम वादे किए गए. मास्टरप्लान, टास्क फोर्स बनाई गई. हर चुनाव में बाढ़ नियंत्रण के बड़े उपायों के वादे होते हैं लेकिन हालात तब भी जस के तस हैं।

आईआईटी कानपुर की एक स्टडी रिपोर्ट में भी तटबंधों को बाढ़ का अस्थायी समाधान ही माना गया है। जल संसाधन पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट मानते हैं कि नेपाल से सटे होने और नदियों की तलहट्टी में बसे होने के कारण यहां की भौगोलिक स्थिति में बाढ़ को टाला नहीं जा सकता। बल्कि बेहतर प्रबंधन से लोगों को हो रहे नुकसान में कमी जरूर लाई जा सकती है।

छोटे-छोटे नहर बनाकर कम प्रभाव वाले इलाकों में पानी को डायवर्ट किया जा सकता है। इसके अलावा बड़े जलाशयों का निर्माण कर पानी को संरक्षित किया जा सकता है। इससे जहां ज्यादा इलाकों में सिंचाई की जरूरत पूरी की जा सकती है वहीं सूखे वाले इलाकों में पानी मुहैया कराया जा सकता है।

साथ ही पीने के पानी के बढ़ते संकट को भी कम किया जा सकता है।

मगर ये सब तब होगा जब इस समस्या का समाधान सरकार के प्रथमिकता में आएगी। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसे न हल होने वाली समस्या मानती है। इस राज्य से 40 सांसद चुन के दिल्ली जाते हैं, मगर सांसद शत्र के दौरान आपने कब अपने सांसदों को बिहार में बाढ़ का मुद्दा उठाते देखा है? केंद्रीय कैबिनेट में बिहार के कई मंत्री बैठे हुए, मगर क्या आपने सुना है कि बिहार का प्रतिनिधित्व कर रहे मंत्रियों ने प्रधानमंत्री के सामने बिहार के बाढ़ की समस्या को लेकर अवगत कराया है?

इन सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि हर साल बाढ़ बिहार के करोड़ों आबादी के जीवन को प्रभावित करती है मगर फिर भी इसका समाधान चुनावी मुद्दा नहीं बनाता। इसका सबसे बड़ा कारण है प्रोपेगेंडा।

प्रोपेगेंडा के द्वारा यहां के लोगों के मन में यह बैठा दिया गया है कि बाढ़ यहां के लोगों के नसीब में लिखा है। इस समस्या का कोई समाधान नहीं है। लोगों ने इस प्रोपेगेंडा को सत्य मानकर इसको अपना नसीब मान लिया है और इस परिस्थिति के साथ ही जीना सिख लिया है।

कहा जाता है कि जब सत्ता लोगों को गुमराह करती है तो मिडिया लोगों को न सिर्फ जागरूक करती है, बल्कि लोगों का आवाज भी बनती है। मगर बिहार में बाढ़ आना और उसके कारण लोगों की जान जाना इतना सामान्य घटना हो गया है कि यह खबर नहीं बनती। वैसे आज मुंबई, चेन्नई, केरला या कश्मीर में पानी भी लग जाए तो टीवी चैनलों का स्टूडियों पानी में तैरने लगता है और सरकार लोगों के रेस्क्यू में सेना तक को उतार देती है। मगर …बात बिहार राज्य की बात हो रही है जो भारत में अपवाद है।

अविनाश कुमार, संपादक

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