समाजसेवी और शिक्षक घनश्याम शुकुल के निधन पर पूरा सिवान मना रहा है शोक

सीवान में शाहबुद्दीन जैसा खून्खार अपराधी हुआ। चन्द्रशेखर जैसा साहसी युवा नेता हुआ। पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद हुए तो मशहूर ठग नटवरलाल भी वहीं की विभूति रहे। मगर मुझसे पूछा जाये कि सीवान का असली मर्द कौन था तो मैं इस साधारण से दिखने वाले बुजुर्ग घनश्याम शुकुल का नाम लूंगा।

कल इस बुजुर्ग का देहावसान हो गया। मेरा अनुमान है कि इस खबर को सुनकर सीवान के पन्जवार के आसपास के कई गांवों में शायद ही कोई लड़की, किशोरी या युवती ऐसी हो जो न रोई हो। क्योंकि यह बुजुर्ग पिछ्ले 20-30 साल से एक ही काम करता था। इस इलाके की लड़कियों की आंखों में किसी सपने को जगा देता था।

पहले इसने एक कन्या विद्यालय खुलवाया। फिर लड़कियों के लिये संगीत महाविद्यालय। फिर एक दिन किसी किशोरी ने टोक दिया कि गुरुजी हमनी के किरकेट नईखे खेली तो एक स्पोर्ट्स अकादमी खुलवा दिया। इनमें से कई काम इस व्यक्ति ने खुद के पैसों से किये और न सिर्फ शुरू किया बल्कि एक सामान्य कार्यकर्ता की तरह उसे आगे बढ़ाने में जुटा रहा। अपने ही संगीत महाविद्यालय के दरवाजे पर अक्सर उसे झाडू लगाते भी लोग देख लेते थे।

मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई। मगर एक खबर के सिलसिले में फोन पर बात हुई। उस रोज उन्होने खुद तो थोड़ी सी बातचीत की। अपने स्पोर्ट्स एकेडमी की कम से कम 40 लड़कियों से बात करा दी। एकरो से बतिया ली, एकरो से बतिया ली। मैं थक गया था कि एक ही स्टोरी के लिये कितनी लड़कियों से बात करूं। खबर में दो चार लड़कियों की ही कहानी दे सकता था। मगर उनके लिये तो सब बराबर थे। किसी को कैसे छोड़ देते।

कल इस धरती को छोड़ गये तो फ़ेसबुक पर श्रद्धांजलियों की बाढ़ आ गयी। एक सामान्य से दिखने वाले व्यक्ति को लोगों ने इतना याद किया कि देखकर मन भर आया। निराला जी जो उनके काफी करीबी थे और उनकी वजह से ही मुझे इनके बारे में पता चला था, कई बार कहते थे इनको पटना बुलाकर इनके अनुभवों को सुनना चाहिये। कई दफा योजना बनी मगर हो न सका। खैर अब तो वे चले ही गये। मगर यह बात अब भी मन में है कि महानता का यह सरल और साधारण रूप ईश्वर कभी-कभी बनाता है।

लेख साभार : पुष्य मित्र

तेजस लड़ाकू विमान के नीव रखने वाले दरभंगा के मानस बिहारी वर्मा का निधन

कोरोना महामारी हर दिन हजारों को मौत के मुंह में धकेल रही है। हर तरफ मातम है, हर रोज अपनों की जाने की खबर दिल को दहला देता है। आज एक और खबर आई है जिससे बिहार समेत पूरा देश शोक में है।

दरभंगा जिला के घनश्यामपुर प्रखंड के बाउर गांव से निकल कर देश ही नहीं दुनिया में अपना नाम रौशन करने वाले मानस बिहारी वर्मा का देहांत हो गया।

मानस बिहारी वर्मा जी को देश के महत्वपूर्ण फाईटर प्लेन तेजस के निर्माण में उनके अहम योगदान के लिए जाना जाता है। 1986 में तेजस फाइटर जेट विमान बनाने के लिए टीम बनी थी उस समय लगभग 700 इंजीनियर इस टीम में शामिल किए गए थे। डॉक्टर वर्मा ने इस टीम में बतौर मैनेजमेंट प्रोग्राम डायरेक्टर के रूप में अपना योगदान दिया था।

उन्होंने 35 वर्षों तक DRDO में एक वैज्ञानिक के रूप में काम किया। वे न सिर्फ पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के मित्र थे बल्कि वर्षों तक उनके साथ काम भी किया था। राष्ट्रसेवा में उनके अहम योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें साइंटिस्ट ऑफ द ईयर पुरस्कार से सम्मानित किया था।

2018 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किया गया था।

डीआरडीओ से रिटायरमेंट के बाद लौटे अपने गांव

डीआरडीओ से 2005 में रिटायर होने के बाद मानस बिहारी वर्मा दरभंगा स्थित अपने गांव आने का फैसला किया। उन्होंने गांव में रहते हुए यहां के बच्चों में कंप्यूटर और विज्ञान की शिक्षा को बढ़ावा देने की ठानी। जिन स्कूलों में विज्ञान शिक्षक का अभाव रहता है, वहां टीम मेंबर बच्चों को प्रयोग कराते हैं। मोबाइल वैन के जरिये एक स्कूल में दो से तीन माह कैंप कर बच्चों को विज्ञान और कंप्यूटर की बेसिक जानकारी दी जाती है।

कुछ दिनों से वो अस्वस्थ भी थे लेकिन बीती रात यानी सोमवार को हार्ट अटैक होने से उनकी मौत दरभंगा के लहेरियासराय स्थित निवास स्थान पर हो गई। उनके मौत की खबर के बाद शोक की लहर है। देश ने एक व्याज्ञानिक खोया है तो बिहार ने अपना बेटा और एक समाज सेवी को खो दिया।

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कोरोना और बाढ़ ने न जाने कितने ख्वाब डूबा दिए मगर नहीं डूबी बिहारियों की छठ को लेकर आस्था

 “कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय
होई ना बलम जी कहरिया बहंगी घाटे पहुंचाय
कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय…”

ये छठ गीत सुनते ही आप भी गुनगुनाने लगे ना?

यही तो छठ है, यही तो है जो इस महापर्व को जीवन्त बनाता है| सालभर मेहनत करके कटने वाली जिंदगी में छठ के ये चार दिन होते हैं, जब हर बिहारी जिंदगी काट नहीं रहा होता है अपितु खुलकर जी रहा होता है।

छठ के बारे में क्या कहें, कितना कहें और कैसे कहें? छठ तो भावनाओं का सैलाब है| फिर भी हम सफेद कागज पर कलम की नोक के नीचे छठ के किस्सों को दबाने का दुस्साहस कर रहे हैं।

कितने जिद्दी होते हैं ना हम बिहारी!

हम देश के उस हिस्से से हैं, जिसके वैश्विक महामारी कोरोना के विष को पीने के साथ बाढ़ की विभीषिका में तबाह होने के ताजा किस्सों में एक ओर जहां दुनिया गोता लगा रही थी, वहीं हम लोग इस डरावने ख़्वाब से निकलकर छठ की तैयारियों में पूरे उल्लास के साथ फिर से जुट गए। इस साल कॉरोना और बाढ़ ने न जाने कितने गांव,कितने शहर,कितने मोहल्ले, कितनी ज़िंदगियाँ और न जाने कितने ख्वाब डूबा दिए, पर जो नहीं डूबा,वह हम बिहारियों की छठ को लेकर आस्था|

छठ ‘मैं’ नहीं, ‘हम’ का पर्व है| यह हमारे अंदर के अहम को मारता है और हम को जिंदा करता है| छठ एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें उगते और डूबते सूर्य दोनों को पूजा जाता है। डूबते सूर्य को हम इसलिए पूजते हैं क्योंकि हम परिस्थितियों के उतार-चढ़ाव को समझते हैं, संघर्षों को पूजते हैं|

डूबता सूर्य जीवन के संघर्ष का प्रतीक है| वहीं उगते सूर्य की लालिमा में संघर्ष के बाद की जो सफलता मिलती है, हम उसे पूजते हैं।

मालूम नहीं दुनिया में जात-पात का विष कब खत्म होगा, पर छठ एक ऐसा पर्व है जो इन बेड़ियों को तोड़ता है। छठ में उपयोग की जाने वाले सूप को बनाने वाले लोग समाज के ऐसे वर्ग के होते हैं, जिन्हें लोग हेय की दृष्टि से देखते हैं। जब कार्तिक मास के ठंडे पानी में छठ व्रती अपने हाथों में उसी सूप को ऊंचाई पर रखकर अर्ध्य दिलाती है, तो महापर्व के लिहाज से यह सूप बनाने वाली जाति कितनी ऊंची है यह भी पता चलता है| साथ ही छठ के पीछे के अनगिनत खूबसूरत संदेश भी एहसासों में बस जाते हैं।

छठ स्त्री प्रधान पर्व है, ये लिंगभेद को बिना ‘फेमिनिस्ट बैनर’ के सदियों से तोड़ते आ रहा है

लाल-पीला पार वाली साड़ी और नाक पर सिंदूर का श्रृंगार करके घाट के किनारे खड़े होने वाली माओं को देवियों के रूप में पूजी जाती है। यह पर्व जितना सूर्यदेव का है, उतना ही छठ माई का है| न जाने कितनी बेड़ियां टूटती हैं इस पर्व में!

उन्होंने सदियों पहले नदियों को बचाने के लिए हमारी संस्कृति को उपहार के रूप में छठ पर्व दिया, हमने भी पीढियों से श्रद्धा के साथ इस पर्व को महापर्व रूप में बनाए रखा और “आज दुनिया में छठ,छठ का ‘ठेकुआ’ बिहारियों की पहचान है।”

बाहरी लोग अक्सर बोलते हैं कि हम बिहारी छठ पर ओवररिएक्ट करते हैं, अब कौन समझाए उन्हें छठ तो महज़ बहाना है, दुनिया भर की खुशियों को माई के आंचल में समेट लाने का…..❤

– शशांक शुभम (छात्र, कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)

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सुशील मोदी को बिहार से निकाल कर देश के वित्त मंत्री का जिम्मेदारी देना चाहिए

सभी कयासों के बाद आखिरकार वही हुआ जो होना था। नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री तो बनना तय था, अब उपमुख्यमंत्री पद पर सुशील मोदी के नाम पर भी मुहर लग गई है। नीतीश कुमार सरकार बनाने के लिए दावा भी कर चुके हैं और खबर आ रही है कि कल शाम 4:30 में शपथ ग्रहण समारोह भी होगा|

हर बार भाजपा का एक गुट सुशील मोदी को दरकिनार करने की कोशिश करती है मगर हर बार सुशील मोदी सब पर भारी पड़ते हैं। सुशील मोदी ने अपना पूरा राजनीतिक जीवन बिहार में भाजपा को खड़ा करने में लगाया है। उनके विरोधी को समझना चाहिए कि सुशील मोदी के प्रभाव को बिहार बीजेपी में कम नहीं किया जा सकता है मगर सुशील मोदी से समझौता जरूर किया जा सकता है। उनको बड़ा जिम्मेदारी देकर बिहार भाजपा में नये नेतृत्व के लिए जगह जरूर बनाई ज सकती है।

डबल इंजन सरकार का सही मायने में फायदा तभी होगा जब केंद्रीय वित्त मंत्रालय किसी बिहारी के हाथ में होगा। बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व को देश के वित्त मंत्री का कार्यभार सुशील मोदी को देना चाहिए। उनके पास एक राज्य का वित्त मंत्री होने का लंबा अनुभव भी है और निर्मला सीतारमण से बेहतर काम करने की क्षमता भी। अभी जीएसटी कंपनसेशन को लेकर चल रहे केंद्र और राज्य सरकारों के विवाद को लेकर भी सुशील मोदी कारगर साबित हो सकते हैं। कुल मिलाकर सुशील मोदी के वित्त मंत्री बनने से बिहार, देश के साथ बीजेपी को भी फायदा होगा।

बाकी नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री और सुशील मोदी को उपमुख्यमंत्री चुने जाने की बधाई!

अविनाश कुमार (संपादक, अपना बिहार)

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सीनियर आईपीएस ने कहा, मुंगेर में पुलिस ने नियमों की धज्जियां उड़ाई, लिपि सिंह को दी नसीहत

सोमवार देर रात बिहार के मुंगेर में दुर्गा विसर्जन सामिल हुए लोगों पर पुलिस द्वारा की गयी बर्बरतापूर्ण करवाई कू लेकर लोगों में काफी आक्रोश है| इसको लेकर मुंगेर की एसपी लिपि सिंह पर कई सवाल उठ रहे हैं| सोशल मिडिया पर चल रहे विडियो में साफ दिख रहा है कि पुलिस ने जरुरत से ज्यादा बल प्रयोग किया है और आरोप है कि पुलिस ने बिना चेतावनी के ही लोगों पर फायरिंग कर दी|

पुलिस अपने पक्ष में सफाई दे रही है कि उसने सहजता के साथ काम किया और लोगो पर ही हिंसा का आरोप लगाकर अपने करवाई को जायज बता रही है| मगर इसी बीच एक सीनियर आईपीएस ने ही लिपि सिंह के करवाई को अनुचित बता दिया है|

मुंगेर में हुई झड़प का विडियो शेयर करते हुए कर्नाटक सरकार की गृह सचिव डी रूपा ने कहा कि प्रतिमा विसर्जन के दौरान लोगों को काबू करने के लिए पुलिस कार्रवाई में नियमों की धज्जियां उड़ाई गई हैं।

अपने आधिकारिक ट्विटर से डी रूपा ने ट्वीट किया, ‘सीआरपीसी में अनियंत्रित भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस के न्यूनतम बल का उपयोग और भीड़ के अवरोध पैदा करने पर फोर्स की उचित संख्याबल निर्धारित है।’

उन्होंने आगे लिखा, ‘नियम के अनुसार, गोली चलाने से पहले चेतावनी और फिर आंसू गैस छोड़े जाते हैं। दुख की बात है कि मुंगेर में इसका पालन नहीं हुआ।’

अपना बिहार को मुंगेर से काफी लोगों ने विडियो भेजा और वहां हुए पुलिसिया करवाई की जानकारी थी| हमने इस मुद्दे को सोशल मिडिया पर प्रमुखता से उठाया है और मुख्यधारा के मिडिया का ध्यान इस घटना के तरफ खीचा है|

बता दें कि मुंगेर के दीनदयाल चौक के पास सोमवार देर रात प्रतिमा विसर्जन के दौरान पुलिस और लोगों के बीच झड़प हो गई। विडियो में गोलियों की आवाज़ साफ़-साफ़ सुनाई दे रही है और पुलिस निहत्य लोगों को घेरकर बेहरमी से पीटते हुए दिख रही है| इस घटना में अधिकारिक तौर पर एक व्यक्ति की मौत बताई गयी है मगर स्थानीय लोग 4 लोगों के मरने की बात कह रहे हैं|

हालांकि पुलिस ने सफाई में कहा कि असामाजिक तत्वों की ओर से पथराव और फायरिंग की गई, जिसमें कई पुलिसकर्मी जख्मी हो गए। इसके बाद पुलिस ने हालात को संभालने के लिए कार्रवाई की। पुलिस अभी भी गोली चलने की बात से इनकार कर रही है|

लोगों का यह भी आरोप है कि लिपि सिंह जदयू संसद आरसीपी सिंह की बेटी है, इसलिए सरकार लिपि सिंह के करतूत पर पर्दा डालने में लगी है|

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Bihar: एक पैराग्राफ की कहानी का राज्य

साधारण कथाओं का यह असाधारण दौर है। बिहार उन्हीं साधारण कथाओं के फ्रेम में फंसा एक जहाज़ है। बिहार की राजनीति में जाति के कई टापू हैं। बिहार की राजनीति में गठबंधनों के सात महासागर हैं। कभी जहाज़ टापू पर होता है। कभी जहाज़ महासागर में तैर रहा होता है। चुनाव दर चुनाव बिहार उन्हीं धारणाओं की दीवारों पर सीलन की तरह नज़र आता है जो दिखता तो है मगर जाता नहीं है। सीलन की परतें उतरती हैं तो नईं परतें आ जाती हैं। बिहार को पुरानी धारणाओं से निकालने के लिए एक महीना कम समय है। सर्वे और समीकरण के नाम पर न्यूज़ चैनलों से बाकी देश ग़ायब हो जाएगा। पर्दे पर दिखेगा बिहार मगर बिहार भी ग़ायब रहेगा। बिहार में कुछ लोग अनैतिकता खोज रहे हैं और कुछ लोग नैतिकता। बिहार में जहां नैतिकता मिलती है वहीं अनैतिकता भी पाई जाती है। जहां अनैतिकता नहीं पाई जाती है वहां नैतिकता नहीं होती है। बिहार में दोनों को अकेले चलने में डर लगता है इसलिए आपस में गठबंधन कर लेती हैं। अनैतिक होना अनिवार्य है। अनैतिकता ही अमृत है। नैतिकता चरणामृत है। पी लेने के बाद सर में पोंछ लेने के लिए होती है। नेता और विश्लेषक पहले चुनाव में जाति खोजते थे। जाति से बोर हो गए तो जाति का समीकरण बनाने लगे। समीकरण से बोर हो गए तो गठबंधन बनाने लगे। गठबंधन से बोर हो गए तो महागठबंधन बनाने लगे। नेता जानता है इसके अलावा हर जात के ठेकेदार को पैसे देने पड़ते हैं। दरवाज़े पर बैठे लोग पैसे मांगते हैं। चीज़ सामान मांगते हैं। यह स्वीकार्य अनैतिकता है। पहले जनता नहीं बताती थी कि किसने दिया है। अब राजनीतिक दल नहीं बताते हैं कि करोड़ों का फंड किसने दिया है। इल्केटोरल फंड पर कई महीनों से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई नहीं हुई है। बहरहाल, जाति, समीकरण, गठबंधन और महागठबंधन के बाद फैक्टर का चलन आया है। किसमें ज़ेड फैक्टर है और किसमें एक्स फैक्टर है। स्विंग का भी फैक्टर है। सब कुछ खोजेंगे ताकि जीतने वाले की भविष्यवाणी कर सकें। कोशिश होगी कि जल्दी से महीना गुज़र जाए। वास्तविक अनैतिक शक्तियों तक न पहुंचा जाए वर्ना विज्ञापन बंद हो जाएगा और जोखिम बढ़ जाएगा। आम जनता जिसने पांच साल में घटिया अख़बारों और चैनलों के अलावा न कुछ देखा और पढ़ा है उस पर दबाव होगा कि उसके बनाए ढांचे से निकल कर ज़मीनी अनुभव को सुना दे। अब तो वह जनता भी उसी फ्रेम में कैद है। वह ज़मीनी अनुभवों में तड़प रही है मगर आसमानी अनुभवों में ख़ुश है। सूचनाएं जब गईं नहीं तो जनता के मुखमंडल से लौट कर कैसे आएंगी। जनता समझदार है। यह बात जनता के लिए नहीं कही जाती बल्कि राजनीतिक दलों की अनैतिकताओं को सही ठहराने के लिए कही जाती है। जनता की मांग खारिज होगी। नेता जो मांग देंगे वही जनता को अपनी मांग बनानी होगी। नेता जनता को खोजते हैं और जनता नेता को खोजते हैं। चैनल वाले दोनों को मिला देंगे। ज़्यादा मिलन न हो जाए उससे पहले महासंग्राम जैसे कार्यक्रम में खेला-भंडोल हो जाएगा। खोजा-खोजी बिहार के चुनाव का अभिन्न अंग है। आँखों के सामने रखी हुई चीज़ भी खोजी जाती है। कोई नेता गठबंधन के पीछे लुकाया होगा तो कोई नेता उचित गठबंधन पाकर दहाड़ने लगा होगा। बिहार 15 साल आगे जाता है या फिर 15 साल पीछे जाता है। अभी 15 साल पीछे है मगर खुश है कि उसके 15 साल में जितना पीछे था उससे आगे है। उसके बगल से दौड़ कर कितने धावक निकल गए उसकी परवाह नहीं। इसकी होड़ है कि जिससे वह आगे निकला था उसी को देखते हुए बाकियों से पीछे रहे। बिहार की राजधानी पटना भारत का सबसे गंदा शहर है। जिस राज्य की राजधानी भारत का सबसे गंदा शहर हो वह राज्य 15 साल आगे गया है या 15 साल पीछे गया है, बहस का भी विषय नहीं है। सबको पता है किसे कहां वोट देना है। जब पता ही है तो पता क्या करना कि कहां वोट पड़ेगा। नीतीश कहते हैं वो सबके हैं। चिराग़ कहते हैं कि मेरे नहीं हैं। चिराग कहते हैं कि मेरे तो मोदी हैं, दूजा न कोए। मोदी की बीजेपी कहती है मेरे तो नीतीश हैं,दूजा न कोए। गठबंधन से एक बंधन खोल कर विरोधी तैयार किया जाता है ताकि मैच का मैदान कहीं और शिफ्ट हो जाए। मुकाबला महागठबंधन बनाम राजग का न ले। चिराग और नीतीश का लगे। चिराग कहते हैं नीतीश भ्रष्ट हैं। बीजेपी कहती है नीतीश ही विकल्प हैं। नीतीश से नाराज़ मतदाता नोटा में न जाएँ, महागठबंधन में न जाए इसलिए चिराग़ को नोटा बैंक बना कर उतारा गया है। चिराग का काम है महागठबंधन की तरफ आती गेंद को दौड़कर लोक लेना है। राजग को आउट होने से बचाना है। बाद में तीनों कहेंगे कि हम तीनों में एक कॉमन हैं। भले नीतीश मेरे नहीं हैं मगर मोदी तो सबके हैं। मोदी नाम केवलम। हम उनकी खातिर नीतीश को समर्थन देंगे। ज़रूरत नहीं पड़ी तो मस्त रहेंगे। दिल्ली में मंत्री बन जाएंगे। ज़रूरत पड़ गई तो हरियाणा की तरह दुष्यंत चौटाला बन जाएंगे। बस इतनी सी बात है। एक पैराग्राफ की बात है। बिहार की कहानी दूसरे पैराग्राफ तक पहुंच ही नहीं पाती है।

– रविश कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)

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जीतनराम मांझी की हम पार्टी बिहार के इन सात सीटों पर लड़ेगी चुनाव, उम्मीदवारों की घोषणा

बिहार चुनाव के लिए एनडीए ने अभी सीटों का पूरी तरह से बटवारा नहीं किया है मगर खबर मिल रही है कि अब इसपर आम सहमति बन गई है और आज शाम तक इसकी घोषणा भी हो जाएगी।

सीटों के घोषणा के पहले ही पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों को टिकट देने शुरू कर दिया है। जदयू ने पहले चरण के सीटों के टिकट बांटना शुरू कर दिया है। इसके साथ जीतन राम मांझी ने भी सात सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।

जिन प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की गई है उनमें पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, बाराचट्टी से ज्योति देवी, कुटुम्बा से श्रवण भुईंयां, कस्बा से राजेंद्र यादव, सिकन्दरा से प्रफुल्ल मांझी, टेकारी से अनिल कुमार और मखदुमपुर से देवेंद्र मांझी उम्मीदवार होंगे।

बताया जा रहा है कि चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन से एनडीए में सामिल हुए जीतनराम मांझी को यही सात सीट गठबंधन कोटे से मिला है।

गौरतलब है कि मांझी महादलितों में मुसहर समुदाय से आते हैं| गया के आसपास के इलाक़ों में उनका प्रभाव माना जाता है| राजनीति में आने के बाद से वे फ़तेहपुर, बाराचट्टी, बोधगया, मखदूमपुर और इमामगंज से भी चुनाव लड़े और जीत हासिल की. हालांकि, गया सीट से सांसद के रूप में निर्वाचित होने का उनका सपना अब तक पूरा नहीं हो सका है।

2015 के विधानसभा चुनावों में जीतनराम मांझी की पार्टी ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन, पार्टी एक सीट ही जीत पाई थी।

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बिहार कैडर के लोकप्रिय आईपीएस शिवदीप लांडे को महाराष्ट्र सरकार ने बनाया ATS का DIG

बिहार कैडर के IPS शिवदीप लांडे को प्रमोशन देते हुए महाराष्ट्र सरकार ने एंटी टेरेरिस्ट स्क्वॉड (Anti Terrorist Squad ) का डीआईजी बनाया है| आईपीएस लांडे का बिहार कैडर से संबंध के साथ उनका बिहार के साथ एक अटूट रिश्ता है| बिहार से महाराष्ट्र गये उनके 4-5 साल हो गये मगर राज्य के लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता अभी भी बनी हुई है| यही कारण है कि लांडे के प्रमोशन की खबर सुनकर बिहार में लोग खुशी जाहिर कर रहे हैं|

आपको बता दें कि शिवदीप लांडे की पहली पोस्टिंग मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित इलाके जमालपुर में हुई थी। बिहार में पोस्टिंग के बाद से ही वे अपने काम को लेकर हमेशा चर्चा में बने रहें| कभी वे नक्सालियों के खिलाफ अभियान को लेकर चर्चा में रहे तो कभी कोयला माफियों पर करवाई को लेकर अख़बारों की शुर्खिया बने|

बिहार की राजधानी पटना के एसपी के तौर पर अपनी अनोखी कार्यशैली की वजह से शिवदीप पूरे देश में मशहूर हो गए। अपराधियों पर लगाम लगाने के साथ उन्होंने लड़कियों को छेड़ने वाले मनचलों की खूब खबर ली| यही कारण है कि बिहार के लड़कियों के बीच शिवदीप लांडे की छवि एक फिल्मी हीरो से कम नहीं है|

अपने गृह राज्य महाराष्ट्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने से पहले लांडे बिहार एसटीएफ के एएसपी के रूप में शानदार काम किया| उनके कार्यकाल के दौरान एसटीएफ ने कई कामयाब मिसन को अंजाम दिया| उन्होंने बिहार एसटीएफ को गुमनामी से निकाल कर बिहार पुलिस का एक मजबूत अंग बना दिया| हालांकि उनके जाने के साथ ही एसटीएफ की वह रौनक भी चली गयी|

ज्ञात हो कि महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के अकोला जिले के निवासी शिवदीप वामन राव लांडे नारकोटिक्स डिपार्टमेंट में एसपी के पद पर तैनात थे और इस दौरान उन्होंने नशे के सौदागरों के खिलाफ मुहिम चलाकर कई सफल आपरेशन को अंजाम दिया था| इस दौरान करोड़ों का मादक पदार्थ पकड़कर एक रिकॉर्ड भी बनाया| वर्तमान में वह हैदराबाद में 1 महीने की ट्रेनिंग ले रहे हैं| 9 अक्टूबर को ट्रेनिंग खत्म होने के बाद वह नए पद पर योगदान देंगे|

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Being ‘Shravan Kumar’ is not a burden and it does not lead to ‘toxicity’

It’s been nearly two months when Hindi film actor Shushant Singh Rajput had died by suicide. Since then media had got its special and never-ending topic where most hours of the day is devoted in discussing whether it was suicide or murder? The issue had opened the doors for mental health issues, nepotism in Bollywood. However, the whole issue had taken a different turn, the media had started debates between two states Bihar vs Maharashtra, Bihari boys vs Bengali girls and moreover, people have also started judging Bihari families and called it a toxic.

The title is itself a problem

The title linked with the case of Sushant Singh Rajput to the story of Shravan Kumar and suggests that he was pressurised to become a Shravan Kumar and as a result, the family has become toxic including whole Bihari families. First of all, I did not find linkage between Shravan Kumar’s story and Sushant’s case. The mythological story of Shravan Kumar tells us that shravan was obedient and grateful to his parents and tried to do every possible thing to make his parents happy. In case of Sushant, the family had no expectations like shravan kumar they just wanted their son to be in this world, and if their son had died due to unknown reasons, the family has all right to know the reasons for it.

Second, the expectations from son to become good and obedient is pan-indian thing naming a particular state is like a particular attempt to defame a state.

The son is always kid- mera laadla

In this particular paragraph the author is trying to say that a grown-up man is always kid/baby of these families. Yes, I do agree that Indian family treats their son a kid but again I found this statement irrelevant in Sushant’s case. Every son and daughter are dear to their parents but that does not mean that they are calling Sushant as ten-year-old guy. The family of Sushant had given freedom to pursue career of his choice. He left his beaming career of engineering and joined uncertain acting career if family had treated him as a kid they would have definitely stopped him to join uncertain acting career.

The author went on to say that people are coming and giving interviews in the media who had not seen Sushant’s since childhood and wondering now, how he can be depressed. Yes, it is true every person is not same his mental state cannot be same at every point of time but the author had failed to see that there are many who are with Sushant in his present time and rejected the theory of depression and many confessed that he was depressed. The depression story of Sushant is still not clear there are so many theories in media and we can’t jump on a conclusion.

Whatever, his father and family is saying about mental condition of Sushant is their believes and feelings for their son. Let, the CBI proceed the enquiry and things will definitely come out that in what circumstances he died by suicide.

Girlfriend/wife separates the family from son

The author has made this issue as a regional issue; she says “The familiar trope in Bihar is one of a guile-less son who loses his way because of an enchantress.” Does she think that this phenomenon only exists in Bihar?  I have also read the number of stories, songs and poems which tells that women take away the sons from the family.

I think media should move on from the issue of Bihari boys vs Bengali girl. For defending this issue, let’s not blame Bihari society. We need to come out from the regional issues and address these stereotypes on a national level.

Families and the issue of girlfriend

In this paragraph, the author finally said that the home-breaker angle is not only limited to Bihar but further says that north-indian families have a special dislike for girlfriend.  I want to remind to the author, this mindset exists everywhere we have plenty of examples from south, west, east, north India, where family thinks that women have corrupted men’s mind.

The author has given an example of Bihari friend where one of his friend’s mother dislikes her daughter-in-law for corrupting her friend’s mind. Does she think that this one example can prove that all the mothers-in-law from Bihar think in a similar manner? I have seen my friends from Bengal, Odisha, Uttar Pradesh, Kerala, Manipur and many other parts of the country where the mother of the son thinks girlfriends had corrupted the mind of the son.

On the other side, my Bihari friend’s mother is comfortable with the idea of the live-in relationship of her son with his girlfriend, but that does not lead to the generalisation that whole Bihari society is progressive.

Sushant’s Family and the issue of girlfriend

Rhea Chakrabarty was not the first girl in Sushant’s life, Sushant had been in relationship with Ankita Lokhane, we have seen rumours with Kriti Sanon as well. The family did not have any problem with these girls. In this unfortunate time when Sushant is no more and family wanted to know the reasons, then they should know the reason, and they should name the suspect.

Rhea Chakarbarty and media trial

 I equally felt terrible for Rhea when media kept saying her kaali jadugarnivishaili, gold-digger. The father of Sushant had made allegations on Rhea, but he never asked media, politicians to give such names to Rhea. He all have the right to say about the suspect whatever required for the enquiry, but for this, if whole Bihari society is called toxic is problematic.

The author had highlighted a few important points like depression, the stereotype of women, nepotism which must be considered with Sushant’s case. However, in any discussion calling sushant’s family and whole Bihari family is toxic, conservative is not valid. The role of media to take the audience in the right direction and spread positivity. We should definitely talk about depression; we should talk about the stereotyping of women from a specific region but without blaming one’s family.

Let’s not stereotype a particular state; it might hurt the sentiments of Bihari families. The issues talked about the author is not particular to Bihar, let’s not witch-hunt a particular state. We definitely know the mentality of Bihari families and their views about girls. However, we should not forget that the Bihari families also taught us a lesson on brotherhood, respecting every individual, giving equal space to their son and daughter-in-law. How a family treats its bahus, son’s girlfriend differs from family to family. Do not make this issue as regional or fight between two or more states. Let’s stand with Sushant’s family who is in unconditional pain and let the CBI do its work and truth to come out. Let us believe in sensible journalism.

– Ritu, an research scholar

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Dil Bechara Review: सुशांत के अभिनय की गहराई देख पता चलता है कि कितने टैलेंटेड थे वो

हमारे हीरो सुशांत की आखिरी फ़िल्म देखने मे थोड़ी हिचकिचाहट तो हुई है सबको, उनके देहांत के बाद आखिरी बार उनको स्क्रीन पर देखना, बहुत भावनात्मक रहा ऑडियन्स के लिए। ट्विटर फेसबुक इंस्टाग्राम सब सुशांत की फ़िल्म के फोटो, और लोगों के विचारों से भरा हुआ था। कल की शाम लोगों ने इस फ़िल्म के बहाने सुशांत के जीवन को भी सेलिब्रेट किया।

यदि बात करे फ़िल्म की, तो फ़िल्म जॉन ग्रीन के उपन्यास “द फाल्ट इन आवर स्टार्स”, का हिंदी रूपांतरण है, और सुशांत के साथ साहिल वैद, संजना सांघी, स्वास्तिका मुखर्जी और शाश्वत चटर्जी इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका में है। फ़िल्म की कहानी है कैंसर पीड़ित किजी और मैनी की, जो अचानक एक दिन मिलते है, दोस्ती होती है और ये दोस्ती प्यार में बदल जाती है। लेकिन इस परफेक्ट सी लगने वाली कहानी का सबसे बड़ा दुश्मन है कैंसर। किजी का एक फेवरट सिंगर है – अभिमन्यु वीर, जिसने एक गाना अधूरा छोड़ दिया। मरने से पहले किजी उससे मिलकर इसके बारे मे पूछना चाहती है, जिसके लिए मैनी उसे पेरिस ले जाता है।

जहां इस कहानी को कई लोग पढ़ चुके है और इसपर बनी हॉलीवुड की एक फ़िल्म भी देख चुके है, इस कहानी को हिंदी सिनेमा के हिसाब से उतारना कहीं न कही मुश्किल रहा होगा। मुकेश छाबड़ा, जो निर्देशक है, बॉलीवुड के जाने माने कास्टिंग डायरेक्टर है, और इस फ़िल्म की कास्टिंग काफी ऑन पॉइंट है।

बात करे सुशांत की, तो उन्होंने ज़बरदस्त अभिनय किया है। कहीं न कही उनके चेहरे के हाव भाव, फ़िल्म के इमोशनल होते टोन को पकड़ती है। सीन दर सीन उनका अभिनय निखरता जाता है। फ़िल्म के आखिरी 20 मिनट में उनका अभिनय रुला देता है। उनका कैरेक्टर जितना सीधा दिखता है, वैसा नहीं है, फ़िल्म के बढ़ने के साथ साथ उनके कैरेक्टर की गहराई बाहर आती है, जो काफी खूबसूरत है।

शायद मैनी को एक अच्छे और खूबसूरत साथी की ज़रूरत थी इस आखिरी सफर के लिए और किजी यानि संजना सांघी ने बेहतरीन अभिनय किया और किजी के किरदार को जीवंत कर दिया। काफी मैच्योर परफॉर्मेंस दी है उन्होंने। साहिल वैद और बाकियों ने फ़िल्म की गहराई के हिसाब से बेहतरीन काम किया है

फ़िल्म का निर्देशन बहुत अच्छा किया है मुकेश छाबड़ा ने, लेकिन जो फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी है, वो फ़िल्म में एक बहुत अहम किरदार निभाती है, जमशेदपुर की गलियों से पेरिस शहर तक, फ़िल्म की खूबसूरती को चार चांद लग जाते है, और फ़िल्म के कुछ सीक्वेंस एकदम ड्रीमी है, और फ़िल्म के इमोशन को बहुत अच्छा कैप्चर करती है। ए आर रहमान के संगीत और गानों के बोल काफी खूबसूरत है और कहानी और किरदारों का अच्छा साथ निभाते है।

सच कहें तो फ़िल्म को काफी बेहतर तरीके से बनाया गया है और सुशांत से जुड़ी लोगों की भावनाएं, फ़िल्म देखने के एक्सपीरियंस को और खूबसूरत बनाती है। कहीं न कहीं, सुशांत के रोल और उनके अभिनय की गहराई को देख के पता चलता है कि कितने टैलेंटेड थे वो, और बॉलीवुड ने क्या खोया है।

उनके नाम आखिरी संदेश..

हमलोग बहुत कोशिश किए कि नोस्टाल्जिया में ना जिए, लेकिन तुम्हारी फिल्म देखने के बाद ना जाने काहे फिर से नोस्टाल्जिया में चले गए। पूरे सोशल मीडिया पर तुम ही छाए हो, बस यहीं लगता है कि काश तुम होते, काश दिल बेचारा तुम्हारी आखिरी फ़िल्म नहीं होती। फ़िल्म को देखकर बार -बार यही लगता है कि जैसे तुम अपनी ही कहानी कह रहे हो। कभी तुम पर गुस्सा भी आता है कभी तुम पर प्यार भी आता है, बस बार बार यही सोचने लगते है कि तुमको छोड़ के नहीं जाना चाहिए था।

तुम फिल्म में पूछते हो कि तुम मिस करोगे आज आ कर देखो पूरा दुनिया तुमको मिस कर रहा है। आज पूरा मीडिया तुम पर बहस कर रहा है कोई तुम्हे श्रद्धांजलि दे रहा है तो कोई तुम्हारे लिए इंसाफ मांग रहा है, लेकिन सब बातों को सुनकर देखकर यही लगता है कुछ भी हो तुम अब वापस तो नहीं आओगे।

हमलोग धोनी पर एक फिल्म देखकर संतुष्ट नहीं थे, तुम्हीं बताओ धोनी पर एक फिल्म काफी था क्या? कब से पार्ट 2 का इंतज़ार कर रहे थे लेकिन तुम तो बीच में ही छोड़ के चल दिए।

तुम बिहारी थे ना तो तुमको पता है ना कि बिहारी जिगरा कितना ढीठ होता है। तुमको पता तो है कि हर साल लाखों लोग आई.ए. एस बनने दिल्ली जाता है कई लोग बन नहीं पाता फिर भी हमलोग का जज़्बा ख़तम नहीं होता। हमलोग पग- पग पर ठोकर खाते है, इतने झंझावात सहने के बावजूद भी शान से कहते हैं एक बिहारी सब पर भारी। तुम करोड़ों बिहारियों के शान थे, आज भी हो लेकिन तुम्हारा ऐसे असमय जाना हम बिहारियों को सबसे ज्यादा आहत किया है।

– ऋतु और आदर्श

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#PadsForAll: महामारी और बाढ़ के बीच माहवारी के समस्याओं से जूझती महिलाएं

आज पूरा देश कोरोना वायरस से जूझ रहा है और भारत के बिहार एवम् असम जैसे राज्य महामारी के साथ- साथ बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं से भी जूझ रहे हैं। ऐसे में हर कोई कोरोना मरीजों एवम् बाढ़ पीड़ितों के खाने -पीने एवम् रहने की चिंता कर रहा है। विभिन्न प्रकार के न्यूज़ चैनल भी सरकार की खामियां निकाल रहे हैं और सरकार से अपील कर रहे हैं की पीड़ितो को उचित इलाज़ एवम् उचित राहत सामग्री पहुंचाया जाए।

लेकिन यह शायद ही किसी न्यूज़ चैनल और अखबार का हिस्सा हो कि माहवारी के दिनों में महिलाएं अपना कैसे गुजर बसर  कैसे कर रही हैं। असम के बाढ़ को तो फिर भी मीडिया अटेंसन मिला है इसीलिए वहां के कुछ न्यूज़ क्लिप से पता चलता है कि माहवारी के दिनों में औरतों के पास नाही पैड्स है नाही कोई दवाई। लेकिन बिहार के किसी भी रिलीफ कैंप से ऐसी कोई खबर नहीं आई है। लेकिन इस तरह की खबर मीडिया का हिस्सा बनने से ऐसी समस्याएं समाप्त तो नहीं हो जाती। रिलीफ कैंप में बहुत कम ही महिला पत्रकार जाती हैं और यदि जाती भी है तो इस प्रकार के सवाल पूछने का कष्ट नहीं उठाती है लेकिन क्या इससे महिलाओं की समस्याएं समाप्त हो जाती हैं?

सवाल यह उठता है कि अन्य समस्याओं की तरह माहवारी के दिनों में गंदगी, पैड्स और दवाइयों का ना होना भी जरूरी समस्या है लेकिन हमारा समाज महिलाओं के इन समास्याओं को महत्वपूर्ण नहीं मानता।

सरकार जब विभिन्न कोरॉना सेंटरों के लिए निर्देश जारी कर रही थी तब उसके किसी भी निर्देश में माह्वारी का कोई जिक्र नहीं था। जब सरकार जरूरी सामग्री की सूची तैयार कर रही थी तब भी उसमें सैनिटरी पैड्स शामिल नहीं था। क्या सरकार के इस नजरंदाज रवैए से महिलाओं की समस्याएं समाप्त हो जाएंगी?  जब किसी भी आपदा या महामारी पर न्यूज कवर होता है तो उसमें धर्म एवम् जाति का तड़का जरूर लगता है लेकिन हर महामारी एवम् आपदा महिलाओं को किस तरह से प्रभावित करता है यह बहुत कम ही न्यूज का हिस्सा बन पाता है।

माहवारी: एक गुप्त विषय

माहवारी यानि कि पीरियड्स जो आज भी भारत के कई क्षेत्रों में गुप्त विषय है, जिसे औरतें मर्दों के समक्ष बात करना उचित नहीं समझती है और नाहि पुरुष समाज भी इस विषय में बात करने में रूचि रखता है। हालांकि पैडमैन जैसी फिल्में यह दर्शाती है कि इस गुप्त विषय को काफी हद तक सार्वजनिक बनाने का प्रयास एक पुरुष ने ही किया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि ऐसे कितने पुरुष हमारे समाज में है जो महिलाओं के शारीरिक परेशानियों का ख्याल रखते हैं? मेरी समझ में ऐसे पुरुषों की संख्या न के बराबर ही है। वह पैडमैन जैसी फिल्मों को सीख का माध्यम नहीं बल्कि उसे एक मनोरंजन का जरिया मानते हैं।

हमारे समाज में खास कर ग्रामीण इलाकों में आज भी पीरियड्स एक गुप्त विषय है। महिलाओ को जब भी माहवारी आती हैं उन्हें उन दिनों के लिए अशुद्ध माना जाता है। बहुत से जगह उनका बिस्तर- बर्तन सब अलग कर दिया जाता है और इस तरह से हम महिलाएं भी कुछ दिनों के लिए अश्पृश्यता अनुभव कर लेती हैं।

यदि हम माहवारी कि समस्या देखे तो कुछ महत्वपूर्ण बातें सामने निकल कर आती हैं। जिनमे से बहुत सी स्कूल की छात्राएं माहवारी के दिनों में स्कूल नहीं जाती हैं। कई लड़कियां माहवारी आते ही स्कूल सदा के लिए छोड़ देती हैं, क्योंकि उनके पास नाही सैनिटरी पैड्स होते हैं नाही माहवारी के दिनों में होने वाले पेन (दर्द) की कोई दवा।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 के अनुसार भारत के 56% महिलाएं ही सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं। बची हुई 44% महिलाएं सैनिटरी पैड्स इस्तेमाल नहीं करती हैं, जाहिर सी बात है कि ये महिलाएं अन्य चीजों का इस्तेमाल करती हैं यानि कि पुराने कपड़े, राख, बालू, रूई, सूखे पत्ते और न जाने क्या क्या।

जब हम आस पड़ोस की महिलाओं से बात करते हैं तो पहले वह इस बारे में बात नहीं करना चाहती है। बहुत ही मुश्किल से वह अपनी बात बताती हैं तो यह पता चलता है कि वह अभी भी पुराने कपड़े का इस्तेमाल करती है। जब हम उन्हें सैनिटरी पैड्स की जानकरी देते हैं तो वह इसे उपयोग करने में झिझकती है। कई महिलाओं के पास इतने पैसे भी नहीं होते कि वह महीने के सौ रुपए सैनिटरी पैड्स पर खर्च करे। भारत के कई स्कूलों में अब पैड बैंक खोल दिए गए हैं लेकिन बहुत सी लड़कियां जो स्कूल नहीं जाती हैं वह अभी भी सैनिटरी पैड्स से बहुत दूर है।

माहवारी से जुड़ी समस्याएं

भारत के अधिकांश लड़कियां माहवारी के बारे में नहीं जानती है जब तक उन्हें पहला अनुभव प्राप्त नहीं होता। हमारे समाज में अभी भी यह एक गुप्त विषय है जिस वजह से इससे जुडी हुई समस्याएं हमारे समक्ष बाहर नहीं आ पाती हैं। माहवारी को अभी भी अशुद्ध माना जाता है जिनमे महिलाओं का पूजा करना, खाना बनाना और भी शुभ कार्य वर्जित होते हैं। माहवारी के दिनों में बहुत सारे मानसिक तनाव एवम् शारीरिक परेशानियों आती हैं जिनका उचित उपचार महिलाओं को मिल नहीं पाता है।

कोरोंना काल एवम् बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं में महिलाओं के इस समस्या को नजरंदाज कर दिया जाता है। केंद्र सरकार एवम् किसी भी राज्य सरकार के जरूरी सामानों कि सूची में कभी भी सैनिटरी पैड्स को शामिल नहीं किया जाता है।  बहुत सारे आइसोलेशन वार्ड या क्वारंटीन सेंटरों में महिलाओं को नाही सैनिटरी नैपकिन दिए जाते है नाही पानि कि और साफ- सफाई की उचित व्यवस्था की गई है। भारत के दो राज्य असम एवम् बिहार इन दिनों कोविड एवम् बाढ़ दोनों परेशानियों से जुझ रहा है ऐसे में महिलाओं के इस समस्या पर शायद ही किसी भी सरकार का ध्यान जाता है। असम के रिलीफ कैंप में महिलाओं के पास सैनिटरी पैड्स नहीं है नाही उनके लिए सेपरेट टॉयलेट। ऐसे में महिलाओं में किसी भी प्रकार का संक्रमण आसानी से फैल सकता है।

कोवीड-19 के कारण स्कूल बंद होने से बहुत सी  को सैनिटरी पैड्स नहीं मिल पा रहे हैं ऐसी स्थिति में वह फिर असुरक्षित माध्यमों जैसे पुराने कपड़े, रूई इत्यादि का इस्तेमाल करने को मजबुर है।

समस्याओं के उपाय

सर्वप्रथम इस गुप्त विषय को सार्वजनिक किया जाए। स्कूल के अलावा हर गली मोहल्ले में पैड बैंक का प्रयोजन किया जाए जिससे महिलाओ को आसानी से और उचित दाम पर सैनिटरी पैड्स मिल सके। माहवारी के दिनों में होने वाले पेन रिलीफ का भी इंतजाम किया जाए। और कृपया इसे अशुद्धता से ना जोड़ा जाए। इन सब कामों के लिए हम सरकारी मदद की कामना करते हैं और सरकार से निवेदन है कि इस समस्याएं से जुड़ी सामाजिक संस्थाओं की मदद ली जाए, और  उनके सुझाव को भी ध्यान में रखते हुए कोई भी नीति का निर्माण किया जाए।

मेरा सरकार से यह भी अनुरोध है कि किसी भी नीति के निर्माण से पहले एक बार इस विषय पर UNICEF के  निर्देश जरूर पढ़ ले। यदि देश एवम् राज्य किसी महामारी एवम् आपदा से जुझ रहे हो तो राहत सामग्री में सैनिटरी पैड्स एवम् पेन रिलीफ भी इंतजाम किया जा और इसे जरूरी सामानों की सूची में भी शामिल किया जाए। यदि कोई व्यक्ति एवम् कोई संस्था बाढ़ पीड़ितो के लिए सामग्री दे रहे हो तो मेरा उनसे आग्रह कि कृपया उनमें सैनिटरी पैड्स जरूर दे।

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– ऋतु (शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय)

बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल, उनकी पत्नी और उनकी मां को भी हुआ कोरोना

चुनाव जीतने के चक्कर में नेता खुद को और अपने परिवार को खतरे में डाल ही रहे हैं, इसके साथ अन्य लोगों को भी कोविड- 19 के चपेट में ला रहे रहें। ताज़ा उदाहरण बिहार बीजेपी का मुख्यालय है, जहां अभी तक 70 से भी ज्यादा पॉजिटिव केस निकल चुका है। अभी खबर आ रही है कि – प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल भी कोरोना संक्रमित हो गए हैं। संजय जायसवाल की पत्नी और मां की रिपोर्ट भी कोरोना पॉजिटिव आई है।

इससे पहले पार्टी के पांच अन्य पदाधिकारी भी कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। बिहार में कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ज्ञात हो इसके साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास से भी कोविड- 19 के कई मामले आए चुके हैं। बिहार के मुख्य सचिव के कार्यालय में पॉजिटिव केस मिलने के बाद वे आज कल अपने घर से काम कर रहे हैं।

इस सब के बावजूद बीजेपी अपने कार्यालय से वर्चुअल रैली जारी रखी हुई है। सरकार के सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान के साथ विपक्ष के तमाम नेता राज्य में विधानसभा टालने की बात कह रही है। मगर कोरोना के इतने गंभीर स्थिति होने के बाद भी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं।

इधर, नेता प्रतिपक्ष व राजद नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा है कि बिहार प्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व विधायकों समेत कई बड़े नेता संक्रमित हो चुके हैं। उन्होंने बिहार में कोराना संक्रमण फैलाने का भाजपा के ऊपर आरोप लगाया है।ते ने अपने ट्वीट में स्वास्थ्य मंत्री पर भी निशाना साधा है।

बाढ़ दर्शन: हमारा गांव नेपाल के सीमा से सटल है, बाढ़ से हमलोगों का पुराना याराना है

हमारा गांव नेपाल के सीमा से सटल है. बाढ़ से हमलोगों का पुराना याराना है. लगातार बारिश आ नेपाल के पानी छोड़ला से गाँव में पानी घुसना शुरू हो गया है. बाढ़ का पानी महंगा शराब के तरह धीरे-धीरे चढ़ता है. भोर में देखने गए तो पुल के उसपार थोड़ा-बहुत पानी चल रहा था. सांझ को घूमने गए तो पुल के इस पार भी पानी हरहरा रहा है. एकदम गन्दा पानी. खर-पतवार आ झाग से भरल. बह रहा है अपना गति में. उसको कोई मतलब नहीं कि लॉकडाउन है, कोरोना का आफतकाल है, आगे थाना का गाड़ी लागल है. केकरो से कोई मतलब नहीं. बहना है तो बहना है. एकदम अपना मौज में. आप रोक लीजिएगा..?

बाढ़ देखने के लिए लोग सब का आना-जाना बढ़ गया है. मोटरसायकिल पर बैठ-बैठ के सपरिवार आ रहा है सब बाढ़ देखने. किसी को अपना खेत का चिंता है तो किसी को अपना गाछी का. सब सड़क पर खड़ा होकर माथा पर हाथ रखले देख रहा है.

दू गो नया खून वाला लईका अपना पल्सर ऊ बाढ़ के बहाव में धो रहा है. देखादेखी एगो टेम्पू वाला भी बीच में टेम्पू खड़ा करके हाथे से धोने लगा. पुलिया से चार ठो लंगटा बच्चा नाक बंद करके सीधा धार में पलटी मार दे रहा है. ई सबको स्विमिंग का सही प्रैक्टिस करवाया जाए ता भारत को केतना पदक दिलवाएगा. उधर मछुआरा सब पानी में जाल पर जाल फेंक रहा है. सावन का महीना हो चाहे भादो का, आज मछरी लेकर ही घरे जाना है. उधर चाची घरे सिलौटी पर सरसों पिस रही होगी आ इधर तीन बार जाल से खाली कीचड़ में सनाएल गोल्डस्टार का फटल जूता आ पेप्सी का बोतल निकला है. पिसायल मसल्ला पर जे ई परोर चाहे कद्दू लेकर घरे पहुँचे ता सिलौटी पर इनको पीस दिया जाएगा. बेचारे इसी डर से बीस बार जाल फेंक दिया है..!

वाह रे जमाना. बाढ़ के साथ सेल्फी लिया जा रहा है. तुरन्त फेसबुक पर फीलिंग एंजोयिंग विद बाढ़ इन माय भिलेज के नाम से चेपा जाएगा. लोग कमेंट भी कर देगा नाइस बाढ़ डियर.

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चलिए अब घर चला जाए. भीगी-भीगी सड़कों पे केंचुआ सब ससरने लगा है. झींगुर ब्रो सब का झन-झन डीजे शुरू हो रहा है. लौटते समय खेत के आड़ी पर महेन चा भेंटा गए. कमर में गमछा बन्हले, कंधा पर कुदाल रखले किसी को डीलिंग दे रहे है. “सब साला ई नेपाल का खचरपनी है. कल रात तक एक बूंद पानी नहीं था. आज देखिए, राता-रात पानी ठेल दिया ससुरा..”

महेन चा का गुस्सा वाजिबो था. परसों ही देखे थे केतना मेहनत से दिन भर खेत में बीचड़ा लगाए थे. आज सब डूब गया.

हम बोले चचा ई ता गड़बड़ा गया. चचा खैनी रगड़ते बोले “का गड़बड़ाएगा बबुआ, पानी ससर गया ता ठीक है आ कहीं चार दिन ठहर गया तो सारा बीचड़ा सड़ जाएगा.” हम फिर टप्प से पूछ दिए “सड़ जाएगा तब का होगा.?” चचा हंसते बोले “होगा का बचवा, होइहें वही जो राम रची राखा..” चचा खैनी मुंह में दबाए, गमछा टाइट किए आ कंधे पर कुदाल रखकर गुनगुनाते चल दिए “भँवरवा के तोहरा संघे जाई..”

– Aman Aakash

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कल बिहार के खगड़िया जिले से गरीब कल्याण रोजगार अभियान का शुभारंभ करेंगे प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शनिवार को प्रवासी मजदूरों को अपने ही राज्य में रोजगार देने के लिए बिहार के खगड़िया जिले से गरीब कल्याण रोजगार अभियान का शुभारंभ करेंगे| इस योजना के जरिये बिहार समेत छह राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और ओडिशा के कुल 116 जिलों के प्रवासी मजूदरों को काम दिया जायेगा| प्रधानमंत्री मोदी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये जिले के बेलदौर प्रखंड के तेलिहर गांव से योजना का शुभारंभ करेंगे| मौकें पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी के अलावा पांच अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री और कुछ केंद्रीय मंत्री भी शुभारंभ में हिस्सा लेंगे।

यह अभियान 125 दिनों का है जिसमें प्रवासी मजदूरों को रोजगार मुहैया कराने और देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा खड़ा करने के लिए 25 अलग तरह के कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

इस योजना में 12 अलग-अलग मंत्रालय को सामिल किया गया है| इसमें ग्रामीण विकास, पंचायती राज, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, खनन, पेयजल एवं स्वच्छता, पर्यावरण, रेलवे, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा, सीमा सड़क, दूरसंचार और कृषि मंत्रालय शामिल हैं।

ये काम कराएं जाएंगे

इस अभियान के तहत कम्युनिटी सैनिटाइजेशन कॉम्पलेक्स, ग्राम पंचायत भवन, वित्त आयोग के फंड के अंतर्गत आने वाले काम, नैशनल हाइवे वर्क्स, जल संरक्षण और सिंचाई, कुएं की खुदाई. पौधारोपण, हॉर्टिकल्चर, आंगनवाड़ी केंद्र, पीएमआवास योजना (ग्रामीण), पीएम ग्राम संड़क योजना, रेलवे, श्यामा प्रसाद मुखर्जी RURBAN मिशन, पीएम KUSUM, भारत नेट के फाइबर ऑप्टिक बिछाने, जल जीवन मिशन आदि के काम कराए जाएंगे।

इस अभियान का बजट 50 हजार करोड़

सरकार ने ‘गरीब कल्याण रोजगार अभियान’ का बजट 50 हजार करोड़ रुपये रखा है। कामगारों को स्किल के हिसाब से 25 सरकारी स्कीम के काम दिए जाएंगे। वित्त मंत्री ने कहा कि इस अभियान को लागू करने से पहले सरकार ने स्किल मैपिंग की है। उस आधार पर इससे कम से कम 25 हजार मजदूरों को जरूर लाभ मिलेगा।

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भारत में क्यों नेपाल के कब्जे वाले मिथिला को वापस लेने की उठ रही है मांग?

मौजूदा भारत-नेपाल संबंध विवाद अब नया मोड़ लेते दिख रहा है। नेपाल द्वारा नए नक्सा में भारतीय अधिकृत क्षेत्र को दिखाने के बाद अब भारत के मिथिला क्षेत्र में लोग मांग करने लगे हैं कि नेपाल के कब्जे वाले क्षेत्र मिथिला को वापस भारत में एकीकृत किया जाए| गौरतलब है कि मिथिला क्षेत्र भारत और नेपाल दोनों देशों के बीच बंटा हुआ है। 1816 में अंग्रेजों ने मिथिला का कुछ क्षेत्र नेपाल के गोरखा राजाओं को दे दिया था। मौजूदा विवाद के बाद अब उसे वापस लेने की बात हो रही है।

इसी संदर्भ में भारतीय मिथिला क्षेत्र में आंदोलन करने वाले युवा सामाजिक कार्यकर्ता आदित्य मोहन लिखते हैं कि समय आ गया है कि जनकपुर को भारत में पुनः मिलाकर विखंडित मिथिला को एकीकृत किया जाए।

उन्होंने आगे कहा, “इससे पहले कि चीन के गोदी में बैठ चुका भारत-विरोधी भ्रष्ट कम्युनिस्ट नेपाली सरकार जानकी मंदिर को हमारे लिए ननकाना साहब जैसा बना दे की हम तीर्थ करने तक ना जा सकें, भारत को नेपाल से मिथिला का हिस्सा वापस लेे लेना चाहिए। मिथिला को एक करने का समय आ गया है।”

आदित्य कहते हैं – नेपाल आज सिर्फ चीन के हाथ का एक कठपुतली बनकर रह गया है। चीन परस्त नेपाली सरकार ना केवल भारत विरोधी है बल्कि नेपाल में रह रहे करोड़ों मैथिलों की दुश्मन भी है। भारत हमेशा से नेपाल का एक मित्रवत देश रहा है लेकिन नई नेपाली कम्युनिस्ट सरकार हरेक क़दम पर भारत को आंख दिखाने का प्रयास कर रही है। गवर्नमेंट ऑफ इंडिया को चाहिए की वो भी भारत का एक नया नक्सा जारी करे जिसमें नेपाल के कब्जे वाले मिथिला क्षेत्र को अपने नक्से में दिखाए और मिथिला के एकीकरण की तरफ़ क़दम बढ़ाए।

1816 में ईस्ट इंडिया कम्पनी और नेपाल राज के बीच हुई सुगौली संधि के 200 वर्ष 2016 में ही पूरे हो चुके हैं। ये संधि दो विदेशियों के बीच हुआ था लेकिन इसके कारण हमारे अपने ही मैथिल हमारे लिए विदेशी हो गए। संधि ब्रिटिश सरकार भी नहीं बल्कि एक फॉरेन कम्पनी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने की थी और तो और इसके क्लाउज 9 के अनुसार नेपाली राजा का सिग्नेचर जरूरी था लेकिन उसके बदले राजगुरु गजराज मिश्रा का सिग्नेचर से खानापूर्ति कर दी गई। दो विदेशियों के संधि का फ़ल मिथिला अपने घर के बंटवारे से भोगता रहा है। कानूनन इलीगल इस संधि के आज लगभग 200 वर्ष हो चुके हैं लेकिन किसी सरकार का ध्यान इसपर नहीं गया, आज भी वहाँ नेपाल में मैथिलों को दोयम दर्जे का नागरिक मानकर मधेशी कहा जाता है और कई नागरिक सुविधाओं से वंचित रक्खा गया है।

आदित्य कहते हैं कि आज चीन के गोद में बैठ चुकी नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार भारत विरोध में सर उचका रही है। जब नेपाल की भ्रष्ट कम्युनिस्ट चीन परस्त सरकार सुगौली संधि को मानने से इन्कार कर रही है फिर हम क्यों मानें सुगौली संधि और उसके हिसाब से अपने घर का बंटवारा ?”

आगे आने वाला समय भारत नेपाल संबंध और कूटनीतिक राजनीति के लिए अहम होने वाला है।

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बिहार की मछलियों का चाेइंटा गंगा नदी और समुन्द्र के रास्ते जापान होगा निर्यात

बिहार से मछली का चाेइंटा (फिश स्कैल) जापान भेजा जाएगा। इससे राज्य के मछुआरों को सालाना 50 करोड़ से अधिक मिलने की उम्मीद है। बिहार में उत्पादित होने वाली मछलियों के चाेइंटा को खरीदने में जापान की कई कंपनियां उत्साह दिखा रही है। इसके लिए बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ (कॉफ्फेड) ने जापानी कंपनी निजोना कारपोरेशन से करार किया है। रोहू, कतला, मृगल, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प का चाेइंटा भेजा .जाएगा। इन मछलियों में 2 प्रतिशत सूखा चाेइंटा निकलता है। 70 रुपए प्रति किलो की दर से जापानी कंपनी खरीदेगी।

जुलाई से कोलकाता की जगह पटना के गायघाट से सीधे नदी और समुद्र के रास्ते मछली के चोइंटा को जापान भेजा जाएगा। व्यापारियों को कोलकाता तक माल भेजने के लिए अलग से किराया देना पड़ता था। लेकिन अब बिहार से सीधे जापान के लिए माल बुक होने पर व्यापारियों को प्रति किलो 10 रुपए की बचत होगी। जलमार्ग से परिवहन पर जीएसटी नहीं लगती है इसलिए किराए के साथ-साथ पानी वाले जहाज से माल भेजने पर कोरोबारियों को प्रतिकिलो 40 रुपए की अतिरिक्त बचत होगी। बिहार के 38 जिलों के मछली कारोबार से जुड़े लोगों को इसका लाभ मिलेगा।

“कॉफ्फेड के एमडी ऋषिकेष कश्यप ने कहा कि मछुआरों से मछली का चाेइंटा लेकर जापानी कंपनी को बेचने का करार हुआ है। जापानी कंपनी प्रति किलो 70 रुपए देगी। इसमें मछुआरों को लगभग 53 रुपए प्रति किलो कीमत मिलेगी।”

यह भी पढ़ें: बिहार खादी के ब्रांड एंबेसडर बने बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता पंकज त्रिपाठी


जापानी कंपनी नीजोना से हुआ करार

बिहार की मछली के चोईया से प्रोटीन का निर्माण किया जाता है। जापान सरकार मछली के चोइयां से प्रोटिन बनाएगी जो कि स्कीन के लिए काफी काफी फायदेमंद होता है। रोहू, कतला, मृगल, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प का चोइयां भेजा जाएगा। इन मछलियों में 2 प्रतिशत सूखा चोइयां निकलता है। हृदय, फेफड़ा, स्कीन आदि की दवा इससे बनाई जाती है। जापान में लोग मछली की चोइयां से बने खाद्य पदार्थ का उपयोग बहुत चाव से करते हैं। जापान में मछली की चोइयां की कीमत लगभग 1000 रुपए किलो है।

2019-20 में रिकॉर्ड 6.42 लाख टन मछली उत्पादन

बिहार मछली की जरूरत पूरा करने में लगभग आत्मनिर्भर हो गया है। 2019-20 में राज्य में मछली का रिकॉर्ड 6.42 मछली उत्पादन हुआ है। 2018-19 की तुलना में 40 हजार टन अधिक मछली उत्पादन हुआ। मत्स्य निदेशालय ने मछली उत्पादन का राज्य भर से आंकड़ा लेकर तैयार कर लिया है। पिछले साल राज्य में मछली की खपत 6.42 लाख टन अनुमानित था, लेकिन इस साल खपत बढ़ सकती है। पिछले 5-6 साल में राज्य में मछली उत्पादन लगभग दोगुना हो गया।

हर माह चार कार्गो जहाज से चोइंटा जापान भेजा जाएगा

कॉफ्फेड हर महीने जापान भेजेगा मछली का चोइंटा। इस 15 से 18 के सफर में जहाज पहले यह पटना गायघाट जाएगा फर गंगा और फरक्का के रास्ते कोलकाता पहुंचेगा, जहां से हावड़ा होते हुए समुद्र के रास्ते जापान पहुंचेगा। पटना से कोलकाता का सफर जहाज 3 से 4 दिन में तय करेगा।


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