भारत में क्यों नेपाल के कब्जे वाले मिथिला को वापस लेने की उठ रही है मांग?

सामाजिक कार्यकर्ता आदित्य मोहन लिखते हैं कि समय आ गया है कि जनकपुर को भारत में पुनः मिलाकर विखंडित मिथिला को एकीकृत किया जाए

मौजूदा भारत-नेपाल संबंध विवाद अब नया मोड़ लेते दिख रहा है। नेपाल द्वारा नए नक्सा में भारतीय अधिकृत क्षेत्र को दिखाने के बाद अब भारत के मिथिला क्षेत्र में लोग मांग करने लगे हैं कि नेपाल के कब्जे वाले क्षेत्र मिथिला को वापस भारत में एकीकृत किया जाए| गौरतलब है कि मिथिला क्षेत्र भारत और नेपाल दोनों देशों के बीच बंटा हुआ है। 1816 में अंग्रेजों ने मिथिला का कुछ क्षेत्र नेपाल के गोरखा राजाओं को दे दिया था। मौजूदा विवाद के बाद अब उसे वापस लेने की बात हो रही है।

इसी संदर्भ में भारतीय मिथिला क्षेत्र में आंदोलन करने वाले युवा सामाजिक कार्यकर्ता आदित्य मोहन लिखते हैं कि समय आ गया है कि जनकपुर को भारत में पुनः मिलाकर विखंडित मिथिला को एकीकृत किया जाए।

उन्होंने आगे कहा, “इससे पहले कि चीन के गोदी में बैठ चुका भारत-विरोधी भ्रष्ट कम्युनिस्ट नेपाली सरकार जानकी मंदिर को हमारे लिए ननकाना साहब जैसा बना दे की हम तीर्थ करने तक ना जा सकें, भारत को नेपाल से मिथिला का हिस्सा वापस लेे लेना चाहिए। मिथिला को एक करने का समय आ गया है।”

आदित्य कहते हैं – नेपाल आज सिर्फ चीन के हाथ का एक कठपुतली बनकर रह गया है। चीन परस्त नेपाली सरकार ना केवल भारत विरोधी है बल्कि नेपाल में रह रहे करोड़ों मैथिलों की दुश्मन भी है। भारत हमेशा से नेपाल का एक मित्रवत देश रहा है लेकिन नई नेपाली कम्युनिस्ट सरकार हरेक क़दम पर भारत को आंख दिखाने का प्रयास कर रही है। गवर्नमेंट ऑफ इंडिया को चाहिए की वो भी भारत का एक नया नक्सा जारी करे जिसमें नेपाल के कब्जे वाले मिथिला क्षेत्र को अपने नक्से में दिखाए और मिथिला के एकीकरण की तरफ़ क़दम बढ़ाए।

1816 में ईस्ट इंडिया कम्पनी और नेपाल राज के बीच हुई सुगौली संधि के 200 वर्ष 2016 में ही पूरे हो चुके हैं। ये संधि दो विदेशियों के बीच हुआ था लेकिन इसके कारण हमारे अपने ही मैथिल हमारे लिए विदेशी हो गए। संधि ब्रिटिश सरकार भी नहीं बल्कि एक फॉरेन कम्पनी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने की थी और तो और इसके क्लाउज 9 के अनुसार नेपाली राजा का सिग्नेचर जरूरी था लेकिन उसके बदले राजगुरु गजराज मिश्रा का सिग्नेचर से खानापूर्ति कर दी गई। दो विदेशियों के संधि का फ़ल मिथिला अपने घर के बंटवारे से भोगता रहा है। कानूनन इलीगल इस संधि के आज लगभग 200 वर्ष हो चुके हैं लेकिन किसी सरकार का ध्यान इसपर नहीं गया, आज भी वहाँ नेपाल में मैथिलों को दोयम दर्जे का नागरिक मानकर मधेशी कहा जाता है और कई नागरिक सुविधाओं से वंचित रक्खा गया है।

आदित्य कहते हैं कि आज चीन के गोद में बैठ चुकी नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार भारत विरोध में सर उचका रही है। जब नेपाल की भ्रष्ट कम्युनिस्ट चीन परस्त सरकार सुगौली संधि को मानने से इन्कार कर रही है फिर हम क्यों मानें सुगौली संधि और उसके हिसाब से अपने घर का बंटवारा ?”

आगे आने वाला समय भारत नेपाल संबंध और कूटनीतिक राजनीति के लिए अहम होने वाला है।

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