Dil Bechara Review: सुशांत के अभिनय की गहराई देख पता चलता है कि कितने टैलेंटेड थे वो

हमलोग बहुत कोशिश किए कि नोस्टाल्जिया में ना जिए, लेकिन फिल्म देखने के बाद ना जाने काहे फिर से नोस्टाल्जिया में चले गए

हमारे हीरो सुशांत की आखिरी फ़िल्म देखने मे थोड़ी हिचकिचाहट तो हुई है सबको, उनके देहांत के बाद आखिरी बार उनको स्क्रीन पर देखना, बहुत भावनात्मक रहा ऑडियन्स के लिए। ट्विटर फेसबुक इंस्टाग्राम सब सुशांत की फ़िल्म के फोटो, और लोगों के विचारों से भरा हुआ था। कल की शाम लोगों ने इस फ़िल्म के बहाने सुशांत के जीवन को भी सेलिब्रेट किया।

यदि बात करे फ़िल्म की, तो फ़िल्म जॉन ग्रीन के उपन्यास “द फाल्ट इन आवर स्टार्स”, का हिंदी रूपांतरण है, और सुशांत के साथ साहिल वैद, संजना सांघी, स्वास्तिका मुखर्जी और शाश्वत चटर्जी इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका में है। फ़िल्म की कहानी है कैंसर पीड़ित किजी और मैनी की, जो अचानक एक दिन मिलते है, दोस्ती होती है और ये दोस्ती प्यार में बदल जाती है। लेकिन इस परफेक्ट सी लगने वाली कहानी का सबसे बड़ा दुश्मन है कैंसर। किजी का एक फेवरट सिंगर है – अभिमन्यु वीर, जिसने एक गाना अधूरा छोड़ दिया। मरने से पहले किजी उससे मिलकर इसके बारे मे पूछना चाहती है, जिसके लिए मैनी उसे पेरिस ले जाता है।

जहां इस कहानी को कई लोग पढ़ चुके है और इसपर बनी हॉलीवुड की एक फ़िल्म भी देख चुके है, इस कहानी को हिंदी सिनेमा के हिसाब से उतारना कहीं न कही मुश्किल रहा होगा। मुकेश छाबड़ा, जो निर्देशक है, बॉलीवुड के जाने माने कास्टिंग डायरेक्टर है, और इस फ़िल्म की कास्टिंग काफी ऑन पॉइंट है।

बात करे सुशांत की, तो उन्होंने ज़बरदस्त अभिनय किया है। कहीं न कही उनके चेहरे के हाव भाव, फ़िल्म के इमोशनल होते टोन को पकड़ती है। सीन दर सीन उनका अभिनय निखरता जाता है। फ़िल्म के आखिरी 20 मिनट में उनका अभिनय रुला देता है। उनका कैरेक्टर जितना सीधा दिखता है, वैसा नहीं है, फ़िल्म के बढ़ने के साथ साथ उनके कैरेक्टर की गहराई बाहर आती है, जो काफी खूबसूरत है।

शायद मैनी को एक अच्छे और खूबसूरत साथी की ज़रूरत थी इस आखिरी सफर के लिए और किजी यानि संजना सांघी ने बेहतरीन अभिनय किया और किजी के किरदार को जीवंत कर दिया। काफी मैच्योर परफॉर्मेंस दी है उन्होंने। साहिल वैद और बाकियों ने फ़िल्म की गहराई के हिसाब से बेहतरीन काम किया है

फ़िल्म का निर्देशन बहुत अच्छा किया है मुकेश छाबड़ा ने, लेकिन जो फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी है, वो फ़िल्म में एक बहुत अहम किरदार निभाती है, जमशेदपुर की गलियों से पेरिस शहर तक, फ़िल्म की खूबसूरती को चार चांद लग जाते है, और फ़िल्म के कुछ सीक्वेंस एकदम ड्रीमी है, और फ़िल्म के इमोशन को बहुत अच्छा कैप्चर करती है। ए आर रहमान के संगीत और गानों के बोल काफी खूबसूरत है और कहानी और किरदारों का अच्छा साथ निभाते है।

सच कहें तो फ़िल्म को काफी बेहतर तरीके से बनाया गया है और सुशांत से जुड़ी लोगों की भावनाएं, फ़िल्म देखने के एक्सपीरियंस को और खूबसूरत बनाती है। कहीं न कहीं, सुशांत के रोल और उनके अभिनय की गहराई को देख के पता चलता है कि कितने टैलेंटेड थे वो, और बॉलीवुड ने क्या खोया है।

उनके नाम आखिरी संदेश..

हमलोग बहुत कोशिश किए कि नोस्टाल्जिया में ना जिए, लेकिन तुम्हारी फिल्म देखने के बाद ना जाने काहे फिर से नोस्टाल्जिया में चले गए। पूरे सोशल मीडिया पर तुम ही छाए हो, बस यहीं लगता है कि काश तुम होते, काश दिल बेचारा तुम्हारी आखिरी फ़िल्म नहीं होती। फ़िल्म को देखकर बार -बार यही लगता है कि जैसे तुम अपनी ही कहानी कह रहे हो। कभी तुम पर गुस्सा भी आता है कभी तुम पर प्यार भी आता है, बस बार बार यही सोचने लगते है कि तुमको छोड़ के नहीं जाना चाहिए था।

तुम फिल्म में पूछते हो कि तुम मिस करोगे आज आ कर देखो पूरा दुनिया तुमको मिस कर रहा है। आज पूरा मीडिया तुम पर बहस कर रहा है कोई तुम्हे श्रद्धांजलि दे रहा है तो कोई तुम्हारे लिए इंसाफ मांग रहा है, लेकिन सब बातों को सुनकर देखकर यही लगता है कुछ भी हो तुम अब वापस तो नहीं आओगे।

हमलोग धोनी पर एक फिल्म देखकर संतुष्ट नहीं थे, तुम्हीं बताओ धोनी पर एक फिल्म काफी था क्या? कब से पार्ट 2 का इंतज़ार कर रहे थे लेकिन तुम तो बीच में ही छोड़ के चल दिए।

तुम बिहारी थे ना तो तुमको पता है ना कि बिहारी जिगरा कितना ढीठ होता है। तुमको पता तो है कि हर साल लाखों लोग आई.ए. एस बनने दिल्ली जाता है कई लोग बन नहीं पाता फिर भी हमलोग का जज़्बा ख़तम नहीं होता। हमलोग पग- पग पर ठोकर खाते है, इतने झंझावात सहने के बावजूद भी शान से कहते हैं एक बिहारी सब पर भारी। तुम करोड़ों बिहारियों के शान थे, आज भी हो लेकिन तुम्हारा ऐसे असमय जाना हम बिहारियों को सबसे ज्यादा आहत किया है।

– ऋतु और आदर्श

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