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सिर्फ कौन बनेगा करोड़पति में ही नहीं, असल जिंदगी में भी लोगों को करोड़पति बना रहे हैं शरद सागर

सोनी टीवी पर प्रसारित और महानायक अमिताभ बच्चन द्वारा होस्ट किया जाने वाला “कौन बनेगा करोड़पति (केबीसी)” देश का सबसे लोकप्रिय टीवी शो है। जहां प्रतिभागी के पास कुछ सवालों के सही जवाब देने के बाद करोड़पति बनने का मौका होता है।

केबीसी के वर्तमान संस्करण में बिहार के शरद सागर बतौर एक्सपर्ट के भूमिका में लगातार नजर आ रहे हैं। डेक्सटरिटी ग्लोबल के सीईओ शरद प्रतिभागियों को मुश्किल सवालों के सही जवाब बताकर करोड़पति बनने में मदद करते हैं।

केबीसी में एक्सपर्ट के रूप में सागर

मगर क्या आपको पता है कि शरद सागर टीवी शो के दुनिया से इतर असल जिंदगी में भी कई लोगों को ‘ करोड़पति’ बना चुके हैं?

जी हां, शरद सागर की संस्था डेक्सटरिटी ग्लोबल शिक्षा के क्षेत्र में काम करती है। जिसके जरिए वे छात्र- छात्राओं को शैक्षणिक अवसरों से जोड़ते हैं और उन अवसरों को हासिल करने में उनकी मदद भी करते हैं।

इससे ही जुड़ी एक खबर आज बिहार के हर अखबार छपी है। बिहार के एक किसान परिवार के 17 वर्षीय रितिक ने अमेरिका के वॉशिंगटन स्थित जार्जटाउन विश्वविद्यालय से 2.5 करोड़ रुपए की छात्रवृत्ति हासिल की है। पटना के गोला रोड निवासी रितिक पूरे परिवार से कॉलेज जाने वाले पहले व्यक्ति हैं। रितिक के इस कामयाबी के पीछे शरद सागर के डेक्सटरिटी ग्लोबल का अहम योगदान है।

अपनी सफलता पर प्रतिक्रिया देते हुए रितिक कहते हैं, “13 साल की उम्र से ही डेक्सटेरिटी ग्लोबल में मुझे मिले मार्गदर्शन और सलाह के बिना यह संभव नहीं होता। शरद सागर सर ने न केवल मुझे बड़े सपने देखने में सक्षम बनाया बल्कि मुझे उन सपनों को हकीक़त में बदलने के लिए सही संसाधनों से लैस किया। अपने गुरु के मूल्यों से प्रेरित होकर, मैं भारत वापस आना चाहता हूं और अपना जीवन सार्वजनिक सेवा और राष्ट्र-निर्माण के लिए समर्पित करना चाहता हूं।”

डेक्सटरिटी के बच्चों ने अभी तक 49 करोड़ की छात्रवृत्ति हासिल की है

एक तरफ किसान अपने फसल के उचित दाम के लिए दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे हैं तो दुसरे तरफ – शरद सागर के प्रयासों का ही परिणाम है कि एक किसान परिवार का बेटा करोड़ों के छात्रवृत्ति के साथ दुनिया के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ने जा रहा है|

ज्ञात हो कि डेक्सटरिटी लगभग 65 लाख लोगों को शैक्षणिक अवसरों से जोड़ती है| अभी तक इस संस्था से जुड़े बच्चों ने लगभग 49 करोड़ की छात्रवृत्ति हासिल की है और 100 से ज्यादा बच्चों को विश्व के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से एडमिशन का ऑफर भी मिल चुका है|

इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि इन सभी बच्चों में से 80% बच्चें गरीब परिवार या कम आय वाले परिवार से आते हैं|

‘कौन बनेगा करोड़पति’ जीतकर जैसे एक आम इंसान की जिन्दगी बदल जाती है, उसी तरह शरद सागर साधारण परिवार से आने वालें बच्चों को करोड़ों का छात्रवृति हासिल करने में मदद कर उनको और उनके परिवार की जिंदगी बदल रहे हैं| इस सबके साथ डेक्सटरिटी से निकलने वाले बच्चें अच्छी शिक्षा हासिल कर देश निर्माण महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं|

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कोरोना और बाढ़ ने न जाने कितने ख्वाब डूबा दिए मगर नहीं डूबी बिहारियों की छठ को लेकर आस्था

 “कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय
होई ना बलम जी कहरिया बहंगी घाटे पहुंचाय
कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय…”

ये छठ गीत सुनते ही आप भी गुनगुनाने लगे ना?

यही तो छठ है, यही तो है जो इस महापर्व को जीवन्त बनाता है| सालभर मेहनत करके कटने वाली जिंदगी में छठ के ये चार दिन होते हैं, जब हर बिहारी जिंदगी काट नहीं रहा होता है अपितु खुलकर जी रहा होता है।

छठ के बारे में क्या कहें, कितना कहें और कैसे कहें? छठ तो भावनाओं का सैलाब है| फिर भी हम सफेद कागज पर कलम की नोक के नीचे छठ के किस्सों को दबाने का दुस्साहस कर रहे हैं।

कितने जिद्दी होते हैं ना हम बिहारी!

हम देश के उस हिस्से से हैं, जिसके वैश्विक महामारी कोरोना के विष को पीने के साथ बाढ़ की विभीषिका में तबाह होने के ताजा किस्सों में एक ओर जहां दुनिया गोता लगा रही थी, वहीं हम लोग इस डरावने ख़्वाब से निकलकर छठ की तैयारियों में पूरे उल्लास के साथ फिर से जुट गए। इस साल कॉरोना और बाढ़ ने न जाने कितने गांव,कितने शहर,कितने मोहल्ले, कितनी ज़िंदगियाँ और न जाने कितने ख्वाब डूबा दिए, पर जो नहीं डूबा,वह हम बिहारियों की छठ को लेकर आस्था|

छठ ‘मैं’ नहीं, ‘हम’ का पर्व है| यह हमारे अंदर के अहम को मारता है और हम को जिंदा करता है| छठ एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें उगते और डूबते सूर्य दोनों को पूजा जाता है। डूबते सूर्य को हम इसलिए पूजते हैं क्योंकि हम परिस्थितियों के उतार-चढ़ाव को समझते हैं, संघर्षों को पूजते हैं|

डूबता सूर्य जीवन के संघर्ष का प्रतीक है| वहीं उगते सूर्य की लालिमा में संघर्ष के बाद की जो सफलता मिलती है, हम उसे पूजते हैं।

मालूम नहीं दुनिया में जात-पात का विष कब खत्म होगा, पर छठ एक ऐसा पर्व है जो इन बेड़ियों को तोड़ता है। छठ में उपयोग की जाने वाले सूप को बनाने वाले लोग समाज के ऐसे वर्ग के होते हैं, जिन्हें लोग हेय की दृष्टि से देखते हैं। जब कार्तिक मास के ठंडे पानी में छठ व्रती अपने हाथों में उसी सूप को ऊंचाई पर रखकर अर्ध्य दिलाती है, तो महापर्व के लिहाज से यह सूप बनाने वाली जाति कितनी ऊंची है यह भी पता चलता है| साथ ही छठ के पीछे के अनगिनत खूबसूरत संदेश भी एहसासों में बस जाते हैं।

छठ स्त्री प्रधान पर्व है, ये लिंगभेद को बिना ‘फेमिनिस्ट बैनर’ के सदियों से तोड़ते आ रहा है

लाल-पीला पार वाली साड़ी और नाक पर सिंदूर का श्रृंगार करके घाट के किनारे खड़े होने वाली माओं को देवियों के रूप में पूजी जाती है। यह पर्व जितना सूर्यदेव का है, उतना ही छठ माई का है| न जाने कितनी बेड़ियां टूटती हैं इस पर्व में!

उन्होंने सदियों पहले नदियों को बचाने के लिए हमारी संस्कृति को उपहार के रूप में छठ पर्व दिया, हमने भी पीढियों से श्रद्धा के साथ इस पर्व को महापर्व रूप में बनाए रखा और “आज दुनिया में छठ,छठ का ‘ठेकुआ’ बिहारियों की पहचान है।”

बाहरी लोग अक्सर बोलते हैं कि हम बिहारी छठ पर ओवररिएक्ट करते हैं, अब कौन समझाए उन्हें छठ तो महज़ बहाना है, दुनिया भर की खुशियों को माई के आंचल में समेट लाने का…..❤

– शशांक शुभम (छात्र, कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)

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बिहार के सारण और बेगुसराय जिले के शिक्षकों को मिला प्रतिष्ठित राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार

केन्द्र सरकार के शिक्षा विभाग के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग ने शुक्रवार की रात करीब नौ बजे अपने वेबसाइट पर राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के लिए चयनित शिक्षकों की सूची डालकर इसे सार्वजनिक किया। इस सूची में बिहार के दो जिलों के शिक्षकों को भी जगह मिली है| बिहार से जिन दो शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के लिए भारत सरकार ने चयनित किया है उनमें सारण के अखिलेश्वर पाठक एवं बेगूसराय के संत कुमार सहनी शामिल हैं। देशभर से 47 शिक्षकों का चयन राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2020 के लिए हुआ है। चयनित सभी शिक्षकों को शिक्षक दिवस पर भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के हाथों पुरस्कृत किया जाएगा।

मंत्रालय द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग ने वर्ष 2020 के लिए पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं का चयन करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र जूरी का गठन किया था. जारी आदेश के अनुसार, “राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्र जूरी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 153 शिक्षकों की सूची की समीक्षा करने के बाद सभी 36 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश चयन समितियों और 7 संगठन चयन समितियों द्वारा शॉटलिस्ट किया गया है.”

बिहार का नाम राष्ट्रीय फलक पर स्थापित करने वाले दो शिक्षकों में से एक अखिलेश्वर पाठक सारण जिले के गड़खा के मध्य विद्यालय चैनपुर भैंसवारा में हेडमास्टर हैं। वहीं दूसरे चयनित शिक्षक संत कुमार सहनी उत्क्रमित हाईसकूल खरमौली, वीरपुर, बेगूसराय में हेडमास्टर हैं। चयनित सूची में अखिलेश्वर का नाम 12वें जबकि संत सहनी का नाम 47वें क्रम पर अंकित है।

 

एक बार फिर यूपीएससी में बिहारियों का शानदार प्रदर्शन, इन लोगों ने किया राज्य का नाम रौशन

यूपीएससी 2019 का रिजल्ट घोषित हो गया है| हर बार के तरह इसबार भी कई बिहारियों ने इस परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया है| भागलपुर के श्रेष्ठ अनुपम को यूपीएससी में 19 वां रैंक आया है। वे दिल्ली आईआईटी से कैमिकल इंजीनियर हैं। उन्होंने दूसरे प्रयास में बाजी मारी है। अनुपम ने बताया कि पहली बार वे बिना किसी तैयारी हुए थे। इस बार उन्हें सफल होने का पूरा विश्वास था। उन्होंने वर्ष 2012 में दसवीं परीक्षा सेंट जोसेफ स्कूल से पास की। उस समय वे देश के सेकेंड टॉपर हुए थे। उनके पिता विनीत कुमार अमर कारोबारी हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने भी दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढा़ई की थी। सिविल सर्विस में आना चाहते थे मगर परीक्षा में सफल नहीं हो पाए। बेटे की सफलता से उन्हें बहुत खुशी हैं। अनुपम की मां भी एमएससी पास हैं। अनुपम के एक मामा इनकम टैक्स कमिश्नर हैं जो पीरपैंती के रहने वाले हैं। अनुपम का घर भागलपुर शहर के खलीफाबाग चौक के पास है।

shresth anupam of bhagalpur got 19th rank in upsc in second attempt

श्रेष्ठ अनुपम

वहीं बिहार के गोपालगंज के रहने वाले प्रदीप सिंह ने देशभर में 26 वां स्थान लाकर जिले के साथ राज्य का नाम रौशन किया है| पिछले साल भी इस परीक्षा में 93वीं रैंक हासिल की थी। लेकिन रैंक अच्छी नहीं होने के चलते इंडियन रेवेन्यू सर्विस मिला था।प्रदीप के पिता इंदौर में रहते हैं मगर मूल रूप से वे बिहार के हैं|

सीतामढ़ी जिले के नानपुर प्रखंड के बेला गांव के दीपांकर चौधरी ने यूपीएससी की फाइनल परीक्षा में 42वां स्थान पाया है। वे पिछले साल भी सेलेक्ट हुए थे। तब दीपंकर को 166वां रैंक मिला था। वो अभी आईपीएस की ट्रेनिंग ले रहे हैं। दीपांकर के पिता रंजन चौधरी झारखंड सरकार में संयुक्त सचिव पद से सेवानिवृत्त हैं। बहन अभी सीतामढ़ी में ही डॉक्टर हैं।

jehanabad daughter dr harsha priyamvada succed in upac civil services exam 2019 and got 165th rank i

हर्षा प्रियंवदा

जहानाबाद जिले की डॉक्टर हर्षा प्रियंवदा ने भी बाजी मारी है। यूपीएससी में सफलता का परचम लहराने वाली हर्षा को 165 वीं रैंक मिली है।  शहर के जाने-माने व्यवसायी लक्ष्मी फैशन प्रतिष्ठान के संचालक दिलीप कुमार की भतीजी हर्षा प्रियंवदा वर्तमान में एमबीबीएस डॉक्टर हैं।

पटना से सटे जगमाल बिगहा के मूल निवासी अभिषेक कुमार ने भी इस प्रतिष्ठित परीक्षा में सफलता पाई हैं। जिन्होंने तीसरे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा क्रैक की। अभिषेक ने 452 वां रैंक हासिल किया है। साक्षी समाचार प्रतिनिधि ने अभिषेक से उनकी सफलता की बाबत विस्तार से बात किया।

UPSC 2020 result Abhishek Kumar of Bihar clear rank - Sakshi Samachar

अभिषेक कुमार

अभिषेक का रिजल्ट जगमाल बिगहा के लोगों के लिए खुशियों भरा संदेशा लेकर आया। घर में बेटे की कामयाबी की खुशियां मनाई जा रही है। पिता किसान हैं, जोत इनती बड़ी नहीं कि ठाठ से बैठकर आराम करें। लिहाजा खुद ही खेत में दिनभर पसीना बहाना होता है। मां को तो बस इतना पता है कि बेटा बड़ा अफसर बनने वाला है। पास पड़ोस के गांव वाले भी अभिषेक के घर जुटने लगे हैं और बधाइयों का सिलसिला जारी है।

बाढ़ दर्शन: हमारा गांव नेपाल के सीमा से सटल है, बाढ़ से हमलोगों का पुराना याराना है

हमारा गांव नेपाल के सीमा से सटल है. बाढ़ से हमलोगों का पुराना याराना है. लगातार बारिश आ नेपाल के पानी छोड़ला से गाँव में पानी घुसना शुरू हो गया है. बाढ़ का पानी महंगा शराब के तरह धीरे-धीरे चढ़ता है. भोर में देखने गए तो पुल के उसपार थोड़ा-बहुत पानी चल रहा था. सांझ को घूमने गए तो पुल के इस पार भी पानी हरहरा रहा है. एकदम गन्दा पानी. खर-पतवार आ झाग से भरल. बह रहा है अपना गति में. उसको कोई मतलब नहीं कि लॉकडाउन है, कोरोना का आफतकाल है, आगे थाना का गाड़ी लागल है. केकरो से कोई मतलब नहीं. बहना है तो बहना है. एकदम अपना मौज में. आप रोक लीजिएगा..?

बाढ़ देखने के लिए लोग सब का आना-जाना बढ़ गया है. मोटरसायकिल पर बैठ-बैठ के सपरिवार आ रहा है सब बाढ़ देखने. किसी को अपना खेत का चिंता है तो किसी को अपना गाछी का. सब सड़क पर खड़ा होकर माथा पर हाथ रखले देख रहा है.

दू गो नया खून वाला लईका अपना पल्सर ऊ बाढ़ के बहाव में धो रहा है. देखादेखी एगो टेम्पू वाला भी बीच में टेम्पू खड़ा करके हाथे से धोने लगा. पुलिया से चार ठो लंगटा बच्चा नाक बंद करके सीधा धार में पलटी मार दे रहा है. ई सबको स्विमिंग का सही प्रैक्टिस करवाया जाए ता भारत को केतना पदक दिलवाएगा. उधर मछुआरा सब पानी में जाल पर जाल फेंक रहा है. सावन का महीना हो चाहे भादो का, आज मछरी लेकर ही घरे जाना है. उधर चाची घरे सिलौटी पर सरसों पिस रही होगी आ इधर तीन बार जाल से खाली कीचड़ में सनाएल गोल्डस्टार का फटल जूता आ पेप्सी का बोतल निकला है. पिसायल मसल्ला पर जे ई परोर चाहे कद्दू लेकर घरे पहुँचे ता सिलौटी पर इनको पीस दिया जाएगा. बेचारे इसी डर से बीस बार जाल फेंक दिया है..!

वाह रे जमाना. बाढ़ के साथ सेल्फी लिया जा रहा है. तुरन्त फेसबुक पर फीलिंग एंजोयिंग विद बाढ़ इन माय भिलेज के नाम से चेपा जाएगा. लोग कमेंट भी कर देगा नाइस बाढ़ डियर.

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चलिए अब घर चला जाए. भीगी-भीगी सड़कों पे केंचुआ सब ससरने लगा है. झींगुर ब्रो सब का झन-झन डीजे शुरू हो रहा है. लौटते समय खेत के आड़ी पर महेन चा भेंटा गए. कमर में गमछा बन्हले, कंधा पर कुदाल रखले किसी को डीलिंग दे रहे है. “सब साला ई नेपाल का खचरपनी है. कल रात तक एक बूंद पानी नहीं था. आज देखिए, राता-रात पानी ठेल दिया ससुरा..”

महेन चा का गुस्सा वाजिबो था. परसों ही देखे थे केतना मेहनत से दिन भर खेत में बीचड़ा लगाए थे. आज सब डूब गया.

हम बोले चचा ई ता गड़बड़ा गया. चचा खैनी रगड़ते बोले “का गड़बड़ाएगा बबुआ, पानी ससर गया ता ठीक है आ कहीं चार दिन ठहर गया तो सारा बीचड़ा सड़ जाएगा.” हम फिर टप्प से पूछ दिए “सड़ जाएगा तब का होगा.?” चचा हंसते बोले “होगा का बचवा, होइहें वही जो राम रची राखा..” चचा खैनी मुंह में दबाए, गमछा टाइट किए आ कंधे पर कुदाल रखकर गुनगुनाते चल दिए “भँवरवा के तोहरा संघे जाई..”

– Aman Aakash

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बिहार के कई जिलों में बाढ़ का हाई अलर्ट, मौसम विभाग द्वारा 110 गांवों को किया गया अलर्ट

मानसून के दस्तक देने के साथ ही बिहार  के कई जिलों में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। नेपाल और आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में भारी बारिश के कारण उत्तर बिहार के बाढ़ प्रभावित जिलों की चिंता बढ़ गई है। गुरुवार को  बागमती, गंडक, बूढ़ी गंडक, गंगा समेत अधवारा समूह की नदियां खतरे के निशान से नीचे रहीं, पर शुक्रवार से एक बार फिर जलस्तर में वृद्धि के साथ खतरा बढ़ने की आशंका है। इसको लेकर मौसम विभाग ने भी अलर्ट जारी कर रखा है।

शुक्रवार को भी राजधानी पटना सहित कई अन्य जिलों में हल्की-हल्की बारिश हुई। मौसम विभाग ने भी बारिश और बाढ़ के मद्देनजर उत्तर बिहार के 16 जिलों को अलर्ट पर रखा है। वहीं, कटिहार, बेगूसराय, मुंगेर और भागलपुर में नदियों के पानी का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। कई नदियां तो खतरे के निशान के करीब आ गई हैं।

नेपाल में भारी बारिश और हिमालय के तराई क्षेत्रों में वर्फबारी शुरू हो गई है। नेपाली मौसम विभाग के अनुसार पिछले 24 घंटे में भैरवां में 63 व पोखरा में 60 एमएम बारिश हुई है। इससे नेपाल बराज में पानी लबालब हो गया है। नेपाल में 9 जुलाई तक लगातार बारिश की संभावना बताई गई है। ऐसे में सुरक्षा को लेकर जिला आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीणों और अधिकारियों को अलर्ट कर दिया है। सभी तटबंधों पर चौकसी बढ़ा दी गई है।

गंडक और बागमती के जलस्तर में वृद्धि जारी

मंगलवार को बागमती और गंडक नदी के जलस्तर में वृद्धि जारी रही। बागमती नदी कटौझा और हायाघाट में खतरे के निशान से ऊपर बहती रही। वहीं, बूढ़ी गंडक समेत अन्य नदियों का जलस्तर स्थिर रहा। इसी बीच सुबह 10  बजे वाल्मिकीनगर बराज से 83,500 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। इसकी जानकारी मुख्य अभियंता शांति रंजन शर्मा ने दी हैं। पश्चिम चंपारण में सिकरहना व पंडई के जलस्तर में बढ़ोतरी हो रही है। भारी बारिश से पूर्वी चंपारण में बाढ़ का खतरा बढ़ने लगा है।

हालांकि बेनीबाद में बागमती का जलस्तर 48.26 मीटर पर रहा जो लाल निशान की ओर बढ़ रहा है।  यहां लाल निशान 48.68 मीटर पर है। वहीं सिकंदरपुर में बूढ़ी गंडक का जलस्तर 46.16 मीटर रिकार्ड किया है। तटबंधों पर जलदबाव और रेन कट के खतरे को देखते हुए हुए मुजफ्फरपुर के डीएम डॉ चंद्रशेखर सिंह ने कटरा में बागमती तटबंध का जायजा लिया।

63 एमएम हुई बारिश 

नेपाल में भारी बारिश और हिमालय के तराई क्षेत्रों में वर्फबारी शुरू हो गई है। नेपाली मौसम विभाग के अनुसार पिछले 24 घंटे में भैरवां में 63 व पोखरा में 60 एमएम बारिश हुई है। इससे नेपाल बराज में पानी लबालब हो गया है। नेपाल में 9 जुलाई तक लगातार बारिश की संभावना बताई गई है। अगले पांच दिनों तक तेज बारिश के संकेत हैं। वहीं नेपाल के पोखरा और भैरवां में भी अब तेज बारिश हो रही है।

गंगा के जलस्तर में 22 सेमी की उछाल  

मुंगेर में भी 24 घंटे में गंगा के जलस्तर में वृद्धि देखी गई है। पिछले 24 घंटे में गंगा के जलस्तर में 22 सेमी की बढ़ोत्तरी हुई है। जानकारी के अनुसार, प्रति घटे डेढ़ सेंटीमीटर की रफ्तार से  गंगा में जलस्तर बढ़ रहा है। जिले में 34.14 मीटर त गंगा का जलस्तर पहुंच चुका है। फिलहाल, खतरे के निशान 39.33 से 5 सेंटीमीटर नीचे बह रही है गंगा नदी। वहीं, गंगा में लगातार जलस्तर की वृद्धि के मद्देनजर जिलाधिकारी राजेश मीणा ने अधिकारियो को कई निर्देश दिए हैं। डीएम ने गंगा किनारे बसे गांव में हो रहे कटाव को लेकर होमगार्ड व चौकीदार को प्रतिनिययुक्ति कर निगरानी करने का निर्देश दिया है।

कोसी बराज से 1.25 लाख क्यूसेक वाटर डिस्चार्ज 

कोसी बराज से गुरुवार दोपहर 12 बजे 1.25 लाख क्यूसेक पानी नदी में छोड़ा गया। वीरपुर (सुपौल) बराज पर जलस्तर बढ़ने की स्थिति में हैं। बराज व बराह (नेपाल) दोनों जगह जलस्तर बढ़ रहा है। बाढ़ प्रमंडल के अभियंता लगातार नदियों पर नजर रखे हुए हैं।  सीतामढ़ी में बागमती नदी का जलस्तर कई स्थानों पर बढ़ रहा है। वृद्धि के बावजूद बागमती खतरे के निशान से नीचे है। बागमती नदी का जलस्तर ढ़ेंग व सोनाखान में बढ़ रहा है। चंदौली व कटौझा में जलस्तर में कमी आ रही है। अधवारा समूह की नदियों का जलस्तर सोनबरसा, पुपरी, सुंदरपुर में स्थिर है।

110 गांवों को किया गया अलर्ट

मौसम विभाग द्वारा जिले में भारी बारिश की चेतावनी के बाद संभावित बाढ़ की आशंका को लेकर प्रशासन द्वारा कुचायकेाट, गोपालगंज, मांझा, बरौली, सिधवलिया और बैकुंठपुर के तटवर्ती 110 गांवों को अलर्ट कर दिया गया है। नदी के नीचले हिस्से में बसे ग्रामीणों को ऊंचे स्थाना पर जाने को कहा गया है।

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बिहार में 94 हजार प्रारंभिक शिक्षकों की बहाली प्रक्रिया फिर से शुरू, देखिये भर्ती शेड्यूल

बिहार के शिक्षा विभाग ने 94 हज़ार प्रारंभिक शिक्षकों (Primary Teacher) के नियोजन की प्रक्रिया फिर से शुरू कर दिया है| नियोजन से संबंधित टाइम टेबल भी जारी कर दिया है| अभ्यर्थी 15 जून से 14 जुलाई तक तक आवेदन कर सकते हैं| वही 31 अगस्त तक सभी प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी|

पटना हाईकोर्ट के 21 जनवरी 2020 के आदेश के बाद शिक्षा विभाग ने राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) से 18 माह का सेवाकालीन डिप्लोमा इन एलिमेन्ट्री एजुकेशन (डीईएलएड) कोर्स कर चुके टीईटी पास अभ्यर्थियों को आवेदन करने का एक मौका दिया है|

ज्ञात हो कि राज्य में शिक्षक नियोजन प्रक्रिया पर उस वक्त ब्रेक लगा दी गयी थी, जब एनआईओएस से डीएलएड कर चुके अभ्यर्थियों की डिग्री को एनसीटीई ने अमान्य बताते हुए नियोजन से अलग रखने का निर्देश दिया था|

क्या है टाइम टेबल ?

  • 15 जून से ही आरंभ हो जाएंगी
  • इस तिथि से 14 जुलाई तक मात्र  डीईएलएड वाले टीईटी/सीटीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों से आवेदन लिये जायेंगे
  • 18 जुलाई तक मेधा सूची तैयार होगी
  • 21 जुलाई तक नियोजन समिति द्वारा मेधा सूची का अनुमोदन होगा
  • 23 को मेधा सूची का प्रकाशन होगा
  • 24 जुलाई से 7 अगस्त तक मेधा सूची पर आपत्ति की जा सकेगी
  • 12 अगस्त तक मेधा सूची का अंतिम प्रकाशन हो जाएगा
  • 13 से 22 अगस्त के बीच जिला द्वारा पंचायत एवं प्रखंड की मेधा सूची का अनुमोदन होगा
  • जबकि 25 अगस्त को  नियोजन इकाइयों द्वारा मेधा सूची का सार्वजनीकरण किया जाएगा
  • 28 अगस्त को आवेदन के साथ संलग्न सेल्फ अटेस्टेड प्रमाण पत्रों का मूल प्रमाण पत्र से मिलान एवं चयन सूची का निर्माण
  • जबकि 31 अगस्त को चयनित अभ्यर्थियों के प्रमाण पत्रों की जांच कर नियोजन पत्र दिया जाएगा

 

 

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बिहार बोर्ड से 10वीं पास 90 हजार छात्राओं को IIT JEE की फ्री कोचिंग कराएगा CBSE

बेटियों के इंजीनियर बनने के सपनों को अब केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) देगा नई ‘उड़ान’. बिहार बोर्ड से मैट्रिक पास छात्राओं को सीबीएसई द्वारा आईआईटी की तैयारी मुफ्त में करवायी जायेगी। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के द्वारा उड़ान प्रोजेक्ट में अब बिहार बोर्ड की छात्राऐं भी हिस्सा ले पाएंगी।

सीबीएसई द्वारा छात्राओं को इंजीनियरिंग की तैयारी कराने के लिए उड़ान प्रोजेक्ट हर साल शुरू किया जाता है। दो साल के इस कोर्स में 11वीं और 12वीं के साथ इंजीनियरिंग की तैयारी करवायी जाती है। सीबीएसई द्वारा उड़ान प्रोजेक्ट के लिए आवेदन लिये जाते हैं। चयन के लिए ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा होती है। देश भर से एक हजार छात्राओं का चयन किया जाता है। चयन के बाद बोर्ड द्वारा छात्राओं को नि:शुल्क जेईई मेन, जेईई एडवांस की तैयारी करवायी जाएगी। दो साल के इस कोर्स में छात्राओं को विजुअल क्लासेस, वीडियो आदि उपलब्ध करवाया जायेगा।

इस साल बिहार बोर्ड के 90 हज़ार छात्रायें कर सकती है आवेदन

इस साल मैट्रिक का रिजल्ट काफी अच्छा रहा है और एक लाख 65 हजार 299 छात्राओं को प्रथम श्रेणी प्राप्त हुआ है। इनमें 90 हजार से अधिक छात्राओं ने 70 फीसदी या उससे अधिक अंक प्राप्त किये हैं। इन छात्राओं को उड़ान प्रोजेक्ट में शामिल होने का मौका मिलेगा। उड़ान प्रोजेक्ट के तहत जिन छात्राओं ने 70 फीसदी यह उससे अधिक अंक प्राप्त किए हो और विज्ञान और गणित जैसे विषयों में 80 फीसदी अंक, इसके आलवा फिजिक्स, केमिस्ट्री में 75 अंक प्राप्त किए हो, वह छात्राएं उड़ान प्रोजेक्ट में आवेदन कर सकती हैं।

सीबीएसई के सिटी कोऑर्डिनेटर, राजीव रंजन ने कहा “उड़ान प्रोजेक्ट काफी अच्छा है। इसमें चयनित होने वाली बेटियों को सीबीएसई मुफ्त में जेईई मेन और जेईई एडवांस की तैयारी करवाता है। यह बेटियों के लिए सुनहरा अवसर है। बिहार बोर्ड की छात्राएं भी अब इसमें आवेदन कर पाएंगी।”


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हाइलाइट्स

* इस साल उत्तीर्ण वैसी छात्राएं कर सकती हैं आवेदन, जिन्हें 70 फीसदी अंक मिले हैं
* 10वीं बोर्ड के रिजल्ट के बाद, आवेदन की प्रक्रिया होगी शुरू
* 90 हजार छात्राओं को IIT JEE की फ्री कोचिंग

आवेदन प्रक्रिया

सीबीएसई की मानें तो हर साल यह प्रक्रिया मई से जून तक के महीने में होती हैं। लेकिन इस साल कोरोना वायरस के कारण अगस्त में आवेदन प्रक्रिया शुरू होगी।

जेईई एडवांस की परीक्षा में आरक्षण

सीबीएसई की मानें तो ओबीसी छात्राओं को 27 फीसदी आरक्षण, एससी कोटि को 15 फीसदी, एसटी कोटि को 7.5 फीसदी और दिव्यांग छात्राओं को तीन फीसदी आरक्षण मिलेगा।


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 हम भारत के मजदूर: जब देश के नागरिक अपने ही देश में प्रवासी बन जाए..

जहा अनलॉक के पहले चरण की सूचना मिलते ही देश की आर्थिक गतिवधियां धीरे-धीरे पटरी पर आ रही हैं, वहीं देश के मजदूर वर्ग की समस्याएं थमने का नाम नहीं ले रही है। काफी जद्दोजहद के बाद मजदूरों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन का इंतजाम भारत सरकार के द्वारा किया गया है, लेकिन चंद स्पेशल ट्रेन करोड़ों मजदूरों को घर लाने में अक्षम है क्या? नतीजन हजारों की संख्या में मजदूर साईकिल, गाड़ी, ट्रक, ऑटो और अधिकांश लोग पैदल ही अपने घरों को चल रहे हैं। घर पहुंचने पर भी वह अपने परिजनों के साथ नहीं रह सकते हैं । संक्रमण से बचाव के कारण उन्हें क्वारंटीन सेंटर में रखा जा रहा  है ।

ताज्जुब की बात यह है कि कल तक जिस गांव में वह अपने नाम से जाने जाते थे या अपने पिता के बेटे कहलाते थे आज उसी गांव में उन्हें प्रवासी मजदूर बना दिया गया  है ।

वैसे तो कोरना वायरस की मार सभी वर्ग के लोगों पर पड़ी है लेकिन इससे सबसे ज्यादा प्रभावित मजदूर-किसान वर्ग हुआ है| वह किसी भी तरह घर तो पहुंच गए हैं लेकिन क्या उनकी समस्याएं यहीं पर समाप्त हो गईं हैं? विभिन्न क्वारंटीन सेंटरों पर रह रहे मजदूरों से बात करने पर पता चलता है कि अपने गांव आकर भी वे खुश नहीं है। वह अपना पेट पालने ही शहर गए थे क्योंकि गावं में उनके लिए पेट पालने का कोई जुगाड नहीं था जोकि अब इस महामारी में कहां से हो आएगा इस प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं है ।

विभिन्न प्रकार के अख़बारों और टीवी चैनलों से पता चलता है कि देश के मजदूर इस देश की सरकार से खफा हैं कल तक जिस नेता को वो विकास का प्रतीक मानते थे, आज उसी नेता को अपने दुर्दशा का कारण बताते हैं। देश के मजदूर संभ्रांत वर्ग से भी नाराज़ है, वो मानते हैं कि इस बीमारी को भारत में उन्होंने ही लाया है लेकिन वो तो अपने घरों में कुकिंग और व्यायाम कर रहे हैं और वह आज दर- बदर हो गए ।

कल तक जो मजदूर अपनी मेहनत से इज्जत की रोटी खा रहे थे वह आज दाने- दाने के मोहताज हो गए हैं ।  अपने पूरे परिवार के साथ लाइन में खड़े होकर भोजन माँगना उनके सम्मान पर गहरा आघात है।

जिन्होंने शहरों में बहुमंज़िला इमारतें बनाई, आज वही बेघर हो गए हैं।  जो मजदूर कारखानों में बिस्कुट- केक बनाया करते थे आज उन्हीं के बच्चो को बिस्कुट तक नहीं मिल रहा है और इसे स्पेशल ट्रेन से लौटने वाले मजदूरों के बीच खाने के सामनों के लिए आपाधापी में देखा जा सकता है। जिन मजदूरों ने सबके पैरो को चप्पल प्रदान करवाया आज वही नंगे पैर अपने घरों को लौट रहे हैं ।


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सवाल यह उठता है कि क्या केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चल रहीं योजनाएं मजदूरों के लिए काफी है? केंद्र सरकार जब लॉकडाउन का निर्णय ले रही थी तब उसने बिल्कुल भी मजदूरों के बारे में नहीं सोचा! शायद सरकार को अंदाजा भी नहीं था कि ये समस्याएं इस तरह से उभर कर आयेंगी। जब देश के कामगार सड़क पर उतरे तब केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने एक दूसरे के ऊपर दोषारोपण शुरू कर दिया और कामगारों पर सियासत होने लगी।

देश के सम्पूर्ण मजदूरों की संख्या में से 70% बहुजन समुदाय से मजदूर है और इसी बीच बहुजन नेता मायावती ने भी मजदूरों के हालात पर चिंता जताई है तोइधर बिहार में भी तेजस्वी यादव ने  चिंता जताई है। चिंता जताने और दोषारोपण का यह क्रम बदस्तूर  जारी है।

इतने लोगो की फ़िक्र के बावजूद भी मजदूर पैदल चलने को क्यों विवश हैं यह सवाल अपने आप में एक जवाब समेटे हुए है ।

यदि हम सरकारी आंकड़ों की बात करे तो 2001 में प्रवासी मजदूरों की संख्या 30 करोड़ थी और यही संख्या 2011 में बढ़कर 45 करोड़ हो गई । आंकड़े बताते हैं कि देश में मजदूरों कि संख्या तेज़ी से बढ़ रही है और एक बहुत बड़ा तबका असंगठित क्षेत्र में जा रहा है । इसके बावजूद भी सरकार ने कोई पुख्ता योजना नहीं बनाई जो ऐसे तबको को वास्तव में लाभ पहुंचा सके ।

मजदूरों की समस्याओं को दूर करने में ट्रेड यूनियन भी अक्षम रहा । देश के मजदूर बस एक प्रवासी मजदूर ही बन कर रह गए हैं । मजदूरों में राजनीतिक इकाई का अभाव है, उनमें जागरूकता का अभाव है। वह अपने आर्थिक व राजनीतिक बल को समझ नहीं पा रहे हैं। हालांकि बांद्रा, सूरत जैसी जगहों पर मजदूरों का आक्रोश देखने को मिला है लेकिन इस आक्रोश को राजनीतिक दिशा देने वाले नेतृत्व की कमी है।

देश के इतने बड़े मतदाता बस एक प्रवासी मजदूर तक सीमित कर दिए जाए तो ये कहाँ का न्याय है। केंद्र ओर राज्य सरकारों से निवेदन है कि देश के कामगारों कि पहचान सिर्फ प्रवासी मजदूर के तौर पर न हो बल्कि इन्हें एक राजनीतिक और आर्थिक इकाई समझा जाए । अगर देश की इतनी बड़ी आबादी सरकार से नाराज़ रहेगी तो यह किसी भी सरकार के लिए अच्छे लक्षण नहीं है ।


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बिहार के संदर्भ में

यदि हम बिहार प्रदेश की बात करे तो पूरे देश में सबसे ज्यादा मजदूरों की संख्या उत्तर प्रदेश एवं बिहार प्रदेश से हैं। हिन्दुस्तान टाईम्स के एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में अब तक 25 लाख मजदूरों की वापसी हो चुकी है और 29 लाख मजदूर 1000 रूपए की सहायता के लिए सरकारी एप पर अपना नाम दर्ज कर लिया है। नीतीश कुमार से लेकर तेजस्वी यादव तक सभी मजदूरों की चिंता के लिए बयान दर बयान दे रहे हैं परंतु मजदूरों की दुर्दशा जस की तस बनी हुई  है।

25 मार्च से शुरू प्रथम लॉकडाउन से मजदूरों का पलायन चालू है तब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चिंता जताते हुए कहा था कि हमारे प्रदेश के लोगो को कम से कम भोजन तो मुहैया कराया जाए.

नीतीश कुमार ने मजदूरों के खाते में एक हज़ार रूपए भी डालने की बात की, लेकिन बहुत से मजदूरों के पास तो अपना एकाउंट ही नहीं है और जिनके पास है भी उन्हें दी जाने वाले एक हजार राशि मानो उनके दुख पर मज़ाक जैसा है ।

नीतीश कुमार 15 वर्षों से बिहार के मुख्यमंत्री है लेकिन उनके इतने वर्ष सत्ता में रहने के बावजूद भी बिहार राज्य की चर्चा पिछड़े राज्यों में होती है और उचित नौकरी ना मिलने के कारण राज्य के लाखों मजदूर अन्य राज्यों में प्रवास लगातार कर रहे हैं। मजदूरों की दयनीय हालात के पीछे क्या नीतीश कुमार का हाथ नहीं है? क्या वे जिम्मेदार नहीं है? आखिर क्यों सुशासन बाबू युवाओं को रोजगार प्रदान नहीं करवा पाए? यदि ये मजदूर अपने राज्य में रहे होते तो कम से कम पैदल चल कर नहीं मरे होते| घर पहुंचने की जल्दी में कई मजदूर सड़क हादसे के शिकार हो गए, कई ने भूखे पेट दम तोड़ दिया।

बिहार सरकार ने केंद्र सरकार से मनरेगा के तहत 100 दिन मिलने वाले काम को 200 दिन में तब्दील करने की अपील की है। बिहार सरकार ने सृजित श्रमिकों की भी सूची तैयार करने का फैसला किया है ताकि उनके सृजात्मकता के अनुसार उन्हें काम मिल सके। लेकिन क्या करोड़ों के श्रमिकों के लिए इतनी योजनाएं पर्याप्त है? कुछ दिनों पहले ट्विटर पर#industryinbihar ट्रेंड कर रहा था जिससे यह पता चला की बिहार की कई फैक्टरियां बंद हो गई है और जाहिर सी बात है कि इसमें काम करने वाले श्रमिक किसी अन्य कामों में लग गए हैं।

बिहार सरकार से निवेदन है कि बंद पड़ी फैक्ट्रियों को पुनः खुलवाया जाए ताकि राज्य के श्रमिकों को रोजगार मिल सके और फैक्ट्रियों के उत्पादन कार्य से बिहार आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर बने।

– ऋतु (शोधार्थी,  इतिहास विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय)


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अपने श्रमिकों को हवाई जहाज़ से वापस ला रही है झारखण्ड की हेमंत सरकार

2017 के एक चुनावी भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक कहा था कि हवाई जहाज में अब हवाई चप्पल वाले लोग भी सफ़र करेंगें| मगर इस लॉकडाउन में हवाई चप्पल वालों का देश के सड़कों पर क्या दशा हुआ, उसको सबने देखा| प्रधानमंत्री ने तो मजदूरों को हवाई सफ़र तो नहीं करवाई मगर उनके विरोधी गठबंधन की झारखण्ड सरकार ने मोदी जी का सपना सच कर दिखाया|

झारखण्ड की हेमंत सरकार ने अंडमान-निकोबार से लॉकडाउन में फंसे 180 श्रमिकों को अपने खर्चे पर एयरलिफ्ट कराकर रांची वापस ले आई है| खास बात यह है कि रांची लौटे मजदूरों की मानें तो यह उनका पहला हवाई सफर था| मजदूरों के घर वापसी पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, “मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि पिछले 48 घंटे का सरकार का प्रयास सफल हुआ|”

मंत्री ने किया श्रमिकों का एयरपोर्ट पर स्वागत

हवाई जहाज़ से वापस लाये गये इन मजदूरों का स्वागत करने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर खुद पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर और 20 सूत्री उपाध्यक्ष स्टीफन मरांडी को बिरसा मुंडा हवाई अड्डे भेजा| सरकार की ओर से गुलाब का फूल देकर स्वागत किया गया| एयरपोर्ट पर ही लोगों के खाने और पानी की व्यवस्था की गयी थी| एयरपोर्ट से श्रमिक सम्मान रथ नामक बसों से श्रमिकों को अपने घर भेजा गया|

झारखण्ड सरकार के मंत्री स्टीफन मरांडी ने कहा कि झारखंड-बिहार के मजदूर ऑफ सीजन में दूसरे प्रदेश जाते हैं पर अभी खेती का वक्त आ रहा है और सभी यही खेती करेंगे| सरकार इनके रोजगार की पूरी व्यवस्था करेगी|

आज भी एक फ्लाइट मुंबई से उड़ी

झारखण्ड सरकार द्वारा श्रमिकों के एयरलिफ्ट करने का सिलसिला लगातार जारी है| रविवार को भी 86 प्रवासी श्रमिकों को लेकर एयर एशिया की फ्लाइट मुंबई से रांची के बिरसा मुंडा हवाई अड्डा पहुंची| एयर एशिया फ्लाइट के माध्यम से रविवार को 186 प्रवासी सुबह साढ़े आठ बजे राजधानी रांची पहुंचे| राजधानी रांची पहुंचने वाले प्रवासी कामगार सिमडेगा, सिंहीूम, रांची, बोकारो, धनबाद, हजारीबाग, कोडरमा, गोड्डा, चतरा, पलामू और गिरिडीह जिले के रहने वाले है|

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क्या चित्रकला और चित्रकार भी जातिवाद से पीड़ित हैं? जानिए मधुबनी पेंटिंग के संदर्भ में..

भारत के बिहार राज्य के प्रसिद्ध  मधुबनी चित्रकला जो कि बस बिहार तक सीमित ना रह कर विश्व ख्याति पा चुका है,  जिसे जी.आई (GI) टैग भी प्राप्त हो चुका है। कुछ वर्ष पहले मधुबनी चित्रकारों ने मधुबनी रेलवे स्टेशन को रंगकर विश्व की सबसे बड़ी पेंटिंग बनाने का कीर्तिमान भी स्थापित कर लिया है।

यह विश्व चर्चित पेंटिंग के बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि इस चित्रकला के प्रकार जाति के आधार पर भी विभाजित है। आपको जान कर आश्चर्य हो रहा होगा कि क्या हमने कलाओं को भी जाति के आधार पर बांट दिया है। जी हां इस पेंटिंग के विभन्न प्रकार विभिन्न जाति समुदायों द्वारा बनाया जाता है।

वर्ष 2016-2017 की बात है जब मैंने अपने सेमिनार पेपर के लिए बिहार के दो समुदाय ( डोम और दुसाध) पर शोध करने का निर्णय लिया तभी उसी दौरान मुझे यह पता चला की बिहार के मिथिला क्षेत्र के दुसाध समुदाय मधुबनी पेंटिंग में रुचि रखते हैं और कई लोग इसे पेशे के तौर पर भी धारण किए हुए हैं, और इस बात की पुष्टि दुसाध समुदाय के व्यक्ति छविनाथ पासवान ने भी की।

कलाकार: तनिषा

वैसे तो हम सभी मधुबनी पेंटिंग के प्रसिद्ध कलाकार कर्पूरी देवी, सीता देवी, बउआ देवी, जगदम्बा देवी, शांति देवी, दुलारी देवी को जानते हैं, जिन्होंने अपने कलाओं से विश्व में सुप्रसिधी पाई है और भारत के साथ- साथ बिहार राज्य का भी नाम रौशन किया है। अन्य की तरह मैं भी इन महिलाओं के जाति जानने के लिए उत्सुक नही थी। मुझे इस बात से ही प्रसन्नता है कि हमारे राज्य की महिलाएं पेंटिंग के माध्यम से विकास कर रही हैं, जो कि वास्तव में एक गर्व का विषय है।

मुझे अपने शोध के दौरान पता चला कि हमने कलाओं को भी जात- पात में बांट लिया है। बिहार के मधुबनी जिले में मुख्यत ब्राह्मण, कायस्थ एवं दुसाध समुदाय के लोग इस चित्रकला को बनाते हैं। जगदीश. जे. चावड़ा अपने आर्टिकल ( The Narrative paintings of India’s Jitwarpuri women)  में बताते हैं कि जितवारपुर गांव ( मधुबनी) में पेंटिंग के दो प्रकार हैं, पहला प्रकार ब्राह्मणी आर्ट जो कि ब्राहमण और कायस्थ समुदाय की महिलाओं द्वारा बनाया जाता है। यह प्रकार काफी आकरिक, बेहद शैलीकृत तरीके से बनाया जाता है। ब्राहमण और कायस्थ समुदाय के चित्रण में राम- सीता, शिव- पार्वती, कृष्ण- राधा एवं अन्य देवी देवताओं का विवरण मिलता है। इस शैली के प्रमुख कलाकार जगदम्बा देवी, सीता देवी इत्यादि है।

इस चित्रकला का दूसरा प्रकार हरिजनी बताया गया है जिसको हरिजन समुदाय कि महिलाएं विशेषतः दुसाध समुदाय की महिलाएं बनाती है।

इस शैली में सांसारिक जीवन का विवरण मिलता है जिसमें आम जीवन में रसोई में खाना पकाती महिलाएं, हाथी-  घोड़ा, चिड़िया, पेड- पौधे का चित्रण किया जाता है। इस शैली की प्रमुख कलाकार शांति देवी, दुलारी देवी, उर्मिला देवी इत्यादि है।


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शांति देवी ( दुसाध समुदाय) fokaartopedia को दिए हुए इंटरव्यू में बताती है कि जब वह छोटी थी तो उनके समुदाय की लड़कियों को कोई पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजता था। उनकी कुछ ब्राहमण समुदाय की मित्र थी जिनको देखकर उन्हें पढ़ने की इच्छा हुई और जिद करके उन्होंने किसी भी तरह दसवीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी की। बचपन से शांति देवी ने जातिवाद के बुरे बर्ताव को सहा है जिनमे छुआ- छूत भी शामिल था। वह यह कभी नहीं जानती थी कि आगे चलकर कभी वह मधुबनी चित्रकार बनेंगी क्योंकि उनके समुदाय को सपने देखने की इजाज़त नहीं थी। वह बताती हैं कि बचपन से वह अपनी मां को दीवारों पर मधुबनी पेंटिंग बनाते हुए देखती थी लेकिन उनको इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि इस कला के जरिए पैसे भी कमाया जा सकता है। शांति देवी अमेरिकी शोधार्थियों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहती हैं कि उन्होंने ही हमारे कला को पहचाना और इसको व्यपार का माध्यम बताया।

शांति देवी बताती है कि गांव के उच्च जाति के लोग हमें हिन्दू देवी -देवताओं के चित्र बनाने के लिए धमकाते थे। गांव के ब्राहमण बोलते थे कि इन देवी- देवताओं पर हमारा अधिकार है, नतीजन दलित समुदाय के लोग आम जीवन प्रकृति से जुड़े चित्रों पर ज्यादा ध्यान दिए, बाद में दुसाध समुदाय के लोग अपने जाति के देवता राजा सहलेस के चित्रों को भी बनाना शुरू किए।

वहीं दुलारी देवी जो की मछुआरे समुदाय से हैं वह बताती हैं कि मजदूर से कलाकार बनने तक का सफर काफी कठिन था, नीची जाति के होने के वजह से ना उनके पास शिक्षा था नाहीं अवसर। वह एक मधुबनी चित्रकार के यहां बर्तन साफ करती थी जब वह बाकि औरतों को  चित्र बनाते हुए देखती थी तो उनके अंदर भी अभिलाषा जागती थी बहुत ही मुश्किल से उन्होंने हिम्मत जुटा कर अपनी मालकिन से निवेदन किया कि उनका भी मिथिला पेंटिंग केंद्र ने नाम लिखवाया जाए। दलित समुदाय की महिलाओं के पास कला होते हुए भी वह किसी के रहमो- करम के मोहताज़ थी।

शांति देवी और दुलारी देवी की कहानियों को सुनकर लगता है कि मधुबनी पेंटिंग पर  अधिकार केवल उच्च जाति के लोगों का था। ब्राहमण और कायस्थ समुदाय के लोग इस पर भी आधिपत्य जमाना चाहते थे लेकिन कुछ विदेशी शोधकर्ता और भास्कर कुलकर्णी ( बॉम्बे आर्टिस्ट) के सहयोग  द्वारा इस कला में दलित समुदाय की महिलाएं भी भाग लेने लगी और उन्हें उनकी कलाओं के द्वारा एक नया रोजगार मिला जो कि उनके उत्थान की ओर एक नया कदम था।

कलाकार: सोनल

इतिहासकार निकोलस ड्रकस का मानना है कि जब भी आप भारत के बारे में सोचते है तो यह बहुत ही मुश्किल है कि आप जाति के बारे में ना सोचे।

उनका यह कथन सही प्रतीत होता है कि हम कला में जाति का रंग भर दिए हैं और किसी भी कला पर एक विशेष जाति समूह का आधिपत्य स्थापित मिलता है।


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शांति देवी बताती हैं कि उनके कला को देर से पहचान मिली इसमें बहुत बड़ा योगदान गांव के ब्राहमण और कायस्थ समुदाय के लोगों का है। गांव में कोई भी मधुबनी पेंटिंग के सिलसिले में आता था तो हमारा पता ना बताकर किसी उच्च जाति के महिला का पता बताया जाता था। जब उन्हें नेशनल अवार्ड मिला तब उन्होंने उस अवार्ड को लौटा दिया था क्योंकि उनका मानना था कि जब उनके पास घर ही नहीं है अवार्ड रखने के लिए तो वह अवार्ड लेकर क्या करेंगी। तब उन्हें सरकार की तरफ से 62000 कि सहायता मिली लेकिन उनके उस पैसे को देख कर गांव के उच्च जाति के लोगों में ईर्ष्या उत्पन्न हो गई जिसके कारण उन्हें अपना घर बनाने में काफी दिक्कतें आई।

ऐसे कई दलित समुदाय के कलाकार हैं जिनके पास कला होते हुए भी वह आगे बढ़ नहीं पाते हैं क्योंकि हमारे समाज में आज भी जातिवाद विद्यमान हैं जो सबको समान अवसर  नहीं देता। हमारा राज्य एवम् केंद्र सरकार से निवेदन है कि ऐसे प्रतिभाओं को पहचाना जाए उन्हें उचित प्रशिक्षण के साथ- साथ आर्थिक सहायता भी दिया जाए, और समाज के लोगों से एक अपील है कि किसी भी कला को जात- पात में ना बांटे। विश्व के हरेक कला पर हम सभी का समान अधिकार है कृपया कलाजगत में जातिवाद जैसे सामाजिक विकृति को ना आने दे।

– ऋतु (शोधार्थी, इतिहास विभाग – दिल्ली विश्वविद्यालय)

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बिहार को आदत है शर्मनाक विषयों को अपना गर्व बना लेने का

बिहार को आदत है शर्मनाक विषयों को अपना गर्व बना लेने का। नीतीश दिल्ली जाते थे तो सभाओं में बड़े गर्व से कहते थे कि हमें आप सब बिहारियों की इतनी बड़ी संख्या यहां देखकर गर्व होता है। मजदूर पलायन जो शर्म का विषय होना चाहिए था, उसे हमारे नेताओं ने गर्व के तरह प्रदर्शित किया।

बताइए जो मजदूर 10-12 हजार के नौकरी के लिए अपना गांव घर छोड़कर दिल्ली मुंबई के स्लम में मजदूरी कर रहा हो उसको जाकर ये झूठा गौरवबोध बेचा जाता था कि “आप लोगों के कारण ही यह प्रदेश चल रहा है, आप चले जाएंगे तो ये प्रदेश रुक जाएगा।”

ठीक यही केस हुआ है फिर 15 साल की ज्योति कुमारी के केस में। वास्तव में ये घटना समाज को झकझोरने वाली थी की एक 15 साल की बेटी को अपने मजदूर बाप को साईकिल पर बिठाकर 1200 किमी आना पड़ा। एक व्यवस्था के लिए, एक सरकार के लिए इससे शर्मनाक बात नहीं हो सकती है। इस घटना के बाद लोगों को प्रश्न करना चाहिए था की क्यों हमारे यहां से लोगों को मजदूरी करने के लिए इतनी दूर जाना पड़ता है। आवाज उठनी चाहिए थी हमारे लोगों को अपने प्रदेश में रोज़गार कब मिलेगा। लेकिन नहीं, इस शर्मनाक स्थिति को भी झूठे आडंबर में बांधकर एक गर्व का विषय बना दिया गया।

ज्योति बहादुर है, उसके जज़्बे को सलाम है। लेकिन उसके कृत्य पर गर्व करने का अधिकार सिर्फ उसके परिवार को है। एक समाज के तौर पर हमारे लिए लिए ज्योति की मजबूरी केवल शर्म का विषय हो सकता है, गर्व का नहीं। उसके शौर्य के गौरवगान के पीछे उसकी मजबूरी और अपने शर्म को मत छुपाईए।

आज नेता लोग जाकर उसका सम्मान कर रहे हैं, उसके पढ़ाई के खर्चे उठाने की घोषणा कर रहे हैं, 7 गियर वाला साईकिल प्रोत्साहन में दे रहे हैं, फोटो खिंचवा रहे हैं, उसे गौरव का विषय बता रहे हैं।

इन निर्लज्ज नेताओं को पूछिए की तनिक पता करे की जिस ज्योति के पढ़ाई खर्च वहन करने का झूठा आडम्बर ये कर रहे हैं, उसे किन मजबूरियों के चलते कक्षा पहली के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी।

ये बेशर्म नेता सब सत्ता में थे जब ज्योति के पिता को मजदूरी करने के लिए घर से 1200 किमी दूर पलायन करना पड़ा। ये बेशर्म नेता सत्ता में थे जब ज्योति कक्षा पहली के बाद पढ़ाई जारी नहीं रख सकी। वो बच्ची इस व्यवस्था के कुव्यस्था और लापरवाही की मारी हुई है। लेकिन आज उसके व्यक्तिगत शौर्य को व्यवस्था ने अपना गर्व बना लिया। इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता है।

तुम्हें बहुत सारा आशीर्वाद, प्यार ज्योति ❤️ साथ ही क्षमा मांगता हूं। पीपली लाइव के नत्था की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं ये तुम्हें। ईश्वर तुम्हें इन चिल, गिद्दों से बचने की शक्ति दे।

– Aditya Mohan

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आज 25 विशेष ट्रेनों से 34 हज़ार लोग आयेंगे बिहार, 267 और ट्रेनों का शिड्यूल हुआ तय

टश्रमिक स्पेशल ट्रेनों से बिहार लाने का सिलसिला और तेज हो गया है| आज 34 ट्रेनों से 51 हजार लोग आएंगे| बुधवार को 34,600 लोगों को लेकर 25 विशेष ट्रेनें बिहार के अलग-अलग जिलों में पहुंची|

आज आने वाले ट्रेन में सबसे अधिक यात्री गुजरात और महाराष्ट्र के हैं, जहाँ से पांच-पांच ट्रेनें आ रही है| इसके अलावा दिल्ली, तमिलनाडु और हरियाणा से तीन-तीन ट्रेनें आ रही है| इसके अलावा पंजाब, केरला, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश से भी ट्रेन आ रहे हैं|

सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के सचिव अनुपम कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि आने वाले दिनों के लिए 267 और ट्रेनों का शिड्यूल भी तय हो गया है।


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आज आने वाली ट्रेन दानापुर, मधुबनी, मोतिहारी, बेतिया, मजफ्फरपुर, गया, बांका, सीवान, अररिया, हाजीपुर, कटिहार, पूर्णियां, बरौनी, भागलपुर और सीतामढ़ी स्टेशन पहुंचेगी|

प्रत्येक स्पेशल ट्रेनों में 400 से 1500 आ रहे हैं| स्टेशन पर उतरने के बाद सभी मजदूरों को बसों से उनके प्रखंड में बने क्व़ारंटीन सेंटरों में ले जाया जायेगा| जहाँ उनको 21 दिन क्व़ारंटीन में गुज़रना होगा| उसके बाद बिहार सरकार उन्हें रेल किराया के अलावा 500 रूपये देकर अपने घर भेज देगी|

बिहार में कोरोना के मामले बढ़े

बिहार के सभी 38 जिलों में कोरोना का संक्रमण फ़ैल चुका है| बुधवार को भी 53 नए कोरोना पॉजिटिव मरीजों की पहचान की गयी| अब बिहार में कोरोना के कुल मामले 932 पहुँच गए हैं| बीते कुछ दिनों से दूसरे राज्यों से बिहार लौटे प्रवासी मजदूरों का कोरोना पॉजिटिव होने का मामला सामने आ रहा है| जिसमे सबसे अधिक वे मजदूर है जो दिल्ली या दिल्ली एनसीआर से लौटे हैं| इसके अवला महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल और हरियाणा के भी कई मजदूर कोरोना पॉजिटिव मिले हैं|


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Bihar Board Results 2020: जानें कब आयेगी बिहार बोर्ड मेट्रिक और इंटर का रिजल्ट?

 बि‍हार बोर्ड (Bihar Board) कक्षा 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं समाप्‍त हो चुकी हैं और अब मूल्‍यांकन का काम भी लगभग समाप्‍त हो चुका है| हालांक‍ि बोर्ड ने मूल्‍यांकन का काम समाप्‍त करने के ल‍िये 12 मार्च तक का लक्ष्‍य रखा था| लेक‍िन श‍िक्षकों की कमी के कारण इसमें कुछ समय और लग रहा है| छात्र उम्‍मीद कर सकते हैं क‍ि मार्च के आख‍िरी सप्‍ताह तक बि‍हार बोर्ड, मैट्र‍िक और इंटरमीडिएट के पर‍िणाम जारी कर सकता है| सूत्रों की मानें तो बोर्ड ने कक्षा 10वीं की कॉप‍ियां 26 फरवरी से 8 मार्च 2020 के बीच जांच ली थीं और स‍िर्फ इंटरमीडिएट की कॉप‍ियां ही जांच के ल‍िये बाकी रह गई थीं|

शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव आर के महाजन ने मंगलवार को कहा कि कोरोना को लेकर मैट्रिक व इंटर के मूल्यांकन (कापी जांच) पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। दोनों ही परीक्षाओं के रिजल्ट अपने तय समय पर ही आएंगे। उन्होंने कहा कि यह शिक्षकों के सहयोग से ही संभव हो रहा है। इंटर की कापियों का मूल्यांकन समय पर चल रहा है। पुराने शिक्षक, अतिथि शिक्षक, वित्तरहित संस्थानों के शिक्षक और कुछ नियोजित शिक्षक मूल्यांकन कार्य में जुटे हैं। मैट्रिक का भी मूल्यांकन आरंभ हो चुका है। कापियों के मूल्यांकन में कोई विलम्ब नहीं हुआ है।

हालांक‍ि बोर्ड ने अब तक यह खुलासा नहीं क‍िया है कि‍ परीक्षा के पर‍िणाम की घोषणा कब तक कर दी जाएगी और आध‍िकार‍िक वेबसाइट पर इसे कब तक चेक क‍िया जा सकेगा| परीक्षा के पर‍िणाम से संबंधित ज्‍यादा जानकारी Biharboardonline.gov.in पर चेक क‍िया जा सकता है|

इंटरमीडिएट परीक्षा पास करने के लिए, एक उम्मीदवार को प्रत्येक विषय के कुल अंकों का 30 प्रतिशत और प्रत्येक विषय के थ्योरी में कुल अंकों का 40 प्रतिशत अंक लाना होगा| फर्स्ट डिवीजन को प्राप्त करने के लिए, एक छात्र को 300 अंक प्राप्त करने होते हैं, जबकि दूसरे डिवीजन के लिए यह 225 अंक लाने होते हैं|

जो मिथिला हर साल के बाढ़ से परेशान था, आज वह गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है

बिहार के मिथिला क्षेत्र के दशियों जिले के अनेकों दर्जन प्रखंड में सैकड़ों गाँव गम्भीर जलसंकट से जूझ रहे हैं। चापाकल-तालाब आदि सुख चुके हैं और लोग पीने के पानी के लिए सरकारी वाटर-टैंकर व वाटरगैलन पर निभर हैं। पानी के लिए सैकड़ों गांवों व शहरों के मुहल्लों में पानी के लिए लड़ाइयां हो रही है, ग्रामीण आंदोलन-धरना-सड़क घेराव आदि कर रहे हैं। दरभंगा-समस्तीपुर-मुज़फ्फरपुर-बेगूसराय-मधुबनी आदि समेत राज्य के लगभग दर्जन से अधिक जिलों में सूखे व जल-संकट की स्थिति है।

मौजूदा जल-संकट के संबंध में सबसे आसान साइडवे ये होगा की दोष आप सरकार को दें। मैं इसमें केवल सरकार का दोष नहीं मानता। हाँ जिम्मेदारी उनकी जरूर बनती है पर किसी को भी ये भान नहीं हो सकता कि नदियों का नैहर आ पग-पग पोखर वाला बाढ़-प्रभावित क्षेत्र मिथिला भी कभी जल-संकट का सामना करेगा, इसलिए मैं दोष सरकार के ऊपर मढ़ना एक आसान तरीका समझता हूँ अपने गलतियों और जिम्मेदारीयों से बचने का।

जो हुआ सो हुआ। अब हो गया। आप मानें या न मानें लेकिन ये संकट हमने ही पैदा किया है जाने-अनजाने में। एक्चुअली में डायरेक्ट गलती हमारी भी नहीं है क्योंकि इससे पहले कोई भी मैथिल कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था की एक दिन जल-संकट आ जाएगा। हमारे यहाँ पानी इतना अथाह था कि जल संरक्षण और उपयुक्त उपयोग हमने कभी सीखा ही नहीं। चापाकल उपयोग में बढोत्तरी होने के बाद हमने भूजलस्तर संरक्षित रखने वाले कुएं भर दिए और गैरजरूरी संख्याओं में चापाकल गड़वा लिया। बाद में तालाब भरते गए, अतिक्रमण करके उनपर घर बनाते गए, समरसीबल खुदाते गए…हमने हमेशा दोहन ही किया कभी संरक्षण नहीं।

वास्तव में हमें इसकी कभी आदत या जरूरत ही महसूस ही नहीं हुई। जहाँ नदी किनारे बसे गांव के हरेक घर मे दो-दो, तीन-तीन तक चापाकल हो, पूरे गांव में कई दर्जन तालाब हो…उस मिथिला के किसी मैथिल को आप जल संरक्षण के प्रति जिम्मेदार, जागरूक और चिंतित कैसे एक्सपेक्ट कर सकते हैं ? हमें बर्तन धोने से लेकर नहाने समेत हरेक घरेलू कामकाज में जल को बर्बाद करने की आदत है। पूरे मिथिला में इतनी नदियाँ होने के बावजूद कहीं नदियों के जल का प्लांड संरक्षण और इस्तेमाल अब नहीं होता है, कोशी सिंचाई परियोजना अबतक अधूरी पड़ी है और पूर्ण नहीं हो सकी है। एक वक्त था की तालाबों और कुओं में वर्षा का जल संरक्षित किया जाता था लेकिन अब कुओं के भर जाने और तालाबों के रखरखाव अभाव के कारण वो भी बंद हो चुका है।

लेकिन अब हमें जागना होगा। क्योंकि अभी जो जल संकट उभरा है यदि उसपर गौर करें तो ये किसी सडेन ज्योग्राफिकल चेंजेज की वजह से मालूम होता है। पहले बेगूसराय, फिर समस्तीपुर, फिर दरभंगा उसके बाद मधुबनी…ये गंगा के उत्तर हर जगह क्रमानुगत फैल रहा है। हमें अब अपनी आदतों में बदलाव करना होगा, लोगों को जागरूक करना होगा, वर्षा जल संरक्षित करना पड़ेगा, पोखैर-तालाब बचाना पड़ेगा, अपने लोगों को आदत डालनी पड़ेगी की जल की गैरजरूरी बर्बादी से बचें।

और ये सब एक मेंटिलिटी को चेंज करने का प्रयास है अतः अत्यंत कठिन कार्य है। इसके लिए विभिन्न प्रयासों के माध्यम से लोगों के दिमाग को हैमर करना पड़ेगा ताकि उन्हें आदत पड़े जल बचाने की। ये केवल सरकार नहीं कर सकती है। हम सबको इसका हिस्सेदार और सहयोगी बनना पड़ेगा। मिथिला में जल संकट समस्या का सबसे बेहतर समाधान है अपने पोखैर-तालाबों की सफाई-उड़ाही और रखरखाव करके उन्हें संरक्षित करना। इससे भूजलस्तर बना रहेगा और चापाकल नहीं सूखेंगे।

अपनी-अपनी भूमिका निभाइए। लोगों को जागरूक कीजिए, जानकारी बांटिए, सरकारी प्रयास में सहयोग के अलावे सामाजिक रूप से लोगों को जागृत कीजिए की वो पोखैर-तालाब बचावें। हम सबने पाप किया है अनजाने में, प्रायश्चित भी सब कीजिए। पत्रकार हैं तो रिपोर्टिंग कीजिए जल-संरक्षण के संबंध में, प्रोफेसर हैं तो सेमिनार्स कीजिए। कवि-लेखक हैं तो इस विषय पर कविता-कहानी लिखिए, गोष्ठि कीजिए। मिथिला पेंटिंग के कलाकार हैं तो पोखैर बचाउ विषय पर पेंटिंग बनाइए। गायक हैं तो इस विषय पर गीत गाइए। स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी हैं तो शहर में जागरूकता मार्च निकाल कर लोगों को जागरूक कीजिए। नेता-अधिकारी हैं तो जनप्रतिनिधियों और सरकारी मशीनरी पर दवाब बनाइए सफल क्रियान्वयन का। बाहर हैं तो सोशल मीडिया पर #पोखैर_बचाउ विषय पर लिखिए-प्रचारित कीजिए ताकि विषय का ब्रॉडनेस बढ़े। कुल मिलाकर सब मिलकर सामूहिक ऐसे प्रयास कीजिए की अंतिम मैथिल तक ये संवाद चला जाए की “जल-संकट में हैं, जल बचाइए और जल-श्रोतों को संरक्षित रखिए।”

-आदित्य मोहन

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बिहार के अस्तित्व को क़ायम रखने के लिए अब सिर्फ फ़रियाद नहीं, निदान करना होगा

बिहारी होना क्या होता है?

शब्द पर यदि ध्यान दें, ”बि“ का मतलब होता है विशेष और “हार” मतलब हार वो जो कंठ पर विराजमान हो. आख़िर शाब्दिक ख़ूबसूरती वाला यह राज्य क्यों आज अभिशाप बन गया? लोकतंत्र के जन्मदाता वाला राज्य जिसने पूरी दुनिया में शिक्षा का अलख जगाया,आख़िर क्या ऐसी आफ़त आ पड़ी की आज बिहार की शिक्षा दर भारत के सबसे नीचले शिक्षा दरो में शुमार है.

आज जहाँ 21वी सदी में जब पूरी दुनिया आगे जा रही है, हमारी रफ़्तार धीरे क्यों है? जबकि हम भारत के भाग्य विधाता हैं| शासन-प्रशासन हमारी हिस्सेदारी बराबर ही नहीं बल्कि ज्यादा है|.. लेकिन आख़िर क्यों, बिहारी मतलब बेबस, लाचार या पिछड़ा का पर्यायवाची हो गया है?

बेबसी हालतों से, लाचरी पलायन से, लाचरी हाशिए पर शिक्षा व्यवस्थाओं से, लाचरी जर्जर सड़कों से, लाचारी सुखाड़ और दाह्ड़ से, क्यों? क्यों हम केवल राजनीतिक यूज एंड थ्रो हथियार बन कर रह गये?

भारत के सुरक्षा में हमरा अमूल्य योगदान है, प्रशासनिक सेवा में हमें अव्वल दर्जे का तबक़ा प्राप्त है| लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के के हम सजग प्रहरी है| आइआइटी और आइएम जैसी संस्थाए अपनी शौर्य गाथा हमारे बदौलत लिख रही है| फिर भी बिहार के बड़े तबके के सरोकार से किसी को कोई मतलब नहीं है|

आज हम क्यों सड़क, पानी और अपराध मुक्त बिहार की लड़ाई लड़ रहे है?

सवाल कीजिए ख़ुद से, अपने लिए, अपने आने वाले नश्लों के लिए, कि हम कैसे बिहार को छोड़ के जा रहे है? हमारा भविष्य कही हमारे वर्तमान की ग़लतियों के चपेट में आकर, भविष्य के साथ अतीत के सुनहरे पन्नो को भी निगल न ले!

उठिए और जागिए और चाणक्य बन कर लाखों चंद्रगुप्त जैसे योद्धाओं को तैयार कीजिए| ताकि फिर कोई सीता निर्भीक होकर इस धरती को अपना मायका बना सके और स्वयं रघुनन्दन मोहित हो जाए| अभी वक़्त है संभल जाने का और इस धरती को फिर से बिरसा मुंडा के संस्कारो से अपने पढ़ियो को अवगत कराने का|

उठिए और समस्याओं पर सत्ता के रहनुमाओ से सवाल करिए| उठिए सवालों के जबाब बन कर,आज ज़रूरत है आज हमें समस्याओं का निदान बनना है| आज अपने अस्तित्व को क़ायम रखने के लिए निदान बनना ही पड़ेगा| फिर आ रहा है चुनाव, जाती-धर्म से ऊपर उठिए और सही मूल्याँकन और सही को चुनिए ताकि अपराध मुक्त सूबे में हम भी शुमार हो|

शिक्षा नीति अच्छी हो| रोज़गार के नए आयाम दिखे ताकि सशक्त और समृद्ध बिहार बन सके| आज इसके लिए ज़रूरत है सबसे पहले जागरूक बिहार बनने का| अपने खनिज संसाधन के ज़रिए, युवा संसाधन के ज़रिए बिहार पर लगे कलंक मिटाने का|

जय बिहार

निरंजन पाठक (लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय स्नातक के छात्र है)