बिहार के मौसम वैज्ञानिक क्या दोहरा पाएंगे बिहार चुनाव का 2005 मॉडल?

भले बिहार विधानसभा का यह चुनाव 2020 है मगर इसकी पठकथा 2005 विधानसभा चुनाव से मिलती जुलती है| इस बार भी इस चुनाव में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) सबका खेल बिगारने में लगी है| फर्क इसबार यह है कि 2005 में रामविलास खुद मैदान में थे मगर इसबार उनके बेटे चिराग पासवान उनका किरेदार निभा रहा रहा है| मगर लोजपा का मकसद 2005 मॉडल को दोहराना ही है|

क्या है लोजपा का 2005 मॉडल?

बिहार में 2005 में विधानसभा का चुनाव फरवरी-मार्च में हुआ था। उन दिनों केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्‍व में एनडीए की सरकार थी और रामविलास पासवान मंत्रिमंडल के प्रमुख चेहरों में थे। लेकिन चुनाव के ठीक पहले इस्‍तीफा देकर उन्‍होंने लोक जनशक्ति पार्टी बनाई और बिहार में लालू, नीतीश के खिलाफ अकेले ताल ठोंक दी। बताते हैं कि उस वक्‍त नीतीश चाहते थे कि रामविलास उनके साथ रहकर लालू परिवार के खिलाफ छिड़ी मुहिम में शामिल हों लेकिन रामविलास अकेले ही मैदान में उतरे।

2005 में विधानसभा के आम चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी का प्रदर्शन काफी अच्‍छा रहा। 29 सीटों पर पार्टी ने जीत हासिल की। किसी को बहुमत नहीं मिली। अगर लोजपा उस समय जदयू को समर्थन देती तो सरकार बन सकती थी मगर सीएम पद को लेकर नीतीश को समर्थन न देने के चलते आखिरकार बिहार में किसी की सरकार नहीं बन पाई थी। प्रदेश में मध्‍यावधि चुनाव कराने पड़े थे।

फरवरी 2005 के चुनाव में भी लोजपा ने लालू राज के प्रति लोगों की नाराजगी का फायदा उठाते हुए राजद को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। तब लालू यादव के शासन के 15 साल पूरे हुए थे और लोगों में एक स्वाभाविक नाराजगी थी।

अब नीतीश राज के 15 साल पूरे हो रहे हैं। लोजपा इस बार भी एंटी इनकम्बेंसी को कैश कराने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगी। यह तो तय है कि नीतीश राज से स्वाभाविक रूप से नाराज एक वोटर ऐसा भी होगा जिसे तेजस्वी को देखते ही लालू राज का वह दौर याद आएगा जिसे ‘सवर्ण विरोधी’ और ‘अराजकता का प्रतीक’ बताया जाता रहा है। ऐसा वोटर अगर नीतीश को छोड़कर राजद को नहीं भी अपनाना चाहेगा तो लोजपा के रूप में उसे एक नया विकल्प दिखाई देगा, जिसके पीछे अघोषित तौर पर बीजेपी खड़ा दिख रही है|

मगर चिराग इसबार वह गलती नहीं करेंगे जो रामविलास ने 2005 में की थी

2005 में भले लोजपा ने अबतक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया था मगर उसको इसका लाभ नहीं मिला| वे किंगमेकर के भूमिका में तो आए मगर न किंग मेकर बने और न ही खुद किंग बने| 2005 में लोजपा अगर नीतीश को समर्थन करते तो उनकी सरकार बन सकती थी मगर उन्होंने मुस्लिम को रिझाने के चक्कर में किसी मुस्लिम को मुख्यमंत्री बनाने कि शर्त रख दी|

आखिरकार फिर से चुनाव हुए, नीतीश कुमार ने लोजपा के नेताओं को तोड़ जदयू में सामिल कर लिया और लोजपा की बुरी हार हुई|

लोजपा इसबार वही गलती करने के मूड में नहीं दिख रही है| उसने पहले ही घोषणा कर दी है कि चुनाव बाद वह बीजेपी के साथ सरकार बनायेगी| चुनाव बाद अगर 2005 जैसी स्थिति बनती है तो चिराग पासवान इस बार सरकार में जरुर सामिल होंगे| उनकी कोशिश बीजेपी के साथ सरकार बनाकर कम से कम उपमुख्यमंत्री बनना चाहेंगे| वैसे बेहतर डील मिलने पर वे महागठबंधन में तेजस्वी से भी हाथ मिला सकते हैं|

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नीतीश के साथ बीजेपी ने कर दिया खेल, बिहार में एक नहीं दो एनडीए लड़ रहा चुनाव

कोविड -19 के कारण देश की आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ी हुई है मगर बिहार की राजनीतिक तापमान पूरा गर्म है। चुनाव (Bihar Election 2020) का बिगुल फूंक चुका है, पहले चरण के लिए नॉमिनेशन भी शुरू है मगर अभी तक राजनीतिक पार्टियों का गठबंधन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है।

हालांकि महागठबंधन (Mahagathbandhan) ने अपनी सीटों का बंटवारा कर लिया है। इस बार महागठबंधन में आरजेडी (RJD) 144, कांग्रेस 70 और वामदल 29 सीटों पर चुनाव लडेगी। वहीं दूसरी तरफ एनडीए (NDA) में कोहराम मचा है, जिसके कारण अभी तक गठबंधन की स्थिति साफ नहीं हुई है।

एनडीए में चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और उनकी पार्टी के खिलाफ अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इसके साथ चिराग पासवान ने घोषणा किया है कि लोजपा सिर्फ जदयू के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारेगी, केंद्र में बीजेपी के साथ उनका गठबंधन जारी रहेगा और बिहार में भी वह बीजेपी  (BJP)के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेगी। बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट के नारे के साथ लोजपा ने नारा दिया है कि मोदी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं।

तो अब सवाल उठता है कि इस बार बिहार चुनाव में दो एनडीए चुनाव लड़ रही है। एक एनडीए बीजेपी और जदयू का तो दूसरा एनडीए बीजेपी और लोजपा का?

राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि लोजपा के इस चाल के पीछे बीजेपी है। बीजेपी चुनाव बाद के प्रस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने की कोशिश में है। एक तरफ वह नीतीश के साथ चुनाव में जाकर महागठबंधन को टक्कर देना चाहती है तो दूसरी तरफ लोजपा को नीतीश के खिलाफ खड़ा करके अपने ही सहयोगी और चतुर राजनेता नीतीश कुमार को ‘ औकात ‘ में रखना चाहती है!

लोजपा दोहराना चाहती है अपना 2005 का मॉडल?

बिहार में 2005 में विधानसभा का चुनाव फरवरी-मार्च में हुआ था। उन दिनों केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्‍व में एनडीए की सरकार थी और रामविलास पासवान मंत्रिमंडल के प्रमुख चेहरों में थे। लेकिन चुनाव के ठीक पहले इस्‍तीफा देकर उन्‍होंने लोक जनशक्ति पार्टी बनाई और बिहार में लालू, नीतीश के खिलाफ अकेले ताल ठोंक दी। बताते हैं कि उस वक्‍त नीतीश चाहते थे कि रामविलास उनके साथ रहकर लालू परिवार के खिलाफ छिड़ी मुहिम में शामिल हों लेकिन रामविलास अकेले ही मैदान में उतरे।

2005 में विधानसभा के आम चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी का प्रदर्शन काफी अच्‍छा रहा। 29 सीटों पर पार्टी ने जीत हासिल की। किसी को बहुमत नहीं मिली। अगर लोजपा उस समय जदयू को समर्थन देती तो सरकार बन सकती थी मगर सीएम पद को लेकर नीतीश को समर्थन न देने के चलते आखिरकार बिहार में किसी की सरकार नहीं बन पाई थी। प्रदेश में मध्‍यावधि चुनाव कराने पड़े थे।

कहीं दाव उलटा न पड़ जाए

दो के झगड़े और तीसरे के अरमान के बीच कहीं महागठबंधन के तेजस्वी यादव कही मुख्यमंत्री बन के निकाल जाए! एनडीए में चल रहे इस ताना तनी से सबसे ज्यादा खुश तेजस्वी यादव होंगे। लोजपा के अलग चुनाव लडने से बीजेपी को कोई नुकसान हो न हो मगर गठबंधन के जिन सीटों से जदयू चुनाव लड़ रही है वहां वह एनडीए को नुकसान पहुंचा सकती है। लोजपा भी मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही है, ऐसे में संभव है कि रामविलास के समर्थकों के साथ बीजेपी के नीतीश विरोधी वोट भी लोजपा को मिले। इससे एनडीए के वोटों का बटवारा होगा, और महागठबंधन के उम्मीदवारों को जीतने की संभावना बढ़ेगी।

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UPSC की परीक्षा NDA में बिहार के लाल आयुष कुमार ने किया टॉप

बिहारी प्रतिभा ने एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहराया है| बिहार में सारण के रसौली पश्चिम टोला के रहने वाले आयुष कुमार सिंह ने यूपीएससी द्वारा जारी एनडीए के परीक्षा परिणाम में देश में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपनी प्रतिभा का परचम लहराया है।

वह ग्रामीण रमेश कुमार सिंह व नीरा सिंह का पुत्र है। दोनों दिल्ली में सरकारी शिक्षक हैं। आयुष की उपलब्धि से गांव गदगद है। गौरतलब है कि संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने 26 नवंबर को एनडीए और एनए परीक्षा का रिजल्ट (UPSC NDA & NA I Result) जारी किया था।

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लेकिन, आयुष नहीं करेंगे एनडीए ज्वाॅइन!

भास्कर से बातचीत में आयुष ने बताया- एनडीए ज्वाइन नहीं करूंगा। मुझे सिविल सर्विसेज की तैयारी करनी है। आईएएस बनना है। इंजीनियरिंग करने के दौरान मुझे 4 साल का वक्त मिलेगा। भरोसा है कि पहले प्रयास में ही सफलता मिलेगी।

आयुष बचपन से ही मेधावी रहे हैं। अबतक विभिन्न विषयों पर आयोजित ओलंपियाड में 16 गोल्ड मेडल जीते हैं। 10वीं बोर्ड में इन्हें 10 सीजीपीए व 12 वीं में 92% अंक आए थे। 12वीं परीक्षा के दौरान ही आईआईटी की भी तैयारी की। सफल भी हुए। बेहतर रैंक नहीं आने से आईआईटी में दाखिला नहीं मिल रहा था। इसलिए दिल्ली के नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। आयुष के पिता रमेश सिंह और मां मीरा सिंह टीचर हैं। दसवीं कक्षा में ही इन्होंने 8 कहानियां अंग्रेजी में लिखी थी। इन 8 कहानियों की किताब एडवेंचरस स्टोरीज के नाम से प्रकाशित हुई है।

फिर बदलेगी बिहार की राजनितिक समीकरण, एनडीए से अलग होंगे कुशवाहा!

बिहार में ठंढ़ बढ़ रही है मगर राजनीति की गर्मी बढ़ रही है| खासकर एनडीए खेमे में सीटों को लेकर खलबली मची है| हालत ऐसी है कि एनडीए के सहयोगी रालोसपा कभी भी एनडीए को छोड़ने की घोषणा कर सकती है|

रालोसपा मुखिया और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार में सीट शेयरिंग पर बात बनती न देख मोर्चा खोल दिया है| उन्होंने साफ कह दिया है कि अब वह इस मुद्दे पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिलने की जगह सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे| कुशवाहा ने चेतावनी दी कि अगर सीट शेयरिंग फार्मूले पर सहमति नहीं बनी तो 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी|

उपेंद्र कुशवाहा ने बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस में आज यह भी कहा कि नीतीश कुमार की भरसक कोशिश है कि मेरी पार्टी खत्म हो जाए। नीतीश कुमार हमारी पार्टी को बर्बाद करने में लगे हैं। उन्होंने अपने सांसद रामकुमार शर्मा को दिखाकर कहा कि ये तो हमारे साथ हैं। लेकिन, इसे लेकर क्या-क्या कहा जा रहा है?

गौरतलब है कि रालोसपा के दोनों विधायक जेदयू के संपर्क में है| इसके साथ ही सांसद राम कुमार को लेकर भी यह अटकले लगाईं जा रही है कि अगर उपेन्द्र कुशवाहा पाला बदलने का फैसला लेते हैं तो वो जेदयू में जा सकते हैं| पटना में पार्टी के बैठक में रालोसपा के दोनों विधायक ललन पासवान और सुधांशु शेखर नहीं पहुंचे। ललन पासवान ने पार्टी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि उपेन्द्र कुशवाहा महागठबंधन की बैठक’कर रहे हैं, असली रालोसपा हमलोग हैं। अब हममें से कोई भी उपेंद्र कुशवाहा के साथ नहीं है। सभी विधायक और सांसद उनसे अलग हो चुके हैं।

इस पुरे घटनाक्रम को देखें तो उपेन्द्र कुशवाहा का एनडीए से अलग होना लगभग तय है| बस सही मौके का इंतज़ार है| उपेन्द्र कुशवाहा के पाला बदलने से बिहार का राजनितिक समीकरण एक बार और बदलेगा|

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बिहार: एनडीए में सीटों के बटवारे की खबर लीक, बीजेपी के फ़ॉर्मूले को सहयोगी पार्टियों ने नकारा

पिछले दिनों मीडिया रिपोर्टों में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बिहार में एनडीए के सहयोगी दलों के बीच सीटों का बटवारा होने की खबर छाई रही| खबर के अनुसार बिहार के 40 लोकसभा सीटों में से बीजेपी 20, जेडयू 12, एलजेपी 5 और रालोसपा को दो सीट पर चुनाव आएगी| साथ ही, पार्टी से निलंबित सांसद अरुण कुमार को भी मैदान में उतारने की बात कही जा रही है| बताया जाता है कि जदयू को रिझाने के लिए जरूरत पड़ने पर झारखंड में एक सीट चुनाव लड़ने के लिए दी सकती है|

हालाँकि यह खबर लीक होते ही बिहार के राजनीतिक गलियारों में हरकंप मच गया| गठबंधन में सामिल सभी दल ने एक सुर में इसे अफवाह बताया| एलजेपी नेता चिराग पासवान ने एनबीटी से कहा कि सीटों के फॉर्म्युले की बात अफवाह है। अभी इस बारे में कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है। वहीं, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि सीटों पर बात के लिए पार्टी की ओर से चिराग अधिकृत हैं और वह पंजाब में हैं। अभी इस बारे में कोई बात नहीं हुई है। एनडीए के दूसरे सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि अभी यह महज अटकलें हैं। सीट समझौते को लेकर एनडीए दलों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई है। बाद में बीजेपी और जेडीयू नेताओं ने भी सीटों को लेकर कोई अंतिम सहमति बनने से इनकार किया।

वैसे,सूत्रों से मिल रही ख़बरों के अनुसार जेडीयू 15-16 सीटों पर सहमत हो सकती हैं, वहीं रालोसपा अपने लिए 7 सीटों की मांग कर रही है मगर पार्टी सूत्रों के अनुसार वह 3 सीटों पर भी मान सकती है अगर पार्टी से बागी संसद अरुण कुमार को एनडीए से दूर रखा जाता है|

गौरतलब है कि रालोसपा प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा बीजेपी पर दवाब बनाने के लिए लगातार आरजेडी के साथ जाने की संकेत दे रहे हैं| हाल ही में उनका खीर वाला बयान मीडिया के सुर्ख़ियों में छाया रहा| कुशवाहा ने हालिया बयान में कहा था कि यदुवंशियों (राजद) का दूध और कुशवाहों (रालोसपा) का चावल मिल जाए तो खीर बनने में देर नहीं… लेकिन खीर बनाने के लिए केवल दूध और चावल ही नहीं बल्कि छोटी जाति और दबे-कुचले समाज के लोगों का पंचमेवा भी चाहिए। इस बयान को कुशवाहा के महागठबंधन के प्रति रुझान के तरह देखा गया|

नीतीश कैबिनेट का होगा विस्तार! ये बनेंगे नए मंत्री ..

समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के इस्तीफे के बाद, बिहार के राजनितिक गलियारों में नीतीश कैबिनेट के विस्तार का चर्चा जोरो पर है| कैबिनेट में फिलहाल आठ जगह खाली है। आधे दर्जन नए मंत्रियों के जल्द शामिल किए जाने की चर्चा है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में सामाजिक समीकरण को साधने के लिए यह कवायद की जाएगी|

हाल के दिनों में एससी-एसटी एक्ट को लेकर दलितों ने मोदी सरकार के खिलाफ असरदार आंदोलन किया है| दो अप्रैल को दलितों का असरदार भारत बंद तो था ही, उसके साथ ही दलित नेता जीतन राम मांझी ने भी एनडीए का दामन छोड़ राजद के साथ जा चुके हैं| सूत्रों के मुताबिक, नीतीश की कोशिश दलितों में पैठ बढ़ाने और गैर यादव अन्य पिछड़ा वर्ग को ज्यादा प्रतिनिधित्व देने की है| ताकि दलितों के बीच एक अच्छा सन्देश जाए और पार्टी का आधार मजबूत हो| इसी के मद्देनजर श्याम रजक और कांग्रेस छोड़ कर जेडीयू का दामन थामने वाले अशोक चौधरी कैबिनेट के रेस में सबसे आगे नजर आ रहे हैं|

मंजू वर्मा नीतीश सरकार में एकलौती महिला मंत्री थी| उसके इस्तीफा के बाद नीतीश कैबिनेट में महिला प्रतिनिधित्व ख़त्म हो गया है| महिला को प्रतिनिधित्व देने के लिए एक महिला मंत्री बनना तय है| बीमा भारती, रंजू गीता या लेसी सिंह इसके प्रबल दावेदार हैं|

इसके साथ ही मंजू वर्मा कुशवाहा समाज से आती है| इस समाज के वोट बैंक बार अभी सभी पार्टियों का नजर है| कुशवाहा समाज का समर्थन नीतीश कुमार को मिलता रहा है| मगर अब इस वोट बैंक पर अब कई लोग दाबा कर रहे हैं| नीतीश कुमार इस समाज को साधने के लिए मंजू वर्मा के जगह किसी दुसरे कुशवाहा नेता को ही मंत्रिमंडल सामिल करेंगे| कुशवाहा जाति से कई नेता इसके दावेदार हो सकते हैं, जिनमें अभय कुशवाहा और उमेश कुशवाहा शामिल हैं|

अभय कुशवाहा को युवा जदयू की कमान दे दी गई है और वह जिस मगध प्रमंडल से आते हें वहां से कृष्णनंदन वर्मा इस समाज से पहले ही मंत्री बने हुए हैं, इसलिए उत्तर बिहार के किसी कुशवाहा नेता को यह पद मिल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। भाजपा का कोटा लगभग पूरा हो गया है। नीतीश कैबिनेट में रालोसपा को कोई जगह नहीं मिली है। अगर एनडीए के केंद्रीय नेतृत्व का दबाव पड़ा तो रालोसपा के सुधांशु शेखर को भी मंत्री बनाया जा सकता है।

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2020 में नीतीश कुमार को खुद बिहार के मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी छोड़ देनी चाहिए: उपेन्द्र कुशवाहा

लोकसभा और बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक क्या आया, बिहार के राजनीति में बयानबाजी का दौर चल पड़ा है| एनडीए के सहयोगी और केंद्रीय राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने बिहार के मुख्यमंत्री को लेकर बड़ा बयान दिया है| एक नीजी चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि 2020 में नीतीश कुमार को खुद मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी छोड़ देनी चाहिए।

उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि नीतीश कुमार ने पंद्रह साल तक बिहार की सत्ता संभाली, अब किसी और को भी काम करने का मौका मिलना चाहिए। पंद्रह साल बहुत होते हैं। नीतीश कुमार को अब बड़ी राजनीति करनी चाहिए और खुद ही सीएम का पद छोड़ देना चाहिए। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि नीतीश कुमार ने तीन कार्यकाल में जितना विकास करना था कर लिया। अब उन्हें इससे आगे की राजनीति करनी चाहिए।

कुशवाहा के इस बयान से बिहार का राजनितिक पड़ा काफी गर्म हो चुका है| अपने सबसे बड़े नेता पर कुशवाहा के कटाक्ष पर जेदयू भड़क चुकी है| उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कड़ी आपत्ति जाहिर की और कहा कि नीतीश कुमार किसी नेता या एक विधायक वाली पार्टी के नेता की वजह से सीएम नहीं बने हैं बल्कि बिहार की जनता ने नीतीश कुमार को सीएम बनाया है| केसी ने कहा कि कुशवाहा की पार्टी के कई नेता कांग्रेस और आरजेडी में टिकट के लिए लाइन लगाकर खड़े हैं ऐसे में एनडीए के अन्य दल कुशवाहा के बयान पर अपना स्टैंड साफ करें|

गौरतलब है कि नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा बिहार में कभी एक साथ राजनीति करते थे लेकिन पिछले दो दशक से उनकी राहें अलग-अलग हो चुकी हैं। उपेन्द्र कुशवाहा को घोर नीतीश विरोधी समझा जाता है| जब से एनडीए में नीतीश की घर वापसी हुई है, तभी से रालोसपा गठबंधन में असहज महसूस कर रही है| बता दें कि उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी पिछले दिनों नीतीश कुमार के नेतृत्व में आगामी चुनाव लड़ने से इनकार कर चुकी है। उनकी पार्टी के नेता नागमणि ने कहा था कि उनके नेता नीतीश कुमार नहीं हो सकते हैं। रालोसपा उपेन्द्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार के रूप में लगातार प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रही है|

बिहार के राजनीति में अभी और रोमांच आने को बाकि है| अभी आप देखते रहिये..

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उपेन्द्र कुशवाहा की डिमांड से एनडीए में आ सकता है भूचाल, कट सकता है नीतीश कुमार का पत्ता

चुनाव नजदीक आते ही बिहार की राजनीति दिलचस्प होती जा रही है| सीटों के बटवारे के लिए एनडीए में घमासान मचा हुआ है| बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बिहार आकर बंद कमरा में नीतीश कुमार से समझौता किया ही था कि एनडीए के दुसरे घटक दल रालोसपा ने अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर कर बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए की मुसीबत फिर से बढ़ा दी|

उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी ने एनडीए में जदयू से अधिक सीटों की डिमांड रख दी है| यही नहीं, आरएलएस ने नीतीश कुमार को नहीं बल्कि उपेन्द्र कुशवाहा को 2020 विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा भी घोषित करने की मांग रख दी है|

रालोसपा के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि पिछले 4 सालों में उनकी पार्टी का कद काफी बढ़ा है ऐसे में  उन्हें जनता दल युनाइटेड(जदयू) से ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए।

रालोसपा के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता जितेंद्र नाथ ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया कि जदयू और भाजपा के बीच सीट शेयरिंग को लेकर काफी बातें हुई है। उपेंद्र कुशवाहा बिहार की राजनीति के भविष्य हैं। बिहार में एनडीए का चेहरा बनाना चाहिए। जितेंद्र नाथ ने कहा कि जदयू ने पिछली बार लोकसभा में दो सीटें जीती थी जबकि रालोसपा ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे जीता भी।

गौरतलब है कि रालोसपा और आरजेडी नेतृत्व के बीच दो बैठकें हुई हैं। राजद के एक सूत्र की मानें तो रालोसपा ने छह से सात सीटों की मांग की थी। भाजपा की तुलना में राजद निश्चित रूप से रालोसपा को ज्यादा सीटों की पेशकश करेगी।

चार साल बाद नीतीश की हुई घर वापसी, जदयू एनडीए में हुआ सामिल

जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आज साढ़े दस बजे पटना में शुरु हो चुकी है। बैठक में जदयू के सभी आमंत्रित सदस्य शामिल हैं। बैठक मुख्यमंत्री आवास, 1 अणे मार्ग पर शुरू हुई है। बिहार के राजनीति में नाटकीय घटनाक्रम के साथ चार साल बाद फिर से जदयू एनडीए में सामिल हो गया | बैठक में जदयू नेता केसी त्यागी ने एनडीए में शामिल होने का प्रस्ताव रखा जो सर्वसम्मति से पारित हो गया। हालांकि पार्टी की तरफ से इसकी औपचाकिर घोषणा किया जाना बाकी है|

इसके साथ ही अब नीतीश कुमार के नेतृत्‍व में जदयू के केंद्र में बीजेपी के नेतृत्‍व वाले राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्‍सा बनने का रास्‍ता साफ हो गया है. दरअसल हाल में बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह ने नीतीश कुमार को एनडीए में शामिल होने का औपचारिक आमंत्रण दिया था. यह आमंत्रण नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ गठबंधन करने के बाद दिया गया था|

अब एनडीए में शामिल होने के साथ ही इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी के अगले कैबिनेट विस्‍तार में जेडीयू को भी जगह मिल सकती है और इसके कोटे से दो मंत्रियों को बनाया जा सकता है|

शरद और नीतीश गुट के लोग आपस में भिड़े 

इससे पहले पार्टी में जारी आंतरिक कलह अब हिंसक रूप लेने लगा है| शनिवार को इसकी बानगी पटना की सड़कों पर देखने को मिली जब सीएम हाउस के ठीक बाहर शरद और नीतीश गुट के लोग आपस में भिड़ गये| शनिवार को जेडीयू में बैठकों का दौर है| इसके लिये दोनों खेमों ने तैयारियां भी कर रखी थीं|

हालांकि राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में बगावती तेवर अपनाने वाले शरद यादव ने हिस्‍सा नहीं लिया| नीतीश के आवास पर आयोजित राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान शरद यादव और लालू प्रसाद यादव के समर्थकों को बाहर विरोध में नारेबाजी करते देखा गया| नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ हाथ मिलाने और महागठबंधन को तोड़ने के फैसले के खिलाफ शरद यादव ने बगावत का बिगुल बजा दिया है| भाजपा से हाथ मिलाने के नीतीश के फैसले का विरोध कर रहे शरद यादव के करीबी नेता भी एस के मेमोरियल हॉल में ‘जन अदालत’ नाम का एक कार्यक्रम करेंगे| दोनों बैठकों से साफ हो जाता है कि जदयू में दरार पड़ चुकी है और पार्टी टूट की ओर बढ़ रही है|

 

अब ‘विकसित बिहार’ के सपने को पूरा करेंगे मोदी और नीतीश! जानिए इसकी पांच वजहें

पीएम नरेंद्र मोदी जब एनडीए के प्रधानमंत्री उम्मीदवार थे, तो बिहार में एक चुनावी महारैली को संबोधित करते हुये विकसित बिहार की बात कही थी. चुनाव के बाद मोदी पीएम बन भी गये. सबका साथ एवं सबका विकास की नीति के साथ आगे बढ़ने लगे. पीएम मोदी के बिहार के विकास ड्रीम को तब धक्का लगा, जब बिहार के विधानसभा चुनाव में नीतीश एवं लालू की दोस्ती के कारण महागठबंधन की सरकार बन गयी. इस सरकार के बनने के साथ ही बिहार केंद्र सरकार की योजना से दूर हो गया. लेकिन अब बिहार के सत्ता का मानचित्र बदल गया है. नीतीश एवं लालू की दोस्ती टूटने के बाद अब बिहार में एक बार फिर भाजपा एवं जेडीयू की सरकार नीतीश के ही नेतृत्व में बनी है. पीएम मोदी ने इसके लिए नीतीश कुमार को बधाई भी दी है. लेकिन अब बिहार की जनता पीएम द्वारा किये गये वादों को याद कर रहे हैं. शुक्रवार को नीतीश ने विधानसभा में विश्वास मत भी हासिल कर लिया. इसके साथ ही अब नीतीश कुमार के पास बिहार के विकास को लेकर काम करने का शानदार मौका है. क्योंकि पीएम हमेशा से विकास की बात करते रहें हैं. अपने काम के दम पर सुशासन बाबू के नाम से भारतीय राजनीति में अपनी पहचान कायम करने वाले नीतीश कुमार के पास अब आर्थिक रुप से पिछड़े बिहार को आगे बढ़ाने का मौका मिल चुका है.

 

ये 5 ऐसे कारण, जो बदल सकते हैं बिहार की तस्वीर


 

1. पैकेज पहुंचने की उम्मीद- मोदी के विकास ड्रीम को कैसे मिलेगी मदद?

2014 में केंद्र में सरकार बनाने के बाद नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने 2015 में बिहार जीतने के भरसक कोशिश की. पर नीतीश-लालू के साथ आने से ऐसा हो नहीं पाया. पर बिहार में सरकार बनाने का अंतिम लक्ष्य 2017 में ही सही, हासिल हो गया. ऐसे में मोदी ने जो बिहार से विकास का वादा किया था, अब उन्हें पूरा करने का वक्त आ गया है.

नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ बिहार में पहला कार्यकाल शानदार रहा था. सड़क और बिजली पर उन्होंने अच्छा काम किया था. ऐसे में अगर अब मोदी सरकार बिहार का साथ देती है तो राज्य की तस्वीर बदल सकती है. मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान 125,000 करोड़ देने का वादा किया था. बता दें कि पिछले दिनों एक आरटीआई में खुलासा हुआ था कि सरकार ने अभी तक इस ऐलान से कोई भी फंड नहीं जारी किया है.

2. लुक ईस्टः पिछड़े पर ज्यादा ध्यान, बीजेपी की सबसे बड़ी पॉलिसी!

बीजेपी यूपी के बाद लुक ईस्ट पॉलिस के तहत बड़े राज्यों पर फोकस किए हुए है. बीजेपी किसी भी कीमत पर आने वाले दिनों में ईस्ट के राज्यों- बंगाल, बिहार में अपनी पकड़ मजबूत रखनी चाहती है. इसमें मदद कर सकता है, बिहार में नीतीश कुमार का शासन. मोदी अपने बयानों में कई बार इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि देश के पश्चिमी राज्यों की तरह वे पूर्वी राज्यों को भी विकास की गाड़ी पर बैठाना चाहते हैं. ऐसे में अगर इस ओर गंभीरता से कुछ काम होता है तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में इसका सबसे बड़ा और पहला फायदा बिहार को ही होगा.

3. दिल्ली-बिहार में समानता- 19 साल बाद बना ये संयोग

19 साल बाद ऐसा हो रहा है कि बिहार और दिल्ली में एक ही पार्टी या गठबंधन की सरकार है. ऐसे में यूपी के साथ बिहार में भी मोदी सरकार अपने विकास के वादे से बच नहीं सकती.

4. छवि का फायदाः मोदी-नीतीश दोनों विकास को देते हैं तरजीह

नीतीश भले ही राजनीतिक तौर पर कई बार चौंकाने वाले झटके दे चुके हैं पर शासन चलाने में उनकी शैली भी मोदी की तरह ही है. उनका भी ज्यादा जोर विकास पर ही रहा है. पहला कार्यकाल इसका उदाहरण रहा है. इसके चलते जंगल राज कहे जाने वाले बिहार में अपहरण, हत्या जैसे मामले कम भी हुए थे. राजनीतिक उठापटक के कारण नीतीश खुद की खई जमीन तलाशने की कोशिश करेंगे, ऐसे में विकास के अलावा उनके पास कोई दूसरा बड़ा विकल्प नहीं होगा.

5. मजबूत विपक्ष-तेजस्वी का रोल भी बढ़ेगा

चाचा नीतीश कुमार के साथ भले ही लालू के दूसरे बेटे तेजस्वी को सत्ता चलाने का तरीका आया हो या नहीं पर उनके पास मजबूत विपक्ष का रोल प्ले करने का मौका है. वे चाहें तो आरजेडी के 87 विधायकों के साथ बिहार में जेडीयू-बीजेपी की सरकार को परेशान कर सकते हैं. ऐसे में विपक्ष के दबाव में इस सरकार को प्रदर्शन करना ही होगा. बिहार में एक मजबूत विपक्ष लंबे समय से नहीं है. नीतीश ने कहा था कि लालू उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं, ऐसे में उनके पास अब ये बहाना भी नहीं होगा.

 

Inside Story: नीतीश के लिए भाजपा को इतना क्यों आ रहा है प्यार और क्यों महागठबंधन में बढ़ रहा है तकरार

कहा जाता है कि दिल्ली में सत्ता का रास्ता बिहार और यूपी से गुजरता है । 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ी कामयाबी इन्ही दो राज्यों में मिले थे । यूपी विधानसभा चुनाव जीत बीजेपी ने 2019 के लिए अपना रास्ता तो साफ कर लिया है मगर रास्ते में अभी एक चुनौती मौजूद है और वह है बिहार । पूरे देश में मोदी हवा चला मगर लालू-नीतीश की दोस्ती ने मोदी हवा को बिहार में रोक दिया ।

 

भाजपा किसी भी हालत में बिहार में महागठबंधन को तोड़ना चाहती है। यूपी चुनाव के बाद महागठबंधन में चल रहें खटपट भी बीजेपी को काफी पसंद आ रहा है।

सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी पर नीतीश कुमार का मोदी सरकार का साथ देना भले ही लालू यादव पर दबाव बनाने की राजनीति हो मगर बीजेपी इसको एक अवसर के रूप में देख रही है।

 

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का खुले तौर पर नीतीश की प्रशंसा करना हो या खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शराबबंदी पर नीतीश के तारीफ में पूल बांधना । ये सब यू ही नहीं हुआ बल्कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया है।

 

दरअसल बीजेपी एक तीर से कई निशाना लगाना चाहती है । बीजेपी किसी भी तरह महागठबंधन को तोड़ना तो चाहती ही है साथ ही नीतीश कुमार को अपने साथ जोड़ना चाहती है । इसमें तो कोई सक नहीं की बिहार जीत के बाद नीतीश कुमार मोदी के सामने सबसे बड़े विपक्षी नेता के तौर पर राष्ट्रीय राजनीति में उभर के आए है तो शराबबंदी और प्रकाशपर्व के बाद बिहार के साथ ही देश में भी अपनी सकारात्मक छवि बनाने में कामयाब हुए है। नीतीश कुमार के साथ आने से बीजेपी को बिहार में फिर से एक चेहरा तो मिल ही जायेगा साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में भी मोदी को चुनौती देने वाला विपक्ष खत्म हो जायेगा । इसीलिए कई बड़े नेताओं द्वारा नीतीश को एनडीए में सामिल होने का निमंत्रण भी मिल चुका है।

 

सब जानते है कि भले लालू यादव और नीतीश सरकार में साथ है मगर दोनों एक दुसरे को कमजोर करने में लगें है। यह मजबूरी का गठबंधन है । अगर आपको कुछ दिनों में महागठबंधन टूटने की खबर मिले और विकास के नाम पर या बीजेपी के किसी विशेष पैकेज के बहाने नीतीश कुमार के घर वापसी की खबर आए तो हैरान नहीं होईयेगा ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाह आजकल हर रोज बिहार के किसी न किसी सरकारी विद्यालय में स्वयं जाकर स्थिति देख रहे है

औरंगाबाद:  केंद्रीय मानव संसाधन विकाश राज्य मंत्री श्री उपेंद्र कुशवाहा जी आजकल बिहार दौरे पर हर दिन एक सरकारी विद्यालय में जाकर उनके स्थिति का जायजा लेते है और समस्याओं के समाधान करते है।

एक सरकारी स्कूल उपेंद्र कुशवाहा

एक सरकारी स्कूल उपेंद्र कुशवाहा

जून को सासाराम के नोखा प्रखंड में सुबह 7 बजे श्रीखिंडा गांव के जलिमटोला उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय के औचक निरीक्षण को पहुंचे तो वहां की तस्वीर देख कर खुद मंत्री जी भी दंग रह गए।

 

रियलिटी चेक करने के दौरान काराकट स्कूल से शिक्षक नदारद मिले। वहां उपस्थित बच्चों से केंद्रीय मंत्री ने जब समस्या पूछी तो बच्चों ने कहा, मास्टर साहेब कभी आठ बजे तो कभी 9 बजे आते हैं। जबकि स्कूल 6.30 बजे खुल जाता है। केन्द्रीय
शिक्षा मंत्री कुशवाहा करीब 1 घण्टा यानि 8 बजे सुबह तक विद्यालय में रहे लेकिन कोई भी शिक्षक नहीं पंहुचा।

मंत्री कुशवाहा ने प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी से बात कर के इस मामले में कारवाई करने के लिए कहा। केंद्रीय मंत्री ने बिहार की
शिक्षा वयवस्था पर रोष व्यक्त करते हुए कहा की राज्य में शिक्षा पूरी तरह से चौपट हो गई है। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात तो दूर उनको सामान्य शिक्षा भी नसीब नहीं है।

मिड डे मील खाते हुए

मिड डे मील खाते हुए

केंद्रीय मंत्री अपने संसदीय क्षेत्र काराकट के ग्रामीण क्षत्रों के दौरे पर हैं। इससे पहले कुशवाहा ने रात्रि विश्राम श्रीखिंडा गांव के
ही मध्य विद्यालय में किया। हालांकि जब मंत्री ने सीधे शिक्षक से स्कूल न आने का कारण पूछा तो टीचर ने बारिश का बहाना बना डाला।

 

विरले कोई तस्वीर या ख़बर आती है जहाँ कोई केंद्रीय मंत्री स्कूल जाता हो, बच्चों से मिलता हो, मिड डे मील चखता हो, परिजनों से बात करता हो और यह कार्य करते समय समस्या के समाधान के लिए समर्पित रहता हो, न कि इंस्पेक्टर बन रौब जमाकर चला आता हो।

upendra Kushwaha

स्वभाव से ही नही बल्कि प्राध्यापक रहे केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा जी आजकल हर रोज किसी न किसी विद्यालय में स्वयं जाकर स्थिति देखते है, सभी stakeholders से संवाद करते और व्याप्त कमियों को दूर करने हेतु पहल कर रहे है।

ससे भी ज्यादा ख़ुशी इस बात की है कि वे एक नजीर पेश कर रहे है। हर जनप्रतिनिधि ठान लें कि पड़ोस का विद्यालय ही सही, हम जाए, देखे और उसे बेहतर करने के लिए पहल करें तो सरकारी विद्यालयों की स्थिति बेहतर होगी। विद्यालय और समाज का संबंध फिर से मजबूत करने की जरूरत है ताकि सरकारी विद्यालय पढ़ने और पढ़ाने की एक बेहतर जगह बन सकें।