केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाह आजकल हर रोज बिहार के किसी न किसी सरकारी विद्यालय में स्वयं जाकर स्थिति देख रहे है

औरंगाबाद:  केंद्रीय मानव संसाधन विकाश राज्य मंत्री श्री उपेंद्र कुशवाहा जी आजकल बिहार दौरे पर हर दिन एक सरकारी विद्यालय में जाकर उनके स्थिति का जायजा लेते है और समस्याओं के समाधान करते है।

एक सरकारी स्कूल उपेंद्र कुशवाहा

एक सरकारी स्कूल उपेंद्र कुशवाहा

जून को सासाराम के नोखा प्रखंड में सुबह 7 बजे श्रीखिंडा गांव के जलिमटोला उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय के औचक निरीक्षण को पहुंचे तो वहां की तस्वीर देख कर खुद मंत्री जी भी दंग रह गए।

 

रियलिटी चेक करने के दौरान काराकट स्कूल से शिक्षक नदारद मिले। वहां उपस्थित बच्चों से केंद्रीय मंत्री ने जब समस्या पूछी तो बच्चों ने कहा, मास्टर साहेब कभी आठ बजे तो कभी 9 बजे आते हैं। जबकि स्कूल 6.30 बजे खुल जाता है। केन्द्रीय
शिक्षा मंत्री कुशवाहा करीब 1 घण्टा यानि 8 बजे सुबह तक विद्यालय में रहे लेकिन कोई भी शिक्षक नहीं पंहुचा।

मंत्री कुशवाहा ने प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी से बात कर के इस मामले में कारवाई करने के लिए कहा। केंद्रीय मंत्री ने बिहार की
शिक्षा वयवस्था पर रोष व्यक्त करते हुए कहा की राज्य में शिक्षा पूरी तरह से चौपट हो गई है। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात तो दूर उनको सामान्य शिक्षा भी नसीब नहीं है।

मिड डे मील खाते हुए

मिड डे मील खाते हुए

केंद्रीय मंत्री अपने संसदीय क्षेत्र काराकट के ग्रामीण क्षत्रों के दौरे पर हैं। इससे पहले कुशवाहा ने रात्रि विश्राम श्रीखिंडा गांव के
ही मध्य विद्यालय में किया। हालांकि जब मंत्री ने सीधे शिक्षक से स्कूल न आने का कारण पूछा तो टीचर ने बारिश का बहाना बना डाला।

 

विरले कोई तस्वीर या ख़बर आती है जहाँ कोई केंद्रीय मंत्री स्कूल जाता हो, बच्चों से मिलता हो, मिड डे मील चखता हो, परिजनों से बात करता हो और यह कार्य करते समय समस्या के समाधान के लिए समर्पित रहता हो, न कि इंस्पेक्टर बन रौब जमाकर चला आता हो।

upendra Kushwaha

स्वभाव से ही नही बल्कि प्राध्यापक रहे केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा जी आजकल हर रोज किसी न किसी विद्यालय में स्वयं जाकर स्थिति देखते है, सभी stakeholders से संवाद करते और व्याप्त कमियों को दूर करने हेतु पहल कर रहे है।

ससे भी ज्यादा ख़ुशी इस बात की है कि वे एक नजीर पेश कर रहे है। हर जनप्रतिनिधि ठान लें कि पड़ोस का विद्यालय ही सही, हम जाए, देखे और उसे बेहतर करने के लिए पहल करें तो सरकारी विद्यालयों की स्थिति बेहतर होगी। विद्यालय और समाज का संबंध फिर से मजबूत करने की जरूरत है ताकि सरकारी विद्यालय पढ़ने और पढ़ाने की एक बेहतर जगह बन सकें।

 

 

 

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