बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल, उनकी पत्नी और उनकी मां को भी हुआ कोरोना

चुनाव जीतने के चक्कर में नेता खुद को और अपने परिवार को खतरे में डाल ही रहे हैं, इसके साथ अन्य लोगों को भी कोविड- 19 के चपेट में ला रहे रहें। ताज़ा उदाहरण बिहार बीजेपी का मुख्यालय है, जहां अभी तक 70 से भी ज्यादा पॉजिटिव केस निकल चुका है। अभी खबर आ रही है कि – प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल भी कोरोना संक्रमित हो गए हैं। संजय जायसवाल की पत्नी और मां की रिपोर्ट भी कोरोना पॉजिटिव आई है।

इससे पहले पार्टी के पांच अन्य पदाधिकारी भी कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। बिहार में कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ज्ञात हो इसके साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास से भी कोविड- 19 के कई मामले आए चुके हैं। बिहार के मुख्य सचिव के कार्यालय में पॉजिटिव केस मिलने के बाद वे आज कल अपने घर से काम कर रहे हैं।

इस सब के बावजूद बीजेपी अपने कार्यालय से वर्चुअल रैली जारी रखी हुई है। सरकार के सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान के साथ विपक्ष के तमाम नेता राज्य में विधानसभा टालने की बात कह रही है। मगर कोरोना के इतने गंभीर स्थिति होने के बाद भी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं।

इधर, नेता प्रतिपक्ष व राजद नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा है कि बिहार प्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व विधायकों समेत कई बड़े नेता संक्रमित हो चुके हैं। उन्होंने बिहार में कोराना संक्रमण फैलाने का भाजपा के ऊपर आरोप लगाया है।ते ने अपने ट्वीट में स्वास्थ्य मंत्री पर भी निशाना साधा है।

बाढ़ दर्शन: हमारा गांव नेपाल के सीमा से सटल है, बाढ़ से हमलोगों का पुराना याराना है

हमारा गांव नेपाल के सीमा से सटल है. बाढ़ से हमलोगों का पुराना याराना है. लगातार बारिश आ नेपाल के पानी छोड़ला से गाँव में पानी घुसना शुरू हो गया है. बाढ़ का पानी महंगा शराब के तरह धीरे-धीरे चढ़ता है. भोर में देखने गए तो पुल के उसपार थोड़ा-बहुत पानी चल रहा था. सांझ को घूमने गए तो पुल के इस पार भी पानी हरहरा रहा है. एकदम गन्दा पानी. खर-पतवार आ झाग से भरल. बह रहा है अपना गति में. उसको कोई मतलब नहीं कि लॉकडाउन है, कोरोना का आफतकाल है, आगे थाना का गाड़ी लागल है. केकरो से कोई मतलब नहीं. बहना है तो बहना है. एकदम अपना मौज में. आप रोक लीजिएगा..?

बाढ़ देखने के लिए लोग सब का आना-जाना बढ़ गया है. मोटरसायकिल पर बैठ-बैठ के सपरिवार आ रहा है सब बाढ़ देखने. किसी को अपना खेत का चिंता है तो किसी को अपना गाछी का. सब सड़क पर खड़ा होकर माथा पर हाथ रखले देख रहा है.

दू गो नया खून वाला लईका अपना पल्सर ऊ बाढ़ के बहाव में धो रहा है. देखादेखी एगो टेम्पू वाला भी बीच में टेम्पू खड़ा करके हाथे से धोने लगा. पुलिया से चार ठो लंगटा बच्चा नाक बंद करके सीधा धार में पलटी मार दे रहा है. ई सबको स्विमिंग का सही प्रैक्टिस करवाया जाए ता भारत को केतना पदक दिलवाएगा. उधर मछुआरा सब पानी में जाल पर जाल फेंक रहा है. सावन का महीना हो चाहे भादो का, आज मछरी लेकर ही घरे जाना है. उधर चाची घरे सिलौटी पर सरसों पिस रही होगी आ इधर तीन बार जाल से खाली कीचड़ में सनाएल गोल्डस्टार का फटल जूता आ पेप्सी का बोतल निकला है. पिसायल मसल्ला पर जे ई परोर चाहे कद्दू लेकर घरे पहुँचे ता सिलौटी पर इनको पीस दिया जाएगा. बेचारे इसी डर से बीस बार जाल फेंक दिया है..!

वाह रे जमाना. बाढ़ के साथ सेल्फी लिया जा रहा है. तुरन्त फेसबुक पर फीलिंग एंजोयिंग विद बाढ़ इन माय भिलेज के नाम से चेपा जाएगा. लोग कमेंट भी कर देगा नाइस बाढ़ डियर.

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चलिए अब घर चला जाए. भीगी-भीगी सड़कों पे केंचुआ सब ससरने लगा है. झींगुर ब्रो सब का झन-झन डीजे शुरू हो रहा है. लौटते समय खेत के आड़ी पर महेन चा भेंटा गए. कमर में गमछा बन्हले, कंधा पर कुदाल रखले किसी को डीलिंग दे रहे है. “सब साला ई नेपाल का खचरपनी है. कल रात तक एक बूंद पानी नहीं था. आज देखिए, राता-रात पानी ठेल दिया ससुरा..”

महेन चा का गुस्सा वाजिबो था. परसों ही देखे थे केतना मेहनत से दिन भर खेत में बीचड़ा लगाए थे. आज सब डूब गया.

हम बोले चचा ई ता गड़बड़ा गया. चचा खैनी रगड़ते बोले “का गड़बड़ाएगा बबुआ, पानी ससर गया ता ठीक है आ कहीं चार दिन ठहर गया तो सारा बीचड़ा सड़ जाएगा.” हम फिर टप्प से पूछ दिए “सड़ जाएगा तब का होगा.?” चचा हंसते बोले “होगा का बचवा, होइहें वही जो राम रची राखा..” चचा खैनी मुंह में दबाए, गमछा टाइट किए आ कंधे पर कुदाल रखकर गुनगुनाते चल दिए “भँवरवा के तोहरा संघे जाई..”

– Aman Aakash

बिहार के तथागत को मिले न्याय: सबसे कम उम्र के आईआईटी प्रोफेसर को नौकरी से निकला गया

बचपन में एक नाम बहुत सुनने को मिलता था- तथागत अवतार तुलसी. बेहद कम उम्र में बड़ी बड़ी डिग्रियां लेने वाला एक मेधावी विद्यार्थी. बिहार में जन्में तुलसी महज 12 वर्ष में एमएससी और 22 वर्ष की उम्र में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस से पीएचडी करने में सफल रहे. ये पहले भी हो सकता था मगर बीच में ब्रेक लेने की वजह से देरी हुई.

बाद में मैंने अधिक फॉलो नही किया. इसी बीच बिहार के एक मेधावी विद्यार्थी सत्यम ने महज 12 वर्ष की उम्र में IIT पास की और IIT में दाखिला लिया तो उत्सुकता हुई कि तथागत क्या करते है जाने. इसी बीच सत्यम फेसबुक के जरिये जुड़े तो तथागत के साथ देखा उनकी तस्वीर (see the photo). पता चला तथागत IIT-Mumbai में पढ़ाते है. (सत्यम IIT कानपुर से पढ़ाई पूरी कर अमेरिका के टेक्सास यूनिवर्सिटी से अभी पीएचडी कर रहा है.)

इसी बीच कल ख़बर आई कि IIT मुंबई ने तथागत को नौकरी से निकाल दिया है. ख़बर की माने तो मुंबई का मौसम उन्हें सूट नही कर रहा था. बीमार चल रहे थे. IIT दिल्ली में अपना ट्रांसफर करवाना चाहते थे. लेकिन IIT में तबादले की नीति न होने की वजह से ऐसा संभव नही हुआ.

सत्यम और तथागत तुलसीये पूरा वाकया अजीब सा लगता है. IIT में एक जगह से दुसरे जगह तबादले क्यों नही हो सकते! दूसरी बात मुंबई से दिल्ली आने का निर्णय व्यक्तिगत तौर भी आसान नही लगता. मुझे जितना पता है IIT मुंबई का ब्रांड वैल्यू किसी भी IIT से कही अधिक है और आर्थिक राजधानी होने की वजह से विद्यार्थीयों में खड़गपुर और मुंबई में किसे चुने, इसमें वे अपनी वरीयता मुंबई को ही देना ज्यादा पसंद करते है. दिल्ली आने के निर्णय में MHRD और IIT को सहयोगी बनना चाहिए था.

एक वैसे समय में जब देश में गिने-चुने IIT है, एक संस्थान से दुसरे संस्थान में तबादले की स्पष्ट नीति का बनना बेहद जरुरी है. हो सकता है शोध कार्य को वरीयता देने की वजह से यह सामान्य स्थिति में संभव न हो तो विशेष परिस्थितियों में तो संभव हो ही सकता है.

नोबल पुरस्कार जीतने का ख़्वाब रखने वाले तथागत का फिजिक्स के प्रति दीवानापन है. तथागत फिलहाल कोई चमत्कारिक बातों के लिए ख़बरों में नही आ रहे है, इसमें कोई दिक्कत नही है, लेकिन यह नया डेवलपमेंट जरुर चिंता का विषय है.

यहाँ बताता चलू कि तथागत प्रधानमंत्री मोदी के बड़े फैन है और वर्ष 2012 में हुई मुलाकात के किस्से गाहे बगाहे साझा करते रहते है. तथागत 2012 में अपने रिसर्च कार्य में मिली विफलता के बाद हुए निराशा से उबरने में मोदी जी से मिले प्रेरणा को मुख्य वजह बताते है.

वैसे समय में जब मोदी जी की सरकार है तो इस एक प्रतिभावान अध्यापक की प्रतिभा जाया न हो, इसकी चिंता सक्षम लोगों को जरुर करनी चाहिए. तथागत से देश के अनेकों युवा कम उम्र में ही बड़ा करने का स्वप्न देखने की प्रेरणा पाते है, ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व के साथ देश अन्याय नही करेगा, यही उम्मीद है.

– अभिषेक रंजन (लेखक सामजिक कार्यकर्ता हैं और गाँधी फेल्लो रह चुके हैं)

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बिहार के राजीव कुमार बने अमेरिकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के एमडी

जिन लोगों को यह लगता है कि बिहार के लोग सिर्फ सरकारी नौकरी में अच्छा करते हैं, उनकों बिहार के 51 वर्ष के राजीव कुमार के बारे में पढ़ना चाहिए| अमेरिकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट इंडिया ने पांच दिन पहले 10 सितंबर को उन्हें अपना नया एमडी बनाया है।

राजीव कुमार 27 सालों से माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में अलग-अलग पदों पर काम कर चुके हैं| उनकी मेहनत और लगन को देखते हुए अब राजीव को माइक्रोसॉफ्ट हेड बनाया गया है|

इन 27 सालों में राजीव ने अहम पदों पर रहते हुए बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियां संभाली हैं| उन्होंने स्मार्टफोन पर एमएस वर्ड, एक्सल, पावर प्वॉइंट समेत पूरा ऑफिस लाकर यूजर को जहां बड़ी राहत दी, वहीं भारत में क्लाउड को फोकस कर नया डेटा सेंटर बनाने में भी बड़ी भूमिका अदा की।

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राजीव मूलत: बिहार के भागलपुर के रहने वाले हैं। अपने घरवालों के बीच राजू के नाम से जाने जाने वाले राजीव बड़ी जिम्मेदारी लेने के बाद अपने माता-पिता से आशीष लेने भागलपुर में शंकर टॉकिज स्थित अपने घर पहुंचे| मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजीव ने बताया कि जब उनकी मास्टर डिग्री पूरी हुई थी तो उन्हें दो बड़ी कंपनियों में कैम्पस प्लेसमेंट के जरिए काम करने का मौका मिला था|

कैम्पस प्लेसमेंट के दौरान एक ऑयल कंपनी राजीव को 59 हजार डॉलर ऑफर कर रही थी, तो वहीं माइक्रोसॉफ्ट ने उन्हें 28 हजार डॉलर का ऑफर दिया था, पर राजीव ने दोगुना सैलरी का ऑफर ठुकराते हुए माइक्रोसॉफ्ट को चुना| राजीव ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे एक नई कंपनी के साथ जुड़कर खुद को साबित करना चाहते थे|

ज्ञात हो कि राजीव का जन्म बिहार स्थित बौंसी के जबरा गांव में 20 दिसंबर 1968 को हुआ। पिता झारखंड के साहेबगंज स्थित सेंट जेवियर्स स्कूल में शिक्षक थे। मां वृंदा देवी, बहन विजया चौधरी और बड़े भाई कैलाश जायसवाल में ही उनकी पूरी दुनिया सिमटी थी। अच्छी तालीम की इच्छा थी तो पिता ने अपने ही स्कूल में दाखिला करवा दिया। 10वीं तक पढ़ाई के बाद कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन वहां हॉस्टल में कमरा नहीं मिलने पर राजीव ने कई रातें रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग रूम में भी बिताई।

 

KBC सीजन 11 का पहला करोड़पति बना सनोज जहानाबादी, सात करोड़ जीतने के करीब

कौन बनेगा करोड़पति सीजन 11 को अपना पहला करोड़पति कंटेस्टेंट मिल गया है| कौन बनेगा करोड़पति में अब वह दौर खत्म हो गया जब सिर्फ महानगर के लोग ही अपनी प्रतिभा का जलवा बिखेरते थे। बिहार का सनोज राज 1 करोड़ रुपये जीतने के बाद 7 करोड़ के सवाल पर पहुंच गया है।

जहानाबाद जैसे पिछड़े इलाके के लाल ने मजबूती से अपनी दावेदारी पेश की है। हुलासगंज प्रखंड क्षेत्र के ढोंगरा निवासी सनोज राज केबीसी के टॉप 11 में 1 करोड़ रुपये जीतने के बाद 7 करोड़ के सवाल पर पहुंच गया है।

सनोज राज लोकप्रिय रियलिटी शो “कौन बनेगा करोड़पति” के 11 संस्करण के पहले करोड़पति कंटेस्टेंट हैं। इस हफ्ते आपको बिहार जहानाबाद के रहने वाले सनोज राज 7 करोड़ के सवाल का सामना करते नजर आएंगे। सोनी की ओर से जारी किए गए एक प्रोमो में दिखाया गया है कि अमिताभ बच्चन सनोज राज को बताते हैं कि आप एक करोड़ रुपये जीत चुके हैं। इसके बाद बिग बी उनके सामने 7 करोड़ रुपये का सवाल रखते हैं।

प्रोमो में यह नहीं दिखाया गया है कि वो 7 करोड़ के सवाल का जवाब दे पाते हैं या नहीं। ये एपिसोड गुरुवार और शुक्रवार को प्रसारित होगा।

आप भी गुरुवार और शुक्रवार को ये एपिसो देख सकते हैं। हर बार की तरह ही इस बार भी शो को दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है। ऐसे में एक तरफ जहां कई लोगों की किस्मत बदल रही है तो वहीं कुछ लोग किसी ने किसी सवाल का गलत जवाब देकर बड़ी राशि हारते भी दिख रहे हैं। किसान रामजन्म शर्मा के लाल सनोज राज की कामयाबी से जहानाबाद जिलेवासियों को गर्व हो रहा है।

सनोज बचपन से ही पढ़ने लिखने में मेधावी रहा है। यही कारण है कि एक किसान के बेटा होने के बावजूद भी आर्थिक अभाव को धता बताते हुए उसने पश्चिम बंगाल के वर्धमान से बीटेक की डिग्री प्राप्त की। लेकिन यह होनहार इतने में रूकने वाला कहां था बाद में उनकी नौकरी सहायक कमांडेंट के पद पर हो गई। अभी वे वहीं कार्यरत हैं लेकिन सरोज का सपना है कि वो IAS बनें|

उसके उपरांत वह यूपीएससी की तैयारी में जुट गया। यूपीएससी में भी वह पीटी में सफलता प्राप्त कर चुका है। अपने चाचा नीरज कुमार को आदर्श मानने वाला सनोज बताता है कि किसान पिता ने जिस अभाव में उसे पढ़ाया है उसका कर्ज अदा करना है। हालांकि यह कर्ज वह नौकरी से अदा कर सकता था लेकिन वह अपनी मां कालिदी देवी की उस बातों को याद रखे हुए है जो घरेलू महिला होने के बावजूद भी उससे उस ऊंचाई पर पहुंचने की बात कही थी। जिसमें टेलीविजन पर देखने का मौका मिलता है।

अपनी मां के इस सपने को पूरा करने के लिए इस लाल ने कौन बनेगा करोड़पति में पहला करोड़पति बन गया हैै। लोग इसके लिए दुआ भी कर रहे है कि जिले के लाल केबीसी के पहले 7 करोड़पति कंटेस्टेंट हो।

बता दें कि इस शो में बीते दिनों गोपालगंज बिहार के रंजीत कुमार आए जो 25 लाख रुपये लेकर केबीसी से गए हैं| वह मुगलकाल से जुड़े एक सवाल का सही जवाब नहीं दे सके जिसके कारण वह केवल 25 लाख रुपए ही जीतकर चले गए। वह इलेक्ट्रीशियन हैं और गुडगांव में नौकरी करते हैं| टीवी का पॉपुलर गेम शो ‘केबीसी 11 टीआरपी की रेस में सबसे आगे चल रहा है और हर सप्ताह के साथ इस शो में सवालों और कंटेस्टेंट की मौजूदगी से आने वाले ट्विस्ट लोगों का अटेंशन बनाए हुए हैं।

सैय्यद आसिफ इमाम काकवी

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बिहार के कमल नयन होंगे झारखंड राज्य के नये डीजीपी

अगर आंकड़े देखें तो देश चलाने में बिहारियों के शायद सबसे ज्यादा योगदान होंगा| केंद्र सरकार से लेकर विभिन्न राज्य सरकारों के संस्थाओं में बिहारी अधिकारी महत्वपूर्ण पद पर अपना योगदान दे रहे हैं| एक और खबर बिहार के पड़ोसी राज्य से आ रही| 1986 बैच के झारखंड कैडर के आइपीएस और बिहार निवासी कमल नयन चौबे झारखंड के नया डीजीपी होंगे|

31 मई को डीके पांडेय की सेवानिवृति के बाद कमल नयन चौबे पदभार संभालेंगे। 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी केएन चौबे वर्तमान में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में बीएसएफ नार्दन सेक्टर मुख्यालय में तैनात हैं। सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार ने केएन चौबे की सेवा केंद्र सरकार से मांगी है। केंद्र से सेवा मिलने के बाद डीजीपी पद के लिए अधिसूचना जारी कर दी जाएगी।

बिहार के कैमूर जिला (भभुआ) के निवासी हैं श्री चौबे

मूल रूप से बिहार के कैमूर जिला (भभुआ) के निवासी श्री चौबे की छवि तेजतर्रार अफसर के तौर पर मानी जाती है| इन्होंने आठ अगस्त 1986 को भारतीय पुलिस सेवा में योगदान दिया था| उनकी सेवा अवधि 21 अगस्त 2021 तक है| 1986 बैच के आइपीएस कमल नयन चौबे संयुक्त बिहार में देवघर, अररिया, बेगुसराय, लखीसराय में एसपी रह चुके हैं। बाद में लंबे समय तक वह केंद्र में मंत्री रहे प्रफुल पटेल और बांका के पूर्व सांसद दिग्विजय सिंह के ओएसडी रहे। साल 2014 में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटने के बाद वह जैप एडीजी रहे। 2016 में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बीएसएफ के नॉर्दन कमान का आईजी बनाया गया।

श्री चौबे दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़े और वहां इतिहास विषय के प्रोफेसर भी रहे। फिलहाल बीएसएफ के एडीजी ऑपरेशन पद पर कार्यरत हैं। उन्हें भारत-बांग्लादेश और भारत-पाक सीमा की निगरानी का अनुभव रहा है। इनके बड़े भाई राजीव नयन चौबे आइएएस हैं।

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यूपीएससी की तयारी, संघर्ष और निराशा के बीच सहारा बन के आता है वह रेशमी दुपट्टा

21-22 साल की छोटी सी उम्र में गाव की पगडंडियों से उठ कर, एक गठरी में दाल, चावल, आटा बांध कर जब एक लड़का खड़खड़ाती हुई बस में अपने हौसलो के उड़ान के साथ बैठता है तब उसके दिमाग में बत्तियां जलती है जो बत्तियां लाल होती है या नीली होती है और यही सोंचते-सोंचते वह कब पटना पहुंच जाता है उसको पता ही नहीं चलता। फिर यहाँ से शुरू होती है जिंदगी की जद्दोजहद, नौकरी की तलाश।

जब लड़का अपने कमरे में कदम रखता है उस दिन उसकी एक ऐसी साधना शुरू होती है जो कभी अकेला नहीं करता,

जब वह फॉर्म डालता है तो उसकी माँ किसी देवी माँ की मनौती मान देती है, उसकी बहन मन ही मन खुश होती है। उसके पिता दस लोगो से इसका जिक्र करते है और जब उसका परीक्षा जिस दिन रहता है उस दिन माँ व्रत करती है,

इस कामना के साथ की उसका लड़का आने वाले अपने पूरे जीवन भर फाइव स्टार होटल में खायेगा।

राजधानी के चकाचौंध में यहाँ लड़का कोचिंग करता है, अपने सीनियर, अपने दोस्त, अपने भाई आदि की सलाह भी लेता रहता है। अपनी तैयारी में धार देता हुआ आगे बढ़ता है।
कुकर की बजती सीटियों के बीच “विविध भारती “पर “लता मंगेशकर “की आवाज यहाँ का “राष्ट्र गान” है जो आप को लगभग हर कमरे में सुनाई देगा।

यहाँ का प्रतियोगी मैनेजमेंट भी बहुत अच्छा सीख लेता है। दस बाई दस के कमरे में, सब कुछ बिल्कुल अपनी जगह रखा मिल जाएगा। अलमारी किताबो से भरी, एक तरफ कुर्सी और मेज, एक तरफ लेटने के लिए चौकी, एक तरफ खाना बनाने के लिए एक मेज, दीवारों पर विश्व के मानचित्र और उसके बगल में लगे स्वामी विवेकानन्द और डॉ कलाम के पोस्टर और दरवाजे के पीछे लगी मुस्कुराती हुई मोनालिशा का बड़ा सा पोस्टर और कमरे की छज्जी पर रखे रजाई और कंबल। ये सब यहाँ के विद्यार्थी का मैनेजमेंट बताने के लिए पर्याप्त है ।

प्रतियोगी यहाँ अपने हर काम का टाइम टेबल बना के अपने स्टडी मेज के दीवाल के ऊपर चिपका के रखता है जिसमें यह तक जिक्र होता है कितने बजे अख़बार पढ़ना है और कितने बजे सब्जी लेने जाना है।

DBC यहाँ के छात्रों का मुख्य खाना है , DBC यानि दाल, भात, चोखा। कुल मिलाकर यहाँ के प्रतियोगी की जिंदगी कमोबेश एक सिपाही जैसी होती है।

इस तरह तैयारी करते करते 3-4 साल बीत जाते हैं कुछ साथी चयनित होकर अपने अनुजो का उत्साह बढ़ा के चले जाते है। यहाँ मछुआटोली, भिखना पहाड़ी, महेन्द्रू, राजेन्द्र नगर जैसे इलाकों में शाम के वक़्त छात्रों का चाय के दुकान पर संगम लगता है, जहाँ हर जगह से आये छात्र साथ बैठ कर चाय पीते-पीते देश की दशा, दिशा और परीक्षाओं पर भी सार्थक बहस करते हैं। यहाँ के प्रतियोगी को जितना अमेरिका के लोगो को उसके भौगोलिक स्थिति के बारे में नहीं पता होगा उससे ज्यादा इनको पता होता है।

यहाँ का प्रतियोगी जब अपने मेहनत के फावड़े से अपनी बंजर हो चुकी किस्मत पर फावड़ा चलाता है तो सफलता की जो धार फूटती है उसी धार से वह अपने परिवार को, समाज को सींचता है और इसी सफलता के लिए न जाने कितनी आँखे पथरा जाती है और प्यासी रह जाती है, लेकिन उस प्यास की सिद्दत इतनी बड़ी होती है कि एक अच्छा इंसान जरूर बना देती है।

सौ बार पढ़ी गई किताब को बार-बार पढ़ा जाता है, जब याद हो चुकी चीजो को सौ बार दुहराया जाता है फिर भी परीक्षा हॉल में कंफ्यूजन हो जाया करता है, उस मनोस्थिति का नाम है यहाँ का विद्यार्थी। जब परीक्षा हॉल के अंतिम बचे कुछ मिनटों में बाथरूम एक सहारा होता है शायद वहा कोई एक दो सवाल बता दे उस मनोस्थिति का नाम है यहाँ का विद्यार्थी।

जब खाना बन कर तैयार हो जाये तो उसी समय में दो और दोस्तों का टपक पड़ना और फिर उसी में शेयर कर के खाना इस मनोस्थिति का नाम है यहाँ का विद्यार्थी ।

प्रतियोगी का संघर्ष का दौर चलता रहता है, कुछ निराश होने लगे प्रतियोगियों को तब कोई कन्धा सहारा बन के आ जाता है, जब उसकी निराशा बढ़ने लगती है तो उस कंधे पर होता है रेशमी दुपट्टा। उसके बाद वो उस रेशमी दुपट्टे के आंचल में ऐसा खोता है कि तब उसे आप कहते सुन लेंगे कि वह इसके लिए IAS बन के दिखा देगा।

इस तरह शुरू होता है इश्क़ का दौर, घूमना, टहलना, पढाई का एक से बढ़ कर एक ट्रिक अपनी गर्ल फ्रेंड को देना, इन सभी चिजों का ये एक दौर चलता है। मुँह पर दुपट्टा बांधा जाता है, हेलमेट भी पहना जाता है फिर भी शाम को कोई मिल जायेगा और बोलेगा, “अरे यार आज तुमको हम भौजी के साथ मछुआ टोली में देखे थे”।

कुछ समय बाद यह भी दौर खत्म हो जाता है, लड़की के घर वाले उसके हाथ पीले कर देते है। फिर यह चुटकुला सुनने को मिल जाता है, जब मैं बीएड का फॉर्म लेने दुकान पर गया था तो वो अपने बच्चे को कलम दिला रही थी।

यहाँ तैयारी का फेस भी बदलता रहता है, शुरू में माँ-बाप के लिए IAS बनना चाहता है, उसके बाद गर्ल फ्रेंड के लिए IAS बनना चाहता है और अंत में दुनिया को दिखाने के लिए। वो कहता फिरता है कि मै दुनिया को दिखा दूंगा कैसे की जाती है तैयारी IAS की, पर जब वो असफल हो जाता है तो लोग उससे बात करना नहीं पसन्द करते, क्योंकि उनके नजर में वह असफल है, लेकिन यक़ीन मानिये असफल प्रतियोगी अपनी असफलता को बता सकता है, उसकी कमियों से सीखा जा सकता है, जिससे इतिहास रचा जा सकता है।

वैसे इस शहर में हमने भी पूरे वनवास काटे हैं, यहाँ के तैयारी करने वाले प्रतियोगियों का यही मज़ा है। आप बौद्धिकता से परिपूर्ण हो जाते है बेशक सफलता मिले न मिले।

टी.के. तिवारी
(एक छात्र)

UPSC Result 2019: यूपीएससी में बिहारियों का दबदबा कायम, मधुबनी की चित्रा को 20वां रैंक

संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा 2018 (UPSC Civil Services Result 2018) का फाइनल रिजल्ट शुक्रवार को जारी कर दिया| इसमें बिहार के कई अभ्यर्थियों ने सफलता पायी है|

इनमें मधुबनी की बेटी चित्रा मिश्रा ने 20वां रैंक हासिल किया है| वहीं, बिहार की राजधानी पटना के कारोबारी सुनील खेमका की बेटी सलोनी को 27वां रैंक मिला है, जबकि पटना के ही कारोबारी कमल नोपानी के बेटे आयुष नोपानी को 151वां रैंक मिला है|

इसी तरह जमुई, नालंदा, दरभंगा, बेगूसराय, वैशाली आदि जिलों के अभ्यर्थियों ने भी सफलता हासिल की है।

मिल रही जानकारी के अनुसार बिहार के जमुई जिले के सिकंदरा निवासी सुमित कुमार को 53वीं रैंक, नालंदा जिले के सौरभ सुमन यादव को 55वीं, मधुबनी के नित्यानंद झा को 128वीं, बेगूसराय के गौरव गुंजन को 262वीं तथा वैशाली के रंजीत कुमार को 594वीं रैंक मिली है। देर रात तक और भी सफल अभ्‍यर्थियों के सफल होने की सूचना मिलने की उम्‍मीद है। इसके अलावा मधुबनी की चित्रा मिश्रा को 20वीं रैंक मिली है।

वही  इसमें बांबे आइआइटी से बी. टेक कनिष्क कटारिया ने टॉप किया है जबकि सृष्टि जयंत देशमुख महिलाओं में अव्वल आई हैं। वैसे ओवर ऑल में उनकी पांचवीं रैंक है।

पीएससी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि आयोग ने आइएएस, आइपीएस, आइएफएस जैसी सेवाओं में नियुक्ति के लिए कुल 759 (577 पुरुष तथा 182 महिला) उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश की है। अनुसूचित जाति से आने वाले कटारिया ने कंप्यूटर साइंस में बी. टेक किया है। उन्होंने वैकल्पिक विषय के रूप में गणित लिया था। महिलाओं में शीर्ष आने वाली देशमुख, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, भोपाल से केमिकल इंजीनियरिंग में बी. ई हैं।सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा तीन जून 2018 को आयोजित की गई थी।

Olivia Colman, Bihari, Oscar Award, Best Actress

ऑस्कर में बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड जीतने वाली ओलिविया कोलमैन का है बिहार कनेक्शन

ऑस्कर 2019 के विनर्स के नामों का ऐलान हो चुका है|  फिल्म “द फेवरेट” के लिए ओलिविया क्लोमेन को बेस्ट अभिनेत्री के लिए आस्कर अवार्ड मिला है|

मगर यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि ओलिविया क्लोमेन का बिहार से बहुत पुराना सम्बन्ध है| उनके पूर्वज बिहार के किशनगंज के रहने वाले थे|

कुछ समय पहले ही ओलिविया को इस बारे में पता चला कि उनके पूर्वज इंडिया में रहते थे| वे इसका पता लगाने के लिए भारत आईं भी| इस दौरान उन्हें अपने पूर्वजों से जुड़ी कई रोचक जानकारियां हासिल हुईं|

ब्रिटिश डॉक्यूमेंट्री सीरीज ‘हू डु यू थिंक यू आर’ के एक एपिसोड में दिखाया गया है कि ओलिविया इंडिया टूर पर हैं| इस दौरान वे बिहार के किशनगंज जाती हैं| वहां पर उन्हें अपने पूर्वजों का पता चलता है| दरअसल, कभी बिहार के किशनगंज में उनके पूर्वज रहा करते थे| ओलिविया के पूर्वजों में से एक रिचर्ड कैम्पबेल बैजेट है, जिनका जन्म अफ्रीकी तट सेंट हेलेना में हुआ था| लेकिन, उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी के तौर पर लंदन और कोलकाता में काम किया|

रिचर्ड के बेटे का चार्ल्स का कनेक्शन बिहार के किशनगंज से जुड़ा मिला| यह जानकारी पाने के बाद ओलिविया किशनगंज के पूर्व ब्रिटिश क्लब गईं| जहां पर उन्हें चार्ल्स और हैरिएट की शादी का मैरिज सर्टिफिकेट भी मिला| इसके अलावा उन्हें यह भी पता चला कि हैरिएट का जन्म किसनगंज में ही 1807 में हुआ था| इस दौरान ओलिविया ने संभावना व्यक्त की कि हैरिएट की मां ब्रिटिश की नहीं होगी| शायद वह स्थानीय महिला हों|

कोलमन के अनुसार कुछ पीढ़ी पहले उनके ननिहाल पक्ष में जन्मे रिचर्ड कैंपबेल वैजेट की बहू हैरियट बिहार के किशनगंज में पैदा हुई थीं| अनुमान है कि हैरियट की मां मूल रूप से बिहार की थी|

जब हैरिएट चार या पांच साल की थीं तब उसके पिता की मौत हो गई| इसके बाद हैरिएट की दादी ने उसकी मां को कुछ पैसे दिए ताकि वह हैरिएट को इंडिया से इंग्लैंड ले आए| ओलिविया को पता चला कि जब हैरिएट 24-25 साल की थीं तो वह फिर इग्लैंड से कोलकाता आ गईं| हैरिएट ने 1832 में विलियम ट्रिग से शादी कर ली| पति की मौत के बाद 1838 में हैरिएट ने फिर से शादी की| चार्ल्स से शादी करने के बाद वह फिर से इंडिया लौट गई|

 

बोर्ड एग्जाम और वसंत, जीवन में लगभग साथ साथ आती है

दो बार से लगातार मैट्रिक में फेल हो रही रनिया और पिंकिया दांत पर दांत पटक के कहती है अगर जो ई बेर हमको नीतीसवा फेल किया तो ईंट से ईंट बजा देंगे।

पूरब टोला का सुरजवा क्वेश्चन बैंक लाँघकर मॉडल पेपर में घुस आया है। पूरे आठ दिन का लघु योजना बनाते हुए कहता है इसके बाद कुछो न पढ़ेंगे…लड़ना होगा तो इसी से लड़ेगा वरना फेल सही।

इधर गुडुआ अपना पूरा बल लगाकर यूनिक और गाइड जैसे संयुक्त गेस पेपर को छाती के पास लाकर लीनियस पद्धति के अनुसार अलग-अलग विषयों में वर्गीकरण कर दे रहा है।

गणेश पूजा के प्रोग्राम में लड़की पर लेज़र लाइट छिड़कने वाला सुनिलवा चार बजे भोर में लालटेन जलाकर मच्छरदानी के भीतर विज्ञान और गणित के अति महत्वपूर्ण प्रश्नों पर प्रकाश छिड़क रहा है।

दिन भर सोनिया के हृदय की धड़कन एवं पल्स रेट को गिनने वाला मनीषवा परीक्षा से आठ दिन पहले थीटा डिग्री कोण पर झुके दो समतल दर्पण के सामने वस्तु को रखकर…उसमें बने प्रतिबिम्ब की संख्या को बायें हाथ की अँगुली पे गिन रहा है।

वो लजबजा गया है कि 360 को थीटा से भाग देने पर अगर कोई विषम संख्या आये तो दर्पण पे बने प्रतिबिम्ब की संख्या वही रखेंगे या उस संख्या में एक घटा देंगे।

रोज सुबह मजनुआ के व्हाटसएप पे गुड मॉर्निंग सहित अपना दिल भेजने वाली सरितवा आज संदेश में पूछ रही है कि निकट दृष्टि दोष दूर करने में कौन सा लेंस प्रयोग होता है? मजनुआ आश्चर्यचकित होते हुए पूछ बैठता है ई बीमारी आपको कब से हो गया?

अरे नहीं जी…परीक्षा नजदीक है इसीलिए पढ़ ले रहे हैं आजकल तो जानते हैं बियाह से पहले भी कुटुम सब यही सवाल पूछता है।

प्रश्न का जवाब देते हुए मजनुआ भी इधर से पूछ बैठता है आप बताइए कि गाड़ी के हेडलाइट एवं सर्च लाइट में कौन सा दर्पण प्रयोग होता है?
ये वाला प्रश्न भी कुटुम आपसे बियाह के पहले पूछेगा….फिर दोनों एक साथ मुस्कुराते हुए अगले प्रश्न पे आते हैं….

दोनों तरफ घमासान युद्ध चल रहा है….परीक्षाओं का दौर है…वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का गोला बनाकर एक दूसरे के ऊपर फेंका जा रहा है…जो पीछे हुआ वो सबसे पीछे हो जाता है….

जैसे जैसे परीक्षा छाती पर आ रहा है, दिनेश माटसाब और देवनारायण माटसाब भी मंगल से लेकर मंगल तक रोज चार घण्टा खींच के पढ़ा रहे हैं, तभियो सिलेबस पार नहीं परा रहा है।

पता ही नहीं चल रहा कितना पढ़ना है…क्या पढ़ लिए….क्या बाकी रह गया..

दिल्ली में कमा रहा मिठुआ…अपने जिगरी दोस्त को फ़ोन करके मधुआ का खबर लेना वाला लौंडा ये खबर लेना शुरू कर दिया है कि.. कहिया से परीक्षा है….? कहिया के टिकट करवायें…? कहिया एडमिट कार्ड आवेगा…?

अंगूठा और तर्जनी के बीच विद्या का क्वेश्चन बैंक फँसाकर सरितवा कहती है बाप रे इतना मोटा पढ़ना पड़ेगा….कहाँ से शुरू करे कहाँ से खत्म करे पता ही नहीं चल रहा है। चोरी तो चलबे करेगा…अब सब भगवान भरोसे।

हाल-ए-दिल ये हो गया है कि जीवन का हरेक परीक्षा भगवान के भरोसे ही दिया जा रहा है।

इधर ज्योतिया के जीजा जी जुगाड़ में हैं कि किसी तरह दस घण्टा पहले क्वेश्चन मिल जाए….हर एक घण्टा के बाद अजीत माटसाब को फोन लगा के पूछते हैं सर काम हुआ?

मन बेचैन है…इंतजार में रात भर सही से नींद नहीं ले पा रहे हैं…जैसे अपने साली को पास कराने का टेंडर इन्हीं को मिला हो।

रमुआ के पान दुकान पर खैनी का पुरिया खत्म करने वाला लड़का के मुंह से तीन रात में पूरा सिलेबस खत्म करने की बात सुन…बगल में खड़े गोबरधन चचा अवाक रह जाते हैं|उनको लगता है मोदीजी बच्चों के मानसिक विकास पर भी कोई विशेष योजना का कार्यान्वयन कर रहे हैं।

परीक्षाओं का दौर है…परीक्षा तो अपने समयानुसार होती ही रहेंगी….सवाल आते ही रहेंगे….तैयारियाँ भी चलती रहेंगी….पर अच्छे नम्बर से पास होना बहुत जरूरी है।

ये जीवन की पहली परीक्षा होती है…पहली परीक्षा हौंसला देती है, इतना हौंसला देती है कि एक बाप अपना पेट काट कर आपको मुखर्जीनगर में पढ़ा सकता है। एक माँ फटी साड़ी पहनकर आपको कोटा भेज आईआईटी और मेडिकल की तैयारी करवा सकती है।

शायद इसी को तपस्या कहते हैं…जहाँ माँ-बाप बच्चों के लिए जीना सीखते हैं और बच्चे माँ-बाप के लिए। जो एक-दूसरे के लिए जीना सीख जाए उनका जीवन वसंत हो जाता है।

अभिषेक आर्यन

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इन बिहारियों के असाधारण और विशिष्‍ट सेवा के लिए मिला पद्म पुरस्कार

जगतंत्र दिवस के अवसर पर ग्रह मंत्रालय ने इस वर्ष पद्म सम्मान के विजेताओं के नामों की घोषणा की. पद्म पुरस्कार देश में दिए जाने वाले  सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक है जो किसी व्यक्ति विशेष को  किसी भी क्षेत्र में असाधारण और विशिष्‍ट सेवा के लिए प्रदान किए जाते है. इस साल 4 पद्म विभूषण, 14  पद्म भूषण और 94 पद्म श्री दिए जाएंगे और हर साल की तरह ही इस बार भी बिहार के नायक अपना नाम इस सूची में दर्ज कराने में कामयाब हुए हैं.

किसानो को समर्पित किया पुरस्कार 

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बीजेपी सांसद हुकुमदेव नारायण यादव इस साल पद्म भूषण से सम्मानित किए जाएंगे. उन्होंने अपना ये पुरस्कार गरीबों और भारत के किसानों को समर्पित करने का ऐलान किया है. हुकुमदेव बिहार के मधुबनी चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं.

मनोज बाजपेयी को भी मिला सम्मान

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बॉलीवुड जगत का बड़ा चेहरा और बिहार के लाल मनोज बाजपेयी को इस वर्ष पद्म श्री सम्मान से नवाज़ा जाएगा. उन्होंने पुरस्कार मिलने कि ख़ुशी जताई एवं जनता और उन सभी को धन्यवाद कहा जिन्होंने उनपर विश्वास किया और उनके करियर में उनका साथ दिया. मनोज बाजपेयी  बॉलीवुड में अपनी अदाकारी के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने २५ साल के अपने सफर में सरदार खान (गैंग्स ऑफ़ वास्सेपुर), भीकू महात्रे (सत्या), अलीगढ मूवी  में समलैंगिक प्रोफेसर जैसे कई यादगार रोल निभाए हैं. मनोज सरकार द्वारा नेशनल फिल्म अवार्ड से सम्मानित किए जा चुके हैं.

साईकिल चाची हुई पद्म श्री से सम्मानित

94 में से चार पद्म श्री पुरस्कार बिहार के नाम रहे. मुजफ्फरपुर की ‘साइकिल चाची’ आनंदपुर गांव की राजकुमारी देवी को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. शादी के नौ वर्ष तक संतान नहीं होने और पति की बेरोजगारी के कारण उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया गया था. तब उन्होंने साइकिल उठाई और जगह- जगह जा-जाकर अचार व मुरब्बा बेचना शुरू किया और महज डेढ़ सौ रुपये से शुरू किया गया कारोबार बढ़ता गया.

स्वीपर का काम करने से शुरू किया सफर

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इस सूची में अगला नाम बिहार विधान सभा की सदस्या भागीरथी देवी का है. अपने शुरुआती दिनों में भागीरथी देवी नरकटियागंज में स्वीपर का काम किया करती थी. उन्होंने बिहार में महिला सशक्तिकरण और दलितों के लिए निस्सवार्थ काम किया है. उन्हें भी पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.

मधुबनी कला को मिली पहचान

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मिथिला कलाकारी में माहिर और पद्म श्री विजेता गोदावरी दत्ता खुश हैं की सरकार कला और संस्कृति को बढ़ावा दे रही है. उन्होंने कहा, “मै खुश हूँ कि मुझे इस सम्मान के योग्य समझा गया. पहले मधुबनी पेंटिंग की उतनी ख्याति नहीं थी जितनी अब है.अब ऐसे बहुत से लोग हैं जो मधुबनी की सरहाना करते हैं और इस कला को सीखना चाहते हैं.”

मूसाहार समुदाय के लिए किया काम

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रॉ एजेंट रह चुके ज्योति कुमार सिन्हा को भी इस साल पद्म श्री सम्मान के लिए चुना गया है. उन्हें ये पुरस्कार बिहार में शिक्षा को बढ़ावा देने में उनके योगदान के लिए दिया जा रहा है. सिन्हा ने 2005 में बिहार में शोषित सेवा संघ की शुरुआत की जिसका मकसद मूसाहार समुदाय के बच्चों को शिक्षा का लाभ पहुँचाना था.

बिहार के मुंगेर जिले की बेटी बनी अमेरिका की सीनेटर

अक्सर कहा जाता है ‘एक बिहारी सब पर भारी’. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है बिहार की बेटी मोना दास ने. बिहार मूल की मोना अपने पहले ही प्रयास में अमेरिका में वाशिंगटन राज्य के 47वें जिले की सीनेटर चुनी गई हैं.
 
इस मौके की ख़ास बात यह थी की  डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्य मोना ने शपथ ग्रहण समारोह के दौरान अमेरिकी सीनेट में हिंदू धर्मग्रंथ गीता के साथ अपने पद की शपथ ली. मोना डेमोक्रेटिक पार्टी कि सदस्य हैं और पहली बार चुनाव प्रत्याशी के रूप में खड़ी हुई थी.
 
 
बिहार के दरियापुर गाँव से निकली अमेरिका की सीनेट
 
 
मोना दस बिहार के मुंगेर ज़िले के हवेली खड़गपुर अनुमंडल के दरियापुर गाँव की रहने वाली हैं. उनके दादा डॉ. गिरीश्वर नारायण दास गोपालगंज जिले में सिविल सर्जन थे. उनके पिता सुबोध दास एक इंजीनियर हैं और सेंट लुईस एमओ में रहते हैं. मोना का परिवार अमेरिका चला गया जब महज़ उनकी उम्र आठ महीने की थी. मोना सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में ग्रेजुएट.
 
 
महिलाओं के लिए करेंगी काम
 
 
47 वर्षीय मोना दास ने हाथ में गीता के साथ 14 जनवरी को सीनेटर के रूप में शपथ ली, कहा उन्हें अपने वंश पर नाज़ है. उन्होंने सभी को मकर  संक्राति की बधाई दी और अपने भाषण की शुरुआत में कहा,
 
“नमस्कार और प्रणाम आप सबको … मकर संक्रांति की बधाई हो आप सबको”.
 
 
भारत मूल की मोना ने चुनाव मे ‘महिला कल्याण, सबका मान’ और ‘जय हिंद और भारत माता की जय’ का सन्देश दिया और अंततः सबका समर्थन प्राप्त कर अमरीका की सीनेट की सदस्य बनी. मोना ने अपने संदेश में  लड़कियों को शिक्षित करने की बात कही. महिला सीनेटर होने के नाते वो समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को समझती है तथा उन्होंने लड़कियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने का फैसला किया है. इस अवसर पर मोना ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी याद किया.
 
उन्होंने कहा, “जैसे महात्मा गांधी और वर्तमान महान और गतिशील नेता प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा, शिक्षा जीवन में लड़कियों के लिए सफलता की कुंजी है. एक लड़की को शिक्षित करके आपने एक पूरे परिवार और लगातार पीढ़ियों को शिक्षित किया है.”
 
 
वाइस चेयरमैन के रूप में करेंगी काम 
 
 
मोना दस ने अपने प्रतिद्वंद्वी और दो बार से निर्वाचित रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटर जो फैन को हराया है. वह सीनेट हाउसिंग स्टैबिलिटी एंड अफोर्डेबिलिटी कमेटी की वाइस चेयरमैन के रूप में काम करेंगी. वह सीनेट परिवहन समिति, सीनेट वित्तीय संस्थानों, आर्थिक विकास और व्यापार समिति और सीनेट पर्यावरण, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी समिति पर भी काम करेंगी.  इस सत्र में मोना का ध्यान पर्यावरण, रंग के समुदायों और महिलाओं के लिए समानता जैसे विषयों पर रहेगा.
 
मोना दास ने खुलकर अपने बिहार आने की बात का ज़िक्र किया है. उन्होंने कहा “मेरी इच्छा है कि मैं बिहार में दरियापुर में अपने पैतृक घर पर जाऊं और भारत के बाकी हिस्सों में घूमने जाऊं ताकि अपने मूल देश के बारे में अधिक से अधिक विविध संस्कृति के बारे में जान सकूं.”

यह अपने बिहार का अकबर है, इंडियन ब्लाइंड क्रिकेट टीम का खिलाड़ी

ये अकबर है। पंजवार का अकबर। हमारे गांव का अकबर। हमारा अपना – अकबर अंसारी। इंडियन ब्लाइंड क्रिकेट टीम के ग्यारह खिलाड़ियों में से एक।

चौंकिए मत! यहीं सच है| और हां, सिर्फ जन्म का नाता नहीं है गांव से। यहीं के स्कूल में पढ़ा है। यहीं के मैदानों में दौड़ा है। यहीं के पोखर और तालाबों में तैरा है।

बचपन से हुड़दंगी। पढ़ने जाता था लेकिन हमेशा खेलने की फिराक में रहता था। घरवालों को चिंता लगी रहती थी क्योंकि दिखता कम था बच्चे को। एक दिन बड़ा हादसा हुआ। तालाब में तैरने के दौरान जहरीले पानी के कारण आंख की रोशनी पूरी तरह से गायब हो गई । आनन-फानन में देवरिया ले जाया गया। वहां डॉक्टरों ने आंखों के पर्दे फट जाने की बात कही। परिवार पर कहर टूट पड़ा।

किसी ने नेपाल ले जाने का सुझाव दिया। अकबर नेपाल गया। इलाज हुआ। आंखों की रोशनी वापस नहीं आ पाई। अकबर के पिताजी हारे नहीं। एम्स ले गए। डॉक्टर हार गये। शत-प्रतिशत ब्लाइंड डिक्लेयर कर दिया। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था। वहीं पर एक डॉक्टर ने ब्रेल लपि सीखने के लिए हॉस्टल में रखने का सुझाव दिया।

3 महीने का कोर्स छोरे ने 21 दिन में कंप्लीट किया। सबके लिए आश्चर्य था यह।

मैनेजमेंट ने बच्चे में संभावना देखी। 3 महीने के बाद भी हॉस्टल में रख लिया। अकबर पढ़ने लगा। पढ़कर सीखने लगा। हाई स्कूल..इंटर…किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक….अभी बी. एड. कर रहा है। पढ़ाकू भी ऐरा गैरा नहीं। हिंदी ऑनर्स में 67.2 प्रतिशत अंकों के साथ स्नातक बना है अपना चैंपियन ।

बच्चे की पढ़ाई शुरू हुई। लेकिन मन हमेशा खेल-मैदान की ओर भागने को होता। उठा, चला, दौड़ा, फिर भागना शुरू किया। जब भागा तो 200 मीटर की दौड़ में और जब उछला तो लांग जम्प में अपने इंस्टिट्यूट को मेडल दिला दिया। अब शुरू हुई मनमानी। जो ठाना वहीं किया|

किरोड़ीमल कॉलेज में भाला फेंक प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। फुटबॉल खेलते हुए दिल्ली टीम की ओर से नेशनल खेला। सबके बावजूद मन क्रिकेट में ही लगता था। खुद को एकाग्र करना शुरू किया। अपना सब कुछ क्रिकेट के लिये झोंक दिया। 2013 में पहला बड़ा मौका मिला। देहरादून में आयोजित टी 20 ब्लाइंड टूर्नामेंट में शानदार खेला। 2 बार मैन ऑफ द मैच रहा। सबसे महत्वपूर्ण रहा 2016 में दिल्ली नार्थ जोन टूर्नामेंट। इस टूर्नामेंट का “मैन ऑफ द सीरीज” चुना गया था हमारा अकबर।

एक और बात समझिए। यह खिताब और अहम हो जाएगा। ब्लाइंड क्रिकेट टीम में 4 खिलाड़ी पूर्णतः न देख सकनेवाले होते हैं। 3 खिलाड़ी 3 मीटर की दूरी तक देख सकने वाले होते हैं। 4 खिलाड़ी वैसे होते हैं, जो 6 मीटर तक देख सकते हैं। अकबर उन 4 खिलाड़ियों में से एक था जो बिल्कुल नहीं देख सकते थे।

दिल्ली टीम का ओपनर बॉलर है अपना खिलाड़ी। वन डाउन बैटिंग करने के लिए आता है। दिल्ली टीम का कप्तान रहा है।

श्रीलंका दौरे के लिये भारत को एक ऑल राउंडर की तलाश थी। अकबर भारतीय टीम के लिए चुना गया। हाल ही में 3 वनडे और 5 मैचों की टी -20 सीरीज खेलकर आया है। वर्ल्ड कप की तैयारी में जोर शोर से लगा है। निश्चित रूप से वर्ल्ड कप खेलेगा अकबर। उसे खेलना ही होगा। अपने लिए, अपने गांव के लिए, अपने देश के लिए और अपने जैसे हजारों स्वप्नदर्शियों के लिये।

बधाई जवान। गांव को गौरव के शिखर तक पहुंचाया है तुमने। आनंद रहो। मस्त रहो। देश का मान बढ़ाओ।

संजय सिंह
सिवान ।

Raj Thakre, Bihari, Bihar, Maharashtra

हिंदी भाषियों के मंच से ही राज ठाकरे ने हिंदी में बिहार-यूपी के लोगों को धमकाया

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे की पूरी राजनीति और राजनीतिक अस्तित्व सिर्फ बाहरी लोगों के विरोध पर आधारित रही है| चचेरे भाई और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के अयोध्या जाने के बाद से राज ठाकरे पर दबाव और बढ़ गया है| इसी क्रम में राज ठाकरे ने उत्तर भारतीय पंडों से आशीर्वाद मांगा है|

रविवार को मुंबई के कांदिवली पश्चिम के भुराभाई हॉल में राज ठाकरे के साथ सीधा संवाद कार्यक्रम का आयोजन उत्तर भारतीय महापंचायत ने किया था। मनसे मुखिया के स्वागत के लिए काफी तैयारी भी की गई थी। काशी से खास तौर पर 21 पंडित बुलाए गए थे, जिन्होंने मंत्रोचार के साथ मंच पर न सिर्फ राज ठाकरे का स्वागत किया, बल्कि पवित्र नदियों के जल से आचमन भी कराया|

राज ठाकरे ने हिंदी में अपना भाषण शरू किया| संभवतः ठाकरे का यह पहला हिंदी में भाषण था| मगर हिंदी भाषियों के मंच से ही, उन्हीं के भाषा में ठाकरे ने उनको धमकाना शरू कर दिया| उन्होंने कहा,

”हिंदी में पहली बार भाषण दे रहा हूं| कुछ गलतफ़हमियां भाषा के अनुसार आपके बीच में भी होंगी, जो सच है, सच तो कड़वा होता है, लेकिन मुझे लगता है कि आपको समझना चाहिए..

बिहार और उत्तर प्रदेश से काम करने के लिए बड़ी संख्या में लोग महाराष्ट्र जाते हैं, जिनके बारे में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का रवैया आक्रामक रहा है| राज्य में कई बार ऐसे मौके आए जब उत्तर भारतीयों को मनसे के कार्यकर्ताओं ने मारा-पीटा है| रेलवे की परीक्षा के दौरान और फेरी वालों के साथ मुंबई में हुई घटनाओं के लिए राज ठाकरे ने मनसे कार्यकर्ताओं के हरकतों को सही बताया है|

उन्होंने कहा, ”मुंबई आने वाले लोगों में अधिकांश लोग यूपी, बिहार, झारखंड और बांग्लादेश से हैं। मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि अगर लोग आजीविका की तलाश में महाराष्ट्र आ रहे हैं, तो उन्हें स्थानीय भाषा और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा, ”जब भी मैं अपना पक्ष रखता हूं जिससे यूपी और बिहार के लोगों के साथ विवाद हो जाता है, तो हर कोई मेरी आलोचना करता है। लेकिन हाल में गुजरात में बिहारी लोगों पर हुये हमलों के बाद, किसी ने भी सत्तारूढ़ दल (भाजपा) या प्रधानमंत्री (जिनका गृह राज्य गुजरात है) से सवाल नहीं किया।

उन्होंने कहा, ”इसी तरह के विरोध असम और गोवा में भी हुये। लेकिन मीडिया ने उसे कभी भी तरजीह नहीं दी। लेकिन मेरे विरोध को हमेशा ही मीडिया में बढ़ा-चढ़ाकर कर पेश किया जाता है।

ठाकरे ने कहा,उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने देश को वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (जो वाराणसी से सांसद हैं) सहित कई प्रधानमंत्री दिए हैं। आप में से कोई उन नेताओं से क्यों नहीं पूछते कि उनका राज्य औद्योगीकरण में पीछे क्यों छूट रहा है और क्यों वहां कोई रोजगार नहीं मिल रहा है।

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यह कहानी बिहार की उन आधी आबादी की है, जिनके पति उनको छोड़ परदेस कमाने चले जाते हैं

 बेटा अबईछई त साड़ी आ गहना सब लयबे करईछई. आब औरों की चाही? हमारा स के त ऐ गो साड़ी रहे वो ही में गुज़र क ली. इकरा स के एतनो पर मन न ख़ुशी.

— बरामदे पर मुहल्ले की आयी हुई हैं. जो अब सासु माँ बन चुकी हैं वो कह रहीं हैं ये सुंदर वचन. उनको लगता है कि बहू को कपड़े और गहने मिल जाता है, साल में दो बार तो और क्या चाहिए! उनका बेटा दिल्ली में कोई प्राइवेट नौकरी करता है. शादी करके बहू को माँ-बाप की सेवा के लिए पत्नी को यहाँ छोड़ गया है. साल में दो बार घर आता है होली, दीवाली-छठ में.

तब ही बहू मिल पाती है पति से. साथ रह पाती है. उससे ज़्यादा का साथ नहीं मिल पाता उसे पति का. ऊपर से सासु माँ ये भी शिकायत कर रही हैं अभी कि, “ख़ाली त फ़ोने टिपटिपवईत रहईछई.”

मतलब अब पति साथ में न हो तो बात तो बीवी बात भी न करे.

कितनी बंदिशें, कितनी पाबंदियाँ!

और ये कहानी सिर्फ़ उस एक पत्नी की नहीं बल्कि बिहार की आधी आबादी की है. जिनके पति कभी पैसों के अभाव में तो कभी घरवालों के दबाव में नहीं ले जा पाते हैं साथ अपनी संगणी को.

शायद दुःख उन पतियों को भी होता होगा वियोग का मगर पत्नियों के दुःख के आगे बहुत कम होता होगा ये दर्द.

आज़ादी नहीं है बोलने की, बात करने की, पसंद के कपड़े पहनने की, मायके जाने की. गाँव की पगडंडी से गुज़रते हुए, कभी परदे के पीछे से तो जंगला के पीछे से झाँकती दिख जाती है इन बहुओं की दो उदास आँखे.

नहीं लिखी है आज़ादी इन बहुओं के हक़ में!

गुजरात में 48 आईएएस और 32 आईपीएस बिहार-यूपी से हैं, फिर भी हो रहा बिहारियों पर हमला

एक रेप के आरोपी के नाम पर पुरे बिहार और बिहारियों को बदनाम किया जा रहा है| गुजरात में गरीब बिहारी मजदूरों को धमकी दिया जा रहा है और उन पर हमला किया जा रहा है| मगर यह जानकार आपको हैरानी होगी कि जिस गुजरात राज्य में बिहार-यूपी के लोगों पर हमला किया जा रहा है उस प्रदेश में कानून व्यवस्था और प्रशासन की बागडोर संभालने वाले 40 फीसदी आईएएस-आईपीएस भी इन्हीं दोनों राज्यों से हैं।

समूचे गुजरात में इस वक्त तैनात 40 आईएएस व आईपीएस अधिकारी उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं। गुजरात पुलिस के मौजूदा महानिदेशक यानी डीजीपी शिवानंद झा और गुजरात सरकार के मुख्य सचिव जेएन सिंह, दोनों ही बिहार से आते हैं। राज्य के कुल 243 आईएएस अधिकारियों में से 48 यूपी और बिहार के लोग हैं। जबकि प्रदेश में मौजूद 167 आईपीएस अफसरों में से 32 यूपी-बिहार से हैं। यानी प्रदेश की कानून व्यवस्था और प्रशासनिक बागडोर संभालने वाले लोग भी उन्हीं राज्यों से हैं, जिनके लोग आज पलायन को मजबूर हैं।

इस घटना पर गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने कहा कि वे गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमले की निंदा करते हैं| हार्दिक पटेल ने ट्वीट किया, ”गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमले की में निंदा करता हूँ।अपराधी को कठोर सजा मिले,इसके लिए पूरा देश उस पीड़ित परिवार के साथ खड़ा हैं।लेकिन एक अपराधी के कारण हम पूरे प्रदेश को ग़लत नहीं ठहरा सकते,आज गुजरात में 48 IAS एवं 32 IPS उ॰प्र और बिहार से हैं।हम सब एक हैं।जय हिंद|”

अपने एक दूसरे ट्वीट में हार्दिक पटेल ने कहा, ”गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमले में देश के प्रधानमंत्री कब बोलेंगे, नरेन्द्रभाई मोदी ने कहा था की बिहार और उत्तरप्रदेश से तो मेरा पुराना रिश्ता है| गुजरात की सभी श्रम फैक्ट्री में उत्तर भारतीय लोग काम करते हैं| आज सभी फैक्ट्री बंद हैं| उत्तर भारत का महत्व कितना है आज समझ आया|”