हाई कोर्ट के दवाब में अगर लॉकडाउन लगा है तो उसे गरीबों के आर्थिक मदद के लिए भी आदेश देना चाहिए

आज कल सभी राज्यों की हाई कोर्ट कोरोना को लेकर असमान्य रूप से मुखर है और सरकारों से न सिर्फ कड़े सवाल पूछ रहें हैं, जरूरत पड़ने पर आदेश भी दे रही है। पटना हाई कोर्ट भी बिहार सरकार के नाक में दम की हुई है।

कल ही पटना हाई कोर्ट ने कोरोना के कारण राज्य में बिगड़ते हालात पर सरकार को फटकारा और चेतावानी दी कि अगर सरकार लॉकडाउन नहीं लगती है तो वो राज्य में लॉकडाउन लगायेगी।

कोर्ट के अल्टीमेटम का असर यह हुआ कि बिहार सरकार को मजबूरन राज्य में 15 मई तक लॉकडाउन लगाने की घोषणा करनी पड़ी। सरकार जनता के वोट से चुन के आती है, उसको जनभावना का ध्यान रखना होता है। लॉकडाउन के कारण गरीब और मिडिल क्लास परिवारों में आर्थिक संकट आ जाता है। सरकार इसी कारण लॉकडाउन लगाने से हिचक रही थी।

चुकी यह फैसला कोर्ट के दवाब में ली गई है, तो अब हाई कोर्ट की यह भी जिम्मेदारी बनती है कि वो उनकी भी खबर ले जो लॉकडाउन के फैसले से सबसे ज्यादा परेशान होंगे।

कायदे से सरकार को लॉकडाउन के दौरान जिन्हें आर्थिक संकट का सामना करना होगा, उन्हें आर्थिक मदद करना चाहिए। मजदूरों को बेरोजगारी भत्ता, स्कूलों के फीस, रूम का किराया, बिजली का बिल, बैंक का ईएमआई, जैसे जरूरी मानसिक खर्चे की भरपाई सरकार को करना चाहिए।

कोर्ट को और सरकार को यह सोचना चाहिए कि भले कोरोना माहामारी किसी के साथ भेदभाव नहीं करती मगर लॉकडाउन की मार गरीब और अमीर को अलग – अलग तरीके से पड़ती है। किसी के लिए घर में परिवार के साथ बैठना अवसर हो सकता है मगर बहुतों के लिए यह सजा होती है। सत्ता और व्यवस्था के शीर्ष पर बैठे लोगों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोरोना से हो रहे मौत को रोकने के लिए, वो भूख से लोगों को मरने नहीं देंगे।

जो लोग लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, उनमें से बहुत कम लोग सोशल मिडिया पर है। इसलिए उनकी आवाज़ आपको सुनाई नहीं देती होगी मगर इसका मतलब कतई यह नहीं कि उनकी चीख नहीं निकलती।

अविनाश कुमार (संपादक, अपना बिहार)

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ओड़िसा राज्य के तट पर अपना बंदरगाह सुविधा विकसित करेगा बिहार

बिहार ओड़िसा राज्य के तट पर अपना बंदरगाह सुविधा (Port Facilities) स्थापित करेगा| ओड़िसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक (Naveen Patnaik) ने अपने राज्य में बंदरगाह सुविधा स्थापित करने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। इस प्रोजेक्ट को लेकर अतिरिक्त मुख्य सचिव बृजेश मेहरोत्रा ​​के नेतृत्व में वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम ओड़िसा के दौरे पर है| टीम ने बिहार सरकार (Bihar Government) के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए ओड़िसा (Odisa) के मुख्यमंत्री का शुक्रिया अदा किया|

टीम ने ओड़िसा के मुख्य सचिव सुरेश चंद्र महापात्रा की अध्यक्षता में हुई बैठक में ओडिशा सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक चर्चा की और एक बंदरगाह सुविधा स्थापित करने का प्रस्ताव रखा। विकास आयुक्त प्रदीप कुमार ने बिहार के अधिकारियों को बिहार की आवश्यकता का आकलन करने की सलाह दी ताकि बंदरगाह सुविधा के अनुसार योजना बनाई जा सके। वही महापात्रा ने मौजूदा नीतियों के अनुसार हर संभव मदद का आश्वासन दिया।

वाणिज्य और परिवहन सचिव मधुसूदन पाढ़ी ने कहा कि ओडिशा तट के किनारे 14 स्थानों को एक अध्ययन के माध्यम से बंदरगाहों के विकास के लिए चिह्नित किया गया है। पारादीप  बंदरगाह के दक्षिण में सात और उत्तर में सात स्थानों के बारे में संक्षिप्त विवरण पर चर्चा की गई।

यह जानबूझकर किया गया था कि पारादीप के उत्तर की ओर कुछ स्थान बिहार के लिए अधिक उपयोगी हो सकते हैं। बिहार की एक तकनीकी टीम जल्द ही सभी पहचान किए गए स्थानों को देखने और एक पोर्ट सुविधा विकसित करने की व्यवहार्यता का आकलन करने के लिए ओडिशा का दौरा करेगी।

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बिहार के आईटीआई में 2500 पदों पर होगी भर्तियां, जल्द शुरू होगी प्रक्रिया

बिहार के युवाओं के लिए नौकरी पाने का एक सुनहरा अवसर बिहार सरकार प्रदान कर रही हैं। बिहार के युवाओं को और अधिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए, राज्य सरकार सरकारी आइटीआइ के रिक्त पदों को भरेगी। बिहार सरकार खाली पड़ें पदों को भरने की प्लानिंग कर रही हैं। इसके लिए श्रम संसाधन विभाग को आदेश दे दिया हैं।

खबर के मुताबिक लगभग 2500 पदों को चरणवार तरीके से भरा जाएगा। इसको लेकर बहुत जल्द नोटिश जारी किया जा सकता हैं। पिछले दिनों विभाग के शीर्ष स्तर पर प्रशिक्षण निदेशालय की समीक्षा की गई। पाया गया कि खाली पदों के कारण कौशल विकास प्रभावित हो रहा है। अगर खाली पदों को भरा जाए तो सरकारी आईटीआई के प्रशिक्षण की गुणवत्ता और बेहतर हो जाएगी।

2500 पद पर होंगी भर्तियां

बता दें की वर्तमान समय में बिहार में 149 सरकारी आईटीआई हैं। इनमे 25,000 छात्र पढ़ाई करते हैं। यहां 2700 इंस्ट्रक्टर , 535 ग्रुप इंस्ट्रक्टर , 325 प्राचार्य एवं उप प्राचार्य संवर्ग के पदाधिकारियों की आवश्यकता है। लेकिन यहां बहुत से पद खाली पड़ें हैं। जिससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही हैं।

प्रशिक्षण के लिए खरीदे गये चीजों का सही तरीके से रखरखाव के खातिर 87 भंडार पाल तो प्रशिक्षण के अवधि के दौरान दुर्घटना होने पर प्राथमिक इलाज के लिए 120 कंपाउंडर के पद पर भी बहाली होने हैं। अब तक एक भी भंडार पाल को नियुक्त नहीं किया गया है। कार्यकारी प्रणाली में गतिशील कार्य करने वाले समूह प्रशिक्षक को भंडार पाल का काम दिया गया था, जो अभी भी चल रहा है। केवल दो कंपाउंडर कार्यरत हैं।

सबसे अधिक पद इंस्ट्रक्टर के खाली हैं

विभाग ने तय किया है कि इस बार बहाली की प्रक्रिया ठोक-बजाकर शुरू किया जाए। बता दें की सबसे अधिक पद इंस्ट्रक्टर के खाली हैं। जानकारी के अनुसार हर साल इंस्ट्रक्टर की नियुक्ति का मामला आता है तो मामला न्यायालय में चला जाता है। साल 2016 में 1200 गेस्ट इंस्ट्रक्टर को प्रशिक्षण देने हेतु आमंत्रित किया गया था लेकिन बाद में इन्हें भी हटाया गया।

1 अगस्त से शुरू होंगी ऑनलाइन क्लास

एक अगस्त से प्रदेश के सभी इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक संस्थानों में ऑनलाइन क्लास लगेंगी। इस आशय के स्पष्ट आदेश विज्ञान एवं प्रावैधिकी विभाग ने जारी किये हैं।यह क्लास नियमित रूप से संस्थानों के खुलने तक जारी रहेंगे।

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बिहार के नियोजित शिक्षकों के मौत से आहात एक शिक्षिका का नीतीश कुमार के नाम एक ख़त

आदरणीय नीतीश चच्चा

प्रणाम!

कोरोना से प्रभावित लोगों में आपका नाम न आने से मैं सुनिश्चित हूँ कि आप सकुशल अपने तमाम सुरक्षा प्रसाधनों के बीच सुरक्षित और खुश महसूस कर रहे होंगे| मुझे उम्मीद है कि दुनिया के सभी अच्छे शासकों की तरह आप भी अपनी जनता के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित होंगे| मुझे यह भी उम्मीद है कि आप अपने लोगों को इस खतरनाक परिस्थिति से उबार लेंगे| यूँ भी लोग कहते हैं कि बिहारियों की जिजीविषा की तुलना किसी अन्य से नहीं की जा सकती|

आप सोच रहे होंगे कि हम कौन हैं, जो प्रणाम-पाति करके आपको इतना लम्बा सा खत लिख रहे हैं| दरअसल हमारी पहचान आपके समक्ष बहुत ही छोटी है| आप जहाँ देश के २९ मुख्यमंत्रियों में जगह रखते हैं, वहीं हम देश की १२१ करोड़ जनसंख्या का वो हिस्सा हैं जिसकी भागेदारी से लोकतंत्र जीवित होता है| यह प्यासे के लिए एक बूंद जैसा भी है, पर एक बूंद की कीमत जानने के लिए प्यास होनी भी तो ज़रूरी है| है कि नहीं!

यही प्यास लिए आप हर पांचवें साल हमारे पास आते हैं और हम एक बूंद बनकर सजदे में खड़े मिलते हैं| पिछली बार भी आप आये थे जीतने के लिए| आप जीत भी गये थे, बाकी…| बाकी में बाकी लग गया था| हालाँकि हम राजनीतिशास्त्र के अल्पज्ञ हैं और अपने आप को राजनैतिक लोगों के बीच खड़ा कर सकने में भी असक्षम हैं| वो तो यह साल फिर से वही पांचवां साल है, तो गाहे-बगाहे याद आ जाती हैं ये बातें|

बिहार, जिसके शासक हैं आप, विगत पंद्रह वर्षों से, उसकी प्रसिद्धि प्राचीन काल से ही ‘शिक्षा’ को लेकर रही है| किसी प्रदेश के विकास का पहला पायदान आज भी शिक्षा ही है| विगत वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में बिहार की प्रगति को विशेषज्ञों द्वारा जांचा-परखा जाएगा, पर आज हम इससे जुड़ी धुरियों की स्थिति तो देख ही सकते हैं|

प्रदेश की शिक्षा चार स्तंभों पर टिकी है| पहला अभिभावक, दूसरा छात्र, तीसरा शिक्षण तंत्र और चौथा शिक्षक| पहला स्तम्भ यानी अभिभावक पर बात करना बेईमानी होगी, क्योंकि बिहार अशिक्षित जनसंख्या वाला राज्य रहा है| यहाँ के शिक्षित ६१ प्रतिशत लोगों में असल में शिक्षित अभिभावक की तलाश मुश्किल है| कुल मिलाकर पहला स्तम्भ मरम्मत या पूरी तरह से बदलाव की मांग करता है| दूसरा स्तम्भ यानी छात्र, जिसके ऊपर भावी सुसंस्कृत नागरिक बनने के साथ शिक्षित अभिभावक बनने का भी दायित्व है, हमेशा की तरह आज भी एक मजबूत स्तम्भ है पर यह स्तम्भ बाकी स्तंभों के उचित कार्य करने से ही स्वस्थ्य दिखाई देता है|

तीसरा स्तम्भ शिक्षण तंत्र है| शैक्षणिक विधि-व्यवस्था, जिसके निर्देशों के पर ही बाकी सतम्भों का कार्य निर्भर है| इस तंत्र द्वारा आपने विगत वर्षों में समुचित प्रयास किये हैं जिससे यह स्तम्भ मजबूत बन सके| परन्तु आपके प्रयासों ने विद्यालयों को भोजनालय में तब्दील करने में कोई कसर नहीं छोड़ी| हालात तो ऐसे हैं कि विद्यालय भोजन ग्रहण कराने के मुख्य उद्देश्य से खोले जाते हैं और बीच में कभी समय बचे तो अधिगम कार्य भी करा लिए जाते हैं|

चौथा स्तम्भ, शिक्षक, सबसे दयनीय स्थिति में अपने-आप को सम्भालते हुए आपके प्रदेश की शिक्षा का दायित्व निर्वहन करता है| बाक़ी तीनों स्तंभों की कमियों को छुपाता, सबकी मार झेल यह खुद को मजबूत दिखाने का प्रयास करता है| पर इसका महत्त्व बाक़ी तीनों स्तंभों द्वारा उपेक्षित है| ऐसे में यह शिक्षा रूपी भवन टिके तो कब तक?

एक तरफ शिक्षकों को शिक्षकेत्तर कार्यों में संलिप्त रखा जाता है वहीं दूसरी तरफ उन्हें समय पर वेतन न देकर उनके कार्यों की उपेक्षा भी की जाती है| पदाधिकारियों द्वारा विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन के उद्देश्य से विद्यालय भ्रमण करना और विद्यालय की शैक्षणिक गतिविधियों पर ध्यान न देना भी विद्यालय समाज को शैक्षणिक गतिविधिओं से दूर करता है|

प्रत्येक वर्ष नियोजित शिक्षक एक ही मांग के साथ हड़ताल पर जाते हैं, जिससे उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगती है| उचित मांगों के साथ शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बावजूद दंडात्मक कार्यवाई निश्चित ही उन्हें उपेक्षा का शिकार बनाती है|

इसका व्यापक मनोवैज्ञानिक असर समाज में शिक्षकों की प्रतिष्ठा तथा पुनः शिक्षकों के मनोबल पर पड़ता है, जिससे कक्षा में वो अपना सौ प्रतिशत दे सकने में समर्थ नहीं हो पाते|

यदि सरकार को लगता है कि ये शिक्षक योग्य नहीं हैं तो फिर सरकार को यह भी सोचना चाहिए कि उनके छात्रों का भविष्य कैसे बनेगा| इस परिस्थिति में क्या सरकार योग्यता सम्बन्धी जाँच परीक्षा नहीं ले सकती? और यदि ये शिक्षक योग्य हैं तो फिर इन्हें अपने कार्य का उचित वेतन क्यों नहीं दिया जाता? क्या शिक्षकों की उपेक्षा सम्पूर्ण शिक्षण तंत्र की उपेक्षा नहीं है? क्या यह बिहार को सौ प्रतिशत शिक्षित प्रदेश बनाने में एक बड़ा अवरोध नहीं है? क्या हर साल के हड़ताल और तालाबंदी में छात्रों की शिक्षा बाधित नहीं हो रही, शिक्षकों की ऊर्जा भंग नहीं हो रही या फिर इन बातों का सरकार पर कोई असर नहीं पड़ता?

अपने वृहत परिवार के मुखिया का पदभार संभालते हुए आपने भी शिक्षकों का मनोबल तोड़ने में महती भूमिका निभाई| शिक्षक अपनी प्रतिष्ठा बचाएं तो आपकी धुरी हिल जाएगी और आपकी धुरी बचाएं तो अपने स्वाभिमान को भी दाव पर लगाना पड़ेगा|

आपके प्रदेश में शिक्षकों की सामाजिक प्रतिष्ठा अत्यंत निंदनीय है| स्थिति यह है कि यदि बेरोजगारी इस हद तक हावी न हो तो कोई बच्चा, अपने सपने में भी शिक्षक बनने का ख्वाब नहीं देखता| यहाँ शिक्षण कार्य कर रहे लोगों का सर्वे कराएँ कि वो आपके शिक्षण तंत्र से कितने संतुष्ट हैं, आपको जवाब मिल जाएगा|

बहरहाल! मैं अब वो कहना चाहती हूँ जो कहने के लिए मैंने इतनी भूमिका गढ़ी है| कोरोना काल के इस विकट विषम परिस्थिति में जितने चिंतित आप अपने राज्य के लिए हैं, एक मुखिया के तौर पर, ठीक उतना ही चिंतित वह शिक्षक भी है, जो अपने परिवार का मुखिया है| आप तो पद से विमुक्त होकर अपने आप को इस वृहत परिवार की नैतिक जिम्मेदारी से मुक्त कर सकते हैं परन्तु जब एक परिवार का मुखिया अपनी नैतिक जिम्मेदारी नहीं निभा पाता न तो वो जीवन से ही विमुक्त कर लेता है खुद को| पिछले दिनों अंतिम साँसें भी गंवा चुके साठ से अधिक नियोजित शिक्षकों ने शायद यही कहना चाहा आपसे|

बिहार में नियोजित शिक्षक, जिनको पूर्ण वेतनमान तक हासिल नहीं है, जिनको राज्यकर्मी का दर्जा तक नहीं मिला, जिनकी कोई निश्चित सेवा-शर्त नहीं है, जिनकी वेतन वृद्धि तक रुकी हुई है, उनसे इस समय केन्द्रीय कर्मचारियों की भांति महंगाई भत्ता भी छीन लिया जाना कितना न्याय संगत फैसला है? इतने कम वेतन के साथ परिवार की सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन उन्हें भी तो करना होता है, कम-से-कम उनसे जीने का हक तो न लिया जाए|

आप अपने शिक्षकों का मनोबल तोड़ने की बजाए उन्हें उचित व्यवस्था दे सकते हैं, उन्हें उच्च-स्तरीय प्रशिक्षण दिलवा सकते हैं, उनसे जुड़कर उत्साहवर्धन करके उनके ज्ञान का पूरा सदुपयोग कर सकते हैं| फिर अपने ही शिक्षकों पर ये दोषारोपण कितना जायज है? अपनी ही जनता पर शासक का यह अविश्वास किस हद तक सही है?

बिहार की अशिक्षा का एक प्रमुख कारण अव्यवस्थित योजनायें हैं, जिनका नियंत्रण न सिर्फ सुदृढ़ शिक्षण तंत्र वरन सुशासन का भी मजबूत आधार बन सकता है|

बाकी सब कुशल-मंगल हो! हमारा प्रदेश कोरोना की लड़ाई जल्द-से-जल्द जीते| आप स्वस्थ रहें, स्वस्थ फैसले लें और अपनी कृति बनाये रखें! इन्हीं शुभकामनाओं के साथ पुनः प्रणाम!

– नेहा नूपुर 

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बिहार सरकार ने अपने बच्चों को कोटा में छोड़ दिया, अब राजस्थान सरकार उन्हें भेज रही घर

कोटा में फसे छात्रों के लिए यूपी सरकार द्वारा बसें भेजकर उसे वापस अपने राज्य लाने के बाद देश के दुसरे राज्यों ने अपने बच्चें को या तो वापस बुला लिया, नहीं तो वापस लाने की तैयारी में है| लगभग दर्जन भर प्रदेशों की सरकारों ने अपने बच्चों को कोटा से बसें भेजकर वापस बुला लिया।

मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने अपने 2800 छात्रों और गुजरात की भाजपा सरकार ने भी 350 छात्रों को बसें भेजकर वापस बुला लिया। मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने अपने 2800 छात्रों और गुजरात की भाजपा सरकार ने भी 350 छात्रों को बसें भेजकर वापस बुला लिया।

कोटा के एडीएम नरेंद्र गुप्ता के अनुसार, दादर -नगर हवेली के 50 बच्चे बसों में भरकर गुरुवार को घरों को वापस चले गये। द्वीव के 6 बच्चे भी लौट गए। शुक्रवार को 49 बसों में भरकर राजस्थान के विभिन्न शहरों के छात्र घर लौटे। हरियाणा के फंसे 800 बच्चों की भी घर वापसी हो गई। हरियाणा के बच्चे 31 बसों के जरिए अपने घर पहुंचे। 18 बसें भेजकर असम सरकार ने भी 400 अपने बच्चों को घर बुला लिया।

मगर नीतीश कुमार के जिद के कारण सिर्फ बिहार के बच्चे को कोटा में अकेले छोड़ दिया है| हालत यह है कि इसके लिए अभिवावकों को कोर्ट तक का दरवाज़ा खटखटाना पड़ रहा है| रुवार को एक याचिका पर पटना हाईकोर्ट में भी सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को निर्देश दिया है कि 5 दिनों के अंदर इस मामले पर जवाब दें। अगली सुनवाई 27 अप्रैल को होगी। इतने राज्यों द्वारा अपने बच्चों को बुलाने के बाद भी बिहार सरकार लॉकडाउन के सिधांत की दुहाई दे रही है|

आखिरकार राजस्थान की सरकार ने ही अपने तरफ से पहल की है और बिहार के छात्रों के लिए परमिट जारी कर रही है| लेकिन छात्रों को कोटा से वाहन नहीं मिल रहे| वाहनों के लिए छात्र परेशान हैं| कोटा में वाहन उपलब्ध नहीं हैं, जिसकी वजह से जो उपलब्ध हैं, वे काफी अधिक रकम की मांग कर रहे हैं| ऐसे में अब राजस्थान सरकार ने फैसला किया है कि बिहार के छात्रों को उनके राज्य पहुंचाने के लिए बसें लगाई जाएंगी, मगर वह ऑन पेमेंट होगा|

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Coronavirus: अपनी नाकामी छुपाने के लिए झूठ बोल रही है नीतीश कुमार!

पूरा देश कोरोना वायरस को लेकर चिंतित है। इससे निपटने के लिए सरकार कई दावे कर रही है मगर बिहार सरकार के दावों में सच्चाई नहीं दिख रही। सरकारी आंकड़ों के अनुसार आज से पहले तक बिहार में एक भी पॉजिटिव केस नहीं था मगर अचानक इससे एक की मौत कैसे हो गयी? सरकार क्या आंकड़े छुपा रही है या अभी तक पर्याप्त टेस्ट ही नहीं हो पा रहा?

बिहार के जाने-माने डॉक्टर अरुण शाह ने चमकी बुखार (एइएस संक्रमण) पर ख़ूब काम किया है| वो कहते हैं, “यह आश्चर्य इसलिए है क्योंकि यहां लोग उपेक्षा कर रहे हैं| आमजन में डर है| मगर सिस्टम लाचार और बदहाल है| केवल स्कूल-कॉलेज बंद करना, आयोजनों को रद्द करना ही एहतियात नहीं हैं| सबसे ज़रूरी है इस वायरस को डीटेक्ट करना| बिहार में डायग्नोसिस की यह प्रक्रिया हो ही नहीं पा रही है|”

डॉ शाह बिहार में कोरोना के संदिग्ध मरीज़ों की पहचान और उनके टेस्ट की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हैं|

वो कहते हैं, “सबसे पहले तो बिहार में कोई लैब नहीं है, जहां यह जांच हो सके| सारे ज़िलों से लिए गए जांच के सैंपल्स पटना में एक जगह एकत्र किए जाते हैं, फ़िर इन्हें कोलकाता जांच के लिए भेजा जाता है. वहां से रिपोर्ट आती है| यह एक लंबी प्रक्रिया है| ऐसे में सवाल है कि सैंपल्स की क्वालिटी क्या वैसी ही रह पाती है जैसी रहनी चाहिए थी!”

ज्ञात हो कि पटना के आरएमआरआइ के निदेशक डॉ. प्रदीप दास ने बताया कि देर रात जांच में दो कोरोना पॉजिटव मामले मिले हैं। उन्‍होंने बताया कि देर रात तक 114 नमूनों की जांच हुई थी, जिनमें शाम तक सौ सैंपल की जांच पूरी हो चुकी थी और आज एक की मौत की भी खबर आई है।

जांच की पूरी प्रक्रिया को लेकर पीएमसीएच के सूपरिटेंडेंट बिमल कुमार ने बीबीसी को कई बातें बताईं

कारक बताते हैं, “हमलोग केवल सैंपल्स कलेक्ट कर सकते हैं| उसका टेस्ट नहीं कर सकते| हमारे पास जितने भी‌‌ संदिग्ध मरीज़ आते हैं उनका सैंपल लेकर आरएमआरआई को भेज देते हैं| वहां ‌से पहले पुणे भेजा जाता था, लेकिन अब कोलकाता में भी लैब सेटअप हो जाने से नजदीक होने के कारण वहीं सैंपल्स भेजे ‌जा रहे हैं|”

यह पूछने पर कि इस पूरी प्रक्रिया में कितना वक़्त लगता है? और क्या इतने वक़्त तक सैंपल्स की क्वालिटी मेंटेन रह पाती है?

कारक कहते हैं, “आपको नहीं समझ में आ रहा है कि कोलकाता भेजने और मंगाने में कितना समय लग सकता है? मानकर चलिए कि कम से कम 12 घंटे तो लग ही जाते हैं|” सैंपलों की क्वालिटी को लेकर उन्होंने कहा, “हमारा काम सिर्फ़ सैंपल कलेक्ट करके आरएमआरआई को देना है| बाक़ी का काम वही करती है|”

लेकिन अगर 12 घंटे में भी सैंपल जांच के लिए कोलकाता पहुंच जा रहे हैं तो टेस्ट की रिपोर्ट आने में तीन से चार दिन का वक़्त क्यों लग रहा है? बिमल इसके जवाब में कहते हैं, “ये तो आपको कोलकाता के लैब सेंटर से और आरएमआरआई से पूछना चाहिए| हम आपको सिर्फ़ इतना बता सकते हैं कि हमारे यहां भेजे गए सभी सैंपलों की रिपोर्ट निगेटिव आई है|”

पुणे-पटना एक्सप्रेस पर हजारों लोग पहुँच रहे बिहार 

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कोरोना से बचाव के लिए डॉक्टर कह रहे हैं कि भीड़ से दूर रहें मगर हजारों की भीड़ एक साथ पुणे-पटना एक्सप्रेस से बिहार पहुँच रही है| ज्ञात हो कि महाराष्ट्र कोरोना से सबसे ज्यादा संक्रमित राज्य है| वहां से अबतक सबसे ज्यादा मामले आयें हैं| कई राज्यों ने बाहर से आने वाले ट्रेन को अपने राज्य में आने से रोक दिया था मगर बिहार सरकार उसको लेकर भी लापरवाह दिखी| सभी रेलवे स्टेशन पर स्क्रीनिंग की व्यवस्था भी नहीं की गयी है| पुणे-पटना एक्सप्रेस से एकसाथ आ रहे हजारों लोगों का जांच करना संभव नहीं दिख रहा| हालांकि रेलवे ने 31 मार्च तक ट्रेन सेवा स्थगित करने का फैसला लिया है|

जाँच से भागने का मामला 

खबर आ रही है कि दो दिन पहले पटना के अस्पताल में स्कॉटलैंड से आया राहुल शर्मा भाग गया था। वो कोरोना पॉजिटिव निकला। वह पटना एम्स से लेकर पीएमसीएच गया फिर भाग गया था। दूसरे दिन राहुल शर्मा को फुलवारीशरीफ के गोनपुरा से प्रशासन ने धर दबोचा लेकिन गिरफ्त में आने से पहले राहुल शर्मा लगातार कई लोगों के संपर्क में रहा। पकड़ने के बाद उसे एनएमसीएच में भर्ती कराया गया था।

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मोदी सरकार ने आयुष्मान भारत योजना के तहत बिहार को एक पैसा भी नहीं दिया

पिछले साल गर्मी के मौसम में चमकी बुखार (Chamki Bukhar) के कारण सकड़ों बच्चों के मौत को बिहार आज तक नहीं भुला पाया होगा मगर बिहार की डबल इंजन की सरकार सकडों बच्चों के मौत के बाद भी चैन से सोयी हुई है| विकास पुरुष नीतीश कुमार के 15 साल के शासन में बिहार (Bihar) के स्वास्थ सेवाओं में  कुछ खास बदलाव तो नहीं ही आया है, इसके साथ ही वो केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना को भी लागू करने में नाकाम रही है|

केंद्र ने स्वास्थ बीमा योजना के तहत सबसे खराब प्रदर्शन वाले राज्य के रूप में उभरने के कारण इस वित्तीय वर्ष में आयुष्मान भारत-पीएम जन आरोग्य योजना (Ayushman Bharat-PM Jan Arogya Yojana ) के तहत एनडीए शासित बिहार सरकार को एक पैसा भी जारी नहीं किया है।

देश में सबसे ज्यादा लाभार्थी परिवारों के बावजूद कोई अनुदान नहीं

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पिछले हफ्ते शुक्रवार संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, इस साल AB-PMJAY के तहत केंद्र द्वारा जारी किए गए 1,699 करोड़ रुपये में से, बिहार, जहाँ देश में सबसे ज्यादा 11 मिलियन इच्छित लाभार्थी परिवारें मौजूद हैं, उसको कोई अनुदान नहीं मिला है। इसका एक बड़ा कारण राज्य का खराब प्रदर्शन था|

बिहार ने’ लगभग 17 महने पहले इस योजना के तहत लगभग 156,000 लोगों के अस्पताल में भर्ती होने की सूचना दी थी। बिहार में अब तक लगभग 2.2 मिलियन परिवारों में से सिर्फ लगभग 4.4 मिलियन व्यक्तिगत ई-कार्ड जारी किए गए हैं, जिससे उन्हें योजना का उपयोग करने की अनुमति मिलती है| राज्य की लगभग चार-चौथाई आबादी अभी भी बीमा योजना बंचित है।

“कुछ अन्य राज्यों के विपरीत, हमें इस तरह की स्कीम चलाने का कोई अनुभव नहीं था। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने Economic Times को बताया कि बुनियादी ढांचे को स्थापित करने और मनवीय चिकित्सा संसाधन प्राप्त करने में समय लगा, इसलिए हम कुछ अन्य राज्यों से पीछे हैं। लेकिन अब हम कार्यान्वयन में तेजी ला रहे हैं … पिछले तीन महीनों में, हमने 20 लाख ई-कार्ड जारी किए हैं।”

उन्होंने कहा कि राज्य ने अब तक 97 करोड़ रुपये के भुगतान के दावे किए हैं – राज्य को पिछले वित्तीय वर्ष में केंद्र से 88 करोड़ रुपये मिले। स्वास्थ्य मंत्रालय ने संसद को बताया, “तीन बड़े राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार) में लाभार्थी आबादी का 30% हिस्सा पहली बार इस योजना को लागू कर रहा है और इसलिए उनकी मांग अभी भी बढ़ रही है।”

यूपी और बिहार के खराब प्रदर्शन का इस योजना पर बहुत बुरा असर पड़ा है, जिसका 2019-20 के संशोधित बजट में आवंटन 6,400 करोड़ रुपये के शुरुआती आवंटन से 3,200 करोड़ रुपये किया गया है। 3,200 करोड़ रुपये के संशोधित आवंटन में से, केंद्र 4 फरवरी को केवल 1,699 करोड़ रुपये खर्च करने में सक्षम रहा है, जबकि 4 फरवरी को, वित्तीय वर्ष समाप्त होने में दो महीने से कम समय बचा है।

बीजेपी शासित यूपी को अब तक सिर्फ 100 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यूपी, जिसके 11.8 मिलियन लाभार्थी परिवार हैं, ने पिछले 17 महीनों में केवल 305,000 अस्पताल में भर्ती होने की सूचना दी है, लेकिन 8.6 मिलियन ई-कार्ड वितरित करने के माध्यम से बिहार की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।

“चार राज्यों (पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, ओडिशा और दिल्ली), जो पात्र लाभार्थी आबादी के 20% के लिए खाते में AB-PMJAY को लागू नहीं कर रहे हैं। दो बड़े राज्य (पंजाब और राजस्थान) 2019 के आखिर में एबी-पीएमजेएवाई में शामिल हो गए हैं, ”केंद्र ने संसद को बताया। 4 फरवरी को, इस योजना के शुरू होने के बाद से 32 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 806.1 मिलियन अस्पताल में पंजीकरण हुए, जिसमें 1,1285.64 करोड़ का खर्च आया।

 

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राजकोषीय अनुशासन के मामले में बिहार देश का सबसे अव्वल राज्य

देश के प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई ने माना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजकोषीय प्रदर्शन सूचकांक के मामले में बिहार पूरे देश में अव्वल स्थान पर है| बिहार ने इस मामले में गुजरात, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे संपन्न राज्यों को भी पीछे छोड़ दिया है। वहीं राजकोषीय अनुशासन के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन पश्चिम बंगाल, पंजाब और केरल का रहा है। यह जानकारी उद्योग संगठन सीआइआइ ने एक रिपोर्ट के माध्यम से दी है।

इसपर बिहार के उपमुख्यमंत्री और वित्तमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि यह सूचकांक चार मानकों- राजस्व व पूंजी व्यय सूचकांक ( Revenue And Capital Expenditure Index ), राज्य के अपने टैक्स की प्राप्तियों का सूचकांक ( Own Tax Reciepts Index ), राजकोषीय व राजस्व घाटे को दर्शाने वाले डेफिसिट प्रूडेंस इंडेक्स ( Deficit Prudence Index ) और कर्ज सूचकांक (Debt Index ) के आधार पर तैयार किया गया है| इसमें मध्य प्रदेश दूसरे और छत्तीसगढ़ तीसरे स्थान पर है| 100 अंकों वाले इस सूचकांक में बिहार का स्कोर सर्वाधिक 66.5 है, जबकि पश्चिम बंगाल का सबसे कम 23.3 है|

खास बात यह है कि 2004-05 से 2013-14 तक आंध्र प्रदेश का प्रदर्शन इस सूचकांक पर शानदार था लेकिन 2014 में राज्य के विभाजन के बाद वित्तीय संकट के चलते उसका प्रदर्शन खराब हो गया। जिस राज्य का स्कोर 100 अंकों वाले इस सूचकांक पर जितना ज्यादा होता है, उसका प्रदर्शन उतना ही बेहतर माना जाता है। इस सूचकांक पर बिहार का स्कोर 66.5 है जबकि पश्चिम बंगाल का सबसे कम 23.3 है।

सीआइआइ के मुताबिक ‘राजकोषीय प्रदर्शन सूचकांक’ पर मध्य प्रदेश दूसरे और छत्तीसगढ़ तीसरे स्थान पर है। दूसरी ओर महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा जैसे उच्च आमदनी वाले राज्य लगातार इस सूचकांक पर पिछड़ रहे हैं। व्यय की गुणवत्ता के मामले में आर्थिक रूप से समृद्ध राज्यों का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। सीआइआइ का कहना है कि कम आय वाले राज्यों में बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा ने व्यय में गुणवत्ता बरतते हुए हाल के वर्षो में लगातार राजकोषीय प्रदर्शन सूचकांक पर शानदार प्रदर्शन किया है।

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) ने केंद्र और राज्यों के राजकोषीय प्रदर्शन का आकलन करने के लिए यह सूचकांक तैयार किया है। सीआइआइ का कहना है कि समग्र राजकोषीय प्रदर्शन सूचकांक केंद्र और राज्यों के स्तर पर बजट की गुणवत्ता को परखने का तरीका है।

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2000 करोड़ की पूंजी के साथ शरू होगा पटना मेट्रो, दिसंबर में हो सकता है शिलान्यास

बिहार के लोग पटना में मेट्रो चलने का सपना काफी दिनों से देख रहे हैं मगर किसी न किसी कारण से पटना मेट्रो का शरू होने से पहले कुछ अर्चने आ जाती है| मगर सरकार के तरफ से आ रही ख़बरों के अनुसार पटना मेट्रो की अच्छे दिन अब आने वाले हैं|

राजधानी के सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में मेट्रो को शामिल करने की दिशा में सरकार ने एक और कदम आगे बढ़ाया है। मंगलवार को राज्य मंत्रिमंडल ने पटना मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एसपीवी) के गठन को मंजूरी दे दी है। दो हजार करोड़ की पूंजी से शुरू होने वाले इस कॉरपोरेशन को मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन की जिम्मेवारी सौंपी गई है। पांच हजार शेयर वाली कंपनी में नगर विकास विभाग की हिस्सेदारी 98.9 फीसदी होगी।

पटना मेट्रो के लिए बनेगी डबल टनल हर एक से डेढ़ किमी पर होंगे स्टेशन

टना मेट्रो की संशोधित डीपीआर में हर एक से डेढ़ किमी पर मेट्रो स्टेशन रहेगा| दोनों कॉरिडोर मिला कर बनने वाले 24 मेट्रो स्टेशन में गोल्फ क्लब से पटना जू के बीच दूरी सबसे कम 671 मीटर जबकि पटना जंक्शन से मीठापुर के बीच सबसे अधिक लगभग दो किमी की दूरी होगी| दोनों कॉरिडोर पर अप व डाउन मार्ग के लिए  अलग-अलग रास्ते होंगे| अंडरग्राउंड में डबल टनल बनेगा, जिसमें एक से मेट्रो पूरब से पश्चिम जबकि दूसरे से पश्चिम से पूरब चलेगी|

दानापुर-मीठापुर कॉरिडोर पर आठ अंडरग्राउंड स्टेशन :  जानकारी के मुताबिक दानापुर-मीठापुर कॉरिडोर वन पर सबसे अधिक आठ स्टेशन अंडरग्राउंड रखे जाने हैं.
इस कॉरिडोर पर मेट्रो दानापुर से एलिवेटेड होकर चलेगी| यह सगुना मोड़ होते हुए आरपीएस मोड़ तक एलिवेटेड आयेगी, जहां से अंडरग्राउंड हो जायेगी| अगले पाटलिपुत्रा, रुकनपुरा, राजाबाजार, गोल्फ क्लब, पटना जू, विकास भवन, विद्युत भवन और पटना स्टेशन अंडरग्राउंड ही रहेंगे| पटना स्टेशन से मीठापुर तक दो किमी लंबी मेट्रो लाइन सड़क के बिल्कुल समानांतर होकर चलेगी|
पटना मेट्रो की फाइल फिलहाल विकास आयुक्त की अध्यक्षता वाली लोक वित्त समिति को भेजी गयी है| नगर विकास एवं आवास विभाग को समिति की मंजूरी का इंतजार है| मंजूरी मिलते ही इसे बिहार कैबिनेट को भेज दिया जायेगा|
बिहार कैबिनेट की मंजूरी के बाद इसे भारत सरकार के अनुमोदन के लिए भेजा जायेगा| भारत सरकार उस डीपीआर का मूल्यांकन कर एनओसी के लिए भेजेगी| इसमें एक से दो महीने का समय लग सकता है| भारत सरकार की सहमति के बाद टेंडर प्रक्रिया में भी दो से तीन माह लगने की संभावना है| तेजी से प्रक्रिया होने के बाद भी वर्क अलॉट कर शिलान्यास का काम दिसंबर से पहले होने की उम्मीद नहीं दिख रही|

नीतीश कैबिनेट का होगा विस्तार! ये बनेंगे नए मंत्री ..

समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के इस्तीफे के बाद, बिहार के राजनितिक गलियारों में नीतीश कैबिनेट के विस्तार का चर्चा जोरो पर है| कैबिनेट में फिलहाल आठ जगह खाली है। आधे दर्जन नए मंत्रियों के जल्द शामिल किए जाने की चर्चा है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में सामाजिक समीकरण को साधने के लिए यह कवायद की जाएगी|

हाल के दिनों में एससी-एसटी एक्ट को लेकर दलितों ने मोदी सरकार के खिलाफ असरदार आंदोलन किया है| दो अप्रैल को दलितों का असरदार भारत बंद तो था ही, उसके साथ ही दलित नेता जीतन राम मांझी ने भी एनडीए का दामन छोड़ राजद के साथ जा चुके हैं| सूत्रों के मुताबिक, नीतीश की कोशिश दलितों में पैठ बढ़ाने और गैर यादव अन्य पिछड़ा वर्ग को ज्यादा प्रतिनिधित्व देने की है| ताकि दलितों के बीच एक अच्छा सन्देश जाए और पार्टी का आधार मजबूत हो| इसी के मद्देनजर श्याम रजक और कांग्रेस छोड़ कर जेडीयू का दामन थामने वाले अशोक चौधरी कैबिनेट के रेस में सबसे आगे नजर आ रहे हैं|

मंजू वर्मा नीतीश सरकार में एकलौती महिला मंत्री थी| उसके इस्तीफा के बाद नीतीश कैबिनेट में महिला प्रतिनिधित्व ख़त्म हो गया है| महिला को प्रतिनिधित्व देने के लिए एक महिला मंत्री बनना तय है| बीमा भारती, रंजू गीता या लेसी सिंह इसके प्रबल दावेदार हैं|

इसके साथ ही मंजू वर्मा कुशवाहा समाज से आती है| इस समाज के वोट बैंक बार अभी सभी पार्टियों का नजर है| कुशवाहा समाज का समर्थन नीतीश कुमार को मिलता रहा है| मगर अब इस वोट बैंक पर अब कई लोग दाबा कर रहे हैं| नीतीश कुमार इस समाज को साधने के लिए मंजू वर्मा के जगह किसी दुसरे कुशवाहा नेता को ही मंत्रिमंडल सामिल करेंगे| कुशवाहा जाति से कई नेता इसके दावेदार हो सकते हैं, जिनमें अभय कुशवाहा और उमेश कुशवाहा शामिल हैं|

अभय कुशवाहा को युवा जदयू की कमान दे दी गई है और वह जिस मगध प्रमंडल से आते हें वहां से कृष्णनंदन वर्मा इस समाज से पहले ही मंत्री बने हुए हैं, इसलिए उत्तर बिहार के किसी कुशवाहा नेता को यह पद मिल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। भाजपा का कोटा लगभग पूरा हो गया है। नीतीश कैबिनेट में रालोसपा को कोई जगह नहीं मिली है। अगर एनडीए के केंद्रीय नेतृत्व का दबाव पड़ा तो रालोसपा के सुधांशु शेखर को भी मंत्री बनाया जा सकता है।

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बिहार सरकार ने ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले को 2 करोड़ का इनाम देने का किया ऐलान

खेल के लिए सुविधाओं और अवसरों के कमियों के बावजूद बिहारियों ने मौका मिलने पर विभिन्न खेलों में अपने प्रतिभा का जौहर देखाया है| राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिहार के खिलारियों ने कई बार राज्य और देश का नाम रौशन किया है|इसी को देखते हुए अब बिहार सरकार ने भी खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के मकसद से, एक बड़ा फैसला लिया है।

बिहार विधान परिषद में कला संस्कृति एवं युवा विभाग के बजट पर हुए सामान्य वाद-विवाद के दौरान सरकार ने यह घोषणा कि ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ी को इनाम स्वरूप 2 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। खिलाड़ियों के प्रोत्साहन के लिए सरकार ने ये घोषणा की है।

कला संस्कृति, खेल एवं युवा मामलों के प्रभारी मंत्री प्रमोद कुमार ने कहा कि बिहार के जो भी प्रतिभावान खिलाड़ी ओलंपिक में स्वर्ण पदक प्राप्त करेंगे, राज्य सरकार उन्हें ईनाम के रूप में दो करोड़ रुपये देगी । उन्होंने बताया कि राज्य में 141 स्टेडियम का निर्माण पूरा हो चुका है। शेष निर्माणाधीन हैं। बीते वर्ष 51 नए स्टेडियम बनाने की स्वीकृति दी गई है। सदन ने बाद में ध्वनिमत से कला संस्कृति, युवा एवं खेल विभाग के लिए 139.11 करोड़ की मांग को स्वीकृति दे दी।

 

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पुलिस वाला बनने का सपना होगा पूरा, इतने हजार पदों पर बिहार पुलिस की बंपर नियुक्ति

बिहार के उन युवाओं के लिए सुनहरा अवसर है जिसे खाकी वर्दी पहने का सपना है। बिहार पुलिस जल्द ही विभिन्न पदों परबबंपर बहाली कराने जा रही है। आने वाले दो वर्षों में सिपाही से लेकर डीएसपी तक के 8 हजार 837 पदों पर बहाली होने जा रही है.

राज्य सरकार ने पुलिस महकमे में सिपाही से लेकर डीएसपी तक के खाली पड़े पदों को भरने की कवायद तेज कर दी है. इसके तहत 2012-13 से 2017-18 तक सिपाही से लेकर डीएसपी तक के 43 हजार 731 पदाधिकारियों की बहाली करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके तहत अलग-अलग वर्ष के लिए पदों की अलग-अलग संख्या निर्धारित करके बहाली की प्रक्रिया पूरी की जा रही है.

 

इसमें सभी पदों पर महिलाओं के लिए 35 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है. इस कारण करीब तीन हजार पदों पर सिर्फ महिलाओं की ही बहाली होगी. मौजूदा वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए गृह विभाग ने छह पदों पर बहाली करने की स्वीकृति प्रदान कर दी है. इसके बाद पुलिस महकमा सिपाही से लेकर डीएसपी तक के पदों को जरूरत के हिसाब से अलग-अलग रिक्ति तैयार करने में जुटा हुआ है.  सिपाही से लेकर डीएसपी तक के पदों में अधिकतर पद प्रोन्नति से ही  भरे जाते हैं. मसलन इंस्पेक्टर, एएसआइ, हवलदार समेत अन्य. परंतु सिपाही,  दारोगा और डीएसपी के तीन महत्वपूर्ण पदों की बहाली सीधे तौर पर होती है.

 

भरे जायेंगे इतने पद

डीएसपी  34

इंस्पेक्टर  107

परिचारी प्रवर 11

प्रारक्ष पुलिस निरीक्षक 23

परिचारी  48

अवर निरीक्षक 932

प्रारक्ष अवर निरीक्षक 67

सहायक अवर निरीक्षक 1293

हवलदार  1109

सिपाही  5213

कुल  8837

अब तक भरे गये पद

डीएसपी 90

इंस्पेक्टर 319

परिचारी प्रवर 30

प्रारक्ष पुलिस निरीक्षक 60

परिचारी 144

अवर निरीक्षक 2795

प्रारक्ष अवर निरीक्षक 193

सहायक अवर निरीक्षक 3873

हवलदार 2054

सिपाही 15627

कुल 25185

 

राष्ट्रीय औसत को प्राप्त करने की कवायद

 

वर्ष 2015-16 तक 34 हजार 924 पदों पर बहाली हो चुकी है. इसमें वर्ष 2015-16 के लिए आवंटित 9 हजार 739 पदों में दारोगा, हवलदार समेत कुछ अन्य पदों को भरने की कवायद अंतिम चरण में चल रही है. दारोगा की बहाली के लिए कुछ दिनों पहले फिजिकल टेस्ट संपन्न हो चुका है.

 

इसके बाद जल्द ही परिणाम जारी कर दिये जायेंगे. सभी स्तर पर बहाली की प्रक्रिया पूरी होने के बाद वर्ष 2018 तक राज्य के पास जरूरत के मुताबिक बलों की संख्या पूरी हो जायेगी. इसके बाद राज्य में प्रति एक लाख आबादी पर पुलिस कर्मियों की संख्या राष्ट्रीय औसत 150 के आसपास हो जायेगी. वर्तमान में राज्य में प्रति एक लाख की आबादी पर पुलिसकर्मियों की संख्या औसतन 85 से 90 के बीच है.

खुशखबरी: बिहार राज्य की अपनी पहली इकाई बरौनी ताप बिजली घर से शुरु होगा उत्पादन

पटना: करीब दस साल के लंबे इंतजार के बाद बरौनी स्थित बिहार राज्य की अपनी पहली इकाई बरौनी ताप बिजली घर की 110 मेगावाट वाली पहली इकाई से आगामी 31 अगस्त तक व्यवसायिक बिजली का उत्पादन शुरू हो जाने की संभावना है.

 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के उर्जा सलाहकार पी के राय ने बताया कि यह परीक्षण सभी मापदंडों की जांच के लिए किया गया, हम इससे आगामी 31 अगस्त तक व्यवसायिक बिजली उत्पादन किये जाने को लेकर आशान्वित हैं.

पिछले गुरुवार को कोयला आधारित बीटीपीएस की इस इकाई से परीक्षण में 30, 40 मेगावाट का बिजली उत्पादन किया गया और अगर सब कुछ ठीक रहा तथा सभी मानकों एवं मापदंडों के अनुरूप पाया गया तो आगामी 31 अगस्त तक इससे व्यवसायिक बिजली का उत्पादन शुरू हो जाएगी।

बिहार की पहली अपनी इकाई

गौरतलब है कि मुजफ्फरपुर ताप बिजली घर की 110,110 मेगावाट की प्रत्येक इकाई का भेल द्वारा जीर्णोद्धार और आधुनिकीकरण का कार्य किये जाने के बाद वहां से बिजली का उत्पादन जारी है, जो कि एनटीपीसी और बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड का संयुक्त उपक्रम है. इन दोनों इकाई से उत्पादित होने वाली बिजली में एनटीपीसी की साझेदारी 67 प्रतिशत है. बिहार को वर्तमान में सभी स्रोतों से कुल 3408 मेगावाट बिजली की प्राप्ति होती है जिनमें से केंद्र से निर्धारित 3092 मेगावाट में से 2664 मेगावाट भी शामिल है.

बिजली सेक्टर में बिहार तेजी से सुधार कर रहा है।  केंद्र और राज्य सरकार संयुक्त रूप से काम कर रही है,  जिससे जमीनी स्तर पर भी सुधार दिख रहा है।