हाई कोर्ट के दवाब में अगर लॉकडाउन लगा है तो उसे गरीबों के आर्थिक मदद के लिए भी आदेश देना चाहिए

कोर्ट को और सरकार को यह सोचना चाहिए कि भले कोरोना माहामारी किसी के साथ भेदभाव नहीं करती मगर लॉकडाउन की मार गरीब और अमीर को अलग - अलग तरीके से पड़ती है.

आज कल सभी राज्यों की हाई कोर्ट कोरोना को लेकर असमान्य रूप से मुखर है और सरकारों से न सिर्फ कड़े सवाल पूछ रहें हैं, जरूरत पड़ने पर आदेश भी दे रही है। पटना हाई कोर्ट भी बिहार सरकार के नाक में दम की हुई है।

कल ही पटना हाई कोर्ट ने कोरोना के कारण राज्य में बिगड़ते हालात पर सरकार को फटकारा और चेतावानी दी कि अगर सरकार लॉकडाउन नहीं लगती है तो वो राज्य में लॉकडाउन लगायेगी।

कोर्ट के अल्टीमेटम का असर यह हुआ कि बिहार सरकार को मजबूरन राज्य में 15 मई तक लॉकडाउन लगाने की घोषणा करनी पड़ी। सरकार जनता के वोट से चुन के आती है, उसको जनभावना का ध्यान रखना होता है। लॉकडाउन के कारण गरीब और मिडिल क्लास परिवारों में आर्थिक संकट आ जाता है। सरकार इसी कारण लॉकडाउन लगाने से हिचक रही थी।

चुकी यह फैसला कोर्ट के दवाब में ली गई है, तो अब हाई कोर्ट की यह भी जिम्मेदारी बनती है कि वो उनकी भी खबर ले जो लॉकडाउन के फैसले से सबसे ज्यादा परेशान होंगे।

कायदे से सरकार को लॉकडाउन के दौरान जिन्हें आर्थिक संकट का सामना करना होगा, उन्हें आर्थिक मदद करना चाहिए। मजदूरों को बेरोजगारी भत्ता, स्कूलों के फीस, रूम का किराया, बिजली का बिल, बैंक का ईएमआई, जैसे जरूरी मानसिक खर्चे की भरपाई सरकार को करना चाहिए।

कोर्ट को और सरकार को यह सोचना चाहिए कि भले कोरोना माहामारी किसी के साथ भेदभाव नहीं करती मगर लॉकडाउन की मार गरीब और अमीर को अलग – अलग तरीके से पड़ती है। किसी के लिए घर में परिवार के साथ बैठना अवसर हो सकता है मगर बहुतों के लिए यह सजा होती है। सत्ता और व्यवस्था के शीर्ष पर बैठे लोगों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोरोना से हो रहे मौत को रोकने के लिए, वो भूख से लोगों को मरने नहीं देंगे।

जो लोग लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, उनमें से बहुत कम लोग सोशल मिडिया पर है। इसलिए उनकी आवाज़ आपको सुनाई नहीं देती होगी मगर इसका मतलब कतई यह नहीं कि उनकी चीख नहीं निकलती।

अविनाश कुमार (संपादक, अपना बिहार)

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