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जॉर्ज फर्नांडेस की जन्मभूमि भले ही दक्षिण में हो मगर उनकी कर्मभूमि बिहार ही रहेगी

मंगलुरु में पले बड़े पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडेस की जन्मभूमि भले ही दक्षिण में हो पर उनकी कर्मभूमि बिहार ही रहेगी. उस समय जब सोशल मीडिया जैसा आसान साधन नहीं हुआ करता था उस दौर में जॉर्ज फर्नांडेस ने दक्षिण से लेकर उत्तर की दुरी को तय किया.

फर्नांडेस ने उस समय जेल में थे जब 1977 में बिहार की जनता ने उन्हें तीन लाख वोट देकर मुजफ्फरपुर सीट से लोक सभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के लिए चुना.

तब वे जनता पार्टी के उम्मीदवार थे और देश में लगी इमरजेंसी के केस में जेल में बंद थे. चुनाव के दौरान वो शायद ही स्वयं प्रचार कर पाए. ये जीत ऐतिहासिक इसलिए भी रही क्योंकि जॉर्ज फर्नांडेस ने तीन बार के कांग्रेस सांसद एस.के.पाटिल को हराया था. जहां एक ओर 1989 में वी.पी सिंह सरकार के काल में जॉर्ज फर्नांडेस ने रेलवे मंत्री का कार्यभार संभाला वहीं 1998 – 2003 तक चली वाजपई सरकार के दौरान फर्नांडेस रक्षा मंत्री बनाए गए.

कारगिल युद्ध के समय सैनिकों का हौसला बढ़ाने वे सियाचिन जाते रहते थे. पोखरन टेस्ट से भी उन्होंने कभी अपनी नज़ारे नहीं हटाई.

मुजफ्फरपुर में फैलाई विकास की नई जड़े

अपनी इस जीत के बाद ही फर्नांडेस ने 1978 में मुज़फ़्फ़रपुर में थर्मल पावर प्लांट की नीव डाली जिसने ज़िले में रोज़गार के साधन बढ़ा दिए. फर्नांडेस ने चार बार मुजफ्फरपुर और तीन बार नालंदा से चुनाव जीता. नालंदा में उन्होंने फैक्टरियों के साथ राजगिर में सैनिक स्कूल भी खुलवाया.

जॉर्ज फर्नांडेस कि बदौलत दूरदर्शन केंद्र मुजफ्फरपुर तक पहुंचा. उन्होंने मुजफ्फरपुर में इंडियन ड्रग्स एंड फार्मासूटिकल्स लिमिटेड खुलवाया. इस से पहले मुजफ्फरपुर में केवल चीनी और तम्बाकू की फैक्टरियां ही हुआ करती थी.

लालू के लिए बन गए थे चुनौती

फर्नांडीस ने बिहार की राजनीति में एक प्रमुख भूमिका निभाई. याद होगा 1990 के दशक के दौरान फर्नांडेस ने राष्ट्रीय जनता दल (रजद) प्रमुख लालू प्रासाद यादव  के साथ अनबन के चलते रजद के लिए एक चुनौती बन चुके थे. फर्नांडेस ने शिकायत की कि उन्हें लालू द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है और ‘फ्रॉड फर्नांडेस’ कहकर बुलाया जा रहा है.

बाद में उन्होंने नितीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल ग़फ़ूर के साथ मिलकर 1994  में समता पार्टी को जन्म दिया. फर्नांडेस इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए. 1995 चुनाव में फर्नांडेस की समता पार्टी के खराब प्रदर्शन के चलते उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ हाथ मिला लिया. फर्नांडेस लालू की आँख का कांटा तोह थे ही पर इस गठबंधन के कारण लालू का शासन भी खत्म हो गया. 2005 के आते आते समता पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) में जा मिली.

जब नितीश के साथ बिगड़े सम्बन्ध

एक छत में रहने के बावजूद नितीश और फर्नांडेस में अनबन होना स्वाभाविक था. नितीश ने फर्नांडेस को हटाकर शरद यादव को अपनी पार्टी का नया अध्यक्ष नियुक्त कर लिया था. 2009 में ये खबर आई की खराब स्वस्थ्य के चलते फर्नांडिस को मुजफ्फरपुर से जनता दल (यूनाइटेड) के नामांकन से मना कर दिया गया था. फर्नांडेस की हार के बावजूद किसी तरह वे राज्य सभा में अपनी सीट सुनिश्चित करने में कामयाब रहे.

मुजफ्फरपुर के लोगो के थे चहेते

फर्नांडेस टैक्सी ड्राइवर यूनियन के प्रमुख नेता भी रह चुके हैं. उन्होंने सोशलिस्ट ट्रेड यूनियन ज्वॉइन किया और होटलों, रेस्टोरेंटों में काम करने वाले मजदूरों की आवाज उठाई. नालंदा के लोगों के बीच फर्नांडेस ‘जारजे साहेब’ के नाम से मशहूर थे. मुज़फ़्फरपुर के लोग उन्हें बहुत पसंद किया करते थे. दिल्ली में होने के बावजूद वहां के लोगो फर्नांडेस को पोस्टकार्ड के ज़रिए अपनी समस्याएं लिखकर भेजते थे.

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विश्लेषण: इन वजहों के कारण, बिहार को मिलना चाहिए विशेष राज्य का दर्जा ..

2005 में बिहार में सत्तासीन होने के बाद से ही नीतीश कुमार राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग प्रमुखता से उठाते रहें हैं। अपने मुख्यमंत्री के इस मांग के समर्थन में बिहार की जनता ने भी भरपूर समर्थन दिया।

केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ा, उस समय की कांग्रेसी सरकार ने बस आश्वासन देकर छोड़ दिया। जवाब में उस समय विपक्ष में बैठी जेदयू की सहयोगी बीजेपी ने वादा किया कि केंद्र में सरकार बनने पर, वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगी।

आज केंद्र सरकार में भारी बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार है और राज्य में भी नीतीश के नेतृत्व में एनडीए सरकार। चूंकी चुनाव नजदीक है और फिर से जनता की अदालत में जाना है। तो फिर से बिहार को विशेष राज्य का दर्जे देने की मांग जोड़ पकर चुका है।

कैसे मिलता है विशेष राज्य का दर्जा?

किसी राज्य की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और संसाधन के लिहाज से उसकी क्या स्थिति है। इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है। विशेष राज्य का दर्जा कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है। केंद्र सरकार अपने विवेक से उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विशेष राज्य का दर्जा देती है। 1969 में पांचवें वित्त आयोग के कहने पर केंद्र सरकार ने तीन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल ने पहाड़, दुर्गम क्षेत्र, कम जनसंख्या, आदिवासी इलाका, अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर प्रति व्यक्ति आय और कम राजस्व के आधार पर इन राज्यों की पहचान की थी। 1969 में असम, नगालैंड और जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्ज दिया गया था। बाद में अरुणाचल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल और उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्ज मिला।

विशेष राज्य के फायदे

अब आपको बताते है कि विशेष राज्य का दर्जा मिलने से किसी राज्य को क्या लाभ होता है। दरअसल, विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र सरकार से 90 फीसदी अनुदान मिलता है। इसका मतलब केंद्र सरकार से जो फंडिंग की जाती है उसमें 90 फीसदी अनुदान के तौर पर मिलती है और बाकी 10 फीसदी रकम बिना किसी ब्याज के मिलती है। जिन राज्यों को विशेष दर्जा प्राप्त नहीं है उन्हें केवल 30 फीसदी राशि अनुदान के रूप में मिलती है और 70 फीसदी रकम उनपर केंद्र का कर्ज होता है। इसके अलावा विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को एक्साइज, कस्टम, कॉर्पोरेट, इनकम टैक्स में भी रियायत मिलती है. केंद्र सरकार हर साल प्लान बजट बनाती है..प्लान बजट में से 30 फीसदी रकम विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को मिलता है। अगर विशेष राज्य जारी बजट को खर्च नहीं कर पाती है तो पैसा अगले वित्त वर्ष के लिए जारी कर दिया जाता है।

क्यो मिलना चाहिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा?

बिहार भारत का दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला ग़रीब राज्य है, जहां अधिकांश आबादी समुचित सिंचाई के अभाव में मॉनसून, बाढ़ और सूखे के बीच निम्न उत्पादकता वाली खेती पर अपनी जीविका के लिए निर्भर है।

हर साल आने वाली बाढ़

करीब 96 फ़ीसदी जोत सीमांत और छोटे किसानों की है। वहीं लगभग 32 फ़ीसदी परिवारों के पास ज़मीन नहीं है।
बिहार के 38 ज़िलों में से लगभग 15 ज़िले बाढ़ क्षेत्र में आते हैं जहां हर साल कोसी, कमला, गंडक, महानंदा, पुनपुन, सोन, गंगा आदि नदियों की बाढ़ से करोड़ों की संपत्ति, जान-माल, आधारभूत संरचना और फसलों का नुक़सान होता है।

कोसी नदी के बाढ़ के पानी से बिहार के कई ज़िलों में तबाही मचती रही है।

विकास के बुनियादी ढांचे सड़क, बिजली, सिंचाई, स्कूल, अस्पताल, संचार आदि का वहां नितांत अभाव तो है ही, हर साल बाढ़ के बाद इनके पुनर्निर्माण के लिए अतिरिक्त धन राशि की चुनौतियां भी बनी रहती हैं।
पिछले सात-आठ सालों में बिहार की सालाना विकास दर अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर रही है।

निवेश की ज़रूरत

बिहार की बढ़ती विकास की दर सामान्यतः निर्माण, यातायात, संचार, होटल, रेस्तरां, रियल एस्टेट, वित्तीय सेवाओं आदि में सर्वाधिक रही है जहां रोज़गार बढ़ने की संभावना अपेक्षाकृत कम होती है।

खेती, उद्योग और जीविका के अन्य असंगठित क्षेत्रों में, जिन पर अधिक लोग निर्भर हैं, विकास की दरों में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है| शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई सकारात्मक प्रयास अवश्य हुए हैं जिससे सामाजिक विकास के ख़र्चों में महत्वपूर्ण बढ़ोत्तरी भी हुई है। लेकिन ये अब भी विकसित राज्यों की तुलना में काफ़ी कम है।
इस तरह अर्थव्यवस्था का आधार छोटा होने के कारण उनका सार्थक प्रभाव जीविका विस्तार और ग़रीबी निवारण पर दिखना अब भी बाकी है। इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र में पर्याप्त वित्तीय निवेश की ज़रूरत है।
राज्य को वित्तीय उपलब्धता मुख्यतः केंद्रीय वित्तीय आयोग की अनुशंसा पर केंद्रीय करों में हिस्से और योजना आयोग के अनुदान के साथ केंद्र प्रायोजित योजनाओं के अलावा राज्य सरकार द्वारा लगाए गए करों से होती है।

केंद्र प्रायोजित योजनाओं में अकसर राज्य की भागीदारी 30 से 55 फ़ीसदी होती है। चूंकि ग़रीब राज्यों की जनता की कर देने की क्षमता कम होती है, अकसर बराबर धनराशि के अभाव में ग़रीब राज्य उन योजनाओं का पूरा लाभ नहीं ले पाते हैं।

विशेष राज्य का दर्जा मिले

विशेष राज्य का दर्जा न केवल 90 फ़ीसदी अनुदान के लिए बल्कि करों में विशेष छूट के प्रावधान से विकास योजनाओं के लाभ और निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाने में भी मददगार होगा।
यदि राज्यों को मिलने वाले प्रति व्यक्ति योजना व्यय पर नज़र डालें तो बिहार जैसे ग़रीब राज्यों को मिलने वाली धनराशि पंजाब की तुलना में लगभग एक तिहाई से भी कम रही है जिससे विकास और ग़रीबी निवारण का कार्य प्रभावित होता है।

ग़रीब राज्यों की केंद्रीय संसाधनों में हिस्सेदारी बढ़ाने का आधार विकसित करने की ज़रूरत है, तब ही ये राज्य ग़रीबी निवारण के लिये आवश्यक विकास दर बनाए रख सकते हैं।

विशेषज्ञों की राय 

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ताजा मांग को पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एडीआरआई) के सचिव शैबाल गुप्ता ने जायज ठहराया है। उन्होंने कहा, ‘बिहार सरकार को इस संबंध में अपनी मांग को मजबूती से रखना चाहिए।’

आर्थिक और सामाजिक मामलों के जानकार शैबाल गुप्ता ने कहा, ‘मैं नही कहूंगा कि नीतीश कुमार बीजेपी से अलग हो जाएं। यह राजनैतिक विषय है, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग के लिए इससे बेहतर समय और नहीं हो सकता है।

शैबाल गुप्ता ने कहा, ’14वें वित आयोग के पास अधिकार ही नहीं है कि वह राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दे सके। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का फैसला केंद्र सरकार को करना है। विशेष राज्य के लिए जो मापदंड निर्धारित हैं, उसे बिहार पूरा करता है। राज्य बाढ़ से पीड़ित रहता है। जनसंख्या ज्यादा है,यानी बिहार जिन समस्याओं का सामना कर रहा है उसके मुताबिक उसे विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए।

बाढ़ के प्रकोप से त्राहि-त्राहि हुआ बिहार, मुख्यमंत्री ने कहा जिंदगी में पहले कभी ऐसी बाढ़ नहीं देखा

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का हवाई सर्वेक्षण करने के बाद सोमवार को कहा की ऐसी विनाशकारी बाढ़ पहले कभी नहीं आई थी।

नीतीश ने कहा कि जिस तरीके से यह बाढ़ आई है इससे किसी को भी संभलने का मौका नहीं मिला पाया है। नीतीश ने आगे कहा कि हमें आपदा प्रबंधन पर नए सिरे से विचार करना होगा। चूंकि बाढ़ इतनी तेजी से आई की हम पीड़ितों तक पहुंच नहीं पाए। बारिश इतनी तेज हुई कि वो चाहे उत्तर बिहार का इलाका हो या फिर नेपाल का तराई क्षेत्र यह नए किस्म का दृश्य था। इतना तेज बहाव होने की वजह से गांव के गांव तबाह हो गए. एक सड़क भी नहीं बची एनएच का भी वही हाल हैं।

हालांकि नीतीश कुमार ने तत्काल प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और रक्षा मंत्री से बात की, साथ ही चंद घंटों के अंदर मदद उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री को शुक्रिया अदा किया है।

मुख्यमंत्री ने कहा हमें बहुत सारी बाढ़ों का अनुभव है लेकिन ऐसी बाढ़ नहीं देखी थी, इतना नुकसान पहुंचा है। बता दें कि बिहार के 17 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं, जिससे एक करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं। जबकि 153 लोगों की मौत हो चुकी है। नीतीश ने बताया कि सरकार ही नुकसान की भरपाई करेगी, जिनका घर टूटा है, उनका घर बनवाएगी। हमने केन्द्र से केवल राहत और बचाव के लिए मदद मांगी है, अभी पैसे नहीं मांगे हैं। साथ ही बताया कि केन्द्र सरकार से हर तरह की मदद मिलेगी। बिहार के खजाने पर पहले बाढ़ पीड़ितों का हक है और हर पीड़ित तक राहत का सामना पहुंचाया जाएगा।

 

एक प्रवासी बिहारी युवा का ख़त मुख्यमंत्री जी के नाम 

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आदरणीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी

 

आशा है की आप स्वस्थ और सुचारु होंगे। आप दुधो नहाएँ फुले-फलें और चक्रवर्ती बनें पर इस पत्र के माध्यम से एक प्रवासी युवा जिसको 6 साल पहले बिहार छोरना पड़ा था उसने अपने मन का कुछ प्रश्न अपने प्रदेश के सबसे बड़े नेता से करना चाहता है।

जब आप 2005 मे मुख्यमंत्री बने थे तो मैं बच्चा था पर आपके जीतने के खुशी मे सबके साथ मैं भी नाचा, मुझे इसका मतलब पता नही था मैं सिर्फ ग्यारह साल का था पर मैंने देखा की मेरे आस-पास के सब लोग बहुत खुश थे।

सबको एक आस थी अब बदलेगा, गरीब-बीमारु-भ्रष्ट राज्य का तमगा हमसे हटेगा। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषी, सड़क, बिजली, भ्रष्टाचार और अपराध जैसे चीजों मे आप बदलाव लाएँगे इसलिए आपको सुशासन बाबू का नाम दिया गया। ये सब देख के एक बच्चा आशान्वित था और अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस कर रहा था।

 

वक्त आगे बढ़ता गया, मैं बड़ा होता गया। अब-तक न मैंने शहर देखा था और न दूसरा राज्य। खबरों मे पढ़ता था की

बिहार अब विकास कर रहा है, आपने शिक्षकों की भर्तीयाँ कारवाई, साइकिल बांटी, सड़कें बनवाई,बिजली पहुंचवाई, अपराधियों और भ्रस्ट अफसरों पर नकेल कसी ।

ये सब मैं सुनता था और एक बच्चे के तौर पर सुकून और संतोष का अनुभव करता था। मुझे अपने गाँव और आस-पास मे कुछ बदलाव देखने को नही मिलता था पर मैं सोचता था की अभी वक्त लगेगा यहाँ तक पहुँचने में। मुझे बताया जाता था की पिछले सरकारों ने बिहार को बहुत पीछे कर दिया था इसलिए विकास को पटरी पर आने मे वक्त लगेगा, ये बात मैं भी मानता था।

 

फिर आया 2010, जनता ने आपको फिर चुना। आपने पूराने बंद पड़े मिलों और कारखानों को फिर से खुलवाने की बात की, शैक्षणिक हालात सुधारने की बात की, पलायन रोकने की बात की,  तो जनता ने आप पर फिर भरोषा किया। सबके साथ मैंने भी किया । अब तो पाँच साल हो गए हैं, अब शायद पटरी पर ट्रेन आ गयी है और अब गति पकड़ेगी।

एक साल बाद मुझे पढ़ाई के लिए दूसरे राज्य मे जाना पड़ा क्योंकि मुझे आगे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बिहार मे कोई समुचित संस्थान नहीं मिला। मैंने फिर भी सोचा की वक्त के साथ शायद हालात बदल जाएगी और पढ़ने के बाद नौकरी के लिए मुझे वापस आने का मौका मिलेगा। अब मैं बाहर था और इसलिए बिहार के जमीनी हकीकत से दूर था, जब मैंने दूसरा राज्य और शहर देखा तो फिर मुझे पता चला कि हम कितने पीछे हैं। हमारे राज्य के मजदूर ट्रेनों के जेनरल डब्बे मे भर-भर कर दिहारी मजदूरी के लिए आ रहे थे, यहाँ शहरों में फुटपाथ पर ठेला, रेडी लगा रहे थे। समय-समय पर उन्हें स्थानीय लोगों से गाली-मार सहनी पड़ती थी, बिहारी शब्द एक गाली के तौर पर प्रयुक्त होता था हमारे लिए। हमने ये सब देखा और सहा इस उम्मीद में की आगे सब बदलेगा, शायद वहाँ बिहार मे विकास हो रहा है क्योंकि खबरों में आप अब भी विकास पुरुष के तौर पर दिखाए जा रहे थे।

यहाँ बाहरी लोग बिहार को लालू से रीलेट करते थे और हंसी उड़ाते थे तो हमने उनको आप का नाम बताना शुरू किया ताकि बिहार को एक दूसरा उदाहरण मिले।

 

अब मैं वयस्क हो रहा था और चीजें मेरे समझ मे आने लगी थी। ये समझ अब मुश्किल खड़ी कर रहा था मेरे भरोसे के सामने। नए खुले दारू के ठेकों और शराब के उत्पादन से जीडीपी का ग्रोथ रेट खबरों मे था, केंद्र सरकार के हाईवे बन जाने से और पीले बल्ब वाले बिजली पहुँच जाने से विकास का ढ़ोल बजाया जा रहा था। पर अब, जब मैं गाँव जाता था तो मुझे दिखने लगा था की जिस बदलाव की खबरें हम बाहर पढ़ते हैं वो अब तक जमीन पर पहुंची ही नहीं है। लोग अब भी पलायन कर रहे थे और पहले से भी ज्यादा, शिक्षा व्यवस्था अपने निचले स्तर पर पहुँच चुका था, गांवों मे लोग खेती बंद कर रहे थे, स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव मे जब गर्भवती महिलाओं को मरते देखा तो फिर आपसे भरोसा टूटने लगा।

एक भी बंद पड़ा चीनी मिल या कोई भी कारख़ाना आप खुलवा नहीं सके, एक भी शिक्षण संस्थान या विश्वविद्यालय की हालत आप सुधार नहीं सके, एक भी खेत तक पानी आप नही पहुंचवा सके। लोग अब शिकायत नही कर रहे थे, वो थक गए थे और हार गए थे। नाउम्मीदी हावी थी। मैं अब युवा हो चुका था और ये सब देख सकता था।

 

फिर 2014 के लोकसभा चुनावों का दौर आया, राजनीति अपने चरम पर थी। उठा-पटक के इस दौर मे आपने भी क्या खूब खेल खेला!  एनडीए से नाता तोड़ा और लोकसभा चुनाव मे आपकी पार्टी के हार के बाद एक आपने एक कठपुतली मंत्री को मुख्यमंत्री के रुप में बिहार के ऊपर थोप दिया वह भी बिलकुल लालू द्वारा राबरी को मुख्यमंत्री बनाने के स्टाइल में ।

कुछ दिनों बाद जब मांझी जी ने सत्ता छोडने से मना कर दिया तो फिर से सियासत का खेल हुआ और आप पुनः मुख्यमंत्री बने। अब तक भी ठीक था पर इसके बाद का प्रकरण इतिहास में आपके उपहास का कारण जरूर बनेगा! जिस लालू जी का विरोध आपके राजनीति का केंद्र था, आपने सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए उनसे भी गठबंधन किया। फिर से सरकार बनाई और बिहार को फिर से उसी युग मे खड़ा कर दिया ।  शराब को आपने ही गाँव-गाँव तक पहुंचाया था, शराबबंदी करके आपने अपना इमेज बनाया, समारोह करवाए, रैलियाँ की, खबरों मे आए पर काम कहीं नही हुआ। बिहार अटक चुका था फिर से और अब लोगों के पास कोई उम्मीद और ऑप्शन नहीं था। शिक्षा व्यवस्था के झोल, भ्रष्टाचारी , पलायन, गरीबी और अपराध की खबरें बाहर आ रही थी। अब बाहर रह रहे बिहारियों के पास कोई बचाव नहीं था अपना मजाक बनने से रोकने के लिए !

 

कल राजनीतिक उठा-पटक का एक नया रीकोर्ड बनाते हुए आप फिर से एनडीए से मिल चुके हैं और सत्ता फिर से आपके हाथ में है।

मैं अब जॉब कर रहा हूँ यहाँ मुंबई एक सॉफ्टवेयर एमएनसी में और रात के चार बजे आपको ये ख़त लिख रहा हूँ क्योंकि आज परेशान हूँ। आज सबके तरह मैंने भी फेसबूक पर वनलाइनर पंच लिखके मजे लिए हैं इस राजनीतिक खेल का । पर अभी मैं उस बच्चे के भरोसे को पूरी तरह टूट जाने का महसूस कर पा रहा हूँ । राजनीति से मुझे कुछ नहीं मतलब, कोई नृप हो हीं हमें का हानि पर अचानक आज ये एकसास हो गया की 12 साल तो हो गए हैं आपके आए हुए।

अब भी यदि हालात नहीं बदला है तो इसका कारण है कि आप अब तक सिर्फ राजनीति करते रहें हैं और विकास का ढ़ोल सिर्फ एक छ्लावा था। आपने लोगों के उम्मीद को ठगा है,भरोसे को तोड़ा है, उसपर अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और राजनीति का महल खड़ा किया है। लोग आपसे हिसाब नहीं ले पायेंगे शायद मगर समय जरुर लेगा क्योंकि आपकी तरह यह भी किसी का नहीं है। आप राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं और आपके इस गुण का मै कायल भी हूँ मगर यह याद रहे कि राजनीतिक विज्ञान का हर चैप्टर एक दिन इतिहास होता है और इतिहास नेताओं को अपनी निर्धारित कसौटी पे तौलता है।

 

बहारों फूल बरसाओ,  पुनः सरकार आया है। 

एक बिहारी

आदित्य

Inside Story: नीतीश के लिए भाजपा को इतना क्यों आ रहा है प्यार और क्यों महागठबंधन में बढ़ रहा है तकरार

कहा जाता है कि दिल्ली में सत्ता का रास्ता बिहार और यूपी से गुजरता है । 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ी कामयाबी इन्ही दो राज्यों में मिले थे । यूपी विधानसभा चुनाव जीत बीजेपी ने 2019 के लिए अपना रास्ता तो साफ कर लिया है मगर रास्ते में अभी एक चुनौती मौजूद है और वह है बिहार । पूरे देश में मोदी हवा चला मगर लालू-नीतीश की दोस्ती ने मोदी हवा को बिहार में रोक दिया ।

 

भाजपा किसी भी हालत में बिहार में महागठबंधन को तोड़ना चाहती है। यूपी चुनाव के बाद महागठबंधन में चल रहें खटपट भी बीजेपी को काफी पसंद आ रहा है।

सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी पर नीतीश कुमार का मोदी सरकार का साथ देना भले ही लालू यादव पर दबाव बनाने की राजनीति हो मगर बीजेपी इसको एक अवसर के रूप में देख रही है।

 

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का खुले तौर पर नीतीश की प्रशंसा करना हो या खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शराबबंदी पर नीतीश के तारीफ में पूल बांधना । ये सब यू ही नहीं हुआ बल्कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया है।

 

दरअसल बीजेपी एक तीर से कई निशाना लगाना चाहती है । बीजेपी किसी भी तरह महागठबंधन को तोड़ना तो चाहती ही है साथ ही नीतीश कुमार को अपने साथ जोड़ना चाहती है । इसमें तो कोई सक नहीं की बिहार जीत के बाद नीतीश कुमार मोदी के सामने सबसे बड़े विपक्षी नेता के तौर पर राष्ट्रीय राजनीति में उभर के आए है तो शराबबंदी और प्रकाशपर्व के बाद बिहार के साथ ही देश में भी अपनी सकारात्मक छवि बनाने में कामयाब हुए है। नीतीश कुमार के साथ आने से बीजेपी को बिहार में फिर से एक चेहरा तो मिल ही जायेगा साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में भी मोदी को चुनौती देने वाला विपक्ष खत्म हो जायेगा । इसीलिए कई बड़े नेताओं द्वारा नीतीश को एनडीए में सामिल होने का निमंत्रण भी मिल चुका है।

 

सब जानते है कि भले लालू यादव और नीतीश सरकार में साथ है मगर दोनों एक दुसरे को कमजोर करने में लगें है। यह मजबूरी का गठबंधन है । अगर आपको कुछ दिनों में महागठबंधन टूटने की खबर मिले और विकास के नाम पर या बीजेपी के किसी विशेष पैकेज के बहाने नीतीश कुमार के घर वापसी की खबर आए तो हैरान नहीं होईयेगा ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

टूट जायेगा महागठबंधन, यूपी के बाद बिहार में भी नीतीश के साथ बनेगी भाजपा सरकार!

बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है । बीजेपी ने चुनाव जीती यूपी में मगर तुफान लेकर आई है बिहार के महागठबंधन के सरकार में । महागठबंधन में सबकुछ सही नहीं चल रहा है और यह सिर्फ कयास नहीं है बल्कि महागठबंधन में सामिल दलों के राजनितिक चाल इसकी गवाही दे रही है।

 

भाजपा नेता सुशील मोदी ने कहा है कि बिहार में जदयू-राजद और कांग्रेस का महागठबंधन बिखराव की ओर अग्रसर है। यू तो सुशील मोदी विपक्ष के नेता है और महागठबंधन के खिलाफ बोलते ही रहते है मगर इस बार उनके बात में दम लग रहा है।

 

नीतीश कुमार के जीएसटी, सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के मुद्दे पर अपने सहयोगियों को अलग-थलग कर मोदी सरकार को सर्मथन देकर बीजेपी के करीब जाना, मोदी-नीतीश द्वारा एक दुसरे का तारीफ करना हो या राजद विधायकों और खुद राबड़ी देवी द्वारा तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की मांग करना, लालू के इशारे पर राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद यादन द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जहरीले वार करना । यह सब बतलाने के लिए काफी है कि महागठबंधन अपने नाजुक दौर से गुजर रहा है ।

इसी क्रम में यूपी चुनाव के बाद राजद नीतीश कुमार पर कुछ ज्यादा ही हमलावर दिख रहा है। रघुवंश प्रसाद ने नीतीश कुमार को धोखेबाज और जेदयू नेताओं के गर्दा झाड़ देने की भी बात कहीं है।

तब यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या बिहार की राजनीति पर यूपी चुनाव के नतीजों का असर पड़ने लगा है? या फिर नीतीश कुमार का दिल्ली में एमसीडी चुनाव में हिस्सा लेना आरजेडी को खटक रहा है?

 

आखिर रघुवंश प्रसाद सिंह जेडीयू नेताओं पर अचानक इतने हमलावर क्यों हो गये हैं? कहीं महागठबंधन के भीतर कोई और खिचड़ी तो नहीं पक रही?

ज्ञात हो कि चार दिन पहले वैशाली के राधोपुर में आयोजित सरकारी कार्यक्रम से न केवल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीर गायब थी, बल्कि चारों तरफ राजद के झंडे लगे हुए थे।

राजद के अलावा सरकार में शामिल सहयोगी दल जदयू और कांग्रेस के किसी मंत्री और विधायक तक को कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया था। इसी प्रकार मुख्यमंत्री के यात्रा कार्यक्रम में भी कहीं उपमुख्यमंत्री शामिल नहीं हुए।

 

सवाल ये है कि लालू प्रसाद या आरजेडी नेताओं को नीतीश से ताजा चिढ़ की वजह सिर्फ यूपी चुनाव है या कुछ और?

खुशखबरी: cm का बड़ा एलान, अब बिहार के छात्र बाहर पढ़ने नही जायेंगे!

छात्रों के लिए खुशखबरी हर जिला में होगा पॉलिटेक्निक कॉलेज।

बिहार के मुखिया श्री नीतीश कुमार जी अपने सात निश्चयों को पूरी करने के लिए बिहार के अलग-अलग जिलों के दौरे पर निश्चय यात्रा के रूप में निकले हुए हैं। ईस निश्चय यात्रा के दौरान बिहार के छात्रों के आवश्यकताओं को हर हाल में सुविधायें देने को लेकर प्रतिबद्धता को दुहराया नवादा, जहानाबाद और अरवल की निश्चय के दौरान उन्होंने बड़ी बात कह दी।

सीएम ने कहा कि, उनका योजना बिहार के हर जिले में एक पाॅलिटेक्निक काॅलेज खोलने का था लेकिन युवाओं को रोजगार देने की बात है इसके लिए हर जिले में एक-एक इंजीनियरिंग काॅलेज खोलने का निर्णय हुआ है और इन सभी इंजीनियरिंग काॅलेजों को समय से पहले निर्माण कर लिया जाएगा साथ ही कहा कि सात निश्चय के अंतर्गत जितने भी संस्थान खोला गया है उसके लिए भूमी को उपलब्ध कराया जा चूका है।

इससे पहले भी कई बार cm नीतीश कुमार बिहार में शिक्षण संस्थान की घोर कमी को लेकर अपनी चिंता जता चुके है, और हमेशा नए संस्थान खोलने के लिए प्रयासरत है इसके लिए बिहार में ITI के अलावे Medical और अभियंत्रण कॉलेज के अलावे युवाओं को रोजगार के लिए प्रशिक्षण करने के लिए कौशल बनाने के लिए भी ट्रेनिंग दिया जा रहा है।

#MatBadnamKaroBiharKo: आग की तरह फैल रहा है यह मुहिम, उप-मुख्यमंत्री ने भी किया समर्थन

#MATBADNAAMKAROBIHARKO

 

पटना: बच्चा राय, सौरव श्रेष्ठ और रूबी राय जैसे चंद फर्जी लोगो को मोहरा बना बिहार के मेधा को बदनाम करने वालों की बोलती बंद करा रहा है #MatBadnamKaroBiharKo   मुहीम। 

 

इस मुहीम के समर्थन में दुनिया के कोने-कोने में बसे बिहारियों का समर्थन मिल रहा है।  आईपीएस, पत्रकार,  कारोबारी, विद्यार्थी शिक्षक, राजनेता हो या कोई साधारण इंसान, सब इसके समर्थन में आवाज बुलंद कर रहे हैं।

इस में एक नाम बिहार के उप-मुख्यमंत्री श्री तेजस्वी यादव  का भी जुड गया है।  उनहोंने भी इस मुहिम का समर्थन किया है और कहा है ” मैं पूरी तरह इस मुहिम का समर्थन करता हूँ, राजनीति से उपर उठिए और बिहारी होने पर गर्व करें.. ”

 

उप-मुख्यमंत्री जी ने इस मुहिम का समर्थन किया है।

उप-मुख्यमंत्री जी ने इस मुहिम का समर्थन किया है।

 

यह मुहिम आग की तरह सोशल मिडिया के माध्यम से पूरे बिहार में फैल रही है।  अब बिहार लोग बिहार को बदनाम करने वालों को तर्क के साथ जवाब दे रहें है और लोग इस बात से सहमत है कि एक दो-नाम के सहारे बिहार को बदनाम करना गलत है।

 

इस से पहले सुपर 30 के संस्थापक और बिहार के गौरव आनंद कुमार भी इसका समर्थन करते हुए कहा कि ” मैं भी इस मुहिम का समर्थन करता हूँ क्योंकि दुनिया को यह पता चलना चाहिए कि बिहारी दिमाग एक पावर हाउस है और बिहारी लोग अपने क्षमता और कडी मेहनत के बदौलत इस मुकाम तक पहुँचे हैं”

 

आनंद कुमार ने भी समर्थन दिया है।

आनंद कुमार ने भी समर्थन दिया है।

 

बिहार बाहर बसे लोग भी इस मुहिम का समर्थन कर रहें हैं।  अभी तक लाखों लोग इस मुहिम से जुड़ चुके है।  आईपीएस से लेकर साधारण कर्मचारी तक इसके पक्ष में आवाज बुलंद कर रहें है।

 

ips kamal kishor on mat badnam kro bihar ko

बच्चा राय और सौरभ श्रेष्ठ बिहार के अपवाद जरुर हो सकते हैं, इन जैसे लोगों का विरोध और बहिष्कार होना ही चाहिए मगर इसे बिहार की पहचान के साथ जोडना गलत है।  बिहार की पहचान आनंद कुमार,  अभयानंद, सत्यम कुमार, सरद सागर, भावना कंठ जैसे प्रतिभान लोगों से है।  एक अपवाद को मुद्दा बना बिहार को बदनाम करना कितना उचित है?

 

देखें रिपोर्ट: लोग कहते है बिहार में जंगलराज है! मगर खुद केंद्र सरकार की रिपोर्ट कहती है बिहार में मंगलराज है

लोग कहते है बिहार में जंगलराज है।  पूरे देश में इस बात पर चर्चा है कि बिहार में जंगलराज की वापसी हो गई! 

मगर हकिकत जान कुछ और है। केंद्र सरकार की एजेंसी “नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो” कुछ अलग ही कहानी कह रही है।Crime rate of bihar

अगर इस रिपोर्ट की नजर डाले तो क्राइम रेट ( Crime Rate) 1 लाख में सबसे ज्यादा 585 केरल सबसे आपराध ग्रसित राज्य है , फिर  मध्यप्रदेश 358 के साथ दुसरे  स्थान पर  है  और इस प्रकार राजस्थान और गुजरात से भी कम छठे स्थान पर है बिहार 174.2 के साथ !  केंद्र सरकार के रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य प्रमुख राज्यों के तुलना में बिहार में आपराध काफी कम है।

 

biharcrimerate

अगर समाज के सबसे घिनौने  अपराध बलात्कार (rape ) की बात करे तो वहां भी मध्यप्रदेश आगे है 14 के साथ , राजस्थान , केरल, गुजरात के बाद सबसे कम बिहार (2.3 ) मे महिला भी दुसरे राज्यों की तुलना में जादा सेफ है और यहां रेप की घटनाएं भी सबसे कम है।

bihar crime

अगर कुल मिला के overall महिलाओ के खिलाफ रिपोर्ट देखें तो वहां भी आपना बिहार सबसे निचे होते हुए माँ बहनों के लिए सबसे सुरक्षित राज्य होने का गौरवशाली गाथा कह रहा है !

हमारा मानना की प्रगतिशील समाज के लिए महिलाओ का शिक्षित और सुरक्षित दोनों होना अत्यंत जरुरी है ! माँ बहनों के सुरक्षा और शिक्षा के बिना ये विकास की बाते हर सरकार समाज  के लिए खोखली है ! हमें अपने बिहार पे गर्व है , बिहारी होने पे गर्व है !