प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा के जगह बिहार के पीके सिन्हा होंगे प्रधानमंत्री कार्यालय के नए OSD

मोदी सरकार में बिहारी अधिकारियों का दबदबा बना हुआ है| एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी ने एक बिहारी अधिकारी को बड़ी जिम्मेदारी दी है| इस बार सेवानिवृत आइएएस अधिकारी पीके सिन्हा को प्रधानमंत्री कार्यालय में OSD (आफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) बनाया गया है| वो प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा की जगह लेंगे|

पीएमओ में श्री सिन्हा की नियुक्ति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह पर की गयी है| श्री सिन्हा इसके पहले यूपी में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं| कैबिनेट सेक्रेटरी बनने के पहले वे ऊर्जा और जहाजरानी मंत्रालय के  सेक्रेटरी भी रह चुके हैं| श्री सिन्हा की शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में ही हुई है| उनके पिताभी यूपीएससी में अधिकारी रहे थे|

बता दें कि 1977 बैच के आईएएस अधिकारी पीके सिन्हा देश के सबसे वरिष्ठ नौकरशाहों में से एक हैं| फिलहाल वो भारत सरकार के कैबिनेट सचिव की जिम्मेदारी निभा रहे हैं| बिहार के औरंगाबाद जिले के मूल निवासी और यूपी कैडर के आइएस अधिकारी रहे पीके सिन्हा का जन्म 18 जुलाई, 1955 को हुआ| उनका पूरा नाम प्रदीप कुमार सिन्हा है, लेकिन आम तौर पर लोग उन्हें पीके नाम से जानते हैं| 64 साल के मृदु भाषी सिन्हा जहां भी रहे अपने कार्यों की छाप छोड़ी है|

1977 बैच के आइएएस अधिकारी सिन्हा पहले जहाजरानी मंत्रालय में सचिव भी रह चुके हैं| उत्तर प्रदेश काडर के आईएएस अधिकारी के तौर पर उन्होंने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार के कई महत्वपूर्ण पदों पर भी कार्य किया|

1990 के दशक के अंत में वो खेल मंत्रालय में पहले निदेशक और युवा मामलों के संयुक्त सचिव की जिम्मेदारी निभा चुके हैं| 1992-94 के दौरान वो मेरठ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और 2003-04 में ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे|

2004-12 तक यूपीए सरकार के कार्यकाल में वो ज्यादातर समय पेट्रोलियम मंत्रालय में थे| पेट्रोलियम मंत्रालय में रहते हुए उन्हें संयुक्त सचिव, अतिरिक्त सचिव और फिर विशेष सचिव भी बनाया गया था|

बिहार कैडर के आईएएस कुंदन कुमार बने देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के निजी सचिव

हाल ही में देश के गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार के साकेत कुमार को अपना निजी सचिव चुना था| देश के गृह मंत्री के बाद वर्तमान सरकार में देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी एक बिहारी को ही अपना निजी सचिव चुना है|

आईएएस अधिकारी कुंदन कुमार को गुरुवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का नया निजी सचिव नियुक्त किया गया है| कार्मिक मंत्रालय के आदेश के अनुसार, 2004 बैच के बिहार कैडर के अधिकारी कुमार का कार्यकाल तीन फरवरी 2020 तक होगा|

यही नहीं, बिहार कैडर के 2009 बैच के आईएएस अधिकारी मनोज कुमार सिंह को भी ऊर्जा, नयी एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री राज कुमार सिंह का निजी सचिव बनाया गया है|

ज्ञात हो कि प्रधान मंत्री नरेन्‍द्र मोदी से पूर्व में सम्‍मानित भी हो चुके हैं| यह सम्‍मान उन्‍हें बिहार के समस्‍तीपुर के डीएम के रुप में किये गये कार्यो के प्रतिफल में मिला था| कुंदन ने तब राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थय बीमा योजना के तहत प्राइवेट अस्‍पतालों की गड़बड़ी पकड़ी थी| वे इस से पहले भी भारत सरकार में स्किल डेवलपमेंट के राज्‍य मंत्री रहे राजीव प्रताप रुडी के प्राइवेट सेक्रेटरी थे|  राजनाथ सिंह के साथ पहले भी प्राइवेट सेक्रेटरी के रुप में बिहार के सहरसा के रहने वाले आईएएस नीतेश कुमार झा थे|

इन सब के अलावा नवनीत मोहन कोठारी को कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का निजी सचिव नियुक्त किया गया है|कोठारी 2001 बैच के मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी हैं|

आईएएस अधिकारी सचिन शिंदे को युवा मामलों एवं खेल मंत्री किरेन रिजिजू का निजी सचिव नियुक्त किया गया है| रिजिजू अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री भी हैं| आईआरएस अफसर राज कुमार दिग्विजय को पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन मंत्री गिरिराज सिंह का निजी सचिव नियुक्त किया गया है|

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बिहार के लाल और मनोज बाजपेयी के भाई बने पर्यावरण मंत्रालय में जॉइन्ट सेक्रेटरी

बिहारियों द्वारा यूपीएससी के परिक्षा टॉप कर के आइएएस बनने का खबर तो अब आम बात हो चुका है| हर साल यूपीएससी परिक्षा में बिहारियों का दबदबा रहता है| मगर एस सब से इतर बिहार का एक लाल बिना यूपीएससी का परिक्षा दिए ही आईएएस अधिकारी बन गया है|

बिहार के सुजीत कुमार बाजपेयी को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में जॉइंट सेक्रटरी के रूप में नियुक्‍त किया गया है। आपको ज्ञात हो कि सुजीत बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता मनोज वाजपेयी के सगे भाई हैं|

उल्लेखनीय है कि यूपीएससी ने पहली बार निजी क्षेत्र से संयुक्त सचिव पद के लिए 9 लोगों का चयन किया है। इन 9 लोगों में से एक व्यक्ति सजीत बाजपेयी अभिनेता मनोज बाजपेयी का छोटा भाई है। सुजीत को सीधी भर्ती प्रक्रिया के तहत वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर नियुक्ति दी गई है।

मनोज ने इस सिलसिले में बात करते हुए कहा, हम बेहद खुश हैं और सुजीत पर गर्व महसूस कर रहे हैं| हमें पहले से पता था कि सुजीत बहुत मेहनती और ईमानदार शख्स है| वो अपनी ड्यूटी के प्रति बेहद वफादार है और यही कारण है कि उसकी उन्नति देखकर मुझे जरा भी हैरानी नहीं हो रही है| हम छह भाई हैं और हम सभी अपने छोटे भाई की सफलता से बेहद खुश हैं|

ज्ञात हो कि हाल ही में मनोज वाजपेयी को भी देश के राष्ट्रपति ने पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित किया है| मनोज हाल ही में फिल्म सोनचिड़िया में नज़र आए थे| इस फिल्म में मनोज के साथ ही रणवीर शौरी, सुशांत सिंह राजपूत और भूमि पेडनेकर जैसे सितारे नज़र आए थे| इसके अलावा मनोज की गली गुलियां ने भी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में काफी वाहवाही बटोरी थी लेकिन फिल्म ने भारत में खास प्रदर्शन नहीं किया था|

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यूपीएससी की तयारी, संघर्ष और निराशा के बीच सहारा बन के आता है वह रेशमी दुपट्टा

21-22 साल की छोटी सी उम्र में गाव की पगडंडियों से उठ कर, एक गठरी में दाल, चावल, आटा बांध कर जब एक लड़का खड़खड़ाती हुई बस में अपने हौसलो के उड़ान के साथ बैठता है तब उसके दिमाग में बत्तियां जलती है जो बत्तियां लाल होती है या नीली होती है और यही सोंचते-सोंचते वह कब पटना पहुंच जाता है उसको पता ही नहीं चलता। फिर यहाँ से शुरू होती है जिंदगी की जद्दोजहद, नौकरी की तलाश।

जब लड़का अपने कमरे में कदम रखता है उस दिन उसकी एक ऐसी साधना शुरू होती है जो कभी अकेला नहीं करता,

जब वह फॉर्म डालता है तो उसकी माँ किसी देवी माँ की मनौती मान देती है, उसकी बहन मन ही मन खुश होती है। उसके पिता दस लोगो से इसका जिक्र करते है और जब उसका परीक्षा जिस दिन रहता है उस दिन माँ व्रत करती है,

इस कामना के साथ की उसका लड़का आने वाले अपने पूरे जीवन भर फाइव स्टार होटल में खायेगा।

राजधानी के चकाचौंध में यहाँ लड़का कोचिंग करता है, अपने सीनियर, अपने दोस्त, अपने भाई आदि की सलाह भी लेता रहता है। अपनी तैयारी में धार देता हुआ आगे बढ़ता है।
कुकर की बजती सीटियों के बीच “विविध भारती “पर “लता मंगेशकर “की आवाज यहाँ का “राष्ट्र गान” है जो आप को लगभग हर कमरे में सुनाई देगा।

यहाँ का प्रतियोगी मैनेजमेंट भी बहुत अच्छा सीख लेता है। दस बाई दस के कमरे में, सब कुछ बिल्कुल अपनी जगह रखा मिल जाएगा। अलमारी किताबो से भरी, एक तरफ कुर्सी और मेज, एक तरफ लेटने के लिए चौकी, एक तरफ खाना बनाने के लिए एक मेज, दीवारों पर विश्व के मानचित्र और उसके बगल में लगे स्वामी विवेकानन्द और डॉ कलाम के पोस्टर और दरवाजे के पीछे लगी मुस्कुराती हुई मोनालिशा का बड़ा सा पोस्टर और कमरे की छज्जी पर रखे रजाई और कंबल। ये सब यहाँ के विद्यार्थी का मैनेजमेंट बताने के लिए पर्याप्त है ।

प्रतियोगी यहाँ अपने हर काम का टाइम टेबल बना के अपने स्टडी मेज के दीवाल के ऊपर चिपका के रखता है जिसमें यह तक जिक्र होता है कितने बजे अख़बार पढ़ना है और कितने बजे सब्जी लेने जाना है।

DBC यहाँ के छात्रों का मुख्य खाना है , DBC यानि दाल, भात, चोखा। कुल मिलाकर यहाँ के प्रतियोगी की जिंदगी कमोबेश एक सिपाही जैसी होती है।

इस तरह तैयारी करते करते 3-4 साल बीत जाते हैं कुछ साथी चयनित होकर अपने अनुजो का उत्साह बढ़ा के चले जाते है। यहाँ मछुआटोली, भिखना पहाड़ी, महेन्द्रू, राजेन्द्र नगर जैसे इलाकों में शाम के वक़्त छात्रों का चाय के दुकान पर संगम लगता है, जहाँ हर जगह से आये छात्र साथ बैठ कर चाय पीते-पीते देश की दशा, दिशा और परीक्षाओं पर भी सार्थक बहस करते हैं। यहाँ के प्रतियोगी को जितना अमेरिका के लोगो को उसके भौगोलिक स्थिति के बारे में नहीं पता होगा उससे ज्यादा इनको पता होता है।

यहाँ का प्रतियोगी जब अपने मेहनत के फावड़े से अपनी बंजर हो चुकी किस्मत पर फावड़ा चलाता है तो सफलता की जो धार फूटती है उसी धार से वह अपने परिवार को, समाज को सींचता है और इसी सफलता के लिए न जाने कितनी आँखे पथरा जाती है और प्यासी रह जाती है, लेकिन उस प्यास की सिद्दत इतनी बड़ी होती है कि एक अच्छा इंसान जरूर बना देती है।

सौ बार पढ़ी गई किताब को बार-बार पढ़ा जाता है, जब याद हो चुकी चीजो को सौ बार दुहराया जाता है फिर भी परीक्षा हॉल में कंफ्यूजन हो जाया करता है, उस मनोस्थिति का नाम है यहाँ का विद्यार्थी। जब परीक्षा हॉल के अंतिम बचे कुछ मिनटों में बाथरूम एक सहारा होता है शायद वहा कोई एक दो सवाल बता दे उस मनोस्थिति का नाम है यहाँ का विद्यार्थी।

जब खाना बन कर तैयार हो जाये तो उसी समय में दो और दोस्तों का टपक पड़ना और फिर उसी में शेयर कर के खाना इस मनोस्थिति का नाम है यहाँ का विद्यार्थी ।

प्रतियोगी का संघर्ष का दौर चलता रहता है, कुछ निराश होने लगे प्रतियोगियों को तब कोई कन्धा सहारा बन के आ जाता है, जब उसकी निराशा बढ़ने लगती है तो उस कंधे पर होता है रेशमी दुपट्टा। उसके बाद वो उस रेशमी दुपट्टे के आंचल में ऐसा खोता है कि तब उसे आप कहते सुन लेंगे कि वह इसके लिए IAS बन के दिखा देगा।

इस तरह शुरू होता है इश्क़ का दौर, घूमना, टहलना, पढाई का एक से बढ़ कर एक ट्रिक अपनी गर्ल फ्रेंड को देना, इन सभी चिजों का ये एक दौर चलता है। मुँह पर दुपट्टा बांधा जाता है, हेलमेट भी पहना जाता है फिर भी शाम को कोई मिल जायेगा और बोलेगा, “अरे यार आज तुमको हम भौजी के साथ मछुआ टोली में देखे थे”।

कुछ समय बाद यह भी दौर खत्म हो जाता है, लड़की के घर वाले उसके हाथ पीले कर देते है। फिर यह चुटकुला सुनने को मिल जाता है, जब मैं बीएड का फॉर्म लेने दुकान पर गया था तो वो अपने बच्चे को कलम दिला रही थी।

यहाँ तैयारी का फेस भी बदलता रहता है, शुरू में माँ-बाप के लिए IAS बनना चाहता है, उसके बाद गर्ल फ्रेंड के लिए IAS बनना चाहता है और अंत में दुनिया को दिखाने के लिए। वो कहता फिरता है कि मै दुनिया को दिखा दूंगा कैसे की जाती है तैयारी IAS की, पर जब वो असफल हो जाता है तो लोग उससे बात करना नहीं पसन्द करते, क्योंकि उनके नजर में वह असफल है, लेकिन यक़ीन मानिये असफल प्रतियोगी अपनी असफलता को बता सकता है, उसकी कमियों से सीखा जा सकता है, जिससे इतिहास रचा जा सकता है।

वैसे इस शहर में हमने भी पूरे वनवास काटे हैं, यहाँ के तैयारी करने वाले प्रतियोगियों का यही मज़ा है। आप बौद्धिकता से परिपूर्ण हो जाते है बेशक सफलता मिले न मिले।

टी.के. तिवारी
(एक छात्र)

UPSC Result 2019: यूपीएससी में बिहारियों का दबदबा कायम, मधुबनी की चित्रा को 20वां रैंक

संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा 2018 (UPSC Civil Services Result 2018) का फाइनल रिजल्ट शुक्रवार को जारी कर दिया| इसमें बिहार के कई अभ्यर्थियों ने सफलता पायी है|

इनमें मधुबनी की बेटी चित्रा मिश्रा ने 20वां रैंक हासिल किया है| वहीं, बिहार की राजधानी पटना के कारोबारी सुनील खेमका की बेटी सलोनी को 27वां रैंक मिला है, जबकि पटना के ही कारोबारी कमल नोपानी के बेटे आयुष नोपानी को 151वां रैंक मिला है|

इसी तरह जमुई, नालंदा, दरभंगा, बेगूसराय, वैशाली आदि जिलों के अभ्यर्थियों ने भी सफलता हासिल की है।

मिल रही जानकारी के अनुसार बिहार के जमुई जिले के सिकंदरा निवासी सुमित कुमार को 53वीं रैंक, नालंदा जिले के सौरभ सुमन यादव को 55वीं, मधुबनी के नित्यानंद झा को 128वीं, बेगूसराय के गौरव गुंजन को 262वीं तथा वैशाली के रंजीत कुमार को 594वीं रैंक मिली है। देर रात तक और भी सफल अभ्‍यर्थियों के सफल होने की सूचना मिलने की उम्‍मीद है। इसके अलावा मधुबनी की चित्रा मिश्रा को 20वीं रैंक मिली है।

वही  इसमें बांबे आइआइटी से बी. टेक कनिष्क कटारिया ने टॉप किया है जबकि सृष्टि जयंत देशमुख महिलाओं में अव्वल आई हैं। वैसे ओवर ऑल में उनकी पांचवीं रैंक है।

पीएससी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि आयोग ने आइएएस, आइपीएस, आइएफएस जैसी सेवाओं में नियुक्ति के लिए कुल 759 (577 पुरुष तथा 182 महिला) उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश की है। अनुसूचित जाति से आने वाले कटारिया ने कंप्यूटर साइंस में बी. टेक किया है। उन्होंने वैकल्पिक विषय के रूप में गणित लिया था। महिलाओं में शीर्ष आने वाली देशमुख, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, भोपाल से केमिकल इंजीनियरिंग में बी. ई हैं।सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा तीन जून 2018 को आयोजित की गई थी।

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UPSC के इंटरव्यू में असफल होने वालों को भी मिलेगी सरकारी नौकरी!

बिहार के लोगों में सरकारी नौकरी को लेकर क्रेज़ जगजाहिर है| इसको लेकर एक बड़ा मजेदार कहावत भी है कि बिहार में बच्चे के जन्म लेने से पहले ही यह तय हो जाता है कि ये यूपीएससी के परीक्षा में बैठेगा|

हर साल हजारों के संख्या में बिहारी लोग आईएएस बनने का सपना लेकर शहरों तक पलायन करते हैं| यह बात सच है कि यूपीएससी के परीक्षा में बिहारियों का दबदबा रहा है मगर इसके बावजूद सीट कम होने के कारण चंद लोगों का ही सपना पूरा हो पता है| कई लोग तो इंटरव्यू तक का सफ़र तय करने के बाद भी असफल हो जाते हैं|

इंटरव्यू में असफल होने वाले लोग सरकारी अफसर बनते-बनते रह जातें हैं| उनकी मेहनत पल भर में बर्बाद हो जाता है| मगर ऐसे लोगों के लिए खुशखबरी है|

पीएससी के चेयरमैन अरविंद सक्सेना ने हाल में भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा है कि जो उम्मीदवार सिविल सेवा परीक्षा या अन्य प्रतियोगी परीक्षा को पास करने के बाद इंटरव्यू राउंड तक पहंचते हैं उन्हें भारत सरकार के मंत्रालयों में जरूरत के हिसाब से नियुक्त किया जा सकता है। 

अरविंद सक्सेना ने बताया 1 साल में करीब 11 लाख उम्मीदवार UPSC की परीक्षा में हिस्सा लेते हैं. फिर प्री, मेंस और इंटरव्यू की प्रक्रिया होने के बाद 600 उम्मीदवारों को चुना जाता है|

वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उम्मीदवार भी जो वाइवा वॉइस के अंतिम चरण तक तो पहुंच जाते हैं, लेकिन रैंक लाने में असफल हो जाते हैं| सरकार और अन्य संगठन भर्ती के दौरान उन पर विचार कर सकते हैं क्योंकि वे पहले ही मुश्किल स्क्रीनिंग प्रक्रिया से गुजर चुके हैं और केवल अंतिम चरण में असफलता का मुंह देखना पड़ता है| वहीं अगर ऐसा होता है तो युवाओं में परीक्षा के तनाव को कम करने में मदद मिलेगी.  साथ उनके मन में नौकरी को लेकर उम्मीद बनी रहेगी|

फोटो: द हिन्दू

गुजरात में 48 आईएएस और 32 आईपीएस बिहार-यूपी से हैं, फिर भी हो रहा बिहारियों पर हमला

एक रेप के आरोपी के नाम पर पुरे बिहार और बिहारियों को बदनाम किया जा रहा है| गुजरात में गरीब बिहारी मजदूरों को धमकी दिया जा रहा है और उन पर हमला किया जा रहा है| मगर यह जानकार आपको हैरानी होगी कि जिस गुजरात राज्य में बिहार-यूपी के लोगों पर हमला किया जा रहा है उस प्रदेश में कानून व्यवस्था और प्रशासन की बागडोर संभालने वाले 40 फीसदी आईएएस-आईपीएस भी इन्हीं दोनों राज्यों से हैं।

समूचे गुजरात में इस वक्त तैनात 40 आईएएस व आईपीएस अधिकारी उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं। गुजरात पुलिस के मौजूदा महानिदेशक यानी डीजीपी शिवानंद झा और गुजरात सरकार के मुख्य सचिव जेएन सिंह, दोनों ही बिहार से आते हैं। राज्य के कुल 243 आईएएस अधिकारियों में से 48 यूपी और बिहार के लोग हैं। जबकि प्रदेश में मौजूद 167 आईपीएस अफसरों में से 32 यूपी-बिहार से हैं। यानी प्रदेश की कानून व्यवस्था और प्रशासनिक बागडोर संभालने वाले लोग भी उन्हीं राज्यों से हैं, जिनके लोग आज पलायन को मजबूर हैं।

इस घटना पर गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने कहा कि वे गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमले की निंदा करते हैं| हार्दिक पटेल ने ट्वीट किया, ”गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमले की में निंदा करता हूँ।अपराधी को कठोर सजा मिले,इसके लिए पूरा देश उस पीड़ित परिवार के साथ खड़ा हैं।लेकिन एक अपराधी के कारण हम पूरे प्रदेश को ग़लत नहीं ठहरा सकते,आज गुजरात में 48 IAS एवं 32 IPS उ॰प्र और बिहार से हैं।हम सब एक हैं।जय हिंद|”

अपने एक दूसरे ट्वीट में हार्दिक पटेल ने कहा, ”गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमले में देश के प्रधानमंत्री कब बोलेंगे, नरेन्द्रभाई मोदी ने कहा था की बिहार और उत्तरप्रदेश से तो मेरा पुराना रिश्ता है| गुजरात की सभी श्रम फैक्ट्री में उत्तर भारतीय लोग काम करते हैं| आज सभी फैक्ट्री बंद हैं| उत्तर भारत का महत्व कितना है आज समझ आया|”

पटना के मछुआटोली, भिखना पहाड़ी, महेन्द्रू और राजेन्द्र नगर का विद्यार्थी जीवन

21-22 साल की छोटी सी उम्र में गाव की पगडंडियों से उठ कर, एक गठरी में दाल, चावल, आटा बांध कर जब एक लड़का खड़खड़ाती हुई बस में अपने हौसलो के उड़ान के साथ बैठता है तब उसके दिमाग में बत्तियां जलती है जो बत्तियां लाल होती है या नीली होती है और यही सोंचते-सोंचते वह कब पटना पहुंच जाता है उसको पता ही नहीं चलता। फिर यहाँ से शुरू होती है जिंदगी की जद्दोजहद, नौकरी की तलाश।

जब लड़का अपने कमरे में कदम रखता है उस दिन उसकी एक ऐसी साधना शुरू होती है जो कभी अकेला नहीं करता,

जब वह फॉर्म डालता है तो उसकी माँ किसी देवी माँ की मनौती मान देती है, उसकी बहन मन ही मन खुश होती है। उसके पिता दस लोगो से इसका जिक्र करते है और जब उसका परीक्षा जिस दिन रहता है उस दिन माँ व्रत करती है,

इस कामना के साथ की उसका लड़का आने वाले अपने पूरे जीवन भर फाइव स्टार होटल में खायेगा।

राजधानी के चकाचौंध में यहाँ लड़का कोचिंग करता है, अपने सीनियर, अपने दोस्त, अपने भाई आदि की सलाह भी लेता रहता है। अपनी तैयारी में धार देता हुआ आगे बढ़ता है।
कुकर की बजती सीटियों के बीच “विविध भारती “पर “लता मंगेशकर “की आवाज यहाँ का “राष्ट्र गान” है जो आप को लगभग हर कमरे में सुनाई देगा।

यहाँ का प्रतियोगी मैनेजमेंट भी बहुत अच्छा सीख लेता है। दस बाई दस के कमरे में, सब कुछ बिल्कुल अपनी जगह रखा मिल जाएगा। अलमारी किताबो से भरी, एक तरफ कुर्सी और मेज, एक तरफ लेटने के लिए चौकी, एक तरफ खाना बनाने के लिए एक मेज, दीवारों पर विश्व के मानचित्र और उसके बगल में लगे स्वामी विवेकानन्द और डॉ कलाम के पोस्टर और दरवाजे के पीछे लगी मुस्कुराती हुई मोनालिशा का बड़ा सा पोस्टर और कमरे की छज्जी पर रखे रजाई और कंबल। ये सब यहाँ के विद्यार्थी का मैनेजमेंट बताने के लिए पर्याप्त है ।

प्रतियोगी यहाँ अपने हर काम का टाइम टेबल बना के अपने स्टडी मेज के दीवाल के ऊपर चिपका के रखता है जिसमें यह तक जिक्र होता है कितने बजे अख़बार पढ़ना है और कितने बजे सब्जी लेने जाना है।

DBC यहाँ के छात्रों का मुख्य खाना है , DBC यानि दाल, भात, चोखा। कुल मिलाकर यहाँ के प्रतियोगी की जिंदगी कमोबेश एक सिपाही जैसी होती है।

इस तरह तैयारी करते करते 3-4 साल बीत जाते हैं कुछ साथी चयनित होकर अपने अनुजो का उत्साह बढ़ा के चले जाते है। यहाँ मछुआटोली, भिखना पहाड़ी, महेन्द्रू, राजेन्द्र नगर जैसे इलाकों में शाम के वक़्त छात्रों का चाय के दुकान पर संगम लगता है, जहाँ हर जगह से आये छात्र साथ बैठ कर चाय पीते-पीते देश की दशा, दिशा और परीक्षाओं पर भी सार्थक बहस करते हैं। यहाँ के प्रतियोगी को जितना अमेरिका के लोगो को उसके भौगोलिक स्थिति के बारे में नहीं पता होगा उससे ज्यादा इनको पता होता है।

यहाँ का प्रतियोगी जब अपने मेहनत के फावड़े से अपनी बंजर हो चुकी किस्मत पर फावड़ा चलाता है तो सफलता की जो धार फूटती है उसी धार से वह अपने परिवार को, समाज को सींचता है और इसी सफलता के लिए न जाने कितनी आँखे पथरा जाती है और प्यासी रह जाती है, लेकिन उस प्यास की सिद्दत इतनी बड़ी होती है कि एक अच्छा इंसान जरूर बना देती है।

सौ बार पढ़ी गई किताब को बार-बार पढ़ा जाता है, जब याद हो चुकी चीजो को सौ बार दुहराया जाता है फिर भी परीक्षा हॉल में कंफ्यूजन हो जाया करता है, उस मनोस्थिति का नाम है यहाँ का विद्यार्थी। जब परीक्षा हॉल के अंतिम बचे कुछ मिनटों में बाथरूम एक सहारा होता है शायद वहा कोई एक दो सवाल बता दे उस मनोस्थिति का नाम है यहाँ का विद्यार्थी।

जब खाना बन कर तैयार हो जाये तो उसी समय में दो और दोस्तों का टपक पड़ना और फिर उसी में शेयर कर के खाना इस मनोस्थिति का नाम है यहाँ का विद्यार्थी ।

प्रतियोगी का संघर्ष का दौर चलता रहता है, कुछ निराश होने लगे प्रतियोगियों को तब कोई कन्धा सहारा बन के आ जाता है, जब उसकी निराशा बढ़ने लगती है तो उस कंधे पर होता है रेशमी दुपट्टा। उसके बाद वो उस रेशमी दुपट्टे के आंचल में ऐसा खोता है कि तब उसे आप कहते सुन लेंगे कि वह इसके लिए IAS बन के दिखा देगा।

इस तरह शुरू होता है इश्क़ का दौर, घूमना, टहलना, पढाई का एक से बढ़ कर एक ट्रिक अपनी गर्ल फ्रेंड को देना, इन सभी चिजों का ये एक दौर चलता है। मुँह पर दुपट्टा बांधा जाता है, हेलमेट भी पहना जाता है फिर भी शाम को कोई मिल जायेगा और बोलेगा, “अरे यार आज तुमको हम भौजी के साथ मछुआ टोली में देखे थे”।

कुछ समय बाद यह भी दौर खत्म हो जाता है, लड़की के घर वाले उसके हाथ पीले कर देते है। फिर यह चुटकुला सुनने को मिल जाता है, जब मैं बीएड का फॉर्म लेने दुकान पर गया था तो वो अपने बच्चे को कलम दिला रही थी।

यहाँ तैयारी का फेस भी बदलता रहता है, शुरू में माँ-बाप के लिए IAS बनना चाहता है, उसके बाद गर्ल फ्रेंड के लिए IAS बनना चाहता है और अंत में दुनिया को दिखाने के लिए। वो कहता फिरता है कि मै दुनिया को दिखा दूंगा कैसे की जाती है तैयारी IAS की, पर जब वो असफल हो जाता है तो लोग उससे बात करना नहीं पसन्द करते, क्योंकि उनके नजर में वह असफल है, लेकिन यक़ीन मानिये असफल प्रतियोगी अपनी असफलता को बता सकता है, उसकी कमियों से सीखा जा सकता है, जिससे इतिहास रचा जा सकता है।

वैसे इस शहर में हमने भी पूरे वनवास काटे हैं, यहाँ के तैयारी करने वाले प्रतियोगियों का यही मज़ा है। आप बौद्धिकता से परिपूर्ण हो जाते है बेशक सफलता मिले न मिले।

टी.के. तिवारी
(एक छात्र)

सिविल सेवा परीक्षाओं में बिहारियों, अन्य हिंदी और क्षेत्रीय भाषीय छात्रों के साथ होता है भेदभाव

सिविल सेवा परीक्षा देश की सर्वोत्कृष्ट परीक्षा है जिसके माध्यम से देश भर के लिए प्रशासनिक अधिकारी चुने जाते है. इस परीक्षा के सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें कोई भी सामान्य स्नातक अभ्यर्थी भाग ले सकता है. इसके लिए उसे महंगी और अति विशिष्ठ संस्थानों की डिग्री का होना अनिवार्य नहीं है. कोई भी अभ्यर्थी अपने किसी भी मान्यता प्राप्त नजदीकी डिग्री कॉलेज से स्नातक उपाधि लेकर एक आई ए एस बनने का सपना देख सकता है. अर्थात कोई भी सामान्य और निम्न आर्थिक स्तर का छात्र भी प्रशासनिक अधिकारी बनने का स्वप्न देख सकता है.

परन्तु, अब शायद यह सपना केवल सपना ही बन के रह जाएगा. वर्तमान सरकारी नीतियों को देख कर तो ऐसा ही लगता है.

हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओ के विद्यार्थियों के साथ भेदभाव की शुरुआत तो वर्ष 2011 से प्रारम्भ हो गयी थी. जब सिविल सेवा परीक्षा “सी-सेट” प्रश्नपत्र को लागू किया गया था. इस प्रश्नपत्र के लागू होने के साथ ही सिविल सेवा परीक्षा में हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ के अभ्यर्थियों के चुनाव में भारी गिरावट होने लगी. यह एक सुनियोजित योजना जैसा था कि ग्रामीण अंचल के क्षेत्रीय भाषाई अभ्यर्थियों के स्थान पर महंगे संस्थानों से तकनीकी डिग्रीधारी उच्च वर्ग के अभ्यर्थियों को प्रशासनिक सेवा में लिया जाए.

बड़े आन्दोलन किये गए, छात्रों ने लाठिया. डंडे खाए, गिरफ्तारीयां दी. तब जा कर कही सरकार ने अपनी गलती को स्वीकार किया. लिखित रूप से स्वीकार किया. संसद में ब्यान देकर स्वीकार किया कि सी-सेट प्रश्न पत्र भेदभाव पूर्ण था. पहले सरकार ने मात्र अंग्रेजी भाषा के प्रश्नों को प्रश्नपत्र से निकाला.

फिर भी सी सेट पेपर की प्रकृति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. प्रश्नपत्र की बनावट इस प्रकार की जाती रही कि हिंदी व किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा का विद्यार्थी निश्चित रूप से अंग्रेजी माध्यम की छात्रों से अधिक अंक ना ला सके. यदि ऐसा नहीं है, तो अभी तक जहाँ सामान्य अद्ध्याँ प्रश्नपत्र में हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओ के छात्र 200 अंको के प्रश्नपत्र में 160-170 अंक सहज ही ले आते है, वही ठीक इसके विपरीत सी-सेट प्रश्नपत्र में 50- 60 अंक लाना कठिन हो जाता है. इसके ठीक विपरीत तकनीकी डिग्री धारक, अंग्रेजी माध्यम के छात्र सामान्य अध्ययन में बहुधा पिछड़ जाते है और सी सेट पेपर उनका प्रदर्शन सामान्यत: अच्छा होता है.

इस विसंगति के चलते पुन: हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओ के विद्यार्थियों ने संसद से लेकर सड़क तक देशव्यापी प्रदर्शन किये. सरकार ने विवश होकर ४ साल बाद वर्ष २०१५ में सी-सेट प्रश्नपत्र को अहर्ता-मूलक बना दिता.

परन्तु इन ४ सालों में हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओ के विदयार्थियों के सिविल सेवा परीक्षा के लिए निर्धारित सीमित अवसरों में से ४ प्रयास व्यर्थ चले गए. सरकार ने इन लाखों युवाओं के भविष्य के साथ जो खिलबाड़ किया उसके लिए कोई क्षतिपूर्ति नहीं की.

हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओ के पीड़ित छात्र सरकार और विपक्ष के सभी राजनेताओ के समक्ष अपनी पीड़ा रख चुके है. वर्ष 2018 में छात्रों ने लगभग 200 संसद सदस्यों से अपने लिए न्याय हेतु हस्ताक्षर भी लिए. कई सांसदों ने संसद के दोनों सदनों में छात्रों का यह मुद्दा भी उठाया.

पर, सरकार एकदम से निष्ठुर और संवेदनहीन बनी रही. सरकार के द्वारा सिविल सेवा के हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओ के ग्रामीण एवं छोटे नगरों से आने वाले छात्रो. को कोई रहत नहीं दी गयी.

आखिर, यह सरकार इतनी युवा विरोधी क्यों है??

सी-सेट विक्टिम छात्र कोई नौकरी नहीं मांग रहे, वे केवल एक समान स्थिति में सिविल सेवा परीक्षा में बैठने का एक अवसर मांग रहे है.

अब, सरकार का एक और नया हिटलरी फरमान

प्रारम्भिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा, और साक्षात्कार के तीन जटिल चरणों को पास करके कोई छात्र अकादमी में पहुच भी जाए तो भी वह आईएएस बनेगा या नहीं, यह तय नहीं होगा.

भारत की सिविल सेवा परीक्षा को विश्व की सबसे कठिन परीक्षाओं में माना जाता है. पर हमारी कथित युवा-समर्थक सरकार इसको नहीं मानती. अब अकादमी में तीन महीने के प्रशिक्षण के दौरान यह तय किया जायेगा कि कौन आई ए एस बनेगा और कौन नहीं बनेगा. भले ही छात्र ने अपनी योग्यता के बल पर कोई भी रैंक हासिल की हो.

अब इसमें जो होगा , वो सुन लीजिए –

अब आप सिविल सेवा परीक्षा पास करने के बाद मसूरी की ट्रेनिंग कीजिये। फिर जिसकी केंद्र में सरकार होगी, वो अपनी राजनीतिक दल की विचारधारा के अनुसार अफसर को अपने मनमाफिक सेवा व सेवा क्षेत्र देने के लिए भरपूर हस्तक्षेप करेगा। साथ ही साथ राजनीतिक हस्तक्षेप, अमीर-पूंजीपतियों के दुलारो का हस्तक्षेप, बड़े-बड़े अफसरों का हस्तक्षेप बढ़ेगा। क्योंकि इनके लोग आसानी से अच्छी जगह सेवा क्षेत्र ले लेंगे और गरीब-दलित-पिछड़ा-अल्पसंख्यक अपनी बारी का इंतज़ार करता रहेगा ।

इन सब के साथ-साथ इस ट्रेनिंग सेंटर पर चापलूसी की एक परम्परा की भी शुरुआत हो जाएगी। लोग अपने ट्रेनर को खुश रखने के लिए पता नहीं क्या-क्या करेंगे। क्योंकि इन्ही ट्रेनर के हाथ मे इनका भविष्य होगा।

सबसे बड़ी बात, जो लोग अभी तक खुशनुमा माहौल में ट्रेनिंग किया करते थे, वे एकदूसरे को पीछे छोड़ने की तरकीब सोचने लगेंगे ।

कुल मिलाकर, भारतीय सिविल सेवा में वर्तमान सरकार अपनी राजनीतिक पार्टी व आरएसएस के विचारधारा के लोगो को अपने अनुसार सेवा व सेवा क्ष्रेत्र देना चाहती है। जिससे कि वो आने वाले समय मे भारतीय प्रशासनिक सेवा पर वैचारिक कब्जा कर सके। यह प्रशासकों को खुले तौर पर भारतीय संविधान के तहत नहीं, अपितु किसी खास विचारधारा के पोषक के तौर में पेश करना चाहती है ।

यदि ऐसा होता है तो फिर कमर कस लीजिये, संघर्ष के मैदान में उतरने के लिए।

-अनुरागेन्द्र निगम

 

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UPSC RESULT: इस साल भी UPSC में बिहारियों का दबदबा, बक्सर के अतुल को चौथा रैंक हासिल

संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा परीक्षा 2017 का फाइनल रिजल्ट आज शाम आयोग की आधिकारिक वेबसाइट upsc.gov.in पर जारी कर दिया गया. इस साल भी बिहार के होनहारों का दबदबा देखने को मिल रहा है.

शुक्रवार को जारी किये गये इस रिजल्ट में बक्सर के राजपुर प्रखंड के रहने वाले अतुल प्रकाश ने ऑल इंडिया लेबल पर चौथा रैंक हासिल कर पूरे बिहार को गौरवान्वित किया है. अतुल प्रकाश दिल्ली में रहकर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. अतुल प्रकाश के पिता अशोक राय पूर्व मध्य रेलवे के समस्तीपुर डिवीजन में चीफ इंजीनियर हैं और फिलहाल हाजीपुर में कार्यरत हैं.

अभी तक मिली जानकारी के अनुसार बिहार के सफल अभ्‍यर्थियों में सहरसा के सागर झा को 13वां तो पटना की अभिलाषा अभिनव को 18वां स्‍थान मिला है. भागलपुर की ज्‍योति 53वें, मातीउर्ररहमान 154वें स्‍थान पर रहे हैं. बेगूसराय के योगेश गौतम ने 172वां रैंक हासिल किया है. नवादा जिले के मयंक मनीष ने 214वां स्‍थान हासिल किया है. भोजपुर की श्रेया सिंह 538वें स्‍थान पर हैं.

सागर झा को 13वां रैंक

यूपीएससी फाइनल परीक्षा 2017 में कुल 990 अभ्यर्थी सफल हुए हैं. सामान्य वर्ग के 476, अति पिछड़ा वर्ग के 275, अनुसूचित जाति के 165, अनुसूचित जनजाति के 74 उम्मीदवार पास हुए हैं. भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए 180 उम्मीदवारों का चयन हुआ है. भारतीय विदेश सेवा के लिए 42, आईपीएस के लिए 150, केंद्रीय सेवा ग्रुप (क) 565, ग्रुप (ख) सेवाओं के लिए 121 उम्मीदवार पास हुए हैं.

 

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नीतीश ने भरोसा जताया तो इस IAS ने बदल दी पुरे बिहार की तस्वीर

आज हम बताने जा रहे है बिहार के एक ऐसे लाल की जिन्हें जिस काम की अपेक्षा की जाती है, वे उसे पूरा कर दिखाते हैं.  वे बिना थके अपेक्षाओं से भी आगे बढ़कर अपने काम को अंजाम देते हैं. अपनी लगन, निष्ठा और साहस के साथ वे इस बात की मिसाल हैं कि नौकरशाह को जनसेवा के प्रति कितना समर्पित होना चाहिए. बिहार में सड़कों और बिजली  की सूरत बदलने का श्रेय इन्हे ही जाता है . जी हाँ, हम बात कर रहे है  नागरिक प्रशासन के लिए प्रधानमंत्री का एक्सलेंस अवार्ड से सम्मानित  1991 बैच के आइएएस प्रत्यय अमृत की| 

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प्रत्यय अमृत, एक आईएएस जिसने बिहार को प्रगति के पथ पर ला दिया

टूटी हुई कुर्सियां, दिवारों में सीलन और फटे हुए परदे; हम  कोई कबाड़ खाने की तस्वीर बयां नहीं कर रहें, बल्कि कुछ सालो पहले  बिहार राज्य पुल निर्माण निगम (BRPNN) के दफ्तर का ऐसा ही हाल था.

वर्ष 2006 में इसकी हालत बहुत खराब थी। राज्य सरकार तक ने इसे बंद करने का मन बना लिया था. इसी दफ्तर में बैठकर बिहार को रफ्तार देने की जिम्मेदारी थमाते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने IAS अधिकारी प्रत्यय अमृत को बिहार राज्य पुल निर्माण निगम BRPNN का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया था.

साल 2006 में जब प्रत्यय अमृत ने जिम्मेदारी संभाली थी तब BRPNN के खाते में महज 47 करोड़ रूपय थे.  लेकिन IAS प्रत्यय अमृत ने महज दो साल में वो कारनामा कर दिखाया जिसे देख कर सरकार भी हैरान थी. कल तक आर्थिक तंगी से परेशान BRPNN दो साल के भीतर ही कोसी बाढ़ के दौरान मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए 20 करोड़ रुपये दान करने की स्थिति में था.

प्रत्यय अमृत ने अपने दम पर ना सिर्फ दिवालिया हो चुके एक उपक्रम को चलाया बल्कि उसे इतना आगे ले गए की  जुलाई 2009 में बिहार राज्य पुल निगम, आइएसओ 9001:2000 और 1410:2004 प्रमाणित कंपनी बन गई. जहां एक ओर बिहार में 30 साल में 300 पुल बने थे वहीं प्रत्यय अमृत के निर्देशन में  महज तीन साल में 314 पुलों का निर्माण हो गया।

कौन है प्रत्यय अमृत?

पढाई लिखाई 

प्रत्यय अमृत गोपालगंज जिला के  हथुआ सब डिविजन के भरतपुरा गांव का निवासी है . उनके पिताजी  बीएनमंडल यूनिवर्सिटी के वॉयस चांसलर थे. उनकी मां भी प्रोफेसर थीं. उनकी  पढ़ाई लिखाई  मुजफ्फरपुर से शुरू हुई. 10वीं आसनसोल से हुई. दिल्ली से बारहवीं और हिंदू कॉलेज से बीए व एमए किया. उन्होंने  हिस्ट्री से ऑनर्स किया था. पोस्ट ग्रेजुएशन के अगले ही दिन उन्हें  वैंकटेश्वर कॉलेज में लेक्चररशिप का जॉब मिल गया था. कुछ महीनों तक उन्होंने  वहां भी पढ़ाया है. उसके बाद 1990 में आइपीएस और 1991 में आइएएस बने .

प्रत्यय अमृत की बहन भी आइएएस है

प्रत्यय अमृत कहते है की अन्य घरों की तरह ही उनके घर का भी माहौल था. शुरुआत से ही उनको माता-पिता का गाइडलाइन मिला है. उन दिनों लोग अपने बच्चों को हॉस्टल में रख कर नहीं पढ़ाते थे. हमारी आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद हमारे पैरेंट्स ने हम भाई-बहनों को हॉस्टल में रख कर पढ़ाया. हम तीनों भाई-बहन सोचते थे कि जिस कठिनाई में रख कर पैरेंट्स हमें पढ़ा रहे हैं, ऐसे में हमें कुछ कर दिखाना चाहिए. उसके बाद हम लोग परिश्रम करते रहे. माता-पिता का आशीर्वाद रहा. हम आइएएस बने. हम सबने पढ़ाई की एक स्ट्रेटजी तैयार की थी. मैं हमेशा ग्रुप स्टडी को पसंद करता हूं. ध्यान रख कर लाइक माइंड के दोस्तों के साथ ऐसा ग्रुप बनायें. प्रत्यय अमृत की बहन भी आइएएस है.

 

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एक फोन ने बदल दी बिहार की किस्मत

आपने अक्सर सुना होगा की एक फोन ने किसी शख्स की किस्मत बदल दी. लेकिन ऐसा पहली बार हुआ जब एक फोन ने पुरे राज्य की किस्मत बदल दी हो. 1991 बैच के अधिकारी प्रत्यय अमृत उस समय दिल्ली में डेपुटेसन पर थे. तभी बिहार के एक अधिकारी ने उन्हे फोन कर पूछा कि क्या वो बिहार आना चाहते हैं. बिहार में उन्हें एक मृत पड़ी संस्थान बिहार राज्य पुल निर्माण निगम को चलाने की जिम्मेदारी दी जा रही थी, लेकिन बिहारी होने के कारण बिहार प्रेम उन्हें वापस बिहार खींच लाया. फिर क्या था एक बिहारी ने जो कर के दिखाया वो आज सबके सामने है|

मुश्किल था काम को अंजाम देना

ऐसा नहीं है कि प्रत्यय अमृत ने ये सब बड़ी आसानी से कर दिखाया बल्कि उन्हें अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा. प्रत्यय अमृत ने जब काम संभाला था तब विभाग के कर्मचारियों का मनोबल टूट चुका था. प्रत्यय अमृत के पास पेंडिंग पड़ी योजनाओं की एक लंबी सूची थी. जिसमें से कुछ तो 17 साल से लंबित पड़े प्रोजेक्ट थे. पिछले एक दशक में जिस विभाग को चूस कर खोखला बना दिया गया था उसी विभाग को चमका कर प्रत्यय अमृत ने बिहार को रफ्तार देने का काम किया.  बिहार राज्य पुल निर्माण निगम के प्रबंध निदेशक (BRPNN) के रूप में, उन्होंने तीन साल में लगभग 300 प्रमुख पुल परियोजनाओं के पूरा होने का निरीक्षण किया था. ऐसे माहोल में जहां एक ईंट लगाना भी मुश्किल था वहां 300 पुल का काम पूरा करवाना किसी पहाड़ को हिलाने से कम नहीं था.

कर्मचारियों को किया प्रोत्साहित 

प्रत्यय का मानना है कि कर्मचारियों को काम करने के लिए बेहतर सुविधा और माहौल जरुर मुहैया करानी चाहिए, तभी आप अधिक से अधिक परिणाम पा सकते हैं। प्रत्यय ने चुनौती को समझते हुए सबसे पहले अपनी टीम को मजबूत करने की ठानी. उन्होंने अपनी टीम के अधिकारियों और इंजीनियरों को  आउट-ऑफ-द-बॉक्स समाधान निकालने की छूट दी. जब अधिकारियों को काम करने की आजादी मिली तो किसी ने अपने बॉस को निराश नहीं किय़ा. हलांकी तारीफ टीम लीडर की भी करनी होगी क्योंकि जब-जब उन्हें लगा की टीम ने कोई बड़ा काम किया है, तब-तब उन्होंने अपनी टीम को सम्मानित भी किया. इंजीनियरों और कर्मचारियों में जो विश्वास प्रत्यय अमृत ने दिखाया उसका ही परिणाम था कि BRPNN आज इतनी बहतर स्थिति में है .

बना दिया रिकार्ड

BRPNN ने अपने स्थापना के तीस सालों में जहां सिर्फ 314 पुल बनाए थे, वहीं 2006 में प्रत्यय अमृत के आने के बाद सिर्फ तीन साल में ही 336 पुल बनाकर ऐसा रिकार्ड बना दिया जिससे सभी लोग आश्चर्यचकित हो उठे . तीन साल में बने इसी 336 पुल की बदौलत ही  नीतीश कुमार ने पूरे बिहार में सड़कों का जाल बिछाया. जिससे बिहार की पुरानी तस्वीर बदल गई. IAS अधिकारी प्रत्यय अमृत को जब BRPNN का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया था उस वक्त विभाग के खाते में महज 47 करोड़ रूपय थे. लेकिन आज विभाग का कारोबार 768 करोड़ तक पहुंच गया है.

इनके काम से आम जनता भी रहती है खुश 

प्रत्यय अमृत के काम को जनता ने हमेशा सराहा है। जब ये कटिहार के जिलाधिकारी थे, पहली बार सरकारी और प्राइवेट संस्थाओं को जिला अस्पताल से मिलकर काम करने के लिए कहा। इसी तरह प्रत्यय अमृत जब छपरा के जिलाधिकारी थे तो पहली बार एशिया के सबसे बड़े पशु मेला सोनपुर में सीसीटीवी कैमरा को लगवाया, जो सुरक्षा के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण कदम था। वर्ष 2011 में प्रत्यय अमृत को बिहार स्टेट रोड डेवलपमेंट कारपोरेशन का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया। मैनेजिंग डायेरेक्टर के तौर पर प्रत्यय अमृत ने निर्णय लिया कि संस्था के फंड का कुछ हिस्सा, आर्थिक रुप से पिछड़ी लड़कियों के पढ़ाई और उनको आत्मनिर्भर बनाने पर खर्च किया जाए। प्रत्यय अमृत को 2011 में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के लिए प्रधानमंत्री एक्सिलेंस अवार्ड भी मिल चुका है।

 

 

हर मुश्किल को आसान बनाने वाले कुशल प्रशासक हैं ऑफिसर अमृत प्रत्यय

यह जुलाई माह का एक दिन था. राजधानी पटना में दीघा-एम्स की सड़क के निर्माण में लगी कंपनी की गड्ढ़ा खोदने वाली भीमकाय मशीन अर्थमूवर ने गलती से बिजली के मोटे-मोटे केबल तारों को क्षतिग्रस्त कर दिया. इन केबलों के जरिए 220/132/33 केवी के खगौल ग्रिड सब-स्टेशन से दीघा ग्रिड को बिजली पहुंचाई जाती है. बिजली की यह लाइन पश्चिमी पटना के 2,00,000 से ज्यादा उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति करती है. केबलों के टूटने से पूरा पश्चिमी पटना अंधेरे में डूब गया. 132 केवी का खगौल केबल 2 दिसंबर, 2013 और 30 मार्च, 2014 को दो बार टूट चुका था. दोनों ही बार केबल की मरम्मत करने में हफ्ते भर से ज्यादा समय लगा था.

सात दिन की जगह मात्र 36 घंटे के भीतर बिजली बहाल करवाई

लेकिन 1991 बैच के आइएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत को जिन्होंने एक माह पहले ही ऊर्जा सचिव का कार्यभार संभाला था, को पिछले रिकॉर्डों से कुछ भी लेना-देना नहीं था. उन्होंने विशेषज्ञों और आधुनिक केबलों को जोडऩे वाले उपकरणों का इंतजार करने की जगह कोई नया उपाय आजमाने का फैसला किया. वे इस कोशिश में कामयाब भी रहे और महज 36 घंटे के भीतर बिजली बहाल हो गई. उस वक्त तक मध्य प्रदेश के सतना से केबल विशेषज्ञ पहुंच भी नहीं पाए थे. उन्होंने यह सब कैसे किया. अपने इंजीनियरों के साथ सोच-विचार करने के बाद अमृत ने इंजीनियरों से कहा कि वे दीघा ग्रिड को बिजली की सप्लाई करने के लिए क्षतिग्रस्त केबल से एक अस्थायी लाइन स्थापित करें.

मुश्किल समस्या को बड़ी आसानी से किया हल 

जमीन खोदने वाली मशीन अर्थमूवर ने केबल को क्षतिग्रस्त कर दिया था, लेकिन बारीकी से जांच करने पर पाया गया कि एक सर्किट के दो केबल और दूसरे सर्किट का एक केबल अब भी सही-सलामत था. अमृत ने इंजीनियरों से कहा कि वे इन्हीं तीन केबलों से एक वैकल्पिक सर्किट बनाएं और दीघा ग्रिड को दी जाने वाली बिजली बहाल करें. यह काफी मुश्किल और खतरनाक काम था. यह प्रयोग अगर असफल रहता तो स्थिति और भी बिगड़ सकती थी. लेकिन उनकी कोशिश काम कर गई. वहीं दूसरी ओर केबल मरम्मत के लिए सात दिन का जो अनुमान लगाया गया था, वह सही साबित हुआ. केबल की मरम्मत का काम पूरा होने के लिए आठ केबल-ज्वाइंट किट की जरूरत होती है, जिन्हें स्वीडन से मंगाना पड़ा और वे तीन दिन बाद ही पटना पहुंच पाए. केबल की मरम्मत करने में हफ्ते भर से ज्यादा समय लग गया. पर उपभोक्ताओं को मुसीबत नहीं झेलनी पड़ी, क्योंकि अमृत की कोशिशों से तैयार वैकल्पिक सर्किट से उन्हें बराबर बिजली मिलती रही.

कबाड़’ की चीजों का किया ‘जुगाड़’ तो बन गया पटना का ‘एनर्जी कैफे’

एनर्जी कैफे को बिहार के विद्युत विभाग के मुख्यालय में बनाया गया है। इस कैफे का बनाने के लिए बिजली विभाग के सारे खराब और कबाड़ सामान का दोबारा इस्तेमाल किया गया है यहां तक की यहां  के फर्नीचर  तक  पुराने कबाड़ से बने और एनर्जी कैफे नाम दिया गया है। आपको बता दें कि इस कैफे को बनाने का आइडिया बिहार के आईएएस और बिजली विभाग के सीएमडी  रहें प्रत्यय अमृत का था।  इस कैफे को प्रोफेशनल आर्टिस्ट मंजीत और नेहा सिंह ने डिजाइन किया है ।

दोनो लोगो को प्रत्यय ने टाॅस्क दिया था कि यहां पर जितनी भी  चीजें है कबाड़ की उन्हें फिर से इस्तेमाल करके उन्हें आकर्षक बनाना है। दोनाे ने मिलकर पुराने ड्रम को काटकर कुर्सी का रूप तो क्वायल लपेटने वाले लकड़ी के मोटे गठ्ठर को सेंटर टेबल बना डाला। दोनों ने बताया कि कबाड़ को फिर से आकर्षक बनाना बहुत मुश्किल था लेकिन हमनें चीजो को नया रूप दे ही दिया । इलेकिट्रक पैनल्स को कुर्सी और टेबल बनाया तो इंसुलेटर भी काम आ गया।दोनो ने आॅयल ड्रम को बैठने का टूल तैयार किया और इंसुलेटर से डस्टबिन इसके अलावा बिजली के तारो से मार्डन आर्ट बनाये।  मीनू का बनाने के लिए दीवाल घड़ी के साथ लकड़ी के पुराने टुकड़े का इस्तेमाल किया।

कैफे का एक सोफा लोगों को अपनी तरफ खास आकर्षित करता है। दरअसल एक पुरानी एंबेसेडर कार को आधा काट कर उसे सोफा में बदला गया है और उसमें गद्दे लगाये गये हैं।

फेम इंडिया मैगजीन-एशिया पोस्ट सर्वे में मिला प्रमुख स्थान 

स्वभाव से बहुत सरल प्रत्यय अमृत कभी भी हार न मानने वाले व्यक्ति हैं। उनका मानना है कि किसी भी काम को टालना नहीं चाहिए, उसे तुरंत करना चाहिए। यही जीवन में सफलता की कूंजी है। फेम इंडिया मैगजीन-एशिया पोस्ट सर्वे के ‘असरदार आईएएस 2018’ के सर्वे में विभिन्न पैरामीटर में की गई रेटिंग में प्रत्यय अमृत को प्रमुख स्थान पर पाया है।

हम सरकारी नौकरी ही करेंगे मालिक, फिर से पकौड़ा” तो नहीं बेचेंगे

एक बार फिर आमजन की उड़ान रोकने की कोशिश हुई है, एक बार फिर उनके सपने दबोचने के प्रयास किये गए हैं। पर इसबार जनता चुप नहीं रही। आवाज़ उठाई गई, और सबसे पहली आवाज़ उठी हमारे बिहार के भोजपुर जिले से, आरा से। यहाँ दिन-रात सरकारी नौकरियों की तैयारी में अपनी लगन झोंकते छात्र, सरकार के रवैये पर चुप न रह सके। रेलवे भर्ती के नियमों और पदों में हुई बड़ी हेरफेर ने इन्हें उकसाया। बिहार के लाल व साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे गए लोकप्रिय लेखक नीलोत्पल मृणाल इस विषय पर अपनी भावनाओं को शब्दों के माध्यम से प्रकट कर रहे हैं-

लीजिये, आप हम फेसबुक पे तर्क-वितर्क ही कर रहे थे और इधर मुद्दा जमीन पर उतर भी गया. शुरुआत हो चुकी है सज्जनों. बिहार की धरती आरा से प्राप्त ये तस्वीर देखिये और गांव देहात के इन संघर्ष कर रहे पढ़े-लिखे युवाओं का ऐलान सुन लीजिये.

इन्होंने सड़क पे उतर के कह दिया है, हम चाय-पकौड़ा नहीं बेचेंगे.

हां, हम सरकारी नौकरी करेंगे बॉस. हम किसान, मजदूर, मास्टर साब, छोटे-छोटे ऑफिस में कुर्सी घिस पैंट फाड़ लेने वाले किरानी, ठेला लगाने वालों, परचून की दुकान चलाने वालों के खून-पसीने को गार के निकली जमा-पूंजी से पढ़े छात्र हैं, हम कम से कम “फिर से पकौड़ा” तो नहीं बेचेंगे.

जिस बाप ने देह गला कर भी पैसे जुगाड़ किये और हमारे सपने को न गलने दिया, न हमारे जोश को पिघलने दिया, उस बाप के अरमान और उसकी ख्वाहिशों को हम बेसन के घोल में घोल कर तो नहीं छान सकते.

सवाल इतना भर भी नहीं है मालिक कि हमने बस अभाव देखा है, आर्थिक संघर्ष देखा है और बस इसलिए हमें सरकारी नौकरी चाहिए.
हमें सरकारी नौकरी इसलिए भी चाहिए कि, हम में से जो-जो किसी भंगी, किसी जूता सीने वाला, ईंट भट्ठा बनाने वाला, खुरपी चलाने वाला, रिक्शा चलाने वाला, पान दूकान चलाने वाला, चाय दुकान चलाने वाले का बेटा बेटी है न, और जिनके बाप-दादा के कपार पे उनके लिए ये “फलना वाला…” का जो दाग पीढ़ी दर पीढ़ी गोदना की तरह गोद दिया गया है न, जिसके कारण लोग हमारे बाप-दादा का असली राशन कार्ड वाला नाम तक भूल चुके हैं, वो नाम वापस उन्हें यही “सरकारी नौकरी” दिलवायेगी, आपका हमारा फ़ेसबुकिया गप्प नहीं बाबू.

जब आप सुनेंगे “ए मर्दे ऊ ठेला वाला रामजतन के लड़का कलेक्टर बन गया हो, अब रामजतन के जियते में ही स्वर्ग मिल गया. जरूर कौनो बड़का पुण्य होगा पिछले जन्म का. अब मिला बेचारे को ठेला से मुक्ति”… ये चाहिए, यही मुक्ति चाहिए हमको! समझे! इसलिए चाहिए सरकारी नौकरी।

हमें इसलिए भी चाहिए सरकारी नौकरी कि जब हमारे गांव के प्रधान के घर उनके बड़के सोहदे लाडले का ब्याह हो तो दो तीन ठो कार्ड वहां जहां के गड़े सरकारी नल में कभी पानी पीना भी पाप और अपवित्र होना था, उस चमरटोली में भी कार्ड जाय क्योंकि अब दू तीन कलेक्टर और पुलिस कप्तान का भी घर है उस टोले में है.

इस देश ने 70 साल देख लिया और इन सालों में आपके दर्शन, आपकी नैतिकता का पाठ, मानवता, उदारता, सहृदयता, करुणा इत्यादि सब देख लिया.

संविधान की ठाठ और उसकी काट भी देख ली. आप हम इस मुल्क के गांव-गांव से छुआछूत को न हुरकुच के निकाल पाये न बहुत ठेलने की कोशिश ही की. लेकिन, ये बस सरकारी नौकरी ही एकमात्र ऐसा मैकेनिज्म था जिसने एक ही गांव के पंडित जी, ठाकुर साब और पासवान जी को एक चौकी पे बिठा दिया. और शायद ये भी इसलिए भी कि कुछ विसंगतियों और कमजोरियों के बावजूद इस मुल्क का संविधान हमे पूज्यनीय लगता है.

उदार होने का ढोंग मत रचिये और दिल पे हाथ रख के कहिये कि एक ठेले वाला हल्दीराम भुजिया वाला भी बन जाय तो क्या ठाकुरों की चमचमाती शौर्य वाली तलवार और पंडित का दिव्य ज्ञान उसके पैसे के आगे समर्पण करेगा? लेकिन अगर आप दोषी हैं या गलत हैं तो एक कलेक्टर की औकात और पुलिस कप्तान के लात के आगे क्या क्या न समर्पित हो जाय, ये आप-हम अच्छी तरह जानते हैं.

ये साहस 110 साल में भी बटोर न पायेगा. अब ये देश कि एक कलेक्टर से उसकी जात पूछ लें. और ये मुक्ति हमें सरकारी ओहदे के इसी नौकरी ने दी है. ये सुघर सलोना दृश्य केवल सरकारी नौकरी ही रच पाता है, जब एक पुजारी और एक भंगी का बेटा एक साथ मसूरी के ट्रेनिंग सेंटर में एक साथ देश की सर्वोच्च सेवा हेतु बिना किसी भेद भाव के प्रशिक्षण ले रहा है.

मुल्क के इन खूबसूरत दृश्यों को रचने के लिए जरूरी है. सरकारी नौकरी और आप कहते हो कोई काम छोटा नहीं होता, पकौड़ा बेच लो? जिंदगी भर जिस समाज को छोटा होने का अहसास कराते आये, उसे एक कदम आगे बढ़ाने की बजाय कोई काम छोटा नहीं होता, का मंत्र पढ़ा पकौड़ा गली का दार्शनिक मुहल्ला दिखा रहे? तुम्हें क्या दिक्कत अगर तिलक, तलवार, कुदाल, फावड़ा सब मिल हिंदुस्तान के लिए सिविल सेवा करें तो?

क्या चाहते हो, कि हम अपने खून-पसीने से पढ़ा अम्बानी, अडानी जैसे धनकुबेरों के लिए स्किल्ड मजदूर पैदा करें. उनके मन से साधारण से साहब हो जाने की इच्छा को अहंकार, सामंतवाद बता बड़े शातिराना तरीके से उन्हें पहले स्वरोजगार को मानवता वादी उदारवादी सूत्र बता पहले बरगलाएं और बस बाज़ार पे आश्रित कीड़ा बना के रखें और जब ठेला न चले हमारा, तो अपने यहां एक प्रतिभाशाली नौकर बना के रखें. कुबेरों के बच्चे उद्योग लगाएं और हमारे गांव इनके लिए मजदूर पैदा करें जो इंजीनियर हो, आईएस की तैयारी किया हो, प्रबंधन पढ़ा हो, पत्रकारिता पढ़ा हो.. सब इन धनकुबेरों की बहुमंजिला इमारत के आगे चाय-पकौड़ा बेचो जहां फिर हमारे ही भाई जो इन इमारतों के अंदर मजदूर हैं वे आके खाएं-पीयें.

वे भीतर के, हम बाहर के मजदूर. वाह, घर का माल घर में. कितने क्रूर हो चुके हैं हम, जब एक गांव से निकल कर पढ़-लिख सम्भावना के द्वार पे खड़े छात्र से कहते हैं कि कुछ न हुआ तो पकौड़ा बेच लेना और साथ-साथ कुछ होने के सारे अवसर भी खत्म किये जाते हैं जिससे उसका पकौड़ा बेचना तय ही हो जाय.

घिन आती है उन लोगों से जिन्होंने कभी 25 गज के कमरे में सड़ते हुए वातावरण में भी पढ़ते हुए, बढ़ते हुए छात्रों का संघर्ष देखा नहीं है और उसे कह देते हैं कि सरकारी नौकरी की सीट घटने से क्यों बौखलाये हो? क्या सबको सरकारी नौकरी चाहिए?

अरे बेशर्मों जब इतने मरीज पैदा कर चुके हो तो दवा भी देनी होगी न उतनी ही मात्रा में. अब इसमें उन मरीजों का क्या दोष जिसमें वो सदियों पीस कर आये हैं और आज साहब बन सम्मान से जीना चाहते हैं. भले माना कि सबको ये दवा न मिले, पर इस उम्मीद की लाइन में खड़ा रहने का तो हक़ मत छीनो. नौकर के अवसर तो मत कम करो मालिक.

मन करता है अपने सूद के पैसे से ठेले प्रायोजित करने वाले इन भरे पेट वाले साहूकारों का तोंद फाड़ उसमे से मैक डी का बर्गर और बरिस्ता की कॉफ़ी निकाल माड़ और भात डाल के पूछूं कि, पेट भरा तो होगा पर मन कैसा करता है ये खा के? ये कहते हैं सरकारी नौकरी कर के क्या करोगे? अरे सरकारी नौकरी ही करके टीना डाबी किसी अतहर की शान से हो जाती है, वरना पकौड़ा बेचते तो अंजाम अंकित सक्सेना भी हो रहा इसी मुल्क में. और पूछते हो कि, क्या रखा है सरकारी नौकरी में? सुनो हम करेंगे सरकारी नौकरी!

ये जो बात बात पे बिहारी और यूपी वाले मजदूर हो जाते हैं, घटिया हो जाते हैं न उस बिहार-यूपी पे तुम्हारे लाख भरमाने पे भी हमे नाज़ क्यों है पता है? क्योंकि हमें पता है कि जब देश के टॉप सेवा के चयन की लिस्ट टंगेगी तो उसमें हम भरे हुए मिलेंगे.

क्या चाहते हो? ये नाज़ छोड़ दें? ये गौरव त्याग दें? तुम्हें नहीं पता कि, एक गांव के खाते अगर एक कलेक्टर लग जाता है न तो वो सूर्य की तरह आसपास के 50 गांव को प्रेरणा की रौशनी देता है. ये जो देश जिस पर इतरा रहे हो न, जिसके बारे में कहते हो कि देश बदला है.. गांव बदला है.. तो जान लो ये गांव और देश इसी एक-एक होने वाले सरकारी चयन से बदला है, किसी पकौड़े के ठेले से नहीं.

मालूम है हमें कि क्यों अखड़ रहा तुम्हें ये नौकरी, क्योंकि जब मलमल पे सोये धनपशु को मुनाफाखोरी और आय की चोरी में पकड़ के जब गांव-देहात का लड़का इनकम अधिकारी बन डंटा घुसेड़ता है न, तब चोट पिछवाड़े से ज्यादा ईगो पे लग रही तुम्हारे. और हम ये ईगो तो तोड़ेंगे मालिक.

और हां, अरे माना कि अगर नौकरी हाथ ना आई तो दो रोटी तो कमा ही लेंगे, बिना इस अमृत सलाह के भी कमा लेंगे पर इस बात से क्यों इंकार करते हो कि हम नौकरी कर सकने के सारे प्रयास तो जरूर आजमाएंगे.

और सुन लो साब, हम पकौड़ा भी बेच लेंगे लेकिन तब जब पकौड़ा खाने वाले हमसे हमारी जात न पूछे, हमारा प्रदेश पूछ न हंसे, हमारा परिवेश, हमारी बोली, हमारा रहन देख न हंसे और हमारे साथ बराबर में ठेला लगा मौज में पकौड़े बेचें, करो तैयार पहले इस देश को इस लायक. कोई काम छोटा नहीं होता, जात होता है न? पहले ये तो बदलो मालिक. रोटी देने की औकात देख ली है सरकार.

उन तमाम मित्रों का आभारी हूं जिन्हें संघर्ष करते देखा और आज देश की सर्वोच्च सेवा में योगदान करता देख रहा हूं. गांव-देहात के इन बेटों-बेटियों की सफलता से ही मुझ जैसे साधारण को इतनी ताकत मिलती है कि सीने पे चढ़ के कहता हूं, हुकूमत सुनो, हमें सरकारी नौकरी चाहिए… जय हो…

बिहार के लाल आनंद कुमार ने मसूरी में 2016 बैच के प्रशिक्षु आईएएस अफसर को किया संबोधित

8 मई को लालबहादुर शास्त्रीराष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में सुपर-30 के संस्थापक गणितज्ञ आनंद कुमार को 2016 बैच के 180 प्रशिक्षु आईएएस अफसरों को प्रेरित किये। आनंद कुमार “शिक्षा में समानता” विषय पर व्याख्या दिए। अपने व्याख्यान के जरिए आनंद कुमार सुपर 30 की अबतक की यात्रा और निर्धन बच्चों के साथ उनकी सफलता के प्रेरणादायक अनुभवों को भी साझा किए। साथ ही वे भावी अधिकारियों को यह बताने का प्रयास किए कि देश को आगे बढ़ाने के लिए अंतिम पायदान के लोगों तक शिक्षा को पहुंचना अत्यावश्यक है।

 

वही अकादमी के संयोजक सी.श्रीधर द्वारा ने आनंद कुमार के योगदान की सराहना करते हुए उनसे प्रशिक्षु आईएएस अधिकारियों के बैच को पढ़ाने का आग्रह किया है। आनंद कुमार ने कहा कि देश का भविष्य जिन हाथों में सुरक्षित होने जा रहा है, उनके साथ अनुभव बांटना यादगार पल रहा।

 

आनंद कुमार अपने ऑफिसियल फेसबुक पेज पर पोस्ट किए है की:-

 

“लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में 2016 बैच के 180 प्रशिक्षु आईएएस अफसरों को संबोधित करने का अनुभव बड़ा सुखद रहा। सोचा था कि उन्हें मोटीवेट करूँगा लेकिन जिस तरह से सभी ने स्वागत किया तथा मेरी बातों को ध्यानपूर्वक सुना तब लगा जैसे मैं ही मोटीवेट हो गया। मैंने अपने अनुभव के आधार पर उन्हें बताना चाहा कि समाज के बदलाव में अधिकारियों की भूमिका राजनेतायों से भी कहीं अधिक होती है।”

इन बिहारी अफसरों के मार्गदर्शन से चल रही है देश और दुनिया कि मशहूर संस्था

किसी भी देश और राज्य के विकास में उसका नेतृत्व करने वाले नायको के विचारो और उसकी नीतियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है,सौभाग्य से बिहार उद्योग धंधो में भले कमजोर रहा हो मगर विचारो से सदैव धनी रहा है।इतिहास साक्षी है की बिहार ने समय समय पर दुनिया को मार्गदर्शन देने का कार्य किया है , बिहारी अपनी प्रतिभा और नेतृत्व क्षमता से देश ही नहीं दुनिया में बड़ी भूमिका निभा रहे है।

नये बिहार के हीरो श्रृंखला के तहत आज आपको उन बिहारियों से परिचय करवा रहे हैं जिनकी बुद्धिमता , सफलता , कार्यशैली की धमक आज दुनिया भर में है।

आलोक वर्मा 

आलोक कुमार वर्मा

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के निवासी आलोक वर्मा सेंट्रल ब्यूरो अॉफ इन्वेस्टिगेशन यानी सीबीआई के अध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अगुआई में इसी वर्ष जनवरी में उन्हें सीबीआई चीफ के पद पर नियुक्त किया गया।
1979 बैच के अाइपीएस अधिकारी हैं। आलोक कुमार वर्मा बेहद साफ-सुथरी छवि वाले आइपीएस अधिकारी माने जाते हैं। 58 वर्षीय वर्मा ने इतिहास में एमए की डिग्री ली है।

आलोक कुमार वर्मा दिल्ली पुलिस में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इन पदों में दक्षिण जिले में पुलिस उपायुक्त, अपराध शाखा के संयुक्त आयुक्त, नई दिल्ली रेंज के संयुक्त पुलिस आयुक्त, विशेष पुलिस आयुक्त : इंटेलिजेंस: और सतर्कता के विशेष पुलिस आयुक्त के पद शामिल हैं। वे इसके साथ ही अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में पुलिस महानिरीक्षक और पुडुचेरी में पुलिस महानिदेशक के पद पर भी कार्यरत रहे हैं।

सरोज झा

सरोज कुमार झा

सरोज झा आइएएस अधिकारी बनने के बाद उड़ीसा कैडर में विभिन्न पदों पर काबिज रहे। भारत सरकार के गृह मंत्रालय में आपदा विशेषज्ञ के पद को भी उन्होंने सुशोभित किया। 31 जनवरी तक सरोज कुमार झा विश्व बैंक के क्षेत्रीय निदेशक मध्य एशिया के रूप में कजाकिस्तान में पदास्थापित थे।

सरोज झा ने विश्व बैंक में अपने करियर की शुरुआत वर्ष 2005 में की थी। उस समय वे वरिष्ठ ढांचागत विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किए गए थे। इससे पूर्व वे यूनाइटेड नेशन के डवलपमेंट प्रोग्राम के लिए सीनियर एग्जीक्यूटिव के रूप में काम कर चुके हैं।
गिरीश शंकर


गिरीश शंकर देश के बड़े ब्‍यूरोक्रेट हैं . 1982 बैच के बिहार काडर के आईएएस अधिकारी । गिरीश शंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वसनीय अधिकारी में से एक है। वर्तमान में वे भारी उद्योग विभाग के सचिव है . यह केंद्र सरकार में अहम विभाग है . इससे पहले वह गृह मंत्रालय में अरुण जेटली के साथ थे । गिरीश शंकर पिछले कई वर्षों से प्रतिनियुक्ति पर भारत सरकार में हैं . बिहार में सेवाकाल के दौरान वे सूबे के होम सेक्रेट्री भी रह चुके हैं . अभी केन्‍द्र में हेवी इंडस्‍ट्री मिनिस्‍ट्री के सेक्रेट्री हैं . अगले साल 2017 में रिटायर होंगे . हेवी इंडस्‍ट्री मिनिस्‍ट्री में जाने के पहले शंकर ने मिनिस्‍ट्री ऑफ टूरिज्‍म को भी अपनी सेवाएं दी हैं . मूल रुप से वे बिहार के छपरा के रहने वाले हैं . पहले नेतरहाट विद्यालय,फिर आगे साइंस कालेज और बाद में एक्‍सएलआरआई,जमशेदपुर में पढ़ाई हुई .
इतने बड़े पदों पर जाने के बाद भी गिरीश शंकर अपने राज्य बिहार और बिहारी संस्कृति को नहीं भूले है। वे हर वर्ष चाहे जहां भी रहे, आस्था के महापर्व छठ में शामिल होने को छुट्टी लेकर बिहार जरुर आते हैं ।

पिछले 10 सालों में बिहार ने देश को दिया 125 IAS और कई इंजिनियर…

“चाहे लोग जो कहे हमारे बिहार के बारे में लेकिन पूरी दुनिया जानती है बिहार के बारे में, की बिहार का देश के प्रति क्या योगदान रही है चाहे वर्तमान हो या इतिहास”

बेहतर हो रही बिहार की स्थिति
पिछले 20 साल का रिकॉर्ड देखें तो बिहार से आईएएस अधिकारियों की संख्या में इजाफा हुआ है। 1997 से 2006 के बीच 10 सालों में देश भर से चुने गए 1588 आईएएस अधिकारियों में से बिहार से 108(6.80 प्रतिशत)शामिल रहे। यह आंकड़ा अगले 10 सालों में बढ़ा। वर्ष 2007 से 2016 के बीच देशभर से चुने गए कुल 1664 आईएएस अधिकारियों में से बिहार से 125(7.51 प्रतिशत)शामिल हुए। हालांकि यह बढ़ोतरी अभी बिहार से कुल आईएएस अधिकारियों की संख्या में कम है।

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1987 से 1996 के बीच सबसे बढ़िया रहा रिजल्ट 
बिहार से आईएएस अधिकारी बनने के मामले में सबसे सुनहरा वक्त 1987 से 1996 के बीच रहा था। इस दौरान यूपीएससी के जरिए कुल 982 आईएएस अधिकारियों का चयन हुआ,जिसमें अकेले बिहार से 159 अधिकारी शामिल थे। यानि तब बिहार से आईएएस बनने की दर 16.19 फीसदी रही।

देश में 9.38 प्रतिशत टॉप ब्यूरोक्रेट्स के साथ बिहार दूसरे नंबर पर 
देश की सबसे कठिनतम परीक्षा है संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली सिविल सर्विस परीक्षा। इसमें टॉप रैंकर्स बनते हैं आईएएस। ये टॉप रैंकर्स कैसे बनते हैं,इसका फिक्स फार्मूला तो अब तक किसी को नहीं मिला लेकिन टॉपर्स में बिहार आज भी दूसरे नंबर पर है। देश भर के कुल 4925 आईएएस अधिकारियों में 462 अकेले बिहार से हैं। यानी 9.38 प्रतिशत टॉप ब्यूरोक्रेट्स बिहारी हैं। इस मामले में बिहार से आगे सिर्फ उत्तरप्रदेश है जहां के 731(14.84 प्रतिशत)आईएएस अधिकारी हैं।
सिविल सर्विस में भी बेहतर प्रदर्शन 
सिविल सर्विस की परीक्षाओं में कभी बिहार के विद्यार्थियों की संख्या अधिक थी लेकिन 1990 के बाद इसमें गिरावट आई। अब एक बार फिर बिहार के विद्यार्थी इसमें अच्छा कर रहे हैं। एक्सपर्ट डॉ.एम.रहमान बताते हैं कि 2011 में सीसैट पैटर्न लागू हुआ। सीसैट में अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता ने बिहारी अभ्यर्थियों के लिए मुश्किलें बढ़ाई हैं। हालांकि अभी सीसैट को क्वालिफाइंग कर दिया गया है,जिसका परिणाम आने वाले सालों में देखने का मिलेगा।

20 साल में बढ़ गई है बिहार से IAS बनने की रफ्तार, देश के इतने प्रतिशत ब्यूरोक्रेट्स बिहारी है

संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा परिक्षा को देश का सबसे कठिन परिक्षा माना जाता है मगर यहां भी बिहारी प्रतिभा की झलक साफ दिखती है।

सर्विस परीक्षा में टॉप रैंकर्स बनते ही आईएएस बनते हैं ।इसका फिक्स फार्मूला तो अबतक किसी को नहीं मिला लेकिन बिहार की धरती इन टॉपर्स को पैदा करने में आज भी देश में दूसरे नंबर पर है।

अभी देशभर के कुल 4925 आईएएस अधिकारियों में से 462 बिहार से हैं। यानि 9.38 प्रतिशत ब्यूरोक्रेट्स बिहार के हैं। इस मामले में बिहार से आगे सिर्फ उत्तरप्रदेश है जहां के 731 (14.84 प्रतिशत) आईएएस अधिकारी हैं।

 

बेहतर हो रही बिहार की स्थिति

पिछले 20 वर्षों का रिकॉर्ड देखें तो बिहार से आईएएस अधिकारियों की संख्या में इजाफा हुआ है। वर्ष 1997 से 2006 के बीच 10 वर्षों में देशभर से चुने गए 1588 आईएएस अधिकारियों में से बिहार से 108 (6.80 प्रतिशत) रहे। यह आंकड़ा अगले 10 वर्षों में बढ़ा। वर्ष 2007 से 2016 के बीच देशभर से चुने गए कुल 1664 आईएएस अधिकारियों में से बिहार से 125 (7.51 प्रतिशत) रहे। हालांकि यह बढ़ोतरी अभी बिहार के कुल आईएएस अधिकारियों की संख्या से कम है।

सिविल सर्विस की परीक्षाओं में कभी बिहार के विद्यार्थियों की संख्या अधिक थी लेकिन 1990 के बाद इसमें गिरावट आई। अब एक बार फिर बिहार के विद्यार्थी इसमें अच्छा कर रहे हैं। सिविल सर्विस के एक्सपर्ट डॉ. एम. रहमान बताते हैं कि 2011 में यूपीएससी में सिविल सर्विस एप्टीट्यूड टेस्ट (सी-सैट) पैटर्न लागू हुआ। सी-सैट में अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता ने बिहारी अभ्यर्थियों के लिए मुश्किलें बढ़ाई हैं।

 

1987 से 1996 के बीच सबसे बढ़िया रिजल्ट  

बिहार से आईएएस अधिकारी बनने के मामले में सबसे सुनहरा वक्त 1987 से 1996 के बीच रहा था। इस दौरान यूपीएससी के जरिए कुल 982 आईएएस अधिकारियों का चयन हुआ, जिसमें बिहार से 159 अधिकारी थे। यानी तब बिहार से आईएएस बनने की दर 16.19 फीसदी रही।