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खुशखबरी: जुलाई में अपनी नयी बिल्डिंग में शिफ्ट हो जायेगा नालंदा विश्वविद्यालय

गुरुवार को नई दिल्ली में नालंदा विश्वविद्यालय के गवर्निंग बोर्ड का 17वीं बैठक चांसलर डा. विजय भटकर की अध्यक्षता में हुई। बैठक में कई अहम फैसले लिए गायें| बैठक में इस शैक्षणिक सत्र (2019-20)में नालंदा विश्वविद्यालय में पी.एच.डी और पोस्ट डोक्टोरल प्रोग्राम्स शरू करने का निर्णय लिया गया है| इसके साथ ही पेशेवर लोगों के लिए पार्ट टाइम पी.एच.डी. कोर्स भी शुरू किया जायेगा|

इसके साथ ही तीन नये स्कूल खोले जाएंगे। स्कूल ऑफ सस्टेनेबल डेवलपमेंट में एमबीए की पढ़ाई होगी। वहीं स्कूल ऑफ बे ऑफ बंगाल स्टडीज और स्कूल ऑफ इंडिया-एशियन नेटवर्क ऑफ यूनिवर्सिटीज शुरू किये जाएंगे। सभी विषयों में पीएचडी, पोस्ट डॉक्टरल और शोघ के पाठ्यक्रम शुरू किये जाएंगे।

अभी यहां 4 स्कूल संचालित किये जा रहे हैं। स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज, स्कूल ऑफ इकोलॉजी एण्ड इनवॉयरमेंट स्टडीज, स्कूल ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज फिलॉसफी एंड कम्प्रेटिव रिलिजिएस और स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज एंड लिटरेचर की पढ़ाई हो रही है। इसमें भारत के विभिन्न राज्यों समेत 11 अन्य देशों के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

17 पूर्व एशियाई देशों की भागीदारी वाले अंतरराष्ट्रीय इस संस्था में, BIMSTC (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) के तहत आगामी शैक्षणिक सत्र से सेंटर ऑफ बंगाल स्टडीज की शुरुआत होगी। इसके साथ ही गवर्निंग बोर्ड ने विश्वविद्यालयों के आसियान-भारत नेटवर्क के लिए NU को नोडल संस्थान बनाने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी।

नया बिल्डिंग में शिफ्ट होगा कैंपस

जुलाई से विश्वविद्यालय अपनी नयी बिल्डिंग में शिफ्ट हो जायेगा। पांच भवन बनकर तैयार हैं। उद्घाटन के लिए प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री से आग्रह किया जाएगा। नया परिसर पटना से लगभग 110 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में, राजगीर के पास 455 एकड़ के विशाल क्षेत्र में विकसित किया जा रहा है, जिसमें 2,727.1 करोड़ रुपये की धनराशि का उपयोग होगा। नए परिसर में गैर-आवासीय भवनों में दो स्कूल, प्रशासनिक ब्लॉक, संचार केंद्र, अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, एम्फीथिएटर, आर्केड, डाइनिंग हॉल, फैकल्टी क्लब, स्कूल, चिकित्सा केंद्र, खेल केंद्र, वाणिज्यिक बाजार, पोस्ट ऑफिस और बैंक जैसी परिसर सुविधाएं शामिल हैं।

बिहार का प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय ने जापान से इस बात के लिए किया समझौता

कभी अपने शिक्षा, शिक्षक और भव्यता के लिए विश्वभर में ख्याति प्राप्त बिहार का नालंदा विश्विद्यालय एक बार फिर अपने खोये गौरवशाली पहचान को पाने की राह पर चल चुका है। हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ नालंदा ने अकादमिक सहयोग के लिए जापान के कानाजावा विश्वविद्यालय के साथ एक समझौता ज्ञापन कर हस्ताक्षर किया। समझौता ज्ञापन के अनुसार दोनों विश्वविद्यालय एक दूसरे के विकास में सहयोग करेंगे।

 

यूनिवर्सिटी की कम्यूनिकेशन डायरेक्टर स्मिता पोलाइट ने बताया कि जापान के कानाजावा विश्वविद्यालय के भारतीय बौद्ध कला तथा तुलनात्मक संस्कृति के प्रमुख प्रोफेसर मोरी मासाहिदे ने नालंदा विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति प्रोफेसर पंकज मोहन के साथ गुरुवार को हस्ताक्षर-युक्त समझौता किया। उन्होंने बताया कि दोनों विश्वविद्यालय संकाय सदस्यों और अनुसंधान के सदस्यों का आदान-प्रदान करेंगे। छात्रों का आदान-प्रदान करेंगे। शैक्षणिक सामग्रियों, प्रकाशनों और सूचनाओं का आदान-प्रदान भी करेंगे। इसके अलावा संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं और संगोष्ठी के संगठन का आयोजन के साथ दो संस्थाओं के बीच अकादमिक और शैक्षणिक आदान-प्रदान के विकास में योगदान करने वाली अन्य गतिविधियां भी की जायेगी। इससे दोनों को विकास में सहयोग मिलेगा।

 

इस मौके पर जापान के कानाजावा विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल एक्सचेंज एडवाइजर और होकूरिक जापान-इंडिया क्लब की प्रमुख मकसूदा शिओतानि, कार्यकारी रजिस्ट्रार के चन्द्रमूर्ति, स्मिता पोलाइट सहित अन्य मौजूद थे।

कानाजावा विश्वविद्यालय को जापानी शिक्षा मंत्रालय द्वारा सुपर ग्लोबल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया है।

वहीं जापान के कानाजावा विश्वविद्यालय से आये प्रोफेसर मोरी मासाहिदे ने कहा कि कानाजावा विश्वविद्यालय को जापानी शिक्षा मंत्रालय द्वारा सुपर ग्लोबल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया है। नालंदा विश्वविद्यालय इस दृष्टि और लक्ष्य को साझा करता है। यह समझौता ज्ञापन के तहत दोनों संस्थानों के साथ एक स्थायी भागीदारी के लिए रास्ता खुलेगा। इससे और भी तेजी से विकास होगा। उन्होंने बताया कि कानाजावा विश्वविद्यालय इशिकावा प्रीफेक्चर की राजधानी में स्थित है। इसके दो मुख्य परिसर हैं जिनमें काकुमा और टैकरामाची शामिल हैं। यह विवि स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रदान करता है। इसके तहत तीन कॉलेज और 16 स्कूल शामिल हैं। इस विश्वविद्यालय में 11 हजार छात्र हैं जिनमें 350 दूसरे देश के छात्र भी शामिल हैं।

अपनी खोयी अस्मिता को पुनः प्राप्त करेगा नालंदा विश्वविद्यालय,दुनिया को देगा नया विजन

​नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति डॉ विजय पांडुरंग भटकर ने इस विश्वविद्यालय को लेकर अपनी सोच का जिक्र करते हुए कहा कि हम इसे एक ऐसी संस्था बनाना चाहते हैं जो छात्रों को केवल विश्वविद्यालय की डिग्री पाने में नहीं बल्कि समाज और समुदाय की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रेरित करे। उन्होंने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया को नया विजन देगा और नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय फिर से विज्ञान और अध्यात्म का अनूठा संगम कहलायेगा।

नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर में गैर आवासीय भवनों का शिलान्यास करते हुए भटकर ने कहा, हम इसे एक ऐसी संस्था बनाना चाहते हैं जो छात्रों को केवल विश्वविद्यालय की डिग्री पाने में नहीं बल्कि अपने समाज और समुदाय की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रेरित करे।
भारत के सूपरकम्प्युटर का जनक माने जाने वाले तकनीकी विशेषग्य भटकर को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गत 25 जनवरी को नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया था।
इस अवसर पर नालंदा के जिलाधिकारी डॉ. त्यागराजन, पुलिस अधीक्षक कुमार आशीष सहित विश्वविद्यालय के कई शिक्षाविद और कर्मचारी मौजूद थे।
विश्वविद्यालय के गैर आवासीय भवनों में एकेडमिक ब्लॉक, पुस्तकालय, प्रशासन ब्लॉक, व्याख्यान कक्ष और सभागार शामिल हैं जिसे एक वर्ष के भीतर पूरा किया जाना है।
आवासीय भवनों में पुरुषों और महिलाओं के लिए छात्रावास, शिक्षकों के आवास के साथ डाईनिंग हॉल आदि भी शामिल हैं। सभी इमारतें पूरे परिसर में फैले पानी के नेटवर्क के साथ जुड़ी होंगी। परिसर के बीच एक तालाब होगा जिसको कमल सागर के नाम से जाना जायेगा।
यह परिसर नेट शून्य होगा अर्थात परिसर उर्जा पानी और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के लिए आत्मनिर्भर होगा।

वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय एक सपना साकार होने जैसा है : राष्ट्रपति

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आज बिहार के लिए बहुत एतिहासिक दिन था।  800 वर्षों बाद फिर बिहार ने इतिहास को दोहराया है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अंतरराष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह में शामिल हुए और विश्वविद्यालय के पहले सत्र के कुल बारह छात्रों को सम्मानित किया । इसमें दो छात्र, शशि अहलावत और साना सालाह को गोल्ड मेडल से नवाजा। इसके साथ ही 10 अन्य को सर्टिफिकेट दिए गए।

इस एतिहासिक मौके पर राष्ट्रपति ने कहा कि पुराने नालंदा विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक महत्व रहा है। बिहार में नालंदा और विक्रमशिला जैसे ऐतिहासिक महत्व के विश्वविद्यालय रहे हैं। वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय एक सपना साकार होने जैसा है।

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साथ ही राष्ट्रपति ने पर्यावरण असंतुलन पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “धरती हमारे लिए बहुत कुछ करती है और आज हम धरती के लिए क्या कर रहे हैं, यह सभी को सोचना चाहिए।” उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय की योजना खुद बिजली पैदा करने की है, यह प्रणाली अन्य शिक्षण संस्थानों को भी लागू करनी चाहिए।

 

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने शुक्रवार को कहा कि विश्वविद्यालयों को अभिव्यक्ति की आजादी का केन्द्र होना चाहिए तथा इनमें असहिष्णुता, पूर्वाग्रह और नफरत के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
मुखर्जी ने इस विशेष मौके पर कहा कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय उच्च स्तरीय वाद-विवाद और चर्चाओं के लिए विख्यात रहा है। यह महज एक भौगोलिक संरचना नहीं था बल्कि विचारों एवं संस्कृति को प्रतिङ्क्षबबित करता है। नालंदा मित्रता, सहयोग, वाद-विवाद, चर्चा और बहस का संदेश देता है। वाद-विवाद एवं चर्चा हमारे व्यवहार और जीवन का हिस्सा है।

विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा संस्थान वाद-विवाद, चर्चा और विचारों के आदान-प्रदान के सर्वश्रेष्ठ मंच हैं। उन्होंने कहा बदलावों को आत्मसात करने के लिए हमें अपनी खिड़कियां खुली रखनी चाहिए लेकिन हवा के साथ बहना भी नहीं चाहिए। हमें पूरी दुनिया से हवाओं को अपनी ओर आने देना चाहिए और उनसे समृद्धि हासिल करनी चाहिए।

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राष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारत विश्व को ज्ञान की रोशनी देता आ रहा है। यहां तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और कई अन्य विश्वविद्यालय थे जहां उच्च शिक्षा के लिए देश-विदेश से लोग आते थे। उन्होंने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय से कई विद्वान और बौद्ध भिक्षु चीन गये थें लेकिन यह सिर्फ एकतरफा नहीं था । चीन से भी कई विद्वान यहां आयें।

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इस मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि 2006 में इस विश्वविद्यालय की शुरूआत हुई। नालंदा विश्वविद्यालय को बिहार सरकार पूरी मदद दे रही है। इसके लिए 70 एकड़ जमीन इनडाउनमेन्ट के लिए उपलब्ध कराई गई है ताकि विश्वविद्यालय राज्य और केंद्र सरकार पर आश्रित ना होकर आत्मनिर्भर हो जाए। मैं चाहता तो यह जल्द से जल्द इसे अपनी बिल्डिंग में शिफ्ट हो जाता। मुख्यमंत्री ने कहा कि नालंदा को विश्व धरोहर में शामिल किया जाना गौरव की बात है। अब तेल्हाड़ा और विक्रमशिला को भी विकसित करना है।

 

इस मौके पर नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन, डॉ़ मेघनाथ देसाई, राज्यपाल रामनाथ कोविंद, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित राज्य के कई मंत्री और गणमान्य लोग उपस्थित थे। नालंदा विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह में आठ देशों के प्रतिनिधिमंडल और राजदूत भी शामिल हुए।

बिहार सहित संपूर्ण देश के लिए गौरवपूर्ण क्षण : 800 वर्ष बाद आज आयोजित हुआ नालंदा विश्विद्यालय का पहला दीक्षांत समारोह

बिहार सहित पुरे भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण है। आज 800 साल बाद नालंदा विश्वविद्यालय में प्रथम दीक्षांत समारोह हुआ। जिसमें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने विश्वविद्यालय के पहले सत्र के कुल बारह छात्रों को सम्मानित किया जिनमें से दो छात्रों, शशि अहलावत और साना सालाह को राष्ट्रपति ने गोल्ड मेडल से नवाजा, साथ ही अन्य दस छात्रों को सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति के साथ ही राज्यपाल रामनाथ कोविंद, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित राज्य के कई मंत्री और गणमान्य लोगों ने भी कार्यक्रम में भाग लिया। दीक्षांत समारोह में खादी को प्रोमोट करने के लिए सभी सम्मानित होने वाले छात्रों ने खादी का गाउन पहना। वही राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने नालंदा विवि के नये भवन का शिलान्यास किया।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज नालंदा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शिरकत की. मौके पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने नालंदा विश्वविद्यालय के पहले बैच के विद्यार्थियों का हार्दिक अभिनंदन किया. उन्होंने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक महत्व रखा है. उन्होंने कहा कि बिहार में नालंदा और विक्रमशिला जैसे ऐतिहासिक महत्व के विश्वविद्यालय रहे हैं जो हमारे लिए गर्व की बात है. उन्होंने विश्वविद्यालय के नये भवन का भी उद्घाटन किया.
इस अवसर पर बोलते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नालंदा विश्वविद्यालय को वर्ल्ड हैरिटेज साइट घोषित करने पर प्रशंसा व्यक्त की.
उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए गौरव की बात है कि जिस विश्वविद्यालय का इतना गौरवशाली इतिहास रहा है उसे इस योग्य माना गया. साथ ही उन्होंने विक्रमशिला यूनिर्वसिटी के पुनरुद्धार करने की मांग की.

राष्ट्रपति यहां लगभग डेढ़ घंटे तक रहें. यह नालंदा विश्वविद्याल का पहला दीक्षांत समारोह है. प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कार्यक्रम में मौजूद थे. दीक्षांत समारोह में कई देशों के राजदूत भी शिरकत किए.
राष्ट्रपति के कार्यक्रम के मद्देनजर तैयारियों का रिहर्सल शुक्रवार को किया गया. कुल डेढ़ घंटे के कार्यक्रम के दौरान वहां क्या-क्या और कैसे होना है. इन सभी का रिहर्सल कार्यक्रम से एक दिन पूर्व शुक्रवार को किया गया.

कलाम का सपना हुआ पूरा, करीब 833 वर्ष बाद फिर इतिहास दोहरा रहा है नालंदा विश्विद्यालय

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करीब 833 साल बाद फिर बिहार का नालंदा इतिहास दोहरा रहा है।  पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम अगर आज जीवित होते तो शायद अंतर्राष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल भी होते और सबसे ज्यादा खुश होते।

करीब 833 वर्ष पूर्व आक्रमणकारियों के हाथों तबाह हुए विश्वविद्यालय का नया स्वरूप अंतर्राष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय के पहले बैच के देशी विदेशी छात्र यहां से डिग्री लेकर जा रहे हैं।पहले सत्र में 13 छात्रों का एडमिशन हुआ था, इसमें एक जापान और एक भूटान का छात्र भी शामिल थे। पहले सत्र में स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज और स्कूल ऑफ इकोलॉजी एण्ड एनवायरमेंट की पढ़ाई शुरू हुई। अगले सत्र से बुद्धिस्ट स्टडीज कम्प्रेटिव रिलिजन एंड फिलॉसफी के अलावा लिंग्विस्टिक्स एंड लिटरेचर की पढ़ाई शुरू होने वाली है।

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विश्वविद्यालय की परिकल्पना का श्रेय डॉ. कलाम को जाता है।2006 में बिहार दौरे के क्रम में उन्होंने बिहार विधान मंडल के संयुक्त अधिवेशन में उन्होंने अपनी इस परिकल्पना को रखा था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी यह परिकल्पना खूब भाई और उन्होंने इसे सच करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। केन्द्र का भी काफी सहयोग मिला और परिणाम आज सबके सामने है।

नालंदा विश्वविद्यालय का सफरनामा

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2007 में केन्द्र सरकार ने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन की उपस्थिति में मेंटर ग्रुप का गठन किया था, जिसमें चीन, सिंगापुर, जापान और थाईलैंड के प्रतिनिधि शामिल थे। अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी से विश्वविद्यालय को विकसित किया जाना तय किया गया था। बाद में मेंटर ग्रुप ही विश्वविद्यालय का गवर्निंग बॉडी बन गया।

इसी क्रम में जापान, सिंगापुर ने अपनी ओर से मदद दी। इसकी स्थापना पर 16 देशों की सहमति बनी। 2007 में फिलिपींस में इस्ट एशिया समिट में डॉ. कलाम की सोच 16 देशों के बीच सार्वजनिक हुए थे। इसमें रिवाइवल ऑफ नालंदा पर बहस हुई थी। 2010 को संसद में ऐक्ट पास हुआ। राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था। 21 सितम्बर 2010 को राष्ट्रपति ने इस पर अपनी सहमति दे दी और 25 नवम्बर को यह विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ गया।

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फरवरी 2011 में डॉ. गोपा सभरवाल कुलपति नियुक्त की गई। इसके लिए राजगीर के पिलकी मौजा में 442 एकड़ जमीन अधिग्रहण किया गया। अगस्त 2008 में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम इस साइट को देखने आए। सितम्बर 2014 को विश्वविद्यालय में पढ़ाई शुरू हुई। 19 सितम्बर को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शैक्षणिक सत्र की विधिवत शुरुआत की थी। पहले सत्र में 13 छात्रों का एडमिशन हुआ था, इसमें एक जापान और एक भूटान का छात्र भी शामिल थे। पहले सत्र में स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज और स्कूल ऑफ इकोलॉजी एण्ड एनवायरमेंट की पढ़ाई शुरू हुई। अगले सत्र से बुद्धिस्ट स्टडीज कम्प्रेटिव रिलिजन एंड फिलॉसफी के अलावा लिंग्विस्टिक्स एंड लिटरेचर की पढ़ाई शुरू होने वाली है।

एकेडमिक नहीं शोध केन्द्र के रूप में हो रहा विकास
इस यूनिवर्सिटी का इस तरह विकास किया जा रहा है कि यहां से एकेडमिक पढ़ाई हो, बल्कि शोध केन्द्र के रूप में विकसित हो। इसे विश्व का सबसे यूनिक शोध केन्द्र बनाए जाने की योजना पर काम चल रहा है।

कुलपति डॉ. गोपा सभरवाल ने बताया कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को केन्द्र में रखकर इस नये विश्वविद्यालय का विकास किया जा रहा है। यहां की सारी व्यवस्था अपने आप में पूरी दुनिया के लिए यूनिक होगी।

Source: Dainik Bhaskar

नालंदा विश्विद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाग लेने 26 को बिहार आयेंगे राष्ट्रपति

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आगामी 26 अगस्त को नालंदा विश्विद्यालय का दीक्षांत समारोह के लिए तैयारी पुरे जोर-शोर से चल रही है. कार्यक्रम में भाग लेने के लिए देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी बिहार आ रहे हैं।
राज्य के आलाधिकारी सुरक्षा की तैयारी में पुरे तरह से जुट गए हैं।

26 अगस्त को होने वाले दीक्षांत समारोह को लेकर राजगीर में सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किये जा रहे हैं। जिले के डीएम ने राजगीर के दुकानदारों और आम लोगों से अपील की है कि राष्ट्रपति के स्वागत में अपने-अपने घरों का रंग रोगन करवा लें, ताकि देश-विदेश से आने वाले लोगों के मन में राजगीर की छवि और भी बेहतर बन कर उभरे।

कार्यक्रम में राष्ट्रपति समेत अन्य देशों के भी प्रतिनिधि आयेंगे। शहर की सड़कों पर सफेद लाइनिंग कराने का काम भी शुरू कर दिया गया है. सुरक्षा के मद्देनजर कार्यक्रम स्थल पर काफी संख्या में सीसीटीवी लगाए जा रहे हैं।

शहर की बिजली व्यवस्था को सुधारने के साथ-साथ ही विभाग को लूज तारों को बदलने को कहा गया है।कार्यक्रम के लिए खास तौर पर पटना से बीएमपी 1 और बीएमपी 5 की बैंड पार्टी को बुलाया जाएगा। राष्ट्रपति की यात्रा को लेकर पटना में भी राज्य के आलाधिकारी लगातार नजर बनाये हुए हैं।

अपने बिहार की शान नालंदा बना विश्व धरोहर

 विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के बारे तो आपने सुना ही होगा। आज से लगभग पंद्रह सौ साल पहले यह पूरी दुनिया के लिए उच्च शिक्षा का सिरमौर था, जहाँ सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि चीन, जापान, बर्मा, कोरिया, तिब्बत, फ़्रांस आदि देशों से भी विद्यार्थी पढने के लिए आते थे। इस विश्व-विख्यात विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके वैभव का अहसास करा देते हैं। उसी भग्नावशेष को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित कर दिया है जो कि हर बिहारी ही नही भारतीय के लिए भी गर्व की बात है. 

 

शुक्रवार को करीब दो बजे यूनेस्को ने अपनी वेबसाइट पर जब इसे शामिल किया तो विश्व के प्रथम विश्वविद्यालय नालंदा की खोई प्रतिष्ठा को नई ऊंचाई मिली। यूनेस्को नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन (यूनेस्को) ने महाबोधि मंदिर के बाद बिहार के दूसरे स्थल नालंदा के खंडहर को विश्व धरोहर में शामिल किया है। विश्व धरोहर में शामिल होने वाला यह भारत का 33 वां धरोहर है।

 

इस पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि सभी की भागीदारी से यह उपलब्धि मिली है और इसके लिए सबको धन्यवाद भी दिया. उन्होंने ट्वीटर पर बधाई देते हुए कहा कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार के संयुक्त पहल के फलस्वरूप नालंदा महाविहार के भग्नावशेष को विश्व धरोहर घोषित किया गया है.

 

इससे क्या फायदे होंगे? 

बढ़ेंगे सैलानी
वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल होने से यहां आने वाले सैलानियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होगी। सैलानियों को मिलने वाली सुविधाओं में बढ़ोतरी के साथ ही सुरक्षा व्यवस्था पहले की अपेक्षा अधिक चुस्त होगी। धरोहर के संरक्षण पर पहले से अधिक खर्च किये जाएंगे। कर्मियों की संख्या बढ़ेगी। साइट के कम से कम दो किलोमीटर दूरी को बफर जोन घोषित किया गया है। इसके विकास, सुरक्षा व संरक्षण की जिम्मेवारी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और बिहार सरकार की होगी।
कनिंघम ने की थी खोज
नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई के आसपास हुई थी। गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त ने इसकी स्थापना की थी। हर्षवर्द्धन ने भी इसको दान दिया था। हर्षवर्द्धन के बाद पाल शासकों ने भी इसे संरक्षण दिया। न केवल स्थानीय शासक वंशों, बल्कि विदेशी शासकों ने भी इसे दान दिया था।
बख्तियार खिलजी ने जला दिया था विश्वविद्यालय
विश्वविद्यालय का अस्तित्व 12वीं शताब्दी तक बना रहा। लेकिन तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला डाला ,

साथ ही उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। उसने इस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में आग लगा दिया, जिससे किताबें छः महीने तक धू-धू कर जलती रहीं।