19 साल बाद राखी आ स्वतंत्रता दिवस एक्के दिन पड़ा है

19 साल बाद राखी आ स्वतंत्रता दिवस एक्के दिन पड़ा है. ई से पहिले 2000 ईसवी में इस्कूल में झंडा फहराकर राखी बन्हवाने के लिए जल्दी घरे भागे थे. पहला-दूसरा में रहे होंगे. ऊ जमाना जिओ आ नेटफ्लिक्स का नहीं था. ना फेसबुक पर कौनो सेल्फी विद राखी चेपे का झंझट था आ ना कौनो सेक्रेड गेम्स पार्ट 2 का इंतज़ार. दू ठो बतासा में खुश हो जाते थे ता एक मुट्ठी बुनिया में बहुत जादा खुश..🥨🍨

2000 ईसवी वाला 15 अगस्त हमरा लिए खुशी आ मौज मस्ती का कॉम्बो पैक था. एक तो इस्कूल में छुट्टी, चारों बगल से जिलेबी आ बुनिया का बरसात आ आज इस्कूल में फिलिमो चलेगा. जल्दी से राखी बन्हवाकर फिर से इस्कूल भागना है. आगे जगह लेना है एक्कदम. पीछे से कुछो बुझैबे नै करता है..📺🎞

पूरा इंतज़ाम हो गया है. बड़का बैटरा आया है मतलब चार ठो फिलिम ता खींचिए देगा. फिलिम चलाबे का डिपार्टमेंट मनोज सरजी के हाथ में था. “तिरंगा” आ “क्रांति” सरजी का दू ठो फेवरेट था. पहिले तिरंगा चला. नाना पाटकर आ राजकुमार हीरो वाला. एक से एक डायलाग आ एक से एक फाइट सीन.लीजिए दूठो डायलाग आपहूँ सुन लीजिए..🤩

– ना तलवार की धार से, ना गोलियों की बौछार से. बन्दा डरता है तो सिर्फ परवरदिगार से..🙏🏻

– अपना तो उसूल है पहले मुलाक़ात, फिर बात और फिर ज़रूरत पड़े तो लात..👊🏻

इंस्पेक्टर वागले आ ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह का जोड़ी कमाल कर दिया. मतलब एक्कदम भौकाल. डायलागबाजी के दुन्नू बेताज़ बादशाह. आवाज़ अईसा दमदार कि सामने वाला का होश उड़ा दे. गाना “आन तिरंगा है, मेरी जान तिरंगा है” जब बजता ता रोआं खड़ा कर देता. फिलिम के अंतिम सीन में प्रलयनाथ गैंडास्वामी भारत को तबाह करने के लिए तीन ठो मिसाइल खड़ा किया. एक बार को इंस्पेक्टर वागले को कुच्छो समझ नहीं आया कि अब का करें! पर ब्रिगेडियर अभियो मुस्कुरा के पाइप पी रहे थे. प्रलयनाथ ने पाइप मुंह से फेंका आ एक धमाके के साथ ब्रिगेडियर तीनों मिसाइल का “फ्यूज कंडक्टर” निकाल दिए. हमलोग खुशी से उछल गए. मनोज सर कुर्सी पर जोर से हाथ मारकर बोले जियो बेट्टा राजकुमार.🚀📟🕹

ई घटना को बीते उन्नीस साल हो गया. ई बार भी राखी आ स्वतंत्रता दिवस एक्के दिन पड़ा है. हमारे गृह मंत्री महोदय देशद्रोही, अलगाववाद आ पत्थरबाजी जइसे तीन ठो मिसाइल का “फ़्यूजे कंडक्टर” निकाल लिए हैं. एक बार फिर पूरा देश गा रहा है “आन तिरंगा है, मेरी जान तिरंगा है..”🇮🇳💐

– Aman Aakash…✍🏻©

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भारत के स्वतंत्रता दिवस पर ब्रिटेन ने लौटाई बिहार से चोरी की गयी बुद्ध की एतिहासिक मूर्ति

देश का स्वतंत्रता दिवस दिवस वैसे तो पुरे देश के लिए खास होता है| मगर इसबार का स्वतंत्रता दिवस खासकर बिहार के लिए एक बहुत बड़ा सौगात लेकर आया है| भारत के 72वें स्वतंत्रता दिवस पर ब्रिटेन ने भारत को एक अहम गिफ्ट दिया है|

ब्रिटिश पुलिस ने भारत को 57 साल पहले बिहार के नालंदा म्यूजियम से चोरी हुई 12वीं शताब्दी की एक बुद्ध प्रतिमा सम्मान सहित लौटाई है। दरअसल, यह कांसे से बनी मूर्ति भारत के नालंदा में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संग्रहालय से 1961 में चोरी की गई 14 मूर्तियों में से एक है।

लंदन में नीलामी के लिए के लिए सामने लाए जाने से पहले यह बरसों तक कई हाथों से गुजरी। मेट्रोपॉलिटन पुलिस के अनुसार डीलर और मालिक को इस मूर्ति के बारे में बताया गया कि यह वही मूर्ति है जो भारत से चुराई गई थी। तब उन्होंने पुलिस की कला एवं पुरावशेष इकाई के साथ सहयोग किया तथा वे इसे भारत को लौटाए जाने पर राजी हो गए।

 

 

लंदन के मेट्रोपॉलिटन पुलिस आर्ट एंड एंटीक्स यूनिट के डिटेक्टीव कॉन्स्टेबल सोफी हेस ने कहा, “यह मामला कानून, व्यापार और स्कॉलर्स के बीच सहयोग का एक वास्तविक उदाहरण रहा है।”

लंदन के इंडिया हाउस में स्वतंत्रता दिवस के लिए एक समारोह में स्कॉटलैंड यार्ड ने ब्रिटेन के भारतीय उच्चायुक्त वाई. के सिन्हा को यह मूर्ति वापस कर दी।

सिन्हा ने भी ब्रिटिश पुलिस के इस व्यवहार और फैसले की सराहना की। उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद है अब यह मूर्ति वहीं जाएगी जहां से यह है। हमारे स्वतंत्रता दिवस पर, यह वाकया (मूर्ति की वापसी) हमारे दोनों देशों के बीच बहुमुखी सहयोग का उदाहरण है।” इसके साथ ही हम उन लोगों की भी सराहना करते हैं जिन्होंने इतने साल बाद भी इस अनमोल मूर्ति की पहचान कर पुलिस को जानकारी दी।

लगभग 60 साल पहले बिहार के जिस धरती से भगवान बुद्ध की यह एतिहासिक मूर्ति चुराई गयी थी, उम्मीद है वह फिर से उसी स्थान पर वापस आयगी| बिहार की धरती और भगवान बुद्ध का रिश्ता अटूट है| भगवान बुद्ध बिहार का धरोहर है|

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स्वतंत्रता दिवस: मुख्यमंत्री ने फहराया तिरंगा, पढ़िए नीतीश के भाषण की 10 बड़ी बातें..

15 अगस्त पटना के गांधी मैदान में मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने झंडोत्तोलन किया। स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए गांधी मैदान की सुरक्षा सख्त रही। सुबह छह बजे से ही सभी गेटों पर दंडाधिकारी व पुलिस अधिकारी बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों के साथ तैनात रहे। समारोह के दौरान विभिन्‍न विभागों की रंगारंग झांकियां आकर्षण का केंद्र बनीं रहीं। मुख्यमंत्री ने गांधी मैदान में जवानों की परेड का निरीक्षण करने के बाद तिरंगा फहराया।

इस अवसर पर सीएम ने कहा कि न्याय के साथ विकास सरकार का संकल्प है। हम लगातार काम कर रहे हैं। नीतीश ने कहा कि कानून का राज हमारा पहला संकल्प है। हर हाल में कानून का राज कायम रहेगा। हमारी सरकार इसके लिए निरंतर काम कर रही है। पिछले कुछ दिनों में कई संवेदनशील मामले सामने आए हैं। ऐसे मामलों में त्वरित अनुसंधान और कार्रवाई की जा रही है। गिरफ्तारी हो रही है। मैं इस बात के लिए आप सब को आश्वस्त कर सकता हूं कि जो कोई भी दोषी होगा बख्शा नहीं जाएगा।

पढ़िए नीतीश के भाषण की 10 बड़ी बातें..

1. संविदा कर्मियों को मिलेगा सभी लाभ. सरकारी कर्मचारियों की तरह सभी लाभ मिलेगा. संविदा कर्मियों की सेवा शर्त अनुशंसा के अनुसार लागू होगी जिसमें छुट्टी, सेवा दिवस, नई वेकेंसी में मौका जैसी बातें शामिल है.

2. 1 सितंबर 2018 से ऑनलाइन दाखिल ख़ारिज शुरू. बिहार के सभी 534 प्रखंडों में दाखिल ख़ारिज होगा. 2 अक्टूबर 2018 से जमीन की ऑनलाइन रजिस्ट्री भी शुरू होगी.

3. भ्रष्टाचार से कोई समझौता नहीं होगा. जो भी शामिल होगा उस पर कड़ी कार्रवाई होगी. पदाधिकारी हो या कोई और सब पर कार्रवाई होगी

4. मुजफ्फरपुर मामले में पूरी पारदर्शिता बरती जा रही है. स्पीडी ट्रायल के जरिये इस मामले में होगा न्याय

5. बिहार में इस बार जरुरत से कम बारिश हुई है. विभाग के लोग निरंतन नजर अगर बारिश अच्छी नहीं होती है तो सभी किसानों को उचित मुआवजा दिया जायेगा

6. फोकनिया परीक्षा पास करने पर 10 हजार रूपए सहायता. मौलवी परीक्षा पास करने पर 15 हजार सहायता. प्रथम श्रेणी में पास करने पर मिलेगी ये सहायता.

7. शराबबंदी का बिहार में बड़ा असर हुआ है. शराबबन्दी के बाद की स्थिति के लिए सरकार सर्वे कर रही है. प्रभावित लोगों के लिए वैकल्पिक रोजगार की शुरुआत हुई है.

8. मद्य निषेध कानून लागू हुआ है और स्पष्ट है कि कोई भी दोषी कानून से नहीं बचेगा. शराबबन्दी के कामयाबी में सबका साथ चाहिए,

9. मैंने बिजली देने का वादा इसी गांधी मैदान से किया था. आज हमने अपना वादा पूरा किया और इस साल के अंत तक अभी टोलों तक पहुंच जायेगी बिजली

10. आज छात्रों को 4 लाख का ऋण दिया जा रहा है. जो ऋण नहीं चुका सकते उनका ऋण माफ होगा.

 

इतिहास अनेक तथ्यों और रहस्यों को अपने गर्भ में समेटे हुए है और विरासत हमें पुकार रही है

असंख्य प्रसिद्ध एवं उनसे भी अधिक कोटिसंख्यक और संभवतः विस्मृत अनेक राष्ट्रभक्त स्वतंत्रता सेनानीयों के दृढ निश्चय एवं सर्वस्व त्याग तथा समर्पण का जागृत प्रतीक रूप बना आज का दिन हर भारतीय के लिए अत्यंत गर्व एवं हर्ष का विषय है । सदियों के संघर्ष के प्रतिफल रूप में मिली स्वतंत्रता को स्मरण कराता यह दिवस अपने राष्ट्रीय पूर्वजों के कृत्यों के स्मरण तथा उनके जीवन दर्शन पर चिंतन का तो है ही परंतु उससे भी अधिक प्रासंगिक तब बनता है जब हम अपनी वर्तमान राष्ट्रीय स्थिति तथा नवगति का अवलोकन कर राष्ट्र के प्रति समर्पण तथा परस्पर सहयोग के निज संकल्प को और सुदृढ़ करें ।

आज के दिन हमें अपने राष्ट्रीय इतिहास पर गंभीर चिंतन करना चाहिए और विशेषकर उन कारणों एवं परिस्थितियों पर जिनके कारण कालांतर में परतंत्रता इस शक्तिशाली राष्ट्र को ग्रसित करने में सक्षम हो सकी ।

कहा जाता है कि जब कोई राष्ट्र अपने पूर्व इतिहास से नहीं सीखता तब ऐतिहासिक पुनरावृत्ति के लक्षण पुनः प्रबल होते दिखाई देते हैं ।

यदि हम भारत के इतिहास को देखते हैं तो अक्सर यह पाते हैं कि जब भी किसी बाह्यजनित चुनौति से इस राष्ट्र का सामना हुआ तब तत्कालीन राष्ट्राधिकारीयों ने एकत्रित होकर सामूहिक रूप से उसका प्रत्युत्तर नहीं दिया था । हर राजा अपने राजकीय सामर्थ्य के प्रति आश्वस्त तब तक बना रहता जब तक बाह्य आक्रान्ता सीमांत प्रदेशों का उद्भेदन कर संहार करता हुआ और अत्याधिक प्रबल बनता हुआ उसकी सीमाओं तक न पहुंच जाता । हर जनपद अपनी लड़ाई को भिन्न भिन्न लड़ता और पराजित होने पर अक्सर शत्रु से संधि कर जहाँ अपने अधिकारों की कुछ रक्षा करता वहीं अगले जनपद के विरुद्ध शत्रु के युद्ध में तत्स्थ न बन सहभागीता के लिए बाध्य बनता जिससे पराधीनता के संचार की गति बढती जाती और अपने ही बांधवों से पदाक्रान्त होकर मातृभूमि शत्रु के शौर्य के अधीन हो जाती ।

राजाओं और जनपदों के तुच्छ राजनीति में उलझे रहने के कारण राष्ट्र को बाह्य सम्राटों के अधीन होते इतिहास ने देखा है । निज तुच्छ स्वार्थों के कारण सांस्कृतिक पराभव की वृत्तियों का भी अनेक क्षेत्रों में बीजारोपण हुआ जिससे राष्ट्र आज भी जूझ रहा है । आचार्य चाणक्य ने आज से लगभग 2300 वर्ष पूर्व ही इन स्वार्थजनित कूवृत्तियों का अध्ययन कर जब यवनों के विरुद्ध राष्ट्रीय हितों के एकीकरण का प्रयास किया तब शिक्षकों और छात्रों को भी सत्ताओं से बृहत् संघर्ष करना पड़ा था परंतु परिणाम राष्ट्रहित में उत्तम रहे थे ।

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आवश्यकता है राष्ट्र विरोधी शक्तियों एवं वृत्तियों को समझने का तथा उज्जवल भविष्य के लिए नीति निर्धारण का चूंकि भारत का स्वतंत्र और सशक्त होना मानव हित के लिए अपरिहार्य है । एक तरफ जहाँ विश्व के अनेक राष्ट्र आज भी धर्म एवं संप्रदाय के नाम बंटकर विध्वंसक युद्धों का सूत्रपात कर रहे हैं वहां प्राचीन काल से ही भारत अपने “वसुधैव कुटुंबकम्” और “एकं सत्यं विप्रा बहुधा वदन्ति” के दर्शन के साथ सुदीर्घ विश्व का दिशाबोधक बना हुआ है ।

राष्ट्रकवि दिनकर ने अपनी पंक्तियों में राष्ट्रभाव को व्यक्त कर कहा था

“सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है, बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है” ।

स्वतंत्रता दिवस अवसर है अपने राष्ट्रीय सामर्थ्यों पर विचारण का और सशक्तिकरण का चूंकि भविष्य में हमारा सार्थक योगदान तभी होगा जब हम सुदृढ़ होंगे । जहाँ इकबाल की कविता “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा” की पंक्तियां “यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहाँ से, अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा । कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा॥”, सभी भारतीयों को प्रेरित एवं गौरवान्वित करती हैं, वहीं इतिहास याद दिलाता है कि इन्ही पंक्तियों के रचयिता रहे भारतप्रेमी कवि इकबाल का भी कालांतर में हृदय परिवर्तन हुआ था और स्वतंत्रता के पूर्व वर्षों में वे राष्ट्रीय विभाजन तथा पाकिस्तान के गठन के प्रखर समर्थक बन चुके थे ।

इतिहास अनेक तथ्यों और रहस्यों को अपने गर्भ में समेटे हुए है और विरासत हमें पुकार रही है । भिन्न भिन्न प्रदेशों, क्षेत्रों तथा खंडों में सर्वत्र विद्यमान भारतवर्ष की विशाल ऐतिहासिक विरासत हमें पूर्वकाल की समृद्धि का स्मरण कराते हुए पग-पग पर प्रेरित करती है । इस ऐतिहासिक भूमि में अपने आसपास कहीं भी भ्रमण करने पर हमारे पूर्वजों की अनंत तथा अभी भी अत्यंत रहस्यमय कीर्ति गाथा से हमारा साक्षात्कार होना अत्यंत स्वाभाविक है चूंकि इसमें भारतवर्ष की अनेकों पीढ़ीयों का निरंतर योगदान समर्पित है । इस विरासत के उत्तराधिकारी होने पर जहाँ मन हर्षित होता है वहीं वह कालांतर में विदेशी तथा आंतरिक अवरोधों के कारण सांस्कृतिक तथा स्वाभाविक विकास में उत्त्पन्न हुए ह्रासों से अत्यंत पीड़ित भी होता है ।

आवश्यकता आज अपने विरासत पर केवल गौरवान्वित हो प्रशंसात्मक छन्दों के नव सृजन का न होकर पूर्व की उपलब्धियों से सहस्रों गुना अग्रतर एवं सतत् प्रगति की ओर अग्रसर एक नव भविष्य के निर्माण की है जो तभी संभव है जब वर्तमान युवा वर्ग एवं आने वाली नई पीढियाँ इसके निमित्त पूर्णतः संकल्पित हों ।

आवश्यकता है भारत के भविष्य के प्रति अपने दायित्वों को समझने का तथा लक्ष्यप्राप्ति हेतु एकत्रित हो अपनी ऊर्जाओं के समेकित संचालन का चूंकि पूर्व में इनकी हानि होने पर हम अपने स्वाभाविक सांस्कृतिक उत्थान पथ में पिछड़कर अहितकर अवनति को प्राप्त हुए हैं ।

आईए, राष्ट्रीय विरासत के पुकार को उद्धृत करती कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित पंक्तियों को आत्मसात कर विचारण करें तथा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय भविष्य के नव निर्माण में अपने बहूमूल्य योगदान के प्रति दृढसंकल्पित रहें ।

“अरुण यह मधुमय देश हमारा। जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा॥
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा॥
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे। उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा॥
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा॥
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा॥”

इस अवसर पर पुनः हार्दिक शुभकामनाएँ !

जय हिन्द !


लेखक – आईपीएस विकास वैभव, डीआईजी भागलपुर व मुंगेर रेंज 

बिहार में प्रशासन ने नहीं फहराने दिया विश्व का सबसे लंबा तिरंगा, लोगों में आक्रोश

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बिहार के पुर्णिया में 70वें स्वतंत्रा दिवस के मौके पर विश्व का सबसे लंबा तिरंगा फहराने पर जिला प्रशासन ने अंतिम समय पर रोक लगा दी।  

अनुमति को अंतिम समय में रद्द किए जाने से सोमवार को लोगों को गुस्सा फूट पड़ा। आक्रोशित लोगों ने पॉलिटेक्निक कॉलेज के आगे सड़क पर आग लगा जाम लगा दिया। कुछ ही देर में प्रशासन द्वारा झंडा फहराने की अनुमति रद्द करने की सूचना पूरे शहर में फैल गई। इसके बाद लोग जगह-जगह सड़कों पर उतर गए, प्रमुख चौराहों पर आगजनी कर जाम लग दिया।

क्या था मामला

दरअसल, विश्व का सबसे लंबा तिरंगा फहराने कर पूर्णिया के नाम कीर्तिमान स्थापित करने व् इतिहास में नाम दर्ज करवाने को लेकर शहर के लोग उत्साहित थे। पूर्व में प्रशासन ने पॉलिटेक्निक कॉलेज में झंडा फहराने की अनुमति दी थी। मगर 14 अगस्त को प्रशासन ने यह कहकर अनुमति रद्द कर दी थी कि, राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए कुछ नियम हैं। उधर 15 अगस्त को पूर्व सूचना के मुताबिक लोग जुटने लगे थे। वहां जब पता चला कि, प्रशासन ने झंडा फहराने संबंधी दी गई अनुमति को रद्द कर दिया है तो लोगों का आक्रोश भड़क गया।

 

पुर्णिया को विश्व के मानचित्र पर एक अलग पहचान दिलाने के लिए स्थानिए युवक सुनील कुमार सुमन तीन महीने पहले से ही इसके तैयारी में लगे है। सुनील बताते हैं कि तिरंगा फहराने के कार्यक्रम का पूरा ब्यौरा प्रशासनिक अधिकारी को दिया गया था। इसके बाद 13 को उन्हें आदेश दिया गया था मगर अंतिम समय में इस पर रोक लगा दी गई।

 

अब 20 अगस्त को फहराया जाएगा तिरंगा

लोगों का आक्रोश देख जिला प्रशासन ने आपस में विचार कर पुन: 20 अगस्त को तिरंगा फहराने का आदेश दे दिया है। अब यह तिरंगा गुलाबबाग जीरो माइल टाटा मोटर्स से टॉल टैक्स होते हुए 7 किलोमीटर लम्बा फहराया जाएगा।

 

डीएम पंकज कुमार पाल ने बताया कि पहले सबसे लंबा राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए आवेदन दिया गया था। राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए कई आवश्यक नियम- कानून बनाए गए हैं। उसी के अनुपालन के लिए आयोजक से कहा गया था। अब जिला प्रशासन के द्वारा शर्तों के साथ तिरंगा फहराने की अनुमति दी गई है। 20 अगस्त को तिरंगा फहराया जाएगा। इसमें शर्तों के अनुपालन के लिए कहा गया है।

स्वतंत्रता दिवस पर सीएम का ऐलान : अगले 4 वर्षों में हर घर में नल और शौचालय होंगे

70वां स्वतंत्रता दिवस पर राजधानी के ऐतिहासिक गांधी मैदान में सीएम नीतीश कुमार ने झंडातोलन किया और लोगों को संबोधित करते हुए ऐलान की अगले 4 वर्षो में राज्य के हर घर में शौचालय एवं नल के पानी पहुँचाने का उद्देश्य है।

सभी सरकारी कॉलेज और विश्वविद्यालय में मुफ्त वाई-फाई सुविधा भी शुरू करने की घोषणा की, लेकिन छात्रों से इस सुविधा को मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि शैक्षणिक कार्यों के लिए उपयोग करने की सलाह दी.

इस साल गांधी जयंती के दिन से राज्यभर में उनके तीन महत्वपूर्ण निर्णय के कार्यक्रम 6000 रुपये बेरोजगारी भत्ता, कौशल विकास और 4 लाख स्टूडेंट्स के क्रेडिट कार्ड के लिए रजिस्ट्रेशन का काम शुरू हो जाएगा. जबकि हर घर नल और हर घर शौचालय का कार्यक्रम अगले चार वर्षों में मुहैया करने का लक्ष्य रखा गया है.

नीतीश ने राज्य की विधि व्यवस्था की चर्चा करते हुए कहा कि इसी महीने से 24 घंटे काम करने वाली पुलिस हेल्प लाइन शुरू हो जाएगी जिसका नंबर होगा 0612-2209999, जिससे किसी भी मोबाइल कंपनी का उपभोक्ता इस सेवा का लाभ उठा सकें. इसके साथ इस साल ग्रामीण इलाकों में आगजनी की घटना में आई वृद्धि से निबटने के लिए हर पुलिस थाने के साथ एक अग्निशमन सेवा का केंद्र भी रहेगा. इसके अलावा राज्य में आने वाले कुछ वर्षों में पांच नए मेडिकल कॉलेज, तीन विश्वविद्यालय और एक बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा की गई है।

#BihariKrantikari: #14 राजेंद्र बाबू की ईमानदारी और सच्चाई एक सच्चे देशभक्त की तस्वीर प्रतिबिंबित करती है

rajendra prashad

“यूँ तो दुनिया के समंदर में कमी होती नहीं,
लाखों मोती हैं, पर इस आब का मोती नहीं|”

राजेंद्र बाबू का नाम लेते ही ऐसा अनुभव होने लगता है, मानो किसी वीतराग, शांत एवं सरल संन्यासी का नाम लिया जा रहा हो और सहसा एक भोली-भाली, निश्छल, निष्कपट, निर्दोष, सौम्य मूर्ती सामने आती है| भागीरथी के पवित्र जल के समान उनका पुनीत एवं अकृत्रिम आचरण आज भी मनुष्यों के हृदयों को पवित्र बना रहा है| वह उन योगिराजों में थे, जो वैभव एवं विलासिता में रहते हुए भी पूर्ण विरक्त होते हैं| राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर रहते हुए भी अभिमान रहित थे| तभी तो इन्हें ‘देशरत्न’ की उपाधि से अलंकृत किया जाता है|
जब राजेन्द्र बाबू स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने, तो गाँधी जी की यह भविष्यवाणी अक्षरशः सत्य हो गयी कि “भारत का राष्ट्रपति किसान का बेटा नहीं, किसान ही होगा|”
राजेन्द्र बाबू का जन्म बिहार के सिवान जिले के जीरादेई में 3 दिसम्बर 1884 ई० में एक संभ्रात परिवार में हुआ| इनके पूर्वज हथुआ राज्य के दीवान थे| राजेन्द्र बाबू प्रारम्भ से ही प्रबुद्ध और मेधावी छात्र थे| हाई स्कूल से लेकर एम.ए. एवं एल.एल.बी. और एल.एल.एम. तक में हमेशा प्रथम स्थान लाते रहे| छोटी के वकीलों में गिनती होती थी| राजेन्द्र बाबू के अलावा ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि किसी छात्र की उत्तरपुस्तिका पर परीक्षक ने स्वयं लिख दिया हो, “examinee is better than examiner”|
रोलेट एक्ट बनने के बाद इन्होंने वकालत छोड़ असहयोग आन्दोलन में सहयोग देना शुरू किया| गोपाल कृष्ण गोखले की देशभक्ति से बहुत प्रभावित थे, शायद इसलिए कि गोखले की देशभक्ति में राजनीति ही नहीं अपितु उच्चकोटि की विद्वता, राजनीतिक योग्यता, समाज सेवा आदि तत्व भी निहित थे|
राजेन्द्र बाबू ने गाँधी जी के आदर्श और सिद्धांतों से आकर्षित होकर अपना सर्वस्व देश-सेवा के नाम कर दिया| इनमें विनम्रता और विद्वता के साथ-साथ अपूर्व संगठन शक्ति, अद्वितीय राजनीतिक सूझ-बूझ और अलौकिक समाज सेवा की भावना थी| ये काँग्रेस के शुरूआती सदस्यों में शामिल थे| इन्होंने 1906 में सर्वप्रथम काँग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में हिस्सा लिए एक कार्यकर्ता के रूप में|
असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के बाद इन्होंने बिहार में किसानों को तथा बिहार की जानता को सफल नेतृत्व प्रदान किया| 1914 में बिहार और बंगाल मे आई बाढ में उन्होंने काफी बढचढ कर सेवा-कार्य किया था। बिहार के 1934 के भूकंप के समय राजेन्द्र बाबू कारावास में थे। जेल से दो वर्ष में छूटने के पश्चात वे भूकम्प पीड़ितों के लिए धन जुटाने में तन-मन से जुट गये और उन्होंने वायसराय के जुटाये धन से कहीं अधिक अपने व्यक्तिगत प्रयासों से जमा किया। सिंध और क्वेटा के भूकम्प के समय भी उन्होंने कई राहत-शिविरों का इंतजाम अपने हाथों मे लिया था। 1934 में बिहार में आये भयानक भूकंप से जन-धन की अपार क्षति हुई थी| राजेन्द्र बाबु ने पीड़ितों की सहायता के लिए सेवायें समर्पित कीं, जिनके आगे जनता सदैव-सदैव के लिए नत-मस्तक हो गयी| धीरे-धीरे राजेन्द्र बाबू की गणना भारत के उच्चकोटि के कांग्रेसी नेताओं में होने लगी|
देश-सेवा के लिए इन्होंने कई बार जेल की यात्रा की| वे दो बार अखिल भारतीय काँग्रेस कमिटी के अध्यक्ष भी रहे| 15 अगस्त 1947 को भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् देश के लिए नये संविधान बनाने के लिए ‘विधान निर्माण सभा’ बनाई गयी, जिसमें राजेन्द्र बाबू अध्यक्ष नियुक्त किये गये|
भारत के स्वतन्त्र होने के बाद संविधान लागू होने पर उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति का पदभार सँभाला। राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखलअंदाजी का मौका नहीं दिया और हमेशा स्वतन्त्र रूप से कार्य करते रहे। हिन्दू अधिनियम पारित करते समय उन्होंने काफी कड़ा रुख अपनाया था। राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कई ऐसे दृष्टान्त छोड़े जो बाद में उनके परवर्तियों के लिए मिसाल के तौर पर काम करते रहे।
भारतीय संविधान के लागू होने से एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया, लेकिन वे भारतीय गणराज्य के स्थापना की रस्म के बाद ही दाह संस्कार में भाग लेने गये। 12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के पश्चात उन्होंने 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की। अवकाश ले लेने के बाद ही उन्हें भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया।
राष्ट्रपति भवन की विलासिता उनके लिए अर्थहीन थी| उनके सेवानिवृति के बाद जब वो सदाकत आश्रम लौट रहे थे तो दिल्ली की जनता ने अश्रुपूर्ण विदाई दी थी|
चीनी आक्रमण के समय भी राजेन्द्र बाबु के ओजस्वी भाषण और एक आह्वान पर बिहार की जनता अपना सर्वश्व देश को समर्पित करने को तैयार थी|
राजेन्द्र बाबू ने कई सारी किताबें भी सौपीं हैं जैसे- आत्मकथा (१९४६), बापू के कदमों में (१९५४), इण्डिया डिवाइडेड (१९४६), सत्याग्रह ऐट चम्पारण (१९२२), गान्धीजी की देन, भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र इत्यादि उल्लेखनीय हैं। हालाँकि राजेन्द्र बाबू उर्दू और संस्कृत के विद्वान थे, फिर भी हिंदी भाषा के प्रति उनका लगाव काफी गहरा था|
28 फ़रवरी 1963 को सदाकत आश्रम में ही उन्होंने अंतिम साँसे लीं| राजेन्द्र बाबू से आज भी सारा देश प्रेरणा लेता है| उनकी देशभक्ति और सेवा भाव अद्वितीय हैं| उनकी ईमानदारी और सच्चाई एक सच्चे देशभक्त की तस्वीर प्रतिबिंबित करती हैं|
निःसंदेह उनका व्यक्तित्व और अस्तित्व दोनों महान थे और उनका चरित्र अनुकरणीय|
किसी कवि की ये पंक्तियाँ राजेन्द्र बाबू के जीवन के लिए बिल्कुल सही लगती हैं-
“न तन सेवा, न मन सेवा, न जीवन और धन सेवा,
मुझे है इष्ट जन सेवा, सदा सच्ची भुवन सेवा|”

#BihariKrantikar: #13 जयप्रकाश वह नाम जिसे इतिहास समादर देता है,

जिससे हो सकता उऋण नहीं, ऋण भार दबा तन रोम-रोम,
सौ बार जन्म भी लूँ यदि मैं, जिसके हित जीवन होम-होम||

जयप्रकाश नारायण जी के बारे में ब्रिटिश विद्वान ह्यूग गैट्स केल ने कहा था, “उनकी एक हस्ती है जिनका समाजवाद केवल उनकी राजनीति में ही नहीं चमकता, केवल उनकी सिखावत में ही नहीं रहता, बल्कि उनके सारे जीवन में समाया हुआ है|”

राजनीतिज्ञों की धरती, बिहार, से निकले देशभक्त क्रांतिकारियों में जयप्रकाश नारायण का नाम अग्रणी है| इनका जन्म छपरा जिले के सिताबदियारा नामक गाँव में दशहरे के दिन 11 अक्टूबर, 1902 को हुआ था| पिता का नाम श्री दयाल तथा माँ का नाम फूलरानी देवी था| पशु-पक्षियों से प्रेम रखने वाला बालक जयप्रकाश काफी सोच-समझ कर ही बोला करते थे| इन वजह से इनके पिता जी मजाक-मजाक में कहते थे, “ई त बूढ़ लरिका हउअन”|
16 मई 1920 ई० को इनका विवाह प्रभावती देवी से हो गया, जो राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भाग लेती थीं और देशभक्ति उनके रग-रग में थी| तभी तो उन्होंने आजीवन अपने जीवनसाथी का सहयोग दिया और खुद भी कैद हुईं|
जयप्रकाश नारायण ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक करने से इनकार कर दिया था तथा अपना जीवन देश के नाम करने का दृढ़ निश्चय लिया|

नारायण जी की निर्भीकता, क्रांतिकारी भावना, मनुष्यता, पौरुष, सौजन्य तथा आकर्षण शक्ति पर सारा देश मन्त्र-मुग्ध हो उठता था| क्रांतिकारी भावनाओं से अनुप्राणित भारतीय नवयुवक तो उन पर प्राण न्यौछावर करते थे| विचारों में काफी भेद होते हुए भी गांधी जी जयप्रकाश जी से प्रेम करते और उनकी न्यायनिष्ठा पर पूरा विश्वास रखते थे| 1940 ई० में हुए जयप्रकाश नारायण की गिरफ्तारी का गाँधी जी ने पुरजोर विरोध भी किया था|
1942 ई० की घटना है| जे.पी. हजारीबाग जेल में कैद थे| करो या मरो का नारा जोरों पर था, भारत छोड़ो आन्दोलन अपने चरम पर, ऐसे में जे.पी. जेल में छटपटा रहे थे, देश के लिए कुछ न कर पाने का अफ़सोस था उन्हें| तभी दिवाली का त्योहार आया| जेल के कैदियों और कर्मचारियों को जेलर की ओर से दावत का आयोजन था, फिर नाच और गाने का प्रोग्राम था|
रामवृक्ष बेनीपुरी जी ने उस जश्न का संचालन किया| वातावरण में मस्ती का माहौल था| इधर जे.पी. ने धोतियों की रस्सी बनाई और 6 मिनट में जेल की दीवार लाँघ गये| साथ में 6 मित्र और थे| इस फरारी की रामवृक्ष बेनीपुरी जी ने 12 घंटे तक किसी को कानो-कान खबर न होने दी|जेल के अधिकारीयों को जब ये बात मालूम चली तब तक जे.पी. की टोली काफी दूर निकल गयी थी| ब्रिटिश सरकार के लिए ये बहुत बड़ी चुनौती थी| उन्होंने जे.पी. को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने पर 10 हजार का इनाम भी रखा|

एक दिन ये सभी मित्र नेपाल में पकड़े गये| लेकिन इतना आसन भी नहीं था कि कोई जे.पी. और उनकी टीम को कैद रखे| बकायदा स्कीम बनाई गयी| सातों कैदी सो गये, अचानक गोलियाँ चलने लगीं| सातों बहादूर दौड़ पड़े, कोई कहीं गया और कोई कहीं| सभी ब्रिटिश कैद से मुक्त हो गये|
जे.पी. कोलकाता चले गये| एक दिन वो एस.पी. मेहता के नाम से रावलपिंडी जा रहे थे| अमृतसर स्टेशन पर गाड़ी ठहरी| जे.पी. चाय पीने के लिए नीचे उतरे| चाय अभी पी ही रहे थे कि अंग्रेज अधिकारी आ गये| ब्रिटिश सरकार को लोहे के चने चबाने पर मजबूर कर देने वाले जे.पी. पुनः कैद कर लिए गये| लाहौर जेल में उन्हें कई तरह की यातनाएँ दी गईं| कुर्सी पर बाँध कर पिटाई की गयी, लेकिन जे.पी. की तरफ से एक भी राज की बात सामने नहीं आई| लाहौर से वो आगरा भेज दिए गये| 1946 में उन्हें कैद से आजादी मिली| आजाद होते ही वे बापू से मिलने गये| बापू ने प्रार्थना सभा की बैठक में जे.पी. की मुक्त कंठ से प्रशंसा की|

आजादी के बाद जे.पी. विनोबा भावे के भूमि समस्या पर चल रहे कार्यक्रम से बहुत प्रभावित हुए| 1954 ई० में उन्होंने सर्वोदय के लिए अपना जीवन दान दे दिया| उनसे प्रेरित होकर 582 लोगों ने खुद को सर्वोदय के लिए समर्पित किया| इसके बाद देश-विदेश के 50 से अधिक सभाओं में जे.पी. के महत्वपूर्ण भाषण हुए|
1972 ई० की बात है| चम्बल घाटी के खूंखार डकैत निःशंक और निर्भय होकर जे.पी. के समक्ष आत्मसमर्पण करते थे| जे.पी. उन्हें गीता और रामायण की पुस्तकें देते| चम्बल घाटी का सरनाम डाकू मोहर सिंह, जिसको जिन्दा या मुर्दा पकड़ने वालों को मध्य-प्रदेश सरकार की तरफ से 2 लाख के इनाम की घोषणा थी, ने जे.पी. के सामने घुटने टेक दिए| अपना सर उसने जे.पी. के कदमों में रख दिया| उन चरणों में कुल 501 डाकुओं ने जे.पी. के सामने हथियार डाला तथा अच्छाई और सच्चरित्रता का जीवन अपनाने का संकल्प लिया| यह विचारों में आई क्रांति ही थी, जिसने उन डाकुओं को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया|
छात्रों और बिहार की जनता की प्रार्थना पर जे.पी. ने अस्वस्थ होने के बावजूद बिहार आन्दोलन का नेतृत्व किया| 1974 का वो आन्दोलन आज भी युवाओं में जोश भर देता है| आज भी उसे आजादी के बाद का सबसे महत्वपूर्ण एवं मजबूत आन्दोलन कहा जाता है| आज भी कहा जाता है कि जिस कदर जनसमूह ने जे.पी. आन्दोलन का समर्थन किया, वो अविश्मर्णीय है| 1977 में भारत की जनता को जनता पार्टी के रूप में नेतृत्व प्रदान कर जे.पी. ने ‘युग-परिवर्तन’ किया| शायद इसका अंदेशा नेहरु जी को पहले से ही था|

नेहरु जी ने एकबार रेडियो प्रसारण में कहा था, “जयप्रकाश जी की काबिलियत और ईमानदारी पर मुझे कभी कोई शक नहीं रहा है| एक मित्र के नाते मैं उनकी इज्जत करता हूँ और मुझे यकीन है कि एक वक्त आएगा जब भारत के भाग्य निर्माण में वे महत्वपूर्ण पार्ट अदा करेंगे|”

8 अक्टूबर1979 ई० को देश के सच्चे भक्त, देश निर्माण और जनसमूह के नेता, क्रांतिकारियों के क्रांतिकारी नायक, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, बिहार के जे.पी. इस दुनिया को अलविदा कह गये| किसी भी बड़े आन्दोलन में अब भी जे.पी. का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है| ऐसे देशभक्त को हमारा नमन|
राष्ट्रकवि दिनकर के शब्दों में-

“है जयप्रकाश जो कि पंगु का चरण, मूक की भाषा है,
है जयप्रकाश वह टिकी हुई जिस पर स्वदेश की आशा है|

है जयप्रकाश वह नाम जिसे इतिहास समादर देता है,
बढ़कर जिसके पदचिन्हों को उर पर अंकित कर देता है|

कहते हैं उसको जयप्रकाश, जो नहीं मरण से डरता है,
ज्वाला को बुझते देख कुंड में कूद स्वयं जो पड़ता है|”

#BihariKrantikari: #12 इन सात वीरों ने मर के भी तिरंगे की शान बढ़ाई

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“गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में,
वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चले”

किसी शायर की ये पंक्तियाँ उन सात वीर सपूतों की दृढ़ इच्छाशक्ति, देशप्रेम और समर्पण को दर्शाने के लिए बिल्कुल सही लगती हैं, जिनकी मूर्ति बिहार राजभवन परिसर में आज भी गर्व से देखी जाई जाती है|

11 अगस्त 1942 का दिन था| महात्मा गांधी की तरफ से भारत छोड़ो आन्दोलन का बिगुल बज चुका था| उन्होंने अहिंसा के साथ-साथ ‘करो या मरो’ का नारा भी दिया था| ये वो समय था जब बिहार में पटना स्वतंत्रता की लड़ाई का मुख्य केंद्र बना हुआ था|
6000 निहत्थे छात्रों की टोली, निकली पटना सेक्रेटेरिएट पर तिरंगा लहराने की धुन सवार किये हुए| W.G. आर्चर उस समय पटना के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट थे| हिंदुस्तानी छात्रों द्वारा यूँ भवन में झंडा फहराया जाना, ब्रिटिश हुकूमत के शान के खिलाफ था| 2 बजे तक ब्रिटिश इन्डियन मिलिट्री पुलिस ने पुरजोर विरोध किया, और छात्रों ने उतना ही संघर्ष| निहत्थे झंडे को पटना सेक्रेटेरिएट पर फहराना ब्रिटिशों को भारत छोड़ने की धमकी देने जैसा ही था|
ये संघर्ष चलता रहा| लेकिन तभी आर्चर ने पुलिस को उन सभी पर गोलीबारी करने का आदेश दे दिया जो झंडा लिए आगे बढ़ रहे थे| बिहार मिलिट्री ने गोली चलाने से इनकार कर दिया| गोरखा गैंग को बुलाया गया, गोलीबारी शुरू हुई| छात्र अहिंसक थे, उनके पास कोई हथियार नहीं था, फिर भी ये कदम उठाया गया|
गोलीबारी जब रुकी, तब तक 7 छात्र शहीद हो चुके थे और 14 घायल| इन शहीदों की सूची देखिये, सिर्फ एक छात्र ही कॉलेज का था, बाकी सभी स्कूल के थे, दसवीं और नौवीं के छात्र|
इन सात छात्रों की जीवंत मूर्ति आज भी आप पटना राजभवन कार्यालय में देख सकते हैं| धोती-कुर्ता और गाँधी टोपी में बनी ये मूर्ति प्रत्यक्षतः दर्शाती है कि कैसा जज्बा था उन छात्रों में| कैसा समर्पण था अपने देश के लिए| कैसी भक्ति थी जिसने जान की परवाह भी न करने दी| इनका लक्ष्य इस मूर्ति में भी देखा जा सकता है| ये एक संकल्प, एक प्रण ही तो था जिसने इतने बड़े त्याग से भी समझौता न करने दिया, मन को डिगने न दिया|

इन सात लड़ाकों को आज पूरा देश नमन करता है| ये वो क्रांतिकारी थे, जिन्होंने पटना में बुझ रही स्वतंत्रता की लड़ाई की चिंगारी को हवा देने का काम किया| जिन्होंने इस पवित्र मिशन को अपने खून से और पावन कर दिया| जिन्होंने मर के भी तिरंगे की शान बढ़ाई| इनके नाम थे –

• उमाकांत प्रसाद सिन्हा (रमन जी)- राम मोहन रॉय सेमिनरी, कक्षा 9
• रामानंद सिंह- राम मोहन रॉय सेमिनरी, कक्षा 9
• सतीश प्रसाद झा- पटना कॉलेजियेट स्कूल, कक्षा 10
• जगतपति कुमार- बिहार नेशनल कॉलेज, स्नातक पार्ट 2
• देविपदा चौधरी- मिलर हाई स्कूल, कक्षा 9
• राजेन्द्र सिंह- पटना हाई इंग्लिश स्कूल, कक्षा 10
• रामगोविन्द सिंह- पुनपुन हाई इंग्लिश स्कूल, कक्षा 9

#BihariKrantikari: #7 अपनी आखरी सांसों तक राष्ट्र और समाज की सेवा करते रहे बिहार विभूति अनुग्रह बाबू

आपन बिहार हिन्दुस्तान की आजादी का 70 वाँ पर्व मना रहा है।  हम रोज आपको ऐसे बिहारी क्रान्तिकारी  से मिलवाते है जिसने अपनी मातृभूमी की रक्षा करने के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया।  ऐसे ही बिहारी क्रान्तिकारी थे बिहार विभूती अनुग्रह नारायण सिंह।

 

डा अनुग्रह नारायण सिंह एक भारतीय राजनेता और बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री (1946-1957) थे। अनुग्रह बाबू (1887-1957) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक तथा राजनीतिज्ञ रहे हैं।

इन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध चम्पारण से अपना सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था। बिहार-विभूति का भारत की आजादी में सहभागिता रही थी। उन्होंने महात्मा गांधी एवं डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थे। अनुग्रह बाबू आधुनिक बिहार के निर्माता थे। वे देश के उन गिने-चुने सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में से थे जिन्होंने अपने छात्र जीवन से लेकर अंतिम दिनों तक राष्ट्र और समाज की सेवा की। उन्होंने आधुनिक बिहार के निर्माण के लिए जो कार्य किया, उसके कारण लोग उन्हें प्यार से बिहार विभूति के नाम से पूकारते हैं।

 

चंपारण में किसानों पर अत्याचार के खिलाफ गांधी जी के आंदोलन में अनुग्रह बाबू ने अपनी वकालत के पेशे को त्याग अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के लडाई में शामिल हो गये।  इस आंदोलन ने उनके जीवन की धारा ही बदल दी। स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता का पाठ उन्हें गांधीजी के आश्रम में ही रहकर प़ढने का सुअवसर प्राप्त हुआ। अनुग्रह बाबू ने चम्पारण के नील आंदोलन में गांधीजी के साथ लगन और निर्भीकता के साथ काम किया और आंदोलन को सफल बनाकर उनके आदेशानुसार १९१७ में पटना आये। बापू के साथ रहने से उन्हें जो आत्मिक बल प्राप्त हुआ, वही इनके जीवन का संबल बना। सन्‌ १९२० के दिसंबर में नागपुर में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ, जिसमें अनुग्रह बाबू ने भी भाग लिया। सन्‌ १९२९ के दिसंबर में सरदार पटेल ने किसान संगठन के सिलसिले में मुंगेर आदि शहरों का दौरा किया, तब अनुग्रह बाबू सभी जगह उनके साथ थे। २६ जनवरी १९३० को सारे देश में स्वतंत्रता की घोषणा प़ढी गई। अनुग्रह बाबू को भी कई स्थानों में घोषण पत्र प़ढना प़ढा।

 

मेरा परिचय अनुग्रह बाबू से बिहारी छात्र सम्मेलन में ही पहले पहल हुआ था। मैं उनकी संगठन शक्ति और हाथ में आए हुए कार्य में उत्साह देखकर मुग्ध हो गया और वह भावना समय बीतने से कम न होकर अधिक गहरी होती गई।
– देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

अनुग्रह बाबू को  बिहार विभूति’ के रूप में जाना जाता था। वह स्वाधीनता आंदोलन के योद्धा थे। स्वाधीनता के बाद राष्ट्र निर्माण व जनकल्याण के कार्यो में उन्होंने सक्रिय योगदान दिया।

आधुनिक बिहार के निर्माता
डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा मानवतावादी प्रगतिशील विचारक एवं दलितों के उत्थान के प्रबल समर्थक और आधुनिक बिहार के निर्माताओं में से एक थे। उनका जीवन दर्शन देश की अखंड स्वतंत्रता और नवनिर्माण की भावनाआ से सराबोर रहा। उनका सौभ्य, स्निग्ध, शीतल, परोपकारी, अहंकारहीन और दर्पोदीप्त शख़्सियत बिहार के जनगणमन पर अधिकार किए हुए था। वे शरीर से दुर्बल, कृषकाय थे, पर इस अर्थ में महाप्राण कोई संकट उनके ओठों की मुस्कुराहट नहीं छीन सका। उनमें शक्ति और शील एकाकार हो गये थे और इसीलिए वे बुद्धिजीवियों को विशेष प्रिय थे। बिहार के विकास में उनका योगदान अतुलनीय है। राज्य के प्रशासनिक ढांचा को तैयार करने का काम अनुग्रह बाबू ने किया था। इन्होंने राज्य के प्रथम उप मुख्यमंत्री और सह वित्तमंत्री के रूप में 11 वर्षों तक बिहार की अनवरत सेवा की।

 

जो देशभक्त जेल में अनुग्रह बाबू के चौके में खाते थे, वे जब जेल से निकले तो यह कहते निकले कि अनुग्रह बाबू सचमुच प्रांत के अर्थमंत्री पद के योग्य हैं। इस काम में उनसे कोई बाज़ी नहीं मार सकता।”-
– राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर

इस तेजस्वी महापुरुष का निधन 5 जुलाई, 1957 को उनके निवास स्थान पटना में बीमारी के कारण हुआ। उनके सम्मान मे तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया, उनके अन्तिम संस्कार में विशाल जनसमूह उपस्थित था। अनुग्रह बाबू 2 जनवरी, 1946 से अपनी मृत्यु तक बिहार के उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री रहे।