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बिहार में बाढ़ के आफ़त के बीच, महिला ने एनडीआरएफ की नाव में दिया बच्ची को जन्म

बिहार के दस जिले बाढ़ की चपेट में हैं। जिला प्रशासन राहत एंव बचाव कार्य में जुटी हुई है। गांव के गांव जलमग्न हो चुके हैं। सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी हैं। ऐसे में राहत और बचाव दल लोगों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। इस बीच बिहार के उत्तरी हिस्से में आई बाढ़ में राहत एवं बचाव में जुटे राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की नौवीं वाहिनी की एक बचाव नौका पर गर्भवती महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया।

एनडीआरएफ की 9वीं बटालियन के रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान उसकी बोट पर एक गर्भवती महिला ने एक बच्ची को दिया जन्म दिया है। महिला का नाम रीमा देवी और उम्र 25 वर्ष बतायी जा रही है। दरअसल यह महिला प्रसव को लेकर बेहद परेशान थी। परिवार के लोग महिला के प्रसव को लेकर काफी परेशान थे।

कैसे किया महिला और बच्चे को रेस्क्यू

मामला बिहार के चंपारण जिले का है। ये जिला भी बाढ़ से ग्रसित है। कई लोगों की तरह यहाँ एक गर्भवती महिला भी बाढ़ में फंसी हुई थी। सूचना मिलने पर एनडीआरएफ की टीम ने महिला का रेस्क्यू किया। महिला बोट के जरिये बाहर नहीं निकल पाई, इससे पहले ही प्रसव पीड़ा हुई और महिला ने बच्चे को जन्म दिया।

महिला की गंभीर स्थिति को देखते हुए एनडीआरएफ रेस्क्यू बोट पर ही प्रसव कराने का फैसला लिया गया।एनडीआरएफ के बचावकर्मी, आशा सेविका और उनके परिवार के महिलाओं के सहयोग से सफल एवं सुरक्षित प्रसव करा लिया गया और इस प्रकार बाढ़ के बीच मजधार में एक नन्हीं बच्ची की किलकारी गूंज उठी।

इसके बाद नवजात शिशु को एनडीआरएफ की टीम द्वारा महिला और बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। महिला और बच्चे की स्थित ठीक बताई जा रही हैं।

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क्या बाढ़ के पानी में फिर डूबेगा उत्तर बिहार?

देश में अलग-अलग हिस्सों में सावन ऐसा झूमकर आया कि कई जगहों पर बारिश और बाढ़ से लोग बेहाल हैं। नदियां उफान पर हैं और अपनी हदें तोड़ने पर आमादा हैं। यूपी से लेकर बिहार, बंगाल से लेकर पूर्वोत्तर, महाराष्ट्र से लेकर मध्य प्रदेश तक और असम से अरुणाचल प्रदेश तक कई इलाकों में बारिश से आफत आई है। उत्तर बिहार और नेपाल में भारी वर्षा का असर नदियों पर दिखने लगा है।

नेपाल में लगातार हो रही बारिश से बिहार में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। उत्तर बिहार की नदियां बागमती, कमला, गंडक के अलावा पहाड़ी नदियों का जलस्तर भी तेजी से बढ़ने लगा है। इससे मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मोतिहारी, मधुबनी, और बेतिया में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। वाल्मीकिनगर झंडु टोला स्थित एसएसबी कैंप में पानी भर गया है।

उत्तर बिहार में 48 घंटे तक भारी बारिश के आसार  

मानसून की अक्षीय रेखा के हिमालय की तराई क्षेत्र की ओर शिफ्ट कर जाने के कारण बिहार के उत्तरी भाग में ज्यादातर जगहों पर भारी बारिश जारी है। इसके अलावा सूबे के दक्षिण और मध्य भाग में एक दो जगहों पर भी भारी बारिश की स्थिति बनी हुई है। अगले 48 घंटे तक उत्तर बिहार के लगभग सभी भागों में भारी बारिश और कुछ जगहों पर अत्यधिक भारी बारिश के आसार हैं। इन इलाकों में वज्रपात की भी चेतावनी जारी की गई है।

मौसम विज्ञान केंद्र पटना के पूर्वानुमान के अनुसार अगले 72 घंटे बाद बारिश की तीव्रता में कमी आएगी। मौसम विज्ञान केंद्र से मिले इनपुट के आधार पर उत्तर बिहार और मध्य बिहार के कुल 19 जिलों में अलर्ट की स्थिति बनी हुई है।

CO कर रहे तटबन्ध की निगरानी

फिलहाल नदियां खतरे निशान से नीचे हैं लेकिन जिले में अलर्ट जारी करते हुये दरभंगा DM त्याग राजन ने तटबंध का निरीक्षण किया है साथ ही सभी को सतर्क रहने की बात कही है।  जिले के 80 प्रतिशत आबादी नदियों के अगल बगल में बसे होने के कारण बाढ़ की खतरा ज्यादा है।

तारडीह प्रखंड के सकतपुर इलाके में कमला नदी का पानी फैलने लगा है।  यहां पानी की बढ़ती रफ़्तार को देखते हुए बांध की सुरक्षा के पूरे उपाय किये जा रहे हैं।  खुद तारडीह प्रखंड के CO अशोक कुमार यादव ने बांध का निरीक्षण किया साथ ही गांव के लोगों को भी अलर्ट किया।

नदियों के जलस्तर में वृद्धि से दहशत में लोग

इलाके के लोगों को बाढ़ का डर अभी से ही सताने लगा है।  रंजीत कुमार झा ने कहा कि पानी जितनी तेजी से बढ़ रहा है अगर यही हाल रहा तो जहां बांध नीचा है वहां से पानी इलाके में फैल सकता है।  मालूम हो कि यह इलाका तारडीह प्रखंड के कैथवाड़ का है जहां पिछली बार दो जगहों से बांध टूटने की वजह से 14 पंचायत बुरी तरह बाढ़ से न सिर्फ प्रभावित हुए था बल्कि कई घर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त भी हो गए थे।  यही वजह है कि बाढ़ की पिछली त्रासदी को झेल चुके ग्रामीणों के बीच अभी से ही डर बना हुआ है।

सुपौल के कई गांवों में घुसा पानी, टूटीं सड़कें

भारी बारिश से कोसी-महानंदा सहित अन्य सहायक नदियों के जल स्तर में उतार-चढ़ाव जारी है।  सुपौल के तटबंध के अंदर के दर्जनों गांवों में बाढ़ का पानी घुस गया है। कटिहार के कई इलाकों में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है।  बारिश के कारण कोसी नदी के जल स्तर में वृद्धि दर्ज की गयी। शुक्रवार को ही कोसी का डिस्चार्ज ढाई लाख क्यूसेक को पार कर चुका था, जो शनिवार की सुबह इस वर्ष के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया।

शुक्रवार एवं शनिवार को कोसी बराज से निकला पानी सुपौल, किसनपुर, सरायगढ़, निर्मली, मरौना के दर्जनों गांवों में पानी प्रवेश कर गया है।  दर्जनों सड़कें ध्वस्त हो गयी हैं. कटिहार में महानंदा के जल स्तर में वृद्धि हुई है।  पिछले 18 घंटे में इस नदी का जल स्तर 30 सेंटीमीटर बढ़ा है।

बाढ़ दर्शन: हमारा गांव नेपाल के सीमा से सटल है, बाढ़ से हमलोगों का पुराना याराना है

हमारा गांव नेपाल के सीमा से सटल है. बाढ़ से हमलोगों का पुराना याराना है. लगातार बारिश आ नेपाल के पानी छोड़ला से गाँव में पानी घुसना शुरू हो गया है. बाढ़ का पानी महंगा शराब के तरह धीरे-धीरे चढ़ता है. भोर में देखने गए तो पुल के उसपार थोड़ा-बहुत पानी चल रहा था. सांझ को घूमने गए तो पुल के इस पार भी पानी हरहरा रहा है. एकदम गन्दा पानी. खर-पतवार आ झाग से भरल. बह रहा है अपना गति में. उसको कोई मतलब नहीं कि लॉकडाउन है, कोरोना का आफतकाल है, आगे थाना का गाड़ी लागल है. केकरो से कोई मतलब नहीं. बहना है तो बहना है. एकदम अपना मौज में. आप रोक लीजिएगा..?

बाढ़ देखने के लिए लोग सब का आना-जाना बढ़ गया है. मोटरसायकिल पर बैठ-बैठ के सपरिवार आ रहा है सब बाढ़ देखने. किसी को अपना खेत का चिंता है तो किसी को अपना गाछी का. सब सड़क पर खड़ा होकर माथा पर हाथ रखले देख रहा है.

दू गो नया खून वाला लईका अपना पल्सर ऊ बाढ़ के बहाव में धो रहा है. देखादेखी एगो टेम्पू वाला भी बीच में टेम्पू खड़ा करके हाथे से धोने लगा. पुलिया से चार ठो लंगटा बच्चा नाक बंद करके सीधा धार में पलटी मार दे रहा है. ई सबको स्विमिंग का सही प्रैक्टिस करवाया जाए ता भारत को केतना पदक दिलवाएगा. उधर मछुआरा सब पानी में जाल पर जाल फेंक रहा है. सावन का महीना हो चाहे भादो का, आज मछरी लेकर ही घरे जाना है. उधर चाची घरे सिलौटी पर सरसों पिस रही होगी आ इधर तीन बार जाल से खाली कीचड़ में सनाएल गोल्डस्टार का फटल जूता आ पेप्सी का बोतल निकला है. पिसायल मसल्ला पर जे ई परोर चाहे कद्दू लेकर घरे पहुँचे ता सिलौटी पर इनको पीस दिया जाएगा. बेचारे इसी डर से बीस बार जाल फेंक दिया है..!

वाह रे जमाना. बाढ़ के साथ सेल्फी लिया जा रहा है. तुरन्त फेसबुक पर फीलिंग एंजोयिंग विद बाढ़ इन माय भिलेज के नाम से चेपा जाएगा. लोग कमेंट भी कर देगा नाइस बाढ़ डियर.

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चलिए अब घर चला जाए. भीगी-भीगी सड़कों पे केंचुआ सब ससरने लगा है. झींगुर ब्रो सब का झन-झन डीजे शुरू हो रहा है. लौटते समय खेत के आड़ी पर महेन चा भेंटा गए. कमर में गमछा बन्हले, कंधा पर कुदाल रखले किसी को डीलिंग दे रहे है. “सब साला ई नेपाल का खचरपनी है. कल रात तक एक बूंद पानी नहीं था. आज देखिए, राता-रात पानी ठेल दिया ससुरा..”

महेन चा का गुस्सा वाजिबो था. परसों ही देखे थे केतना मेहनत से दिन भर खेत में बीचड़ा लगाए थे. आज सब डूब गया.

हम बोले चचा ई ता गड़बड़ा गया. चचा खैनी रगड़ते बोले “का गड़बड़ाएगा बबुआ, पानी ससर गया ता ठीक है आ कहीं चार दिन ठहर गया तो सारा बीचड़ा सड़ जाएगा.” हम फिर टप्प से पूछ दिए “सड़ जाएगा तब का होगा.?” चचा हंसते बोले “होगा का बचवा, होइहें वही जो राम रची राखा..” चचा खैनी मुंह में दबाए, गमछा टाइट किए आ कंधे पर कुदाल रखकर गुनगुनाते चल दिए “भँवरवा के तोहरा संघे जाई..”

– Aman Aakash

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बाढ़ से मिलेगी राहत: केंद्र ने 4,900 करोड़ रुपये की कोसी-मेची नदी इंटरलाकिंग परियोजना को दी मंजूरी

केंद्र ने बिहार के सीमांचल क्षेत्र के लिए एक बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला लिया है| सरकार ने 4,900 करोड़ रुपये की कोसी-मेची नदी इंटरलाकिंग परियोजना को मंजूरी दे दी है। मध्य प्रदेश के केन-बेतवा के बाद महत्वाकांक्षी कोसी-मेची परियोजना देश की दूसरी प्रमुख नदी इंटरलिंकिंग परियोजना है, जिसको केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) से अनिवार्य तकनीकी-सह-प्रशासनिक अनुमोदन प्राप्त हुआ है।

यह मेगा प्रोजेक्ट कई मायनों में अनूठा है। यह न केवल उत्तर बिहार के बड़े पैमाने पर बाढ़ से होने वाली खतरे से राहत दिलाएगा, बल्कि उत्तर बिहार के अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार जिलों में फैले 2.14 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रों में सिंचाई के लिए पानी भी प्रदान करेगा।

बिहार के जल संसाधन विभाग (डब्ल्यूआरडी) के मंत्री संजय कुमार झा ने कहा, “यह परियोजना पूरे क्षेत्र में बाढ़ और परिणामी कठिनाइयों को दूर करने के उद्देश्य से है, और सीमांचल क्षेत्र में अगली हरित क्रांति की शुरुआत करने में सक्षम है।”

इस वर्ष जून के महीने में ही पदभार ग्रहण करने के बाद, झा विशेष रूप से इस मॉडल परियोजना के लिए केंद्र की मंजूरी हासिल करने के लिए उत्सुक हैं, और केंद्रीय जल विकास प्राधिकरण और दिल्ली में MoEFCC के साथ निकटता सुनिश्चित की है। इस साल 17 जून को केंद्रीय जल मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ अपनी पहली बैठक में, झा ने इस परियोजना के लिए राज्य की सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में आवश्यक अनुमोदन प्राप्त किया था।

“यह इंटरलिंकिंग परियोजना कोसी नदी के अधिशेष जल के हिस्से को मौजूदा हनुमान नगर बैराज से महानंदा बेसिन तक ले जाने की बात करती है,” झा ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना के बाढ़ प्रबंधन घटक पर विस्तार से बताया। मेची महानंदा नदी की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है। हालांकि इसके बेसिन में सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध कराने की कमी है।

“कोसी के पानी को महानंदा में प्रवाहित करने से अधिशेष जल के पुनर्वितरण का अनुकूलन होगा जो इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में हरित क्रांति के संभावित अग्रदूत के रूप में बिहार के सीएम नीतीश कुमार द्वारा उद्धृत क्षेत्र में सिंचाई क्षमता को एक अलग लीग में ले जाएगा।”

भारत की नदियों के पहले इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट की तर्ज पर, मध्य प्रदेश में केन-बेतवा परियोजना, बिहार के कोसी-मेची इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट के अनुसार, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि सभी आवश्यक तत्व ‘राष्ट्रीय परियोजना’ के लिए योग्य हैं। झा ने कहा, “कोसी-मेची परियोजना सभी अनिवार्य प्रावधानों और मापदंडों को पूरा करती है, जैसे दो लाख हेक्टेयर या उससे अधिक के सिंचाई कमांड क्षेत्र को सुनिश्चित करना।”

राज्य के डब्ल्यूआरडी मंत्री ने आगे कहा कि वह अब नीतीश कुमार के इस प्रमुख हस्तक्षेप के लिए राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने के लिए राज्य के नेतृत्व के साथ मिलकर काम करेंगे। “इस पहल में विशाल बाढ़ प्रबंधन और सिंचाई क्षमता के अलावा, यह तथ्य कि पूरा कमांड क्षेत्र एक अंतरराष्ट्रीय सीमा (भारत-नेपाल) के लिए सन्निहित है, यह एक महत्वपूर्ण पहलू है जिसे पाने के लिए केंद्र हमारी खोज में विशेष ध्यान रखेगा।

कोसी-मेची इंटरलिंकिंग परियोजना एक हरी परियोजना है। “इसके पर्यावरण अनुमोदन के नोट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ‘परियोजना में आबादी का कोई विस्थापन शामिल नहीं है और किसी भी वन भूमि का कोई अधिग्रहण नहीं है। कुल भूमि की आवश्यकता लगभग 1,396.81 हेक्टेयर है।

जो मिथिला हर साल के बाढ़ से परेशान था, आज वह गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है

बिहार के मिथिला क्षेत्र के दशियों जिले के अनेकों दर्जन प्रखंड में सैकड़ों गाँव गम्भीर जलसंकट से जूझ रहे हैं। चापाकल-तालाब आदि सुख चुके हैं और लोग पीने के पानी के लिए सरकारी वाटर-टैंकर व वाटरगैलन पर निभर हैं। पानी के लिए सैकड़ों गांवों व शहरों के मुहल्लों में पानी के लिए लड़ाइयां हो रही है, ग्रामीण आंदोलन-धरना-सड़क घेराव आदि कर रहे हैं। दरभंगा-समस्तीपुर-मुज़फ्फरपुर-बेगूसराय-मधुबनी आदि समेत राज्य के लगभग दर्जन से अधिक जिलों में सूखे व जल-संकट की स्थिति है।

मौजूदा जल-संकट के संबंध में सबसे आसान साइडवे ये होगा की दोष आप सरकार को दें। मैं इसमें केवल सरकार का दोष नहीं मानता। हाँ जिम्मेदारी उनकी जरूर बनती है पर किसी को भी ये भान नहीं हो सकता कि नदियों का नैहर आ पग-पग पोखर वाला बाढ़-प्रभावित क्षेत्र मिथिला भी कभी जल-संकट का सामना करेगा, इसलिए मैं दोष सरकार के ऊपर मढ़ना एक आसान तरीका समझता हूँ अपने गलतियों और जिम्मेदारीयों से बचने का।

जो हुआ सो हुआ। अब हो गया। आप मानें या न मानें लेकिन ये संकट हमने ही पैदा किया है जाने-अनजाने में। एक्चुअली में डायरेक्ट गलती हमारी भी नहीं है क्योंकि इससे पहले कोई भी मैथिल कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था की एक दिन जल-संकट आ जाएगा। हमारे यहाँ पानी इतना अथाह था कि जल संरक्षण और उपयुक्त उपयोग हमने कभी सीखा ही नहीं। चापाकल उपयोग में बढोत्तरी होने के बाद हमने भूजलस्तर संरक्षित रखने वाले कुएं भर दिए और गैरजरूरी संख्याओं में चापाकल गड़वा लिया। बाद में तालाब भरते गए, अतिक्रमण करके उनपर घर बनाते गए, समरसीबल खुदाते गए…हमने हमेशा दोहन ही किया कभी संरक्षण नहीं।

वास्तव में हमें इसकी कभी आदत या जरूरत ही महसूस ही नहीं हुई। जहाँ नदी किनारे बसे गांव के हरेक घर मे दो-दो, तीन-तीन तक चापाकल हो, पूरे गांव में कई दर्जन तालाब हो…उस मिथिला के किसी मैथिल को आप जल संरक्षण के प्रति जिम्मेदार, जागरूक और चिंतित कैसे एक्सपेक्ट कर सकते हैं ? हमें बर्तन धोने से लेकर नहाने समेत हरेक घरेलू कामकाज में जल को बर्बाद करने की आदत है। पूरे मिथिला में इतनी नदियाँ होने के बावजूद कहीं नदियों के जल का प्लांड संरक्षण और इस्तेमाल अब नहीं होता है, कोशी सिंचाई परियोजना अबतक अधूरी पड़ी है और पूर्ण नहीं हो सकी है। एक वक्त था की तालाबों और कुओं में वर्षा का जल संरक्षित किया जाता था लेकिन अब कुओं के भर जाने और तालाबों के रखरखाव अभाव के कारण वो भी बंद हो चुका है।

लेकिन अब हमें जागना होगा। क्योंकि अभी जो जल संकट उभरा है यदि उसपर गौर करें तो ये किसी सडेन ज्योग्राफिकल चेंजेज की वजह से मालूम होता है। पहले बेगूसराय, फिर समस्तीपुर, फिर दरभंगा उसके बाद मधुबनी…ये गंगा के उत्तर हर जगह क्रमानुगत फैल रहा है। हमें अब अपनी आदतों में बदलाव करना होगा, लोगों को जागरूक करना होगा, वर्षा जल संरक्षित करना पड़ेगा, पोखैर-तालाब बचाना पड़ेगा, अपने लोगों को आदत डालनी पड़ेगी की जल की गैरजरूरी बर्बादी से बचें।

और ये सब एक मेंटिलिटी को चेंज करने का प्रयास है अतः अत्यंत कठिन कार्य है। इसके लिए विभिन्न प्रयासों के माध्यम से लोगों के दिमाग को हैमर करना पड़ेगा ताकि उन्हें आदत पड़े जल बचाने की। ये केवल सरकार नहीं कर सकती है। हम सबको इसका हिस्सेदार और सहयोगी बनना पड़ेगा। मिथिला में जल संकट समस्या का सबसे बेहतर समाधान है अपने पोखैर-तालाबों की सफाई-उड़ाही और रखरखाव करके उन्हें संरक्षित करना। इससे भूजलस्तर बना रहेगा और चापाकल नहीं सूखेंगे।

अपनी-अपनी भूमिका निभाइए। लोगों को जागरूक कीजिए, जानकारी बांटिए, सरकारी प्रयास में सहयोग के अलावे सामाजिक रूप से लोगों को जागृत कीजिए की वो पोखैर-तालाब बचावें। हम सबने पाप किया है अनजाने में, प्रायश्चित भी सब कीजिए। पत्रकार हैं तो रिपोर्टिंग कीजिए जल-संरक्षण के संबंध में, प्रोफेसर हैं तो सेमिनार्स कीजिए। कवि-लेखक हैं तो इस विषय पर कविता-कहानी लिखिए, गोष्ठि कीजिए। मिथिला पेंटिंग के कलाकार हैं तो पोखैर बचाउ विषय पर पेंटिंग बनाइए। गायक हैं तो इस विषय पर गीत गाइए। स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी हैं तो शहर में जागरूकता मार्च निकाल कर लोगों को जागरूक कीजिए। नेता-अधिकारी हैं तो जनप्रतिनिधियों और सरकारी मशीनरी पर दवाब बनाइए सफल क्रियान्वयन का। बाहर हैं तो सोशल मीडिया पर #पोखैर_बचाउ विषय पर लिखिए-प्रचारित कीजिए ताकि विषय का ब्रॉडनेस बढ़े। कुल मिलाकर सब मिलकर सामूहिक ऐसे प्रयास कीजिए की अंतिम मैथिल तक ये संवाद चला जाए की “जल-संकट में हैं, जल बचाइए और जल-श्रोतों को संरक्षित रखिए।”

-आदित्य मोहन

पुल टूटने के बाद भी पढ़ने का ऐसा जज्बा कि गंगा की उफनती लहरों से भी नही लगा डर

इन बच्चों के जब्बे को सलाम।

घर से स्कूल तक जाने वाली पुल टूट गई, गंगा नदी है पूरे उफान पर फिर भी बच्चे नाव पर चढ़ पहुंच रहे हैं स्कूल…

भागलपुर के नाथनगर से चार पंचायतों बैरिया, गोसांईदासपुर, रत्नूचक और राघोपुर को जोड़ने वाला श्रीरामपुर चचेरी पुल गंगा के जलस्तर बढ़ने के साथ ही नदी में समा गया। नदी पार करना मुश्किल हो गया। न कोई स्कूल जा पारहा था नही बाजार, प्रशासन की सहायता नहीं मिली। आखिरकार ग्रामीणों ने निजी नाव से आवाजाही शुरू की।

ग्रामीणों के साथ-साथ छात्रों की परेशानी भी बढ़ गई। चचरी पुल से मध्य विधालय श्रीरामपुर पहुंचना मुश्किल हो गया। बुधवार को बच्चों ने नाव से नदी पार किया। नाव नदी किनारे पहुंची तो मिट्टी में फंस गई।

ऐसे में बच्चों ने ही नाव की रस्सी खींची और किनारे लगाया। अब उनका रोज स्कूल जाना भी कठिन हो गया। ऐसे में स्कूल आने-जाने वाले नौनिहालों के हाथ नाव की डोर है।

यदी प्रशासन ने जल्दी ही सरकारी व्यवस्था नहीं की तो ग्रामीणों को 15 किलोमीटर दूर घूमकर गोसांईदासपुर के रास्ते जाना होगा।

 

 

Alert : बिहार में बाढ़ का खतरा, कई नदीयां उफान पर।

बिहार में लगातार हो रही बारिश और नेपाल के जलग्रहण क्षेत्र से पानी छोड़ने के कारण कोसी व बागमती नदियां उफना गई है। लोगों को सताने लगा बाढ़ का डर।

उफनाई नदियों का पानी अब तटबंध के भीतर इलाके के साथ-साथ दियारा क्षेत्र के मैदानी इलाके में फैलने लगा है। कई स्परों पर दबाव बढ़ना शुरू हो गया है।

कटिहार में महानंदा नदी उफान पर है। हालांकि जहां दबाव बना हुआ है वहां कार्यपालक अभियंता के नेतृत्व में इंजीनियर कैम्प किये हुए है।

 

सुपौल के पूर्वी कोसी तटबंध के 19़.92, 20. 20 और 21. 60 पर मंगलवार को दबाव घटने से अभियंताओं को थोड़ी राहत मिली। पिछले दो दिनों से नदी इन स्परों पर काफी दबाव बना हुआ था। इन स्परों पर जियो बैग, नाइलोन केट द्वारा फ्लड फायटिंग कार्य किये जा रहे है। बीते तीन दिनों से कार्यपालक अभियंता इन्द्रजीत सिंह के नेतृत्व में टीम कैम्प कर रही है।

पश्चिमी कोसी तटबंध के सिकरहट्टा मझारी निम्न सुरक्षा बांध पर 8.20 और 9.40 किलोमीटर पर पानी का दबाव बढ़ने से सुरक्षा बांध पर खतरा मंडराने लगा है। मंगलवार को कोसी नदी का जलस्तर 1 लाख 78 हजार मापा गया।

 

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पीएम मिलकर नीतीश कुमार ने कहा, दुसरे राज्यों में हुए बारिश का दंश झेलता है बिहार

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल राज्य में आए भयावह बाढ के लिए मदद मांगी और साथ ही मुख्यमंत्री ने गंगा नदी पर बने फरक्का बराज हटाने पर विचार करने का अनुरोध भी किया।

उन्होंने गंगा में गाद के कारण राज्य में बाढ़, सुखाड़ और दूसरे राज्यों की नदियों सेआयी बाढ़ का सामना करने की जानकारी दी गयी है. पीएम से मुलाकात के दौरान सौंपे तीन पेज के पत्र में सीएम ने कहा है कि फरक्का बराज की उपयोगिता का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है.

 

नीतीश ने कहा कि जब से फरक्का बांध का निर्माण हुआ है गंगा में सिल्टेशन हो रहा है। गाद बैठने के चलते नदी छिछली होती जा रही है, जिसके चलते नदी फैल रही है। गर्मी के दिनों में गंगा में बहुत कम पानी रहता है और बरसात में अधिक पानी आने पर बाढ़ आ जाती है। नदी की जलग्रहण क्षमता कम होती जा रही है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि फरक्का बैराज बन गया है तो उसे तोड़ना मुश्किल है। इस स्तर का फैसला आसानी से नहीं लिया जा सकता, लेकिन गंगा में सिल्टेशन मैनेजमेंट के लिए गंभीर प्रयास करने की जरूरत है।

दूसरे जगह की वर्षा से बिहार में आ रही है बाढ़
नीतीश ने कहा कि हमारे यहां बाढ़ का तीसरा खेप है। सबसे पहले नेपाल में हुई बारिश से सीमांचल की नदियों में बाढ़ आई। इसके बाद झारखंड में हुई बारिश से फलगू नदी में उफान आया और अब बिहार मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और अन्य जगहों में हुई बारिश के चलते बाढ़ का दंश झेल रहा है। हमलोग ऐसी स्थिति में हैं जहां बारिश चाहे नेपाल में हो, MP में हो या UP में बाढ़ की परेशानी बिहार को ही झेलनी होती है। यह सही मौका है एक्सपर्ट को भेजें और खुले मस्तिष्क से इस पर विचार करें।

 

राज्य के 152 प्रखंडों में 40 प्रतिशत से कम वर्षा

पत्र में मुख्यमंत्री ने बिहार काे सुखाड़ से निबटने के लिए उचित केंद्रीय सहायता की मांग करते हुए कहा है कि 15 अगस्त तक 152 प्रखंडों में औसत से 40% कम बारिश हुई है. इससे खरीफ फसल के प्रभावित होने की आशंका है. खरीफ फसल बचाने के लिए राज्य सरकार किसानों को डीजल अनुदान दे रही है. किसानों को पिछले कई साल से रबी और खरीफ फसल के लिए डीजल सब्सिडी दी जा रही है. पिछले 10 साल में दो वर्षों को छोड़ कर राज्य में वर्षापात 1000 एमएम के औसत से भी कम हुआ है, जो चिंताजनक है.

बाढ़ से बिहार बेहाल, लाखों लोग हो गये बेघर

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बिहार: बाढ से बिहार बेहाल है। लाखों लोग बेघर हो चुके हैं तो हजारों गाँवों में बाढ़ का पानी घुस चुका, साथ ही बहुत तेजी से चारों तरफ बाढ का पानी फैल रहा है। इस बार बाढ़ ने पिछले कई सालों का रिकॉर्ड तोड दिया है।

 

पटना जिले में सोमवार को गंगा, सोन व पुनपुन के जल स्तर में थोड़ी कमी दिखी, लेकिन अभी भी डेंजर लेवल से ऊपर है. गंगा के जल स्तर में 35 सेंटीमीटर की कमी आयी है. इधर केंद्रीय जल आयाेग ने पटना में मंगलवार की सुबह तक 20 सेंटीमीटर, बक्सर में 20 सेंटीमीटर और साहेबगंज में पांच सेंटीमीटर की कमी की संभावना व्यक्त की है, जबकि कहलगांव में 36 सेंटीमीटर पानी बढ़ने की आशंका है.

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  •  पटना जिले के पटना सदर, मोकामा व मनेर प्रखंड के दियारा क्षेत्र में बाढ़ का सर्वाधिक असर दिख रहा है.
    इन इलाकों की दो दर्जन से अधिक पंचायतों में रहने वाली हजारों की आबादी विस्थापित होकर विशेष रिलीफ कैंपों में रह रही है.
  • बख्तियारपुर से मोकामा तक एनएच पर कई जगह एक से डेढ़ फुट तक पानी चढ़ा हुआ है, जिसके चलते इस पर परिचालन पर लगी रोक बरकरार है. बाढ़ में एनटीपीसी कैंपस में भी एक फुट से ऊपर पानी आ गया है.

 

  • सोमवार को खगड़िया में जमींदारी बांध पानी का दबाव नहीं झेल पाया और टूट गया। वहीं गंगा में उफान से भागलपुर टापू जैसा बन गया है।
  • रोहतास के इंद्रपुरी बराज से रविवार को छोड़े गए 5 लाख क्यूसेक पानी के सोमवार की रात तक रोहतास की सीमा में आने से हालात बिगड़ने के आसार हैं।
  • आज कोईलवर और NH2(GT Road) पर बने डेहरी में नेहरू सेतू भी बंद है। जहाँ सुबह से ही हजारो वाहनों का लाइन लगा है। शाम तक ये जाम डेहरी से वाराणसी तक पहुच सकता है। दिल्ली से कोलकाता को जोड़ने वाला यह एकमात्र सेतु है।

 

 

  • वहीं राज्य के छपरा, आरा बक्सर, बिहारशरीफ, वैशाली, समस्तीपुर, बेगूसराय, भागलपुर, मुंगेर, लखीसराय, खगड़िया व कटिहार में बाढ़ की स्थिति अब भी गंभीर बनी हुई है.

 

जहां पानी घटने की खबर से लोगों कुछ राहत मिली तो मौसम के मिजाज को देख लोग फिर सहम गये। 

– राजधानी में सोमवार को पुरवैया हवा की रफ्तार 38 से 45 किमी प्रतिघंटे तक पहुंच गई। झारखंड और पश्चिम बंगाल से आए बादलों के कारण प्रदेश के पूर्वी-दक्षिणी इलाकों में भारी बारिश हुई।
– झाझा, गया, बोधगया, चेनारी, रफीगंज, जमुई, भभुआ व औरंगाबाद में 60 से 110 सेंटीमीटर तक बारिश हुई। पटना में सुबह से शाम तक तेज हवा के कारण अधिकतम तापमान 29.2 डिग्री सेल्सियस रहा।
– आर्द्रता 85 फीसदी पर होने के कारण लोगों को गर्मी से राहत मिली। राजधानी सहित आसपास के इलाकों में मंगलवार को हल्की बारिश की संभावना है।

 

पानी में थोडी कमी के बाद फिर सोन नदी में उफान 

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– 24 घंटे से लगातार नीचे जा रही सोन सोमवार को अचानक उफना गई। दिन के 10 बजे तक इसका जलस्तर घट रहा था पर दो घंटे में ही 1.5 लाख क्यूसेक बढ़ गया। रात 12 बजे 3.87 क्यूसेक पहुंच गया।
– सोन में पानी पहुंचने के बाद सरकार ने अलर्ट जारी कर दिया है। सभी अधिकारियों और इंजीनियरों को 24 घंटे सतर्क रहने का निर्देश दिया है।
– गंगा में उफान के बाद तटबंधों पर भारी दबाव पैदा हो गया है। कैमूर में कर्मनाशा और दुर्गावती नदियों में उफान से कई गांव घिर गए हैं।

– सोमवार शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक यह 50.17 मीटर पर टिका था। पुनपुन भी लाल निशान से 181 सेंटीमीटर ऊपर है। पटना और आसपास के इलाकों में हालात बिगड़ते जा रहे हैं।

बाढ़ से प्रभावित पटना समेत 12 जिलों के लिए अगले 24 घंटे अहम हैं क्योंकि सोन में पानी बढ़ने से गंगा का जलस्तर बढ़ना लाजिमी है।

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मोदी ने की नीतीश से बात, पीएम बोले- देंगे हरसंभव सहायता

– बिहार में लगातार गंभीर होती जा रही बाढ़ की स्थिति पर केंद्र नजर रखे हुए है। प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात की और हर तरह की मदद का भरोसा दिया।
– इससे पहले प्रधानमंत्री ने ट्वीट में कहा कि स्थिति पर केंद्र की नजर है। राहत और बचाव में केंद्र पूरी मदद करेगा। गृह मंत्री राजनाथ सिंह सरकार के संपर्क में हैं।
– वहीं रविवार की रात राजनाथ ने मुख्यमंत्री को फोन करके हालात की जानकारी ली। नीतीश ने उनसे स्थिति के आकलन के लिए विशेषज्ञों का दल भेजने का अनुरोध किया।
– नीतीश कुमार मंगलवार की सुबह दिल्ली जाएंगे। बिहार में बाढ़ की गंभीर स्थिति के मुद्दे पर मुख्यमंत्री की पीएम मोदी से भी मुलाकात हो सकती है।

बारीश नेपाल में और बाढ़ का कहर बिहार में, लाखों लोग बेहाल….

फोटो सहरसा जिला से

फोटो सहरसा जिला से

नेपाल की तराई में लगातार हो रही बारिश से बिहार में बाढ़ के हालात बदतर होते जा रहे है। राज्य के आठ ज़िलों में बाढ़ की स्थिति भयावह बनी हुई है। कोसी और सीमांचल इलाके में कोसी, महानंदा, बखरा, कंकई, परमार सहित सभी नदियां उफान पर हैं।

आपदा प्रबंधन विभाग के संयुक्त सचिव अनिरूद्द कुमार ने बताया कि सुपौल, अररिया, किशनगंज, दरभंगा सहित आठ ज़िलों के 1324 गांव की लगभग पांच लाख की आबादी बाढ़ से प्रभावित है.

बाढ़ में फंसे लोगों के लिए राहत और बचाव कार्य जारी है. बाढ़ प्रभावित इलाकों में एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें तैनात कर दी गई हैं.

मगर सहरसा से स्थानीय लोग  बताते हैं कि सरकार के बचाव कार्य की रफ्तार बहुत धीमी है जबकि हालात लगातार काबू से बाहर होते जा रहे हैं.

इस बीच गंडक बराज से मंगलवार रात 5.50 लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने की भी जानकारी मिली है.

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बाढ़ के स्थिति का जायजा लेने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई सर्वेक्षण करेंगे।

यह बाढ हर साल आती है।  बारिश तो नेपाल में होता है मगर उसका कहर बिहार झेलता है।  हर साल बिहार के लाखों गरीब लोग इस से प्रभावित होते हैं और लाखों-करोडो का नुकसान होता है।  हर बार बाढ़ आने पर नेपाल के साथ इस मुद्दे को सुलझाने की बात कही जाती है मगर नतीजा वही होता है।  विदेश निती पर मोदी सरकार काफी सक्रीय है।  सरकार को इस मुद्दे को भी अपने विदेश निती में शामिल कर नेपाल के साथ बात कर इसका समाधान करना चाहिए।  कबतक बिहार बाढ़ का कहर झेलता रहेगा और कबतक गरीब लोग तबाह होते रहेंगें? 

 

मुसीबत में अपना बिहार, कोसी नदी के प्रकोप से 200 घर बह गये

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बिहार के सुपौल जिले में कोसी के उफान के कारण निर्मली के घोघरिया पंचायत में 200 से अधिक घर बस गए है। कई पंचायतों के निचले इलाकों के गांवों में बाढ़ का पानी घुस गया है। बाढ़ के कारण ग्रामीण दहशत में आ गए है। कई गांवों के लोग उंचे स्थान पर जाने लगे है।

 

जानकारों ने बताया की शनिवार को कोसी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा था. शाम के चार बजे कोसी का जलस्तर 2 लाख 32 हजार 595 घनमीटर प्रति सैकंड बढ़ते क्रम में रिकॉर्ड दर्ज किया गया जो इस साल के बाढ़ अवधि के दौरान सबसे अधिक जलस्तर है.

– इधर, बाढ़ के बढ़ते खतरे के बाद सरकार भी सतर्क हो गई है। नदियों पर सेटेलाइट से नजर रखी जा रही है।
– शनिवार शाम 4 बजे कोसी के जलस्तर में 2 लाख 32 हजार 595 घनमीटर प्रति सेकंड की रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई।

– इधर, नेपाल बराज द्वारा 2 लाख 50 हजार क्यूसेक पानी छोड़े जाने से गोपालगंज जिले में गंडक नदी का जलस्तर लगातार बढ़ने लगा है।

– औरंगाबाद जिले के रुद्र बिगहा गांव में नौ घर पानी के कारण गिर गए। कई परिवारों ने घर छोड़ कर दूसरे के घरों में पनाह ली है।