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Dil Bechara Review: सुशांत के अभिनय की गहराई देख पता चलता है कि कितने टैलेंटेड थे वो

हमारे हीरो सुशांत की आखिरी फ़िल्म देखने मे थोड़ी हिचकिचाहट तो हुई है सबको, उनके देहांत के बाद आखिरी बार उनको स्क्रीन पर देखना, बहुत भावनात्मक रहा ऑडियन्स के लिए। ट्विटर फेसबुक इंस्टाग्राम सब सुशांत की फ़िल्म के फोटो, और लोगों के विचारों से भरा हुआ था। कल की शाम लोगों ने इस फ़िल्म के बहाने सुशांत के जीवन को भी सेलिब्रेट किया।

यदि बात करे फ़िल्म की, तो फ़िल्म जॉन ग्रीन के उपन्यास “द फाल्ट इन आवर स्टार्स”, का हिंदी रूपांतरण है, और सुशांत के साथ साहिल वैद, संजना सांघी, स्वास्तिका मुखर्जी और शाश्वत चटर्जी इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका में है। फ़िल्म की कहानी है कैंसर पीड़ित किजी और मैनी की, जो अचानक एक दिन मिलते है, दोस्ती होती है और ये दोस्ती प्यार में बदल जाती है। लेकिन इस परफेक्ट सी लगने वाली कहानी का सबसे बड़ा दुश्मन है कैंसर। किजी का एक फेवरट सिंगर है – अभिमन्यु वीर, जिसने एक गाना अधूरा छोड़ दिया। मरने से पहले किजी उससे मिलकर इसके बारे मे पूछना चाहती है, जिसके लिए मैनी उसे पेरिस ले जाता है।

जहां इस कहानी को कई लोग पढ़ चुके है और इसपर बनी हॉलीवुड की एक फ़िल्म भी देख चुके है, इस कहानी को हिंदी सिनेमा के हिसाब से उतारना कहीं न कही मुश्किल रहा होगा। मुकेश छाबड़ा, जो निर्देशक है, बॉलीवुड के जाने माने कास्टिंग डायरेक्टर है, और इस फ़िल्म की कास्टिंग काफी ऑन पॉइंट है।

बात करे सुशांत की, तो उन्होंने ज़बरदस्त अभिनय किया है। कहीं न कही उनके चेहरे के हाव भाव, फ़िल्म के इमोशनल होते टोन को पकड़ती है। सीन दर सीन उनका अभिनय निखरता जाता है। फ़िल्म के आखिरी 20 मिनट में उनका अभिनय रुला देता है। उनका कैरेक्टर जितना सीधा दिखता है, वैसा नहीं है, फ़िल्म के बढ़ने के साथ साथ उनके कैरेक्टर की गहराई बाहर आती है, जो काफी खूबसूरत है।

शायद मैनी को एक अच्छे और खूबसूरत साथी की ज़रूरत थी इस आखिरी सफर के लिए और किजी यानि संजना सांघी ने बेहतरीन अभिनय किया और किजी के किरदार को जीवंत कर दिया। काफी मैच्योर परफॉर्मेंस दी है उन्होंने। साहिल वैद और बाकियों ने फ़िल्म की गहराई के हिसाब से बेहतरीन काम किया है

फ़िल्म का निर्देशन बहुत अच्छा किया है मुकेश छाबड़ा ने, लेकिन जो फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी है, वो फ़िल्म में एक बहुत अहम किरदार निभाती है, जमशेदपुर की गलियों से पेरिस शहर तक, फ़िल्म की खूबसूरती को चार चांद लग जाते है, और फ़िल्म के कुछ सीक्वेंस एकदम ड्रीमी है, और फ़िल्म के इमोशन को बहुत अच्छा कैप्चर करती है। ए आर रहमान के संगीत और गानों के बोल काफी खूबसूरत है और कहानी और किरदारों का अच्छा साथ निभाते है।

सच कहें तो फ़िल्म को काफी बेहतर तरीके से बनाया गया है और सुशांत से जुड़ी लोगों की भावनाएं, फ़िल्म देखने के एक्सपीरियंस को और खूबसूरत बनाती है। कहीं न कहीं, सुशांत के रोल और उनके अभिनय की गहराई को देख के पता चलता है कि कितने टैलेंटेड थे वो, और बॉलीवुड ने क्या खोया है।

उनके नाम आखिरी संदेश..

हमलोग बहुत कोशिश किए कि नोस्टाल्जिया में ना जिए, लेकिन तुम्हारी फिल्म देखने के बाद ना जाने काहे फिर से नोस्टाल्जिया में चले गए। पूरे सोशल मीडिया पर तुम ही छाए हो, बस यहीं लगता है कि काश तुम होते, काश दिल बेचारा तुम्हारी आखिरी फ़िल्म नहीं होती। फ़िल्म को देखकर बार -बार यही लगता है कि जैसे तुम अपनी ही कहानी कह रहे हो। कभी तुम पर गुस्सा भी आता है कभी तुम पर प्यार भी आता है, बस बार बार यही सोचने लगते है कि तुमको छोड़ के नहीं जाना चाहिए था।

तुम फिल्म में पूछते हो कि तुम मिस करोगे आज आ कर देखो पूरा दुनिया तुमको मिस कर रहा है। आज पूरा मीडिया तुम पर बहस कर रहा है कोई तुम्हे श्रद्धांजलि दे रहा है तो कोई तुम्हारे लिए इंसाफ मांग रहा है, लेकिन सब बातों को सुनकर देखकर यही लगता है कुछ भी हो तुम अब वापस तो नहीं आओगे।

हमलोग धोनी पर एक फिल्म देखकर संतुष्ट नहीं थे, तुम्हीं बताओ धोनी पर एक फिल्म काफी था क्या? कब से पार्ट 2 का इंतज़ार कर रहे थे लेकिन तुम तो बीच में ही छोड़ के चल दिए।

तुम बिहारी थे ना तो तुमको पता है ना कि बिहारी जिगरा कितना ढीठ होता है। तुमको पता तो है कि हर साल लाखों लोग आई.ए. एस बनने दिल्ली जाता है कई लोग बन नहीं पाता फिर भी हमलोग का जज़्बा ख़तम नहीं होता। हमलोग पग- पग पर ठोकर खाते है, इतने झंझावात सहने के बावजूद भी शान से कहते हैं एक बिहारी सब पर भारी। तुम करोड़ों बिहारियों के शान थे, आज भी हो लेकिन तुम्हारा ऐसे असमय जाना हम बिहारियों को सबसे ज्यादा आहत किया है।

– ऋतु और आदर्श

बुड़बक बिहारी बेवकूफ बनता है, खुद का मजाक उड़ता देखकर बत्तीसी दिखाता है 

क्या बॉलीवुड बिहार से नफ़रत करता है? सवाल बेहद अटपटा लग सकता है लेकिन सच्चाई तो यही लगती है। दरअसल अभी हाल में दो फ़िल्में बिहार पर बनी है। एक रिलीज हो गयी, दूसरी होने वाली है। चेतन भगत की लिखी किताब हाफ गर्लफ्रेंड पर बनी फिल्म में ये दिखाया गया है कि बिहारी को अंग्रेजी नही आती। वही अनारकली ऑफ़ आरा में बिहारी को ‘रंडी नाच’ से मशहूर समूह के नचनियां के रूप में पेश किया गया  है। फेमिनिस्ट का लिबास ओढ़कर फिल्म बिहारियों को जिस रूप में दिखाती है, कमोबेश यह वही रूप है, जिसे गैर बिहारी बिहारियों के चित्रण करते नजर आते है। यहाँ मजेदार बात यह है कि फ़िल्में देखकर लहालोट वो हो रहे है, जो गाहे बगाहे बिहारी स्वाभिमान की दुहाई देते फिरते है और बात बात पर बिहार को जबरदस्ती बदनाम करने का रोना रोते रहते है।

 

अंग्रेजी में एक शब्द होता है, जिसे Narrative बोलते है। एक सिलसिलेवार तरीके से किसी चीज को पेश करना, जिससे चीजे अपने तरीके से नजर आये। किसी की छवि बिगाड़ना है तो उसके किसी कमजोर पक्ष को इतना उजागर कर दो कि वह सरेआम उपेक्षित और उपहास का शिकार बन जाए। यही वह प्रवृति है जो किसी एक परीक्षा सेंटर पर हुई चोरी की तस्वीर एक झटके में लाखों लोगों की मेहनत को फ़र्ज़ी ठहरा देती है। एक हसोड़ नेता से पुरे बिहार को हँसी ठिठोली का पर्याय मान बैठती है।

देशभर में बिहार की छवि ख़राब करने में जितना हाथ बिहार के नेताओं का रहा है, मीडिया का रहा है, उससे कम फ़िल्मी दुनिया का नही है। जैसे हॉलीवुड में भारत दीखता है, कुछ उसी तर्ज पर बॉलीवुड बिहार को हमेशा पिछड़ा, गरीब,भिखमंगा तो समझता ही है, वह “बिहारी” पहचान को भी हमेशा एक उपहास और बदनीयती से ही पेश करता रहा है। सिवाए इक्का दुक्का उदाहरण को छोड़कर हमेशा एक नकारात्मक और बिहारियों को जलील करने के उद्देश्य से ही फ़िल्में बनायी गयी। दुःखद तथ्य यह है कि ऐसी फिल्में बनाने में बिहारी आगे रहते है,उनके चेहरे होते है।

 

अब भला फिल्म बने पंजाब पर, उसमें एक बिहारी लड़की को मजदुर की वेश में दिखाना क्या मज़बूरी हो सकती है निर्देशक के लिए, वह भी घटिया तरीके से भोजपुरी बोलते हुए। गंगाजल से लेकर अपहरण तक, हाल के वर्षों में बिहार केन्द्रित बॉलीवुड की चर्चित फिल्मों में अधिकतर बिहार के नकारात्मक चित्रण पर ही केन्द्रित रही। गैंग्स ऑफ़ वासेपुर झारखंड की कहानी थी लेकिन वह इसी बिहारी खेप में खप गया। शूल, दामुल, अंतर्द्वंद जैसी फ़िल्में बिहार के नकारात्मक पक्ष को ही दिखाने का काम किया। मांझी कुछ हद तक धारा से अलग दिखी मगर छुआछुत का तड़का लगाना निर्देशक नही भूले। ये तो कुछ प्रचलित नाम है, न जाने कितनी ऐसी फ़िल्में बनी, जिसने बिहार की बोली को सदैव उपहास के रूप में चित्रित किया। भला पीके को कौन भूल सकता है। यहाँ गौर करने वाली बात है कि बिहार पर केन्द्रित कई फिल्म बनाने वाले प्रकाश झा कोई फिल्म बिहार में शूट नही करते। मतलब कोई आर्थिक लाभ भी नही। मिली तो केवल बदनामी ही बदनामी। बिहार का हाल गाँव के उस कहावत में फिट बैठती है कि “जातों गवइली, भातो न खईली”।

कला की रचनात्मकता सदैव संदेह से परे होनी चाहिए। लेकिन एकपक्षीय चित्रण और वह भी नकारात्मक, एक संदेश देता है कि मामला गड़बड़ है। अपहरण, भ्रष्टाचार, ग़रीबी बिहार की सच्चाई है। नेता, पुलिस, अपराधी का गठजोड़ बिहार के हर कोने में है। कर्पूरी ठाकुर के अंग्रेजी मुक्त शिक्षा से प्रभावित पीढ़ी अंग्रेजी अंग्रेजों की तरह नही बोलती। मगर तस्वीर का दूसरा पहलु भी है। देश के बाकी हिस्सों में भी यही समस्याएं है। लेकिन जान-बुझकर बिहार को ही अपने निशाने पर लेना, ये तो अतिरेक है न! सभी बिहारी को अंग्रेजी नही आती, ये संदेश देने का अर्थ मानसिक दिवालियेपन और बिहार के प्रति पूर्वाग्रह के अतिरिक्त और क्या हो सकता है। देश दुनिया को दिखाए जाने योग्य कई अन्य पहलू भी है बिहार में लेकिन वह न तो बॉलीवुड के खांचे में फिट बैठती है, न ही यह  उनके “बिहारी” सेन्स को दिखाने में मजेदार लगता है। बुड़बक बिहारी बेवकूफ बनता है, अपने ही भाषा व बोली का मजाक उड़ता देखकर बत्तीसी दिखाता है और  पैसा उड़ाकर चला आता है, अपनी ही लोगों को मजाक का पात्र बनाने के लिए।

 

मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतजार है कि जब बॉलीवुड रोमांस करते सीन बिना बिहार की किसी बोली की कॉपी करते बिहार में शूट करेगी और बिहार उस फिल्म के केंद्र में होगा। मुझे बॉलीवुड सच में एंटी बिहारी नही लगेगा, जब वह भोजपुरी जैसी खुबसूरत भाषा और करोड़ों की अज़ीज़ बोली को नकारात्मक व व्यंग्यात्मक तरीके से पेश नही करेगी। मुझे वह दिन ज्यादा अच्छा लगेगा जब मुंबई के किसी सिनेमाघर में अनारकली के आरा की जगह महज 22 वर्ष में आईआईटी में प्रोफेसर बनने वाले तथागत अवतार तुलसी पर बनी फिल्म की चर्चा सुनने को मिलेगी। वह उस क्षण का इंतजार रहेगा, जब बॉलीवुड चाणक्य पर केन्द्रित फिल्म बनाकर उसे परदे पर दिखाकर बिहार की प्रतिभा का भान कराएगी। वह पल मेरे लिए बेहद रोमांचकारी होगा, जब नालंदा विश्वविद्यालय के गौरव, आर्यभट्ट की प्रतिभा और वैशाली की आम्रपाली के ऊपर बगैर किसी ऐतिहासिक छेड़छाड़ के फिल्म बनेगी। बिहार के नौजवानों की कहानी किसी परीकथा जैसी मिल जायेगी। खोजिये उन बिहारियों को जो अंडा, भुजा बेचने वाले परिवारों से थे लेकिन अपनी मेहनत लगन से आज आईएएस बनकर, उद्योगपति के रूप में, प्रवासी भारतीय के रूप में देश का नाम रौशन कर रहे है।

पता नही ये स्वप्न कभी पूरा होगा भी या नही, लेकिन तबतक स्व. गिरीश रंजन जैसे फिल्मकार याद आते रहेंगे जो बिहार के लिए बड़ी फ़िल्में नामचीन कलाकारों को लेकर नही बना पाए लेकिन “कल हमारा है” जैसी फिल्म और पाटलिपुत्रा से पटना तक, विरासत, बिहार इतिहास के पन्नों में जैसी डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाकर बिहार के  सकारात्मक व गौरवशाली पक्ष को दिखाते रहेंगे, जो न केवल देश को बिहार के अतीत व उसके योगदानों की याद दिलाएगा, बल्कि बिहारियों को प्रेरित भी करेगा।

 

– अभिषेक रंजन  (समाजिक कार्यकर्ता)

 

Pff: भगीरथ बन बिहारी फिल्म उद्योग में जान फूंक गए गंगा कुमार

फ़िल्में, फ़िल्मी सितारे, अवार्ड्स और प्रेस! अमूमन फ़िल्म फेस्टिवल्स में यही तो होते हैं| इनसब के साथ जब जज्बात, संभावनाएँ और यादें जुड़ जाती हैं तो बन जाता है ‘पटना फ़िल्म फेस्टिवल’| शायद इन्हीं तमाम चीजों का संगम न हो सका था तभी तो 2007 से शुरू हुए पटना फ़िल्म फेस्टिवल की इतनी व्यापक चर्चा न ही मीडिया में हुई, न फ़िल्मी गलियारे में और न जनता के बीच| ये पहली मर्तबा था जब बिहार ने किसी फ़िल्म फेस्टिवल को इतने करीब से देखा और इसकी सफलता का साक्षी बना| बिहार के तमाम ‘सोशल मीडिया साइट्स’ पर छाया रहा यह और यहाँ छाए रहे बिहार के ‘सोशल मीडिया साइट्स’|

Pff
‘हमारा बिहार, जय बिहार’ की थीम के साथ शुरू हुए इस महोत्सव की सफलता का आकलन हम इसी बात से कर सकते हैं कि कोई मकाऊ में अपने फ़िल्म की स्क्रीनिंग छोड़ कर पटना की फ्लाइट पकड़ लेता है तो कोई मराठी बोलते-बोलते अपनी आने वाली भोजपुरी फिल्म के प्रमोशन के लिए इस बिहार आना स्वीकार करता है| कोई इमोशनल होकर मन की बात कह जाता है तो कोई गर्व महसूस करता है यहाँ की बदली तस्वीर देखकर| पद्मविभूषण से सम्मानित नृत्यांगना डॉ. सोनल मानसिंह 20 साल बाद अपनी प्रस्तुति के साथ पटना आईं|
बिहार के लिए तो ये नई बात थी ही, यहाँ आये तमाम सितारों ने कुबूला कि यहाँ आना उनके लिए भी सुखद और नया अनुभव था| जमीं से जुड़े सितारों ने अपने पुराने दिनों को याद किया, और यादें ताज़ा करने के लिए पटना से दूर भी निकल पड़े|
इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आईएएस और बिहार राज्य फ़िल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार के प्रयासों की जितनी सराहना की जाये, कम है| उनके प्रयासों के कारण ही यह ‘फ़िल्म फेस्टिवल’ इतना बड़ा बना और सबकी नज़र में आया|

गंगा कुमार

गंगा कुमार

उम्मीद है बिहार की बदलती तस्वीर में सिनेमा का एक नया रंग भरेगा और इसकी खूबसूरती बढ़ाएगा| सरकार आगे भी ऐसे ‘सांस्कृतिक आयोजनों’ के जरिये लोगों को अपनी जमीं से जुड़ने का मौका देती रहेगी|
और क्या-क्या हुआ इस बीच और क्या-क्या कहा इन सितारों ने अपने बिहार के लिए, क्षेत्रिय भाषा में बनने वाली फिल्मों के लिए, इसकी तमाम जानकारी आपतक ‘अपना बिहार’ के माध्यम से अंकित कुमार वर्मा और अनुपम पटेल लाते रहे हैं|

आज प्रस्तुत है पटना में हुए सात दिवसीय ‘पटना फ़िल्म फेस्टिवल’ में सितारों के उद्गार की कुछ झलकियाँ-

  • -> रविन्द्र भवन में हुए ‘ओपन हाउस डिबेट’ में अभिनेता ‘कुणाल सिंह’ कहते हैं- “भोजपुरी एक मजबूत भाषा है, जो दुत्कार के बाद भी जिंदा है| हिंदी सिनेमा में एक दौर ऐसा था कि उन्होंने भोजपुरी को बाजार बनाकर उपयोग किया, लेकिन हम पिछड़ गए| भोजपुरी सिनेमा की दूसरी बड़ी समस्या थिएटर भी है, जो निम्न स्तर के होते हैं| इसलिए एक बड़ा वर्ग भोजपुरी फिल्मों के लिए थिएटर नहीं जाता है| बिहारी होने पर गर्व कीजिए आपकी भाषा (भोजपुरी) बहुत मजबूत है| हिंदुस्तान में हिंदी के बाद सबसे ज्यादा बोली भाषा है| अपने संस्कृति और रीति-रिवाज से प्यार कीजिए इसे जिंदा रखिये और अश्लीलता को बिलकुल नकारिये|”
  • -> ‘अंजनी कुमार’ युवाओं पर उम्मीद जताते हुए कहते हैं- “भोजपुरी फिल्मों के विकास के लिए आज साहित्य, थिएटर और सिनेमा पर विशेष ध्यान देना होगा| युवा फिल्म मेकर शॉर्ट और डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाकर यूट्यूब के जरिए भी भोजपुरी सिनेमा को आगे ले जा सकते हैं|”
  • -> भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार कहे जाने वाले अभिनेता ‘रवि किशन’ प्रेस वार्ता के दौरान भावुक हो गये| उन्होंने गंगा कुमार को भोजपुरी सिनेमा का भागीरथ बताया| भोजपुरी सिनेमा की खामियाँ बताते हुए वो कहते हैं- “भोजपुरी कलाकारों और डायरेक्टरों में एकता की कमी है। ज्यादातर कलाकार अशिक्षित हैं जिस कारण भोजपुरी का स्तर गिरा है। इसके लिए मैं सबमें अपने स्तर से एकता लाने की कोशिश करूँगा। भोजपुरी में कहानी नहीं होने से उसका ग्रोथ रुक गया है। फिल्मों में बस नाच गाना और व्लगैरिटी दिखा कर पैसे बटोरे जा रहें है। भोजपुरी में बिरसा मुंडा, कुवंर सिंह पर फिल्में बनेंगी। मैं भोजपुरी को नेशनल अवार्ड दिलाना चाहता हूं। भोजपुरी इंडस्ट्री में जुनून, जज्बा तो हैं, मगर सपोर्ट और संसाधन नहीं है। हमारी फ़िल्म को मल्टीप्लेक्स में सहित अच्छा सिनेमा नहीं मिलते। दूसरी भाषाओं में भोजपुरी से ज्यादा फूहड़ फिल्में बनती हैं लेकिन कोसा भोजपुरी को ही जाता है। जबकि दूसरी भाषा की फिल्मों को कला के नजरिए से देखा जाता है। भोजपुरी में अच्छी फिल्म भी बन रही हैं फिर भी मैं भोजपुरी उद्योग में फैली गंदगी को दूर करने के लिए मोर्चा खोलूंगा।“ उन्होंने निवेदन भी किया कि भोजपुरी में बन रही एल्बम को भोजपुरी एंडस्ट्री ना जोड़ें।
  • -> फिल्म निर्माता ‘मोनिका सिन्हा’ ने कहा- “अश्लील फिल्मों को बिलकुल नकारिये, दर्शकों को इसके खिलाफ स्ट्रांग होना होगा| जबतक आप स्ट्रांग नही होंगे हम कुछ नही कर सकते| ऐसे फिल्मों से समाज पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है| इससे हमारा समाज सौ कदम पीछे जा रहा है| सरकार को भी इसपर ध्यान देना होगा| सरकार शराबबंदी को तरह अश्लील फिल्मों पर रोक लगाये|”
  • -> डायरेक्टर ‘आनंद गहतराज’ ने कहा- “हमारें यहां भी अच्छी फिल्में है। हमें बस उसे सही प्लेटफार्म तक पहुँचाना है।“
  • -> निर्देशक व विधायक ‘संजय यादव’ कहते हैं- “भोजपुरी में अधिकतर शब्द दो अर्थी होते हैं, लेकिन हम उसे गलत रूप से सोचते हैं। बिहार के प्रति डायरेक्टरों का झुकाव हुआ है। आने वाले दिनों में कई भोजपुरी फिल्म की शूटिंग बिहार में होगी|”
  • -> ‘नीरज घेवन’ बिहार में शूटिंग करने की स्वीकारोक्ति देते हुए कहते हैं- “हम बिहार में शूटिंग के तैयार है ये जरुरी नहीं हैं कि हम बिहार में शूटिंग के लिए पर्यटन स्थल को ही चुनें। मीडिया को बिहार की अच्छी छवि दिखानी होगी। मुम्बई में लोगों के बीच गलत छवि पेश की गई है। जबकि बिहार प्रोफेशनल राज्य है। यहाँ वैसा कुछ नहीं हैं|”
  • -> दिलवाले, शिवाए समेत कई बड़ी फिल्मों में एक्टिंग कर चुके अभिनेता ‘संजय मिश्रा’ कहते हैं- “अभिनेता संजय मिश्रा कहा कि बिहार के पास कोई अपना स्लोगन नहीं है जैसे राजस्थान का स्लोगन है पधारो म्हारे देश। यहाँ स्लोगन की सख्त जरुरत है, बिना बुलाये आपके यहाँ आकर कोई शूटिंग नहीं करेगा। फिलहाल ही एक फिल्म की शूटिंग में बिहार को दर्शाने के लिए 1 करोड़ खर्च कर बिहार का सेट बनाया गया था| क्षेत्रीय फिल्मों के विकास में सरकार बड़ी भूमिका निभा सकती है| फिल्मों के विकास के लिए कॉरपोरेट की बड़ी जरूरत है लेकिन सिर्फ ‘जय बिहार’ कहने भर से निर्माता बिहार में आकर फिल्म नहीं बनायेंगे बल्कि वैसा माहौल बनाना होगा| सही माहौल बना तो बिहार में फिल्में जरुर बनेंगी| पटना फिल्म फेस्टिवल एक शानदार पहल है|”
  • -> भोजपुरी फिल्मों में अश्लीलता पर जवाब देते हुए भोजपुरी सुपरस्टार ‘दिनेश लाल यादव’ ने कहा- “यह सही है की कुछ लोगों ने यहाँ अश्लील फिल्मे बनायी और इस बात को मै नही नकार सकता हूँ। ऐसे लोगों को पता ही नहीं था की भोजपुरी क्या है, भोजपुरी की कल्चर क्या है, यहाँ के लोगों की चाहत क्या है| ऐसे फिल्म बनाने बनाने वालों का जबर्दस्त नुकसान हुआ, वैसे बड़े-बड़े बैनर आये और चले गए| आज भोजपुरी सिनेमा में वही लोग कार्यरत हैं जो अच्छी फिल्मे बना रहे हैं, यहाँ के रहन सहन को जानते हैं| भोजपुरी फिल्मों में वही फिल्म सफल हो पाती है जो फिल्म पुरे परिवार के साथ देखा जा सकता है| भोजपुरी फिल्मों में काफी बदलाव हुआ है और आगे भी होगा| आज भोजपुरी फिल्म सिर्फ बिहार और यूपी तक सीमित नही है, देश के हर प्रांत में भोजपुरी फिल्मे चल रही है|”

 

  • -> ‘जब वी मेट’ और ‘हाइवे’ जैसी फिल्मों के निर्देशक ‘इम्तियाज अली’ कहते हैं- “इंसान की बुद्धि का सबसे ज्या‘द विकास बिहार में होता है। ऐतिहासिक परिदृश्यन में भी जो लोग बिहार से हुए हैं, वे काफी प्रभावित करते हैं|”
  • -> यहाँ ‘बिहार रत्न’ के सम्मान से नवाजे जाने के बाद मशहूर अभिनेता मनोज वाजपेयी ने कहा- “मनोरंजन सिर्फ नाच गाना नहीं होता, मनोरंजन अच्छी कहानी और अच्छी फिल्में भी होती हैं। दो दशकों से हम ये लड़ाई लड़ रहे हैं। पिछले दिनों किसी ने मेरी फिल्म बुधिया सिंह और अलीगढ को मनोरंजक नहीं कहा। तब मुझे लगा कि मुझे अपनी लड़ाई और लड़नी है। ये फिल्में बच्चों के विकास में बाधक नहीं हैं। इन फिल्मों को देख कर बच्चे अपने भविष्य को सवार सकते हैं। बाधा तो वो फिल्मे हैं, जो बच्चों को समाज से अलग करता है। थियेटर करने की चाहत में पढ़ायी के बहाने पटना छोड़े 30 साल हो गए। इस दौरान यहां कोई ऐसा बड़ा आयोजन होते नहीं देखा था। पटना में कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम करना मुश्किल होता था और काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन पटना फिल्म फेस्टिवल के इतने बड़े आयोजन को देख कर गर्व महसूस हो रहा है। फिल्म फेस्टिवल दर्शकों से, समाज से, फिल्मकारों के समाज से संवाद स्थापित करने का एक कारगर साधन है। फिल्मों को लेकर छोटे शहरों सिनेमा के प्रति नजरिया बदला है, वो काफी सराहनीय है। इसलिए मैंने बड़े शहरों की और देखना बंद कर दिया है|”

  • -> नृत्यांगना डॉ. सोनल मानसिंह कहती हैं- “बिहार सांस्कृतिक रूप से फिर से उभर कर सामने आ रहा है। बिहार से मेरे पुराने संबंध रहे हैं। मैं 20 साल बाद यहां अपनी प्रस्तुति दे रही हूं। बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार का ने एक अनूठा प्रयोग किया है, जो सराहनीय है। अमूमन फिल्म महोत्सव के समापन सत्र फिल्मों के नृत्य से संपन्न होता है, लेकिन यहां समापन मेरे नृत्य से हो रहा है। बिहार बोध सर्किट में आता है। अगर यहां एक बुद्धिस्टि फिल्म फेस्टिवल का भी आयोजन होता, तो ये राज्य और पर्यटन के लिहाज से भी हितकारी होगा|”
  • -> अभिनेत्री सारिका ने भी फिल्म फेस्टिवल की सराहना की और कहा- “ऐसे आयोजन लगातार होते रहने चाहिए|”
  • -> आपन बिहार के फेसबुक पेज पर लाइव आये अभिनेता पंकज त्रिपाठी जी कहते हैं- “बिहार की छवि बदल रही है| इस आयोजन से फिल्मकार बिहार की नई छवि लेकर जा रहे हैं| संभावना है बिहार को लेकर अच्छी फ़िल्में भी बनेंगी|”

-> आईएएस ‘गंगा कुमार’ ने परिचर्चा में शामिल होते हुए कहा- “सरकार अपनी नई फिल्म नीति के तहत फिल्म मेकर्स को हर वो बेसिक चीजें उपलब्ध कराएगी, जिनकी उनको जरूरत है|”

बिहार के ऐतिहासिक भूमि वैशाली में रोमांस करने आ रही है बॉलीवुड की सबसे हसीन जोड़ी

फरवरी में दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह वैशाली की ऐतिहासिक भूमि पर रोमांस करते और युद्ध करते नजर आएंगे। वैशाली की जमीन पर फिर एक बार हाथियों पर सवार योद्धा एक दूसरे को धूल चटाते नजर आएंगे और घुड़सवार सेनाएं तलवारों के जौहर दिखाएंगी। मशहूर निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली की बहु प्रतीक्षित बायोपिक फिल्म पद्मावती के मुख्य दृश्यों को बिहार में फिल्माया जायेगा। फरवरी में वैशाली में हिन्दी फिल्म पद्मावती की शूटिंग की जाएगी। इसमें रणवीर और दीपिका रोमांस और युद्ध करते नजर आएंगे।
इसके लिए फिल्म निर्माताओं की ओर से वैशाली जिला प्रशासन से संपर्क साधा गया है। जिला प्रशासन को प्रोडक्शन से जुड़ी टीम ने शूटिंग के बारे में जानकारी दी है।वहीं पुलिस की मानें तो विभाग को इसकी सूचना मिल गयी है. फिल्म के  प्रमुख भाग की शूटिंग की जानी है जिसमें सैकड़ों जूनियर आर्टिस्ट और हाथी घोड़े शामिल होने वाले हैं।
पद्मावती फिल्म की होगी शूटिंग

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फिल्म से जुड़ी रिसर्च और प्रोडक्शन टीम ने हाजीपुर के साथ वैशाली के कुछ इलाकों का दौरा भी किया है। गौरतलब हो कि यह अलाउद्दीन खिलजी और महारानी पद्मावती पर बन रही एक बॉयोपिक फिल्म है। जिसे संजय लीला भंसाली निर्देशित कर रहे हैं।हाल में भंसाली की एक फिल्म बाजीराव मस्तानी काफी हिट साबित हुई है। भंसाली फिल्मों को बड़े कैनवास पर बनाते हैं, जिसमें भव्यता और विषय के हिसाब से सेट पर काफी खर्च किया जाता है।

फरवरी में आ सकती है टीम
सूत्रों की माने तो फरवरी 2017 में दीपिका और रणवीर के वैशाली में फिल्म की शूटिंग के लिये आने की संभावना ह। बताया जा रहा है कि प्रोडक्शन की टीम ने जिला मुख्यालय में एक होटल को भी पूरी यूनिट के लिये बुक कर लिया है। हालांकि इसकी अधिकारिक पुष्टि नहीं हो पायी है। फिल्म का विषय काफी रोचक है। आज भी महारानी पद्मावती के जौहर की गाथा लोग सुनते और ग्रामीण इलाकों में गाते हैं। शूटिंग को हाथी, घोड़ा और ऊंट के साथ बड़े स्तर पर फिल्माने की चर्चा चल रही है।

यह अभिनेता मकाऊ फिल्म फेस्टिवल को छोड़कर पटना फिल्म फेस्टिवल में सामिल हुए

पटना फिल्म फेस्टिवल में गुरुवार को रीजेंट में सुलतान और इग्लीश फिल्म मैंगो ड्रीम्स का प्रदर्शन किया गया। वहीं, रविंद्र भवन के दूसरे स्क्रीन पर भोजपुरी फिल्म जिंदगी है गाड़ी सैया ड्राइवर – बीवी खलासी, दूल्हा और धरती मैया दिखाई गई।

पटना फिल्म फेस्टिवल के अंतिम दिन रीजेन्ट में फिल्म एवं वित्त निगम के गंगा कुमार, फिल्म अभिनेता पंकज त्रिपाठी मौजूद रहे। गैग्स ऑफ वासेपुर, नील बट्टे सन्नाटा जैसी फिल्म और कई टीवी सिरियल में प्रमुख भूमिकाएं निभाने वाले अभिनेता पंकज त्रिपाठी मकाऊ फिल्म फेस्टिवल को छोड़कर पटना फिल्म फेस्टिवल में आये।Pankaj tripathi pff

पंकज त्रिपाठी ने कहा कि मकाउ में मेरी फिल्म गुड़गांव की स्क्रीनिंग है, इसके बाद बर्लिन में भी दिखाई जाएगी। इससे ये साबित होता बिहार की प्रतिभा को इंटरनेशनल लेवल पर सम्मान मिल रहा है। मुझे बिहारी होने पर गर्व है, मैं मकाउ फिल्म फेस्टिवल छोड़कर अपनो के बीच पटना फिल्म फेस्टिवल में आया। उन्होंने कहा कि बिहार हमेशा से मुझे वापस खींचता है। मैं देश-विदेश कहीं भी रहूं अपनी मिट्टी से जुड़ा रहता हूं। मैं नौकरी नहीं करना चाहता था इसलिए मैं थियेटर से जुड़ा। हालांकि बाद में आगे कोई स्कोप ना देखकर मैंने होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर शेफ का भी काम किया। लेकिन अपने एक्टिंग मोह को ना छोड़ सका और वापस फिल्म और सीरियल की दुनिया में चला गया।

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उन्होंने कहा कि बिहार की छवि को क्राइम जेनेरेटेड स्टेट का बना दिया गया है। यहां के लोगों में जो प्रतिरोध की क्षमता है उसे निगेटिव रूप में प्रचारित किया गया है। फिल्मकार बिहार की उसी बनी-बनाई छवि को सच मान बैठे हैं। पैनल डिस्कशन में पंकज त्रिपाठी के साथ रामगोपाल बजाज, पुंज त्रिपाठी, अविनाश दास मौजूद थे।

एक्टिंग में नाम कमा रही बिहार की यह बेटी

मेनका

बिहारियों के महनत और काबलियत का दुनिया लोहा मानती है।  बिहारी हर क्षेत्र में अपना झंठा गार रहें है। बिहार के लोग सिर्फ डाक्टर, इंजीनियर और आईएएस नहीं बल्कि फिल्म जैसे क्षेत्र में कामयाब हो रहे हैं।  मनोज बाजपेयी, सोनाक्षी सिन्हा,  प्रकाश क्षा जैसे कालाकार फिल्म उद्योग में बिहार का नेतृत्व कर रहे हैं।  

 

लिफ्ट करा दे में करण जौहर और साहीद कपूर के साथ मेनका

लिफ्ट करा दे में करण जौहर और शाहिद कपूर के साथ मेनका

बिहार के मुंगेर जिले के मेनका सिंह भी इस क्षेत्र की एक उभरता हुआ कलाकार है।  मेनका 2010 के राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित होने वाले रियालीटी शो ‘लिफ्ट करा दे’ की विजेता है।

मेनका

कुछ सालों बाद मेनका मुंबई आ गयी।  उसके बाद उन्हे बहुत से फोटो सूट एवं मियूजिक एल्बम में काम करने का मौका मिला साथ ही चक्रव्यू, सिंह साहब दी ग्रेट, खिलाडी 786, ये जवानी है दिवानी, गंगनम स्टाईल गाना, हसी तो फसी और प्रेम रतन धन पायो जैसे अनेक बडे फिल्मों में बैकग्राउंड डांस किया है।

सिंह साहब दी ग्रेट के शूटिंग के दौरान

सिंह साहब दी ग्रेट के शूटिंग के दौरान

 

तो वही टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहीक जैसे महादेव,  ड्रीम गर्ल, सपने सुहाने लडकपन के,  ये रिश्ता क्या कहलाता है, दिल्ली वाली ठाकुर गर्ल, बडे अच्छे लगते है, कबूल है जमाई राजा,  मेरी आशकी तुमसे और क्राईम पेट्रोल जैसे नामी धारावाहीक में मेनका को काम करने का मौका मिला है।

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मेनका मुंगेर से सीबीएसई बोर्ड से 12वीं तक पढाई की फिर मुंबई चली आई।  उसके बाद उनका पढाई उस से आगे न बढ सकी।  मुंबई आ के उन्होनें जेनीथ डांस एकेडमी में डांस एकेडमी में काम किया और फिल्मों में बैकग्राउंड डांस भी किया।

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मूंगेर से ही मेनका थियेटर से जुडी है।  बच्पन से ही उसे एक्टिंग का शौक है।  माँ माया सिंह और पिता रामअवतार सिंह की एकलौती बेटी है मेनका।  मगर माता पिता साथ नहीं रहते।

मेनका कहती है,  पूरा सहयोग माँ का ही मिला है मुझे।  माँ के लिए और बिहार के लिए मुझे बहुत कुछ करना है।

 

Aapna Bihar द्वारा चलाए जा रहे मुहिम #MatBadnamKaroBiharKo (मत बदनाम करो बिहार को) को भी मेनका ने अपना समर्थन दिया है और आपन बिहार से बात-चीत में कहा, मैं भी इस मुहिम के साथ हूँ। बिहार मेरी मातृभूमी है। मुझे अच्छा लगता है “मैं” या “हम” करके बात करना।  बिहार का इतिहाश और संस्कृति बहुत महान है।  लोगों के विचार को बदलना है। बिहार में ही क्राईम नहीं होता बल्कि यह तो देश के सभी राज्यों में होता है तो फिर सिर्फ बिहार का नाम बदनाम क्यो? मुझे तो गर्व है बिहारी होने का। ”