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क्या कन्हैया कुमार महागठबंधन के टिकट पर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे?

पिछले साल का लोकसभा चुनाव याद ही होगा कि कैसे कन्हैया कुमार के बेगूसराय सीट पर उम्मीदवारी को लेकर तेजस्वी ने वामदल के साथ गठबंधन नहीं किया था| यही नहीं, राजद ने उस सीट पर एक मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देकर कन्हैया को हरवा दिया था| मगर इस साल आने वाले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार एक मंच पर दिख सकते हैं|

खबर है कि सत्ताधारी पार्टी को विधानसभा चुनाव में पटखनी देने के लिए महागठबंध में वामदलों का सामिल होना तय है| इसको लेकर सीपीआइ के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय और राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की दूसरे चरण की बातचीत हो चुकी है| राम नरेश पाण्डेय ने कहा है कि कन्हैया कुमार को जरूरत पड़ी, तो विधानसभा चुनाव में उतारा जा सकता है| प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने भी कहा कि कम्युनिस्ट दल हमारे स्वाभाविक सहयोगी हैं| हम लोग मतभेद भुला कर मिल कर चुनाव लड़ेंगे|

कन्हैया कुमार सीपीआई की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं, इसलिए पार्टी के तरफ से उनका स्टार प्रचारक बनना तय है| इसी कारण से कहा जा रहा है कि कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव एक मंच पर दिख सकते हैं| ज्ञात हो कि अब तक तेजस्वी यादव कन्हैया के साथ मंच शेयर करने से परहेज करते आयें हैं| राजनितिक गलियारों में कहा जाता है कि तेजस्वी यादव मानते हैं कि भविष्य में कन्हैया कुमार उनके प्रतिद्वंदी के तौर पर उभर सकते हैं|

तेजस्वी यादव और कन्हैया, दोनों फेमस नेता हैं| दोनों की प्रतिक्रिया मिडिया में जगह बनाती है| इन दोनों नेता के साथ आने से महागठबंधन को फायदा होना तय है मगर सवाल है कि एक म्यान में दो तलवारें कब तक रहेगी?

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बिहार महागठबंधन में हुआ सीटों का बंटवारा, जानिये किस पार्टी को मिले कितने सीटें

लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार महागठबंधन में सीटों बंटवारा हो गया. बिहार में राजद 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी वहीं, कांग्रेस को 9 सीटें दी गई है. इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी RLSP को 5, जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ पार्टी को 3 और सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी की वीआईपी को 3 सीटें दी गई हैं. इसके अलावा सीपीआई माले को राजद के कोटे से एक सीट दी गई है. इसके अलावा पहले दौर के उम्मीदवारों की सूची भी जारी की गई. प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी बताया गया कि शरद यादव आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे. वहीं जीतनराम मांझी के भी चुनाव लड़ने की बात कही गई है. जीतनराम मांझी गया से चुनाव लड़ेंगे.

आरजेडी प्रवक्ता मनोज झा, प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे, कांग्रेस के मदन मोहन झा, हम के बीएल वैसयंत्री, रालोसपा के सत्यानंद दांगी ने की घोषणा। उन्होंने बताया कि दो विधानसभा के उप चुनाव में डिहरी से आरजेडी के मो फिरोज हुसैन और नवादा से धीरेंद्र कुमार सिंह हम पार्टी के प्रत्याशी होंगे। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहले चरण के उम्मीदवार के नाम पर भी ऐलान हो गया है।

पहले चरण: महागठबंधन के उम्मीदवार
1- गया सीट से हम उम्मीदवार जीतन राम मांझी
2- नवादा सीट राजद उम्मीदवार विभा देवी
3- जमुई से आरएलएसपी के उम्मीदवार भूदेव चौधरी
4- औरंगाबाद सीट से हम उम्मीदवार उपेंद्र प्रसाद

तेजस्वी के ट्वीट से गरमाया था सियासी माहौल
16 मार्च को महागठबंधन में सीट शेयरिंग से पहले ही तेजस्वी के ट्वीट के बाद सियासी माहौल गरमा गया था। तेजस्वी के ट्वीट से कांग्रेस आलाकमान नाराज हो गया था। इसके बाद तेजस्वी दिल्ली गए और कांग्रेस नेताओं से बैठकर चर्चा की। बताया जा रहा है कि जब उपेंद्र कुशवाहा एनडीए छोड़कर महागठबंधन में आए थे तो राजद ने उन्हें 5 सीट का आश्वासन दिया था। इसी को लेकर महागठबंधन में पेंच फंसा था।

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ऐश्वर्या में तेजप्रताप यादव का राधा तलाशना ‘ग़लती’ किसकी?

फ़िल्म शुरू होने से पहले एक वैधानिक चेतावनी आती है, ‘धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है’. मगर कोई इस पर ग़ौर ही नहीं करता. प्रेम में भी ऐसी ही चेतावनी आती हैं. ‘प्रेमपान’ में जुटे दिल भी कुछ भी हानिकारक होने की फिक़्र नहीं करते.

दिल के पंप से खून फेंकते ये जवां लोग मिलन की हर तारीख़ को वेलेंटाइन्स डे बना देते हैं.

फ़िल्म शुरू हुई है तो ‘विलेन’ भी आएंगे. ये अपने परिवार, दोस्त, समाज के रचे विलेन होते हैं जो कोई भी काम दो ही विचारों में धँसकर कर पाते हैं.

पहला- कोई चांस हो.
दूसरा- परंपरा है जी, समाज क्या कहेगा?

ऐसी रियल लाइफ़ कहानियों में एक गोरी सी लड़की अपने बाजू में सांवले से लड़के को बैठाकर हम सबसे कहती है, ‘देखिए हम लोग एक साथ भागे हैं. ठीक है? इनका कोई ग़लती नहीं है.’

वायरल विडियो स्क्रीनशॉट

ये है अपनी राधा. फ़िल्म की हीरोइन. जो परंपरा, समाज, चांस जैसे विलेन की आँख में आँख डालना जानती है. वही राधा, जिसे तेज प्रताप यादव खोज रहे हैं. लेकिन तलाक की अर्ज़ी के बाद. या शायद पहले से?

जीवन साथी राधा चाहिए या कृष्ण?

लालू प्रसाद के बेटे तेजप्रताप यादव ने पाँच महीने पुरानी शादी ख़त्म करने का फ़ैसला किया है.

तेजप्रताप ने कहा, ”मेरा और पत्नी ऐश्वर्या राय का मेल नहीं खाता. मैं पूजा पाठ वाला धार्मिक आदमी और वो दिल्ली की हाईसोसाइटी वाली लड़की. मां-बाप को समझाया था. लेकिन मुझे मोहरा बनाया. मेरे घरवाले साथ नहीं दे रहे हैं.”

तेजप्रताप मथुरा के निधिवन और ज़िंदगी में राधा की तलाश में नज़र आते हैं और उस भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं, जिनके घरवाले उनका साथ नहीं देते. वो मोहरा बन जाते हैं जाति, धर्म, रुतबे और हाईसोसाइटी बनाम लो-सोसाइटी के.

ये वही सोसाइटी है, जो किसी के तलाक की ख़बरों को चटकारे लगाते हुए पढ़ती है. किसी जोड़े के निजी फ़ैसलों की वजहों को कुरेदकर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहती है.

लेकिन सालों से मौजूद उस निष्कर्ष को व्यापक तौर पर अपनाने से आँख बचाती है, जिसमें राधाएं अपने कृष्ण से मिल सकें और कृष्ण अपनी ज़िंदगी राधा संग गुज़ार सकें.

ऐसी ही सोसाइटियों ने परंपराओं और ख़ुद सोसाइटी के नाम पर ख़ुद को दकियानूसी विचारों में जकड़ लिया है. मानो क्रूर मुस्कान लिए कह रहे हों, ‘हम लोग बिछड़ के रह भी नहीं पाते हैं. ठीक है?’

हम अब भी उस हवा में सांस ले रहे हैं, जिसमें लड़के और लड़कियां घर से भागने को मजबूर हैं. 

भारत में चुनाव सिर्फ़ सत्ता को हासिल करने तक सीमित नहीं रहता है. जीवनसाथी चुनने की आज़ादी जैसे बुनियादी लेकिन अहम फ़ैसलों में भी एक चुनाव से गुज़रना पड़ता है.

परिवार चुनें या प्यार?

तेजप्रताप यादव, ऐश्वर्या राय जैसे न जाने कितने ही लोग चुपचाप परिवार चुन लेते हैं लेकिन कुछ आंखों में दिल की चमक लिए कहते हैं, ”हमको इन्हीं के साथ रहना है. घर परिवार किसी से लेना देना नहीं. ठीक है? अब हमें मां-बाप किसी से मतलब नहीं. बस मेरे सास ससुर अच्छे से रहें. ये अच्छे से रहें. इनके खुशी में मेरा खुशी है. ठीक है?”

ऐसे ही प्यार करने वाले होते हैं, जो हरियाणा की भी हवा को बदल देते हैं. हरियाणा, जहां की खाप पंचायतें और लिंग अनुपात दर का फासला स्कूल की उन दीवारों पर हँसती नज़र आती रही हैं, जिन पर लिखा होता है- बेटियां अनमोल हैं.

चाहें तो हरियाणा के उन 1170 जवां दिलों को शुक्रिया कहिए, जिन्होंने बीते छह महीने में जाति के बंधन को खोलकर अपने पसंद की शादी करना चुनते हैं.

ये वाला मतदान गुप्त नहीं रहता. अगर परिवार प्रेम से किए विवाह के लिए तैयार न हो तो लड़कियां कहलाती हैं भागी हुई और लड़के… कृष्ण.

लड़कों को कृष्ण रहने की आज़ादी और लड़कियों को?

कृष्ण:

  • जिन्होंने राधा से प्यार किया
  • गोपियों संग भी रहे
  • माखन चुराते, ‘रासलीला’ करते नहाती गोपियों के कपड़े ले जाते
  • चीरहरण के वक़्त द्रोपदी की रक्षा करते
  • पत्नी रुकमणी संग रहते

अपनी-अपनी सुविधा से हम कृष्ण के रूपों को स्वीकार करते हैं

किसी भी रूप में कृष्ण… कृष्ण ही रहते हैं. लेकिन ऊपर अगर कृष्ण की बजाय राधा लिखा होता तो क्या लोग अपनी आस्थाओं और आसपास राधा को इन रूपों में स्वीकार करते?

एक बड़े हिस्से के सच पर नज़र दौड़ाएंगे तो जवाब है नहीं. बिलकुल नहीं.

तेज प्रताप ने दिल्ली के मिरांडा हाउस में पढ़ने वाली ऐश्वर्या राय की बात करते हुए जिस हाई-सोसाइटी का ज़िक्र किया था, वो इसी राधा और कृष्ण का फ़र्क़ बयां कर जाता है.

तलाक का मामला कोर्ट में है. अगर न भी होता, तब भी इस पर बात करने का हक़ किसी को नहीं है. लेकिन अगर इस एक मामले को एक बड़े चश्मे से देखा जाए तो तेज प्रताप ने सच ही बोला है.

हम अब भी सोसाइटी के हाई या लो होने के फ़र्क़ में उलझे हुए हैं. लड़की मिरांडा हाउस की पढ़ी हुई है तो हाईक्लास ही होगी और हाईक्लास लड़की राधा नहीं हो सकती? हां चूंकि राधा की चाहत एक लड़के को है, तो वो कृष्ण ज़रूर हो सकता है?

‘देखिए हम लोग एक साथ भागे हैं. ठीक है? इनका कोई गलती नहीं है.’

तो फिर फ़र्क़ कैसा?

लेकिन ये फ़र्क़ किया जाता रहा और किया जाता रहेगा. हमारे घरों में परिवार अपने-अपने मानकों, समाज की फिक्र में न जाने कितने ही तेज प्रतापों और ऐश्वर्या रायों को ‘मोहरा’ बनाते रहेंगे.

बेटी राधा हुई तो कृष्ण से और बेटा कृष्ण हुआ तो राधा के पीछे दौड़ते रहेंगे…

  • घरों की राधाओं, कृष्णों के हार मानकर समाज, परिवार की संतुष्टियों के ‘मोहरा’ बनने तक
  • परिवार और समाज को छोड़कर अपनी राधा या कृष्ण संग नए सफ़र पर चलने तक
  • या फिर उन हज़ारों सैराट जैसी कहानियों के अंत तक, जहां प्यार करने वालों का ही अंत हो जाता है.

क्या हमें बड़े स्तर पर अपने आस-पास की राधाओं, कृष्णों, तेजप्रतापों और ऐश्वर्या रायों के पीछे दौड़ना बंद कर सकते हैं?

दिल में धंसे उन दो ख्यालों ‘परंपरा है जी, समाज क्या कहेगा’ और ‘कोई चांस है’ को निकालकर फेंक सकते हैं?

जवाब हां होगा, तो जल्द ही अंतरजातीय विवाह करने की सुखद ‘घटनाएं’ अख़बारों की ख़बर नहीं बनेंगी.

जवाब ना में देने जा रहे हैं, तो वायरल वीडियो की उस प्रेम में डूबी लड़की की बात को याद रखिएगा.

”अगर हमको लोग अलग कर सकता है तो हम ज़हर खाके दोनों लोग मर जाएंगे. ठीक है?”

साभार: BBC (विकास त्रिवेदी) 

 

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महागठबंधन के रथ पर सवार होकर बीजेपी के राष्ट्रवाद के खिलाफ बेगूसराय से चुनाव लड़ेंगे कन्हैया

दो साल पहले जेएनयू कैंपस में एक विवादास्पक घटना घटी| कैंपस के अंदर ही बुलाए गए एक सभा में राष्ट्र विरोधी नारें लगायें गए| मीडिया में खबर आते ही इस मुद्दे ने तूल पकड़ लिया| चुकी यह मामला राष्ट्र हित से जुड़ा था और केंद्र में एक राष्ट्रवादी विचारधारा की सरकार थी, इस घटना का राजनीतिकरण तो होना ही था|

12 फरवरी 2016 को दिल्ली पुलिस ने जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया| हालाँकि कन्हैया कुमार ने अपने उपर लगे आरोप को बेबुनियाद बताया और जेल से निकलते ही जेएनयू कैंपस में देश की आजादी पर एक एतिहासिक भाषण दिया|

इस घटना ने कन्हैया कुमार की किस्मत बदल दी| जेएनयू के कैंपस राजनीति से बाहर निकलकर वे देश के मुख्यधारा के राजनीति में छा गयें और विपक्ष का एक मुखर आवाज बनकर उभरे| हालांकि कन्हैया कुमार को एक तरफ जितने पसंद करने वाले लोग हैं, दुसरे तरफ लोगों का एक बड़ा तबका कन्हैया को अभी भी देशद्रोही मानता है| (कोर्ट से बेगुनाह साबित होने के बाद भी)

हालांकि बहुत पहले से ही यह कयास लगाया जा रहा था कि कन्हैया बिहार के बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे, मगर मीडिया और सूत्रों से आ रही खबरों के अनुसार अब यह पक्का हो गया है|

कन्हैया कुमार 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार के बेगूसराय से मैदान में उतरेंगे| सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, कन्हैया कुमार बेगूसराय से महागठबंधन के उम्मीदवार बनेंगे| हालांकि औपचारिक तौर पर कन्हैया कुमार सीपीएम के केंडिडेट होंगे, लेकिन  उन्हें महागठबंधन के आम उम्मीदवार के रूप में पेश किया जाएगा| बिहार में महागठबंधन में आरजेडी समेत कांग्रेस, एनसीपी, हम(एस), शरद यादव की एलजेडी के अलावा लेफ्ट पार्टियां भी शामिल हैं|

ज्ञात हो कि जेल से रिहा होने के बाद पटना दौरे पर आये कन्हैया कुमार तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव दोनों से मिले थे| उस समय लालू प्रसाद यादव को पैर छू कर प्रणाम करने पर उनके विरोधियों ने जमकर निशाना भी साधा था| सूत्रों के मुताबिक लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव कन्हैया कुमार को टिकट को राजी हैं और कांग्रेस के साथ बातचीत के बाद बेगूसराय सीट से कन्हैया कुमार को मौका दिया जा रहा है|

सीपीएम लीडर सत्य नारायण सिंह ने एक प्रमुख अंग्रेजी अख़बार से बातचीत के दौरान इस बात कि पुष्टि की है| उन्होंने कहा कि महागठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर अभी औपचारिक तौर पर कोई बात नहीं हुई है, लेकिन इतना निश्चित है कि बेगूसराय से कन्हैया कुमार को ही उतारा जाएगा| उन्होंने बताया कि एक बार खुद लालू प्रसाद यादव ने भी बेगूसराय के लिए कन्हैया कुमार का नाम सुझाया था|

कन्हैया मूल रूप से बेगूसराय के रहने वालें हैं

कन्हैया मूल रूप से बेगूसराय जिले के बरौनी ब्लॉक में बीहट पंचायत के रहने वाले हैं| उनकी मां मीना देवी एक आंगनबाड़ी सेविका हैं और उनके पिता जयशंकर सिंह यहीं एक किसान थे|

अभी वर्तमान में बेगूसराय लोकसभा सीट पर बीजेपी के भोला सिंह काबिज़ है| बिहार में बेगूसराय को लेफ्ट विचारधारा का गढ़ माना जाता रहा है| गढ़ भी ऐसा कि बेगूसराय को लेनिनग्राद यानी लेनिन की धरती तक कहा जाने लगा। लेकिन इसी बेगूसराय में सामाजिक न्याय की फसल भी खूब लहलहायी और और अब यहां जातिवादी फसलों की बहार है। महागठबंधन के तरफ से कन्हैया कुमार उम्मीदवार के तौर पर अगर उतरते हैं तो मुकाबला वाकई दिलचस्प होगा| एक बार फिर बिहार का बेगूसराय राजनितिक प्रयोगशाला का केंद्र होगा| उनके उम्मीदवारी में लेनिनवाद और जातिवाद दोनों का छौंक है|बेगूसराय लेनिनवाद-जातिवाद के साथ राष्ट्रवाद का मुकाबला देखना दिलचस्प होगा|

विश्लेषण: उपचुनाव में तेजस्वी ने नीतीश को फिर दी पटखनी, जानिए जोकिहाट में क्यों जीती आरजेडी?

बिहार में जोकिहाट विधानसभा उपचुनाव आरजेडी प्रत्याशी शहनवाज अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी और जेडीयू उम्मीदवार मोहम्मद मुर्शीद आलम को 41225 वोटों से हराया। आरजेडी उम्मीदवार शहनवाज को 81240 वोट जबकि जेडीयू उम्मीदवार मुर्शिद आलम को 40015 वोट मिले। जीत के बाद आरजेडी विधायक दल के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि यह अवसरवाद पर लालूवाद की जीत है, लालू विचार नहीं बल्कि विज्ञान है।

जोकीहाट सीट पर साल 2005 से ही जेडीयू का कब्जा रहा था। ताजा चुनाव परिणाम से साफ है कि मुस्लिम वोटरों का जेडीयू से मोह भंग हो रहा है। भाजपा के साथ जाने की वजह से जदयू की लगातार तीसरी बार हार हुई है|

साल 2005 में बिहार के अंदर लालू विरोधी लहर आई जिसकी वजह से नीतीश को सत्ता मिली थी। इसके बाद उन्होंने मुस्लिम वोटरों में सेंध लगाना शुरू किया। जिसमें वह सफल भी रहे। चुनावों में भाजपा के साथ रहने के बावजूद मुस्लिम वोटरों ने नीतीश को वोट दिया था। मगर साल 2014 में भाजपा से अलग होने की वजह से उन्हें अपने दम पर चुनाव लड़ना पड़ा और करारी हार मिली। बता दें कि इस सीट पर पहले तस्लीमुद्दीन परिवार का कब्जा था। उनके निधन के बाद उनके बेटे सरफराज आलम यहां से विधायक थे। इसी साल मार्च में उन्होंने जदयू से इस्तीफा देकर राजद के टिकट पर अररिया की लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी। उनके इस्तीफे की वजह से ही यह सीट खाली हुई थी।

 

आइए समझते हैं जोकिहाट पर क्यों जीती आरजेडी

मुस्लिम बहुल इलाका है जोकिहाट: इस सीट पर दो लाख 70 हजार वोटर हैं, जिसमें से करीब 70 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है| यहां यादवों की भी अच्छी खासी आबादी है. ऐसे में यहां इस बार आरजेडी का M+Y (मुस्लिम+यादव) समीकरण फीट बैठता हैl हालांकि जेडीयू ने भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट दिया था, लेकिन आरजेडी का समीकरण भारी पड़ रहा था।1969 में बने इस विधानसभा सीट पर हमेशा से मुस्लिम प्रत्याशी जीतते आ रहे हैं, हालांकि पार्टियां बदलती रही हैं।पिछले चार बार से जेडीयू के प्रत्याशी यहां से जीतते रहे हैं।

मोहम्मद तसलीमुद्दीन के परिवार का इस सीट पर रहा है दबदबा: जोकिहाट सीट पर मुस्लिमों के बड़े नेता मोहम्मद तसलीमुद्दीन का दबदबा रहा है। अबतक हुए 14 बार हुए विधानसभा चुनावों में नौ बार तस्लीमुद्दीन के परिवार से ही जीतते रहे हैं। इस बार भी आरजेडी के ने तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे शाहनवाज आलम आलम को टिकट दिया है। इस सीट पर जीत दर्ज करने के लिए जेडीयू ने भी तसलीमुद्दीन के परिवार को ही टिकट दिया था। तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफराज आलम 2010 और 2015 में जदयू के टिकट पर यहां से विधायक बने थे।

जेडीयू के प्रत्याशी हैं दागदार: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपराधियों और अपराध के प्रति जीरो टॉलरेंस की बात कहते हैं, लेकिन जोकिहाट पर उनकी पार्टी के प्रत्याशी मुर्शीद आलम के खिलाफ कई मुकदमें दर्ज हैं। इसमें से कई गंभीर मुकदमें भी हैं। वहीं आरजेडी प्रत्याशी शाहनवाज आलम साफ सुथरा चेहरा हैं। तेजस्वी यादव ने प्रचार के दौरान भी इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया था।

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बिहार चुनाव: बीजेपी-नीतीश पर भारी पड़े तेजस्वी, RJD की जीत के बने हीरो

बिहार की अररिया लोकसभा सीट और दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे जहां एक तरफ बीजेपी और नीतीश कुमार के लिए एक जोरदार झटका है तो वहीँ दूसरी तरफ राजद नेता तेजस्वी यादव के राजनितिक भविष्य के लिए एक शुभ संकेत लेकर आया है|

लालू यादव के जेल जाने और नीतीश के साथ गठबंधन टूटने के बाद उपचुनाव के मुकाबले को जीतना अहम है| नीतीश कुमार के बीजेपी में जाने और लालू यादव के जेल जाने के बाद, बिहार में यह पहला चुनाव था| साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले अररिया लोकसभा, जहानाबाद विधानसभा और भभुआ विधानसभा पर हुए उपचुनाव का परिणाम पहले से ही कई मामलों में खास माना जा रहा था| इस चुनाव में नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा तो दाव पर थी साथ ही लालू यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी यादव के नेतृत्व क्षमता की भी परीक्षा थी|

लालू यादव के गैरमौजूदगी में राजद ने ये चुनाव पूरी तरह तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा था| अब चुनाव परिणाम आने के बाद तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल उठाने वालो का मुह बंद हो गया है|

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इस तरह बढ़ा तेजस्वी का कद
लालू यादव के जेल जाने के बाद राजनीतिक गलियारों में इस बात की सुगबुगाहट तेज हो गई थी कि अब आरजेडी को कौन संभालेगा| लेकिन तेजस्वी यादव ने सुगबुगाहट पर पूर्ण विराम लगाया और ना सिर्फ विरोधियों पर हावी हुए बल्कि पार्टी की कमान को बखूबी संभाला|

राजनीति में धमक बढ़ाने में कामयाब हुए तेजस्वी
बिहार उपचुनावों के परिणाम बताते हैं कि लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव पिता की गैर मौजूदगी में राजनीति में अपनी धमक बढ़ाने का सफल प्रयास कर रहे हैं| लालू यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी जिस तरह के विरोधियों को जवाब देने और उन पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं उससे यह बात तो स्पष्ट है कि वह अब लीडिंग फ्रॉम फ्रंट की भूमिका में काम करना चाहते हैं और कर भी रहे हैं| जीत का सेहरा तेजस्वी यादव के सिर इसलिए भी सजा है, क्योंकि वह प्रदेश की राजनीति में एकमात्र ऐसा युवा चेहरा है जिस पर जनता पिछले विधानसभा चुनावों से लेकर अब तक विश्वास कर रही है|

नीतीश के लिए चुनौती का समय
उपचुनावों के नतीजे इस बात को भी स्पष्ट करते हैं कि बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव नीतीश के विकल्प के रूप में उभर कर आ रहे हैं| तेजस्वी के राजनीतिक गतिविधियों की वजह से बिहार की जनता के बीच लाजिमी तौर पर तेजस्वी की पूछ बढ़ेगी| इसके साथ ही बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों में नीतीश को तेजस्वी यादव से कड़ी टक्कर मिलेगी|

 

Inside Story: नीतीश के लिए भाजपा को इतना क्यों आ रहा है प्यार और क्यों महागठबंधन में बढ़ रहा है तकरार

कहा जाता है कि दिल्ली में सत्ता का रास्ता बिहार और यूपी से गुजरता है । 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ी कामयाबी इन्ही दो राज्यों में मिले थे । यूपी विधानसभा चुनाव जीत बीजेपी ने 2019 के लिए अपना रास्ता तो साफ कर लिया है मगर रास्ते में अभी एक चुनौती मौजूद है और वह है बिहार । पूरे देश में मोदी हवा चला मगर लालू-नीतीश की दोस्ती ने मोदी हवा को बिहार में रोक दिया ।

 

भाजपा किसी भी हालत में बिहार में महागठबंधन को तोड़ना चाहती है। यूपी चुनाव के बाद महागठबंधन में चल रहें खटपट भी बीजेपी को काफी पसंद आ रहा है।

सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी पर नीतीश कुमार का मोदी सरकार का साथ देना भले ही लालू यादव पर दबाव बनाने की राजनीति हो मगर बीजेपी इसको एक अवसर के रूप में देख रही है।

 

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का खुले तौर पर नीतीश की प्रशंसा करना हो या खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शराबबंदी पर नीतीश के तारीफ में पूल बांधना । ये सब यू ही नहीं हुआ बल्कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया है।

 

दरअसल बीजेपी एक तीर से कई निशाना लगाना चाहती है । बीजेपी किसी भी तरह महागठबंधन को तोड़ना तो चाहती ही है साथ ही नीतीश कुमार को अपने साथ जोड़ना चाहती है । इसमें तो कोई सक नहीं की बिहार जीत के बाद नीतीश कुमार मोदी के सामने सबसे बड़े विपक्षी नेता के तौर पर राष्ट्रीय राजनीति में उभर के आए है तो शराबबंदी और प्रकाशपर्व के बाद बिहार के साथ ही देश में भी अपनी सकारात्मक छवि बनाने में कामयाब हुए है। नीतीश कुमार के साथ आने से बीजेपी को बिहार में फिर से एक चेहरा तो मिल ही जायेगा साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में भी मोदी को चुनौती देने वाला विपक्ष खत्म हो जायेगा । इसीलिए कई बड़े नेताओं द्वारा नीतीश को एनडीए में सामिल होने का निमंत्रण भी मिल चुका है।

 

सब जानते है कि भले लालू यादव और नीतीश सरकार में साथ है मगर दोनों एक दुसरे को कमजोर करने में लगें है। यह मजबूरी का गठबंधन है । अगर आपको कुछ दिनों में महागठबंधन टूटने की खबर मिले और विकास के नाम पर या बीजेपी के किसी विशेष पैकेज के बहाने नीतीश कुमार के घर वापसी की खबर आए तो हैरान नहीं होईयेगा ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

टूट जायेगा महागठबंधन, यूपी के बाद बिहार में भी नीतीश के साथ बनेगी भाजपा सरकार!

बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है । बीजेपी ने चुनाव जीती यूपी में मगर तुफान लेकर आई है बिहार के महागठबंधन के सरकार में । महागठबंधन में सबकुछ सही नहीं चल रहा है और यह सिर्फ कयास नहीं है बल्कि महागठबंधन में सामिल दलों के राजनितिक चाल इसकी गवाही दे रही है।

 

भाजपा नेता सुशील मोदी ने कहा है कि बिहार में जदयू-राजद और कांग्रेस का महागठबंधन बिखराव की ओर अग्रसर है। यू तो सुशील मोदी विपक्ष के नेता है और महागठबंधन के खिलाफ बोलते ही रहते है मगर इस बार उनके बात में दम लग रहा है।

 

नीतीश कुमार के जीएसटी, सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के मुद्दे पर अपने सहयोगियों को अलग-थलग कर मोदी सरकार को सर्मथन देकर बीजेपी के करीब जाना, मोदी-नीतीश द्वारा एक दुसरे का तारीफ करना हो या राजद विधायकों और खुद राबड़ी देवी द्वारा तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की मांग करना, लालू के इशारे पर राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद यादन द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जहरीले वार करना । यह सब बतलाने के लिए काफी है कि महागठबंधन अपने नाजुक दौर से गुजर रहा है ।

इसी क्रम में यूपी चुनाव के बाद राजद नीतीश कुमार पर कुछ ज्यादा ही हमलावर दिख रहा है। रघुवंश प्रसाद ने नीतीश कुमार को धोखेबाज और जेदयू नेताओं के गर्दा झाड़ देने की भी बात कहीं है।

तब यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या बिहार की राजनीति पर यूपी चुनाव के नतीजों का असर पड़ने लगा है? या फिर नीतीश कुमार का दिल्ली में एमसीडी चुनाव में हिस्सा लेना आरजेडी को खटक रहा है?

 

आखिर रघुवंश प्रसाद सिंह जेडीयू नेताओं पर अचानक इतने हमलावर क्यों हो गये हैं? कहीं महागठबंधन के भीतर कोई और खिचड़ी तो नहीं पक रही?

ज्ञात हो कि चार दिन पहले वैशाली के राधोपुर में आयोजित सरकारी कार्यक्रम से न केवल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीर गायब थी, बल्कि चारों तरफ राजद के झंडे लगे हुए थे।

राजद के अलावा सरकार में शामिल सहयोगी दल जदयू और कांग्रेस के किसी मंत्री और विधायक तक को कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया था। इसी प्रकार मुख्यमंत्री के यात्रा कार्यक्रम में भी कहीं उपमुख्यमंत्री शामिल नहीं हुए।

 

सवाल ये है कि लालू प्रसाद या आरजेडी नेताओं को नीतीश से ताजा चिढ़ की वजह सिर्फ यूपी चुनाव है या कुछ और?

एक साधारण शिक्षिका से मंत्री तक का सफर तय करने वाली बिहार के पर्यटन मंत्री अनिता देवी से खास बातचीत

धान के कटोरा कहे जाने वाला रोहतास जिला के नोखा विधानसभा क्षेत्र के महागठबंधन के राजद का नेतृत्व कर विधायक बनी अनिता देवी आज बिहार सरकार के मंत्रिमंडल में पर्यटन मंत्री है। पहली बार में ही इन्हें जीत हासिल हुई एवं पर्यटन मंत्री बनने का अवसर मिला। राजनीति से इनका पुराना नाता है लेकिन राजनीति में आने से पहले ये शिक्षिका थी। इनके पति स्व. आनंद मोहन सिंह रोहतास जिला के वरिष्ठ राजद नेता थे। पर्यटन मंत्री अनिता देवी से “आपन बिहार” की बातचीत:-

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प्रश्न :अपने पहले चुनाव में ही एक वरिष्ठ नेता को हरा विधायक बनीं, साथ ही राज्य मंत्रिमंडल में भी शामिल होने में सफल रहीं। इतने कम समय में एक साधारण सरकारी शिक्षिका से मंत्री बनने की अपनी इस उपलब्धि पर क्या कहेंगी आप?

उत्तर : जनता की माँग पर ही चुनाव में उतरी, जनता ने ही हमें इस लायक समझा और हमें इस मुकाम पर पहुँचाया है। लोगों के इस समर्थन के लिए हम उनके अभारी हैं और लगातार उनकी सेवा करने के लिए तत्पर हैं।

 

प्रश्न: में महागठबंधन सरकार का एक साल पूरा हो गया है। इस एक साल में बिहार टूरिज्म ने क्या-क्या काम किया है?

उत्तर : बिहार टूरिज्म ने इस एक साल में बहुत काम किया है। बिहार पर्यटन बिहार 350 वां प्रकाश पर्व के रूप में अबतक का सबसे बड़ा आयोजन करने जा रहा है।
साथ ही सभी जिलों के डीएम को निर्देश दिया गया है कि जिले के महत्वपूर्ण स्थलों का डीपीआर बना के भेजा जाए। हमारी पहली प्राथमिकता है कि जो एतिहासिक स्थल हैं उन्हें पहले विकसित किया जाये।
राज्य में 8 नये रोप वे का निर्माण किया जायेगा ।
बोध सर्किट, राम सर्किट, शिव सर्किट, महावीर सर्किट और जैन सर्किट सब पर तेजी से काम चल रहा है।

 

प्रश्न: पटना में होने जा रहे 350वें प्रकाश पर्व के लिए क्या-क्या तैयारियाँ कीं जा रहीं हैं? 

 

उत्तर: पर्यटन विभाग इसकी तैयारी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। गुरुद्वारा परिसर की साफ-सफाई की गई है, रूम बनाये गये हैं। गांधी मैदान, कंगन घाट और बाईपास में टेन्ट सीटी बनाया जा रहा है।

 

प्रश्न: लोगों का एक गंभीर आरोप है कि बिहार पर्यटन का विकास सिर्फ पटना, गया और नालंदा तक ही सीमित है। दुसरे जिलों के पर्यटन स्थलों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा? 

उत्तर : ऐसी बात नहीं है। सब जगह बराबर ध्यान और विकास कार्य जारी है। गया-नालंदा के अलावा भी सीतामढ़ी के प्रसिद्ध पुनौरा धाम, सहरसा के उग्रतारा मंदिर, दरभंगा, मधुबनी समेत सभी जगहों पर पर्यटन का विकास हो रहा है। 

 

 

प्रश्न: कुछ ही दिन पहले UNSCO ने नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष को world Heritage Site का दर्जा दिया है। बिहार में एतिहासिक महत्व के ऐसे कई धरोहर मौजूद हैं। इन धरोहरों को सहेजने के लिए सरकार क्या कर रही है?

 

उत्तर : यह सब पुरातत्व विभाग कर रहा है। और भी अन्य एतिहासिक धरोहरों को पहचान दिलाने का प्रयास किया जा रहा है।

 

प्रशन: बीजेपी का आरोप है कि सरकार से जबसे भाजपा गई है तब से बिहार में पर्यटन का विकास रूका हुआ है? 

 

उत्तर : बीजेपी विपक्ष में है तो उनका काम ही है आरोप लगाना । उनकी बातों को कोई गंभीरता से नहीं लेता है।

 

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प्रश्न : पहली बार प्रकाश पर्व को लेकर बिहार पर्यटन का प्रचार-प्रसार राष्ट्रीय टीवी पर भी देखा जा रहा है । क्या यह आगे भी जारी रहेगा और क्या बिहार पर्यटन किसी को ब्रांड एम्बेसडर बनाने पर विचार कर रहा है?

उत्तर: हाँ, यह प्रचार प्रकाश पर्व के बाद भी जारी रहेगा साथ ही इसके लिए बिहार पर्यटन ब्रांड एम्बेसडर बनाने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। अभी किसी के नाम पर चर्चा नहीं हुई है। हम चाहते हैं कि अधिक से अधिक लोग बिहार आएँ, इसके लिए हम लोग जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं।

 

प्रश्न: बिहार पर्यटन के ही साईट के अनुसार बिहार घूमने आए पर्यटकों में मात्र 30-40% पर्यटक ही संतुष्ट होते हैं। ज्यादातर लोग यहाँ की पर्यटन सुविधाओं से असंतुष्ट हैं। ऐसा क्यों?

उत्तर : पर्यटन सुविधाओं को बढ़ाने का काम चल रहा है ताकि पर्यटकों को बहुत सारी सुविधाएं मिल सकें । जल्द ही उनकी शिकायत दूर होगी ।

 

प्रश्न: प्रकाश पर्व के बाद चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी वर्ष भी है। इसके लिए पर्यटन विभाग की क्या तैयारियाँ चल रही हैं?

उत्तर : इसपर हम लोग चाह रहे हैं कि देश और विदेशों से लोग बिहार आएँ और गांधी जी और उनके विचारों से लोग जुड़ें और उसका फायदा उठाएँ और अमन- चैन के उनके संदेश को दुनिया में फैलायें।

 

‘आपन बिहार’ के द्वारा बिहार पर्यटन के लिए किये जा रहे कार्यों पर आप क्या कहेंगी?

‘आपन बिहार’ बहुत अच्छा काम रहा है। लगातार आपलोग 4 सालों से बिहार पर्यटन का सोशल मिडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार कर रहें है। लोगों को इसकी जानकारी दे रहें हैं और बिहार घूमने आने के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रहें है। यह जानकर बहुत खुशी हुई। बिहार पर्यटन के तरफ से ‘आपन बिहार’ को धन्यवाद!

आज पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव का जन्मदिन है, आधी रात को मनाया जन्मदिन…देखिए

पटना: आज बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, देश के पूर्व रेलमंत्री, राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के कद्दावर नेता श्री लालू प्रसाद यादव जी का 68 वां जन्मदिन है।  

 

जन्मदिन का केक काटते लालू यादव

जन्मदिन का केक काटते लालू यादव

 

आज आधी रात को ही पूरे सादगी के साथ अपने परिवार के साथ लालू यादव ने केक काटकर अपना जन्मदिन मनाया।  मीसा भारती ने फेसबुक पर लोगों के साथ यह तस्वीर शेयर किया।  बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और लालू यादव की धर्मपत्नी राबरी देवी ने गुलदस्ता दे कर लालू यादव को जन्मदिन की बधाई दी।

जन्मदिन का बधाई देती राबडी देवी

जन्मदिन का बधाई देती राबडी देवी

 

गौरतलब है कि आज ही के दिन 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज जिले के फूलवरियां गांव में एक यादव परिवार में लालू प्रसाद यादव का जन्म हुआ था।

एक बार मजाकिये लहजे में संसद में लालू प्रसाद ने कहा था कि,  1947 में अंग्रेजों को पता चल गया था कि 1948 में लालू यादव पैंदा लेने वाला है इसीलिये वे 1947 में ही देश छोड़ कर भाग गये। 

 

इस वर्ष का जन्मदिन लालू यादव के लिए कुछ खास है क्योंकि वर्षों के सत्ता से वनवास के बाद बिहार के सत्ता में उनकी पार्टी का जोरदार वापसी हुआ है। दोनो बेटा राज्य सरकार में मंत्री बन गया तो बेटी मीसा भारती भी राजद कोटे से राजसभा चली गयी।

 

11 जून 1948 को बिहार के एक गरीब परिवार में जन्म लेने वाला एक बच्चा भैंस के पीठ से बिहार मुख्यमंत्री के खुर्सी तक पहुँचेगा और गरीबों का मसीहा कहलायगा यह किसी ने सोचा भी नहीं था।

 

लालू प्रसाद बचपन के दिनों में गांव के छोटे बच्‍चों के साथ गाय और भैंसे चराया करते थे और उनके लिए चारे का व्‍यवस्‍था करते थे। ये अलग बात है कि बाद में चारा घोटाले में ही उन्हें जेल जाना पड़ा।

उन्‍हें बचपन से ही दूध और दही (माठा) खाने का बहुत शौक है। लालू प्रसाद यादव परिवार से होने के कारण उन्‍हें यादव बिरादरी के सभी कार्य करना आता है, जिसमें गायों और भैसों का दूध दूहने के साथ ही दूध-दही बेचना भी शामिल है।

 

लालू प्रसाद को बिहार का प्रमुख व्यंजन लिट्टी-चोखा तथा सत्तू (मक्‍के और चने का) खाना बेहद पसंद है। वे जब भी अपने गांव जाते हैं तो इस प्रमुख व्यंजन को खाना नहीं भूलते हैं।

 

लालू प्रसाद पटना के बीएन कॉलेज से स्‍नातक की पढ़ाई करते समय ही छात्र राजनीति में आए। जेपी के अनुयायी लालू नीतीश कुमार तथा रामविलास पासवान के राजनीतिक गुरु भी बने।

 

2003 में बिहार के कुछ हिस्‍सों में आई बाढ़ के बाद राजद प्रमुख लालू प्रसाद का कहना था कि इतना पानी तो मेरी पाड़ी (भैंस का बच्चा) एक बार में पी जाती है। उन्‍होंने केंद्र सरकार द्वारा बाढ़ पर पूछी गई जानकारी के जवाब में यह कहा।

 

लालू प्रसाद अपने भाषणों में देहाती भाषा के शब्दों का प्रयोग बहुत ही ज्‍यादा करते हैं। देश तथा विदेशा में भी इनके इस तरह के बोलने के स्‍टाइल पर फिदा है। लोग इन्‍हें राजनीति का बहुत बड़ा कॉमेडियन भी मानते हैं। देश की मीडिया में भी इनके इस स्‍टाइल की बहुत ही चर्चा होती है।

 

2005 लालू प्रसाद केंद्र की सता में यूपीए की सरकार आने के बाद रेल मंत्री बने थे। इसी दौरान उन्‍होंने रेलवे में तथा रेलवे स्‍टेशनों पर चाय मिट्टी के बर्तन (कुल्हड़) में बेचना अनिवार्य कर दिया था, जिसके बाद रेलव तथा कुल्‍लड़ बनाने वाले की काफी कमाई हुई थी। इतना ही नहीं जब तक लालू यादव रेलमंत्री रहे उन्होंने यात्री किराया नहीं बढ़ाया।

 

लालू यादव तब भी सुर्खियों आए जब उन्होंने कहा था कि वे बिहार की सड़कों को फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी के गालों जैसी बना देंगे। उन्होंने एक चुनावी सभा में कहा था कि सभी यादवों के घर में एक गाय और भैंस होगी और जब भी मैं यहां आऊंगा तो आप मुझे दूध और दही खिलाना।

 

देश में एक बहुत ही प्रचलित कहावत है जो 2002 में आई थी जिसमें कहा गया था कि ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू। उस यह कथन बहुत ही ज्‍यादा प्रचलित हुआ था।

 

3 अक्‍टूबर 2013 को लालू प्रसाद को चारा घोटाले में सीबीआई कोर्ट द्वारा सजा सुनाने वाले जज पीके सिंह कॉलेज के दिनों में लालू प्रसाद के जुनियर रह चुके हैं। हालांकि लालू प्रसाद को याद नहीं था, जज पीके सिंह ने वेलेंटाइन डे के एक मामले में केस की सुनवाई करते हुए लालू को कॉलेज के दिनों को याद कराया।

2005 में नीतीश कुमार बीजेपी के समर्थन के साथ बिहार का मुख्यमंत्री बन गये।  उसके बाद लालू यादव 10 वर्षों तक बिहार के सत्ता से दूर रहे और इसी बीच में चारा घोटाला मामले में जेल भी जाना पडा।

 

लोकसभा से पहले नीतीश कुमार का जेदयू से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी से लालू-नीतीश बुडी तरह बिहार में हार गये।

तब लालू प्रसाद यादव अपने सबसे बडे राजनीतिक दुश्मन नीतीश कुमार से मिल कर महागठबंधन बनाया और बिहार के सत्ता में जोरदार वापसी कर फिर से बिहार के राजनीति के साथ राष्ट्रीय राजनीती में भी छा गये।

 

 

लालू यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में कोर्ट में मामला चल रहा है मगर अभी भी बिहार की जनता में उनकी जबरदस्त पकड़ है।  गरीब और पिछरे लोग लालू यादव को अपना मसीहा के रूप मानते है।  कहा जाता है अपने शासनकाल में लालू यादव ने दलितों और पिछडों को आवाज दिया था।  इस बार भी चुनाव में लालू यादव ने गरीबी और पिछरेपनको मुद्दा बना चुनाब लडा और जीता है।  तमाम आरोपों के वाबजूद लालू यादव भारतीय राजनीति में अपनी एक अलग पहचान रखते है जि

 

आरक्षण: पूरे देश में आंदोलन करेंगे लालू प्रसाद यादव..

पटना: लालू प्रसाद आंदोलन से निकले नेता है।  आंदोलन से उनका बहुत पुराना रिश्ता रहा है।  जेपी आंदोलन से राजनीति में कदम रखा तो मंडल आंदोलन से राष्ट्रीय राजनीति में छा गये।  

 

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एक बार फिर लालू यादव देश में एक बडा आंदोलन करने की तैयारी कर रहे है।

आरजेडी ने केंद्रीय विश्व विद्यालय में प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए आरक्षण खत्म करना केन्द्र की मोदी सरकार की बड़ी साजिश करार दिया है। इस पर आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने कहा है कि बीजेपी का दलित विरोधी चेहरा उजागर होने लगा है। उन्होंने  कहा आरक्षण मामले पर पूरे देश में आंदोलन करेंगे।

 

राजद अध्यक्ष ने बीजेपी पर हमला करते हुए कहा कि पिछड़ा और दलित विरोधी चेहरा बीजेपी का उजागर हो गया। इसे रोल बैक करें नहीं तो खामियाजा भुगतना पड़ेगा। हम चेतावनी दे रहे हैं। पूरे देश में आन्दोलन होगा। आरक्षण हमारा अधिकार है। महा जंगलराज देश में हो गया है। CJI ने भी कहा है कि उनको ऊंगली दिखाया जा रहा है। इस सरकार को एक क्षण भी रहने का अधिकार नहीं है।

 

लालू प्रसाद ने कहा कि आरक्षण कोई भीख व दया नहीं है। चुनाव के समय भागवत जी ने ईमानदारी से स्वीकार किया था क़ि आरक्षण की समीक्षा की जानी चाहिए। बार-बार मोदी जी की तरफ से आरक्षण जारी रहने की दलील दी गयी क़ि आरक्षण जारी रहेगा। लेकिन 3 जून को associate प्रोफ़ेसर और प्रोफ़ेसर की बहाली में आरक्षण समाप्त कर दिया गया। संसद में महागठबंधन इसे गंभीरता से उठाएगा।

 

गौरतलब है कि बिहार चुनाव में भी लालू यादव ने आरक्षण को बडा मुद्दा बनाया था।  मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा वाले बयान को लालू यादव ने पूरे चुनाव प्रचार मे ऐसे भुनाया कि बीजेपी बिहार के रण में टिक न सकी।  फिर लालू प्रसाद आरक्षण को देश भर में मुद्दा बना बीजेपी को खेरना चाहती है। एक तरफ आरक्षण लालू ताकत है तो बीजेपी की कमजोरी है।  हांलाकि प्रधानमंत्र नरेंद्र मोदी ने खुद आरक्षण में कोई छेड-छाड़ नहीं करने का आश्वासन दिया है।

ईमानदारी का ईनाम: देखिए बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री के परिवार का क्या हालत है..?

पूर्णिया: आज कल राजनीति को सबसे कमाऊ काम समझता है क्योंकि अगर कुछ अपवाद छोड़ दे तो सांसद और विधायक तो छोड़िये साधरण पंचायत का मुखिया बन जाने के बाद उसके संपत्ति में अचानक आश्चर्यजनक वृद्धी हो जाती है। 

मगर कुछ लोग (शायद उनकी संख्या बहुत कम हो) राजनीति में पद और प्रतिष्ठा मिलने के बाद भी अपने सिद्धांत और  जमीर का सौदा नहीं करते।

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ऐसे ही एक नेता थे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री जी जो मिसाल पेश करते हुए पूर्णिया अथवा अपने गांव बैरगाछी में कोई संपत्ति जमा नहीं की और आम आदमी की तरह जिंदगी जी. यहां तक लाभ के पद से परिजनों को दूर रखा. उनका गांव घर और उनके परिजन आज भी सामान्य जिंदगी जी रहे हैं. मिलिए बिहार के इस दलित मुख्यमंत्री के परिवार से जिन्हें तीन बार मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. जी हाँ, यह भोला पासवान शास्त्री का परिवार है जो पूर्णिया जिले के काझा कोठी के पास बैरगाछी गांव में रहता है.

भोला पासवान जी का परिवार भोला पासवान जी का परिवार

तस्वीर में इनकी हालत साफ नजर आती है और बिहार के दूसरे पूर्व मुख्यमंत्रियों से इनकी तुलना करेंगे तो जमीन आसमान का फर्क साफ नजर आएगा. हाल तक यह परिवार मनरेगा के लिए मजदूरी करता रहा है|

बैरगाछी वैसे तो समृद्ध गांव लगता है, मगर शास्त्री जी का घर गांव के पिछवाड़े में है. जैसा कि अमूमन दलित बस्तियां हुआ करती हैं. हाँ, अब गांव में उनका दरवाजा ढूँढने में परेशानी नहीं होती क्योंकि वहाँ एक सामुदायिक केंद्र बना हुआ है.

बिरंची पासवान जो शास्त्री जी के भतीजे हैं कहते हैं, यह सामुदायिक केंद्र तो हमारी ही जमीन पर बना है. अपने इस महान पुरखे की याद में स्मारक बनाने के लिए हमलोगों ने यह जमीन मुफ्त में सरकार को दे दी थी.

शास्त्री जी के कुनबे में अब 12 परिवार हो गये हैं जिनके पास कुल मिलाकर 6 डिसमिल जमीन थी. उसमें भी बड़ा हिस्सा इनलोगों ने सरकार को सामुदायिक केंद्र बनाने के लिए दे दिया है. अंदर एक-एक कोठली में दो-दो तीन-तीन परिवार जैसे-तैसे सिमट सिमट कर रह रहे हैं. विश्वास भी नहीं होता की पूर्व मुख्यमंत्री का परिवार इतनी परेशानी में जी रहा है।

Barkatulla Khan, Chief Minister of Rajasthan called on Shri Bhola Paswan Shastri, Minister of Work and Housing in New Delhi on June 12, 1973. Barkatulla Khan, Chief Minister of Rajasthan called on Shri Bhola Paswan Shastri, Minister of Work and Housing in New Delhi on June 12, 1973.

शास्त्री जी वैसे ही शास्त्री हुए थे जैसे लाल बहादुर शास्त्री थे. यानी भोला पासवान जो निलहे अंग्रेजों के हरकारे के पुत्र थे ने बीएचयू से शास्त्री की डिग्री हासिल की थी. शास्त्री 1968 ,1969 और 1971 में तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वे 1972 में राज्यसभा सांसद मनोनीत हुए और केन्द्र सरकार में मंत्री भी बने. उनका निधन 4 सितंबर 1984 को हुआ था.

अफ़सोस इस बारे में सरकार और उसके नुमायिन्दों ने भी कुछ नहीं सोचा. यह उस बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री के परिवार का हालत है जहां पूर्व मुख्यमंत्रियों को तरह – तरह की सुविधायें दी जाती है।

उनके जयंति और पुण्यतिथि पर उनके फोटो पर सब माला चढाते है,  बडी-बडी बाते करते है और अपनी राजनीति चमकाते है मगर दलितों का नाम ले कर राजनीति चमकाने वाले लोग को इस इमानदार नेता के बेसहारा परिवार की कभी याद तक नहीं आई?

क्या उनके परिवार को अनके ईमानदारी की सजा मिल रही है?

पार्टियों ने जारी किये MLC प्रत्याशियों के नाम, RJD ने शहाबुद्दीन के पत्नि का टिकट काटा क्योकि…

पटना: बिहार में विधान परिषद की खाली सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने अपना प्रत्याशी उतार दिया है।  जदयू व राजद ने दो-दो तथा कांग्रेस व भाजपा ने एक-एक उमीदवार को मैदान में उतारा है।

 

कुछ दिन पहले से ही यह कयास लगाय जा रहें थे कि राजद सिवान के पूर्व बाहुबली सांदन शहाबुद्दी की पत्ति को MLC का टिकट देगी मगर जब राजद के तरफ से नाम जारी किया गया तो शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब का नाम शामिल नहीं था।

 

 

सूत्र के हवाले से खबर आ रही है कि हिना राज्यसभा सदस्य पद के लिए दबाव डाल रही हैं, लेकिन सिवान जेल में शहाबुद्दीन के दरबार लगाने तथा उनके करीबियों के नाम पत्रकार हत्याकांड में उछलने के बाद हिना को लेकर राजद बैकफुट पर आ गई है। उन्हें समझाने के प्रयास जारी हैं। अगर बात बन गई तो ठीक, अन्यथा अंतिम क्षणों में भी उलटफेर हो सकता है।

 

आइए नजर डालते हैं इन प्रत्याशियों पर एक नजर…

 

गुलाम रसूल बलियावी (जदयू)

 

पहले रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे। वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में 29 सीटों पर जीत के बाद पासवान ने इन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया था, लेकिन दूसरे दलों ने कोई रूचि नहीं ली। 2009 के विधानसभा चुनाव से पहले पासवान ने जब लालू प्रसाद से हाथ मिला लिया तो खफा बलियावी ने जदयू का दामन थाम लिया। इसके बाद जदयू ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया।

 

सीपी सिन्हा (जदयू)
सीपी सिन्हा बैंक की नौकरी छोड़ समाजवादी आंदोलन में शामिल हुए। उन्होंने समता पार्टी की टिकट पर 1995 में पाली से चुनाव लड़ा, परन्तु जीत नहीं पाए। समता पार्टी के जदयू में 2003 में विलय के बाद वे जदयू किसान प्रकोष्ठ के अध्यक्ष बनाए गए।
उन्होंने जदयू छोड़ 2007 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का दामन थामा। फिर 2008 में वह उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय समता पार्टी में शामिल हुए और इस दल से 2009 में बांका से लोकसभा का चुनाव लड़ा। चुनाव में उन्हें जीत हासिल नहीं हो सकी। चुनाव बाद वह फिर जदयू में वापस आ गए। 2012 से 2014 तक राज्य किसान आयोग के अध्यक्ष रहे हैं।

 

रामचंद्र पूर्वे (राजद)

बुरे समय में लालू प्रसाद का साथ देने वाले,  राजद के सबसे बफादारों में से एक है रामचंद्र पूर्वे। राजनीतिक और सामाजिक मामलों की अच्छी समझ रखने वाले पूर्वे पूर्ववर्ती लालू-राबड़ी सरकार में शिक्षा मंत्री रह चुके हैं और राजद के तीन बार निर्विरोध प्रदेश अध्यक्ष चुने गये है। पूर्वे को विभिन्न मुद्दों पर तर्कसंगत तरीके से पार्टी की बात रखने में माहिर माना जाता है।

 

कमर आलम (राजद)
वर्ष 1987 में छात्र जीवन से ही कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत करने वाले राजद के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव कमर आलम पिछले 12 वर्षों से राजद के राष्ट्रीय महासचिव थे। बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले आलम इसके पहले कांग्रेस रहते हुए सीताराम केसरी के भी बेहद करीबी थे।
उनके निधन के बाद रामविलास पासवान के साथ भी रहे, लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा तो साल भर बाद लालू का दामन थाम लिया। विभिन्न दलों में 30 वर्षों से संगठन के काम देखते आ रहे हैं। 1990 में जगन्नाथ मिश्रा के समय कांग्र्रेस अल्पसंख्यक सेल के प्रदेश अध्यक्ष भी थे।

 

अर्जुन सहनी (भाजपा)

दरभंगा जिले से आने वाले सहनी इसके पहले भाजपा प्रदेश संगठन में विभिन्न पदों पर रह चुके हैं। पूर्व में भाजपा संगठन में प्रदेश मंत्री रह चुके सहनी वर्तमान में बिहार भाजपा चुनाव समिति के सदस्य भी हैं।  विधान परिषद में भाजपा के प्रत्याशी अर्जुन सहनी प्रारंभ से ही भाजपा से जुड़े रहे हैं। फिलहाल वे भाजपा मत्स्यजीवी मंच के प्रदेश अध्यक्ष हैं।

 

तनवीर अख्तर (कांग्रेस)

कभी राजीव गाँधी के करीबी रहे प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष तनवीर अख्तर का कांग्रेस से नाता 1985 से है।  एनएसयूआइ से जुड़े रहे अख्तर 1991 में जेएनयू के अध्यक्ष भी बने। 1996 में ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस के सचिव  व शेरघाटी गया के निवासी तनवीर 2000 मे बिहार यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बने।

बिहार किसी की जागीर नही है जो कभी भी राष्ट्रपति शासन लगा दे – तेजस्वी

मुजफ्फरपुर: आज 28 मई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लीची के मौसम में लीची के शहर मुजफ्फरपुर के दौरे पर थे साथ में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी थे।  मुजफ्फरपुर आ के लीची खाय की नहीं पता नहीं मगर हर रैली की तरह यहां भी विपक्ष पर जम के बरसे और खुब बोले  भी,  यहां भी विषय वही था जिसपे वह आज कल देश भर में घूम-घूम के बोल रहे है।  आप सही सोच रहे है वह विषय शराबबंदी ही थी। 

 

 

नीतीश ने कहा कि शराबबंदी की सफलता ने विपक्ष की निंद उड़ा दी है, इसलिए वे अनाप-शनाप बयान दे रहा है. उन्होंने कहा कि शारबबंदी के बाद पूरे देश की नजर बिहार पर है.

 

जीविका’ की सदस्यों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पूरे देश में शराबबंदी से अच्छा संदेश गया है. विपक्ष की नींद उड़ी हुई है. वह बिहार को पीछे डकेलना चाहते है. उन्होंने कहा कि बिहार के लोग हर साल 13 से 14 हजार करोड़ रुपये की शराब पी जाते थे. अब वह पैसा परिवार में लगेगा तो सबका विकास होगा.

 

 

एक तरफ नीतीश विपक्ष पर अपने तीरों से हमला कर रहे थे तो साथ आए तेजस्वी यादव भी आज अपने लालटेन में तेल डाल के आए थे। 

 

 

जब तेजस्वी यादव की बारी आई तो आते ही विपक्ष को ललकारा और चुनौती दी और कहा बिहार किसी की जागीर नही है जो कभी भी राष्ट्रपति शासन लगा दे. उन्होंने केंद्र को चुनौती देते हुए कहा कि किसी में दम है तो राष्ट्रपति शासन लगा कर दिखाए।

 

गौरतलब है कि हाल के दिनों में बिहार में हुए अपराधिये घटनाओं पर विपक्ष सरकार पर लगातार हमला कर रही है और राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रही है।

विपक्ष का कहना है कि बिहार में फिर से जंगलराज की वापसी हो गई है। इसी पर तेजस्वी बौखलाय थे।