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नीतीश, मोदी और लालू के अलावा बिहार चुनाव में जनता के पास क्या है विकल्प?

बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक है, वर्तमान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है पर सच्चाई ये है कि – भाजपा को छोड़ राजद के साथ गठबंधन और फिर राजद को छोड़ भाजपा के साथ वापस आने के कारण उनके छवि का बहुत नुकसान हुआ है| उन्हें कुर्सी कुमार भी कहा जा रहा है जिसे बिहार की समस्याओं से ज्यादा चिंता अपनी कुर्सी बचाने की है ।

पिछले 15 सालों के चुनाव परिणाम भी देखे जाए तो उनके अबतक के 10-15% वोट जिस गठबंधन को मिलते है उसको फायदा मिल जाता है| उनकी अपनी खुद की हैसियत 2014 के लोकसभा चुनावो में अकेले अपने बल पर चुनाव लड़ने से पता चल ही गई थी। वो केवल 2 सीट ही बचा पाए थे।

2015 में नीतीश के राजद से हाथ मिलाने के बाद भाजपा भी रामविलास पासवान की लोजपा व अन्य कई छोटी पार्टीयो के साथ चुनाव लड़ी थी, मोदी जी 2014 लोकसभा चुनाव में बम्पर बहुमत से जीते भी थे, मगर बिहार में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था। हालाँकि उनका वोट प्रतिशत बढ़ गया था|इसके बावजूद भाजपा को ये समझ आ गया कि बिना नीतीश बिहार में सरकार बना पाना उनके लिए एक सपना है। यही कारण है कि 2015 के चुनाव परिणाम के बाद से ही भाजपा नीतीश पर दवाब बनाने लगी और अंत मे सरकार बनाने में सफल भी हो गयी ।

वर्तमान मुख्य विपक्षी पार्टी – राष्ट्रीय जनता दल

लालू जी जेल में है और चारा घोटाले की सज़ा काट रहे है| वैसे तो 2010 विधानसभा चुनावो में ही राजद का खात्मा हो गया था पर 2015 में नीतीश के लालू यादव से गठबंधन करने से राजद और उनके दोनों बेटे जो राजनीति में कदम रखने को तैयार हो रहे  थे, उन्हें जैसे संजीवनी मिल गयी ।

नितीश के साथ गठबंधन से तेजस्वी उप-मुख्यमंत्री और तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री बन गए और राजद एक बार फिर जिन्दा हो गयी। वैसे तेजस्वी यादव ने उसके बाद से ही लालू यादव की अनुपस्थिति में काफी परिपक्वता दिखाई भी है, पर उनपर या उनकी पार्टी राजद पर उनके परंपरागत वोट बैंक के इलावा जनता विश्वास करे, इसका एक भी कारण दूर-दूर तक दिखाई नही देता।

पर क्या इन्ही तीनों पार्टियों के बीच फंस के रह जायेगा बिहार का भविष्य?

बिहार के लोगों के पास क्या इन तीन पार्टियों के इलावा कोई विकल्प है जिसपर जनता को विश्वास हो पाएगा और जनता कुछ उलटफेर कर पायेगी? कहा जाता है बिहार के हर घर में एक नेता होता है , राज्य में पार्टियां और संगठन तो बहुत से सक्रीय है, पर क्या वो विकल्प देने में सफल हो पाएंगे ?

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पप्पू यादव

1) पप्पू यादव – शुरुआत करते है पप्पू यादव की नई पार्टी जन अधिकार पार्टी – जाप से , पप्पू यादव का अतीत भी कुछ अच्छा तो नही रहा है, पर हां, वर्तमान में वो बिहार में रोबिन हुड की तरह काम करते नज़र आते हैं| किसानों, विद्यार्थियों व गरीबो के मुद्दे उठाते रहते हैं। पिछले कुछ सालों में वो बिहार के बाढ़ में भी वो खूब सक्रिय रहे और बिहार की किसी भी नेता से ज़्यादा वो जमीन पे घूमे हैं| हालांकि 2019 के चुनावों में वो और उनकी पत्नी दोनों लोकसभा चुनाव हार गए थे – तो यह कहना कि वो अकेले इन बड़ी पार्टीयो का विकल्प बन सकते है, ऐसा निकट भविष्य में तो संभव नहीं दिख रहा है।

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प्रशांत किशोर

2) प्रशांत किशोर – जदयू से बाहर का रास्ता दिखाने के बाद से ही प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में सक्रिय हो गए हैं| वो बात बिहार की मुहिम के माध्यम से बिहार का वर्तमान पिछड़ा हाल बाकी राज्यों की तुलना करके लगातार बता व दिखा रहे हैं – मगर क्या सिर्फ इतना करके वो इन बड़ी पार्टीयो का विकल्प बन पाएंगे? अभी के समय में तो ये कहना मुश्किल है।

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पुष्पम प्रिया

3) प्लूरल्स – पुष्पम प्रिया चौधरी, कुछ ही दिन पहले बिहार के लोग जब सो के उठे तो उन्होंने अखबार के पूरे पेज पर उनका विज्ञापन देखा और सुर्खियाँ भी बटोरी, फिलहाल बिहार के हालात बदलने और सरकार बनाने का दावा करने वाली दरभंगा की पुष्पम; आजकल पूरे बिहार का भ्रमण कर पुराने गौरवशाली बिहार की बाते सोशल मिडिया के माध्यम से साझा कर रही है| मगर सवाल है- क्या ऐसा करके वो बिहार के लोगो को कोई उम्मीद दे पायेंगीं? अभी तक तो बिहार के इस मुख्यमंत्री उम्मीदवार से सत्ता काफी दूर दिख रही है|

इन सब के अलावा भी बहुत से छोटे दल व संगठन हैं- जैसे उपेंद्र कुशवाहा कि रालोसपा, दरभंगा , मधुबनी में सक्रीय मिथिला स्टूडेंट्स यूनियन (MSU), शरद यादव की लोकतान्त्रिक जनता दल पार्टी, आम आदमी पार्टी,  पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा, सन ऑफ़ मल्लाह कहे जाने वाले मुकेश सहनी की विकासशील इंसाफ पार्टी| मगर ये सब अकेले इन बड़ी और पुरानी पार्टियों से लोहा लेने में संभव नही दिख पा रहे हैं।

अभी कुछ दिन पहले भाजपा के पूर्व दिग्गज और वाजपेयी जी की सरकार में रहे वित्त व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा जी ने बिहार में चुनावी विकल्प देने की बात कही है

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पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा

सिन्हा साहब की उम्र तो बहुत हो गयी है पर उनमें ऊर्जा की कमी नही है| जनता में उनकी स्वच्छ छवि भी है जिसपर विश्ववास किया जा सकता है और उम्र के इस पड़ाव पर उनका बिहार के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा भी देखने लायक है।

उनके साथ कई पुराने व अनुभवी नेता भी साथ आये हैं – जैसे पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र यादव, पूर्व बिहार मंत्री नरेंद्र सिंह, रेनू कुशवाहा, पूर्व सांसद अरुण कुमार और नागमणि जैसे नेता उनके साथ शामिल हुए थे|

सिन्हा ने नए फ्रंट के ऐलान के साथ कहा कि हम उन सभी का स्वागत करेंगे, जो हमारे साथ जुड़ना चाहते हैं| अपने इस बयान के जरिए उन्होंने बिहार में महागठबंधन के साथियों से जुड़ने का दरवाजा खुला रखा है| देखना होगा कि आगे जाकर कितनी छोटी-छोटी पार्टियों और विचारधारा को साथ लाकर एक मजबूत मोर्चे बनता है| मगर सवाल है कि क्या इतने कम समय में वो सभी को साथ एक मंच पर लाकर कुछ चमत्कार कर पाएंगे?

(इस लेख में व्यक्त की कई विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)

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Bihar Election 2020: प्रशांत किशोर करने जा रहे हैं ‘बात बिहार की’

प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने मंगलवार को पटना में अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर कुछ संकेत दिये। जदयू से 29 जनवरी को निकाले जाने के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर पहली बार मंगलवार को पटना पहुंचे। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर खुलकर निशाना साधा।

उन्होंने कहा- नीतीश से वैचारिक मतभेद हैं। हालांकि, प्रशांत ने यह भी कहा कि बिहार को सशक्त नेता की जरूरत है, पिछलग्गू की नहीं।

उन्होंने बताया कि वे 20 फरवरी से ‘बात बिहार की (Bat Bihar Ki)‘ कार्यक्रम शुरू करेंगे। वे इसके जरिए ऐसे युवा लोगों को जोड़ेंगे, जो बिहार को आगे ले जाएं। जिस दिन एक करोड़ बिहारी युवा कनेक्ट हो गए उस दिन बताएंगे कि राजनीतिक पार्टी लॉंच की जाए या नहीं।

राष्ट्रीय फलक पर नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के अभ्युदय के साथ चुनावी रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर के नाम से सियासत की दुनिया 2014 में रूबरू हुई थी। ‘अबकी बार मोदी सरकार’ और ‘बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है’ जैसे नारे गढ़ने वाले प्रशांत किशोर पिछले छह साल में राष्ट्रीय राजनीति में अपनी सशक्त पहचान बना चुके हैं। पीके नाम से प्रसिद्ध प्रशांत किशोर की मदद से अब तक कई राजनीतिक दल सत्ता की सीढ़ी चढ़ चुके हैं। इसके साथ पीके ने बिहार में जनता दल यूनाइटेड को अपनी सेवाएं दीं। नीतीश कुमार, लालू प्रसाद और कांग्रेस को मिलाकर सरकार की राह बनाई। बदले में जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए। फिर जदयू में खटपट बढ़ी तो पीके ने नीतीश से अपनी राह अलग कर ली।

बकौल पीके उन्होंने देखा कि बिहार में बदलाव तो हो रहा है, लेकिन इसके आगे क्या होना चाहिए, यह कोई नहीं जानता है। ऐसे ही कई विषयों पर सोचने के बाद उन्होंने तय किया कि अब सारथी बनने से काम नहीं चलेगा। जितने भी वर्ष लगें बिहार को बदलने के लिए वो तैयार हैं।

बिहार के बक्सर जिले से हैं प्रशांत

साल 1977 में प्रशांत किशोर का जन्म बिहार के बक्सर जिले में हुआ था। उनकी मां उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की हैं वहीं पिता बिहार सरकार में डॉक्टर हैं। उनकी पत्नी का नाम जाह्नवी दास है। जो असम के गुवाहाटी की एक डॉक्टर हैं।

प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में वह अब किसी के चुनाव प्रचार अभियान के संचालक नहीं बनेंगे बल्कि खुद एक ऐसा राजनीतिक प्रतिष्ठान तैयार करेंगे, जो बिहार के युवाओं और आम लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप हो।

उन्होंने कहा कि बिहार छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। चुनाव लड़ाना-जिताना मैं रोज करता हूं। बात बिहार की कार्यक्रम शुरू करूंगा। इसके तहत 8 हजार से ज्यादा गांवों से लोगों को चुना जाएगा, जो अगले 10 साल में बिहार को अग्रणी 10 राज्यों में शुमार करना चाहते हों। बिहार को वो चलाएगा, जिसके पास सपना हो। इसमें शामिल होना चाहें, तो उनका स्वागत है। प्रशांत किशोर ने ये भी कहा कि नीतीश कुमार से उनके वैचारिक मतभेद हैं|

उन्होंने कहा, “जो गांधी की विचारधारा का समर्थन करते हैं वो गोडसे के समर्थकों के साथ खड़े नहीं हो सकते| बिहार आने का अपना एजेंडा बताते हुए प्रशांत किशोर ने कहा, “मुझे ऐसे लड़को को तैयार करना है जो इस बात में यक़ीन रखते हैं कि बिहार दस साल में देश के अग्रणी राज्यों में कैसे खड़ा हो| इस विचारधारा से जो सहमत हैं, जो अपने जीवन के दो चार साल इस उद्देश्य में लगाना चाहते हों, मैं ऐसे युवाओं को जोड़ने आया हूं| मेरा मक़सद बिहार में निचले स्तर पर राजनीतिक चीज़ों को सुदृढ़ करना है. बिहार सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनैतिक बदलाव की प्रयोगशाला रही है। इसी कड़ी में नई कोशिश की तैयारी परवान चढ़ चुकी है।

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फोर्ब्स पत्रिका ने दुनिया के 20 प्रभावशाली लोगों में 2 बिहारियों को दी जगह

विश्व की प्रतिष्ठित मैगजीन फोर्ब्स ने 2020 के दुनिया के टॉप-20 प्रभावशाली लोगों की एक लिस्ट जारी किया है| फोर्ब्स लिस्ट में सामिल दुनिया के 20 लोगों में दो बिहारियों ने भी जगह बनाये हैं| वो दोनों हैं- जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष सह सीपीआई नेता कन्हैया कुमार।

फोर्ब्स ने कन्हैया कुमार के बारे में कहा है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 32 वर्षीय नेता कन्हैया कुमार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति का चेहरा उस समय बन गये, जब 2016 में देशद्रोह के आरोपों का जवाब दिया था। उन्होंने जेएनयू से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है. बिहार के बेगूसराय निर्वाचन क्षेत्र से सीपीआई के टिकट पर साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पहली लड़ाई लड़ी. हालांकि, वह बीजेपी के गिरिराज सिंह से 4.2 लाख वोटों से हार गये, लेकिन वह 22.03 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रहे. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनके लिए शुरुआती दिन हैं. कन्हैया कुमार देश और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए सक्रिय रूप से देश भर में घूम-घूम कर विचार प्रकट करते रहे हैं. वह भविष्य में भारतीय राजनीति में शक्तिशाली पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

फोर्ब्स ने इन दोनों को साल 2020 के दुनिया के टॉप-20 शक्तिशाली लोगों में जगह देते हुए बताया है कि ये आगामी दशक के निर्णायक चेहरे हो सकते हैं।

फोर्ब्स मैगजीन की दुनिया के टॉप-20 शक्तिशाली लोगों में कन्हैया कुमार को 12वें और प्रशांत किशोर को 16वें स्थान पर रखा है|

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प्रशांत किशोर के बारे में मगज़ीन ने लिखा है कि 42 वर्षीय प्रशांत किशोर साल 2011 से एक राजनीतिक रणनीतिकार हैं. उन्होंने बीजेपी को गुजरात विधानसभा चुनाव जीतने में मदद की. इसके बाद उनकी राजनीतिक रणनीति फर्म सिटीजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस के तहत बीजेपी के लिए उन्होनें साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत में मददगार साबित हुए. बाद में ‘कैग’ का नाम बदलकर आईपीएसी (भारतीय राजनीतिक कार्रवाई समिति) कर दिया गया. प्रशांत किशोर अब संगठन के संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं. साल 2019 में आईपीएसी ने तेलंगाना में वाईएसआर जगन मोहन रेड्डी और महाराष्ट्र में शिवसेना के लिए रणनीतिक अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. चुनाव जीतने में दोनों पार्टियों को फायदा हुआ. प्रशांत किशोर तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को आगामी विधानसभा चुनावों के लिए 2020 में सलाह दे रहे हैं. एक को छोड़ कर, आईपीएसी ने उन सभी अभियानों को जीत लिया है, जिनमें राजनीतिक दलों के लिए उन्होंने रणनीति तैयार की है. उन्होंने पूरी भारतीय राजनीतिक रणनीतिक पारिस्थितिकी तंत्र को बदल दिया है. साल 2018 में प्रशांत किशोर एक राजनीतिज्ञ के रूप में जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गये. हालांकि, उन्हें अभी तक किसी भी सीट से चुनाव नहीं लड़ा है.

कन्हैया कुमार और प्रशांत किशोर के अलावा पांच भारतीयों को भी इस सूची में स्थान मिला है। इनमें भारतीय मूल के यूरोप निवासी आर्सेलर मित्तल के ग्रुप सीएफओ व सीईओ, गोदरेज परिवार, हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा और थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में शेफ भारतीय मूल की गरिमा अरोड़ा शामिल हैं। इस मैगजीन में पहले स्थान पर राजनीतिक टिप्पणीकार व कॉमेडियन हसन मिन्हाज हैं।

Andhra CM, Chandra babu NAidu, Prashant Kishor, Bihari Daku

आंध्रप्रदेश के सीएम चंद्र बाबू नायडू ने प्रशांत किशोर को ‘बिहारी डाकू’ कहकर की है गलती

देश में बिहार के प्रति सबसे ज्यादा दुर्भावना है| देश के दुसरे राज्यों में जाकर, वहां के स्थानीय लोगों से बिहार के प्रति उनका विचार जानियेगा तो इसका प्रमाण भी मिल जायेगा| अगर इस मामले के गहराई में जाकर विश्लेषण कीजियेगा तो पता चलेगा कि ये दुर्भावना किसी के कही बातों, मीडिया में आई ख़बरों और तमाम परेशानियों के बाद भी बिहारियों के सफलताओं से जलन के कारण होता है|

बहुत से मामले में तो लोग किसी बिहारी व्यक्ति से व्यक्तिगत दुश्मनी या खुन्नस निकालने के लिए, बिहार को ही अपशब्द कहने लगते हैं| ऐसा ही कुछ टिप्पणी आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू ने प्रशांत किशोर पर हमला बोलते हुए कर दिया| चुनाव प्रचार के दौरान बिहार जेडीयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर पर हमला बोलते हुए नायडू ने प्रशांत किशोर को ‘बिहारी डाकू’ कहा है|

चाहे कोई भी मामला हो और कितने भी मतभेद हों, किसी राज्य के मुख्यमंत्री को ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए| नायडू द्वारा प्रयोग किये शब्द गाली के सामान हैं| वैसे तो राजनीति में भी व्यक्तिगत हमला नहीं करना चाहिए, उसके साथ किसी व्यक्ति को उसके राज्य के साथ जोड़ कर अपशब्द बोलना उस व्यक्ति के साथ पुरे राज्य का अपमान है| यह ठीक वैसे ही है, जैसे कोई किसी पर भड़ास निकालने के लिए माँ-बहन की गाली दे देते हैं|

इसपर प्रशांत किशोर ने ट्वीट में लिखा, ‘एक तयशुदा हार सबसे अनुभवी राजनेता को भी विचिलत कर सकती है। इसीलिए मैं उनके निराधार बयानों से हैरान नहीं हूं।’ श्रीमान जी, अपमानजनक भाषा, जो कि बिहार के प्रति आपके पूर्वाग्रह और द्वेष को दिखाती है का प्रयोग करने की बजाए इस बात पर ध्यान दें कि लोग आपको दोबारा वोट क्यों नहीं देंगे?’

अपना बिहार मानती है कि आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू एक लोकप्रिय नेता हैं, उनको अपने ये शब्द वापस लेना चाहिए और इसपर सफाई देना चाहिए| उनको लाखों लोग फॉलो करते हैं| ऐसे बयानों से बिहार के प्रति दुर्भावना और बढ़ सकती है|

प्रशन किशोर, नीतीश कुमार, Nitish Kumar, Prashant Kishor, JDU, Bihar, Politics

विश्लेषण: जल्दी में है प्रशांत किशोर, क्या नीतीश को खटक रही है उनकी महत्वाकांक्षा?

प्रशांत किशोर को देशभर में सफल चुनावी रानितिकार के रूप में जाना जाता है मगर प्रशांत किशोर देश की राजनीति में खुद को एक सफल राजनेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं| उनके पास कई विकल्प थे मगर बीती वर्ष 16 सितंबर को प्रशांत किशोर ने रणनीतिकार से नेता बनने के तरफ अपना पहला कदम बढ़ाते हुए जदयू में सामिल ही गये|

इस समय प्रशांत को लेकर जदयू के अन्दर जो घमासान मचा है, उसकी पटकथा तो उसी समय लिखा गया था, जब नीतीश कुमार ने पीके को ‘भविष्य’ बोलकर जेदयू में स्वागत किया| नीतीश कुमार ने यह किस परिप्रेक्ष्य कहा था, वह तो वे ही जाने मगर मीडिया ने इसे नीतीश के उत्तराधिकारी के रूप में लिया| नीतीश कुमार ने भी अघोषित रूप से उनको पार्टी में नंबर 2 की हैसियत दे दी|

पार्टी में प्रशांत किशोर के बढ़ते कद और पुराने नेताओं की घटती अहमियत से भड़कती चिंगारियों को शोला बनना तो तय था मगर उस समय नीतीश का आशीर्वाद होने के कारण किसी के आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं हुई| 

यहाँ यह जानना जरुरी है कि प्रशांत किशोर राजनीति में सिर्फ विधायक, सांसद या मंत्री बनने नहीं आये हैं| उनकी महत्वाकांक्षा इस से कही ज्यादा बड़ा है| ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार को पीके के महत्वाकांक्षा के बारे में पता नहीं रहा होगा| राजनीति में सब अपना फायदा देखता है| नीतीश और प्रशांत दोनों ने भी एक दुसरे में अपना फायदा देखा| मगर अब प्रशांत किशोर की जल्दबाजी अब नीतीश को खटक रही है!

प्रशांत जब से जदयू में सामिल हुए हैं, वे जदयू और नीतीश के नाम पर लोगों को जोड़ तो रहे हैं मगर पार्टी से नहीं खुद से| जदयू को उम्मीद थी कि पीके के आने से जदयू मजबूत होगा मगर उनकी संस्था आईपैक लगातार नीतीश कुमार के जगह प्रशांत किशोर को स्थापित करने में लगी है| प्रशांत किशोर पार्टी हित से ज्यादा अपने हित में लगे हुए हैं या यूं कहें कि प्रशांत नीतीश के जदयू में रहते हुए, उसके समान्तर अपना जदयू तैयार करने में लगे हैं| यही बात नीतीश को खटक रही है और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार प्रशांत और नीतीश के बिच दूरी बढ़ गयी है|

इसका सबसे पहले संकेत हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी के गाँधी मैदान में हुए संकल्प रैली में दिखा| जिसमें पार्टी के पोस्टर के साथ मंच पर भी प्रशांत किशोर को जगह नहीं दी गयी| 

5 मार्च को पीके ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘अगर मैं किसी को मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनाने में मदद कर सकता हूं ,तो बिहार के नौजवानों को मुखिया या विधायक भी बना सकता हूं’। पार्टी में अकेले पड़े पीके का यह बयान जदयू को चेतवानी देने के तरह लिया गया| इसपर जदयू के नीरज कुमार ने तंज कसते हुए कहा कि मनुष्य को अपने बारे में भ्रम हो जाता है। विधायक, सांसद जनता बनाती है और उसे पार्टी टिकट देती है।

पीके यही नहीं रुके| एक इंटरव्यू में वे नीतीश कुमार के फैसले को ही गलत बता दिया है| जिसको लेकर पार्टी के अन्दर ही उनको लेकर भूचाल मचा है|

दरअसल, जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने कहा है कि वह भाजपा के साथ दोबारा गठजोड़ करने के अपनी पार्टी के अध्यक्ष नीतीश कुमार के तरीके से सहमत नहीं हैं और महागठबंधन से निकलने के बाद भगवा पार्टी नीत राजग में शामिल होने के लिये बिहार के मुख्यमंत्री को आदर्श रूप से नए सिरे से जनादेश हासिल करना चाहिये था|

इसपर जद (यू) के महसचिव आऱ सी़ पी़ सिंह ने शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में पीके का नाम लिए बगैर कहा, “जो लोग ऐसा कह रहे हैं, वे उस समय पार्टी में भी नहीं थे। उन्हें इसकी जानकारी नहीं होगी। सभी नेताओं की सहमति से पार्टी महागठबंधन से अलग हुई थी और फिर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल हुई थी।”

पीके के हालिया बयानों से स्पष्ट है कि जद (यू) में सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है। बेगूसराय के शहीद पिंटू सिंह के पार्थिक शरीर के पटना हवाईअड्डा पहुंचने पर जब सरकार और पार्टी की ओर से श्रद्धांजलि देने वहां कोई नहीं गया, तब पीके ने पार्टी की ओर से माफी मांगी थी और इसके लिए उन्होंने ट्वीट भी किया था। जिसके कारण प्रशांत किशोर कि व्यक्तिगत छवि तो चमकी मगर पार्टी की बहुत किरकिरी हुई| इसको भी अब इसी विवाद से जोड़ कर देखा जा रहा है|

जदयू के सूत्रों के मुताबिक प्रशांत किशोर को लेकर जदयू में पहले से ही नाराजगी थी मगर नीतीश कुमार के समर्थन के कारण कोई बोल नहीं रहा था| मगर हालिया घटनाक्रम को देखें तो यह साफ़ है कि प्रशांत किशोर अब पार्टी में अकेले पड़ गयें हैं| प्रशांत की महत्वाकांक्षा और उसके लिए उनकी बेतावी अब नीतीश को खटक रहा है! पीछे मुड़कर देखें तो नीतीश कुमार ऐसे हरकत को सहन नहीं करतें| उपेन्द्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी और शरद यादव इसके कुछ उदाहरण हैं|

 

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नीतीश ने चुना अपना उत्तराधिकारी, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर जेदयू में हुए शामिल

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर परदे के पीछे से बहार निकल अब राजनितिक रंग मंच के मुख्य किरेदार के तौर पर सबके सामने आ गये हैं| चुनावी राजनीति में अपनी महारत दिखा चुके और राजनीति के चाणक्य के रूप में मशहूर बिहार के बक्सर ज़िले में जन्मे प्रशांत किशोर पांडेय ने बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड का दामन थाम लिया है|

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत से जीत दिलाने में प्रशांत किशोर को श्रय दिया जाता है| बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जदयू और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के गठबंधन को जीत दिलाने में भी किशोर का महत्वपूर्ण योगदान था। बिहार के बाद उन्होंने पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी सत्ता हासिल करने में अहम मदद की थी।

अपनी राजनीतिक पारी को शुरू करने से पहले किशोर ने खुद ट्वीट करके अपनी नई यात्रा की जानकारी दी थी। प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर कहा था, ‘बिहार से अपनी नई यात्रा की शुरुआत करने को लेकर बहुत उत्साहित हूं।’ प्रशांत किशोर इस से पहले कई दलों के साथ काम कर चुकें हैं| कांग्रेस और बीजेपी जैसे राष्ट्रीय पार्टियों के शीर्ष नेताओं के बीच अच्छी पैठ होने के बाद भी प्रशांत किशोर ने जेदयू जैसे छोटी पार्टी में शामिल होने का निर्णय लिया है|

इसके पीछे कई कारण बताये जा रहें हैं| चुकीं प्रशांत किशोर खुद मूल रूप से बिहारी हैं इसलिए वह बिहार में काम करना चाह रहे थे| बिहार विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ काम करते हुए वे नीतीश कुमार के नजदीक आए| मगर इस सब के अलावा जो बात राजनितिक हलकों में तैर रही है, वह हैं कि प्रशांत किशोर को जेदयू में नीतीश कुमार के बाद नंबर 2 की हैसियत दी जाएगी|

यही नहीं, प्रशांत किशोर के जदयू में शामिल होने की खबरों के बीच बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ने उन्हें भविष्य बताया है| मीडिया से बात करते हुए नीतीश कुमार ने कहा, ‘ मैं आपको कहता हूं, प्रशांत किशोर भविष्य हैं|’

सूत्रों से आ रही ख़बरों के अनुसार नीतीश कुमार ने जेदयू में प्रशांत किशोर को अपना उत्तराधिकारी बनाने का आश्वासन दिया है| प्रशांत किशोर अपनी संस्था इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी (आई-पैक) के जरिये जेदयू को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करेंगे और 2020 में फिर से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने का रणनीति बनायेंगें| कुछ राजनितिक पंडितों का माने तो 2025 में प्रशांत किशोर जेदयू के तरफ से बिहार में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी हो सकतें हैं|