बिहारी फिल्म उद्योग का भगीरथ कहे जा रहें आइएएस गंगा कुमार से ‘आपन बिहार’ की विशेष बातचीत

सिर्फ 22 साल की उम्र में आईएएस की कठीन परीक्षा पार करने वाले गंगा कुमार अब बिहार राज्य फ़िल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी बनकर बिहार की छवि सुधारने में अहम योगदान दे रहे हैं। बिहार, जहाँ आने से यहीं के एक्टर्स डरने लगे थे, वहाँ कई बड़े इवेंट्स ऑर्गेनाइज़ कराकर गैर बिहारी स्टार्स को भी बिहार आने को मजबूर करना कोई आसान काम नहीं। शायद यही वजह है कि पटना फिल्म महोत्सव के बाद इन्हें ‘बिहारी फिल्म इंडस्ट्रि का भागीरथ’ भी कहा जाने लगा है। यह नाम इन्हें मीडिया ने नहीं वरन् भोजपुरी के सुपरस्टार रवि किशन ने दिया है। इनके प्रयासों,समर्पण और कर्तव्य निर्वहन करने के संकल्प से इन्होंने सभी नामचीन हस्तियों को प्रभावित और प्रेरित किया है। बिहार की विरासत पर अब तक पाँच किताबें भी लिख चुके हैं।

गंगा कुमार और उनकी पत्नी स्नेहा

गंगा कुमार और उनकी पत्नी स्नेहा

 

इतना ही नहीं, अपने आईएएस की सरकारी जिम्मेदारियाँ निभाते हुए गंगा कुमार जी कई गैर सरकारी संगठनों से जुड़कर अपनी सामाजिक व नैतिक जिम्मेदारियाँ भी निभा रहे हैं। बिहार समेत पूरे भारतवर्ष की समृद्ध संस्कृति और वैभवपूर्ण गौरवशाली इतिहास को संरक्षित रखने की संभावना तलाशते श्री गंगा कुमार कैंसर पीड़ितों के लिए भी एक जीवन की तलाश को प्रयासरत हैं। जीवनसाथी के रूप में प्राप्त श्रीमती स्नेहा कैंसर पीड़ितों की जिंदगी में हौसला की प्रेरणा देने के लिए ‘हौसला’ नामक संस्था भी चलाती हैं।

आईएएस गंगा कुमार पटना फिल्म फेस्टिवल के सफल आयोजन के बाद से एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इसके बाद बोधगया विनाले को लेकर निरंतर व्यस्त हैं। ये हमेशा कहते हैं “या तो मैं काम कर सकता हूँ, या फिर इंटरव्यू ही दे सकता हूँ”। सात दिनों तक चले महोत्सव के बाद गंगा कुमार जी ने ‘आपन बिहार‘ से कई मुद्दों पर विस्तृत बात की है। पेश है कुछ अंश-

 

Ganga kumar

प्रश्न- पटना फिल्म फेस्टिवल के बाद आपको बिहारी फिल्म इंडस्ट्री का भागीरथ कहा जाने लगा है। क्या कहेंगे आप इस पर?

 

गंगा कुमार- आपलोगों ने मुझे बिहारी फिल्म इंडस्ट्रि का भागीरथ कहा इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद! लेकिन मैं कोई भागीरथ नहीं हूँ। वो एक महान हस्ति थे, मैं एक छोटा सा हस्ति हूँ। सरकार का जो निर्णय होता है, उसी निर्णय के आलोक में एक ‘रेस्पोंसिबल सिटिजन’ और ‘रेस्पोंसिबल सिविल सर्वेंट’ के तौर पर मेरी जिम्मेदारी है। मैं कोशिश किया हूँ कि जो भी बेस्ट पॉसिबल वे में हो सकता है, वो हम करें।

 

प्रश्न- Pff को सफल बनाने में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पडा?

 

गंगा कुमार- हर अच्छे काम में चुनौती आती है और आती रहेगी। हमारा कर्म होता है उन चुनौतियों का डट कर सामना करें और उसको सॉल्व करें।
इसबार मेजर चुनौती थी कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ें, फिल्म देखने की आदत डालें, लोगों में आर्ट एंड फिल्म के बारे में समझ बनाएँ, बॉलिवुड के इमिनेंट पर्सनालिटी से जनता को रूबरू कराएँ।
इसके अलावा इंट्री सिस्टम के बारे में लोगों का कहना था कि इंट्री पर पैसा रखेंगे तो लोग नहीं आयेंगे। मैं हमेशा कहता था कि कहीं भी आप देखो, सब जगह इंट्री फी 1000-1200 होता है, हम 50 ₹ भी तो रखें 7 दिन के लिए, शुरूआत तो करें।
बिहार की धरती प्रतिरोध की जननी रही है, क्रांतिकारियों का गढ़ रहा है, ऐसे में बहुत जरूरी है कि यहाँ के लोग भी नई चीजों को फॉलो करें।
हमें बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि 1100 से ज्यादा लोगों ने टिकट खरीद कर इंट्री किया है, ये हमारे लिए बहुत बड़ी एचिवमेंट है।
चुनौतियाँ और भी बहुत सारी हैं। अगली बार से पूरी प्लानिंग में पहले से तैयारी शुरू करें। मुझे लगता है इस बार पूर्णरूपेण नहीं कर पाया, कोशिश करूँगा अगली बार से कि यंग जेनेरेशन को भी जोड़ूँ और उनको कला एवं फिल्मों की समझ बनाऊँ, तभी हमारा राज्य तरक्की करेगा।

 

प्रश्न- आपकी संस्था बोधगया विनालय कराने जा रही है । यह बोधगया विनालय क्या है और इसका क्या मकसद है?

 

गंगा कुमार- बोधगया विनालय, हमारी संस्था है ‘कैनवास’, उसके द्वारा हमलोग बिहार में पहली बार करा रहे हैं। ये न सिर्फ बिहार में बल्कि पूरे हिंदुस्तान में कोच्ची विनालय के बाद बोधगया विनालय आयोजित हो रहा है। काफी अच्छा चल रहा है।
इसमें हमने करीब 90-91 कलाकार देश-विदेश से बुलाए हैं, 20 से ज्यादा देश के लोग पार्टिसीपेट कर रहे हैं। थीम में चार चीजें हैं- डिस्प्ले आर्ट एक्जीविशन, फिल्म ऑन आर्ट, डिस्कशन ऑन आर्ट, फ्यूचर ऑफ आर्ट।

Ganga kumar

प्रश्न- जैसा कि ‘बिहार’ भारतीय सभ्यता और संस्कृति का जनक रहा है। बिहार अपने इन विरासतों को कैसे संरक्षित कर सकता है?

 

गंगा कुमार- बिहार की सभ्यता एवं संस्कृति महान रही है| दुनिया भर के सिविलाइज़ेशन की बात करूँ तो बिहार का कल्चरल सिविलाइज़ेशन और मोनुमेंटल सदियों पुराना है| कहीं न कहीं हमलोग सभ्यता-संस्कृति को साइड किये हैं या किसी कारणवश हुआ, जिसे, मुझे लगता है, पुनः दुरुस्त करने की जरूरत है एवं लोगों के बीच में इसको ले जाने की जरूरत है|
उसके लिए दो चीजें महत्वपूर्ण हैं- एक तो सिविलाइज़ेशन है क्या, ये लोगों को बताओ और इनसब चीजों को यंग जेनेरेशन के बीच लाओ| मुझे लगता है सरकार के साथ व्यक्तिगत रूप से हमसभी लोगों की नैतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारी होती है कि इसको (सभ्यता एवं संस्कृति को) आगे बढ़ाएं|
हम लड़ाई-झगड़ा तो दिखाते हैं, मगर उससे ज्यादा जरूरी है सांस्कृतिक एवं पारंपरिक विरासत के बारे में प्रचार करें| इसके लिए दुनिया के विभिन्न कोने में फैले बिहारिओं को भी चाहिए कि वो अपने राज्य के बारे में प्रचार करें|

 

प्रश्न- बिहार के लोगों को व्यक्तिगत तौर पर अपने महान संस्कृति के अस्तित्व को बचाने एवं इसे प्रचारित करने के लिए क्या करना चाहिए?

 

गंगा कुमार- बिहार की मिट्टी ने आपको जन्म दिया है, इतना बड़ा बनाया है, इसका महत्त्व हमें समझना होगा| अगर आप सक्षम हैं तो नैतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारी बनती है कि आप बिहार के लिए कुछ करें|

 

प्रश्न- बिहारी कालाकारों की कमी नहीं है मगर क्या कारण है कि उन्हें अपनी कला प्रदर्शनी के लिए दुसरे राज्यों पर पूरी तरह निर्भर होना पड़ता है?

 

गंगा कुमार- बिहारी कलाकारों की कमी नहीं है| हर जगह बिहारी हैं और इनके संरक्षण की बहुत आवश्यकता है| संरक्षण नहीं होने के पीछे 2 कारण ही मुझे नज़र आते हैं- माहौल डेवेलोप करना और कल्चरल फीलिंग डेवेलोप करना| यकीन करें ये फीलिंग सिर्फ समाज ही क्रिएट कर सकता है|

 

प्रश्न- आप और आपकी संस्था कला और संस्कृति के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र में भी बहुत काम कर रही है। cancer के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए एक ‘हौसला‘ नाम की महीम भी चला रही है। इसके बारे में कुछ बताएँ?

 

गंगा कुमार- ‘ग्रामीण स्नेह फाउंडेशन’ हमारी संस्था है जिसमें मेरी वाइफ ‘स्नेहा’ प्रेसिडेंट हैं| इसमें हमलोग चार एक्टिविटीज करते हैं| एक तो समय-समय पर गाँव में कैंसर जागरूकता अभियान चलाते हैं| डॉ. की टीम लेकर जाते हैं|
दूसरी एक्टिविटी आर्ट एंड कल्चर पर होता है, जो ‘बिहार एक विरासत’ संस्था के द्वारा हमलोग करते हैं| तीसरा एजुकेशन के फील्ड में स्किल डेवलपमेंट से जुड़ी एक्टिविटी है| चौथी एक्टिविटी है- ‘हौसला’| इसमें कैंसर पीड़ितों के लिए एक सपोर्ट ग्रुप है| बेसिकली इन हाउस प्लेटफार्म देते हैं कि कैसे आप खुद को खुश रखें| बहुत तरह की आर्ट एक्टिविटी कराते हैं| इसके अलावा कैंसर पीड़ितों के लिए अपना एक टोल-फ्री नंबर भी है- 1800-345626|
ये एक बहुत बड़ा प्लेटफार्म है जिसको मेरी वाइफ देखती हैं| सुमित हमारा पूरा आईटी का काम देखते हैं| इसी तरह और भी कई लोग हैं|
इसके अलावा हमारा एम्फोसियम चलता है जिसमें करीब 16 देश के लोग जुड़े हैं| साल में 4 बार कार्यक्रम कराते हैं, जिसमें दुनिया भर से 12 लाख से अधिक लोग जुड़ते हैं| हमारा अपना स्नेह ऐप भी है जिसे मनीषा कोइराला जी ने फॉर्मल लॉन्च किया था|
 Ganga kr

प्रश्न- आपने बिहार के स्वर्णिम इतिहास पर कई किताबें लिखी हैं। अपने ऑब्जेक्टिव्स के बारे में बताएँ।

गंगा कुमार- मुझे बहुत अच्छा लगता है कि मैं बुक्स लिखूँ| बिहार की आर्ट एंड कल्चर पर 5 किताबें मैंने लिखी हैं| आगे एक सिरिअल भी लाने का प्लान है- ‘बिहार एक विरासत’| हमारा वेबसाइट भी है- biharekvirasat.com जिसमें बिहार के फ़ूड एंड फेस्टिवल्स एवं बिहार की किताबें, उनसबको हम लोगों के बीच फ्री ऑफ़ कॉस्ट लेके जा रहे हैं| हमारा ऑब्जेक्टिव कभी भी पैसा कमाना नहीं रहा है|

 

प्रश्न- आप पांच वर्षों से बिहार सरकार में प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं। इन पांच वर्षों बिहार में काम करने का कैसा अनुभव रहा?

 

गंगा कुमार- बिहार में कार्य करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा है| मैं इसके लिए व्यक्तिगत रूप से माननीय मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार जी एवं प्रिंसिपल सेक्रेटरी ऑफ़ सीएम श्री चंचल कुमार सर का शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने मुझे इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी| इतनी क्रिटिकल चीजें सौंपीं| मुझे बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन के 5 करोड़ की संस्था को 1000 करोड़ से ऊपर ले जाने का मौका मिला| उन्हें मुझ पर भरोसा था और मैंने कोशिश की कि जो भी हो सकता है मैं करूँ| मेरी ये नैतिक जिम्मेदारी होती है कि सरकार अगर मुझपर भरोसा करती है तो किसी भी तरह मैं उसे पूरा करूँ|

 

प्रश्न- पटना फिल्म फेस्टिवल के अलावा आपके नेतृत्व में कई फिल्म से संबंधित इवेंट होने वाले हैं। इस सब से बिहारी फिल्म इंडस्ट्री पर क्या प्रभाव पडे़गा या क्या असर दिख रहा है?

 

गंगा कुमार- मुझे लगता है पटना फिल्म फेस्टिवल या रीजनल फिल्म फेस्टिवल के दूरगामी असर होंगे| बाहरी कलाकार बिहार आयेंगे तो एक माहौल बनेगा कि लोग बिहार में शूटिंग की संभावना तलाशेंगे और कल्चरल विरासत जो थी बिहार की उसे दुनिया के पटल पर लाया जा सकेगा|

 

प्रश्न- बिहार के युवाओं में आईएएस अफसर बनने का क्रेज रहता है। आप मात्र 22 वर्ष के उम्र में आईएस बन गये। अपनी प्रेरणा के बारे में कुछ बताएँ। सिविल सेवा की तैयारी कर रहे युवाओं को कुछ मार्गदर्शन दें।

 

गंगा कुमार- साढ़े बाईस साल की उम्र में मैं सिविल सेवा ज्वाइन किया था| मैं गाँव का लड़का था जहाँ छठी-सातवीं में ABCD सिखाई जाती थी| मन में तमन्ना थी कि मुझे पढ़ना है| मुझे लगता है कि जब मैं कर सकता हूँ तो कोई भी कर सकता है| धीरे-धीरे हालात ने मुझे खुद से इतना स्ट्रोंग बना दिया कि अब हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड और बहुत सारी यूनिवर्सिटी से मेरा जुड़ाव हुआ|
मेरे पूरे परिवार का, माता जी का खास तौर पर, स्नेह था और उनका हमेशा कहना था कि तुमको आगे बढ़ना है| गाँव की समस्याओं में, परिवार की समस्या में बाद में फँसना है| पहले राज्य के लिए, देश के लिए तुम्हें सिविल सेवा में जाना है| तो इसलिए मैंने कोशिश की और मुझे लगता है मेरे पेरेंट्स हमेशा सही कहते थे| छोटी-छोटी चीजों में फंसोगे तो बड़े चीज़ के बारे में कभी नहीं सोच पाओगे|
मैं सारे यंग जेनेरेशन को ये कहना चाहता हूँ “छोटी चीजों में मत फँसो| फलाना तुम्हारा कपड़ा लेके भाग गया, रोड पर कोई ठोकर मार दिया या कोई गाड़ी में लग गया तो लड़ रहे हैं, इत्यादि-इत्यादि बहुत सारी चीजें| क्योंकि सबकी एनर्जी लिमिटेड है| टाइम 24 आवर्स को तुम कैसे यूटीलाइज़ करोगे, वो बड़ा महत्वपूर्ण होता है| तो छोटी चीजों में मत फँसो, बड़ी सोच रखो, उसको रीयलिस्टिक अप्प्रोच में कैसे लायें इसके बारे में सोचो और उसको एक्सीक्यूट कैसे करें इसपर ध्यान दो| ये बहुत जरूरी है| जो इसपर रहा वो आगे निकला, जो नहीं रहा वो, अनफोर्च्युनेटली, मेडियोकर बन के रह जाता है| मैं मेडियोकर लोगों को बहुत पसंद नहीं करता हूँ| मुझे लगता है वो आये हैं, खायेंगे, जियेंगे और मर जायेंगे| तो ऐसे लोग मुझे कम पसंद आते हैं| मुझे वैसे लोग काफी पसंद आते हैं जिनमें आईडिया है, क्रिएटिविटी है, आउट ऑफ़ वे ही सही सोचते हैं, एक्सीक्यूट करना चाहते हैं| वैसे लोगों को मैं बहुत पसंद करता हूँ, मदद भी करना चाहता हूँ|

Pff: भगीरथ बन बिहारी फिल्म उद्योग में जान फूंक गए गंगा कुमार

फ़िल्में, फ़िल्मी सितारे, अवार्ड्स और प्रेस! अमूमन फ़िल्म फेस्टिवल्स में यही तो होते हैं| इनसब के साथ जब जज्बात, संभावनाएँ और यादें जुड़ जाती हैं तो बन जाता है ‘पटना फ़िल्म फेस्टिवल’| शायद इन्हीं तमाम चीजों का संगम न हो सका था तभी तो 2007 से शुरू हुए पटना फ़िल्म फेस्टिवल की इतनी व्यापक चर्चा न ही मीडिया में हुई, न फ़िल्मी गलियारे में और न जनता के बीच| ये पहली मर्तबा था जब बिहार ने किसी फ़िल्म फेस्टिवल को इतने करीब से देखा और इसकी सफलता का साक्षी बना| बिहार के तमाम ‘सोशल मीडिया साइट्स’ पर छाया रहा यह और यहाँ छाए रहे बिहार के ‘सोशल मीडिया साइट्स’|

Pff
‘हमारा बिहार, जय बिहार’ की थीम के साथ शुरू हुए इस महोत्सव की सफलता का आकलन हम इसी बात से कर सकते हैं कि कोई मकाऊ में अपने फ़िल्म की स्क्रीनिंग छोड़ कर पटना की फ्लाइट पकड़ लेता है तो कोई मराठी बोलते-बोलते अपनी आने वाली भोजपुरी फिल्म के प्रमोशन के लिए इस बिहार आना स्वीकार करता है| कोई इमोशनल होकर मन की बात कह जाता है तो कोई गर्व महसूस करता है यहाँ की बदली तस्वीर देखकर| पद्मविभूषण से सम्मानित नृत्यांगना डॉ. सोनल मानसिंह 20 साल बाद अपनी प्रस्तुति के साथ पटना आईं|
बिहार के लिए तो ये नई बात थी ही, यहाँ आये तमाम सितारों ने कुबूला कि यहाँ आना उनके लिए भी सुखद और नया अनुभव था| जमीं से जुड़े सितारों ने अपने पुराने दिनों को याद किया, और यादें ताज़ा करने के लिए पटना से दूर भी निकल पड़े|
इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आईएएस और बिहार राज्य फ़िल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार के प्रयासों की जितनी सराहना की जाये, कम है| उनके प्रयासों के कारण ही यह ‘फ़िल्म फेस्टिवल’ इतना बड़ा बना और सबकी नज़र में आया|

गंगा कुमार

गंगा कुमार

उम्मीद है बिहार की बदलती तस्वीर में सिनेमा का एक नया रंग भरेगा और इसकी खूबसूरती बढ़ाएगा| सरकार आगे भी ऐसे ‘सांस्कृतिक आयोजनों’ के जरिये लोगों को अपनी जमीं से जुड़ने का मौका देती रहेगी|
और क्या-क्या हुआ इस बीच और क्या-क्या कहा इन सितारों ने अपने बिहार के लिए, क्षेत्रिय भाषा में बनने वाली फिल्मों के लिए, इसकी तमाम जानकारी आपतक ‘अपना बिहार’ के माध्यम से अंकित कुमार वर्मा और अनुपम पटेल लाते रहे हैं|

आज प्रस्तुत है पटना में हुए सात दिवसीय ‘पटना फ़िल्म फेस्टिवल’ में सितारों के उद्गार की कुछ झलकियाँ-

  • -> रविन्द्र भवन में हुए ‘ओपन हाउस डिबेट’ में अभिनेता ‘कुणाल सिंह’ कहते हैं- “भोजपुरी एक मजबूत भाषा है, जो दुत्कार के बाद भी जिंदा है| हिंदी सिनेमा में एक दौर ऐसा था कि उन्होंने भोजपुरी को बाजार बनाकर उपयोग किया, लेकिन हम पिछड़ गए| भोजपुरी सिनेमा की दूसरी बड़ी समस्या थिएटर भी है, जो निम्न स्तर के होते हैं| इसलिए एक बड़ा वर्ग भोजपुरी फिल्मों के लिए थिएटर नहीं जाता है| बिहारी होने पर गर्व कीजिए आपकी भाषा (भोजपुरी) बहुत मजबूत है| हिंदुस्तान में हिंदी के बाद सबसे ज्यादा बोली भाषा है| अपने संस्कृति और रीति-रिवाज से प्यार कीजिए इसे जिंदा रखिये और अश्लीलता को बिलकुल नकारिये|”
  • -> ‘अंजनी कुमार’ युवाओं पर उम्मीद जताते हुए कहते हैं- “भोजपुरी फिल्मों के विकास के लिए आज साहित्य, थिएटर और सिनेमा पर विशेष ध्यान देना होगा| युवा फिल्म मेकर शॉर्ट और डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाकर यूट्यूब के जरिए भी भोजपुरी सिनेमा को आगे ले जा सकते हैं|”
  • -> भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार कहे जाने वाले अभिनेता ‘रवि किशन’ प्रेस वार्ता के दौरान भावुक हो गये| उन्होंने गंगा कुमार को भोजपुरी सिनेमा का भागीरथ बताया| भोजपुरी सिनेमा की खामियाँ बताते हुए वो कहते हैं- “भोजपुरी कलाकारों और डायरेक्टरों में एकता की कमी है। ज्यादातर कलाकार अशिक्षित हैं जिस कारण भोजपुरी का स्तर गिरा है। इसके लिए मैं सबमें अपने स्तर से एकता लाने की कोशिश करूँगा। भोजपुरी में कहानी नहीं होने से उसका ग्रोथ रुक गया है। फिल्मों में बस नाच गाना और व्लगैरिटी दिखा कर पैसे बटोरे जा रहें है। भोजपुरी में बिरसा मुंडा, कुवंर सिंह पर फिल्में बनेंगी। मैं भोजपुरी को नेशनल अवार्ड दिलाना चाहता हूं। भोजपुरी इंडस्ट्री में जुनून, जज्बा तो हैं, मगर सपोर्ट और संसाधन नहीं है। हमारी फ़िल्म को मल्टीप्लेक्स में सहित अच्छा सिनेमा नहीं मिलते। दूसरी भाषाओं में भोजपुरी से ज्यादा फूहड़ फिल्में बनती हैं लेकिन कोसा भोजपुरी को ही जाता है। जबकि दूसरी भाषा की फिल्मों को कला के नजरिए से देखा जाता है। भोजपुरी में अच्छी फिल्म भी बन रही हैं फिर भी मैं भोजपुरी उद्योग में फैली गंदगी को दूर करने के लिए मोर्चा खोलूंगा।“ उन्होंने निवेदन भी किया कि भोजपुरी में बन रही एल्बम को भोजपुरी एंडस्ट्री ना जोड़ें।
  • -> फिल्म निर्माता ‘मोनिका सिन्हा’ ने कहा- “अश्लील फिल्मों को बिलकुल नकारिये, दर्शकों को इसके खिलाफ स्ट्रांग होना होगा| जबतक आप स्ट्रांग नही होंगे हम कुछ नही कर सकते| ऐसे फिल्मों से समाज पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है| इससे हमारा समाज सौ कदम पीछे जा रहा है| सरकार को भी इसपर ध्यान देना होगा| सरकार शराबबंदी को तरह अश्लील फिल्मों पर रोक लगाये|”
  • -> डायरेक्टर ‘आनंद गहतराज’ ने कहा- “हमारें यहां भी अच्छी फिल्में है। हमें बस उसे सही प्लेटफार्म तक पहुँचाना है।“
  • -> निर्देशक व विधायक ‘संजय यादव’ कहते हैं- “भोजपुरी में अधिकतर शब्द दो अर्थी होते हैं, लेकिन हम उसे गलत रूप से सोचते हैं। बिहार के प्रति डायरेक्टरों का झुकाव हुआ है। आने वाले दिनों में कई भोजपुरी फिल्म की शूटिंग बिहार में होगी|”
  • -> ‘नीरज घेवन’ बिहार में शूटिंग करने की स्वीकारोक्ति देते हुए कहते हैं- “हम बिहार में शूटिंग के तैयार है ये जरुरी नहीं हैं कि हम बिहार में शूटिंग के लिए पर्यटन स्थल को ही चुनें। मीडिया को बिहार की अच्छी छवि दिखानी होगी। मुम्बई में लोगों के बीच गलत छवि पेश की गई है। जबकि बिहार प्रोफेशनल राज्य है। यहाँ वैसा कुछ नहीं हैं|”
  • -> दिलवाले, शिवाए समेत कई बड़ी फिल्मों में एक्टिंग कर चुके अभिनेता ‘संजय मिश्रा’ कहते हैं- “अभिनेता संजय मिश्रा कहा कि बिहार के पास कोई अपना स्लोगन नहीं है जैसे राजस्थान का स्लोगन है पधारो म्हारे देश। यहाँ स्लोगन की सख्त जरुरत है, बिना बुलाये आपके यहाँ आकर कोई शूटिंग नहीं करेगा। फिलहाल ही एक फिल्म की शूटिंग में बिहार को दर्शाने के लिए 1 करोड़ खर्च कर बिहार का सेट बनाया गया था| क्षेत्रीय फिल्मों के विकास में सरकार बड़ी भूमिका निभा सकती है| फिल्मों के विकास के लिए कॉरपोरेट की बड़ी जरूरत है लेकिन सिर्फ ‘जय बिहार’ कहने भर से निर्माता बिहार में आकर फिल्म नहीं बनायेंगे बल्कि वैसा माहौल बनाना होगा| सही माहौल बना तो बिहार में फिल्में जरुर बनेंगी| पटना फिल्म फेस्टिवल एक शानदार पहल है|”
  • -> भोजपुरी फिल्मों में अश्लीलता पर जवाब देते हुए भोजपुरी सुपरस्टार ‘दिनेश लाल यादव’ ने कहा- “यह सही है की कुछ लोगों ने यहाँ अश्लील फिल्मे बनायी और इस बात को मै नही नकार सकता हूँ। ऐसे लोगों को पता ही नहीं था की भोजपुरी क्या है, भोजपुरी की कल्चर क्या है, यहाँ के लोगों की चाहत क्या है| ऐसे फिल्म बनाने बनाने वालों का जबर्दस्त नुकसान हुआ, वैसे बड़े-बड़े बैनर आये और चले गए| आज भोजपुरी सिनेमा में वही लोग कार्यरत हैं जो अच्छी फिल्मे बना रहे हैं, यहाँ के रहन सहन को जानते हैं| भोजपुरी फिल्मों में वही फिल्म सफल हो पाती है जो फिल्म पुरे परिवार के साथ देखा जा सकता है| भोजपुरी फिल्मों में काफी बदलाव हुआ है और आगे भी होगा| आज भोजपुरी फिल्म सिर्फ बिहार और यूपी तक सीमित नही है, देश के हर प्रांत में भोजपुरी फिल्मे चल रही है|”

 

  • -> ‘जब वी मेट’ और ‘हाइवे’ जैसी फिल्मों के निर्देशक ‘इम्तियाज अली’ कहते हैं- “इंसान की बुद्धि का सबसे ज्या‘द विकास बिहार में होता है। ऐतिहासिक परिदृश्यन में भी जो लोग बिहार से हुए हैं, वे काफी प्रभावित करते हैं|”
  • -> यहाँ ‘बिहार रत्न’ के सम्मान से नवाजे जाने के बाद मशहूर अभिनेता मनोज वाजपेयी ने कहा- “मनोरंजन सिर्फ नाच गाना नहीं होता, मनोरंजन अच्छी कहानी और अच्छी फिल्में भी होती हैं। दो दशकों से हम ये लड़ाई लड़ रहे हैं। पिछले दिनों किसी ने मेरी फिल्म बुधिया सिंह और अलीगढ को मनोरंजक नहीं कहा। तब मुझे लगा कि मुझे अपनी लड़ाई और लड़नी है। ये फिल्में बच्चों के विकास में बाधक नहीं हैं। इन फिल्मों को देख कर बच्चे अपने भविष्य को सवार सकते हैं। बाधा तो वो फिल्मे हैं, जो बच्चों को समाज से अलग करता है। थियेटर करने की चाहत में पढ़ायी के बहाने पटना छोड़े 30 साल हो गए। इस दौरान यहां कोई ऐसा बड़ा आयोजन होते नहीं देखा था। पटना में कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम करना मुश्किल होता था और काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन पटना फिल्म फेस्टिवल के इतने बड़े आयोजन को देख कर गर्व महसूस हो रहा है। फिल्म फेस्टिवल दर्शकों से, समाज से, फिल्मकारों के समाज से संवाद स्थापित करने का एक कारगर साधन है। फिल्मों को लेकर छोटे शहरों सिनेमा के प्रति नजरिया बदला है, वो काफी सराहनीय है। इसलिए मैंने बड़े शहरों की और देखना बंद कर दिया है|”

  • -> नृत्यांगना डॉ. सोनल मानसिंह कहती हैं- “बिहार सांस्कृतिक रूप से फिर से उभर कर सामने आ रहा है। बिहार से मेरे पुराने संबंध रहे हैं। मैं 20 साल बाद यहां अपनी प्रस्तुति दे रही हूं। बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार का ने एक अनूठा प्रयोग किया है, जो सराहनीय है। अमूमन फिल्म महोत्सव के समापन सत्र फिल्मों के नृत्य से संपन्न होता है, लेकिन यहां समापन मेरे नृत्य से हो रहा है। बिहार बोध सर्किट में आता है। अगर यहां एक बुद्धिस्टि फिल्म फेस्टिवल का भी आयोजन होता, तो ये राज्य और पर्यटन के लिहाज से भी हितकारी होगा|”
  • -> अभिनेत्री सारिका ने भी फिल्म फेस्टिवल की सराहना की और कहा- “ऐसे आयोजन लगातार होते रहने चाहिए|”
  • -> आपन बिहार के फेसबुक पेज पर लाइव आये अभिनेता पंकज त्रिपाठी जी कहते हैं- “बिहार की छवि बदल रही है| इस आयोजन से फिल्मकार बिहार की नई छवि लेकर जा रहे हैं| संभावना है बिहार को लेकर अच्छी फ़िल्में भी बनेंगी|”

-> आईएएस ‘गंगा कुमार’ ने परिचर्चा में शामिल होते हुए कहा- “सरकार अपनी नई फिल्म नीति के तहत फिल्म मेकर्स को हर वो बेसिक चीजें उपलब्ध कराएगी, जिनकी उनको जरूरत है|”

Pff: पटना फिल्म फेस्टिवल में मनोज वाजपेयी को मिला पहला बिहार रत्न सम्मान

9 दिसंबर से शुरू पटना फिल्म फेस्टिवल 2016 का समापन आज पद्म विभूषण डॉ सोनल मानसिंह के परफॉर्मेंस के साथ हो गया। इसमें हिन्दी के साथ भोजपुरी, मैथली, मगही और अंगिका का प्रदर्शन किया गया। पटना रविन्द्र भवन में आयोजित समापन समारोह में बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम लिमिटेड व कला, संस्कृति और युवा विभाग की तरफ से पहला बिहार रत्न सम्मान पुरस्कार शुरू किया गया। पटना फिल्म एवं वित्त निगम की तरफ से इसके लिए अभिनेता मनोज वाजपेयी को यह सम्मान मिला।

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इस मौके पर मनोज वाजपेयी ने कहा कि मनोरंजन सिर्फ नाच गाना नहीं होता, मनोरंजन अच्छी कहानी और अच्छी फिल्मेंं भी होती है। दो दशकों से हम ये लड़ाई लड़ रहे हैं। पिछले दिनों किसी ने मेरी फिल्म बुधिया सिंह और अलीगढ को मनोरंजक नहीं कहा। तब मुझे लगा कि मुझे अपनी लड़ाई और लड़नी है। ये फिल्में बच्चों के विकास में बाधक नहीं हैं। इन फिल्मों को देख कर बच्चे अपने भविष्य को सवार सकते हैं। बाधा तो वो फिल्मे हैं, जो बच्चों को समाज से अलग करता है। उन्होंने कहा कि थियेटर करने की चाहत में पढ़ायी के बहाने पटना छोड़े 30 साल हो गए। इस दौरान यहां कोई ऐसा बड़ा आयोजन होते नहीं देखा था। पटना में कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम करना मुश्किल होता था और काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन पटना फिल्म फेस्टिवल के इतने बड़े आयोजन को देख कर गर्व महसूस हो रहा है। फिल्म फेस्टिवल दर्शकों से, समाज से, फिल्मकारों के समाज से संवाद स्थापित करने का एक कारगर साधन है। फिल्मों को लेकर छोटे शहरों सिनेमा के प्रति नजरिया बदला है, वो काफी सराहनीय है। इसलिए मैंने बड़े शहरों की और देखना बंद कर दिया है।

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समापन समारोह के दौरान पद्म विभूषण डॉ सोनल मानसिंह ने कहा कि बिहार सांस्कृतिक रूप से फिर से उभर कर सामने आ रहा है। बिहार से मेरे पुराने संबंध रहे हैं। मैं 20 साल बाद यहां अपनी प्रस्तुति दे रही हूं। बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार का ने एक अनूठा प्रयोग किया है, जो सराहनीय है। अमूमन फिल्म महोत्सव के समापन सत्र फिल्मोंं के नृत्य से संपन्न होता है, लेकिन यहां समापन मेरे नृत्य से हो रहा है। उन्होंने बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम लिमिटेड को ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि बिहार बोध सर्किट में आता है। अगर यहां एक बुद्धिस्टि फिल्म फेस्टिवल का भी आयोजन होता, तो ये राज्य और पर्यटन के लिहाज से भी हितकारी होगा।

अभिनेत्री सारिका ने भी फिल्म फेस्टिवल की सराहना की और कहा कि ऐसे आयोजन लगातार होते रहने चाहिए। इससे पहले बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम लिमिटेड गंगा कुमार ने कार्यक्रम में आए अतिथियों को फूल गुच्छ, शॉल और मोमेंटे देकर सम्मानित किया। समापन समारोह में साहित्यकार उषा किरण खान, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकार त्रिपुरारी शरण, अभिनेत्री व पटना फिल्म फेस्टिवल में ज्यूरी हेड सारिका, ज्यूरी मेंबर फरीदा मेहता व परेश आमदार,पूर्व आईएएस आरएन दास, बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम की विशेष कार्य पदाधिकारी शांति व्रत भट्टाचार्य, अभिनेता विनीत कुमार, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम, फिल्म फेस्टिवल के संयोजक कुमार रविकांत, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा आदि उपस्थित रहे।

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वहीं, समापन समारोह के दौरान फिल्म विकास के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए स्व अशोकचंद जैन, मोहनजी प्रसाद, राकेश पांडेय, विशुद्धानंद, कुणाल सिंह, विजय खरे, किरण कांत वर्मा, सुनील प्रसाद, जीतेन्द्र सुमन, अभय सिंह, प्रेमलता मिश्रा और कुणाल बैकुंढ़ सिंह को निगम के एमडी श्री गंगा कुमार द्वारा सम्मानित किया गया। इसके अलावा फिल्म फेस्टिवल के दौरान आयोजित फिल्म क्रिटिक प्रतियोगिता में पहले स्थान पर पटना कॉलेज की छात्रा तसलीम फातिमा, दूसरेे स्थान पर पटना कॉलेज के ही उज्जवल कुमार और तीसरे स्थान पर संत जेवियर्स कॉलेज ऑफ मैंनेजमेंट, पटना के रविरंजन रहे। वहीं, बख्यितयारपुर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पटना की नेहा कुमारी चौथे और संत जेवियर्स कॉलेज ऑफ मैंनेजमेंट अस्मित नंद ने पांचवां स्थान हासिल किया।
बता दें कि पटना फिल्म फेस्टिवल 2016 में कंपीटिशन और आईएफएफआई पैनोरमा की कुल 20 फिल्मों का प्रदर्शन रीजेंट सिनेमा में हुआ, जबकि रविंद्र भवन के हॉल एक में भोजपुरी की 14, मैथिली की तीन, मगही और अंगिका की एक – एक फिल्मों का प्रदर्शन हुआ। इसके अलावा छह डॉक्यूमेंट्री और 21 शॉट फिल्में रविंद्र भवन के हॉल दो में दिखाई गई। पटना फिल्म फेस्टिवल 2016 में खासतौर पर विभिन्न विषयों पर परिचर्चा का भी आयोजन किया गया। इसमें बॉलीवुड और भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की जानी मानी हस्तियों ने शिरकत किया।

इन्हें मिला अवार्ड:-

Best Short Film – Days Of Autumn

Best Documentary – Sax in the City

Special Jury Award (Documentary) – Juitiya

Best Actor (Feature Film) – Moksha Hunter (Film – Head Hunter)

Best Actress (Feature Film) – Urmila Mahanta (Film – Bokul)

Best Director (Feature Film) – Manish Mitra (Film– Le Lotta)

Best Feature Film – Le Lotta,

Special Jury Award – Juitiya

Special Jury Award For Ensemble Cast – Le Lotta

Best Scriptwriter (Feature Film)-
1. Ripak Das
2. Nayanita Sen Datta 3.Nilanjan Datta (Film- Head Hunter)

यह अभिनेता मकाऊ फिल्म फेस्टिवल को छोड़कर पटना फिल्म फेस्टिवल में सामिल हुए

पटना फिल्म फेस्टिवल में गुरुवार को रीजेंट में सुलतान और इग्लीश फिल्म मैंगो ड्रीम्स का प्रदर्शन किया गया। वहीं, रविंद्र भवन के दूसरे स्क्रीन पर भोजपुरी फिल्म जिंदगी है गाड़ी सैया ड्राइवर – बीवी खलासी, दूल्हा और धरती मैया दिखाई गई।

पटना फिल्म फेस्टिवल के अंतिम दिन रीजेन्ट में फिल्म एवं वित्त निगम के गंगा कुमार, फिल्म अभिनेता पंकज त्रिपाठी मौजूद रहे। गैग्स ऑफ वासेपुर, नील बट्टे सन्नाटा जैसी फिल्म और कई टीवी सिरियल में प्रमुख भूमिकाएं निभाने वाले अभिनेता पंकज त्रिपाठी मकाऊ फिल्म फेस्टिवल को छोड़कर पटना फिल्म फेस्टिवल में आये।Pankaj tripathi pff

पंकज त्रिपाठी ने कहा कि मकाउ में मेरी फिल्म गुड़गांव की स्क्रीनिंग है, इसके बाद बर्लिन में भी दिखाई जाएगी। इससे ये साबित होता बिहार की प्रतिभा को इंटरनेशनल लेवल पर सम्मान मिल रहा है। मुझे बिहारी होने पर गर्व है, मैं मकाउ फिल्म फेस्टिवल छोड़कर अपनो के बीच पटना फिल्म फेस्टिवल में आया। उन्होंने कहा कि बिहार हमेशा से मुझे वापस खींचता है। मैं देश-विदेश कहीं भी रहूं अपनी मिट्टी से जुड़ा रहता हूं। मैं नौकरी नहीं करना चाहता था इसलिए मैं थियेटर से जुड़ा। हालांकि बाद में आगे कोई स्कोप ना देखकर मैंने होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर शेफ का भी काम किया। लेकिन अपने एक्टिंग मोह को ना छोड़ सका और वापस फिल्म और सीरियल की दुनिया में चला गया।

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उन्होंने कहा कि बिहार की छवि को क्राइम जेनेरेटेड स्टेट का बना दिया गया है। यहां के लोगों में जो प्रतिरोध की क्षमता है उसे निगेटिव रूप में प्रचारित किया गया है। फिल्मकार बिहार की उसी बनी-बनाई छवि को सच मान बैठे हैं। पैनल डिस्कशन में पंकज त्रिपाठी के साथ रामगोपाल बजाज, पुंज त्रिपाठी, अविनाश दास मौजूद थे।

भोजपुरी में अच्छी स्क्रिप्ट पर फ़िल्म बनाये तो हर फिल्म 100 करोड़ से ऊपर पहुंच सकती है!

पटना के रीजेंट और रविन्द्र भवन में ही रहे पटना फिल्म फेस्टिवल में बुधवार को रविन्द्र भवन में भोजपुरी एक्ट्रेस तेजल चौधरी शिरकत की। तेजल चौधरी महाराष्ट्र की निवासी है जो मराठी के कई फिल्म में काम कर चुकी है। अभी तेजल भोजपुरी फिल्म की शूटिंग कर रही है। तेजल चौधरी ने परिचर्चा में कहा कि सबसे पहले मैं बिहार की पावन धरती को प्रणाम करती हूँ। तेजल पटना फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा बनने के लिए फिल्म एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार को शुक्रिया अदा की।

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तेजल ने भोजपुरी फिल्म पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हर चीज के दो पहलू होते है एक नेगेटिव और एक पोस्टिव आप किस श्रेय से देखते है आप पर डिपेंड करता है। मराठी में बनी सैराड भोजपुरी में भी बन सकती है। अगर हम भोजपुरी में अच्छी स्क्रिप्ट और फ़िल्म बनाये तो हर फिल्म 100 करोड़ से ऊपर पहुंच सकती है। मौके पर फिल्म एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार, डायरेक्टर अभिलाष सिंह, अवधेश प्रीत, फिल्म विशेषज्ञ राहुल कपूर, रंजन जी आदि मौजूद थे।

https://youtube.com/watch?feature=youtu.be&v=s4esc8tt7wo

 

वही रीजेन्ट में हो रहे पटना फिल्म फेस्टिवल में फिल्म हैदर, फोर्स – 2 और मोहनजोदारो जैसी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ चुके मधुबनी निवासी नरेन्द्र झा मौजूद रहे।

नरेन्द्र झा ने कहा कि बिहार विविधताओं का प्रदेश है। फिल्म क्षेत्र में भी वही बात है। हिन्दी, मगही, भोजपुरी मैथिली और अंगिका इतनी भाषाओं में फिल्में बन रही है कि वह एक जगह नहीं ले पा रही है। जरूरत है सबको एक साथ चलने की। हम एक साथ चलेंगे, तब ही हमारा विकास होगा। उन्होंने बिहार की प्रशंसा करते हुए कहा कि यहां से हर साल हर क्षेत्र में टॉपर्स निकलते हैं। हमें इसे प्रचारित करना चाहिए। बिहार को प्रचारित करने के लिए बिहार का नाम ही काफी है। हमारी मिट्टी में एक अलग ही खास बात है।

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बिहार में फिल्मों का विकास बड़े स्तर पर होगा। बिहार में इतनी कहानियां है जिस पर फिल्म बने तो इंटरनेशनल लेवल पर जाएंगी। बस जरूरत है सबको इकट्ठा होकर काम करने की। एकजुट होकर विचार करने की। इसकी शुरुआत फिल्म फेस्टिवल से हो गई है।

भोजपुरी फिल्म को नेशनल अवार्ड तक ले जाऊंगा- रवि किशन

रविन्द्र भवन में चल रहे पटना फिल्म फेस्टिवल का “आपन बिहार” लगातार लाईव अपडेट्स आपको दे रहा है। आपन बिहार के तरफ अंकित कुमार वर्मा फिल्म फेस्टिवल को कवर कर रहें है।

 

मंगलवार को अभिनेता रवि किशन, फिल्म एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार, डायरेक्टर आनंद गहतराज, विमल झा, निर्देशक व काराकाट विधायक संजय यादव और निराला ने भोजपुरी फिल्म एवं उसके उत्थान की बातें की।

रवि किशन ने फिल्म फेस्टिवल की तारिफ करते हुए गंगा कुमार को फिल्म जगत का भगीरथ बताया। भोजपुरी फिल्मों को दिखाने के लिए एक स्टेज देने पर गंगा कुमार का धन्यवाद किया। साथ ही भोजपुरी के उत्थान के लिए अपने स्तर से काम करने की बात की।

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रवि किशन ने भोजपुरी की छवि सुधारने की बात कही। उन्होंने कहा कि भोजपुरी सिनेमा के स्तर को नेशनल अवार्ड तक ले जाना चाहता हूं। उन्होंने कहा कि भोजपुरी कलाकारों और डायरेक्टरों में एकता की कमी है। ज्यादातर कलाकार अशिक्षित है जिस कारण भोजपुरी का स्तर गिरा है। इसके लिए मैं सबमें अपने स्तर से एकता लाने की कोशिश करुंगा। उन्होंने कहा कि भोजपुरी में कहानी नहीं होने से उसका ग्रोथ रुक गया है। फिल्मों में बस नाच गाना और व्लगैरिटी दिखा कर पैसे बटोरे जा रहें है। भोजपुरी में बिरसा मुंडा, कुवंर सिंह पर फिल्में बनेगी। मैं भोजपुरी को नेशनल अवार्ड दिलाना चाहता हूं। भोजपुरी इंडस्ट्री में जुनून, जज्बा तो हैं, मगर सपोर्ट और संसाधन नहीं है। हमारी फ़िल्म को मल्टीप्लेक्स में सहित अच्छा सिनेमा नहीं मिलते। उन्होंने कहा कि दूसरी भाषाओं में भोजपुरी से ज्यादा फूहड़ फिल्में बनती है लेकिन कोसा भोजपुरी को ही जाता है। जबकि दूसरी भाषा की फिल्मों को कला के नजरिए से देखा जाता है। उन्होंने कहा कि भोजपुरी में अच्छी फिल्म भी बन रही हैं फिर भी मैं भोजपुरी उद्योग में फैली गंदगी को दूर करने के लिए मोर्चा खोलूंगा। उन्होंने निवेदन भी किया कि भोजपुरी में बन रही एल्बम को भोजपुरी एंडस्ट्री ना जोड़े।

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डायरेक्टर आनंद गहतराज ने कहा कि हमारें यहां भी अच्छी फिल्में है। हमें बस उसे सही प्लेटफार्म तक पहुंचना हैं।

निर्देशक व विधायक संजय यादव ने कहा कि भोजपुरी में अधिकतर शब्द दो अर्थी होते है लेकिन हम उसे गलत रूप से सोचते है। बिहार के प्रति डायरेक्ट्रो की झुकाव हुआ है। आने वाले दिनों में कई भोजपुरी फिल्म की शूटिंग बिहार में होगी।