बिहार के तथागत को मिले न्याय: सबसे कम उम्र के आईआईटी प्रोफेसर को नौकरी से निकला गया

बचपन में एक नाम बहुत सुनने को मिलता था- तथागत अवतार तुलसी. बेहद कम उम्र में बड़ी बड़ी डिग्रियां लेने वाला एक मेधावी विद्यार्थी. बिहार में जन्में तुलसी महज 12 वर्ष में एमएससी और 22 वर्ष की उम्र में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस से पीएचडी करने में सफल रहे. ये पहले भी हो सकता था मगर बीच में ब्रेक लेने की वजह से देरी हुई.

बाद में मैंने अधिक फॉलो नही किया. इसी बीच बिहार के एक मेधावी विद्यार्थी सत्यम ने महज 12 वर्ष की उम्र में IIT पास की और IIT में दाखिला लिया तो उत्सुकता हुई कि तथागत क्या करते है जाने. इसी बीच सत्यम फेसबुक के जरिये जुड़े तो तथागत के साथ देखा उनकी तस्वीर (see the photo). पता चला तथागत IIT-Mumbai में पढ़ाते है. (सत्यम IIT कानपुर से पढ़ाई पूरी कर अमेरिका के टेक्सास यूनिवर्सिटी से अभी पीएचडी कर रहा है.)

इसी बीच कल ख़बर आई कि IIT मुंबई ने तथागत को नौकरी से निकाल दिया है. ख़बर की माने तो मुंबई का मौसम उन्हें सूट नही कर रहा था. बीमार चल रहे थे. IIT दिल्ली में अपना ट्रांसफर करवाना चाहते थे. लेकिन IIT में तबादले की नीति न होने की वजह से ऐसा संभव नही हुआ.

सत्यम और तथागत तुलसीये पूरा वाकया अजीब सा लगता है. IIT में एक जगह से दुसरे जगह तबादले क्यों नही हो सकते! दूसरी बात मुंबई से दिल्ली आने का निर्णय व्यक्तिगत तौर भी आसान नही लगता. मुझे जितना पता है IIT मुंबई का ब्रांड वैल्यू किसी भी IIT से कही अधिक है और आर्थिक राजधानी होने की वजह से विद्यार्थीयों में खड़गपुर और मुंबई में किसे चुने, इसमें वे अपनी वरीयता मुंबई को ही देना ज्यादा पसंद करते है. दिल्ली आने के निर्णय में MHRD और IIT को सहयोगी बनना चाहिए था.

एक वैसे समय में जब देश में गिने-चुने IIT है, एक संस्थान से दुसरे संस्थान में तबादले की स्पष्ट नीति का बनना बेहद जरुरी है. हो सकता है शोध कार्य को वरीयता देने की वजह से यह सामान्य स्थिति में संभव न हो तो विशेष परिस्थितियों में तो संभव हो ही सकता है.

नोबल पुरस्कार जीतने का ख़्वाब रखने वाले तथागत का फिजिक्स के प्रति दीवानापन है. तथागत फिलहाल कोई चमत्कारिक बातों के लिए ख़बरों में नही आ रहे है, इसमें कोई दिक्कत नही है, लेकिन यह नया डेवलपमेंट जरुर चिंता का विषय है.

यहाँ बताता चलू कि तथागत प्रधानमंत्री मोदी के बड़े फैन है और वर्ष 2012 में हुई मुलाकात के किस्से गाहे बगाहे साझा करते रहते है. तथागत 2012 में अपने रिसर्च कार्य में मिली विफलता के बाद हुए निराशा से उबरने में मोदी जी से मिले प्रेरणा को मुख्य वजह बताते है.

वैसे समय में जब मोदी जी की सरकार है तो इस एक प्रतिभावान अध्यापक की प्रतिभा जाया न हो, इसकी चिंता सक्षम लोगों को जरुर करनी चाहिए. तथागत से देश के अनेकों युवा कम उम्र में ही बड़ा करने का स्वप्न देखने की प्रेरणा पाते है, ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व के साथ देश अन्याय नही करेगा, यही उम्मीद है.

– अभिषेक रंजन (लेखक सामजिक कार्यकर्ता हैं और गाँधी फेल्लो रह चुके हैं)

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हमारे लिए बिहार में बाढ़ है तो बिहार में ही बहार भी है

नमस्कार!

हम बिहारी हैं भाई साहब! वही बिहारी जिसके बारे में सोचते ही आपका ही नहीं, नेताओं का मन भी “कइसन-कइसन” हो जाता है। वही बिहारी जिसको आप पहचान जानने के बाद पहले की तरह नहीं स्वीकार पाते, न जाने क्यों? वही बिहारी जो देश-विदेश के तमाम प्रतियोगिताओं में आपको कड़ी टक्कर ही नहीं देता, विजेता बनकर सामने भी आता है। हम बिहारी हैं भाई साहब! बिहारी, जिसकी भाषाएं तक आपको भाषाएं नहीं लगतीं। बिहारी, जिसके पास पहाड़ तोड़ने भर का सब्र तो है, पर इस सब्र के पीछे की जिजीविषा आप तक कभी पहुँच नहीं पातीं।

जन्म के साथ ही ये बिहारी वाला टैग हमारे साथ चिपक जाता है और हमारे पास एक किलोमीटर लंबी लिस्ट भी होती है महान बिहारियों की। पर… पर… पर! बिहारी होना क्या इतना भर ही होता है?

शायद नहीं! बिहार वह क्षेत्र है जो हर साल 6 महीने बर्बाद होने में और 6 महीने अपने ही देश के अन्य हिस्सों से जूझने में बिताता है। बिहार वह क्षेत्र है जो हर साल बिखर जाने के बाद भी हर साल खड़े होकर देश के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभाता है। बिहार वह क्षेत्र है जो अपने इतिहास पर इठलाता है तो देश के वर्तमान हेतु भागीदारी भी दिखाता है। बिहार वह क्षेत्र है जो प्रकृति के परम् सत्य से परिचित है, यह जानता है “परिवर्तन ही संसार का नियम है” का मर्म!

बिहार की गाथा में नेतृत्वकर्ता से अधिक महत्व है लोक-मानस का, लोक संस्कृति का, लोक-रंग का! यहाँ का नेता होली में आम लोगों की ही तरह कुर्ता फाड़ हुड़दंग करता है, यहाँ के अमीर घर में जमीन पर ही आसन लगाकर खाते हैं। यहाँ के लोगों के लिए भद्दे कमैंट्स तो आप ट्रेन में सीट देते हुए भी कर ही देते हैं और हमारे पास उससे सुनने के अलावा कोई चारा भी नहीं होता। ‘चारा’ सुनकर भी हमपर हंसने वाले हाज़िर हो जाएंगे! पर क्या यह देश कभी समझ पायेगा बिहारियों के चुप रह जाने के पीछे छुपे दर्द को? क्या इस देश के लोग अपने ही साथी राज्य की खामोशी को कभी पढ़ने की कोशिश करेंगे? क्या हम कभी स्वीकार किये जायेंगे इस देश के अभिन्न अंग की तरह?

जानते हैं! बाढ़ और सुखाड़ आपके यहाँ तो कभी-कभी आती है, हम तो बिना इसके साल के गुज़र जाने की कल्पना ही नहीं कर सकते। आपके यहाँ महामारी तो दशकों बाद आती है, हम तो उसमें हर साल जान झोंकने को तैयार रहते हैं। आपके यहाँ अनुकूल परिस्थितयों में आगे बढ़ने के तमाम अवसर हैं, हमारे यहाँ आगे बढ़ने का एक ही मकसद है, अपने लिए परिस्थितयों को अनुकूल करना या परिस्थितयों के अनुकूल हो जाना।

आपकी विकट समस्यायों के लिए देश के पास लाखों की संख्या में बुद्धिजीवी वर्ग खड़ा मिलता है। राजनैतिक पार्टी विशेष तो रोने-धोने को तैयार हो जाती है। बिहार खुद भी आपके दर्द में आपको कंधा देता है, तेल-मालिश का जुगाड़ करता है। इसके बाद बिहार को क्या मिलता है?

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केरल, महाराष्ट्र, उत्तराखंड में शहरी बाढ़ की विपदा हो या किसानों के लिए आकाल की स्थिति, आपको डोनेशन की ज़रूरत पड़ ही जाती है। आप समझने लगते हैं इसके फायदे। पर क्या आप उतने ही तैयार होते हैं बिहारियों के लिए भी?
बिहार आपके डोनेशन की फिक्र करता भी नहीं। यह जनता अपने नेताओं की नीतियों व घोटालों की मारी हुई जनता है, यह जानती है आपके डोनेशन का सिर्फ ‘न’ ही इन तक पहुंचेगा!

इन्हें सम्भलना खुद है! इन्हें अपनी बर्बादी का मंजर भी खुद ही दिखाना है और खुद ही अपने को आबाद भी करना है! इनके पास साधन कम हैं, ये उपलब्ध साधनों में स्थिति सामान्य कर देने का धैर्य लेकर जीते हैं।

आपको लगने लगा होगा कि बिहारियों को जलन क्यों हो रही आख़िर, कि अन्य राज्यों में मदद पहुंचाई जा रही पर यहां नहीं। पर ऐसा नहीं है। हमारे अंदर कोई जलन नहीं। आकर देखिए सब बिहारी अपनी परिस्थितियों, अपनी विवशता से लड़ने, जूझने और झूमने के लिए तैयार बैठा है।

पर साहब! हॉस्पिटल के दो बिस्तर पर दो मरीज़ एक ही तरह की बीमारी से ग्रसित हों। एक के पास सर्वोत्तम व्यवस्था पहुंचाई जा रही हो, उससे मिलने वालों का तांता लगा हुआ हो और दूसरे बिस्तर की तरफ कोई देखे तक नहीं। ऐसे में वो अपने दर्द को ज़ाहिर तो करेगा न! ऐसे में उसके दर्द को थोड़ा और दर्द तो होगा न! ऐसे में उसके दर्द की कीमत उसको पता तो चलेगी न! उसके दर्द में विवशता तो दिखेगी न! बस इत्ती सी बात है!

बाकी हम तो बिहारी हैं भाई साहब! दिल नहीं, जिगरा वाले बिहारी! हम तो रोते भी बरसात में हैं और अपने आंसुओं के बाढ़ का जश्न भी मनाते हैं! हम ज़िंदाबाद हैं, ज़िंदाबाद ही रहेंगे! हमारे लिए बिहार में बाढ़ है तो बिहार में ही बहार भी है! जय बिहार! जय हिंद!

– नेहा नुपुर 

Shilpa Bihar

बड़े बॉलीवुड स्टार और अंतरराष्ट्रीय खिलाडियों को फिटनेस ट्रेनिंग देती है बिहार की प्रतिभा

बिहारी लोगों के बारे में देश में कई गलत धारणायें हैं| ज्यादातर धारणायें नकारात्मक हैं तो कुछ सकारात्मक किस्म के भी हैं| उसी में से एक बिहारी लोगों के प्रतिभा को लेकर है| जब भी बिहारी प्रतिभा की बात आती है तो ज्यादातर लोग उसे प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होने से जोड़ देते हैं| मगर ऐसा बिलकुल भी नहीं है| बिहारी लोग सिर्फ यूपीएससी में सफल नहीं होते बल्कि प्रतिभा हर क्षेत्र में अपनी क़ाबलियत का लोहा मनवा रही है|

ऐसी ही एक उदाहरण है बिहार की बेटी प्रतिभा प्रिया उर्फ शिल्पी| बिहार के सीतामढ़ी जिले के एक छोटे से गाँव से निकलकर प्रतिभा आज देश में फिटनेस ट्रेनर के रूप में आज एक बड़ा नाम बन चुकी है| वे दिल्ली के जनपथ स्थित हाई प्रोफाइल पाँच सितारा होटल ली मीरीडियन में सेलिब्रेटी फिटनेस इंस्ट्रक्टर हैं|

वे रोजाना बड़े-बड़े बॉलीवुड स्टार, नेशनल खिलाडियों को फिटनेस ट्रेनिंग और टिप्स देती हैं| जिन सेलिब्रेटियों को शिल्पी फिटनेस ट्रेनिंग दे चुकी है उसमें बॉलीवुड अभिनेता टाइगर श्रॉफ, अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी और स्पेन की ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता कैरोलिना मैरीन, साइना नेहवाल, पीवी सिंधू के साथ कई अन्य राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी और अन्य सेलिब्रेटी हैं|

शिल्पी आज अपने जिले में रोल मॉडल बन चुकी है| वहां के लोगों के लिए शिल्पी ने सफलता की नयी परिभाषा गढ़ रही है| वह लड़कियों के लिए आदर्श बन चुकी है|

यही कारण है कि हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में सीतामढ़ी जिला प्रशासन ने उसे ‘युथ आईकन’ घोषित किया था| यही नहीं, अपनी प्रतिभा के लिए शिल्पी गोवा के राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा से भी सम्मानित हो चुकी है|

ज्ञात हो कि शिल्पी राज्यस्तरीय बैडमिंटन खिलाड़ी रह चुकी हैं । नेशनल में ईस्ट जोन में बीआर अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय को दो बार प्रतिनिधित्व कर चुकी है। शिल्पी एनसीसी की भी बेस्ट कैडेट रही है। दिल्ली के थल सैनिक कैम्प और आगरा के एडवांस्ड लीडरशिप कैम्प में मैप रीडिंग कॉम्पिटिशन में भी शिल्पी को गोल्ड मेडल मिल चुका है। शूटिंग में भी अवार्ड मिला और एनसीसी में बेहतर प्रदर्शन के लिए बिहार झारखण्ड के एनसीसी निदेशालय द्वारा भी शिल्पी को सम्मानित किया जा चुका है।

बिहार की लड़कियां लड़कों से कतई कम नहीं है| उन्हें जब-जब मौका मिला है, उन्होंने राज्य और देश का नाम रौशन किया है| बिहार की शिल्पा उसकी एक उदाहरण है|

Input by: Ranjeet Purbey 

 

 

 

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बिहार के रविश कुमार कुमार ने मनीला में प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे सम्मान ग्रहण किया

वरिष्ठ पत्रकार और बिहार के लाल रवीश कुमार को साल 2019 का प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे सम्मान दिये जाने की घोषणा तो लगभग एक महीने पहले ही हो गई थी लेकिन मनीला में शुक्रवार को उन्हें यह सम्मान दिया गया| इस मौके पर उन्होंने लोगों को संबोधित किया|

उन्होंने भाषण के शुरुवात में रेमन मैग्सेसे वालों को हिंदी में भाषण देने की की इज़ाज़त देने के लिए धन्यवाद दिया| उन्होंने कहा कि वह हिंदी में बोल रहें हैं ताकि उनकी माँ और भाभी उनके भाषण को समझ सकें|

रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार ग्रहण करने के लिए मनीला पहुंचे NDTV के रवीश कुमार ने अपनी स्पीच में कहा, “मैं NDTV के करोड़ों दर्शकों का शुक्रिया अदा करता हूं… मैं हिन्दी का पत्रकार हूं, मगर मराठी, गुजराती से लेकर मलयालम और बांग्लाभाषी दर्शकों ने भी मुझे ख़ूब प्यार दिया है… मैं सबका हूं… मुझे भारत के नागरिकों ने बनाया है…”

रवीश कुमार ने अपनी स्पीच में कहा, “नागरिकता के लिए ज़रूरी है कि सूचनाओं की स्वतंत्रता और प्रामाणिकता हो. आज स्टेट का मीडिया और उसके बिज़नेस पर पूरा कंट्रोल हो चुका है. मीडिया पर कंट्रोल का मतलब है, आपकी नागरिकता का दायरा छोटा हो जाना. मीडिया अब सर्वेलान्स स्टेट का पार्ट है. वह अब फोर्थ एस्टेट नहीं है, बल्कि फर्स्ट एस्टेट है. प्राइवेट मीडिया और गर्वनमेंट मीडिया का अंतर मिट गया है. इसका काम ओपिनियन को डायवर्सिफाई नहीं करना है, बल्कि कंट्रोल करना है. ऐसा भारत सहित दुनिया के कई देशों में हो रहा है.

उन्होंने कहा, “यह वही मीडिया है, जिसने अपने खर्चे में कटौती के लिए ‘सिटिज़न जर्नलिज़्म’ को गढ़ना शुरू किया था. इसके ज़रिये मीडिया ने अपने रिस्क को आउटसोर्स कर दिया. मेनस्ट्रीम मीडिया के भीतर सिटिज़न जर्नलिज़्म और मेनस्ट्रीम मीडिया के बाहर के सिटिज़न जर्नलिज़्म दोनों अलग चीज़ें हैं, लेकिन जब सोशल मीडिया के शुरुआती दौर में लोग सवाल करने लगे, तो यही मीडिया सोशल मीडिया के खिलाफ हो गया. न्यूज़रूम के भीतर ब्लॉग और वेबसाइट बंद किए जाने लगे. आज भी कई सारे न्यूज़रूम में पत्रकारों को पर्सनल ओपिनियन लिखने की अनुमति नहीं है.”

जब ‘कश्मीर टाइम्स’ की अनुराधा भसीन भारत के सुप्रीम कोर्ट जाती हैं, तो उनके खिलाफ प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया कोर्ट चला जाता है. यह कहने कि कश्मीर घाटी में मीडिया पर लगे बैन का वह समर्थन करता है. मेरी राय में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और पाकिस्तान के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी का दफ्तर एक ही बिल्डिंग में होना चाहिए.

एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार को यह सम्मान हिंदी टीवी पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए मिला है. रेमन मैग्सेस सम्मान को एशिया का नोबल पुरस्कार भी कहा जाता है.

रवीश कुमार हिन्दी समाचार चैनल एनडीटीवी इंडिया का सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं. रवीश के अलावा 2019 का मैग्सेसे अवॉर्ड म्यांमार के को स्वे विन, थाईलैंड के अंगखाना नीलापाइजित, फ़िलीपीन्स के रेमुन्डो पुजांते और दक्षिण कोरिया के किम जोंग-की को भी मिला है.

प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा के जगह बिहार के पीके सिन्हा होंगे प्रधानमंत्री कार्यालय के नए OSD

मोदी सरकार में बिहारी अधिकारियों का दबदबा बना हुआ है| एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी ने एक बिहारी अधिकारी को बड़ी जिम्मेदारी दी है| इस बार सेवानिवृत आइएएस अधिकारी पीके सिन्हा को प्रधानमंत्री कार्यालय में OSD (आफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) बनाया गया है| वो प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा की जगह लेंगे|

पीएमओ में श्री सिन्हा की नियुक्ति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह पर की गयी है| श्री सिन्हा इसके पहले यूपी में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं| कैबिनेट सेक्रेटरी बनने के पहले वे ऊर्जा और जहाजरानी मंत्रालय के  सेक्रेटरी भी रह चुके हैं| श्री सिन्हा की शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में ही हुई है| उनके पिताभी यूपीएससी में अधिकारी रहे थे|

बता दें कि 1977 बैच के आईएएस अधिकारी पीके सिन्हा देश के सबसे वरिष्ठ नौकरशाहों में से एक हैं| फिलहाल वो भारत सरकार के कैबिनेट सचिव की जिम्मेदारी निभा रहे हैं| बिहार के औरंगाबाद जिले के मूल निवासी और यूपी कैडर के आइएस अधिकारी रहे पीके सिन्हा का जन्म 18 जुलाई, 1955 को हुआ| उनका पूरा नाम प्रदीप कुमार सिन्हा है, लेकिन आम तौर पर लोग उन्हें पीके नाम से जानते हैं| 64 साल के मृदु भाषी सिन्हा जहां भी रहे अपने कार्यों की छाप छोड़ी है|

1977 बैच के आइएएस अधिकारी सिन्हा पहले जहाजरानी मंत्रालय में सचिव भी रह चुके हैं| उत्तर प्रदेश काडर के आईएएस अधिकारी के तौर पर उन्होंने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार के कई महत्वपूर्ण पदों पर भी कार्य किया|

1990 के दशक के अंत में वो खेल मंत्रालय में पहले निदेशक और युवा मामलों के संयुक्त सचिव की जिम्मेदारी निभा चुके हैं| 1992-94 के दौरान वो मेरठ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और 2003-04 में ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे|

2004-12 तक यूपीए सरकार के कार्यकाल में वो ज्यादातर समय पेट्रोलियम मंत्रालय में थे| पेट्रोलियम मंत्रालय में रहते हुए उन्हें संयुक्त सचिव, अतिरिक्त सचिव और फिर विशेष सचिव भी बनाया गया था|

शराब के बाद बिहार में पान मसाले के भी उत्पादन और बिक्री पर लगा प्रतिबंध

बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने राज्य में शराबबंदी के बाद अब एक और बड़ा फैसला लिया है। बिहार सरकार ने राज्य में पान मसाले के उत्पादन और बिक्री पर पूरी तरह से बैन लगा दिया है। प्रदेश सरकार के खाद्य संरक्षा आयुक्त की ओर से बिहार में बिकने वाले कई ब्रांडों के पान मसाले की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया है।

बिहार की प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को इस संबंध में आदेश जारी करते हुए कहा है कि प्रदेश में किसी भी प्रकार के पान मसाने के उत्पादन, संरक्षण और बिक्री पर पूरी तरह से बैन लगाने का आदेश जारी किया है। सरकार ने इस आदेश से पूर्व जून से अगस्त के बीच तमाम ब्रांड्स के पान मसालों का सैंपल इकट्ठा कर इनकी जांच कराई थी।

विगत 05 जुलाई 2019 को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में आहूत उच्चस्तरीय बैठक में दिए गए निर्देश के आलोक में खाद्य संरक्षा आयुक्त ने राज्य के विभिन्न ब्रांड के पान मसाला पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध विभिन्न जिलों से प्राप्त पान मसाला के नमूनों के जांच में मैग्निशियम कार्बोनेट की मात्रा पाए जाने के कारण लगाई गई है।

विदित हो कि मैग्निशियम कार्बोनेट से हृदय संबंधित बीमारियों सहित विभिन्न प्रकार की परेशानियां होती हैं। पान मसाला के लिए फूड सेफ्टी एक्ट 2006 में दिए गए मानक के मुताबिक मैग्नीशियम कार्बोनेट मिलाया जाना प्रतिबंधित है। अतः जन स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए यह प्रतिबंध फिलहाल एक वर्ष के लिए लगाया गया है।

कुछ अन्य उत्पादों का नमूना जांच के लिए भेजा गया है, जिसकी रिपोर्ट आने पर उन पर भी करवाई की जाएगी। इस तरह, पान मसाला पर प्रतिबंध लगाने वाला बिहार देश में दूसरा राज्य बन गया है।

इन कंपनियों के पान मसाला को किया गया है बिहार में प्रतिबंधित

बिहार के विभिन्न जिलों में रजनीगंधा पान मसाला, राजनिवास पान मसाला, सुप्रीम पान पराग मसाला, पान पराग, बहार पान मसाला, बाहुबली पान मसाला, राजनिवास फ्लेवर पान मसाला, राजश्री पान मसाला, रौनक पान मसाला, सिग्नेचर फाइनेस्ट पान मसाला, पान पराग पान मसाला, कमला पसंद पान मसाला, मधु पान मसाला, बाहुबली पान मसाला को प्रतिबंधित कर दिया गया है।

 

SSC घोटाला: अपने भविष्य को बचाने के लिए बच्चों के शोर मचाकर गले फट गए और बाबू ढोल बजाने में मस्त है

यूपी- बिहार के निचले और मध्यमवर्ग के लिए एसएससी क्या मायने रखता है बताने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन शायद साइरन वाली सरकारी कारों में बैठनेवाले मंत्री और नौकरशाह बहरे हो चुके हैं.

पांच दिन से दिल्ली में धरने पर बैठे सैकड़ों परीक्षार्थी होली के दिन भी देश की भारी बहुमत वाली सरकार से गुहार लगाते रहे पर गृहमंत्री होली पर ढोल बजाने में मस्त दिखे और बाकी मंत्री फाग गा रहे थे.

अद्भुत नज़ारा है लोकतंत्र का. जनता सड़कों पर अपने भविष्य को बचाने के लिए त्यौहार पर भी प्रदर्शन करे और मंत्री अपने सुरक्षित सरकारी बंगलों में रंग उड़ाएं.

एसएससी का पर्चा सोशल मीडिया पर तैर रहा था. दुनिया उसे देख रही थी मगर अफसर बाबू सबूत पूछ रहे हैं. इस देश में पर्चा लीक होना भला कितनी हैरत की बात रह गई है बाबू जी?? अपने कोटर से बाहर आइए और मेरे ही साथ चलिए. आपको लाखों ऐसे लोगों से मिलवा दें जो हर परीक्षा का पर्चा लीक करने का दावा करते हैं और हर साल खूब रकम बनाते हैं.

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इस धंधे में सालों से अगर बस झूठ ही होता तो अब तक ठप्प हो चुका होता मगर कुछ तो है कि खुलकर खेल ना करने के बावजूद रैकेट्स के वारे न्यारे हैं. अगर एसएससी वाले सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं तो आदेश करने में तुम्हारा क्या जाता है? विपक्षियों के पीछे पूरी की पूरी एजेंसी लगाने का क्या तुक है? इनकम टैक्स और ईडी को अपनी खुन्नसें पूरी करने में लगाए रहिए मगर इन बेचारों के शोर मचाकर गले फट गए हैं अब कुछ तो रहम कीजिए.

कल टीवी पर प्रदर्शनकारियों में से एक लड़का मीडिया से बात करते हुए फफक पड़ा. किसी तरह अपना वाक्य पूरा कर सका कि सर हम यहां पर पड़े हैं लेकिन हमारी कोई सुननेवाला नहीं है. बताइए हम क्या करें…

मैं उसका अहसास समझ पा रहा था. जब तक हम निजी तौर पर सरकारी बेरुखी का सामना नहीं करते हमें सरकारों के वो पहलू देखने में बड़ा आनंद आता है जैसा वो दिखाती हैं पर जब किसी सरकार की निर्दयता निजी त्रासदी की वजह बनती है तो हम ऐसे ही फफक कर रोते हैं.

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पहले यूपीएससी वालों का आंदोलन.. फिर यूजीसी वालों पर डंडों का बरसना और अब एसएससी परीक्षार्थियों को अनसुना करना. प्राइवेट नौकरियां आपके पास देने को हैं नहीं. अनोखे आर्थिक “सुधारों” की भेंट छोटे धंधों को चढ़ाकर मामूली नौकरियों की गुंजाइश भी आपने खत्म कर ही दी है. सरकारी पदों पर भर्तियों की हालत देश को पहले से पता है.

इस बार तो यूपीएससी तक की रिक्तियों में भारी कमी से दिल्ली के मुखर्जीनगर से लेकर इलाहाबाद-पटना तक खलबली है.

ट्रंप ने कल कह ही दिया है कि हम भी अब भारत के माल पर ज़्यादा टैक्स लगाकर बदला लेंगे तो ज़ाहिर है उत्पादन के गिरने का असर कंपनियों और फिर कर्मचारियों पर देखने को मिलेगा.

आपके पास नए राज्यों में सरकार बनाने के अलावा इस मामले में क्या रणनीति है? अगर किसी दैवीय संयोग से देश में कहीं छह महीने कोई सांप्रदायिक घटना ना हो, विवादित राजनीतिक बयानबाज़ी ना हो, कोई बड़ा हत्याकांड ना हो तो यकीन मानिए सत्ता में बैठे बहरों को जनता ही खींचकर गद्दी से उतार देगी.

अब सोचिए कि इनके पास सत्ता में बैठे रहने की वैधता तो है मगर नैतिक अधिकार नहीं और ये हाल केंद्र की नहीं राज्य की सरकारों का भी है. यूपी की योगी सरकार हो या पहले अखिलेश सरकार हो या उससे पहले की माया सरकार हर किसी के राज में यूपीपीसीएस की बदहाली आम रही. इसे तो मैंने ही खूब करीब से देखा. चार-चार साल पुराने एक्ज़ाम्स के रिजल्ट फंसे पड़े हैं. गरीब बाप का बेटा शहर में आधा दर्जन दोस्तों के साथ कमरा शेयर करके कच्चा-पक्का भात पेट में डालकर पेपर दिए जा रहा है. बेचारे को खबर ही नहीं कि चार साल पहले जो एक्ज़ाम दिया था उसमें वो कामयाब रहा या नाकामयाब रहा. बस बाद में भी जो एक्ज़ाम हाथ लगा उसे दिए जा रहा है. उधर बाप पेट काटकर पैसे भेज रहा है कि बेटे को कहीं सरकारी नौकरी मिल जाए तो किसी तरह उसका भविष्य बन जाए.

ज़्यादा दिन नहीं हुए जब यूपी के दो अलग अलग ज़िलों से आई खबर मैंने ही लिखी कि कैसे बेटे ने अपने बाप की इसलिए हत्या कर डाली ताकि अनुकंपा के आधार पर पिता की सरकारी नौकरी उसे मिल जाए. दोनों ही मामलों में आरोपी बेटे मेहनत करके थक चुके थे और बाद में सामाजिक पतन के इस रास्ते पर चल निकले. ये हमारे देश में नौकरी और उससे बढ़कर सरकारी नौकरी की अहमियत है.

अगर हौसला इतना ही पढ़कर टूटने लगा है तो तब क्या होगा जब व्यापमं की अब तक जारी कहानी फिर सुनाऊंगा?

आप लोग पार्टियों की झूठी-सच्ची राजनीतिक हार-जीत पर बाद में ध्यान दीजिएगा पहले अपने लिए नौकरी मांगिए. पीएम के पकौड़े बनाने टाइप रोज़गार की शेखचिल्ली योजनाओं का शिकार मत बनिए. पहले हर साल करोड़ों नौकरी देने का सपना बेचना और फिर कह देना कि आंत्रप्रेन्योर बनो सिर्फ धूर्तता है. आंत्रप्रेन्योरशिप का स्कोप भी कितना छोड़ा है उसकी कहानी और ज़्यादा फ्रस्ट्रेट करती है. किसी दिन उस पर लिखा जाएगा तो पीड़ितों के नाम से लिखूंगा जिनके दर्जन भर बार आवेदन करने के बाद भी सरकार पूंजी देने को तैयार नहीं.

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अगले पांच-दस साल के भीतर बैंकों में नौकरियां घटने वाली हैं. पश्चिम की संरक्षणवादी सरकारें आप लोगों की कॉल सेंटर जॉब्स तो छीनेंगी ही, हमारे मेड इन इंडिया वाले माल पर टैक्स थोपकर बाज़ार को मंदा कर देंगी. लोगों के पास पैसा ना हुआ तो बाज़ार में खर्चा करने की उनकी ताकत कम होने का असर व्यापार पर दिखेगा ही. व्यापार करनेवालों का मुनाफा कम होगा तो इस देश का प्राइवेट सेक्टर वैसे ही भरभराकर गिरेगा जैसा पश्चिम में दिखता रहा. अब तो वैसे भी आप अलग टैरेटिरी नहीं रह गए हैं. सरकारों ने आपके धंधे ऐसे केंद्रीकृत किए हैं कि बाज़ार बाहर गिरेंगे और माल आपका सड़ेगा.

तो श्रीमानजी, अगर कोई भी सरकारी या सरकारछाप अर्थशास्त्री आपको नौकरी के मामले में अच्छे दिन दिखा रहा हो तो उसे तुरंत दिल्ली लाकर चिलचिलाती धूप में नारे लगाते छात्रों के बीच बैठा दीजिए. फिर उसके आंकड़ों का तापमान मिल बैठकर मापेंगे. आंकड़ों की बाज़ीगरी से ना ईएमआई चुकती है, ना बच्चे की फीस भरी जाती है, ना पेट भरता है.

सभार – नितिन ठाकुर (संपादक, आजतक)