नेहा नुपुर, opinion of Neha Nupur, Bihar, Bihar Government school Teachers

अपनी नौकरी के वर्षगाठ पर इस शिक्षिका ने क्यों कहा- यह मेरी गुज़री ज़िन्दगी की पुण्यतिथि है?

मेरी गुज़री ज़िन्दगी की पुण्यतिथि है आज! मुझे अपनी ज़िंदगी के मुझे छोड़ जाने के सात भयानक साल मुबारक़! इस कालजयी नौकरी में आये हुए आज सात साल हो गए हैं और मैं आज तक इस बात का ज़िक्र कहीं करने में कतराती हूँ। ऐसा नहीं कि मैं इससे बेहतर की उम्मीद में थी या इससे बेहतर के योग्य थी, ऐसा इसलिए कि इस नौकरी से मुझे जो कुछ मिला है, वो ज़िक्र करते ही लोग या तो मेरी योग्यता बताकर मुँह बन्द कराने की चेष्टा रखते हैं या फिर मेरी ही तरह दुःख में चले जाते हैं।

लोगों की नज़र में ये नौकरी मुझे या मुझ जैसों को ख़ैरात में मिली है इसलिए इसका महत्व मैं नहीं समझती। इस नौकरी के साथ जो चीज़ें ख़ैरात में आईं थीं, वो थीं- दुःख, अवसाद, ज़िल्लत, चिंताएं, नाउम्मीदी, नाखुशी, ग़म से ज़ोर पकड़ती बीमारियां, अपने ही टूटे सपनों के चुभते टुकड़े, कुपोषित मानसिकता के पोषक लोग, खुदगर्ज़-चालक-चापलूस-घूसखोर कर्मचारियों से सड़ी-गली-गंधाती शिक्षण व्यवस्था, लाचार-जर्जर संरचना, कमज़ोर पड़ती यादाश्त, जिंदादिली में छेद करती नकारात्मकता और लगातार कम होती इच्छाशक्ति।

बच्चों की खिलखिलाहट और कुछ साथ निभाते लोग इन सात सालों में साँस लेने भर की जगह बनाते रहे, सो उनका तो आभार रहेगा!

मेरी ही तरह न जाने कितने लोग पिस गए होंगे ऐसी ही सरकारी कही जाने वाली नौकरी के नाम पर। जब जॉइनिंग आई थी तब 6000₹ महीने का करार था। नौकरी सरकारी थी, तो घर-परिवार, दुनिया-जहान ने छोड़ने नहीं दिया। पढ़ाई का मूल उद्देश्य कमाई है, ऐसा कहकर हमें कहा गया कि जॉइन कर लेना ही चालाकी है। हमारे लगातार पढ़ाई पूरी करने की ज़िद पर पिता जी को किसी सलाहकार ने सलाह दी थी कि बेटियाँ 3 महीने नौकरी कर लेंगी तो नौकरी पक्की हो जाएगी और फिर एजुकेशन लीव लिया जा सकेगा। वो सलाहकार महोदय उन तीन महीनों के बाद नज़र नहीं आये और ना ही नज़र आया वो नियम जिसके तहत हमें एजुकेशन लीव मिल सके।

Bihar, Bihar Teachers

फ़ोटो:- पहले वर्किंग डे की है। 4 जून 2013 की

ओह हाँ! बताना ही भूल गयी, मैं ऐसे विभाग का हिस्सा हूँ जहाँ बीईओ से लेकर डीईओ तक को पता ही नहीं हमारे नियमों के बारे में| कुछ सालों बाद जाकर हमें भी जानकारी मिली कि अरे! हमारा तो कोई सेवा-शर्त ही नहीं है! अद्भुत विभाग!


यह भी पढ़ें: बिहार के नियोजित शिक्षकों के मौत से आहात एक शिक्षिका का नीतीश कुमार के नाम एक ख़त


ये वो विभाग है जहाँ हमारे ही जैसे कुछ लोग जो ब्लॉक और जिला स्तर के कार्यालयों में बैठते हैं, खुद को तुररम्बाज़ समझते हैं। उनकी इतनी ‘चलती’ है इन कार्यालयों में तो आप ये न समझें कि आपका काम मुफ़्त में करने बैठे हैं वो। मेडिकल और मातृत्व अवकाश सहित सेवापुस्तिका संधारण जैसे गंभीर और संवेदनशील मामलों की ताक लगाए बैठे ये बुद्धिजीवी साफ अक्षरों में कहने की हिमाक़त रखते हैं-वो घूस लेने के हक़दार हैं क्योंकि उन्हें अपनी बेटी की शादी करनी है।

मतलब वाह! अपनी बेटी की इस तरह भीख मांग शादी करवाने से तो बेहतर था कि वो सरकार द्वारा चलाये जा रहे सामूहिक विवाह कार्यक्रम में ही विवाह निबटा देते या सच में ही भिक्षाटन कर लेते। इसमें उनकी भी क्या ग़लती जब “भ्रष्ट्राचारम जगत शयनं”।

मैंने महसूस किया है कि इस विभाग में कर्तव्यनिष्ठा, योग्यता, समर्पण और ईमानदारी जैसे जीवन मूल्यों का कोई मूल्य नहीं है। यहाँ काम करने के दौरान “लड़की हो और ये घर की नौकरी है” कहकर कुछ लोगों ने जो उत्साहवर्धन किया है, उनपर भी कभी-कभी बेतहाशा प्यार आ जाता है। प्यार तो उनपर भी आता है जो कहते हैं कि इस नौकरी में छुट्टियां बहुत हैं, आपके तो मजे ही मजे हैं। वैसे एक कलीग ने, ये नौकरी छोड़ एसबीआई जॉइन करते समय एक जुमला फेंका था, प्यार उस जुमले पर भी आता है कि “जब बच्चे हो जाएंगे और पूछेंगे मम्मी क्या करती हो तो बताओगी कि वेतनमान के लिए लड़ाई”!

खैर! ऐसे ही उच्च कोटि की मानसिकता वाले लोगों के बीच एक थर्ड ग्रेड की अधिकृत नौकरी को फोर्थ ग्रेड की ज़िल्लत और सैलरी के साथ जीकर सात साल आनंद में ही गुज़र गए हैं। ईश्वर और कितने साल गुज़ारने का जज़्बा देता है, ये भी देखने की ही बात होगी।

ऐसा भी नहीं है कि यहाँ सब बुरा ही है। कुछ तो अच्छा भी रहा होगा यहाँ। उम्मीद यही है कि उस अच्छे की खोज में अगले सात साल भी यूँ ही निकल जाएंगे और अब तो गले में फंसे हड्डी की तरह की ये नौकरी, ज़रूरत भी बन गयी है।

अपनी योग्यताएं बढाने के बावजूद यहाँ किसी तरह के प्रमोशन पाने का स्वार्थ न पालते हुए, मैं सिर्फ अपनी बीती ज़िन्दगी की भावी पुण्यतिथियाँ मनाने को लेकर उत्सुक हूँ।

neha nupur government school teacher

मैं जानती हूँ कुछ लोग मेरे इस पोस्ट से दुःखी होंगे। कुछ तो ये भी कहेंगे कि मुझे ये तत्काल ही डिलीट कर देना चाहिए। कुछ शायद “पुण्यतिथि” जैसे शब्दों पर आपत्ति कर लें। पर मैं यहाँ साफ तौर पर कहना चाहती हूँ कि मेरा मक़सद किसी की तकलीफ़ का कारण बनना नहीं है। मैंने पहले दिन से जो महसूस किया और सात सालों से जो अपने अंदर रखा, वो बाहर निकाल देना ही मेरा मकसद है। मैं बताना चाहती हूँ कि आप जो नौकरी करते हैं, वो सिर्फ नौकरी नहीं होती, वो आपके ही जीवन का अनमोल समय है। वही समय, जिसमें खुश होना और दुःखी होना मायने रखता है। वही समय जिसमें कुछ भी करके सकारात्मक सोच बनाये रखने की कोशिश करते हैं आप। जितना समय आप खुश रहते हैं, आपकी ज़िंदगी में उतना ही समय जुड़ता चला जाता है। इसका विपरीत भी हो सकता है।

अतः किसी को बेतुके सलाह देकर, जिसकी आपको खुद जानकारी न हो, किसी के जीवन का फैसला न करें, किसी के समय का महत्व समझें। ज़िन्दगी की खूबसूरती को समझें। किसी के जीवन से जीने की इच्छा-शक्ति छिन जाना मज़ाक नहीं होता।
अंत में-

“मुश्किल है बहुत इस जाँ को जाँ कहने में
मरे जाती है मिरी जाँ यूँ ना को हाँ कहने में” – नूपुर

– नेहा नुपुर 

 


यह भी पढ़ें: 34 हज़ार शिक्षकों के बहाली पर लटकी तलवार


 

निश्चय यात्रा पर निकले नीतीश कुमार के नाम सोचने को मजबूर कर देने वाला एक खुला पत्र।

​नीतीश बाबु,

सादर प्रणाम

बचपन में जब चिट्ठी लिखना सिखाया जाता था, तब ऐसे ही लिखना शुरू किये थे। भूल-चूक की माफ़ी की गुहार लगा रही हूँ। लोग एगो-दुगो परिवार से परेशान हो जाते हैं, आप तो इतने सारे परिवारों के मुखिया हैं, आपकी परेशानी का आलम हम तो कब्बो सोचियो नहीं सकते हैं।

खैर, सुनने में आया कि आप ‘निश्चय यात्रा’ पर निकले हैं। अब इसका मतलब तो हम जैसा आमआदमी को समझ में आवे से रहा, मगर एतना जरूर लग रहा है कि जैसे पहिले के जबाना में राजा लोग निकलता था अपने प्रजा का हाल-चाल जानने, वैसे ही शायद आपहुँ निकले हैं।

जानते हैं नीतीश बाबु, राजा जब महल से निकलने वाला होता है न, तो उससे ज्यादा मेहनत उसके सिपाहियों को करनी पड़ती है, उसके प्रजा को करनी पड़ती है। ना-ना! राजा के स्वागत के लिए नहीं, बल्कि अपना दर्द राजा से छुपाने के लिए।

आप तो निकले होंगे हाल-चाल जानने, अपने शासन का प्रभाव जानने, मगर आप वही जान पाएँगे जो आपको जनवाया जायेगा। परजा अपने राजा के लिए एतना तो करिये सकती है न!

ये खाली आपके साथ नहीं हो रहा है, सब राजा लोग के साथ हुआ है, अतः इसको अपने ऊपर तो लेबे मत कीजियेगा।

आपका निश्चय यात्रा ‘आरा’ आ रहा है। इहें हमारा घर पड़ता है। आप आ रहे हैं, सब स्टेट रोडवा चकचकाता हुआ मिलेगा। स्कूल-कॉलेज मस्त, एकदम लीपा-पोता हुआ। अस्पताल में रोज़ से जादे मरीज दिखेंगे, स्कूल में रोज़ से जादे लइकन। पार्क-सार्क बनल मिलेगा। पेड़-वेड़ रंगल मिलेगा। ट्रैफिक तो एकदम सरसरा के भागेगा। पुलिस अंकल ना वर्दी में पैसा लेते दिखेंगे, ना ही बिन वर्दी वाला से लिवाते दिखेंगे। हमलोग का वश चला तो एककगो चिरईं को भी दाना दे दें, ताकि कम से कम आपके आने पर सुनर से चहचहाये। गऊ माता जो एन्ने-उन्ने चरती दिखती हैं, सब एक लाइन में चरेगी। एकदम खुशनुमा ना दिखे समां तो कैसा स्वागत! है कि नै!

ई शराबबंदी वाला जो हुआ न, मानव सृंखला जो बना, बहुते गज़ब था। मतलब मज़ा आ गया। सही चीज़ हुआ है बिल्कुल। बाकिर जानते हैं, अंदर के बात तो ई है कि नशा का खाली रूप बदला है, बन्द थोड़े हुआ है। दवा दुकान वाले बताते हैं अचानक से कोरेक्स पीने वाले लोग बढ़ गए हैं, अल्प्राजोलम से नींद पाने वाले बढ़ गए हैं। पहले गुमनामी की ज़िंदगी जीने वाली दवाएं जैसे एक्सटेसी, हैश, एलएसडी, आइस, एफड्रइन, मारीजुआना, हशीश कैथामिन, चरस, नारफेन, लुफ्रिजेसिक, एमडीएमएस अचानक से मशहूर हो गईं हैं। बड़े-बड़े लोग कोकीन के सहारे और मध्यम वर्गीय लोग कैथामिन के सहारे पर टिक गये हैं। गरीब भी नशा करने में अमीरों की बराबरी करने से नहीं चूकते, उनके लिए तो एक्सटेसी, एसिड, स्पीड, हेरोइन आदि एैसे नशीले पदार्थ भी तो उपलब्ध हैं ही। न्यूज़ वाले कहते हैं “पहले बिहार नशीले पदार्थों का उत्पादक हुआ करता था, अब बिहार ही इसका बाज़ार बन चूका है”। नेपाल, बांग्लादेश के रास्ते से आसानी से इसकी तस्करी हो रही है।

गुटखा-सिगरेट तो लॉन्ग टर्म में जान लेते हैं नीतीश बाबु, मगर ई खतरनाक दवाओं से जान तो आजे-कल में न जायेगा।

आप भी कहेंगे कि क्या हँसुआ के बियाह में खुरपी के गीत गाने लगे हम भी। अब नशाबंदी के समर्थन में पूरा बिहार से 3 करोड़ से जादे लोग लाइन लगा के खड़ा हो गया, तब भी हमको नशा ही नशा दिख रहा है। अँधेरे की तरफ मुड़ चुके युवा ही दिख रहे हैं। बाकी कलाम बाबा कह के गये हैं न “सफल होना बड़ी बात नहीं, उसे बरकरार रखना बड़ी बात है”। और जब आप सफल हो रहे हैं तो इस सफलता को बनाये रखने की उम्मीद भी तो आपसे ही की जायेगी न।

खैर! एगो-दुगो और बात है! कह दें?

पिछले साल रोड बनाने में बिहार भारत का नंबर वन राज्य रहा। लेकिन राष्ट्रीय राजमार्गों की हालत खास अच्छी नहीं दिखती। अब देखिये न, NH30 तो जेतना बना नहीं है उतना टूटा ही हुआ है। आप कहेंगे ये बिहार सरकार के जिम्मे नहीं, मगर लाखों लोगों का राह है ये साहेब! कमर भी सड़क जैसा ही टूटने लगा है लोगों का!

पटना बिहार की राजधानी है। बड़ी खुस हैं हमलोग, परकासपर्ब में आये लोगों ने पटना की बड़ी तारीफ करी। मगर पटना से बाहर निकलते ही ये छवि धुमिल हो गयी न साहेब।

खाली पटना, गया और राजगीर ही तो बिहार का हिस्सा नहीं है न! इतना कुछ है और भी जिलों भभुआ, वैशाली, भागलपुर, मिथिलांचल, बेगुसराय आदि में, उसका कुच्छो सोच रहे हैं का साहेब? ऊ का है कि हमको भी तो लगना चाहिए न, हमपर भी नज़र है हमारे राजा की!

बिहार की तरक्की से मन गदगद है वैसे, इसको बनाये रखने की गुज़ारिश के साथ

भारतीय गणतंत्र की जान
आपकी विश्वसनीय एवं मासूम प्रजा

आपन बिहार से आपकी जनता!

नोट- अशुद्धियाँ जानबूझ के की गईं हैं। क्षमा करते हुए भावसंगत होने की कृपा करें।

बिहार के इस बेटी और प्रसिद्ध कवियित्री के मन में बसल बा बिहार !

हाँ ये वही दिन है २१ अक्टूबर 1992 जिन दिन शाम  को शशि भूषण मिश्रा  जी  के परिवार और जिंदगी में ऐसे  मिठास  बढ़ गया की मानो वक़्त ने यूँ मुठी भर के मिश्री ही  घोल गया हो ! कुछ दिन में नन्ही  से गुडिया का नाम “नेहा” रखा  गया  !

नेहा फिर बढ़ने लगी , प्रतिभाये खिलने लगी , ओज दिन दिखने लगा , जोश बढ़ने  लगा , शोर मचने  लगा ! हाँ स्कूल से कॉलेज हर तरफ  नेहा  अपने बेहतरीन और सबसे अलग बेहतर सकारात्मक कार्य में ऐसे  संलग्न किया आगे बढाया की ये बचपन में कैमूर  की पहाड़ो  हरियाली में बिहार की ये बेटी की जिंदगी शानदार संतुलित कॉकटेल सा बनता गया ! पहाड़ की तरह अंदर दृढ़ निश्चय , यूँ ऊँचा स्वाभिमान, लक्ष्य के प्रति पत्थर सा अडिग विचार ! लेकिन फिर दूसरी तरफ देखें तो वो ठंढी शीतल हवा और वादियों वाला सुहाना मन , मतवालापन ! नदियों की तरह बस आगे बढ़ना है , बढ़ते रहना है , अपनी मन की करनी है , अच्छा से से भी अच्छी बननी है !

अब ऐसा कुछ पढ़ के लग रहा होगा की कहीं ज्यादा तो नहीं हो गया ! बिलकुल नहीं साहेब, आगे कारनामे और भी हैं !

जैसा चरित्र वैसे पढाई ये कंप्यूटर साइंस से स्नातक करने लगी , और साथ  में शायरी , कविताये भी लिखने लगी, कला के क्षेत्र में भी बराबर रूचि ! निर्मल स्वाभाव के ब्राह्मण परिवार की ये बिटिया कभी आपको अपने निर्मलता से , तो कभी निश्छलता से , तो कभी विषय वस्तु की  जानकारी से , तो कभी अपनी मधुर कविता से जीत लेगी ! जिससे भी मिलती है दीवाना करती ये मंद ठंढी हवा के झोके की तरह बहती रहती है !

कहा था न नदियाँ बात कहाँ मानती है , सीमा कहाँ तय कर पाती है , दायरा यहाँ भी नहीं है ! इन्होने अपने कविता संग्रह बनाई , किताब लिखी एक नाम “जीवन के नुपुर” — निपुण लेखिका “नेहा नुपुर” ! आप भी पढ़ के अवगत हो  सकते हैं , अब तो ये online भी उपलब्ध है Amazon पे

http://www.amazon.in/Jeevan-Ke-Nupur-Hasin-Surile/dp/1618133098

और ये प्रकृति से जुडा हुआ प्रकृति वाला इंसान बच्चो से कहाँ दूर रह पाता है , खुद को दूर नहीं रख पाता है ! इसलिए ये सरकारी स्कूल में शिक्षिका बन के जिंदगी को और खुशनुमा कर रही हैं , और अपने जैसे और बेहतर कई जिंदगी बना रही हैं ! ज्ञात हो कि बिहार की वह बटी नेहा नूपुर ही है जिसने बिहार को बदनाम करने वालों और बिहार में जंगलराज कहने वालों को खुला पत्र लिख, अपने तर्क और शब्दों के वाण से सबकी बोलती बंद करा दी थी।

अपने मातृभूमि और बिहार के लिए इनका प्रेम, बिहार पर इनके द्वारा लिखे गये एक प्रसिद्ध कविता से झलकता है।

गाँव-घर से मिलल संस्कार कहाँ जाई,

मनवा में बसल ई बिहार कहाँ जाई|

 

दुई-चार दिन तनी घरहूँ बितईहऽ,

इहवाँ के खुसबू पूरा देस में फइलइहऽ|

माटी के दीहल अधिकार कहाँ जाई,

मनवा में बसल ई बिहार कहाँ जाई|

 

जाई के बिदेस, देस के बोली जनि भुलइहऽ,

लईकन के माई-बाबू कहे के सिखइहऽ|

जरि जाई देंहिया बाकिर बेवहार कहाँ जाई,

मनवा में बसल ई बिहार कहाँ जाई|

 

गंगा के घाट, गुल्ली-डंटा के खेला,

हर साल लागे इंहा सोनपुर मेला|

एह सभ में रमल तोहार पेयार कहाँ जाई,

मनवा में बसल ई बिहार कहाँ जाई|

 

सिंगापूर-अमेरिका में छठी माई के पूजन,

एके साथे होखे कुआरे पितरि अरपन|

एहिजा के तीज-त्योहार कहाँ जाई,

मनवा में बसल ई बिहार कहाँ जाई|

 

नस-नस में रसल बिचार कहाँ जाई,

मनवा में बसल ई बिहार कहाँ जाई||

हम अपना बिहार की टीम भी कौन से कम नसीब वाले हैं , हमें भी ये कोहिनूर सा सहयोगी टीम में मिला ! शब्द नहीं है हमारे पास भगवन का शुक्रिया देने को ! आज “Aapna Bihar ” परिवार के लिए शानदार दिन है , हाँ आज जन्मदिन जो हैं ऐसी शानदार सक्सियत का ! सदा हंसती रहे, खुशियाँ बंटती रहे , सदा  हमारे रहे , बिहार की मिटटी को महकते रहे , बिहार का देश का नाम रोशन करते रहे  हमारी दिल से यही मंगल कामना है !

 

समस्त देशवासियों के नाम इस बिहार की बेटी का खुला खत, पढ़कर बिहार के प्रति आपका सोच बदल जायेगा

#MatBadnaamKaroBiharKo

 

इस कैम्पेन की शुरुआत से ही जुड़ी हूँ।

अब तक डीपी नहीं बदल पायी, अब तक कोई फ़ोटो भी क्लिक नहीं किया (कुछ टेक्निकल प्रॉब्लम है, माफ़ी!), फिर भी इसके समर्थन में हूँ, पहले दिन से ही, एक आमजन की तरह। खैर, अब तक सोशल मिडिया को पता चल चुका है कैसे और कौन-कौन लोग इसको सपोर्ट कर रहे हैं।

सब अपनी-अपनी तरह से कोशिश कर रहे हैं ‘मैं आपके साथ हूँ।

ये आवाज इस कैम्पेन से जोड़ पाएं।

 

लेकिन मैंने पहले दिन से ही नोटिस किया, कमेंट्स देख कर, कुछ ऐसे जन भी हैं जो इस बड़े प्रयास को महज पब्लिसिटी का बहाना मान बैठे हैं। वो कहते हैं “इसकी कोई जरूरत ही नहीं”

 

सच कहूँ, आप सही कहते हैं “जरूरत ही नहीं थी ऐसे कैम्पेन की”

लेकिन इसे मिल रहा समर्थन ये साबित कर रहा है कि कितनी जरूरत है इस कैम्पेन की।

मैं जिस पीढ़ी की हूँ, सुन-सुन के थक चुकी हूँ वो सारे इल्जाम जो आप लगाते आये हैं बिहारियों पर। मैं वो बातें भी अब नहीं कहना चाहती जो आपके जवाब में हमारे बड़े कहते आये हैं, वही गौरवशाली इतिहास की बातें।

ऐसा सिर्फ मैं नहीं, एक पूरी पीढ़ी सोचती है।

क्योकि ये पीढ़ी जानती है, वो बातें अब कागज़ी हो चलीं हैं। हममें से कितने हैं जो शेरशाह शुरी के विकास का अंदाजा भी लगा पाएं। उस वक़्त के बने पहले जीटी रोड को अब हम तोड़-फोड़ के आगे निकल चुके हैं। शेरशाह के मकबरे पर जा कर अब भी हम उस गर्व को महसूस जरूर कर सकते हैं। पर हमारी पीढ़ी अपना गर्व खुद तलाशना चाहती है। हाल में पड़े धुल को साफ़ करना चाहती है। कहना चाहती है कि आपके इल्जाम भी कागज़ी हो चले हैं, हमारे इतिहास की तरह।

 

ये पीढ़ी नहीं चाहती कि आप उसे कहें “अरे यार! तुम बिहारियों की राजनितिक समझ बचपन में ही बन जाती है, कि तुमने सम्राट अशोक का मगध का विस्तार देखा है। तुमलोग वैज्ञानिक हो, क्योकि तुम्हारे यहाँ शून्य का आविष्कार करने वाला जन्मा।”

 

किताबी दुनिया से बाहर आईये तो नज़र आये वो मेहनत जो करके यहाँ के बच्चे खुद को राष्ट्रीय परिदृश्य में फिट करने की कोशिश रहे हैं। आप देखेंगे यहाँ परिवार का वो संघर्ष भी कि कैसे माँ-बाप अपने कलेजे के टुकड़े को दूर भेजते हैं ताकि वो पढ़ सके, कमा सके।

 

हमारा इतिहास हमें आज किसी तरह के विकास का ढांचा नहीं देता। हमें भी ये सब पाना होता है अपनी इच्छा शक्ति के दम पर, बिलकुल आपकी तरह।

मुझे कई लोग पूछते हैं “आपको नहीं लगता, आप थोड़ी अलग हैं, मतलब बिहार में रह के, बिहार की लड़की …..।”

सवाल पूरा नहीं होता, जवाब पूरा होता है, “नहीं, मुझे नहीं लगता।”

 

एक और वाकया सुनाती हूँ।

किसी ने मुझे बिहार न आने और यहाँ के लोगों से नफरत होने की अलग ही वजह बताई।

“मैं बिहार नहीं आना चाहता। बिहारी हर जगह ऊपर से नीचे तक की पोस्ट पर हैं और यहां के लोकल्स को नीची निगाह से देखते हैं, या शायद खुद को बड़ा समझते हैं।”

 

अब इस वजह का क्या जवाब दूँ, इससे ज्यादा क्या कहूँ कि वो उस जगह इसलिए हैं क्योकि वो जगह वो डिज़र्व करते हैं। उनकी मेहनत वो डिज़र्व करती है।

क्या कहूँ मैं कि आप एकबार बिहार आकर देखो, कैसे लड़के 10वीं पास करते ही सरकारी नौकरी के लिए घर से दूर रहने लगते हैं। कैसे यहाँ किसी पार्क, किसी कॉलेज में सरकारी नौकरी से इतर प्रेम कहानियां नहीं बनतीं। हर मुमकिन जगह, जहां एक ग्रुप बैठ सके, एसएससी CGL की ही बातें होतीं हैं। यहां तक कि रेलवे प्लेटफार्म तक पर सुबह 4 बजे से शाम के 6 बजे तक लड़के पढ़ते रहते हैं। आप यकीन ही तो नहीं करोगे। परिवार को खुश करने के लिए यहां लड़के ये नहीं सोचते कि उनका टैलेंट क्या है, उनका शौक क्या है। सीमित खर्चे में उन्हें बड़ा आदमी बनने के सपने दिखाए जाते हैं बचपन से। वो खुद से भिड़ते आये हैं एक इस ख़ुशी के लिए, इस गर्व के लिए। आप नहीं समझोगे।

बिहार फिर भी आपका स्वागत करेगा, कभी जरूर आना।

बिहार की लड़कियाँ या लड़के किसी से कम हों, ये क्यों सोचते हैं आप, मैं नहीं जानती। लेकिन शायद यही वजह है इस कैम्पेन के इस कदर छा जाने की, इस कदर पसंद किये जाने की।

 

हमारी कोशिश हमेशा से रही है “बिहार” को अलग समझने वालों को बताएं, “हाँ भइया! तुम्हारे जैसे ही हैं हम। हमें एलियन ना समझो। क्या हुआ जो हममें से कितने IIT वाले, कितने IIM वाले हैं। सच तो ये भी है कि हममें से कई बिहार बोर्ड में fail होने वाले भी हैं। हममें सत्यम है, हममें बच्चा राय को पैसे खिलाने वाले लोग भी हैं। हमें विद्वता के शिखर पर न रखो। हो सकता है हममें से कई या मैं खुद उस शिखर तक न पहुँच पाऊँ, तो क्या आप इसमें मेरी कमी गिनने की बजाए सीधा मेरी मातृभूमि की, मेरी परवरिश की कमियाँ गिनोगे?

 

आप तो जानते ही हो, बिहारी कर्मठ होते हैं तो क्या बिहारी आलसी नहीं हो सकते? होते हैं यार… ये बेहद व्यक्तिगत मसला है।

हम तो चाहते हैं आप हमारे सुख-दुःख के साथी बनो। अपनी उम्मीद, अपने अवसाद सब साझा कर सकें हम, जैसे अभी-अभी आपने पंजाब के लिए महसूस किया। हाँ! वैसे ही।

हम तो आपको महसूस करते हैं, आप कब शुरू करोगे हमें महसूस करना।”

कई साल पहले कुछ बिहारी मजदूरों को एक वीराने में छोड़ दिया गया था। परिणामस्वरुप एक देश “मॉरीशस” निकल कर हमसब के बीच अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर हो गया।

ये कोई फेयरी टेल का किस्सा नहीं, वरन् हकीकत है।

 

ऐसा ही कुछ बिहार अपने लिए भी करना चाहता है। अपने पर्यटन स्थलों को खूबसूरत, सुगम एवं सुविधाजनक बनाना चाहता है।

बिहार चाहता है कि इसके बारे में अफवाह न उड़ाई जाए। सच्ची बातें हों। कड़वी बातें भी हों। लेकिन बिहार आना-जाना न छोड़ा जाये।

ये बदनामी अब हमारी पीढ़ी तो बर्दाश्त नहीं ही करेगी न … रियेक्ट तो करेगी ही, कर भी रही है।

खुले विचारों के साथ मैं भी समर्थन देती हूँ इस कैम्पेन को।

और सुनो, कय बार कहें…

‘मत बदनाम करो बिहार को’।

जय हिन्द! जय बिहार

-नेहा नुपूर