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केंद्रीय टीम की रिपोर्ट: बिहार में चमकी बुखार से 200 मौतों के पीछे हीट स्ट्रोक था, लीची नहीं

इस साल बिहार में तीव्र एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के मामलों में वृद्धि की समीक्षा के लिए केंद्र द्वारा गठित विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय टीम का मानना ​​है कि लगभग 200 मौतों के पीछे कड़ी गर्मी (हीट स्ट्रोक) एक कारक था, जिससे 2014 के बाद एईएस फैलने का यह सबसे बड़ा कारण बना।

केंद्रीय टीम का नेतृत्व करने वाले डॉ. अरुण सिंह कहते हैं कि प्रभावित जिलों में कई दिनों तक तापमान 40 डिग्री से अधिक रहा। “हम जानते हैं कि बच्चे तेज गर्मी में खेलते थे … अत्यधिक गर्मी, थकावट और सूक्ष्म पोषण की कमी का संयोजन घातक हो सकता है,” वे कहते हैं, “इस त्रय पर अधिक शोध होना चाहिए|” 

एईएस संक्रमण एक बड़ा शब्द है जो मस्तिष्क में सूजन का कारण बनता है। मुज़फ़्फ़रपुर, वैशाली, पूर्वी चंपारण, शेहर और सीतामढ़ी इस समय सबसे अधिक प्रभावित जिले थे, जहाँ श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (SKMCH), मुज़फ़्फ़रपुर, अकेले 60 प्रतिशत से अधिक लोगों के जान चले गायें|

“मैं कई वर्षों से एईएस के प्रकोपों ​​का अवलोकन कर रहा हूं,” डॉ जी एस साहनी कहते हैं, जो एसकेएमसीएच बाल रोग इकाई के प्रमुख हैं और इस विषय पर पत्र लिख चुके हैं। “मुझे लीची सिद्धांत के साथ असहमति थी, जब इसे पोस्ट किया गया था
2014 के प्रकोप के बाद। लीची में विषाक्त पदार्थों को प्रभावित बच्चों के लीवर-फंक्शन टेस्ट में दिखना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं दिखता। मेरी समझ यह है कि यह कुपोषण से प्रभावित बच्चों में हीट स्ट्रोक का मामला है।”

इस वर्ष बिहार में गर्मी, बारिश नहीं के साथ अविश्वसनीय थी| पटना के एक चिकित्सक और जन स्वास्थ्य अभियान के कार्यकर्ता डॉ. शकील बताते हैं, “कुपोषित बच्चे ऐसी गर्मी से निपटने के लिए बीमार हैं। उनका थर्मो-रेगुलेटरी मैकेनिज्म अच्छा काम नहीं करता है।”

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डॉ. सिंह कहते हैं कि उन्होंने पाया कि शोध समूहों में “फैलने पर पूर्व निर्धारित धारणायें” थी। मुजफ्फरपुर की गोरखपुर (उत्तर प्रदेश में) से निकटता के कारण, कुछ शोधकर्ताओं ने जापानी एन्सेफलाइटिस के बारे में बात की, जबकि अन्य ने अब प्रसिद्ध लीची सिद्धांत को दोहराया … हमने कोई सामान नहीं लिया और मंत्रालय ने हमारे खुले दिमाग का समर्थन किया। हमारा पहला काम जीवन को बचाना और उद्देश्य के लिए संसाधन स्थापित करना था। और जहां तक ​​बीमारी के कारण का सवाल है, हम मरीज को रास्ता दिखाने देते हैं। ”

वह कहते हैं, “बच्चों का इलाज करते हुए, हमने पाया कि उनका लिवर बड़ा हो गया है, मांसपेशियों की टोन कम है, और उनके दिल की धड़कन कम है … (हम) एक से अधिक अंगों की शिथिलता से जूझ रहे थे। मांसपेशियों की बायोप्सी से पता चला कि माइटोकॉन्ड्रिया प्रभावित थे … हमने रक्त के नमूने NIMHANS को भेजे। उन्होंने बताया कि बच्चों में गंभीर कार्निटाइन की कमी थी। कार्निटाइन का काम फैटी एसिड को माइटोकॉन्ड्रिया में पहुंचाना है, जो सेल की ऊर्जा का उत्पादन करता है … हमने दो बच्चों को कार्निटाइन दिया, और उनकी चयापचय दर सामान्य की।

लीची सिद्धांत के समर्थकों के बारे में डॉ. सिंह कहते हैं, ” मेटाबोलिक संबंधी पहलू पर जोर देने के बाद, वे उस चीज़ के करीब थे जो हमने पाया। लेकिन यह एक साधारण तथ्य है कि सभी फलों में टॉक्सिन्स होते हैं। एक बच्चे को विषाक्त पदार्थों के कार्य करने के लिए 1.5 किलोग्राम से अधिक अनरिच लीची और 5 किलो पके फल का सेवन करने की आवश्यकता होती है। और इसके अलावा, यह भी न भूलें कि लीची में पोषक तत्व भी होते हैं।

मुजफ्फरपुर के बाल रोग विशेषज्ञ और लीची सिद्धांत के लेखकों में से एक डॉ. अरुण शाह कहते हैं कि वे नए शोध के लिए खुले हैं। “देखो, हमने कभी नहीं कहा कि लीची एईएस का प्राथमिक कारण है। और हम मानते हैं कि कुपोषण इसका मुख्य कारण है। एक स्वस्थ बच्चा जो अनियंत्रित लीची खाता है, वह कभी भी इस बीमारी का अनुबंध नहीं करेगा। ”

अगर हीट स्ट्रोक मुख्य कारण था, तो वह कहते हैं, “ऐसा क्यों है कि बिहार के 12-15 जिलों में यह बीमारी प्रभावित हुई है, जब पूरे राज्य में गर्मी की लहर चल रही थी?” मैं यह भी नहीं कहता कि सभी बच्चे जो एईएस से अनुबंधित हैं? लीची थी। लेकिन अगर उन्हें हीट स्ट्रोक का सामना करना पड़ा, तो ऐसा क्यों है कि लक्षण दिन के शुरुआती घंटों में प्रकट होते हैं? कुपोषण से ग्रस्त बच्चों में अधपके लीची के सेवन से मेताबोल्लिक फंक्शन में खराबी का सिद्धांत बांग्लादेश, वियतनाम और जमैका (जिसका मूल फल, एकेई, लीची के समान है) जैसे देशों में सिद्ध होता है।

एईएस का वास्तव में क्या कारण है इसपर भ्रम को मानते हुए बिहार के प्रधान सचिव, स्वास्थ्य, संजय कुमार ने कहा, “यह एक प्रमुख कारण है कि राज्य इस वर्ष के प्रकोप की जांच करने में विफल रहा।”

मुज़फ़्फ़रपुर के सहपुर में सहायक नर्स मिड-वाइफ के रूप में तैनात शुषमा, बीमारी से बचाव की पहली पंक्ति में थी| वह कहती है, “शोधकर्ताओं को हमें यह बताना चाहिए कि एईएस का क्या कारण है|”

SKMCH के अधीक्षक डॉ. सुनील कुमार शाही कहते हैं, “मानसून की शुरुआत राहत देती है। अब बाल चिकित्सा वार्ड में गिने-चुने बच्चे ही इंसेफेलाइटिस के मरीज हैं। ”

Source: Indian Express

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मुजफ्फरपुर को आज भी याद है सुषमा जी का नारा, ‘जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा’

भारत की पूर्व विदेश मंत्री और लोकप्रिय राजनेता सुषमा स्वराज जी का कल शाम असमय मृत्यु हो गयी| उनके मौत के कारण पूरा देश शोक में है| राजनीति में विरले ऐसे लोग होते हैं जिनको चाहने वाले सभी राजनितिक दल, विचारधारा और सोच में विश्वास रखने वाले लोग होते हैं| सुषमा स्वराज उसी विरले नेता में से एक थी|

सुषमा जी के देहांत की खबर जब ही बिहार के मुजफ्फरपुर पहुंची| लोगों को आपातकाल का वह दौर याद आ गया, जब सुषमा स्वराज मुजफ्फरपुर आई थी| जॉर्ज फर्नांडिस के लिए ऐतिहासिक चुनाव प्रचार और हाथ उठाए हथकड़ी वाला जॉर्ज का कटआउट के साथ सुषमा का वह एतिहासिक नारा, ‘जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा‘, आज भी लोगों को याद है|

वह आपातकाल का काला दौर था। जॉर्ज और उनके साथियों को जून 1976 में गिरफ्तार कर लिया गया था। जेल में रहते जॉर्ज ने चुनाव लड़ा और जीते भी। उनकी चुनावी नैया पार कराने के लिए सुषमा स्वराज पहुंचीं। सुबह से देर शाम तक बिना किसी ताम-झाम के लगातार नुक्कड़ सभाएं करतीं। यह चुनाव का वह दौर था, जब मुजफ्फरपुर के लोगों ने परिवर्तन की लहर देखी।

1977 के लोकसभा चुनाव में जॉर्ज ने जेल से ही नामांकन किया। उनका यहां कोई परिवार या रिश्तेदार नहीं था। सुषमा स्वराज उस समय दिल्ली कोर्ट में अधिवक्ता थीं। जॉर्ज के चुनाव प्रचार के लिए मुजफ्फरपुर पहुंचीं। सुषमा सभा में नारा लगाती थीं, ‘जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा।’ यह नारा आम लोगों की जुबान पर छा गया।

पुराने दिनों को याद करते हुए जॉर्ज के करीबी रहे डॉ. हरेंद्र कुमार कहते हैं, हाथ उठाए हथकड़ी वाला जॉर्ज का कटआउट चुनाव प्रचार का बैनर-पोस्टर था। सुषमा स्वराज स्टार प्रचारक थीं। पूर्व जदयू जिलाध्यक्ष विजय प्रसाद सिंह और पूर्व विधान पार्षद गणेश भारती कहते हैं कि तब एक अलग ही दौर था। हर उम्र के लोग उनके लिए प्रचार करते। चंदा जुटाते।

भोला चौधरी बताते हैं, वे सुषमा स्वराज के काफिले के साथ मीनापुर गए। वहां प्रचार करते देर शाम हो गई। कार्यकर्ताओं ने सरकारी स्कूल में रहने की व्यवस्था की। वहीं रात्रि विश्राम हुआ। किसी कार्यकर्ता के यहां से रोटी तो किसी के यहां से भुजिया बनकर आई। करीब 10 दिनों तक रहकर सुषमा ने प्रचार किया। 2014 के चुनाव प्रचार में भी वह कटरा आईं।

धर्मशाला चौक पर चाय की दुकान का संचालन करनेवाले वरीय भाजपा नेता 65 वर्षीय भोला चौधरी उर्फ भोला भाई कहते हैं कि जॉर्ज की चुनावी कमान सुषमा स्वराज ने संभाल रखी थी। उस समय प्रचार का अलग तरीका था। नुक्कड़ सभा का प्रचलन था। वह सुबह तैयार होकर नाश्ता कर लेतीं। उसके बाद उनके साथ कार्यकर्ताओं की टीम चल पड़ती। आपातकाल व देश के विकास पर केंद्रित उनका भाषण होता था। परिवर्तन हो, यही अपील वह करतीं।

आज सुषमा स्वराज इस दुनिया से चली गयी मगर उनकी याद हमेसा जिन्दा रहेगी|

Source: Dainik Jagran

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चमकी बुखार: मुजफ्फरपुर में कुपोषण अधिकांश अफ़्रीकी देशों से भी ज्यादा है

चमकी नामक बुखार से हाल ही में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के 150 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गयी है| मरने वालें लगभग सभी बच्चें गरीब परिवार से ही हैं| इस खतरनाक बीमारी का मुख्य वजह कोपोषण को बताया जा रहा है| इसको लेकर इंडिया टुडे में मुकेश रावत ने एक बड़ा रिपोर्ट लिखा है जो चौकाने वाली है| रिपोर्ट इंग्लिश में है, इसलिए अपना बिहार आपके लिए हिंदी में प्रकाशित कर रहा है| जरुर पढ़िए…


अगर आपको लगता है कि अफ्रीका (और दुनिया) के कुछ सबसे गरीब देश बच्चे पैदा करने के लिए सबसे खराब जगह हैं, तो आप गलत हैं। डेटा बताते हैं कि उनमें से ज्यादातर बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से बेहतर हैं।

इस सप्ताह, मुज़फ़्फ़रपुर ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों में जगह बनाई है, मगर सुर्खियों में आने का यह वजह कोई नहीं चाहा होगा। पिछले एक पखवाड़े में एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण 100 से अधिक बच्चों की मौत हो गई है और कई और के संक्रमित होने की आशंका है।

इस प्रकोप के लिए अनजान और उदासीन, राज्य और केंद्र सरकारों ने अब इसे नियंत्रित करने के लिए एक सर्वव्यापी प्रयास शुरू किया है, यहां तक ​​कि अभी भी बच्चों को अस्पतालों में लाया जाना जारी है।

जबकि केंद्रीय और राज्य स्वास्थ्य दल मुजफ्फरपुर में इंसेफेलाइटिस के प्रकोप से जूझ रहे हैं, आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि बिहार सरकार इस जिले में बाल पोषण और स्वास्थ्य सेवा में सुधार के प्रति उदासीन रही है, इस प्रकार जिले को वर्तमान त्रासदी में खेती करने वाली एक पेट्री डिश बना रही है।

यह इस तथ्य के बावजूद है कि इस क्षेत्र में एन्सेफलाइटिस का प्रकोप नया नहीं है – उत्तर बिहार-पूर्वी उत्तर प्रदेश – जिसने पिछले कुछ दशकों में हजारों इंसेफेलाइटिस से संबंधित मौतें देखी हैं। अभी दो साल पहले, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में इंसेफेलाइटिस के कारण 500 से अधिक बच्चों की मौत हो गई, जो उसी क्षेत्र में आते हैं और उनकी भौगोलिक स्थिति भी मुजफ्फरपुर जैसी है।

2016 और 2018 के बीच, अकेले बिहार में जापानी इंसेफेलाइटिस के कम से कम 228 मामले सामने आए, जिसमें 46 लोगों की जान चली गई।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), विश्व बैंक और यूनिसेफ की रिपोर्टों के डेटा विश्लेषण और मुजफ्फरपुर जिले के आंकड़ों के साथ इसकी तुलना से पता चलता है कि जब बच्चे और मां के पोषण की बात आती है, तो अधिकांश अफ्रीकी देश मुजफ्फरपुर से बेहतर प्रदर्शन करते हैं।

इस विश्लेषण के लिए हमने मुज़फ़्फ़रपुर और अफ्रीका से बाल पोषण के लिए आंकड़ों की तुलना की है|

जिले में छोटे कद वालें बच्चों की संख्या

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) -4, स्वास्थ्य की स्थिति पर भारत का सबसे बड़ा सर्वेक्षण, दिखाता है कि मुज़फ़्फ़रपुर जिले में बाल पोषण के रिकॉर्ड खराब हैं।

5 वर्ष से कम आयु के लगभग 48 प्रतिशत बच्चों छोटा कद, 17.5 प्रतिशत (उनकी ऊंचाई के लिए बहुत पतला) बर्बाद कर दिया जाता है, जबकि 42 प्रतिशत कम वजन वाले होते हैं – गंभीर कुपोषण का एक भयावह संकेत। कुल मिलाकर, बिहार इस जिले से बेहतर नहीं है और आज भारत में स्टंटिंग का सबसे अधिक प्रचलन वाला राज्य है।

इसकी तुलना में, अफ्रीका में केवल 31.3 प्रतिशत ही छोटे बच्चे पाए जाते हैं। अफ्रीका क्षेत्र के लिए डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट बताती है कि 43 अफ्रीकी देशों में मुज़फ़्फ़रपुर की तुलना में छोटे बच्चों का प्रचलन कम है। 

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प्रयाप्त आहार की कमी 

जब पर्याप्त आहार की बात आती है, तो बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर जिले में सिर्फ 7.8 प्रतिशत बच्चे (6-23 महीने की आयु वाले) ही पर्याप्त आहार प्राप्त करते हैं।

इसके विपरीत, अफ्रीका में पोषण की स्थिति पर 2017 डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट बताती है कि कम से कम 20 अफ्रीकी देशों में ऐसे बच्चों का प्रतिशत अधिक है, जिन्हें बचपन से ही पर्याप्त आहार मिलता है। इन देशों में केन्या, रवांडा, घाना, नाइजीरिया अन्य शामिल हैं।

स्तनपान

जबकि मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला लंबी अवधि में स्तनपान में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन जब यह जन्म के बाद पहले घंटे में आता है, तो 79 प्रतिशत का लंबा आंकड़ा सपाट हो जाता है।

NFHS-4 के आंकड़ों से पता चलता है कि मुजफ्फरपुर में 63 फीसदी नवजात शिशु जन्म के पहले घंटे के भीतर स्तनपान नहीं करवाते हैं।

मुजफ्फरपुर जिले में हर तीसरी महिला (15-49 वर्ष) कुपोषित है, जिसका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) सामान्य स्तर (18 किग्रा / एम 2) से नीचे है। सरकार की रिपोर्ट बताती है कि मुजफ्फरपुर जिले में इस आयु वर्ग की 33 प्रतिशत महिलाएं कम वजन की हैं।

ये आंकड़े परेशान कर रहे हैं क्योंकि यह आयु वर्ग है जो स्तनपान कराने वाली माताओं का प्रतिनिधित्व करता है, इस प्रकार यह दर्शाता है कि प्रसव उम्र में 33 प्रतिशत महिलाएं कम वजन की हैं।

न केवल माँ के लिए बल्कि बच्चे के लिए भी मातृत्व पर नियंत्रण महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सीधे गर्भ के वजन (LBW) में योगदान देता है और बच्चे के जन्म के समय से ही गर्भ में है।

अफ्रीका में, इरिट्रिया को छोड़कर, सभी देशों में कम वजन वाली महिलाओं का प्रतिशत है। अफ्रीका में कम वजन वाली महिलाओं का औसत आंकड़ा 10.9 प्रतिशत है।

इन्सेफेलाइटिस, मलेरिया, चिकनगुनिया के कारण हर साल सैकड़ों बच्चों की मौत के साथ, राज्य और केंद्र सरकार इस प्रकार मुजफ्फरपुर में बीमारियों और प्रकोप से निपटने के लिए निवारक उपायों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करके बेहतर सेवा प्रदान करना चाहिए|

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सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार ने खुद माना, राज्य के अस्पतालों में सिर्फ 43% डॉक्टर और 29% नर्स

बिहार में अस्पतालों के ख़राब हालत को हर स्तर पर से समझा जा सकता है – डॉक्टरों और नर्सों से लेकर लैब टेक्नीशियन और फार्मासिस्ट तक| राज्य सरकार ने आज खुद सुप्रीम कोर्ट में यह माना है। एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम या एईएस के कारण बच्चों की मौतों के संबंध में बिहार सरकार शीर्ष अदालत के एक नोटिस का जवाब दे रही थी

सरकार ने एक रिपोर्ट पेश की जिसमें डॉक्टरों की स्वीकृत पदों में केवल 43 प्रतिशत डॉक्टर अस्पतालों में उपलब्ध है। नर्सों और लैब तकनीशियनों का प्रतिशत भी 29 प्रतिशत और 28 प्रतिशत मात्र ही है।

इसके बावजूद, सरकार ने कहा कि एईएस के प्रसार को रोकने के लिए सभी कदम उठाए गए हैं और मृत्यु दर 19 प्रतिशत तक गिर गई है। सरकार ने कहा कि आवश्यक दवाएं मरीजों को उपलब्ध कराई जाती हैं और आंगनवाड़ियों में बच्चों को पूरक पोषण आहार दिया जाता है।

मुजफ्फरपुर के लीची बेल्ट में लगभग हर साल होने वाले एईएस के प्रकोप में 150 से अधिक बच्चों की मौत हो गई है। फिर भी, सटीक कारण पता नहीं है और इसलिए, रोकथाम के तरीकों का पता लगाना है| प्रकोप को नियंत्रित करना स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए एक कठिन कार्य है।

संकट ने राज्य में चिकित्सा बुनियादी ढांचे की कमी को उजागर कर दिया है| एक रिपोर्ट – “स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत” में बिहार खराब प्रदर्शन किया है – मई में सरकार के थिंकटैंक नीती आयोग द्वारा जारी किया गया था। इसमें बिहार बड़े राज्यों में से 20 वें स्थान पर है, केवल उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन बदतर है।

पिछले हफ्ते, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कहा कि बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के कारण बच्चों की मौत “राष्ट्र के लिए शर्म की बात है। हम चाहते हैं कि हमारे गरीबों को सर्वोत्तम गुणवत्ता और सस्ती चिकित्सा मिले,” पीएम ने कहा।

एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम वायरल संक्रमण के कारण सेंट्रल नर्वस सिस्टम के पीड़ितों के लिए एक कैच-ऑल टर्म है। वायरस को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जाता था जो जापानी इंसेफेलाइटिस का कारण बनता है, लेकिन एईएस स्क्रब टाइफस, जीका, निपा या यहां तक ​​कि वायरस भी हो सकता है। कुछ मामलों में, कारण अनिर्धारित रहता है।

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नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेजी मुजफ्फरपुर की शाही लीची

बिहार के मुजफ्फरपुर की शाही लीची उस जिला के साथ बिहार का पहचान बन चुकी है| पुरे देश और दुनिया में शाही लीची को पसंद करने वाले लोग हैं| पुरे देश में कुल लीची के पैदावार का 52 फीसदी लीची अकेले मुजफ्फरपुर से आता है| इसीलिए लीची बिहार का गौरव बन चुका है|

वैसे तो मुजफ्फरपुर के लीची का निर्यात पुरे देश में होता है मगर हर साल खास तौर पर बिहार सरकार देश के राष्ट्रपत्ति और प्रधानमंत्री को लीची भेजती है| इस साल भी खासतौर पर लीची इन गण्यमान लोगों को भेजी गयी है| यह 3 जून को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित एक हजार गणमान्यों के आवास पर पहुंचेगी|

दरअसल बिहार सरकार की ओर से मुजफ्फरपुर की प्रसिद्ध शाही लीची प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ मोदी कैबिनेट के सभी मंत्रियों को भेजी गई है| ज्ञात हो कि पिछले 14 सालों से नई दिल्ली के माननीयों को शाही लीची भेजने की पंरपरा चली आ रही है| वर्ष 2005 में सीएम बनने के बाद नीतीश कुमार ने मुजफ्फरपुर की शाही लीची और भागलपुर के जर्दालु आम हरेक साल भेजना शुरू किया था जो अब तक कायम है|

शासन की ओर से हरेक साल लीची भेजने वाले आर के केडिया बताते हैं कि इस बार भी शाही लीची के बागानों की देखभाल साल भर पहले से करनी शुरू की गई थी, लेकिन तापमान 42 से 44 डिग्री सेल्सियस होने और मई माह में बारिश नहीं होने के कारण शाही लीची को न तो सही आकार मिला न ही कलर और मिठास| फिर भी पीएम और राष्ट्रपति के भेजे जाने वाले शाही लीची के लिए जिले के 50 बागानों से लीची मंगवाई गई| सर्वे के बाद मंगवाई गई लीची को नई दिल्ली से ग्रेडिंग के लिए आए 25 सदस्यीय एक्सपर्ट दल ने बिना दाग वाले और अच्छी गुणवत्ता वाले फ्रेश लीची का चयन किया|

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खुशखबरी: मुजफ्फरपुर में 200 करोड़ के लागत से बनेगा टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल

मुंबई टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल (टीएमएच) की क्वालिटी का कैंसर इलाज अब बिहार में होगा। बिहार के मुजफ्फरपुर में 200 करोड़ के लागत से टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल का निर्माण का रास्ता साफ़ हो गया है| राज्य सरकार ने मुजफ्फरपुर एसकेएमसीएच परिसर में 15 एकड़ जमीन इस अस्पताल निर्माण के लिए केंद्र सरकार को मुफ्त में सौंप दी है।

इस हॉस्पिटल के निर्माण से खासकर उत्तर बिहार के 21 जिलों के लगभग 6 करोड़ लोगों को लाभ मिलेगा और राज्य की स्वास्थ व्यवस्था बेहतर होगी| 15 एकड़ के जमीन पर बनने वाले इस हॉस्पिटल 100 बेड का होगा जो अल्ट्रा मॉडर्न सुविधाओं से लैस होगा। इस अस्पताल को बनाने में 200 करोड़ खर्च होंगे जो केंद्र सरकार देगी। अगले 3 साल में मरीजों के इलाज के लिए यह संस्थान बन कर तैयार हो जाएगा।

टीएमएच मुंबई की तर्ज पर यहां भी नो प्रॉफिट मॉडल यानी कम कीमत पर 60 फीसदी मरीजों का इलाज होगा।

स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि मुंबई जाकर इलाज कराने से बिहारवासियों को छुटकारा मिलेगा। टीएमएच मुंबई के प्रख्यात सर्जन डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने कहा हॉस्पिटल खुलने के बाद हम बिहार में कैंसर रजिस्ट्री सिस्टम विकसित करेंगे।

गौरतलब है कि हर साल 1.70 लाख कैंसर मरीजों की पहचान होती है। हालांकि यहां फिलहाल 20 हजार मरीजों के इलाज की ही माकूल व्यवस्था है। यह देखते हुए टीएमएच मुजफ्फरपुर के साथ ही आईजीआईएमएस में भी 100 बेड का स्टेट कैंसर इंस्टीच्युट बनाया जा रहा है। डेढ़ महीने पहले इसका निर्माण शुरू हुआ है जिसे एलएंडटी एजेंसी को डेढ़ साल में बनाना है। इसके निर्माण पर 138 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं।

स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने कहा कि बिहार सरकार टाटा ट्रस्ट के साथ मिलकर एसपीवी विकसित कर रही है| इसके तहत मेडिकल काॅलेज अस्पताल और जिला अस्पतालों में केमोथेरेपी सहित एल -2 व एल- 3 के इलाज की व्यवस्था होगी| आयुष्मान भारत योजना का लाभ राज्य को सितंबर से मिलने लगेगा|

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इस तस्वीर को देखिये, ये आज के वक़्त की सबसे डरावनी तस्वीर है..

यक़ीनन आज से पहले कई ख़ौफ़नाक तस्वीरें देखी होंगी आपने, कुछ भूत-पिशाचों के तो कुछ रहस्य्मयी तरीके से विचित्र चेहरे आपको डराने में कामयाब रहे होंगे। किन्हीं तस्वीरों में क्रूरता दिखी होगी तो कुछ में अकूट गुस्सा, जिसकी वजह से डर आपके दिल में घर कर गया होगा।

मगर इस तस्वीर को देखें, ये आज के वक़्त की सबसे डरावनी तस्वीर है।

ये हँसता हुआ चेहरा, हाथों में पुलिसिया हथकड़ियां और आँखों में “क्या उखाड़ लोगे वाला” एट्टीट्यूड इस ब्रजेश सिंह के अकेले की नहीं बल्कि क्रूरता, हिंसा, और बलात्कार को जस्टिफाई करते हुए हमारे समाज की तस्वीर है।

इस व्यक्ति की आँखों में शर्म की जगह जो “हाँ किया तो” वाली चमक है वह आज के सरकारी तंत्र की नपुंसकता को चरितार्थ करती है। हाथों में हथकड़ियां महज़ शोपीस हैं जैसे कोई खिलौना सा टंगा हो हाथों में। इस सफ़ेद कमीज़ के पीछे का वो काला इंसान इसलिए नहीं हंस रहा कि उसने कोई गुनाह किया है और पुलिस उसे हवालात लेकर जा रही है, बल्कि उसे यक़ीं है इस अपंग सरकारी व्यवस्था पर जिसमें उसके कई चाचा ताया बैठे हैं उसे छुड़वाने और उसके गुनाह को विपरीत दिशा में मोड़ कर किसी और पर दोष मढ़ने को।

अगर खुदा-न-खास्ता दोष सिद्ध हो भी जाता है तो हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट करते करते सालों बीत जायेंगे, और वाक़ई जो सज़ा मुक़र्रर होनी चाहिए उसकी बजाय ये एक आराम की स्वाभाविक मौत मरेंगे। ये तस्वीर कई मायनों में डरावनी है। ये उस पिता की तस्वीर है जिसकी बेटी इस हद तक गिरने के बावजूद उसका दमन पकड़े है। ये उस राक्षस की तस्वीर है जो बच्चियों का बलात्कार करने के साथ साथ उन्हें कई तरह की शारीरिक और मानसिक यातनाएं भी देता था जिससे वो मजबूर हों मसलन भूखा रख कर ड्रग्स देना, खाने में नशे की दवाई मिला देना, मारना-पीटना, बदन और अंगों पर गरम पानी और तेल उड़ेल देना।

सोचिये जब आपको पढ़ने में इतनी तक़लीफ़ हो रही है तो उन बच्चियों पर इतने वक़्त से क्या गुज़र रही होगी?

इतनी क्रूरता के बाद इंसान तभी हंस सकता है जब उसे उसके बच निकलने का भरोसा हो। जब उसे भरोसा हो न तो पुलिस उसका कुछ उखाड़ सकती है और न ही सरकार। ये चेहरा आज के दौर की सबसे भयावह तस्वीर है, मगर उससे भी भयावह है इस चेहरे पर की हंसी क्योंकि ये हंसी न सिर्फ उस राक्षस के खुद के किये का कोई अफ़सोस न होने को दर्शाता है बल्कि साथ ही साथ हमारे समाज की उस नंगी तस्वीर को भी उजागर करता है जहां सिर्फ गोश्त के एह्सास भर पर भीड़ किसी की बेरहमी से हत्या कर सकती है मगर अपने समाज की बेटियों को नोच कर खाने वालों का बाल भी बांका नहीं कर सकती।

यह सिर्फ एक बालिका गृह है, यक़ीनन ऐसे कई आश्रय स्थतलों में इंसानियत को तार तार किया जाता होगा और हमारे कानों पर जू तक नहीं रेंगती। अगर TISS की रिपोर्ट में इस बालिका गृह का खुलासा नहीं होता तो शायद आज भी ये दरिंदा अपने कुकृत पर हँसता मुस्कुराता क़ायम रहता। आइये इस भयावह हंसी के गवाह बनें और चुप चाप अपने घरों की टीवी स्क्रीन्स से चिपके रहें क्योंकि शर्म हमें आती नहीं। भारत माता की जय!

साभार: मयंक झा 

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बिहार की मशहूर ‘शाही लीची’ के नाम एक और उपलब्धि, मिलेगा GI टैग

उत्तरी बिहार की मशहूर शाही लीचीको नया मुकाम मिलने वाला है। जरदालू आम, कतरनी चावल, और मगही पान के बाद अब शाही लीचीको जिऑग्रफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग के रूप में पहचान मिलने वाली है। ज्ञात हो कि बिहार के जर्दालु आम, मगही पान और कतरनी धान को जीआइ टैग (ज्योग्रफिकल इंडिकेशन) मिल चुका है|

इस साल के 5 जून के जिऑग्रफिकल इंडिकेशन जर्नल में शाही लीची के बारे में विस्तार से बताया गया है।

जीआई जर्नल नंबर 107 में जिक्र
जीआई जर्नल के नंबर 107 में प्रकाशित चैप्टर में शाही लीची की विशेषताओं का जिक्र है। इसमें जीआई का नाम, विवरण, कृषि विधि के साथ-साथ उत्पादन और उत्पत्ति का प्रमाण शामिल है। जर्नल में कहा गया है, ‘यह लीची की एक खास प्रकार की प्रजाति है। राज्य के मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, वैशाली, पूर्वी चंपारण, बेगूसराय और बिहार के एग्रो क्लाइमेटिक जोन-1 के निकटवर्ती इलाकों में मुख्य रूप से इसकी खेती होती है। मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर और उसके आस-पास के इलाकों में पैदा होनेवाली लीची काफी रसदार और शुगर ऐसिड सम्मिश्रण के साथ बेहतरीन खुशूबू वाली होती है।’

‘कैल्शियम की वजह से बेहतरीन लीची’
जर्नल में आगे कहा गया, ‘ऐसा कहा जाता है कि मिट्टी में कैल्शियम की उच्च मात्रा की वजह से यहां की लीची दूसरे इलाकों से बेहतर होती है। इसलिए सलाह दी जाती है कि अगर मिट्टी में कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा न हो तो लीची का नया पौधा लगाते वक्त मिट्टी में चूना मिलाना चाहिए।’

3 लाख मीट्रिक टन पैदावार में 60% शाही लीची
बिहार के प्रमुख सचिव (कृषि) सुधीर कुमार ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘वित्तीय वर्ष 2017-18 में बिहार में लीची की अलग-अलग किस्मों की 3 लाख मीट्रिक टन पैदावार हुई थी। इनमें से 60 प्रतिशत हिस्सा शाही लीची का था।’

जीआई टैग मिलने में अभी तीन महीने का इंतजार करने का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया, ‘मुजफ्फरपुर के लीची उत्पादक संघ ने बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, सबौर के सहयोग से यह पहल की है। गर्मी के इस फल की बढ़ती मांग के बीच शाही लीची के कृषि क्षेत्र और उत्पादन दोनों में इजाफे के बाद यह कदम उठाया गया है।’

अब बिहार के दावे को तीन महीने तक पब्लिक डोमेन में रखा जाएगा| अगर किसी राज्य ने इस दौरान कोई आपत्ति नहीं जतायी तो शाही लीची पर केवल बिहार का एकाधिकार होगा| साल 2016 के अक्टूबर में बिहान द्वारा भागलपुर के कतरनी धान, जर्दालु आम और मगही पान समेत शाही लीची को जीआइ टैग दिलाने के लिए आवेदन किया गया था|

 

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अम्मा से काल्ह बतिआइत रही त पता चलल कि आई सतुआनी है

“अमुआ मोज़र गईले महुआ कोसा गईले, 
रसवा से भर गईल कुल डरिया 
तनि ताका न बलमुआ हमार ओरिया”

आई भोरे से इहे गीत सुन रहल हति. अम्मा से काल्ह बतिआइत रही त पता चलल कि आई सतुआनी है. आई जे घरे रहिति त भोरवे में अम्मा एक चुरुआ पानी ले कर माथा पर थोपले रहित आ कहले रहित, “भगवान तोरा मांगे-कोखे जुड़ रखी हथुन”. आ खाहुला बसिया खाना भेटल रहित. राते के बनाएल भात-दाल, तरकारी, तरुआ, दही सब. इहाँ त कुछ न पता चल रहल हई. न आम के पेड़ हई न कुछो मोजरल हई. एहने दिन पर घरे के इयाद बहुत अबईछई.

कल अम्मा से बात किये तो पता चला कि आज सतुआनी है. गेहूं और चना के साथ बाकि की दलहन फसलें भी तैयार हो कर घर में आने की ख़ुशी में यह त्यौहार मनाया जाता है. अन्न देवता को आभार प्रकट करने के लिए चने या जौ को पीस कर सत्तू बनाया जाता है. फिर उस सत्तू के साथ आम का टिकोला और तुलसी के पत्ते के साथ भोग लगाया जाता है. इसी दिन सौर मास के हिसाब सूर्य रेखा से दक्षिण की ओर चला जाता है. इसी दिन से खरमास (महीने के वो दिन म=जिनमें शुभ-कार्य नहीं किये जाते) की समाप्ति होती है और लग्न-मुहूर्त शुरू हो जाते हैं.

वैसे भी सब जानते ही हैं हम बिहारियों के लिए सत्तू का अपना स्वैग है. हम पीने से लेकर खाने तक में इसको चलाते हैं. लिट्टी-चोखा के अलावा इसको भर कचोरी, पराठा और भी न जाने क्या-क्या बनता है.

आज के दिन की तैयारी हमारे यहाँ कल रात को ही पूरी हो कर ली जाती है. रात को ही आज दिन का खाना बना कर रख लिया जाता है. अम्मा रात को सोने से पहले पीतल के लोटा में पानी भर भगवान जी के सामने रख देती हैं. सुबह उठ कर हम बच्चों से ले कर घर के चौखट-किवाड़ी, पेड़-पौधे तक में में पानी डालती हैं. सबको जुड़ाती हैं.

बचपन में जब गांव में रहते थे तो दादा जी के साथ रात वाला पानी डोल में ले गाछी (आम-लीची का बगीचा) में जाते थे और सारे पेड़ की जड़ों में ये पानी रखा करते थे. लौटने पर लौटते हुए टिकोला लिए आते थे. दाईजी उन टिकोलों से पहले भगवानजी को भोग लगाती थी. फिर अम्मा चटनी पीसती थी. उस दिन पहली बार हम आम की चटनी खाते थे. काहे से कि पहले भगवान जी का हक़ होता है न इसलिए.

और आज ही के हमारे यहाँ विदागरी भी होता है. दुल्हें आते हैं अपनी दुल्हनों को अपने संग ले जाने के लिए. दुल्हनें थोड़ी आँखों में सपने लिए अपने पिया जी के संग उनकी दुनिया को महकाने के लिए मायके से अपने साथ, आम का मंजर तो महुए की ख़ुश्बू लिए चल पड़ती हैं.

बस आज मन आम की गाछी, टिकोले और महुआ के रस में डूबा हुआ है.)

लेखक: अनु रॉय

बिहार के इस कॉलेज में कभी पढ़ाते थे देश के प्रथम राष्ट्रपति

देश के प्रथम राष्ट्रपति और देशरत्न डा. राजेंद्र प्रसाद देश के सच्चे सपूत थे जिनका जिवन सदा ही राष्ट्र सेवा के प्रति समर्पित रहा।  यह बिहार के लिए गर्व की बात है कि डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म बिहार में हुआ था। बिहार से राजेंद्र प्रसाद जी का रिश्ता अटूट है और न जाने कितनी यादें उनकी बिहार से जुडी हैं । मुजफ्फरपुर स्थित प्रसिद्ध लंगट सिंह कॉलेज से भी उनका एक विषेश नाता रहा है।

बिहार ही नहीं, भारत के प्रतिष्ठाप्राप्त और जाने-माने महाविद्यालयों में लंगट सिंह महाविद्यालय (एल.एस.कॉलेज) का नाम शुमार होता है। अपनी गौरवपूर्ण शैक्षणिक सेवाओं से देश और समाज के परिवेश में ज्ञान-विज्ञान की अखंड ज्योति जलाने वाला यह कॉलेज अनेक महापुरुषों की कर्मस्थली रही है। ऐसे ही महापुरषों में स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी थे जिनकी योग्यता और कार्यकुशलता से कॉलेज की मिटटी सिंचित हुई थी तथा ज्ञान की पिपासा शांत हुई थी।

 

डॉ. राजेंद्र प्रसाद उच्चकोटि के विद्वान और कुशल संगठनकर्ता थे। अपने त्यागमय, पवित्र आचरण और आरंभ से ही राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सोच-विचार के जीवन शैली जिनेवालें राजेंद्र बाबु आजीवन मर्यादित जीवन जीकर समाज के लिए आदर्श स्थापित किया । वे महात्मा गाँधी के लिए आदर्श शिष्य, शिक्षकों के लिए आदर्श नेतृत्वकर्ता और देशवासियों के लिए आदर्श नेता के रूप में सर्वप्रिय थे । वे प्रतिभा, शक्ति और सेवा के अद्भुत विलक्षण योग थे।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व और कृतित्व से एल.एस.कॉलेज, मुजफ्फरपुर भी लाभान्वित हुआ। वे न केवल महाविद्यालय के शिक्षक के रूप में रहे बल्कि प्राचार्य के रूप में भी महाविद्यालय की सेवा की।

“बिहार रत्न” बाबु लंगट सिंह के अंतर्मन में बिहार की सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त कुरीतियों को सुधारने के लिए प्रस्फुटित और एल.एस.कॉलेज के रूप में अंकुरित बीज आज जिस रूप में खड़ा है उसके पीछे राजेंद्र बाबु की महत्ती भूमिका है।

जनवरी, 1908 ई.में राजेंद्र बाबु कलकत्ता विश्विद्यालय से ऊँची श्रेणी में एम.ए. की परीक्षा पास करके जुलाई में इस कॉलेज के प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए थे। 3 जुलाई, 1899 को वैशाली और मिथिला की संधिभूमि मुजफ्फरपुर में अवस्थित महाविद्यालय अपने प्रारंभिक दस वर्षों तक सरैयागंग के निजी भवन में चलता था। यह कॉलेज उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बंधित था तथा समय समय पर कॉलेज के निरिक्षण हेतु विश्वविद्यालय से लोग आते रहते थे ।

 

एक समय कॉलेज के निरिक्षण हेतु जब कलकत्ता विश्वविद्यालय के वनस्पतिशास्त्र विभाग के प्रो. डॉ. बहुल आए तब उन्होंने इस बात पर बहुत ही नाराज़गी जताई कि कॉलेज के वर्ग दुकानों के आस-पास के कमरों में चल रहे थे। उन्होंने अपने प्रतिवेदन में ज़मीन और भवन की व्यवस्था पर जोर दिया था। कॉलेज के भवन सम्बन्धी शिकायत से राजेंद्र बाबु को बड़ी चोट पहुंची। उन्होंने अपने कॉलेज के अन्य शिक्षक साथियों से चर्चा के बाद कॉलेज के लिए जगह की तलाश करने लगे। जगह तलाशने करते समय उनके साथ धर्म भूषण चौधरी, रघुनन्दन सिंह भी थे। अंततः खबड़ा गाँव के ज़मींदारों की मदद से उन्हें वर्तमान जगह मिल गयी और कॉलेज सरैयागंज़ से वर्तमान स्थल स्थानांतरित हो गयी ।

 

1960 ई. में कॉलेज की स्थापना के हीरक जयंती अवसर पर उन्होंने कॉलेज भवन के लिए जगह चुनने सम्बन्धी यादों को साझा भी किया था जो आज भी एल एस कॉलेज के पुस्तकालय में उपलब्ध है। कॉलेज के डायमंड जुबली सोवेनीयर में राजेंद्र प्रसाद ने अपने संस्मरण में लिखा है कि;

“उनके कार्यकाल में सरैयागंज़ स्थित मकान के दो-चार कमरों में कॉलेज चलता था और विज्ञानं की कक्षाए तब नहीं लगती थी ।” 

कई दशाब्दी बाद कॉलेज में जब राजेंद्र बाबु आए तो इस कॉलेज के नव निर्मित भवन को देखकर उन्हें अतीव प्रसन्नता हुई थी ।

युवा राजेंद्र प्रसाद की मुलाकात बाबु लंगट सिंह से कैसे हुई , यह भी कॉलेज के लिए सुखद प्रसंग है। राजेंद्र प्रसाद तब कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित मेधावी छात्र के रूप में विख्यात थे। उन दिनों वे वहां पर पढने वालें बिहारी छात्रों के संगठन के लोकप्रिय नेता भी थे। सच तो यही है कि यही से समाज और देश सेवा की प्रेरणा उन्हें मिली। बाबु लंगट सिंह की ठेकेदारी का काम तब बंगाल में खूब चल रहा था। उन्होंने वही राजेंद्र बाबु की ख्याति सुनी थी ।

 

लंगट बाबू कॉलेज के लिए योग्य शिक्षक की तलाश में थे। उन्होंने राजेंद्र बाबू से संपर्क बढ़ाया। जब घनिष्ठता बढ़ गई तो लंगट बाबू ने राजेंद्र प्रसाद के सामने कॉलेज में शिक्षक के रूप में कार्य करने का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।

बाबु लंगट सिंह और राजेंद्र बाबु दोनों के ह्रदय में देश की सेवा-भावना का अंकुर कलकत्ता में ही फूटा था। बाबु लंगट सिंह का शिक्षक के रूप में राजेंद्र बाबू का चयन कितना सटीक था, यह तो अखिल भारतीय स्तर पर राजेंद्र बाबू के जीवन के भावी उत्कर्ष से प्रमाणित हो जाता है । कॉलेज छोड़ने के बाद वे कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता रहे तथा बाद के वर्षों में कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष भी चुने गये। वे स्वाधीन भारत के प्रथम राष्ट्रपति भी निर्वाचित हुए।

कहा जाता है की जब दो महापुरुष एक साथ एक महान उदेश्य के लिए इकठ्ठा होते है तब वह विलक्षण रूप में फलीभूत होता है।

ऐसा ही हुआ था जब भारत रत्न राजेंद्र बाबू और बिहार रत्न बाबू लंगट सिंह की जोड़ी कॉलेज के माध्यम से देश और समाज के लिए एक साथ विचार और कर्म किए थे।

भले ही राजेंद्र प्रसाद कुछ ही वर्षों के लिए शिक्षण का कार्य किया, लेकिन जबतक कॉलेज में रहे, विद्यार्थियों के मन-मंदिर में बसे रहे। महाविद्यालय के वर्तमान व पूर्व छात्र उनके कार्यकाल को याद करके आज भी अपने को गौरवान्वित महसूस करते है। आज भी महाविद्यालय की गरिमा राजेंद्र बाबु के नाम से बढती है ।

 

लेखक – अभिषेक रंजन 

खुशखबरी: पटना और मुजफ्फरपुर को स्मार्ट सिटी बनने के लिए 4357 करोड़ रूपये हुए आवंटित

देर से ही सही मगर लगता है बिहार के पटना और मुजफ्फरपुर शहर के लिए अच्छे दिन जल्द ही आने वाली है| ज्ञात हो कि केंद्र प्रायोजित स्मार्ट सिटी मिशन योजना के तहत बिहार के पटना और मुजाफ्फरपुर को स्मार्ट सिटी के रूप में विकशित करना है| इन दोनों शहर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए अलग-अलग एसपीवी (स्पेशल परपस व्हीकिल) कंपनी का गठन करने का फैसला लिया गया है|

मंगलवार को राज्य कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी| इसके तहत केंद्र प्रायोजित स्मार्ट सिटी मिशन योजना के अंतर्गत पटना स्मार्ट सिटी लिमिटेड कंपनी और मुजफ्फरपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड कंपनी बनायी जायेगी| पटना की कंपनी के लिए 2776 करोड़ और मुजफ्फरपुर कंपनी के लिए 1580 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं|

यानी दोनों को मिला कर 4357 करोड़ रुपये दिये गये हैं| इसके अलावा पटना की योजना के लिए 465 करोड़ रुपये और मुजफ्फरपुर की योजना के लिए 490 करोड़ रुपये अलग से दिये गये हैं| दोनों कंपनियों के रजिस्ट्रेशन के लिए ढाई करोड़ रुपये राज्यांश के रूप में खर्च किये जायेंगे| इसके अलावा इन कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर (बीओडी) में तीन नये पदों को जोड़ा गया है| प्रमंडलीय आयुक्त की अध्यक्षता में गठित इस बीओडी में अब संबंधित जिले के डीएम, मेयर और बुडको के एमडी भी सदस्य होंगे|

मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के अपर सचिव उपेंद नाथ पांडेय ने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में आज यहां हुई मंत्रिपरिषद, की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। श्री पांडेय ने बताया कि केन्द प्रायोजित स्मार्ट सिटी मिशन योजना के तहत पटना शहर को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने के लिए स्पेशल पर्पस व्हीकल (एसपीवी) कम्पनी पटना स्मार्ट सिटी लिमिटेड के गठन एवं योजना पर अनुमानित व्यय 2776.16 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति दी गई।

राज्यांश के रूप में 465 करोड़ रुपये एवं कंपनी के निबंधन के लिए 2.50 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई। अपर सचिव ने बताया कि इसी तरह मुजफ्फरपुर में स्मार्ट सिटी बनाने के लिए एसपीवी कंपनी मुजफ्फरपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड के गठन और इस योजना पर करीब 1580 करोड़ रुपये व्यय की प्रशासनिक मंजूरी दी गई। योजना पर राज्य की हिस्सेदारी 490 करोड़ रुपये तथा कंपनी के निबंधन के लिए ढाई करोड़ रुपये व्यय की भी स्वीकृति प्रदान की गई।

मुजफ्फरपुर के प्रसिद्ध शाही लीची खाने के ये 7 फायदे आपको हैरत में डाल देंगे

बिहार की राजधानी तो पटना है लेकिन शायद आपको मालूम नहीं होगा कि लीची के कारण मुजफ्फरपुर राज्य की अघोषित राजधानी है। मुजफ्फरपुर बिहार ही नहीं पूरे विश्व में लीची को लेकर मशहूर है। यहां की लीची देश-दुनिया के लगभग सभी भागों में जाती है। और गर्मी के महीनों में लोगों के खास पसंदीदा फल में लीची सबसे प्रचलित है। जिसे हर राज्य के लोग बड़े चाव से खाते हैं। मुजफ्फरपुर की शाही लीची देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के साथ-साथ अन्य वीआईपी लोगों को भी जिला प्रशासन के द्वारा गिफ्ट के रूप में भेजी जाती है।

 

लीची गर्मियों का एक प्रमुख फल है. स्वाद में मीठा और रसीला होने के साथ ही ये सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है. लीची में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन सी, विटामिन ए और बी कॉम्प्लेक्स भरपूर मात्रा में पाया जाता है. इसके अलावा इसमें पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और आयरन जैसे मिनरल्स भी पाए जाते हैं.

रोजाना लीची खाने से चेहरे पर निखार आता है और बढ़ती उम्र के लक्षण कम नजर आते हैं. इसके अलावा ये शारीरिक विकास को भी प्रोत्साहित करने का काम करता है. हालांकि लीची खाते समय ध्यान रखें कि इसे बहुत अधिक मात्रा में खाना नुकसानदेह हो सकता है. बहुत अधिक लीची खाने से खुजली, सूजन और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है.

लीची खाने के फायदे:

1. बीटा कैरोटीन और ओलीगोनोल से भरपूर लीची दिल को स्वस्थ रखने में मददगार है.

2. लीची कैंसर कोशि‍काओं को बढ़ने से रोकने में मददगार है.

3. अगर आपको ठंड लग गई है तो लीची के सेवन तुरंत फायदा मिलेगा.

4. अस्‍थमा से बचाव के लिए भी लीची का इस्तेमाल किया जाता है.

5. लीची का इस्तेमाल कब्ज से राहत के लिए भी किया जाता है.

6. मोटापा घटाने के लिए भी लीची का इस्तेमाल करना फायदेमंद है. इसके साथ ही ये इम्यून सिस्टम को भी बूस्ट करने का काम करती है.

7. सेक्स लाइफ को स्मूद बनाने के लिए भी लीची खाना फायदेमंद रहेगा.

इस प्रसिद्ध कॉलेज और देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद का अटूट रिश्ता है

देश के प्रथम राष्ट्रपति और देशरत्न डा. राजेंद्र प्रसाद देश के सच्चे सपूत थे जिनका जिवन सदा ही राष्ट्र सेवा के प्रति समर्पित रहा।  यह बिहार के लिए गर्व की बात है कि डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म बिहार में हुआ था। बिहार से राजेंद्र प्रसाद जी का रिश्ता अटूट है और न जाने कितनी यादें उनकी बिहार से जुडी हैं । मुजफ्फरपुर स्थित प्रसिद्ध लंगट सिंह कॉलेज से भी उनका एक विषेश नाता रहा है।

 

बिहार ही नहीं, भारत के प्रतिष्ठाप्राप्त और जाने-माने महाविद्यालयों में लंगट सिंह महाविद्यालय (एल.एस.कॉलेज) का नाम शुमार होता है। अपनी गौरवपूर्ण शैक्षणिक सेवाओं से देश और समाज के परिवेश में ज्ञान-विज्ञान की अखंड ज्योति जलाने वाला यह कॉलेज अनेक महापुरुषों की कर्मस्थली रही है। ऐसे ही महापुरषों में स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी थे जिनकी योग्यता और कार्यकुशलता से कॉलेज की मिटटी सिंचित हुई थी तथा ज्ञान की पिपासा शांत हुई थी।

 

डॉ. राजेंद्र प्रसाद उच्चकोटि के विद्वान और कुशल संगठनकर्ता थे। अपने त्यागमय, पवित्र आचरण और आरंभ से ही राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सोच-विचार के जीवन शैली जिनेवालें राजेंद्र बाबु आजीवन मर्यादित जीवन जीकर समाज के लिए आदर्श स्थापित किया । वे महात्मा गाँधी के लिए आदर्श शिष्य, शिक्षकों के लिए आदर्श नेतृत्वकर्ता और देशवासियों के लिए आदर्श नेता के रूप में सर्वप्रिय थे । वे प्रतिभा, शक्ति और सेवा के अद्भुत विलक्षण योग थे।

 

डॉ. राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व और कृतित्व से एल.एस.कॉलेज, मुजफ्फरपुर भी लाभान्वित हुआ। वे न केवल महाविद्यालय के शिक्षक के रूप में रहे बल्कि प्राचार्य के रूप में भी महाविद्यालय की सेवा की।

 

“बिहार रत्न” बाबु लंगट सिंह के अंतर्मन में बिहार की सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त कुरीतियों को सुधारने के लिए प्रस्फुटित और एल.एस.कॉलेज के रूप में अंकुरित बीज आज जिस रूप में खड़ा है उसके पीछे राजेंद्र बाबु की महत्ती भूमिका है।

 

जनवरी, 1908 ई.में राजेंद्र बाबु कलकत्ता विश्विद्यालय से ऊँची श्रेणी में एम.ए. की परीक्षा पास करके जुलाई में इस कॉलेज के प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए थे। 3 जुलाई, 1899 को वैशाली और मिथिला की संधिभूमि मुजफ्फरपुर में अवस्थित महाविद्यालय अपने प्रारंभिक दस वर्षों तक सरैयागंग के निजी भवन में चलता था। यह कॉलेज उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बंधित था तथा समय समय पर कॉलेज के निरिक्षण हेतु विश्वविद्यालय से लोग आते रहते थे ।

 

एक समय कॉलेज के निरिक्षण हेतु जब कलकत्ता विश्वविद्यालय के वनस्पतिशास्त्र विभाग के प्रो. डॉ. बहुल आए तब उन्होंने इस बात पर बहुत ही नाराज़गी जताई कि कॉलेज के वर्ग दुकानों के आस-पास के कमरों में चल रहे थे। उन्होंने अपने प्रतिवेदन में ज़मीन और भवन की व्यवस्था पर जोर दिया था। कॉलेज के भवन सम्बन्धी शिकायत से राजेंद्र बाबु को बड़ी चोट पहुंची। उन्होंने अपने कॉलेज के अन्य शिक्षक साथियों से चर्चा के बाद कॉलेज के लिए जगह की तलाश करने लगे। जगह तलाशने करते समय उनके साथ धर्म भूषण चौधरी, रघुनन्दन सिंह भी थे। अंततः खबड़ा गाँव के ज़मींदारों की मदद से उन्हें वर्तमान जगह मिल गयी और कॉलेज सरैयागंज़ से वर्तमान स्थल स्थानांतरित हो गयी ।

 

1960 ई. में कॉलेज की स्थापना के हीरक जयंती अवसर पर उन्होंने कॉलेज भवन के लिए जगह चुनने सम्बन्धी यादों को साझा भी किया था जो आज भी एल एस कॉलेज के पुस्तकालय में उपलब्ध है। कॉलेज के डायमंड जुबली सोवेनीयर में राजेंद्र प्रसाद ने अपने संस्मरण में लिखा है कि;

“उनके कार्यकाल में सरैयागंज़ स्थित मकान के दो-चार कमरों में कॉलेज चलता था और विज्ञानं की कक्षाए तब नहीं लगती थी ।” 

कई दशाब्दी बाद कॉलेज में जब राजेंद्र बाबु आए तो इस कॉलेज के नव निर्मित भवन को देखकर उन्हें अतीव प्रसन्नता हुई थी ।

 

युवा राजेंद्र प्रसाद की मुलाकात बाबु लंगट सिंह से कैसे हुई , यह भी कॉलेज के लिए सुखद प्रसंग है। राजेंद्र प्रसाद तब कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित मेधावी छात्र के रूप में विख्यात थे। उन दिनों वे वहां पर पढने वालें बिहारी छात्रों के संगठन के लोकप्रिय नेता भी थे। सच तो यही है कि यही से समाज और देश सेवा की प्रेरणा उन्हें मिली। बाबु लंगट सिंह की ठेकेदारी का काम तब बंगाल में खूब चल रहा था। उन्होंने वही राजेंद्र बाबु की ख्याति सुनी थी ।

 

लंगट बाबू कॉलेज के लिए योग्य शिक्षक की तलाश में थे। उन्होंने राजेंद्र बाबू से संपर्क बढ़ाया। जब घनिष्ठता बढ़ गई तो लंगट बाबू ने राजेंद्र प्रसाद के सामने कॉलेज में शिक्षक के रूप में कार्य करने का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।

 

बाबु लंगट सिंह और राजेंद्र बाबु दोनों के ह्रदय में देश की सेवा-भावना का अंकुर कलकत्ता में ही फूटा था। बाबु लंगट सिंह का शिक्षक के रूप में राजेंद्र बाबू का चयन कितना सटीक था, यह तो अखिल भारतीय स्तर पर राजेंद्र बाबू के जीवन के भावी उत्कर्ष से प्रमाणित हो जाता है । कॉलेज छोड़ने के बाद वे कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता रहे तथा बाद के वर्षों में कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष भी चुने गये। वे स्वाधीन भारत के प्रथम राष्ट्रपति भी निर्वाचित हुए।

 

कहा जाता है की जब दो महापुरुष एक साथ एक महान उदेश्य के लिए इकठ्ठा होते है तब वह विलक्षण रूप में फलीभूत होता है । ऐसा ही हुआ था जब भारत रत्न राजेंद्र बाबू और बिहार रत्न बाबू लंगट सिंह की जोड़ी कॉलेज के माध्यम से देश और समाज के लिए एक साथ विचार और कर्म किए थे।

 

भले ही राजेंद्र प्रसाद कुछ ही वर्षों के लिए शिक्षण का कार्य किया, लेकिन जबतक कॉलेज में रहे, विद्यार्थियों के मन-मंदिर में बसे रहे। महाविद्यालय के वर्तमान व पूर्व छात्र उनके कार्यकाल को याद करके आज भी अपने को गौरवान्वित महसूस करते है। आज भी महाविद्यालय की गरिमा राजेंद्र बाबु के नाम से बढती है ।

 

सभार- अभिषेक रंजन 

‘Aapna Bihar’ के खबर पर प्रधानमंत्री की मुहर, बिहार के आलोक वर्मा बने सीबीआई के नये डायरेक्टर

दिल्ली पुलिस के कमिश्नर आलोक वर्मा सीबीआई के नए डायरेक्टर होंगे। प्रधानमंत्री मोदी सीबीआई डायरेक्टर पद के लिए वर्मा की नियुक्ति को मंजूरी दे दी है। वर्मा दो साल तक सीबीआई चीफ रहेंगे। वह अनिल सिन्हा की जगह लेंगे। वर्मा के अलावा तीन और आईपीएस अफसर सीबीआई डायरेक्टर पद की दौड़ में शामिल थे, जिनमें वर्मा सबसे वरिष्ठ थे।

सूत्र के हवाले से दो दिन पहले ही सबसे पहले ‘आपन बिहार’ ने यह खबर आपको दे दी थी । 

http://www.aapnabihar.com/2017/01/alok-verma-may-become-new-cbi-chief/

 

कौन है आलोक वर्मा ? 

आलोक वर्मा

आलोक वर्मा

आलोक वर्मा मूल रूप से बिहार क मुजफ्फरपुर के रहने वाले है। वे 1979 बैच के अाइपीएस अधिकारी हैं, वर्तमान में दिल्ली के कमीशनर है और तिहाड़ जेल में भी डायरेक्टर जनरल के पद को सुशोभित किया है। आलोक कुमार वर्मा बेहद साफ-सुथरी छवि वाले आइपीएस अधिकारी माने जाते हैं।

 

विभिन्न पदों पर दे चुके हैं सेवाएं

आलोक कुमार वर्मा दिल्ली पुलिस में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इन पदों में दक्षिण जिले में पुलिस उपायुक्त, अपराध शाखा के संयुक्त आयुक्त, नई दिल्ली रेंज के संयुक्त पुलिस आयुक्त, विशेष पुलिस आयुक्त : इंटेलिजेंस: और सतर्कता के विशेष पुलिस आयुक्त के पद शामिल हैं। वे इसके साथ ही अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में पुलिस महानिरीक्षक और पुडुचेरी में पुलिस महानिदेशक के पद पर भी कार्यरत रहे हैं।

बिहार का एक और बेटा हुआ शाहिद, कारगिल युद्ध में चचेरे भाई की गई थी जान

बीते शनिवार को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में आतंकियों ने आर्मी के काफिले पर हमला बोला जिसमें 3 जवान शहीद और 2 जख्मी हो गये।

आतंकी हमले में शहीद तीन जवानों में एक बिहार के मोतिहारी का लाल शशिकांत पांडेय (25) भी शामिल हैं।इससे पहले शशिकांत के चचेरे भाई मनोज पांडेय भी 1999 के कारगिल युद्द में देश की खातिर जान न्योछावर कर चुके हैं।

शहीद शशिकांत पांडेय

शहीद शशिकांत पांडेय

मोतिहारी के गोविंदगंज थाने के बभनौली गांव के शशिकांत पांडेय 2013 में आर्मी में बहाल हुए थे।

मोतिहारी के रहने वाले शशिकांत का पूरा परिवार अब धनबाद शिफ्ट हो गया है. शशिकांत की मौत की खबर पाकर पूरा धनबाद गम और गुस्से में डूब गया/ जानकारी के मुताबिक शहीद का शव रविवार को रांची होते हुए धनबाद के झरिया पहुंचेगा।

  • शशिकांत चार दिसंबर को एक शादी समारोह में भाग लेने के लिए धनबाद आये थे। चार दिन पहले ही वापस जाकर उन्होंने ड्यूटी ज्वाइंन किया था। शहीद के दोस्त सुशील दुबे नेवी में हैं और उसकी शादी में ही भाग लेने के लिए शशिकांत आये थे।
  • राजेश्वर पांडेय के दो बेटों और दो बेटियों में शहीद शशिकांत पांडेय सबसे छोटे थे। शशिकांत के बड़े भाई श्रीकांत पांडेय सीआरपीएफ में हैं. उनकी पोस्टिंग धनबाद के ही प्रधानखंता कैंप में है।
  • जम्मू-कश्मीर में सेना के काफिले की बस पर फायरिंग पंपोर में हुई।उस वक्त काफिला श्रीनगर-जम्मू नेशनल हाइवे से गुजर रहा था।

शनिवार दोपहर मुठभेड़ के कुछ ही देर बाद शशिकांत की बहन रिंकू देवी को फोन पर यह दुखद खबर मिली। इसके बाद परिवार समेत पूरे इलाके में मातम छा गया।

अंग्रेजों की धरती पर अपनी मातृभाषा हिन्दी की ज्योत जला रही है बिहार की यह बेटी

हिन्दुस्तान में हिन्दी भाषा को माँ का दर्जा प्राप्त है । हिन्दी सिर्फ एक भाषा नहीं है बल्कि एक ऐसी मजबूत धागा है जो लोगों को एक-दुसरे से जोड़ती है ।

हिन्दी को राष्ट्रभाषा, राजभाषा, सम्पर्क भाषा और जनभाषा होने का गौरव प्राप्त है साथ ही अब इन सबको पार कर हिन्दी विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है । इसी सपने को हकीकत में बदलने के मकसद से बिहार की एक बेटी अनुपमा कुमार ज्योति विदेशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में लगी है, वह भी अंग्रेजी धरती ब्रिटेन में जो अंग्रेजी भाषा की जन्मभूमि है।

 

ब्रिटेन में युवा वर्ग को हिन्दी लेखन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए लंदन की युवा लेखक व बिहार की बेटी अनुपमा कुमार ज्योति और उनकी टीम ने हाल ही में लंदन में एक कार्यशाला का आयोजन किया । जिसमें मुख्य अतिथि के तौर पर प्रख्यात लेखिका और गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा थी और मशहूर कथाकार तेजेन्द्र शर्मा उपस्थित थे।

 

कार्यशाला में मृदुला सिन्हा ने अपने शुरूआती लेखन की बातों को बहुत ही रोजक ढंग से लोगों को सुनाया साथ ही राजनीतिक जीवन की जानकारी दी ।

Anupama Kumar jyoti

17 नवम्बर 2016 को ब्रिटेन की संसद में (हाउस ऑफ़ कॉमन्स )तीन दिवसीय प्रवासी सम्मेलन के पहले दिन कथा यू.के. ने प्रवासी संसार पत्रिका के एक दशक पूरा होने का जश्न मनाया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि गोवा की राज्यपाल महामहिम श्रीमती मृदुला सिन्हा ने ब्रिटेन में सक्रिय संस्थाओं और अध्यापकों, लेखकों को उनके उल्लेखनीय कामों के लिए ब्रिटेन की संसद (हाऊस अॉफ कॉमन्स) में सम्मानित किया । इनमें प्रो. डॉ. कृष्ण कुमार (गीतांजलि), दिव्या माथुर (वातायन), रवि शर्मा (मिडिया), अनुपमा कुमार ज्योति( लेखक व कवि)आदि लोग शामिल थे।

 

“आपन बिहार” से बातचीत में अनुपमा कुमार ज्योति ने बताया कि हम यहाँ अभी बहुत सारे योजनाओं पर काम कर रहें हैं जिसमें भारतीय उच्चायोग लंदन से भी काफी सहयोग मिल रहा है । हिन्दुस्तान में तो हिन्दी लोकप्रिय है ही, हम लोग का मकसद है कि हिन्दी विदेशी धरती पर अपनी धाक जमाए और इसका विश्वस्तर पर विस्तार हो।

 

बिहार के बारे में उन्होंने कहा कि भले वह अपने मातृभूमि से बहुत दूर रहती है मगर अभी भी वह दिल से पक्का बिहारी है ।

जानें कौन है अनुपमा कुमार ज्योति

Anupama kumar gupta
अनुपमा कुमार ज्योति बिहार के मुजफ्फरपुर की रहने वाली है और अभी वर्तमान में लंदन में रहती है । उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई प्रभात तारा विद्यालय मुज़फ़्फ़रपुर से की। उसके बाद स्नातक की शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की। यूनिवर्सिटी ओफ ससेक्स से पोस्ट ग्रैजूएशन करने के बाद वह समाज सेवा, हिंदी लेखन व ब्रिटेन की राजनीति में सक्रिय हो गयीं। वर्तमान में लंदन में हिन्दी भाषा में छपने वाली एकमात्र पत्रिका पुरवाई के संपादक मंडल में शामिल हैं। ब्रिटेन में कनजरवेटिव पार्टी की वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ता भी है।