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बिहार महागठबंधन में हुआ सीटों का बंटवारा, जानिये किस पार्टी को मिले कितने सीटें

लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार महागठबंधन में सीटों बंटवारा हो गया. बिहार में राजद 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी वहीं, कांग्रेस को 9 सीटें दी गई है. इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी RLSP को 5, जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ पार्टी को 3 और सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी की वीआईपी को 3 सीटें दी गई हैं. इसके अलावा सीपीआई माले को राजद के कोटे से एक सीट दी गई है. इसके अलावा पहले दौर के उम्मीदवारों की सूची भी जारी की गई. प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी बताया गया कि शरद यादव आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे. वहीं जीतनराम मांझी के भी चुनाव लड़ने की बात कही गई है. जीतनराम मांझी गया से चुनाव लड़ेंगे.

आरजेडी प्रवक्ता मनोज झा, प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे, कांग्रेस के मदन मोहन झा, हम के बीएल वैसयंत्री, रालोसपा के सत्यानंद दांगी ने की घोषणा। उन्होंने बताया कि दो विधानसभा के उप चुनाव में डिहरी से आरजेडी के मो फिरोज हुसैन और नवादा से धीरेंद्र कुमार सिंह हम पार्टी के प्रत्याशी होंगे। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहले चरण के उम्मीदवार के नाम पर भी ऐलान हो गया है।

पहले चरण: महागठबंधन के उम्मीदवार
1- गया सीट से हम उम्मीदवार जीतन राम मांझी
2- नवादा सीट राजद उम्मीदवार विभा देवी
3- जमुई से आरएलएसपी के उम्मीदवार भूदेव चौधरी
4- औरंगाबाद सीट से हम उम्मीदवार उपेंद्र प्रसाद

तेजस्वी के ट्वीट से गरमाया था सियासी माहौल
16 मार्च को महागठबंधन में सीट शेयरिंग से पहले ही तेजस्वी के ट्वीट के बाद सियासी माहौल गरमा गया था। तेजस्वी के ट्वीट से कांग्रेस आलाकमान नाराज हो गया था। इसके बाद तेजस्वी दिल्ली गए और कांग्रेस नेताओं से बैठकर चर्चा की। बताया जा रहा है कि जब उपेंद्र कुशवाहा एनडीए छोड़कर महागठबंधन में आए थे तो राजद ने उन्हें 5 सीट का आश्वासन दिया था। इसी को लेकर महागठबंधन में पेंच फंसा था।

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जॉर्ज फर्नांडेस की जन्मभूमि भले ही दक्षिण में हो मगर उनकी कर्मभूमि बिहार ही रहेगी

मंगलुरु में पले बड़े पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडेस की जन्मभूमि भले ही दक्षिण में हो पर उनकी कर्मभूमि बिहार ही रहेगी. उस समय जब सोशल मीडिया जैसा आसान साधन नहीं हुआ करता था उस दौर में जॉर्ज फर्नांडेस ने दक्षिण से लेकर उत्तर की दुरी को तय किया.

फर्नांडेस ने उस समय जेल में थे जब 1977 में बिहार की जनता ने उन्हें तीन लाख वोट देकर मुजफ्फरपुर सीट से लोक सभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के लिए चुना.

तब वे जनता पार्टी के उम्मीदवार थे और देश में लगी इमरजेंसी के केस में जेल में बंद थे. चुनाव के दौरान वो शायद ही स्वयं प्रचार कर पाए. ये जीत ऐतिहासिक इसलिए भी रही क्योंकि जॉर्ज फर्नांडेस ने तीन बार के कांग्रेस सांसद एस.के.पाटिल को हराया था. जहां एक ओर 1989 में वी.पी सिंह सरकार के काल में जॉर्ज फर्नांडेस ने रेलवे मंत्री का कार्यभार संभाला वहीं 1998 – 2003 तक चली वाजपई सरकार के दौरान फर्नांडेस रक्षा मंत्री बनाए गए.

कारगिल युद्ध के समय सैनिकों का हौसला बढ़ाने वे सियाचिन जाते रहते थे. पोखरन टेस्ट से भी उन्होंने कभी अपनी नज़ारे नहीं हटाई.

मुजफ्फरपुर में फैलाई विकास की नई जड़े

अपनी इस जीत के बाद ही फर्नांडेस ने 1978 में मुज़फ़्फ़रपुर में थर्मल पावर प्लांट की नीव डाली जिसने ज़िले में रोज़गार के साधन बढ़ा दिए. फर्नांडेस ने चार बार मुजफ्फरपुर और तीन बार नालंदा से चुनाव जीता. नालंदा में उन्होंने फैक्टरियों के साथ राजगिर में सैनिक स्कूल भी खुलवाया.

जॉर्ज फर्नांडेस कि बदौलत दूरदर्शन केंद्र मुजफ्फरपुर तक पहुंचा. उन्होंने मुजफ्फरपुर में इंडियन ड्रग्स एंड फार्मासूटिकल्स लिमिटेड खुलवाया. इस से पहले मुजफ्फरपुर में केवल चीनी और तम्बाकू की फैक्टरियां ही हुआ करती थी.

लालू के लिए बन गए थे चुनौती

फर्नांडीस ने बिहार की राजनीति में एक प्रमुख भूमिका निभाई. याद होगा 1990 के दशक के दौरान फर्नांडेस ने राष्ट्रीय जनता दल (रजद) प्रमुख लालू प्रासाद यादव  के साथ अनबन के चलते रजद के लिए एक चुनौती बन चुके थे. फर्नांडेस ने शिकायत की कि उन्हें लालू द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है और ‘फ्रॉड फर्नांडेस’ कहकर बुलाया जा रहा है.

बाद में उन्होंने नितीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल ग़फ़ूर के साथ मिलकर 1994  में समता पार्टी को जन्म दिया. फर्नांडेस इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए. 1995 चुनाव में फर्नांडेस की समता पार्टी के खराब प्रदर्शन के चलते उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ हाथ मिला लिया. फर्नांडेस लालू की आँख का कांटा तोह थे ही पर इस गठबंधन के कारण लालू का शासन भी खत्म हो गया. 2005 के आते आते समता पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) में जा मिली.

जब नितीश के साथ बिगड़े सम्बन्ध

एक छत में रहने के बावजूद नितीश और फर्नांडेस में अनबन होना स्वाभाविक था. नितीश ने फर्नांडेस को हटाकर शरद यादव को अपनी पार्टी का नया अध्यक्ष नियुक्त कर लिया था. 2009 में ये खबर आई की खराब स्वस्थ्य के चलते फर्नांडिस को मुजफ्फरपुर से जनता दल (यूनाइटेड) के नामांकन से मना कर दिया गया था. फर्नांडेस की हार के बावजूद किसी तरह वे राज्य सभा में अपनी सीट सुनिश्चित करने में कामयाब रहे.

मुजफ्फरपुर के लोगो के थे चहेते

फर्नांडेस टैक्सी ड्राइवर यूनियन के प्रमुख नेता भी रह चुके हैं. उन्होंने सोशलिस्ट ट्रेड यूनियन ज्वॉइन किया और होटलों, रेस्टोरेंटों में काम करने वाले मजदूरों की आवाज उठाई. नालंदा के लोगों के बीच फर्नांडेस ‘जारजे साहेब’ के नाम से मशहूर थे. मुज़फ़्फरपुर के लोग उन्हें बहुत पसंद किया करते थे. दिल्ली में होने के बावजूद वहां के लोगो फर्नांडेस को पोस्टकार्ड के ज़रिए अपनी समस्याएं लिखकर भेजते थे.

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ऐश्वर्या में तेजप्रताप यादव का राधा तलाशना ‘ग़लती’ किसकी?

फ़िल्म शुरू होने से पहले एक वैधानिक चेतावनी आती है, ‘धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है’. मगर कोई इस पर ग़ौर ही नहीं करता. प्रेम में भी ऐसी ही चेतावनी आती हैं. ‘प्रेमपान’ में जुटे दिल भी कुछ भी हानिकारक होने की फिक़्र नहीं करते.

दिल के पंप से खून फेंकते ये जवां लोग मिलन की हर तारीख़ को वेलेंटाइन्स डे बना देते हैं.

फ़िल्म शुरू हुई है तो ‘विलेन’ भी आएंगे. ये अपने परिवार, दोस्त, समाज के रचे विलेन होते हैं जो कोई भी काम दो ही विचारों में धँसकर कर पाते हैं.

पहला- कोई चांस हो.
दूसरा- परंपरा है जी, समाज क्या कहेगा?

ऐसी रियल लाइफ़ कहानियों में एक गोरी सी लड़की अपने बाजू में सांवले से लड़के को बैठाकर हम सबसे कहती है, ‘देखिए हम लोग एक साथ भागे हैं. ठीक है? इनका कोई ग़लती नहीं है.’

वायरल विडियो स्क्रीनशॉट

ये है अपनी राधा. फ़िल्म की हीरोइन. जो परंपरा, समाज, चांस जैसे विलेन की आँख में आँख डालना जानती है. वही राधा, जिसे तेज प्रताप यादव खोज रहे हैं. लेकिन तलाक की अर्ज़ी के बाद. या शायद पहले से?

जीवन साथी राधा चाहिए या कृष्ण?

लालू प्रसाद के बेटे तेजप्रताप यादव ने पाँच महीने पुरानी शादी ख़त्म करने का फ़ैसला किया है.

तेजप्रताप ने कहा, ”मेरा और पत्नी ऐश्वर्या राय का मेल नहीं खाता. मैं पूजा पाठ वाला धार्मिक आदमी और वो दिल्ली की हाईसोसाइटी वाली लड़की. मां-बाप को समझाया था. लेकिन मुझे मोहरा बनाया. मेरे घरवाले साथ नहीं दे रहे हैं.”

तेजप्रताप मथुरा के निधिवन और ज़िंदगी में राधा की तलाश में नज़र आते हैं और उस भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं, जिनके घरवाले उनका साथ नहीं देते. वो मोहरा बन जाते हैं जाति, धर्म, रुतबे और हाईसोसाइटी बनाम लो-सोसाइटी के.

ये वही सोसाइटी है, जो किसी के तलाक की ख़बरों को चटकारे लगाते हुए पढ़ती है. किसी जोड़े के निजी फ़ैसलों की वजहों को कुरेदकर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहती है.

लेकिन सालों से मौजूद उस निष्कर्ष को व्यापक तौर पर अपनाने से आँख बचाती है, जिसमें राधाएं अपने कृष्ण से मिल सकें और कृष्ण अपनी ज़िंदगी राधा संग गुज़ार सकें.

ऐसी ही सोसाइटियों ने परंपराओं और ख़ुद सोसाइटी के नाम पर ख़ुद को दकियानूसी विचारों में जकड़ लिया है. मानो क्रूर मुस्कान लिए कह रहे हों, ‘हम लोग बिछड़ के रह भी नहीं पाते हैं. ठीक है?’

हम अब भी उस हवा में सांस ले रहे हैं, जिसमें लड़के और लड़कियां घर से भागने को मजबूर हैं. 

भारत में चुनाव सिर्फ़ सत्ता को हासिल करने तक सीमित नहीं रहता है. जीवनसाथी चुनने की आज़ादी जैसे बुनियादी लेकिन अहम फ़ैसलों में भी एक चुनाव से गुज़रना पड़ता है.

परिवार चुनें या प्यार?

तेजप्रताप यादव, ऐश्वर्या राय जैसे न जाने कितने ही लोग चुपचाप परिवार चुन लेते हैं लेकिन कुछ आंखों में दिल की चमक लिए कहते हैं, ”हमको इन्हीं के साथ रहना है. घर परिवार किसी से लेना देना नहीं. ठीक है? अब हमें मां-बाप किसी से मतलब नहीं. बस मेरे सास ससुर अच्छे से रहें. ये अच्छे से रहें. इनके खुशी में मेरा खुशी है. ठीक है?”

ऐसे ही प्यार करने वाले होते हैं, जो हरियाणा की भी हवा को बदल देते हैं. हरियाणा, जहां की खाप पंचायतें और लिंग अनुपात दर का फासला स्कूल की उन दीवारों पर हँसती नज़र आती रही हैं, जिन पर लिखा होता है- बेटियां अनमोल हैं.

चाहें तो हरियाणा के उन 1170 जवां दिलों को शुक्रिया कहिए, जिन्होंने बीते छह महीने में जाति के बंधन को खोलकर अपने पसंद की शादी करना चुनते हैं.

ये वाला मतदान गुप्त नहीं रहता. अगर परिवार प्रेम से किए विवाह के लिए तैयार न हो तो लड़कियां कहलाती हैं भागी हुई और लड़के… कृष्ण.

लड़कों को कृष्ण रहने की आज़ादी और लड़कियों को?

कृष्ण:

  • जिन्होंने राधा से प्यार किया
  • गोपियों संग भी रहे
  • माखन चुराते, ‘रासलीला’ करते नहाती गोपियों के कपड़े ले जाते
  • चीरहरण के वक़्त द्रोपदी की रक्षा करते
  • पत्नी रुकमणी संग रहते

अपनी-अपनी सुविधा से हम कृष्ण के रूपों को स्वीकार करते हैं

किसी भी रूप में कृष्ण… कृष्ण ही रहते हैं. लेकिन ऊपर अगर कृष्ण की बजाय राधा लिखा होता तो क्या लोग अपनी आस्थाओं और आसपास राधा को इन रूपों में स्वीकार करते?

एक बड़े हिस्से के सच पर नज़र दौड़ाएंगे तो जवाब है नहीं. बिलकुल नहीं.

तेज प्रताप ने दिल्ली के मिरांडा हाउस में पढ़ने वाली ऐश्वर्या राय की बात करते हुए जिस हाई-सोसाइटी का ज़िक्र किया था, वो इसी राधा और कृष्ण का फ़र्क़ बयां कर जाता है.

तलाक का मामला कोर्ट में है. अगर न भी होता, तब भी इस पर बात करने का हक़ किसी को नहीं है. लेकिन अगर इस एक मामले को एक बड़े चश्मे से देखा जाए तो तेज प्रताप ने सच ही बोला है.

हम अब भी सोसाइटी के हाई या लो होने के फ़र्क़ में उलझे हुए हैं. लड़की मिरांडा हाउस की पढ़ी हुई है तो हाईक्लास ही होगी और हाईक्लास लड़की राधा नहीं हो सकती? हां चूंकि राधा की चाहत एक लड़के को है, तो वो कृष्ण ज़रूर हो सकता है?

‘देखिए हम लोग एक साथ भागे हैं. ठीक है? इनका कोई गलती नहीं है.’

तो फिर फ़र्क़ कैसा?

लेकिन ये फ़र्क़ किया जाता रहा और किया जाता रहेगा. हमारे घरों में परिवार अपने-अपने मानकों, समाज की फिक्र में न जाने कितने ही तेज प्रतापों और ऐश्वर्या रायों को ‘मोहरा’ बनाते रहेंगे.

बेटी राधा हुई तो कृष्ण से और बेटा कृष्ण हुआ तो राधा के पीछे दौड़ते रहेंगे…

  • घरों की राधाओं, कृष्णों के हार मानकर समाज, परिवार की संतुष्टियों के ‘मोहरा’ बनने तक
  • परिवार और समाज को छोड़कर अपनी राधा या कृष्ण संग नए सफ़र पर चलने तक
  • या फिर उन हज़ारों सैराट जैसी कहानियों के अंत तक, जहां प्यार करने वालों का ही अंत हो जाता है.

क्या हमें बड़े स्तर पर अपने आस-पास की राधाओं, कृष्णों, तेजप्रतापों और ऐश्वर्या रायों के पीछे दौड़ना बंद कर सकते हैं?

दिल में धंसे उन दो ख्यालों ‘परंपरा है जी, समाज क्या कहेगा’ और ‘कोई चांस है’ को निकालकर फेंक सकते हैं?

जवाब हां होगा, तो जल्द ही अंतरजातीय विवाह करने की सुखद ‘घटनाएं’ अख़बारों की ख़बर नहीं बनेंगी.

जवाब ना में देने जा रहे हैं, तो वायरल वीडियो की उस प्रेम में डूबी लड़की की बात को याद रखिएगा.

”अगर हमको लोग अलग कर सकता है तो हम ज़हर खाके दोनों लोग मर जाएंगे. ठीक है?”

साभार: BBC (विकास त्रिवेदी) 

 

तेज प्रताप यादव ने दी पत्नी ऐश्वर्या राय से तलाक़ की अर्ज़ी, सदमे में लालू

कुछ ही महीने पहले लालू के लाल तेजप्रताप यादव की शादी बड़े धूम धाम से राजद विधायक चन्द्रिका राय की बेटी एश्वर्या से हुई थी, मगर 5 महीने बाद ही तेजप्रताप ने कोर्ट में अपनी पत्नी से तलाक़ की अर्जी दी है|

तेज ने शुक्रवार को हिन्दू मैरेज एक्ट 13 (1A) के तहत प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, पटना की अदालत में पत्नी ऐश्वर्या राय से तलाक़ की याचिका 1208/18 दायर कर दी है| कोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार भी कर ली है और 29 नवंबर को तलाक़ की अर्ज़ी पर सुनवाई होनी तय हुई है|

तलाक की अर्ज़ी दाख़िल करने के बाद बाहर निकल रहे तेज प्रताप यादव ने पत्रकारों से कहा कि वो कृष्ण हैं और राधा की तलाश में भटक रहे हैं| उन्होंने कहा कि पत्नी ऐश्वर्या उनकी राधा नहीं है| इसलिए वो अब उनसे अलग होना चाहते हैं|

बड़े बेटे के इस एकतरफा फैसले से जहां लालू का परिवार सकते में है तो खबर आ रही है कि खुद लालू को भी बड़ी सदमा लगा है| बेटे की शादी में शरीक होने आए लालू ने शायद ये सोचा भी नहीं होगा कि महज 6 महीने के भीतर ही ये शादी टूट के कगार पर आ जाएगी|

बेमेल जोड़ी !

12 मई को पटना के वेटरनरी कॉलेज ग्राउंड में शादी के लिए सजे मंच पर एक तरफ़ बिहार में सबसे लंबे वक्त तक शासन करने वाले परिवार का सबसे बड़ा बेटा था, तो दूसरी तरफ़ पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा राय की पौत्री और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री चंद्रिका राय की लाडली बिटिया ऐश्वर्या थीं|

वर-वधू ने एक दूसरे के गले में न सिर्फ़ वरमाला डाली थी, बल्कि इस शादी में बिहार की सियासत के दो कुनबों का मेल भी हुआ था| लेकिन ये तो तेज प्रताप और ऐश्वर्या की राजनीतिक और पारिवारिक पहचान भर है| व्यक्तिगत तौर देखें तो तेज प्रताप यादव की पढ़ाई-लिखाई कथित तौर पर बीएन कॉलेज, पटना से बारहवीं तक ही हुई है|

जबकि ऐश्वर्या राय ने पटना के नॉट्रेडैम एकेडमी से बारहवीं तक की पढ़ाई करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक किया है| उन्होंने एमिटी यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की डिग्री भी हासिल की है|

शादी के बाद तेज प्रताप और ऐश्वर्या कभी सार्वजनिक तौर पर सामने नहीं आए, सिवाय साइकल वाली उस इकलौती तस्वीर के| हालांकि, स्थानीय मीडिया में ये ख़बरें ज़रूर उड़ती रहीं कि ऐश्वर्या राय मायके रह रही हैं|

बड़ राजनीतिक घराने से हैं ऐश्‍वर्या
तेज प्रताप यादव की पत्‍नी एेश्‍वर्या भी बड़े राजनीतिक घराने से आती हैं। उनके पिता चंद्रिका राय राजद विधायक हैं। ऐश्‍वर्या राय के दादा दारोगा प्रसाद राय बिहार के मुख्‍यमंत्री रहे थे।

तेज प्रताप को समझाने की कोशिश जारी
बहरहाल, तेज प्रताप को समझाने की कोशिश जारी है। तलाक की अर्जी दाखिल करने के बाद तेज प्रताप पिता लालू प्रसाद यादव से मिलने के लिए रांची रवाना हुए, लेकिन बहन मीसा भारती के समझाने पर बीच रास्‍ते से वापस पटना लौटे। अब सबकी नजरें तेज प्रताप पर टिकी हैं। संभव है कि वे अपने फैसले पर पुनर्विचार करें।

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महागठबंधन के रथ पर सवार होकर बीजेपी के राष्ट्रवाद के खिलाफ बेगूसराय से चुनाव लड़ेंगे कन्हैया

दो साल पहले जेएनयू कैंपस में एक विवादास्पक घटना घटी| कैंपस के अंदर ही बुलाए गए एक सभा में राष्ट्र विरोधी नारें लगायें गए| मीडिया में खबर आते ही इस मुद्दे ने तूल पकड़ लिया| चुकी यह मामला राष्ट्र हित से जुड़ा था और केंद्र में एक राष्ट्रवादी विचारधारा की सरकार थी, इस घटना का राजनीतिकरण तो होना ही था|

12 फरवरी 2016 को दिल्ली पुलिस ने जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया| हालाँकि कन्हैया कुमार ने अपने उपर लगे आरोप को बेबुनियाद बताया और जेल से निकलते ही जेएनयू कैंपस में देश की आजादी पर एक एतिहासिक भाषण दिया|

इस घटना ने कन्हैया कुमार की किस्मत बदल दी| जेएनयू के कैंपस राजनीति से बाहर निकलकर वे देश के मुख्यधारा के राजनीति में छा गयें और विपक्ष का एक मुखर आवाज बनकर उभरे| हालांकि कन्हैया कुमार को एक तरफ जितने पसंद करने वाले लोग हैं, दुसरे तरफ लोगों का एक बड़ा तबका कन्हैया को अभी भी देशद्रोही मानता है| (कोर्ट से बेगुनाह साबित होने के बाद भी)

हालांकि बहुत पहले से ही यह कयास लगाया जा रहा था कि कन्हैया बिहार के बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे, मगर मीडिया और सूत्रों से आ रही खबरों के अनुसार अब यह पक्का हो गया है|

कन्हैया कुमार 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार के बेगूसराय से मैदान में उतरेंगे| सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, कन्हैया कुमार बेगूसराय से महागठबंधन के उम्मीदवार बनेंगे| हालांकि औपचारिक तौर पर कन्हैया कुमार सीपीएम के केंडिडेट होंगे, लेकिन  उन्हें महागठबंधन के आम उम्मीदवार के रूप में पेश किया जाएगा| बिहार में महागठबंधन में आरजेडी समेत कांग्रेस, एनसीपी, हम(एस), शरद यादव की एलजेडी के अलावा लेफ्ट पार्टियां भी शामिल हैं|

ज्ञात हो कि जेल से रिहा होने के बाद पटना दौरे पर आये कन्हैया कुमार तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव दोनों से मिले थे| उस समय लालू प्रसाद यादव को पैर छू कर प्रणाम करने पर उनके विरोधियों ने जमकर निशाना भी साधा था| सूत्रों के मुताबिक लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव कन्हैया कुमार को टिकट को राजी हैं और कांग्रेस के साथ बातचीत के बाद बेगूसराय सीट से कन्हैया कुमार को मौका दिया जा रहा है|

सीपीएम लीडर सत्य नारायण सिंह ने एक प्रमुख अंग्रेजी अख़बार से बातचीत के दौरान इस बात कि पुष्टि की है| उन्होंने कहा कि महागठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर अभी औपचारिक तौर पर कोई बात नहीं हुई है, लेकिन इतना निश्चित है कि बेगूसराय से कन्हैया कुमार को ही उतारा जाएगा| उन्होंने बताया कि एक बार खुद लालू प्रसाद यादव ने भी बेगूसराय के लिए कन्हैया कुमार का नाम सुझाया था|

कन्हैया मूल रूप से बेगूसराय के रहने वालें हैं

कन्हैया मूल रूप से बेगूसराय जिले के बरौनी ब्लॉक में बीहट पंचायत के रहने वाले हैं| उनकी मां मीना देवी एक आंगनबाड़ी सेविका हैं और उनके पिता जयशंकर सिंह यहीं एक किसान थे|

अभी वर्तमान में बेगूसराय लोकसभा सीट पर बीजेपी के भोला सिंह काबिज़ है| बिहार में बेगूसराय को लेफ्ट विचारधारा का गढ़ माना जाता रहा है| गढ़ भी ऐसा कि बेगूसराय को लेनिनग्राद यानी लेनिन की धरती तक कहा जाने लगा। लेकिन इसी बेगूसराय में सामाजिक न्याय की फसल भी खूब लहलहायी और और अब यहां जातिवादी फसलों की बहार है। महागठबंधन के तरफ से कन्हैया कुमार उम्मीदवार के तौर पर अगर उतरते हैं तो मुकाबला वाकई दिलचस्प होगा| एक बार फिर बिहार का बेगूसराय राजनितिक प्रयोगशाला का केंद्र होगा| उनके उम्मीदवारी में लेनिनवाद और जातिवाद दोनों का छौंक है|बेगूसराय लेनिनवाद-जातिवाद के साथ राष्ट्रवाद का मुकाबला देखना दिलचस्प होगा|

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बिहार चुनाव: बीजेपी-नीतीश पर भारी पड़े तेजस्वी, RJD की जीत के बने हीरो

बिहार की अररिया लोकसभा सीट और दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे जहां एक तरफ बीजेपी और नीतीश कुमार के लिए एक जोरदार झटका है तो वहीँ दूसरी तरफ राजद नेता तेजस्वी यादव के राजनितिक भविष्य के लिए एक शुभ संकेत लेकर आया है|

लालू यादव के जेल जाने और नीतीश के साथ गठबंधन टूटने के बाद उपचुनाव के मुकाबले को जीतना अहम है| नीतीश कुमार के बीजेपी में जाने और लालू यादव के जेल जाने के बाद, बिहार में यह पहला चुनाव था| साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले अररिया लोकसभा, जहानाबाद विधानसभा और भभुआ विधानसभा पर हुए उपचुनाव का परिणाम पहले से ही कई मामलों में खास माना जा रहा था| इस चुनाव में नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा तो दाव पर थी साथ ही लालू यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी यादव के नेतृत्व क्षमता की भी परीक्षा थी|

लालू यादव के गैरमौजूदगी में राजद ने ये चुनाव पूरी तरह तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा था| अब चुनाव परिणाम आने के बाद तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल उठाने वालो का मुह बंद हो गया है|

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इस तरह बढ़ा तेजस्वी का कद
लालू यादव के जेल जाने के बाद राजनीतिक गलियारों में इस बात की सुगबुगाहट तेज हो गई थी कि अब आरजेडी को कौन संभालेगा| लेकिन तेजस्वी यादव ने सुगबुगाहट पर पूर्ण विराम लगाया और ना सिर्फ विरोधियों पर हावी हुए बल्कि पार्टी की कमान को बखूबी संभाला|

राजनीति में धमक बढ़ाने में कामयाब हुए तेजस्वी
बिहार उपचुनावों के परिणाम बताते हैं कि लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव पिता की गैर मौजूदगी में राजनीति में अपनी धमक बढ़ाने का सफल प्रयास कर रहे हैं| लालू यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी जिस तरह के विरोधियों को जवाब देने और उन पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं उससे यह बात तो स्पष्ट है कि वह अब लीडिंग फ्रॉम फ्रंट की भूमिका में काम करना चाहते हैं और कर भी रहे हैं| जीत का सेहरा तेजस्वी यादव के सिर इसलिए भी सजा है, क्योंकि वह प्रदेश की राजनीति में एकमात्र ऐसा युवा चेहरा है जिस पर जनता पिछले विधानसभा चुनावों से लेकर अब तक विश्वास कर रही है|

नीतीश के लिए चुनौती का समय
उपचुनावों के नतीजे इस बात को भी स्पष्ट करते हैं कि बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव नीतीश के विकल्प के रूप में उभर कर आ रहे हैं| तेजस्वी के राजनीतिक गतिविधियों की वजह से बिहार की जनता के बीच लाजिमी तौर पर तेजस्वी की पूछ बढ़ेगी| इसके साथ ही बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों में नीतीश को तेजस्वी यादव से कड़ी टक्कर मिलेगी|

 

लालू यादव ने किया अपना शक्ति प्रदर्शन, गांधी मैदान में उमड़ा जनसैलाब

महागठबंधन के टूटने के बाद राजद प्रमुख लालू यादव द्वारा पहली बार शक्ति प्रदर्शन के तौर पर पटना के गांधी मैदान में बुलाई गई ‘देश बचाओ भाजपा भगाओ रैली’ में विपक्ष के तमाम दिग्‍गज जुटे। लालू यादव के आयोजन में जेदयू से बागी हुए शरद यादव भी पहुंचे और लालू को गले लगाकर अपने इरादे साफ कर दिए।

जेडीयू के सांसद शरद यादव ने रैली को संग्रामी सभा करार देते हुए कहा कि नीतीश कुमार पर चुटकी ली। उन्होंने कहा कि बाढ़ में पीएम मोदी ने 500 करोड़ रुपये दिए जबकि मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली सरकार ने 1100 करोड़ रुपये दिए थे। रैली में आने के सवाल पर उन्होंने कहा कि बहुत लोगों ने आने से मना किया लेकिन मैं नहीं आया।

उन्होंने कहा कि पीएम मोदी की लककार को बिहार में महागठबंधन ने रोका था। महागठबंधन बनाने में तमाम पार्टियों ने मेहनत की। उन्होंने कहा कि महागठबंधन पांच साल के लिए बना था, उसे तोड़ा गया।

कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने फोन के जरिए रैली को संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आज जो लोग सत्ता में बैठे हैं उनका एक ही मकसद है। देश का विभाजन करना। देश में ऐसी सरकार चल रही है जिसे देश की नहीं  अपनी पार्टी की चिंता है। उन्होंने कहा कि हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा करने वाली सरकार ने अभीतक कितने लोगों को रोजगार दिए।

जेडीयू के सांसद शरद यादव ने रैली को संग्रामी सभा करार देते हुए कहा कि नीतीश कुमार पर चुटकी ली। उन्होंने कहा कि बाढ़ में पीएम मोदी ने 500 करोड़ रुपये दिए जबकि मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली सरकार ने 1100 करोड़ रुपये दिए थे। रैली में आने के सवाल पर उन्होंने कहा कि बहुत लोगों ने आने से मना किया लेकिन मैं नहीं आया।

उन्होंने कहा कि पीएम मोदी की लककार को बिहार में महागठबंधन ने रोका था। महागठबंधन बनाने में तमाम पार्टियों ने मेहनत की। उन्होंने कहा कि महागठबंधन पांच साल के लिए बना था, उसे तोड़ा गया।

कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने फोन के जरिए रैली को संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आज जो लोग सत्ता में बैठे हैं उनका एक ही मकसद है। देश का विभाजन करना। देश में ऐसी सरकार चल रही है जिसे देश की नहीं  अपनी पार्टी की चिंता है। उन्होंने कहा कि हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा करने वाली सरकार ने अभीतक कितने लोगों को रोजगार दिए।

 

लाइव अपडेट्स

2:30 PM- कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा-महागठबंधन की नींव बिहार में रखी गई

2:15 PM-झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन ने कहा- बिहार कई परेशानी से गुजर रहा है

2:00 PM-  पूर्व CM अखिलेश यादव ने कहा-‘ BJP को हटाने में बिहार की जनता करे मदद

1:40PM- तेजस्वी यादव ने कहा- भीड़ बता रही है कि देश में बदलाव होकर रहेगा। जितने लोग गांधी मैदान में है उससे ज्यादा लोग रोड पर है

1:30 PM- तेजस्वी का तंज- चाचाजी को कोई डर था जो महागठबंधन छोड़कर चले गए, 28 साल का होकर भी मैं नहीं डरा। जब हम भागलपुर गए थे, तो हमसे डरकर सरकार ने धारा-144 लागू कर दी

1.20PM-मंच से गरजे नीतीश कुमार पर बरसते हुए तेजस्वी यादव ने कहा कि असली जेडीयू हमारे चाचा शरद यादव की है।

1:00 PM- आरजेडी के सीनियर लीडर रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा, जनता के साथ विश्वासघात हुआ है

12:50 PM- गांधी मैदान के मंच से नेता कर रहे हैं रैली को संबोधित, रघुवंश प्रसाद ने कहा- बिहार में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा चौपट।

12:30 PM- मंच लालू, राबड़ी, मीसा, तेजप्रताप, तेजस्वी यादव मौजूद। साथ में अली अनवर, डी राजा भी मंच पर मौजूद हैं।

12:20 PM- गांधी मैदान में बने मंच पर लालू प्रसाद यादव, अखिलेश और शरद यादव मौजूद

12:00 PM- पटना के गांधी मैदान पहुंचा आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का काफिला।

11:40 AM- बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव भी मंच पर मौजूद हैं। 

11:10 AM- रैली के लिए घर से निकले लालू प्रसाद यादव, मंच पर जल्द पहुंचने वाले हैं सपा अध्यक्ष अखिलेश

10:40 AM- रैली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का रिकॉर्डेड भाषण चलाया जाएगा

10:30 AM- गांधी मैदान में पहुंचने लगा लालू समर्थकों का रैला, छोड़े जा रहे हैं पटाखे

10:15 AM- नाराज शरद ने कहा, असली जेडीयू हम हैं और इसे साबित करेंगे

10:00 AM-पटना रैली में आए कुछ लोगों ने इनकम टैक्स चौराहे पर की फायरिंग, पुलिस से भिड़े

09:45 AM- जेडीयू ने कहा कि लालू प्रसाद को रैली में अपनी संपत्ति का भी मंच से खुलासा करना चाहिए। जनता के समक्ष दस्तावेजों के आधार पर बताना चाहिए कि उन्होंने हजारों करोड़ की संपत्ति कैसे व कहां से बनाई।

09:30 AM- पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के अलावा शरद यादव ने रैली में भाग लेने की सहमति दी है।

09:15 AM-  नेता विपक्ष नेता तेजस्वी प्रसाद यादव और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव भी होंगे

09:00 AM- गांधी मैदान पहुंचने लालू समर्थकों का रैला

“बिहार के नीतीश” और “लालू के बिहार” में है बड़ा गहरा अंतर

बिहार व्यवस्था परिवर्तन पर व्यापक बहस होना चाहिए। राजनीति स्याह और सफेद कभी नही थी और आजकल राजनीति खुद को ढूध का धुला या खून में नहाया साबित करना भी नही चाहती। भारतीय राजनीति के विषय में अच्छी बात पिछले कुछ सालों में मुझे यही दिख रही है कि ये वास्तविकता के करीब होती जा रही है… भ्रष्टाचार का चरम खत्म हो रहा है और सत्ता का लोभ खुलकर सामने आ रहा है। बिहार के परिदृश्य में इन बातों पर रौशनी डाली जा सकती है।

 

  •  सबसे पहले तेजस्वी यादव के विषय में बात की जानी चाहिए। हम आप तेजस्वी यादव को अनुभवहीन कह सकते हैं लेकिन उनको नकारा, जाहिल या भ्रष्ट नही कह सकते। हम तेजस्वी के कामकाज पर भी सवाल नही उठा सकते फिलहाल। बिहार सरकार में तेजस्वी का रिपोर्ट कार्ड अच्छा था… काम काज ठीक ठाक चल रहा था… बड़बोलापन कहीं नही दिखता था… शैक्षणिक योग्यता कम होने पर भी व्यवहारिक ज्ञान में सबल प्रतीत होते थे। हालाँकि तेज प्रताप यादव के विषय मे ये बातें नहीं कही जा सकती… वहाँ योग्यता की कमी साफ झलक जाती थी।

तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे और पिछली कई परिस्थितियों में देखा गया था कि नीतीश कुमार ने कम से कम अपने मंत्रिमंडल में भ्रष्ट या आपराधिक चरित्र वालों को कभी जगह नही दी थी। बिहार में इससे अधिक संभव भी नही है… अपराध, जात, राजनीति और षडयंत्र बिहार में आपस मे गुत्थम-गुत्था रहते हैं… किसी एक को पूरी तरह से किनारे रख दूसरे के विषय मे सोचा भी नही जा सकता। लेकिन नीतीश कुमार को ये सोचना जरूरी था कि जो आरोप थे वो असल मे लालू यादव पर थे या तेजस्वी पर।

पैसा लालू यादव का था… सही गलत जो भी तरीका रहा हो, अर्जित लालू यादव ने ही किया था। तेजस्वी के नाम संपत्ति होने भर से तेजस्वी कम से कम व्यवहारिक तौर पर भ्रष्ट नही हो सकता। और सच सच कहा जाए तो ऐसे में देश की अधिसंख्य जनसँख्या अपने बाप, दादा, परदादा के द्वारा अर्जित संपत्ति के कारण अपराधी साबित हो जाएँगे, चाहे अपनी निज जिंदगी उन्होंने बेदाग ही क्यों न गुजारी हो।

और यदि बिल्कुल आदर्श व्यवस्था चाहिए तब भी तेजस्वी का मूल्यांकन उसके वर्तमान के आधार पर होना चाहिए था और पैतृक संपत्ति से खुद को मुक्त करने को उनको वक्त दिया जाना चाहिए था।

ठीक से देखा जाए तो लालू यादव की राजनीति (सत्ता-धन नीति ) तेजस्वी के राजनीति के हत्या की जिम्मेदार है। मुलायम-लालू ने अखिलेश-तेजस्वी के साथ बिल्कुल भी ठीक नहीं किया।

 

  • आप लालू यादव और नीतीश कुमार को देखिए। लालू और नीतीश बिल्कुल अलग व्यक्तित्व हैं। नीतीश की राजनीति में न परिवार शामिल है, न व्यक्तिगत ध्येय, न धन का अंबार और न ही सत्ता की शक्ति का दुरुपयोग शामिल है। और लालू यादव ने इन सभी बुराईयों को उसकी पराकाष्ठा तक उपकृत किया है।

ये साथ संभव नही था। ध्यान रहे कि तेजस्वी और नीतीश के बीच कोई समस्या संभव ही नहीं है और लालू और नीतीश के बीच एक दिन भी बिना समस्या गुजरना सम्भव नही था।

लालू भी उतने ही असहज होंगे जितने की नीतीश और यदि लालू के पास कोई रास्ता होता तो यही होता और बहुत पहले होता जो नीतीश ने आज किया है।

 

 

  •  जब में बिहार का वर्तमान और भविष्य विचारता हूँ तो मुझे नीतीश सबसे श्रेष्ठ मुख्यमंत्री दिखते हैं। नीतीश राजद या भाजपा जिसके साथ भी सहज होकर अपना काम जारी रख पाएँ, वही ठीक है। भाजपा या राजद यहाँ गौण है।

इससे आगे ये कि बिहार में लालू यादव को सामाजिक न्याय का प्रणेता की तरह स्थापित करना या फिर ये कहना कि लालू यादव ने वंचितों को आवाज़ दी, सबसे बड़ा झूठ है।

वंचितों ने लालू यादव को वोट जरूर दिया लेकिन इस वोट के बदले उन्हें कभी भी कुछ न मिला। वोट देकर भी खुलेआम ये कहने का नैतिक बल न था कि हमने लालू यादव को वोट दिया क्योंकि वोट देने का कोई वाजिब कारण न था। लालू क्यों चाहिए था इसका जवाब कोई नही दे पाता था।

नीतीश ने वंचित बस्तियों को चमचमाती सड़कें दी… लगभग हर घर ईंटों की पहुँच हो गयी… भूख गायब हो गयी और जब पेट भरता है तब सामाजिक न्याय और समाज समझ आने लगता है। पिछले चुनाव में पिछड़े मुहल्लों में खुलकर ये कहने का सामर्थ्य था कि हम नीतीश को वोट देंगे क्योंकि नीतीश ने हमारे लिए बहुत काम किया है। इसी को कहते हैं वंचितों के मुँह में आवाज़ भरना।

ये काम जारी रहना चाहिए।

 

  •  हिन्दू-मुस्लिम करना या यादव-मुस्लिम करना बराबर का कम्युनल होना है। नीतीश जहाँ भी रहें बतवा बराबर ही है।और लालू जी के मुँह से एन्टी कम्युनल फ़ोर्स सुनना मुझे अच्छा नहीं लगता।

 

  • जदयू-भाजपा गठबंधन बिहार के लिए स्वर्णिम युग था। नीतीश कुमार और सुशील मोदी दोनों ही सक्षम प्रशासक हैं। इस शासन में किसी धर्म/जाति को कोई शिकायत नही थी। भाजपा को अछूत भर मान कर विरोध वाजिब कारण कम से कम मेरे लिए नही है।

मैं बिहार की बेहतरी के लिए आशान्वित हूँ।

 

  •   जो ये सब जल्दी नही हुआ होता तो, जदयू टूट जाती। लालू का जुगाड़ काम कर जाता… उसके बाद जो होता वो ज्यादा कालिख पुता होता। उसके बाद जो होता उसके कारण बिहार पर लोग जमकर हँसते। उसके बाद जो होता वो बिहार के हित मे बिल्कुल न होता। उसके बाद बिहार में फिर से एक उदण्ड सत्ता होता और प्रजा सहमी सी होती।

विपक्ष ने दो में से एक संवेदनशील और सक्षम मुख्यमंत्री खोया है ( दूसरे नवीन पटनायक हैं) इसका मुझे दुःख है लेकिन बिहार का सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री उसके पास सुरक्षित रहा, इसकी मुझे खुशी है।

बाकी सब कुशल मंगल है।

 


लेखक – पंकज कुमार 

इस आईपीएस अफसर के नाम से ही डरते हैं अपराधी, लालू से लेकर आसाराम तक को भेजा चुके है जेल

देश की बागडोर असल मायने में अफसरों के हाथ में होती है. यदि नौकरशाही दुरुस्त हो तो कानून-व्यवस्था चाकचौबंद रहती है. जिस तरह से भ्रष्टाचार का दीमक नौकरशाही को खोखला किए जा रहा है, लोगों का उससे विश्वास उठता जा रहा है. लेकिन कुछ ऐसे भी IAS और IPS अफसर हैं, जो अपनी साख बचाए हुए हैं.

 

उन्ही में से एक है आईपीएस अफसर राकेश अस्थाना , एक एेसा नाम है जो राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के लिए नया और अनजाना नाम नहीं है। लालू पर लगे चारा घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोप की जांच में अहम भूमिका निभाने वाले इस सीबीआइ अॉफिसर के हाथों एक बार फिर लालू और उनके परिवार से जुड़े भ्रष्टाचार के खुलासे की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

आईपीएस राकेश अस्थाना

 

चारा घोटाले की जांच में निभाई थी अहम भूमिका

 

देश की बहुचर्चित चारा घोटाले की जांच की जिम्मेदारी इस अाइपीएस अॉफिसर को दी गई थी, जिसके बाद उन्होंने लालू प्रसाद यादव के खिलाफ 1996 में चार्जशीट दायर की थी। उसके बाद 1997 में लालू प्रसाद यादव को भ्रष्टाचार के आरोप में पहली बार गिरफ्तार किया गया था और बिहार में सियासी तूफान मचा था, उस समय लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे।

 

1997 को उन्होंने चारा घोटाले में लालू से 6 घंटे तक पूछताछ की थी और तब लालू से पूछताछ के बाद अस्थाना की इमानदारी और कार्यशैली को लोगों ने जाना था।

 

अब रेलवे के होटल आवंटन में फर्जीवाड़े की कर रहे जांच

 

वर्तमान समय में अस्थाना को सीबीआई का एडिशनल डायरेक्टर बनाया गया है और इस पद पर रहते हुए उन्हें लालू यादव के रेलमंत्री रहते हुए रेलवे के होटल के आवंटन में हुए फर्जीवाड़े की जांच की जिम्मेदारी दी गई है और इस मामले में लालू यादव का सामना फिर से राकेश अस्थाना से हुआ है।

 

2008 बम ब्लास्ट की जांच भी थी राकेश के जिम्मे

 

– राकेश के बारे में खास बात ये कि धनबाद में खान सुरक्षा महानिदेशालय (डीजीएमएस) के महानिदेशक को उन्होंने घूस लेते पकड़ा था।

– कहा जाता है कि उस समय तक पूरे देश में अपने तरीके का ये पहला ऐसा मामला था, जब महानिदेशक स्तर के अधिकारी CBI की गिरफ्त में आए थे।

– अहमदाबाद में 26 जुलाई, 2008 को हुए बम ब्लास्ट की जांच का जिम्मा भी राकेश अस्थाना को ही दिया गया था।

– जांच की जिम्मेदारी मिलने के बाद सिर्फ 22 दिनों में ही उन्होंने केस सॉल्व कर दिया था। इसके अलावा आसाराम बापू और उसके बेटे नारायण सांईं के मामले में भी अस्थाना ने जांच की थी।

 

राकेश अस्थाना का बिहार से पुराना नाता रहा है।

 

राकेश अस्थाना का बिहार से पुराना नाता रहा है। उन्होंने 1975 में नेतरहाट स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इसके बाद उन्होंने रांची व आगरा में उच्च शिक्षा ग्रहण किया। उनके पिता एचआर अस्थाना नेतरहाट स्कूल में भौतिकी के शिक्षक थे। वर्ष 1984 में यूपीएससी की परीक्षा में पहले ही प्रयास में राकेश अस्थाना का चयन गुजरात कैडर के आईपीएस के रूप में हुआ था।

 

राकेश के बारे में कही जाती थी ये बातें

 

– राकेश के बारे में कहा जाता है कि वे बहुत कड़े अफसर हैं। बदमाशों से पूछताछ के दौरान वे उनकी पिटाई करते थे।

– ये भी कहा जाता था कि वे कई बार पूछताछ के दौरान राज उगलवाने के लिए आरोपियों के पैंट में चूहा छोड़ देते थे।

– इसके अलावा राज उगलवाने का अस्थाना का एक तरीका ये भी था कि आरोपी को खूब मिर्च वाला खाना देते थे, लेकिन इसके बाद वे पानी नहीं देते थे।

बिहार को सबसे ज्यादा बदनाम करने वाला ‘चारा घोटाला’ एक महाघोटाला है, जानिए पूरा मामला

चारा घोटाला मामले में लालू यादव को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की दलील मानी है. कोर्ट ने कहा है कि हर केस में अलग-अलग ट्रायल होगा. अब लालू प्रसाद के खिलाफ आपराधिक साजिश का केस चलेगा. 

 

चारा घोटाला, बिहार में महाघोटाला कहलाता है। वजह, सिर्फ इसमें शामिल रकम (950 करोड़) नहीं है, बल्कि इससे जुड़ा सबकुछ व्यापक रहा है।

21 साल गुजर चुके हैं। सीबीआई को दस्तावेज के लिए 11 करोड़ पन्नों की फोटोकॉपी करानी पड़ी। इसके 978 आरोपी व 8 हजार गवाह रहे। जांच में सीबीआई के 400 अफसर लगे। 70 से ज्यादा जज इस मामले की सुनवाई कर चुके हैं। 

 

पढ़ें आखिर क्या है ये मामला, और इसमें कब-क्या हुआ ? 

 

जनवरी, 1996 : उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा और ऐसे दस्तावेज जब्त किए जिनसे पता चला कि चारा आपूर्ति के नाम पर अस्तित्वहीन कंपनियों द्वारा धन की हेराफेरी की गई है, जिसके बाद चारा घोटाला सामने आया.

 

11 मार्च, 1996 : पटना उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को इस घोटाले की जांच का आदेश दिया, उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश पर मुहर लगाई.

 

27 मार्च, 1996 : सीबीआई ने चाईंबासा खजाना मामले में प्राथमिकी दर्ज की.

 

23 जून, 1997 : सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया और लालू प्रसाद यादव को आरोपी बनाया.

 

30 जुलाई, 1997 : राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद ने सीबीआई अदालत में आत्मसमर्पण किया. अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा.

 

5 अप्रैल, 2000 : विशेष सीबीआई अदालत में आरोप तय किया.

 

5 अक्टूबर, 2001 : उच्चतम न्यायालय ने नया राज्य झारखंड बनने के बाद यह मामला वहां स्थानांतरित कर दिया.

 

फरवरी, 2002 : रांची की विशेष सीबीआई अदालत में सुनवाई शुरू हुई.

 

13 अगस्त, 2013 : उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई कर रही निचली अदालत के न्यायाधीश के स्थानांतरण की लालू प्रसाद की मांग खारिज की.

 

17 सितंबर, 2013 : विशेष सीबीआई अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.

 

30 सितंबर, 2013 : बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों- लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र तथा 45 अन्य को सीबीआई न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने दोषी ठहराया.

 

3 अक्टूबर, 2013 : सीबीआई अदालत ने लालू यादव को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई, साथ ही उन पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी किया है. लालू यादव को रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद किया गया था.

 

चारा घोटाला में लालू पर 6 मामले लंबित

चारा घोटाला में लालू यादव पर 6 अलग-अलग मामले लंबित हैं और इनमें से एक में उन्हें 5 साल की सजा हो चुकी है. इस घोटाले से जुड़े 7 आरोपियों की मौत हो चुकी है जबकि 2 सरकारी गवाह बन चुके हैं और एक ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और एक आरोपी को कोर्ट से बरी किया जा चुका है.

 

 

ट्विटर पर मिलेनियर क्लब में शामिल होने वाले पहले बिहारी बने लालू यादव


राजद सुप्रीमो लालू यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पछाड़ते हुए ट्विटर पर एक मीलियन फॉलोवर्स पूरा कर लिया है. इस आंकड़े को छूने वाले वह पहले बिहारी बन गये हैं. पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ट्विटर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सहित देश के अन्य कई राजनैतिक दिग्गजों को पीछे छोड़ दिये हैं.

ट्विटर आज कम्‍युनिकेशन का सबसे फास्‍ट माध्‍यम है . ऐसे में,सीधे तौर पर यह कि लालू प्रसाद जैसे ही कोई ट्वीट करते हैं,वह देश-दुनिया में दस लाख लोगों तक सीधे पहुंच जाता है . फिर यह बड़ी संख्‍या में री-ट्वीट और मीडिया के दूसरे माध्‍यमों में खबरों की सुर्खियों का मूल स्रोत भी बनता है .
लालू प्रसाद की प्रत्‍येक एक्टिविटी को उनके समर्थक ही नहीं,धुर विरोधी भी फॉलो करते हैं . देश के प्रधान मंत्री नरेन्‍द्र मोदी जिन्‍हें फॉलो करते हैं,उनमें लालू प्रसाद शामिल हैं . दोनों के बीच दूरी कितनी है,सबों को पता है . ट्विटर के ‘मिलिनेयर क्‍लब’ में लालू प्रसाद का शामिल होना ऐसे भी महत्‍वपूर्ण है,क्‍योंकि ट्विटर क्राति के प्रारंभ में वे संवाद के ऐसे माध्‍यम में विश्‍वास नहीं रखते थे . लालू प्रसाद को ‘लीडर आफ आम पीपुल’ भी कहा जाता है .

लालू प्रसाद समेत परिवार के दूसरे सदस्‍यों का फेसबुक-ट्विटर के माध्‍यम से सोशल मीडिया का स्‍ट्रेंथ तब बढ़ा,जब तेजस्‍वी यादव के साथ संजय यादव जुड़े . संजय हरियाणा के रहने वाले हैं और तेजस्‍वी के मित्र भी हैं . तकनीकी रुप से बेहद दक्ष . पालिटिकल स्‍ट्रेटजिस्‍ट भी . संजय यादव ने ही पटना में लालू प्रसाद व परिवार के दूसरे सदस्‍यों के लिए सोशल मीडिया सेक्रेटेरिएट की स्‍थापना की . पूरा काम,इनकी देख-रेख में ही होता है . डिप्‍टी चीफ मिनिस्‍टर बनने के बाद तेजस्‍वी यादव ने संजय यादव को पालिटिकल एडवाइजर भी बना दिया है .
ट्विटर पर लालू प्रसाद के फॉलोवर्स के तेजी से बढ़ने की खास वजह यह भी है कि प्रत्‍येक ट्वीट में लालू प्रसाद की आरिजनल शैली दिखती है . खांटी बिहारीपन और देशी बोलचाल . सीधा बोलते हैं . दस लाख से अधिक फॉलोवर्स वाले लालू प्रसाद का ट्विटर हैंडल मात्र 49 लोगों को फॉलो करता है . इसमें परिवार के सदस्‍यों के अलावा पीएमओ इंडिया का ट्विटर हैंडल,नीतीश कुमार,ऑफिस आफ राहुल गांधी,भारत के प्रेसीडेंट,मुख्‍य मंत्री नीतीश कुमार के साथ कुछ राजनेता और शेष मीडिया के लोग हैं .

 बीजेपी की जीत पर बिहार में छिड़ा ‘ट्वीटर वार’

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ है। भाजपा  किसी अन्य पार्टी के मदद के बगैर सरकार बना रही हैै। लेकिन युपी चुनाव के परिणाम आते ही बिहार की राजनीति में भूचाल आता नजर आ रहा है। यूपी में भाजपा की जीत पर ट्वीटर वॉर छिड़ गया है। वह भी राजद सुप्रीमो लालू यादव और भाजपा नेता सुशील मोदी के बीच। उत्तर प्रदेश में भाजपा के रिकार्ड जीत से खुश बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने जब चुटकी लेते हुए  ट्वीटर पर लालू यादव से उनका हाल पुछा तब राजद सुप्रीमों लालू यादव ने अपने ही अंदाज में जवाब दे दिया।
सुशील मोदी ने ट्वीट कर लालू को टैग करते हुए पूछ लिया कि ‘का हाल बा ?’. इस पर तिलमिलाए हुए लालू ने अपने ही अंदाज में जवाब भी दे दिया। लालू यादव ने ट्वीट का रिप्लाई करते हुए चुटकी ली और कहा कि ‘ठीक बा। देखा ना, बीजेपी ने तुम्हें यूपी में नहीं घुसने दिया तो फायदा हुआ। 
यूपी में लालू यादव ने सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए प्रचार किया था। इस दौरान कई सभाओं में लालू ने अखिलेश के लिए वोट मांगा थे। यही नहीं लालू ने गठबंधन की जीत का दावा किया था।

लालू यादव के नाम केंद्रीय-राज्य मंत्री गिरिराज सिंह की खुली चिट्ठी

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चिट्ठी के जमाने में भले ही कोई राजनेता दूसरे राजनेता के नाम चिट्ठी न लिखते हों पर आज के सोशल मिडिया के जमाने में राजनेताओं का चिट्ठी लिखने का प्रचलन बढ़ गया है। 

कल लालू प्रसाद यादव ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को ऊना कांड के मुख्य आरोपी बताते हुए उनके नाम खुला पत्र फेसबुक पर लिखा तो तुरन्त  गिरिराज सिंह ने अपने फेसबुक वाल से लालू यादव को करारा जवाब देते हुए एक पत्र लिख डाला, पढ़िए..

लालू यादव जी के लिए मेरा खुला पत्र

आदरणीय लालू जी,

आपकी जाति के आधार पर समाज को बांटने की राजनीति, भ्रष्टाचार के हाथों बिहार को 15 वर्षों में पूरी तरह से बर्बाद कर देने की राजनीति और आपकी गरीब एवं विकास विरोधी राजनीति से पूरा देश भलीभांति वाकिफ है. अतः आपके अनर्गल प्रवचन पर लोग ध्यान भी नहीं देते. आपने हमेशा से समाज में जहर घोलकर कुत्सित मानसिकता की राजनीति की है, साथ ही मौकापरस्त राजनीति का आपसे बड़ा उदाहरण हो भी नहीं सकता.

आपने अपने फेसबुक पोस्ट के जरिये जो अनर्गल और मिथ्या प्रलाप किया है, उसका जवाब देने के लिए गिरिराज सिंह ही काफी है. लालू जी, आपकी राजनीति अगड़ों-पिछड़ों की राजनीति से ही शुरू होती है और इसी पर आकर ख़त्म भी हो जाती है. याद कीजिये, जाति की राजनीति को बिहार में परवान चढाते हुए आपने ही ‘हमको परवल बहुत पसंद है, भूरा बाल साफ करो’ जैसे जुमले गढ़े थे. आपने अपने शासनकाल में बिहार को जातीय हिंसा की आग में झुलसा दिया था. आपने समाज के भाईचारे को एक झटके में तबाह करके रख दिया था. याद कीजिये आपने पिछड़ों के आरक्षण को भी ख़त्म करने की कोशिश की थी. आप कब से लोगों की भलाई के मुद्दे उठाने लगे? आपने तो दलितों,पिछड़ों व गरीबों का वोट बैंक की तरह उपयोग किया और काम निकलने के बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया. आपके राज्य में दलितों के ऊपर जो अत्याचार हुए, वह किसी से छुपा हुआ नहीं है. अभी कल ही मुजफ्फरपुर में कुछ दलित युवकों की जिस तरह से पिटाई हुई और उन्हें पेशाब तक पीने को मजबूर किया गया, आपके कानों पर तो जूं तक नहीं रेंगी, आपके पास तो उन पीड़ित दलितों के पक्ष में बोलने को शब्द तक नहीं थे, इस घिनौनी घटना के बावजूद आप सोते रहे तो फिर आप किस मुंह से दलितों और पिछड़ों की आवाज होने का दंभ भर रहे हैं.

लालू जी, याद कीजिये पटना उच्च न्यायालय की टिप्पणी को जब आपकी शासन व्यवस्था से तंग आकर कोर्ट ने आपके राज को ‘जंगलराज’ की संज्ञा दी थी, आपको तो तब भी शर्म नहीं आई, आपके 15 वर्षों के शासनकाल में 50,000 से अधिक लोग बिहार में मारे गए, आपको तब भी शर्म नहीं आई,किडनैपिंग को आपने बिहार की इंडस्ट्री बना डाला,आपको तब भी शर्म नहीं आई, फिर आप किस मुंह से मिथ्या प्रलाप कर रहे हैं? आदरणीय लालू जी,यह कोई शब्दों का जाल नहीं है, बल्कि एक सच्चाई है कि किस तरह से अपने बिहार की गौरवमयी अतीत को दागदार करने का पाप किया था. बिहार पुलिस की वेबसाइट के मुताबिक, साल 2000 से 2005 के बीच केवल पांच साल की अवधि में 18,189 हत्याएं हुईं। द टाइम्स ऑफ इंडिया की ओर से तब करवाए गए एक सर्वे से पता चला कि साल 1992 से 2004 तक बिहार में किडनैपिंग के 32,085 मामले सामने आए। कई मामलों में तो फिरौती की रकम लेकर भी बंधकों को मार दिया गया. यह सब आपके मंत्री, विधायक और खुद आपकी शह पर होता रहा और आप नीरो की भांति बांसुरी बजाते रहे जबकि पूरा बिहार झुलस रहा था. लालू जी, आपने राजनीति का अपराधीकरण कर दिया. शहाबुद्दीन, रीतलाल यादव जैसों का आतंक बिहार कैसे भूल सकता है? ये आज भी आपके ख़ास हैं और आज फिर जैसे ही आप बिहार की सत्ता में वापस आये हैं, इनके आतंक का नंगा नाच बिहार में शुरू हो गया है.

आदरणीय लालू जी, अब आपके शासनकाल में बिहार के विकास की भी थोड़ी बात कर लेते हैं. बिहार के एक जन-प्रतिनिधि होने के नाते आज फिर से मैं बिहार को जंगलराज की ओर वापस जाते देख दुखी और शर्मसार महसूस कर रहा हूँ. आपके ‘जंगलराज’ के दौरान बिहार विकास के मामले में कोसों पीछे चला गया, विकास दर लगातार ऋणात्मक रहा. नए उद्योग-धंधे लगने की बात तो दूर, पहले से चल रहे उद्योग भी बंद हो गए। रोजगार के लिए लोगों को दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ा। शिक्षा की हालत ऐसी कर दी गई कि आज भी बिहार इससे पूरी तरह से उबर नहीं पा रहा है। आप तो यह कहते थे कि ‘डॉक्टर, इंजिनियर तो अमीर लोग के बेटा-बेटी बनता है, गरीब तो चरवाहा बनता है’. इसके लिए आपने चरवाहा विद्यालय खोल दिया लेकिन इन चरवाहा विद्यालयों का मकसद क्या था, इनमें कौन सी पढ़ाई पढ़ाई जानी थी, इसका अंदाजा आज भी नहीं लगाया जा सका। हां, इन स्कूलों के नाम पर जारी फंड में भरपूर भ्रष्टाचार हुआ। शिक्षा की बदतर हालत ने बिहार के युवाओं को राज्य से बाहर जाने को मजबूर कर दिया। यही हालत सड़कों की थी। तब एक कहावत मशहूर हो गई कि बिहार की सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़कें, ये पता नहीं चल पाता।

लालू जी, यूं तो आपने खुद को ‘गुदड़ी का लाल’ के रूप में पेश किया ओर स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों में इसी शीर्षक से एक अध्याय भी जुड़वाया जिसमें आपने अपने आप को गरीबों के मसीहा के तौर पर पेश किया. लेकिन हकीकत यह है कि सत्ता मिलते ही आपने उन्हीं गरीबों की हकमारी करके अनगिनत घोटाले किये, गरीबों की कल्याणकारी योजनाओं के पैसे पैसे डकार गए, यहाँ तक कि निरीह पशुओं के चारे तक को नहीं बख्शा. तब केंद्र में सत्तारुढ़ पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मदद से, नेताओं और नौकरशाही की मिली भगत स जो आपने 950 करोड़ रुपये का घोटाला किया, आपको तो याद भी नहीं होगा कि सरकारी खजाने की इस चोरी की गूँज न सिर्फ़ भारत में बल्कि सात समुन्दर पार अमेरिका और ब्रिटेन में भी सुनायी दी थी जिससे भारत की राजनीति बदनाम हुई थी। लेकिन आपको देश की बदनामी से क्या, आपको तो अपना घर भरने से मतलब था. कहते हैं न कि पाप का घड़ा जब भर जाता है तो फूट जाता है. ज़रा अपनी गिरेबाँ में झांककर देखिये लालू जी कि आखिर क्यों आप पर कोई भी चुनाव लड़ने की पाबंदी है,आखिर आपने कौन सा गुनाह किया था? आपके कहानियों का तो कोई अंत नहीं है. आपके समय में तो कई प्रोफेसरों ने यह तक कहना शुरू कर दिया था कि ‘लगता है, पढ़-लिख कर गुनाह कर दिया’.आपने पिछले बिहार विधान सभा चुनावों में भी यह अगड़ों-पिछड़ों का बिगुल बजाया था. आपने दलितों, पिछड़ों, गरीबों का तो कुछ भला किया नहीं, हाँ, अपने परिवार का भला जरूर किया आपने. परिवारवाद की जिस ओछी राजनीति को आपने अंजाम दिया है, बिहार की जनता इस त्रासदी को भूलेगी नहीं. आज आपके दोनों बेटों की नासमझी और करतूतों से बिहार की जनता भी त्रस्त है. आपकी कहानी को काली स्याही तो पूरी तरह लिख भी नहीं सकती जितने स्याह काम आपने किये हैं.

लालू जी, आज एक बार फिर से बिहार में जंगलराज-2 ने दस्तक दे दी है. आज बिहार में दिन दहाड़े हत्या, दंगा-फसाद, बलात्कार, किडनैपिंग,लूटमार की असंख्य घटनाएं घटित हो रही है,राजनीतिक हत्याओं का खुला तांडव मचा हुआ है,पाकिस्तानी झंडे लहराए जा रहे हैं, दलितों पर जुल्म और अत्याचार हो रहा है, प्रशासनिक पदाधिकारियों को सरेआम धमकियां दी जा रही है, सत्ता के दंभ में आपके गुर्गों द्वारा सड़कों पर बच्चों को कुचला जा रहा है, आपके विधायकों द्वारा स्कूली छात्राओं को हवस का शिकार बनाया जा रहा है और इस सबके बावजूद आप बेशर्म होकर राजनीति करने में व्यस्त हैं! लालू जी, राजद, जद(यू) और कांग्रेस की आपकी सरकार बिहार में बनने के तीन महीनों के भीतर ही 578 हत्याएं हुईं. आज बिहारवासी दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं और आप अपनी राजनीति की रोटी सेंकने में व्यस्त हैं. जनता में भय का माहौल है और वह कहीं न कहीं एक बार फिर से खुद को ठगा महसूस कर रही है. वह नीतीश और लालू की जोड़ी को कोसने पर मजबूर है कि वह इन्हें सत्ता में क्यों लेकर आई?

लालू जी, आप तो नैतिकता के सारे आधार खो चुके हैं, नैतिकता के सारे मापदंड को आपने खोखला कर दिया है फिर एक ऐसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री, जिसने अपनी पूरी जिंदगी देश और देश की जनता की भलाई के लिए समर्पित कर दिया है, के खिलाफ इन ओछी शब्दों का सहारा लेकर पत्र लिखने का साहस आपने कैसे किया?

लालू जी, पहल मेरे द्वारा उठाये गये इन प्रश्नों का उत्तर अपने आप से पूछिए, आपने बिहार से जो धोखा किया है,पहले उसका पश्चाताप कीजिये, पहले अपने द्वारा पूर्व में किये गए असंख्य जघन्य पापों का प्रायश्चित कीजिये, फिर पत्र लिखने का साहस कीजिए. धन्यवाद.

केंद्र और राज्य सरकार मिल कर रही बिहार का विकास

पटना: लोग कहते है राजनीति बहुत बुरी चीज है! मगर यही राजनीति आरोप-प्रत्यारोप से उपय उठ जाए और राजनीति अगर विकास पर होने लगे तो वही राजनीति देश या राज्य के लिए वरदान सावित होती है। 

 

बिहार में नीतीश की नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार है तो केंद्र में नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार।  दोनो की विचारधारा अलग है, दो सिक्कें के दो पहलू है मगर बिहार के विकाश के मुद्दे पर दोनों सहमत और एकमत है।

 

हाल में एक उदाहरण आया है।  वर्षों से पटना और हाजीपुर के बीच बने गंगा नदी पर बने गाँधी सेतु का हालत केन्द्र और राज्य सरकार के लिए राजनीति राजनीति का एक अहम मुद्दा बनता जा रहा था , दोषारोपण का पुराना खेल चालू था …कोई गम्भीर पहल किसी भी ओर से होती नहीं दिख रही थी।  दशकों से इस सेतू के जीर्णोद्धार की बातें हो रही थीं , कुछ काम भी निरन्तर ही हो रहा था लेकिन सेतू की स्थिति बद से बदहाली की ओर ही बढ़ रही थी।

 

वक्त बीतता गया और सेतू किसी भी दिन ध्वस्त हो जाने की स्थिति में आ गया , इसी दरम्यान बिहार में एक और नयी सरकार आई और बिहार के युवा उप-मुख्यमंत्री श्री तेजस्वी यादव के जिम्मे सम्बंधित विभाग आया …युवा – जोश व् जज्बे के साथ राजनीति को दरकिनार करते हुए गम्भीरता से उप-मुख्यमंत्री ने सेतू के मुद्दे पर केंद्र की सरकार पर अपने पत्राचारों के माध्यम से दबाब बनाया , तदुपरांत केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी जी के साथ अपनी मुलाकातों के माध्यम से समन्वय स्थापित किया और साथ ही राजनीतिक मतभेद होने के वाबजूद केंद्रीय मंत्री ने भी इस मुद्दे पर गंभीरता दिखाई और आज परिणाम सबके सामने है।

 

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केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को पटना और हाजीपुर को जोड़ने वाली महात्मा गांधी सेतु के जर्जर हालत के पुनरोद्धार के लिए 1742 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं. बैठक के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि साढ़े तीन साल में सेतु के पुनरोद्धार को कम्पलीट करने का लक्ष्य रखा गया है और इसपर कुल 1742 करोड़ रुपए की लागत आएगी.

 

इस से पहले का भी कई उदाहरण जो बताने के लिए काफी है कि राज्य और केंद्र सरकार मिल कर बिहार के विकाश में लगी है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी यह कह चुके है कि बिहार के विकाश से कोई समझौता नहीं होगा, और हम केंद्र के साथ मिल कर बिहार के विकाश के लिए काम करेंगे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने पिछले बिहार दौरे पर बिहार सरकार के सहयोगातमक रवैये की तारिफ कर चुके है।  केंद्रीय मंत्री पियूस गोयल और सुरेश प्रभू ने भी सहयोगात्म रवैये का स्वागत किया है।

 

राजनीतिक मतभेद हो सकते है, राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप और विरोध होता रहता है।  मगर देश और राज्यहित से समझौता नहीं होनी चाहिए।

 

बिहार के विकाश में लगे दोनों सरकार बधाई के पात्र है।

लालू यादव ने पूछा ममता बनर्जी से, क्या वह देश की प्रधानमंत्री बनेंगी?? ममता ने लालू से कहा….

बंगाल: ममता बनर्जी ने भारी बहुमत के साथ फिर से बंगाल की कमान संभाल ली है।  वह दूसरी बंगाल की मुख्यमंत्री बनी।  

उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू यादव भी पटना से कोलकत्ता विशेष रुप से पहुचे थे।

शपथ ग्रहण के बाद कोलकाता में लालू प्रसाद यादव ने कहा, “हम बिहार, राजद और महागठबंधन की तरफ से ममता बनर्जी और यहां की जनता को बधाई देते हैं।”

 

लालू प्रसाद यादव अपने हरफनमौला अंदाज के लिए जाने जाते है।  यही इनकी पहचान भी है।

ममता बनर्जी से हुई बातचीत का खुलासा करते हुए लालू प्रसाद ने अपने चिर-परिचित अंदाज में बताया, ‘मैंने उनसे पूछा कि क्या वह पहली बंगाली प्रधानमंत्री बनेंगी, तो उन्होंने कहा कि आप लोग बन जाओ. लालू प्रसाद यादव ने भाजपा के खिलाफ एक बड़े राजनीतिक गठबंधन के संकेत भी दिये और कहा कि बाकी नेताओं के साथ भी जल्द ही एक बड़ी बैठक होगी. भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विकल्प खडा किया जायेगा।

शपथ समारोह में मौजूद नीतीश कुमार, अखिलेश यादव व लालू प्रसाद यादव

शपथ समारोह में मौजूद नीतीश कुमार, अखिलेश यादव व लालू प्रसाद यादव

ज्ञात हो कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला है. इस समारोह में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और दिल्ली के अरविंद केजरीवाल शामिल हुए. इसके अलावा केंद्रीय वित्त मंत्री व भाजपा नेता अरुण जेटली और बाबुल सुप्रियो भी समारोह में शामिल थे. जबकि, वामपंथी दलों ने समारोह का बहिष्कार किया था।

 

 

शपथ समारोह में मौजूद नीतीश कुमार, अखिलेश यादव व लालू प्रसाद यादव

शपथ समारोह में मौजूद नीतीश कुमार, अखिलेश यादव व लालू प्रसाद यादव

कभी जेल में दरबार, कभी SP पर वार…आखिर कौन है यह शहाबुद्दीन?

 बिहार में मोहम्मद शहाबुद्दीन एक ऐसा नाम है जिसे शायद ही कोई  ना जानता हो। एक वक्त था जब बिहार के सिवान जिले में साहब के नाम से मशहूर इस शख्स की हुकूमत चलती थी। उसके नाम से ही लोग काप जाते थे। 

आज फिर से यह नाम लोगों की जुबान पर है….जानिए मोहम्मद शहाबुद्दीन को।

 

इस नाम से ही हर कोई कांपता था, लेकिन वक्त बदलने के साथ ही सिवान के इस बाहुबली के जेल जाने के बाद इसका खौफ कुछ कम हुआ मगर वक्त-वक्त पर इस नाम ने अपनी याद लोगों की जुबान पर लाने को मजबूर कर दिया।

शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई 1967 को सीवान जिले के प्रतापपुर में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा दीक्षा बिहार से ही पूरी की थी. राजनीति में एमए और पीएचडी करने वाले शहाबुद्दीन ने हिना शहाब से शादी की थी. उनका एक बेटा और दो बेटी हैं. शहाबुद्दीन ने कॉलेज से ही अपराध और राजनीति की दुनिया में कदम रखा था. किसी फिल्मी किरदार से दिखने वाले मोहम्मद शहाबुद्दीन की कहानी भी फिल्मी सी लगती है. उन्होंने कुछ ही वर्षों में अपराध और राजनीति में काफी नाम कमाया.

 

वो अस्सी का दशक था जब शहाबुद्दीन का नाम पहली बार एक आपराधिक मामले में सामने आया था। 1986 में उनके खिलाफ पहला आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ था और देखते ही देखते इसके बाद तो उनके नाम के साथ कई आपराधिक मुकदमे लिखे गए।
अपराध की दुनिया में शहाबुद्दीन एक चमकता सितारा बनकर उभरा उसके बढ़ते हौसले को देखकर पुलिस ने सीवान के हुसैनगंज थाने में शहाबुद्दीन की हिस्ट्रीशीट खोल दी और उन्हें ‘ए’ श्रेणी का हिस्ट्रीशीटर घोषित कर दिया। इस तरह बिल्कुल छोटी सी उम्र में ही अपराध की दुनिया में शहाबुद्दीन एक बडा नाम बन गया।

 

राजनीति के गलियारों में शहाबुद्दीन का नाम उस वक्त चर्चा में आया जब शहाबुद्दीन ने लालू प्रसाद यादव की छत्रछाया में जनता दल की युवा इकाई में कदम रखा. राजनीति में सितारे बुलंद थे. पार्टी में आते ही शहाबुद्दीन को अपनी ताकत और दबंगई का फायदा मिला. पार्टी ने 1990 में विधान सभा का टिकट दिया. शहाबुद्दीन जीत गए. उसके बाद फिर से 1995 में चुनाव जीता. इस दौरान कद और बढ़ गया.
ताकत को देखते हुए पार्टी ने 1996 में उन्हें लोकसभा का टिकट दिया और शहाबुद्दीन की जीत हुई.

1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन और लालू प्रसाद यादव की सरकार बन जाने से शहाबुद्दीन की ताकत बहुत बढ़ गई थी.

 

2000 के दशक तक सीवान जिले में शहाबुद्दीन एक समानांतर सरकार चला रहे थे। उनकी एक अपनी अदालत थी, जहां वह लोगों के फैसले करते थे। वह खुद सीवान की जनता के पारिवारिक विवादों और भूमि विवादों का निपटारा करते थे।

शहाबुद्दीन

शहाबुद्दीन

2003 में मो. शहाबुद्दीन वर्ष 1999 में माकपा माले के सदस्‍य का अपहरण करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिए गए। लेकिन वे स्‍वास्‍थ्य खराब होने का बहाना कर सीवान जिला अस्‍पताल में रहने लगे, जहां से वे 2004 में होने वाले चुनाव की तैयारियां करने लगे।

चुनाव में उन्होंने जनता दल यूनाइटेड के प्रत्याशी को 3 लाख से ज्‍यादा वोटों से हराया। इसके बाद शहाबुद्दीन के समर्थकों ने 8 जदयू कार्यकर्ताओं को मार डाला तथा कई कार्यकर्ताओं को पीटा। समर्थकों ने ओमप्रकाश यादव के ऊपर भी हमला कर दिया जिसमें वे बाल-बाल बचे, मगर उनके बहुत सारे समर्थक मारे गए।

 

अदालत ने 2009 में शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. उस वक्त लोकसभा चुनाव में शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब ने पर्चा भरा था. लेकिन वह चुनाव हार गई. उसके बाद से ही राजद का यह बाहुबली नेता सीवान के मंडल कारागार में बंद है. शहाबुद्दीन पर एक साथ कई मामले चल रहे हैं और कई मामलों में उन्हें सजा सुनाई जा चुकी है. कहा जाता है कि भले ही शहाबुद्दीन जेल में हों लेकिन उनका रूतबा आज भी सीवान में कायम है.

 

 

हाल ही में एक पत्रकार हत्या कांड में नाम आने के बाद शहाबुद्दीन को भागलपुर जेल भेज दिया गया है जिससे शहाबुद्दीन नाराज बताए जाये रहे है। शहाबुद्दीन को खुश करने के लिए लालू प्रसाद यादव राजद कोटे से उसकी पत्नि को MLC बनाने का फैसला किया है। ज्ञात हो कि कुछ दिन पहले ही राजद ने शहाबुद्दीन को राजद के राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया है।