गुजरात में 48 आईएएस और 32 आईपीएस बिहार-यूपी से हैं, फिर भी हो रहा बिहारियों पर हमला

एक रेप के आरोपी के नाम पर पुरे बिहार और बिहारियों को बदनाम किया जा रहा है| गुजरात में गरीब बिहारी मजदूरों को धमकी दिया जा रहा है और उन पर हमला किया जा रहा है| मगर यह जानकार आपको हैरानी होगी कि जिस गुजरात राज्य में बिहार-यूपी के लोगों पर हमला किया जा रहा है उस प्रदेश में कानून व्यवस्था और प्रशासन की बागडोर संभालने वाले 40 फीसदी आईएएस-आईपीएस भी इन्हीं दोनों राज्यों से हैं।

समूचे गुजरात में इस वक्त तैनात 40 आईएएस व आईपीएस अधिकारी उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं। गुजरात पुलिस के मौजूदा महानिदेशक यानी डीजीपी शिवानंद झा और गुजरात सरकार के मुख्य सचिव जेएन सिंह, दोनों ही बिहार से आते हैं। राज्य के कुल 243 आईएएस अधिकारियों में से 48 यूपी और बिहार के लोग हैं। जबकि प्रदेश में मौजूद 167 आईपीएस अफसरों में से 32 यूपी-बिहार से हैं। यानी प्रदेश की कानून व्यवस्था और प्रशासनिक बागडोर संभालने वाले लोग भी उन्हीं राज्यों से हैं, जिनके लोग आज पलायन को मजबूर हैं।

इस घटना पर गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने कहा कि वे गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमले की निंदा करते हैं| हार्दिक पटेल ने ट्वीट किया, ”गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमले की में निंदा करता हूँ।अपराधी को कठोर सजा मिले,इसके लिए पूरा देश उस पीड़ित परिवार के साथ खड़ा हैं।लेकिन एक अपराधी के कारण हम पूरे प्रदेश को ग़लत नहीं ठहरा सकते,आज गुजरात में 48 IAS एवं 32 IPS उ॰प्र और बिहार से हैं।हम सब एक हैं।जय हिंद|”

अपने एक दूसरे ट्वीट में हार्दिक पटेल ने कहा, ”गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमले में देश के प्रधानमंत्री कब बोलेंगे, नरेन्द्रभाई मोदी ने कहा था की बिहार और उत्तरप्रदेश से तो मेरा पुराना रिश्ता है| गुजरात की सभी श्रम फैक्ट्री में उत्तर भारतीय लोग काम करते हैं| आज सभी फैक्ट्री बंद हैं| उत्तर भारत का महत्व कितना है आज समझ आया|”

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बिहार के सीतामढ़ी जिले के आरपी ठाकुर बने आंध्र प्रदेश के डीजीपी

एक और बिहारी अधिकारी को एक बड़ी जिम्मेदारी मिला है| बिहार के सीतामढ़ी जिले के चोरौत प्रखंड के अमनपुर गांव निवासी रामप्रवेश ठाकुर को आंध्रप्रदेश सरकार ने डीजीपी बनाया है।

1986 बैच के आईपीएस अधिकारी रामप्रवेश ठाकुर डीजीपी बनने से पूर्व आंध्रप्रदेश में एंटी करप्शन विभाग के डीजी थे।

आंध्रप्रदेश कैडर में वह एसपी से लेकर एंटी करप्शन के डीजी और अब डीजीपी बने हैं। 

डीजीपी के तौर पर नियुक्त किये जाने के बाद पूरे बिहार सहित सीतामढ़ी जिले में खुशी की लहर है|  वह 2002 से 2007 तक पटना में सीआईएसएफ और डीआईजी भी रह चुके हैं| आरपी ठाकुर सेवानिवृत अंकेक्षक रामदेव ठाकुर के इकलौते पुत्र हैं| उनकी मां आशा देवी का निधन हो चुका है|

सीतामढ़ी में हुई प्रारंभिक शिक्षा 

अमनपुर निवासी सेवानिवृत्त अंकेक्षक रामदेव ठाकुर के इकलौते पुत्र राम प्रवेश ठाकुर की प्रारंभिक शिक्षा सुरसंड प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय बखरी में हुई थी। मैट्रिक की शिक्षा ननिहाल रीगा प्रखंड के बभनगामा हाईस्कूल से ली। आइआइटी कानपुर से बीटेक कर रेलवे में इंजीनियर की नौकरी की। ट्रेनिंग समाप्त होते ही यूपीएससी की परीक्षा पास की। इसके बाद रेलवे की नौकरी छोड़ आइपीएस ज्वाइन कर ली।

गांव में पुश्तैनी मकान व खेती की जमीन है। यदा-कदा गांव भी आते रहते हैं। उनके भांजे सुरसंड प्रखंड के हनुमाननगर निवासी अविनाश कुमार ने बताया कि ईमानदार अधिकारी के होने के कारण आंध्र प्रदेश सरकार ने उन्हें डीजीपी बनाया है। वहीं, चचेरे भाई शिक्षक राम अनेक ठाकुर व किसान साधु शरण ठाकुर ने बताया कि रामप्रवेश ठाकुर ने न केवल गांव, बल्कि जिला व बिहार का नाम रोशन किया है।

 

 

आईपीएस निशांत तिवारी को आस्ट्रेलियाई युनिवर्सिटी ने किया सम्मानित

अक्सर अपने पुलिस कफ्तानी और अन्य समाजिक कार्यों के लिए सुर्खियों में रहने वाले बिहार के पुर्णिया जिले के पुलिस कफ्तान निशांत तिवारी को आस्ट्रेलिया की चार्ल्स स्टुअर्ट यूनिवर्सिटी की ओर से मिड करियर ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए सम्मानित किया गया है उन्हें यह सम्मान आस्ट्रेलिया की यह खास ट्रेनिंग प्रोग्राम पूरा करने के लिए प्राप्त हुआ.
निशांत पिछले कुछ दिनों से इस मिड करियर ट्रेनिंग प्रोग्राम को पूरा करने में लगे हुए थे. उन्हें इस प्रोग्राम को पूरा करने के बाद यूनिवर्सिटी की ओर से डिग्री दी गयी. इस प्रोग्राम को पुलिसिंग में बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है. सुरक्षा की चुनौतियों और साइबर क्राइम की तकनीक से दुनिया भर के नामित पुलिस अधिकारियों को यूनिवर्सिटी ट्रेंड करता है.

निशांत तिवारी ने यह सम्मान पाने के बाद काफी ख़ुशी जाहिर की है और कहा है कि यह सम्मान उनके लिए बहुत खास है. इस अवार्ड समारोह में एमसीटीपी कोर्स (NPA) के DD, पॉलसन, एमसीटीपी के डायरेक्टर और चार्ल्स स्टुअर्ट यूनिवर्सिटी के जॉन डाइन उपस्थित थे. इस दौरान सभी ने ट्रेनिंग प्रोग्राम में निशांत के समर्पण की खूब तारीफ की.

 2005 बैच के आईपीएस अधिकारी निशांत कुमार तिवारी पूर्णिया में दो बार एसपी का पदभार संभालने के पूर्व गया सहित कई अन्य जिलों में भी एसपी के रूप में सराहनीय कार्य कर चुके हैं. एसपी निशांत कुमार तिवारी 2005 बैच के टॉपर आइपीएस थे. इसके लिये उन्हें प्रधानमंत्री के द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चुका है. इनके द्वारा लिखित पुस्तक हेरीटेज आफ नालंदा को आक्सफोर्ड से प्रकाशित हुई है जिसे एक साथ विश्व के कई देशों में पढ़ी गयी है.निशांत बेहतर पुलिसिंग और सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता के लिए जाने जाते हैं.निशांत तिवारी भोजपुरिया माटी में जन्‍मे हैं. जहां रहे, नाम कमाया है . पब्लिक को फ्रेंड बनाना निशांत तिवारी की पुलिसिंग का स्‍टाइल है . 

एक निकम्मा पंजाबी मुंडा जो पढ़ाई में ज़ीरो था उसे बिहारी संगत ने रास्ता दिखा आईपीएस बना दिया : DIG शालीन

प्रकाश पर्व के सफल आयोजन के लिए जहां चारों तरफ बिहार की सराहना हो रहा है और सबके जुबान पर बिहारियों के मेहमाननवाजी के चर्चे हैं तो दुसरे तरफ प्रकाश पर्व बाद पटना पुलिस के प्रमुख DIG शालीन का एक पत्र सोशल मिडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।

शालीन मूल रूप से पंजाब के रहने वाले हैं. आईपीएस की परीक्षा पास करने के बाद इन्हें बिहार कैडर मिला. वर्तमान में सेंंट्रल रेंज पटना में बतौर DIG पदस्थापित हैं. प्रकाश पर्व के आयोजन के हर डगर पर शालीन ने बिहार सरकार, जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन को पंजाब से जुड़े अपने अनुभव के साथ बताया है कि कैसे उनके सफलता के पिछे बिहारियों का एक बहुत बड़ा योगदान है।

पढि़ए डीआईजी शालीन का पत्र . .

हाल ही में बिहार ने गुरु गोविंद सिंह जी महाराज की 350वीं जयंती के मौके पर उनके जन्म स्थल पटना साहिब में हुए प्रकाशोत्सव पर भारत और दुनिया भर से आए सिखों का स्वागत किया. बिहार काडर में एक पंजाबी अफसर और डीआईजी पटना की हैसियत से इस कार्यक्रम से मेरा सिर्फ काम को लेकर ही नहीं, निजी तौर पर भी जुड़ाव रहा. सम्मेलन सफल रहा और दुनिया भर से आए श्रद्धालु, विशेषकर सिखों ने कार्यक्रम की खुले दिल से तारीफ भी की.

इनमें से कई लोग तो पहली बार बिहार आए थे और यहां के लोगों की मेज़बानी देखकर चकित रह गए. वैसे अगर वो किसी असली बिहारी को जानते होते तो इस मेहमान नवाज़ी को देखकर बिल्कुल भी हैरान नहीं होते. वैसे जहां तक बिहार और बिहारी से मेरे रिश्ते की बात है तो यह बात सिर्फ मेरे बिहार काडर में शामिल होने तक सीमित नहीं है. वैसे भी तो यह तो महज़ चांस की बात है कि सिविल सर्विस परीक्षा में मुझे जो रैंक मिली थी उसके बाद मुझे यह काडर मिल गया.

मेरा और बिहार का रिश्ता तो बीस साल पुराना है जब रुड़की इंजीनियरिंग के फायनल ईयर में मैं ‘बिहार गैंग’ में शामिल हो गया था. उन दिनों रुड़की में सबकी नज़रें दिल्ली वालों पर रहती थीं जो न सिर्फ सबसे अच्छे कपड़े पहनते थे, बल्कि बातें भी वो GRE और CAT जैसी परीक्षाओं की ही करते थे. इन दिल्ली वाले छात्रों में ज्यादातर समय के बड़े पाबंद हुआ करते थे और खेल कूद में बहुत आगे थे. मैंने पहले साल उनके साथ उठना बैठना चाहा लेकिन न तो मैं उनकी तरह पढ़ाई में तेज़ था और मेरी महत्वाकांक्षाएं भी कुछ ख़ास नहीं थीं.
फिर उनके बाद ‘कानपुरिये’ और ‘लखनऊ’ वाले भी थे जिनकी बोली और मज़ाकिया अंदाज़ का कोई तोड़ नहीं होता. कैंपस में ही कुछ छात्र दक्षिण भारत और पश्चिमी भारत से भी आए थे और हां, एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत कुछ विदेशी छात्रों ने भी कॉलेज की शान बढ़ा रखी थी लेकिन मेरी कहीं बात नहीं बनी. इन सबके बीच मुझ जैसा 20 साल का निकम्मे पंजाबी मुंडा जो पढ़ाई में ज़ीरो था, उसे बिहारियों के बीच बैठकर ही राहत और सुकून मिलता था. मैं किसी खेल में शामिल नहीं होता था, नाटक और साहित्य जगत से कोसों दूर रहता था, अमेरिका, एमबीए या सिविल सर्विस इनमें से कुछ भी मेरे प्लान का हिस्सा नहीं था – कुल मिलाकर एक भटका हुआ लोफर जो अपनी जिदंगी के धुंधले वर्तमान और बेरंग भविष्य के बीच झूल रहा था.

ऐसे में बिहारी गुटों के बीच उठता बैठता और वो मुझे ऐसा करने देते. उन्हें मेरा दिशाहीन होना या कम प्रतिभाशाली होना खलता नहीं था. अयोग्यता और अक्षमता को लेकर इनमें एक तरह की सहिष्णुता और संयम है जिसने शायद बिहार के विकास पर बुरा असर डाला है लेकिन दूसरी तरफ बिहारी लोगों की यही खूबी उन्हें उदार भी बनाती है और असफल लोगों के लिए उनके दिल के दरवाज़े खोलती है (शायद बिहार का छठ त्यौहार दुनिया का एकमात्र उत्सव होगा जहां डूबते सूरज की पूजा की जाती है.) खैर, तो इस तरह मैं रुड़की के दिनों में इसी बिहार गैंग से चिपका रहा और उनके साथ बिताया वक्त उस संस्थान में मेरे सबसे यादगारों दिनों में से एक हैं. कॉलेज खत्म हुआ और मैंने एक साल तक एक निजी कंपनी में मैनेजमेंट ट्रेनी की तरह काम किया लेकिन फिर कुछ अजीब हुआ.

 

मेरे ज्यादातर बिहारी दोस्तों ने अपनी कैंपस से मिली नौकरी को विदा कहा और सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी में जुट गए, वो भी जिया सराय इलाके में जिसे एलेक्स हैली के शब्दों में ‘सपनों का डेरा’ कहा जा सकता है. मुझे भी कहा गया कि नौकरी छोड़ों और जुट जाओ सिविल सर्विस की तैयारी में. ज़रा सोचिए, एक लड़का जिसे रुड़की इंजीनियरिंग ठीक से नहीं हो पाई, उसे ऐसी परीक्षा में बैठने के लिए उकसाया जा रहा था जिसकी तैयारी में सबका तेल निकल जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस टेस्ट को तो सिर्फ मेहनती और पक्के इरादों वाला ही पास कर सकता है, वो भी तब अगर उसकी किस्मत अच्छी हो.

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रुड़की के चार सालों में मुझे तो ऐसा कोई गुण अपने अंदर नज़र नहीं आया, लेकिन पता नहीं क्यों मेरे बिहारी दोस्तों को लगता था कि मुझमें कुछ बात है! तैयारी के पहले और सबसे अहम महीने में मैं अपने बिहारी दोस्त राघवेंद्र नाथ झा और कुछ और लड़कों के साथ रहा, इसी दौरान मैं इस भूलभुलैया वाले इलाके में अपने लिए एक कमरा भी तलाश रहा था. यह मेरे दोस्तों का प्यार और प्रोत्साहन ही था जिसने इस औसत पंजाबी लड़के को खुद पर यकीन करना सिखाया. यूपीएससी की तैयारी में जुटे रहने के दौरान कई मोड़ ऐसे भी आए जब मेरा आत्मविश्वास पूरी तरह हिला जाता था और सोचता था कि बस अब और नहीं. लेकिन उस वक्त मेरे बिहारी गैंग ने मुझे डूबने से बचाया. अगर उनकी जगह कोई ज्यादा दिमाग वाला आदमी होता तो मुझे कब का कह चुका होता कि पढ़ाई में सिफर मुझ जैसे लड़के के लिए यहां तो कोई चांस ही नहीं है. लेकिन बिहारी की बात अलग है – अगर वो आपके साथ हैं तो फिर पूरे दिल से साथ हैं.

 

बिहार के साथ मेरा प्यार तब और बढ़ गया जब सफलतापूर्वक आईपीएस क्लियर करने के बाद मुझे बिहार काडर मिला. इसके बाद मैंने यहा कई साल काम किया और अलग अलग क्षेत्र से जुड़े लोगों से मिलना जुलना हुआ. मैं यह मानता हूं कि बिहार को बगैर अच्छे से जाने इसे बदनाम किया जाता रहा. जिस तरह एक खौफनाक बलात्कार केस के बाद उत्तर भारत के सभी पुरुषों को औरतों का दुश्मन नहीं कहा जा सकता, कावेरी मुद्दे पर बसों के जलने से सभी बैंगलोर वाले गुंडे नहीं हो गए, इसी तरह कुछ आपराधिक घटनाओं के आधार पर बिहार और बिहारियों को पूरी तरह आंका जाना भी सही नहीं है.

 

एक ही बात को सब पर लागू करना खतरनाक है लेकिन मैं मानता हूं कि एक औसत बिहारी, दिमाग से तेज़, ईश्वर में यकीन रखने वाला शख्स होता है, जो नहाता और खाता धीरे है लेकिन मन से जिज्ञासु और सचेत होता है. यही जागरुकता और मजबूत प्रजातांत्रिक व्यवस्था की वजह से इस राज्य में और राज्यों की तुलना में ज्यादा बहस और दोषारोपण होता है. ऊपर से जातिगत व्यवस्था के हावी होने की वजह से यहां और जगहों के मुकाबले ज्यादा आत्म – समालोचना और खुद की निंदा की जाती है. जाति द्वारा खींची गई लकीरें बिहारियों को आपस में बाटंती हैं, एक दूसरे के प्रति ज्यादा आलोचक बनाती हैं लेकिन मेरा मानना है कि यही लकीरें हैं जो संकीर्ण और खुद को पोषित करने वाली क्षेत्र-सीमित राष्ट्रीयता को यहां पैर जमाने से रोकती है और यहां के लोग सिर्फ अपने राज्य को नहीं पूरे भारत को दिल से गले लगाते हैं.

 

मजदूरी के लिए गुरुग्राम या मुंबई जाने के लिेए मजबूर बिहारी मजदूर हो या फिर बैंगलोर या चेन्नई में नौकरी करने वाला एक आईआईटी से पढ़ा बिहारी – इन्हें भी उतनी ही इज्जत और प्यार मिलना चाहिए जितना वे अपने राज्य में आने वाले लोगों पर बरसाते हैं. भाषा विशेष का गुरूर और क्षेत्रवाद, उप-राष्ट्रवाद की कमी यही बातें इन्हें एक गौरवान्वित भारतीय बनाती है. आप किसी बिहारी को बड़ी ही सहजता से पुणे या किसी शहर के विकास पर गर्व से बात करते हुए देख सकते हैं. वह यह नहीं सोचता कि उसका पटना या भागलपुर तो पीछे रह गया. यह बात अलग है कि भारत को लेकर एक बिहारी व्यक्ति की इस व्यापक सोच के पीछे की उदारता राज्य के बाहर ज्यादातर लोगों को समझ नहीं आती.

 

बिहार के ऊपरी और जल्दबाज़ी से किए गए आकलन में अक्सर इस जगह और यहां के लोगों की गर्मजोशी, प्यार और मेहरबानी का ज़िक्र नहीं किया जाता – खासतौर पर अगर आप यहां बाहर से रहने आए हैं. बिहार में हिम्मतियों की कमी नहं. एक बिहारी फिर वो आम नागरिक हो या कोई आईपीएस अफसर, कभी भी हिम्मत नहीं हारेगा. मुझे याद है मेरे बिहारी दोस्त नजमुल होंडा जो दरभंगा के हैं, किस तरह पुलिस ट्रेनिंग के दौरान वरिष्ठ अधिकारियों से भी वो तीखे और कड़वे सवाल पूछने से पीछे नहीं हटते थे. इसी तरह एक बिहारी पत्रकार ही एक ऐसा सवाल पूछने के लिए खड़ा हो सकता है जिसकी हिम्मत कोई और नहीं करेगा. सत्ता के खिलाफ होना आपको मंहगा पड़ सकता है लेकिन बिहार में नहीं. आपकी दलील और आपका रवैया कैसा भी हो लेकिन अगर आप किसी उद्देश्य के लिए अकेले ही किसी ताकतवर से भिड़ रहे हैं तो फिर आपको मिलना वाले समर्थन की यहां कमी नहीं होगी.

 

माना की बिहारियों को कई तरह की सामाजिक और आर्थिक परेशानियों से दो चार होना पड़ रहा है लेकिन एक चीज़ जो उनसे कोई नहीं छीन सकता – वो है भारत के लिए धड़कने वाला उनका बड़ा सा दिल जिसमें दया है, दूसरों के लिए सम्मान है, खासतौर पर उनके लिए जो शायद सफलता की रेस में बहुत आगे नहीं जा सके या थोड़ा पीछे रह गए. एक बेहद ही आम सा जीवन जीने वाले शख्स के लिए भी यहां जगह और सम्मान है – जिंदगी में और क्या चाहिए?

Source: NDTV

बिहार पुलिस के जांबाज और लोकप्रिय अफ़सर शिवदीप लांडे की विदाई बिहारियों को मंजूर नहीं

कहते हैं ज्ञान, अच्छाई और वीरता की कद्र हर जगह होती है| अमूमन ये तीनों गुण किसी इंसान में एक साथ पाया जाना मुश्किल है, और इन तीनों गुणों के साथ अपनी पहचान बना पाना तो समुद्र में मोती ढूंढने जितना मुश्किल| सवाल यहाँ ये भी है कि क्या जनता के साथ हमारी सरकारें भी इन गुणों का उचित सम्मान कर पा रही है?

अभी कुछ दिनों पहले बिहार कैडेट के लोकप्रसिद्ध और सबसे सफल नायक और आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे

फेसबुक लाइव के जरिये अपने फ़ॉलोवर्स से जुड़ते हैं और पता चलता है कि ये भारत में अब तक का तीसरा सबसे सफल लाइव आयोजन रहा| अद्भुत बात ये भी रही कि एक सरकारी अधिकारी होते हुए भी, शिवदीप लांडे के लिए एक भी नकारात्मक कमेंट नहीं आया|

अपना  बिहार  द्वारा किये गये एक ऑनलाइन सर्वे  में 100% लोगों ने कहा कि शिवदीप लांडे को बिहार से बाहर नहीं जाने देना चाहिए| यह भी शायद एक अजूबा रिकॉर्ड ही है जब 100% लोग किसी अफसर की प्रतिनियुक्ति को गलत ठहरा रहे हों|
इनके द्वारा किये गये कार्यों की सूची बनाना उद्देश्य नहीं, न ही यहाँ मकसद किसी की तारीफ़ करना ही है, बल्कि इस ओर इशारा करना है कि आमजन तक इतनी सकारात्मक पहुँच रखने वाले अफसर को अब 3 साल की प्रतिनियुक्ति पर जाना पड़ रहा है| वजह और फैसला राजनैतिक रंजिश का हो सकता है, सामूहिक दबाव का हो सकता है, जन्मभूमि की पुकार हो सकती हैं, या व्यक्तिगत/ निजी ख़्वाहिश भी हो सकती है, मगर ये बिहार में कानून का राज स्थापित करने के वादे के साथ आई सरकार के लिए सही नहीं लगता| 

लोगों से घिरे शिवदीप लांडे

लोगों से घिरे शिवदीप लांडे

ऐसा नहीं कि शिवदीप लांडे ने अकेले पूरे बिहार में कानून का राज स्थापित करने का बीड़ा उठाया था| वो खुद भी हमेशा ये श्रेय लेने से इंकार करते रहे हैं| लेकिन जब अग्रणी अफ़सर ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ हो, अपने काम की जिम्मेदारी समझने वाला हो तो निश्चित तौर पर उनके निर्देशन में अच्छे काम ही होंगे, और अब तक ऐसा होते भी आया है| उनकी सकारात्मक ऊर्जा ने प्रशासन के चेहरे से कलंक को साफ़ तो किया ही, साथ ही छवि में सुधार लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी| उनके साथियों के लिए प्रेरणादायक रहे हैं वो| प्रशासन व्यवस्था में ईमानदार लोगों के संबल हैं वो| ये संबल जितना कमजोर होगा असामाजिक तत्वों का संबल उतना ही मजबूत होता जायेगा|

शिवदीप लांडे अक्सर कहते हैं कि उनके लिए पूरा देश उनकी कर्मभूमि है, और पूरे देश को वो एक सामान ही देखते हैं|

जैसा कि हमसब जानते हैं वो महाराष्ट्र से ताल्लुक रखते हैं, मगर बिहार के प्रशासनिक खेती को उन्होंने उसी तत्परता से सींचा है| शिवदीप लांडे ने अबतक अपनी प्रतिनियुक्ति के विषय पर कुछ नहीं कहा है| लेकिन ये टिस तो सभी समझ सकते हैं जब किसी को उसकी कर्मभूमि, जिसकी वजह से उसकी पहचान है, से अकारण कहीं और जाने को विवश होना पड़े| शिवदीप लांडे के समर्थन में आज सारा बिहार उठ खड़ा हुआ है| सभी जानते हैं, उनका यहाँ से जाना बिहार में जंगलराज होने की आहट देता है| उनका जाना बिहार से सुरक्षाकवच के उतारे जाने जैसा है| उनका जाना कुछ ‘खास’ लोगों के लिए अच्छा हो भी सकता है, मगर ये उनके लिए बिलकुल सही नहीं जो बिहार का रखवाला होने का दंभ भरते हैं|
ज्ञान, अच्छाई और वीरता का सम्मान करना जिसे भी आता है वो ऐसे अफसरों को हमेशा अपने आस-पास देखना चाहेंगे| मगर ऐसे अफसर कहाँ रहें, ये फैसला राजनैतिक हो जाना एक गंभीर विषय है|

शिवदीप लांडे का बिहार से जाना दुखद है| बिहार इनके कार्यों को याद रखेगा| उम्मीद है इनके संगत में कुछ और फ़ौज तैयार हुई होगी जो इनके कार्यों को आगे बढ़ाएगी| बिहार इन्तेजार करेगा अपने सफलतम आईपीएस को पुनः इस धरती पर कार्य करते देखने के लिए और शुभकामनाएँ हैं आप जहाँ भी रहें, निरंतर सकारात्मक माहौल देते रहें|

यह काम करने वाले देश के पहले आईपीएस अफसर बने शिवदीप लांडे

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एक ओर जहां पुलिसवाले अपराधियों को पकड़े या न पकड़े मगर आम लोगों पर अपने वर्दी का रौब जरूर दिखाते नजर आ जाते हैं , अपने को वीआईपी समझने लगते हैं और लोगों से ठीक से बात तक नहीं करतें मगर बिहार पुलिस के प्रसिद्ध आईपीएस और वर्तमान में एसटीएफ के एसपी श्री शिवदीप लांडे इस मामले में भी सबसे अलग है।

शनिवार को शिवदीप लांडे सोशल साईट फेसबुक पर पहली बार लाईव लोगों के बीच जाकर, लोगों से बात चीत की और उनके सवालों के जवाब दिये। सोशल साईट पर लोगों के बिच लाईव इंटरएक्टसन करने वाले वे देश के पहले आइएएस या आईपीएस अफसर बन गये है।

बिहार में शिवदीप लांडे का रुतबा और उनके लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकतें हैं कि उनके लाईव आते ही लोगों ने सवालों की झड़ी लगा दी। एक ही साथ इतने सवाल आ रहें थे कि खुद शिवदीप लांडे भी नहीं पढ़ पा रहें थे। मजबूरन उन्हे कहना पडा की, कृपया सवाल धीरे-धीरे पूछे।

पहले ही लाईव इंटरएक्सन से लांडे ने कई रिकोर्ड को ध्वस्त कर दिये। यह पूरे देश में अबतक का टॉप-10 लाईव इंटरएक्सन में जगह बनाने में कामयाब रहा। उनके सोशल मिडिया टीम ने बताया की मात्र एक घंटा में लोगों ने लगभग पांच हजार सवाल पूछें है जिसमें से एक भी नकारात्मक सवाल नहीं मिला, उनमें से चुनिंदा सवालों के जवाब जल्द ही शिवदीप लांडे देंगे।

प्रायः युवा लोग फिल्मी हिरो या क्रिकेटर सब के दिवाने होते हैं, उनको फौलो करतें हैं और उनके जैसा बनने का सपना देखते हैं मगर बिहार में युवा लोग शिवदीप लांडे को अपना हिरो मानते हैं और उनके जैसा बनने का सपना देखते है।
लाईव इंटरएक्सन के दौरान लोगों के बातों से भी यह पता चलता है।
लोगों ने उन से चश्मा और टोपी लगा के दिखाने के आग्रह किया तो उके पसंदीदा फल क्या है? यह भी पूछ रहें थे तो उनके फिटनेस का राज भी उनसे पूछा।

लोगों ने उनसे भोजपुरी में कुछ बोलने को भी कहां जिसपर शिवदीप लांडे ने लोगों को भोजपुरी में एक संदेश दिया  ” जिंदगी में कभी ना डर के रहे के चाही.. माँ-बाबू के ख्याल रखे के चाही.. “

एक बार उन्होने फिर दोहराया कि महाराष्ट्र मेरी जन्मदिन भूमि जरूर है मगर बिहार मेरी कर्मभूमि है, बिहार ने ही मुझे पहचान दिया है।
कई लोगों ने यह भी कहा कि मैं भी आपकी तरह यूपीएससी पास करना चाहता हूँ जिसपर लांडे ने कहां कि समाज सेवा करने के लिए यूपीएससी पास करना ही जरूरी नहीं है आप दुसरे तरीकों से भी समाज का सेवा कर सकते है। सिर्फ यूपीएससी क्रैक या पास करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए बल्कि किसी भी तरह समाज की सेवा के बारे में सोचना चाहिए।

बहुत से लोगों ने उन से मिलने कि इच्छा प्रकट की जिसपर लांडे ने कहा वे उनके पटना स्थित उनके कार्यालय में मिलने आ सकतेयहै साथ ही उन्होने ने अपना मोबाईल नं. भी लोगों के साथ शेयर किया।
लोगों द्वारा उन्हें सिंघम और दबंग कहने पे उन्होने कहां की मैं न ही मैं सिंघम हूँ और न हीं कोई दबंग। मेरे माता-पिता ने मेरा नाम शिवदीप रखा है और मैं सिर्फ शिवदीप हूं।

पटना के संस्थान में मात्र 11 रूपया फीस देकर हर साल बनते IAS-IPS अफसर

गुरु जौहरी के तरह होता है जो कोयले से हीरे को तराश लेता है। गुरु अगर चाहे तो साधारण इंसान को भी महान बना दे।  बिहार के ही आचार्य चाणक्य थे जिसने एक साधारण से बालक चंद्रगुप्त मौर्य को शिक्षा दे हिन्दुस्तान का सबसे बडा सम्राट बना बना दिया था। आज भी बिहार के धरती पर ऐसे महान शिक्षकों की कमी नहीं है जो लगातार सैकरों बच्चों के भविष्य सवारने में लगे हुए है।  ऐसे ही महान शिक्षकों में से एक पटना के प्रसिद्ध गुरु रहमान।

 

जहां प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थान लाखों की फीस वसूलते हैं। वहीं, पटना के नया टोला में अदम्य अदिति गुरुकुल संस्थान है जो ग्यारह रुपया गुरु दक्षिणा लेकर छात्रों को दारोगा से लेकर आईएएस और आईपीएस बनाता है।

गुरुकुल की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां अन्य कोचिंग संस्थानों की तरह फीस के नाम पर भारी-भरकम रकम की वसूली नहीं की जाती, बल्कि छात्र-छात्राओं से गुरु दक्षिणा के नाम पर महज 11 रुपये लिए जाते हैं. 11 से बढ़कर 21 या फिर 51 रुपये फीस देकर ही गुरुकुल से अब तक ना जाने कितने छात्र-छात्राओं ने भारतीय प्रशासनिक सेवा से लेकर डॉक्टर और इंजीनियरिंग तक की परीक्षाओं में सफलता हासिल की है. 1994 में जब बिहार में चार हजार दरोगी की बहाली के लिए प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित की गई थी तो उस परीक्षा में गुरुकुल से पढ़ाई करने वाले 1100 छात्रों ने सफलता हासिल की थी जो एक रिकॉड है।

कई राज्यों से बच्चें आते है पढने

पटना के नया टोला में चलने वाले गुरुकुल में ऐसा नहीं है कि सिर्फ बिहार के छात्र पढ़ते हैं बल्कि गुरुकुल में झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से भी छात्र आकर गुरु रहमान से टिप्स लेते हैं. गुरुकुल में हर साल प्रतियोगिता परीक्षाओं के परिणाम निकलने के समय जश्न का माहौल रहता है. ऐसी एक भी प्रतियोगिता परीक्षा नहीं होती जिसमें गुरुकुल से दीक्षा हासिल किए छात्र सफलता नहीं पाते हों.

 

गुरु रहमान को है वेदों का अच्छा ज्ञान
गुरुकुल के संचालक मुस्लिम समुदाय के हैं, इसके बाबजूद रहमान को वेदों का अच्छा ज्ञान है. गुरुकल में वेदों की भी पढ़ाई होती है. रहमान एक गरीब परिवार से हैं यही कारण है उन्हें गरीब छात्र-छात्राओं की दर्द का एहसास है. गरीब छात्रों को ही ध्यान में रखकर रहमान ने गुरुकुल की शुरुआत की थी. रहमान का मानना है कि गरीबी का मतलब लाचारी नहीं होता बल्कि गरीबी का मतलब कामयाबी होता है. जिसे जिद और जुनून से हासिल किया जा सकता है. जो गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्र करते हैं.

शिवदीप लांडे के टीम ने कटिहार से अगवा कारोबारी की पुत्री स्पर्श उर्फ छवि को नेपाल से बरामद किया

देश के सबसे इमानदार अफसर में शुमार बिहार पुलिस के जबाज आईपीएस अफसर शिवदीप लांडे और उनकी एसटीएफ की टीम ने फिर कमाल कर दिया है।

पुरे कटिहार में ख़ुशी का माहौल. बिहार में कटिहार से अगवा कारोबारी की पुत्री स्पर्श उर्फ छवि अग्रवाल को एसटीएफ की टीम ने नेपाल पुलिस की मदद से विराटनगर से बरामद कर लिया है. अपहर्ताओं ने उसकी फिरौती के लिए 25 करोड़ रुपये की मांग की थी. डीआइजी पीके ठाकुर ने स्पर्श की बरामदगी की पुष्टि करते हुए बताया कि वह सकुशल है.

मालूम हो कि पांच दिनों पूर्व अपहरणकर्ताओं ने स्पर्श उर्फ छवि को कटिहार में स्कूल से लौटते वक्त अगवा कर लिया था. स्पर्श कटिहार के कुर्सेला पेट्रोल पंप मालिक भानु अग्रवाल की बेटी है. पूर्व सांसद के बेटे ने कारोबारी से उसकी रिहाई के बदले 25 करोड़ रुपये की मांग की थी. पुलिस एसडीपीओ लालबाबू यादव के मुताबिक इस केस में पूर्व राज्यसभा सांसद नरेश यादव के पुत्र संतोष यादव और उसके एक साथी सुनील ने स्पर्श के अपहरण के बाद उसके पिता भानु अग्रवाल से मोबाइल पर फोन कर पच्चीस करोड़ रुपये की फिरौती मांगी थी. इस बात की सूचना मिलने पर पुलिस छानबीन में जुट गयी थी.स्पर्श की बरामदगी के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बच्ची की बरामदगी के लिए एसटीएफ को भी लगा दिया था. एसटीएफ की टीम एसपी शिवदीप लांडे के नेतृत्व में बच्ची की बरामदगी के लिए नेपाल पहुंच कर लगातार छापेमारी कर रही थी. स्पर्श की बरामदगी के लिए एसटीएफ टीम को लगाये जाने से लोगों व परिजनों की उम्मीद जगी थी कि जल्द ही उनकी बच्ची को बरामद कर लिया जायेगा. एसटीएफ एसपी शिपदीप लांडे को तेजतर्रार एसपी के रूप में जाना जाता है. उन्होंने कई बड़े मामलों का खुलासा भी किया है.

जब से एसटीएफ का कमान शिवदीप लांडे के हाथों में गया है तब से एसटीएफ बिहार पुलिस के लिए सबसे बडा हथियार बन के उभरा है।  अपराधियों के बिच शिवदीप लांडे के नाम का आतंक कायम हो रहा है।  अपराधी क्राईम कर कहीं भी छुप जाए एसटीएफ की टीम उसे खोज दबोच ही लेती है।

बिहार के दो लाल हरियाणा पुलिस में एक साथ बने पुलिस महानिदेशक

बिहार के लोग लोग विश्वभर में राज्य का नाम गौरव कर रहे हैं, ऐसे में ये खबर बिहारियों के लिए कोई आश्चर्य की बात नही है।

हरियाणा पुलिस में पहली बार बिहार मूल के दो आईपीएस ने एक साथ शिखर (पुलिस महानिदेशक के पद तक) पर पहुंचने का गौरव हासिल किया है। दोनों 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। पीआर देव बिहार के बेतिया के रहने वाले हैं जबकि डा. बीके सिन्हा बिहार के गया निवासी हैं। देव डेपुटेशन पर राइट्स लिमिटेड (रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनोमिक सर्विस) में मुख्य सतर्कता अधिकारी हैं जबकि डा. सिन्हा के पास विशेष पुलिस महानिदेशक (स्टेट विजिलेंस) की जिम्मेदारी है। दोनों को एक साथ कुछ दिनों पहले ही पदोन्नत किया गया है।

 

बिहार मूल के आईपीएस देश के कई राज्यों के पुलिस महकमे में शिखर पर पहुंचे हैं। अ‌र्द्ध सैनिक बलों में भी कई आईपीएस शिखर तक पहुंचे हैं। हरियाणा में पहली बार एक साथ दो आईपीएस शिखर पर पहुंचे हैं। दोनों की महकमे में विशेष पहचान है। दोनों के एक साथ अपने महकमे में शिखर पर पहुंचने से बिहार मूल के हरियाणा में रह रहे लोगों में खुशी का आलम है। आर्यावर्त जन कल्याण संघ के संरक्षक विनय कृष्ण एवं पूर्वाचल एकता मंच के महासचिव सत्येंद्र सिंह कहते हैं कि दोनों अधिकारियों की इस ऊंचाई से बिहार मूल के बच्चों को विशेष रूप से प्रेरणा मिलेगी। बच्चे अपने प्रदेश से बाहर जाकर भी बेहतर करने के लिए प्रेरित होंगे। एक-दूसरे राज्य में जाकर बेहतर करने से राज्यों के लोगों के बीच निकटता भी बढ़ती है। बता दें कि कुछ महीने पहले ही मूल रूप से गुड़गांव के सरहौल निवासी एसके भारद्वाज बिहार में पुलिस महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। सेवानिवृत्ति पर गुड़गांव में रह रहे बिहार मूल के लोगों ने उनका गर्मजोशी से अभिनंदन किया था।

 

दिल में बिहार से कम नहीं हरियाणा

 

राइट्स में मुख्य सतर्कता अधिकारी पीआर देव कहते हैं कि बिहार जन्मभूमि है लेकिन कर्मभूमि हरियाणा ही है। हरियाणा से ही नाम, मान व सम्मान मिला है। अब तो कई बार ऐसा लगता है जैसे हरियाणा के ही हैं। विभिन्न पदों पर रहते हुए बेहतर करने का अवसर मिला है। आगे भी बेहतर करने का अवसर मिलेगा। यदि व्यक्ति सकारात्मक दृष्टिकोण से काम करे तो वह कहीं भी जाकर अपनी बेहतर पहचान बना सकता है। अधिकतर लोग काम देखते हैं, यह नहीं देखते कि कहां का रहने वाला है, किस जाति का है, किस धर्म का है। आवश्यकता है कि जहां भी जिम्मेदारी मिले, उसे ईमानदारी से निभाने की। जब आप जिम्मेदारी निभाने में कोताही करते हैं तभी लोग बारे में लोग नकारात्मक सोचने को विवश होते हैं।