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160 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से दिल्ली-बिहार-हावड़ा के बीच चलेंगीं ट्रेनें, कैबिनेट ने लगाई मुहर

लम्बी दूरी तय करने के लिए आज भी ट्रेन लोगों के लिए सबसे बड़ा साधन है| बिहार के लोग रोज़गार को लेकर ट्रेन के माध्यम से देश के अलग-अलग हिस्सों में जाते हैं, मगर बिहार से गुजरने वाली सभी ट्रेनों की रफ़्तार बहुत कम होती है| इसको लेकर एक अच्छी खबर आ रही है|

सरकार ने दिल्ली-हावड़ा मार्ग पर ट्रेन की रफ्तार बढ़ा कर 160 किलोमीटर प्रति घंटा करने के रेलवे के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है| इससे यात्रा में करीब पांच घंटे कम लगेंगे| रातभर में ही गंतव्य स्थल तक पहुंचा जा सकेगा|

गौरतलब है कि इस रूट पर चलनेवाली ट्रेनें दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड तथा पश्चिम बंगाल से गुजरती है| इससे इन इलाकों के यात्रियों को फायदा होगा|

भी सबसे तेज चलने वाली राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली से मुंबई का सफर लगभग 15 घंटों में पूरा होता है| वहीं दिल्ली से हावड़ा जाने में लगभग 17 घंटे लगते हैं| दिल्ली-मुंबई मार्ग के लिए 2022-23 तक प्रॉजेक्ट की लागत 6,806 करोड़ रुपये होगी, वहीं दूसरे मार्ग के लिए लागत 6,685 रुपये होगी| यह रेल मंत्रालय के 100 दिनों के एजेंडे का हिस्सा था|

ये फैसले सोमवार को हुई कैबिनेट की बैठक में लिए गए| लेकिन इन्हें बुधवार को सार्वजनिक किया गया. कैबिनेट की उसी बैठक में कश्मीर संबंधी फैसलों पर चर्चा हुई थी| सरकार के एक बयान में कहा गया है कि इन मार्गों पर ट्रेनों की गति बढ़ने से बेहतर सेवाएं और सुरक्षा सुनिश्चित होगी और क्षमता का निर्माण होगा|

बयान में कहा गया है कि दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा रेलखंड पर गति बढ़ाकर 160 किमी प्रति घंटे करने से यात्री ट्रेनों की औसत गति में 60 प्रतिशत तक की वृद्धि और मालढुलाई यातायात की औसत गति दोगुनी हो जाएगी| इन दोनों रेलखंडों पर 29 प्रतिशत यात्री यातायात और 20 प्रतिशत मालढुलाई यातायात है|

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दिल्ली की तरह पटना के सड़कों पर भी दौरेंगी सीएनजी बसें, जारी हुआ टेंडर

दिल्ली और देश के अन्य बड़े शहरों के तरह अब पटना में भी सीएनजी बसें दौरेंगे| बिहार राज्य परिवहन निगम जल्द ही पटनावासियों को सीएनजी बसें मुहैया करवाने की कोशिश में है| निगम ने कुल 20 बसों की खरीद के लिए टेंडर निकाले हैं जिनमें 10 सीएनजी हैं और 10 डीजल|

अगस्त से सड़कों पर सीएनजी से चलने वाली बसें दौड़ लगाने लगेंगी। शहर के 14 रूटों पर वर्तमान में 120 सिटी बसें चल रही हैं। 50 हजार से अधिक यात्री प्रतिदिन यात्रा कर रहे हैं। 

परिवहन सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने बताया कि पटनावासियों ने सिटी बस सेवा को पसंद किया है। यातायात व्यवस्था में बड़े पैमाने पर बदलाव आया है। सिटी बसों के चलने के कारण बहुत से लोगों ने अपने वाहन के बदले सिटी बस से कार्यालय आना-जाना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि सीएनजी बसों के चलने से शहर के प्रदूषण में काफी कमी आएगी।

नयी बसों के आने से बीएसआरटीसी की नगर सेवा के बसों की संख्या बढ़ कर 130 को जायेगी| इनमें 120 डीजल चालित, जबकि  10 सीएनजी बसें होंगी| ज्ञात हो कि इन दिनों बीएसआरटीसी की नगर सेवा के अंतर्गत 110 बसें चल रही हैं, जिनमें से सभी डीजल चालित हैं| पहले चरण में सभी 10 बसें शहर के भीतर ही दिया जायेगा और बाद वाले चरण में आसपास के जिलों में सीएनजी बसें चलेंगी|

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एही से छठ पर्व “महापर्व” कहाला

काँच ही बांस के बहंगिया बहँगी लचकत जाये
पहनी ना देवर जी पियरिया बहँगी घाटे पहुचाये”!!

ई गीत सुनते ही मनवा मे एगो लहर उठेला, दिल खुश हो जाला, छठ महापर्व के आगमन हो जाला। सभे बिहारी, परदेसी चाहे विदेसी छठ में अपना देस जरुर आवेला लोग भले एकरा खातीर ट्रेन के भीड़-भडा़का मे कुचलाए के पडे़।

छठ महापर्व के लीला ऐतना अपरंपार होला की तीवईया तीन दिन के निर्जला व्रत बिना कोउनो परेसानी के सारा विधि-विधान से ई पर्व खुशी-खुशी मनावेली।

नहाए-खा से शुरु होखे वाला ई पर्व तीन दिन तक चलेला।

माई गेहूं धो के दू दिन तक धूप मे सुखावेली फेर बाबूजी जाता मे पिसवाएनी।
नहाए-खा वाला दिन के घी वाला घीया के तरकारी और रोटी, और खरना (दूसरका दिन) के चुल्हा पर के गुड़ के खीर मनवा के और जीभ के मोह लेला।

नहाय खाय से शुरू होती है छठ महापर्व

दऊरा सजावल जाला तरह-तरह के फल-फुल, ठेकुआ, खजूर और दीयरी से| माई के ओठ प्यासल रहेला लेकिन छठी मईया के गीत झूमझूम के गावेली। बाबूजी पियरी पहिन दउरा घाटे लेकर जाएनी और माई, चाची, मौसी आपन आपन सिंदूरा लेकर, अलता से सजावल आपन पैर के पैजनीया रुनझून बजावत चलेली। साथ ही भईया के कांधे लचकत ऊखीया बडा़ निमन लागेला। घाट के खुबे शोभा बढे़ला जब सभे वरती पानी बीच खडा़ होकर सुर्य देवता के अरघ देवेले। बाबा जी घाटे बारहो बाजा बजवावेनी और खूब थपरी पीट-पीट के ठुमकेनी।

छठ महापर्व के एतना गुणगान होला की हर कोई जाने के चाहेला आखिर ई पर्व ‘महापर्व’ काहे कहाला?

हमहु ई जाने खातिर अपना माई से पूछनी। ऊ बतइली की –

“ई पर्व बिहार और हर बिहारीवासी खातिर सबसे बड़ पर्व होखेला काहे से की ई धारणा बा की ई पर्व के शुरूआत सबसे पहिले अंगराज कर्ण से भइल। अंग प्रदेश वर्तमान मे भागलपुर ह, जउन ब‌िहार में स्‍थ‌ित बा।

कर्ण के माता कुंती और सुर्य देवता के पुत्र मानल जाला। कर्ण सूर्य देवता के भक्त रहनी और नियम से कमर तक पानी मे खडा़ होकर सूर्य देव के पूजत रहनी और गरीबन के दान देत रहनी। कार्तिक शुक्ल षष्ठी और सप्तमी के दिने कर्ण सूर्य देव के विशेष पूजा करत रहनी। आपन राजा के सूर्य भक्ति से प्रभावित होके अंग देश के सभे निवासी सूर्य देव के पूजा करे लागल|

धीरे-धीरे सूर्य पूजा पूरा बिहार और पूर्वांचल मे फैल गइल। शुरू मे ई पर्व बिहार और उत्तर प्रदेश में ही मनावल जात रहे फेर धीरे-धीरे बिहार के लोग विश्व में जहां भी रहेला लोग ओजा ई पर्व के ओ ही श्रद्धा और भाव-भक्ति से मनावेला लोग।

ई पर्व से जुड़ल एगो और पौराण‍िक कथा बा कि कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री के जन्म भइल रहे. प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न भइली षष्ठी माता बालकन सब के रक्षा करे वाली विष्णु भगवान द्वारा रचल गइल माया रहली।

….वैसे और भी कथा छठ पर्व से जुड़ल बा।”

तबही पीछा से मौसी कहली “ए बबुनी छठी मईया के महिमा अपरंपार बा, कब्बो खाली हाथ न जाए देवेली अपना तीवईया लोग के, सभे लोग के सपना पूरावेली त काहे न ई पर्व ‘महापर्व’ कहाई।”

शाम के अरघ के बाद रात मे कोसी भराला, सोहर गवाला, सभे गीत गावेला, जगमग दीयरी जरेला। माई के सिंदुरवा आज बडा़ सोहाला काहे से की आज ई नाक पर से माथा तक लागेला। ई सिंदुर बतावेला की माई छठी मईया से आपन सुहाग के लंबा उमर मांगत बारी।
छठ के सुबह वाला अरघ खातिर सुबह ३ बजे से ही चहलकदमी शुरु हो जाला, कल्पना और शारदा सिन्हा के गीत गूंजे लागेला। ठंडी मे रजाई छोड़कर उठे के पडे़ला, लेकिन घाटे जाए के खुशी के आगे नींद भी न सुहावन लागेला। सब लोग के उठे से पहिले माई तीन-चार खल के तरकारी बना देवेली।

घाटे के कमर तक के ठंडा पानी मे खडा़ होके, कप-कपाइल हाथ मे सूप लेकर, किटकिटाइल दांत और आँख मे एगो आस लिए सभे वरती सुर्य देव के राह ताकेला। ए दिन सुर्य देवता भी तनी नखरा दिखाएनी और ऊगे मे देर करेनी। पीछा से कल्पना अपना गीत मे कहेली की “ऊग हो सुरूज देव, भइल भिनुसरवा,अरघ के रे बेरवा,पुजन के रे बेरवा नू हो”

और सुर्य देवता के पहिला किरण लौकते ही सभे अरघ देकर आपन व्रत सफलतापुर्वक खत्म करेला लोग। और गरम पानी से आपन तीन दिन के व्रत पे विराम लगा देवेला लोग।

छठ महापर्व के महिमा पूरा जगजाहिर बा। यहा तक कि बिहार के मुस्लिम लोग भी ई महापर्व के मनावेला लोग और धीरे-धीरे पूरा विश्व मे धूमधाम से मनावल जाला।

जय घठी मईया

– शिल्पा कुंवर

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खुबसूरत मिथिला पेंटिंग से सजाई गयी बिहार संपर्क क्रांति एक्स्प्रेस

मधुबनी रेलवे स्टेशन को मिथिला पेंटिंग से सजाने के बाद अब धीरे-धीरे रेलवे मिथिला की सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत, मिथिला पेटिंग के रंग में रंगता जा रहा है| दरभंगा से नई दिल्ली जाने वाली बिहार संपर्क क्रांति एक्सप्रेस के नौ डिब्बों को मधुबनी पेंटिंग के रंग में रंगा गया है। बिहार की संस्कृति को समेटे दरभंगा से चलकर नौ डिब्बों के साथ यह ट्रेन जब शुक्रवार को नई दिल्ली पहुंची तो हर कोई इसकी खूबसूरती निहारने लगा।

बोगियों पर मिथिला पेंटिंग को पिछले एक महीने में 50 से अधिक महिला कलाकारों ने मिल कर बनाया है| हालांकि, अभी पूरी ट्रेन पर यह पेंटिंग नहीं हुई है| लेकिन, धीरे-धीरे ट्रेन की सभी कोचों पर यह पेंटिंग किया जा रहा है|

मीडिया से बात करते हुए DRM रविंद्र जैन ने कहा कि यह ट्रेन जिस रेल रूट से गुजरेगी, उधर ही मिथिला पेंटिंग का प्रचार -प्रसार होगा| इससे न सिर्फ मिथिला पेंटिंग को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि ट्रेन की खूबसूरती भी बढ़ गयी है| वहीं, ट्रेन में सफर करने वाले लोग अपने आप को गौरवान्वित भी महसूस कर सकते है| उन्होंने बताया कि रेलवे ने इसे एक प्रयोग के रूप में शुरू किया है| इसके परिणाम अच्छे आने पर, आने वाले दिनों में और भी ट्रेनों की बोगियों पर मिथिला पेंटिंग की जायेगी| इधर उद्घाटन के पहले दिन इस ट्रेन में सफर करनेवाले लोग भी न सिर्फ खुशकिस्मत मान रहे है| तो वहीं, रेलवे के इस प्रयास की प्रशंसा भी कर रहे है| पहली बार मिथिला पेंटिंग से सजी ट्रेन के पहली बार पटरी पर आने से मिथिला पेंटिंग करने वाले महिला कलाकार काफी उत्साहित नजर आये|

मधुबनी स्टेशन पर की गई थी पेंटिंग
बिहार संपर्क क्रांति की बोगियों को सजाने का काम महिला कलाकारों ने किया है। बता दें कि इससे पहले भारतीय रेलवे द्वारा ‘रेल स्वच्छ मिशन’ के तहत मधुबनी स्टेशन की दीवारों पर भी इसी तरह की पेंटिंग बनाई गई थी। इस स्टेशन में सफाई अभियान चलाया गया था, जिसमें कलाकारों ने वेतन की मांग न करते हुए 14 हजार वर्ग फीट की दीवार तो ट्रेडिशनल मिथिला स्टाइल में पेंट किया था।

इस स्टेशन की दीवारों और फुटओवर ब्रिज पर यहां की परंपरागत मधुबनी पेंटिंग बनाई गई है। इस वजह से अब मधुबनी स्टेशन यात्रियों के आकर्षण का खास कारण बन गया है। दूर-दूर से लोग इस पेंटिंग को देखने आते हैं।

 

जब दिल्ली में मिला एक बिहारी, जिसके दिल में मुझे दिखा ‘अपना बिहार’

कुछ दिन पहले ही बिहार से दिल्ली आया हूँ और किसी कारण वश इस बार दिवाली में घर नहीं जा पाया। मेरे लिए दिल्ली नई और अनजान है। कॉलेज की छुट्टी थी, तो केशव झा सर, जिनकी दिल्ली में सॉफ्टवेयर की एक कंपनी है और जो ‘आपन बिहार’ के टेक्निकल प्रमुख भी हैं, के साथ आज दिल्ली घूम रहा था। उनके कुछ खास क्लाइंट से भी मिलने का मौका मिला।

इसी क्रम में एक बड़ी टेक्सी कंपनी के कार्यालय, जो दिल्ली के वसंतकुंज में स्थित है, वहां जाने का मौका मिला। कार्यालय में दिवाली के जश्न का माहौल था। कार्यालय में जाते ही कर्मचारियों के बीच से एक युवा, अचंभित पर मुस्कुराते से चेहरे के साथ मेरी तरफ बढ़ा और हाथ मिलाते हुए बोला, “अरे! अविनाश जी आप यहां? कैसे हैं?”

मैं भी हैरान था। आश्चर्य में पूछा, “आप हमें पहचानते हो?” उन्होंने कहा, “हाँ, अविनाश हो, ‘आपन बिहार के संस्थापक और एडमिन। आपको हम बहुत दिनों से जानते हैं। अपना बिहार को वर्षों से फौलो करता हूँ, उसका पोस्ट पढ़ता हूँ और सबको दिखाता भी हूँ। आपके सोच, विचार और काम का मैं फैन हूँ।”

उसके बाद उन्होंने अपने कार्यालय में और भी बिहारी लोगों से मिलवाया जो ‘अपना बिहार’ को पढ़ते हैं और पसंद करते हैं।

मैं पूरे घटनाक्रम से आश्चर्यचकित था, हैरान था। हलांकि इतना तो जानता था, पटना के बाद दिल्ली में ‘अपना बिहार’ के सबसे ज्यादा प्रशंसक हैं, उनकी प्रतिक्रिया भी मैसेज के द्वारा ही मिलती रहती है मगर पहली बार मैं इसे साक्षात देख रहा था, महसूस कर रहा था।

उनसे बात करने के बाद पता चला कि उनका नाम सुधांशु सत्यम झा है, हाजीपुर से हैं और अभी उस टैक्सी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। इसके बाद उन्होंने हमें अपने बॉस से भी मिलवाया।

सब से अच्छा तो तब लगा जब उनके बॉस ने मेरे सामने उनके काम और व्यवहार की जबरदस्त तारीफ की। बहुत गर्व महसूस होता है जब कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति आपके सामने उसकी तारीफ करे जो आपके गांव, समाज, राज्य या देश का हो। सुधांशु दिल्ली में ‘ब्रांड बिहार’ की छवि को और मजबूती प्रदान कर रहें है और रीयल बिहारी का उदाहरण भी दुरुस्त कर रहे हैं, वही बिहारी जो अपने ईमानदारी, काम और व्यवहार के कारण जाने जाते हैं।

‘अपना बिहार’ भी तो इसी ‘ब्रांड बिहार’ की छवि को 5 सालों से गढ़ने का प्रयास कर रहा है। मैं आज दिल से बहुत खुश हूँ। दिवाली में घर नहीं जा सका मगर आज दिल्ली में मैंने दिवाली और छठ दोनों मना लिया… आखिरकार मैंनें आज दिल्ली के दिल में भी ‘अपना बिहार’ जो देख लिया।


अविनाश कुमार, संस्थापक, अपना बिहार