​बिहार के करिश्माई लाल इशान किशन का जन्मदिन आज दीजिए बधाई

बिहार के करिश्माई लाल और श्री प्रणव पांडे एवं सुमित्रा सिंह के छोटे पुत्र ईशान जिस नाम से आज भारत का कोई क्रिकेट-प्रेमी अंजान नहीं है। अपने शानदार नेतृत्व के बदौलत फ़रवरी 2016 में बांग्लादेश में आयोजित अंडर 19 विश्वकप में भारतीय टीम को फाइनल में पहुंचाने वाला खिलाड़ी आज 19 वर्ष के हो गए हैं।
आईपीएल के इस सीजन में नवादा के इस तूफानी बल्लेबाज ने 11 मैचों में 27.70 की औसत और 134.46 के बढ़िया स्ट्राइक रेट के साथ 277 रन बनाए थे। उनका टूर्नामेंट में सर्वाधिक स्कोर 61 था। इशान के इस शानदार प्रदर्शन के लिए दक्षिण अफ्रीका में होने वाली आगामी त्रिकोणीय सीरीज के बाद होने वाली दो चार दिवसीय अभ्यास मैच के लिए चयन हुआ है। इस चार दिवसीय श्रृंखला में इशान को एकमात्र विकेटकीपर बल्लेबाज के रूप में शामिल किया गया है

ईशान बचपन में क्रिकेट सिर्फ मस्ती के लिए खेला करते थे उन्हें क्रिकेट में कोई खास दिलचस्पी नही थी जबकि उनके बड़े भाई राज किशन एक अच्छा क्रिकेटर बनना चाहते थे दोनों भाई शुरुआत के दिनों में पटना स्थित कोच उत्तम मजूमदार के कोचिंग में क्रिकेट खेला करते थे, उत्तम ईशान के खेल से काफी प्रभावित हुए और उन्हें लगा ये भविष्य में एक अच्छा क्रिकेटर बन सकता है इसके लिए उत्तम ने ईशान के पिता से मिलकर उन्हें झारखण्ड भेजने का सलाह दिया चुकी बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) का मान्यता बीसीसीआई द्वारा रद्द कर किया जा चूका है। क्रिकेट में अपना भविष्य संवारने के लिए ईशान वर्ष 2013 में रांची चले गए।

 

ईशान को झारखंड की ओर से पहला रणजी मैच खेलने का मौका 2014 के अंत में असम के खिलाफ मिला। इस मैच में उन्होंने ओपनिंग की। ईशान ने टिककर खेलने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन करते हुए 126 गेंदों में 60 रन बनाए, जिसमें 9 चौके शामिल थे। द्रविड हुए ईशान से प्रभावित दिया कफ्तानी का जिम्मा

अंडर-19 टीम के कोच और टीम इंडिया के दिग्गज ब्लेबाज रहे राहुल द्रविड़ वर्ल्ड कप से पहले टीम के खिलाड़ियों को भलीभांति परख लेना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने रोटेशन पॉलिसी अपनाई और न केवल खिलाड़ियों को रोटेट किया बल्कि कप्तान भी बदले। द्रविड़ ने बांग्लादेश और अफगानिस्तान के साथ खेली गई त्रिकोणीय सीरीज में जहां विराट सिंह और रिकी भुई को कप्तान के रूप में मौका दिया, वहीं हाल ही में भारत, श्रीलंका और इंग्लैंड के बीच खेली गई सीरीज में ऋषभ पंत और ईशान किशन को कप्तान के रूप में परखा। वे ईशान किशन की नेतृत्व क्षमता और खेल से प्रभावित हुए और संभवत: उनकी ही रिपोर्ट पर वेंकटेश प्रसाद की अध्यक्षता वाली जूनियर चयन समिति ने ईशान को अंडर-19 वर्ल्ड कप के लिए कप्तान चुन लिया।

अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे इशान 7 साल की उम्र से क्रिकेट खेल रहे इशान किशन की मां उन्हें डॉक्टर बनाना चाहती थी। वह चाहती थी कि बेटा खेल छोड़ पढ़ाई करे। वहीं, इशान दिनभर क्रिकेट खेलते रहते थे। वह सोते भी बैट साथ लेकर, जिससे मां को लगता था कि बेटे के सिर पर कोई भूत सवार है। इस भूत को हटाने के लिए उन्होंने हनुमान चालीसा का पाठ भी किया था। बैट-बॉल साथ लेकर सोते थे इशान…

”इशान के इसी जुनून के चलते उसे बचपन में स्कूल से निकाल दिया गया था।”

– ”वह पढ़ते वक्त टीचर की नजर से छुपकर कॉपी पर मैथ की जगह क्रिकेट की पिच का फोटो बनाते और फील्डिंग सजाते थे।”

Exclusive : महज 14 वर्ष के उम्र में टीवी जगत के सबसे बड़े रियलिटी शो के फर्स्ट रनरअप रहे बिहार के लाल केशव त्योहार

टीवी जगत् के सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम में से एक जी सारे गामा पा लिट्ल चैंप सीजन 5  में अपनी बेहतरीन गायकी की बदौलत लिटिल चैंपियनशिप प्रतियोगिता में प्रथम रनर अप रहने वाले बिहार के होनहार गायक केशव त्योहार ने महज 14 वर्ष की छोटी उम्र में बिहार का नाम रौशन किया था। इस प्रतियोगिता में देश भर से चुनिंदा बाल कलाकारों ने भाग लिया था। चोटी की टक्कर थी जिसमें केशव ने शुरू से ही अपनी छाप छोड़ रखी थी। प्रतियोगिता के दौरान प्रख्यात गायिका आशा  भोंसले उसकी गायकी की कायल हो गयी थी। उन्होंने उसकी गायकी की खुल कर तारीफ की थी। उसे चैंपियन के पद का बड़ा सशक्त दावेदार माना जा रहा था। वैसे फाइनल में प्रतिद्वंद्वी भी सशक्त थे। अपना कमाल दिखाते हुए केशव ने दर्शकों-श्रोताओं और सभी जजों का दिल जीत लिया था और साथ ही रनर अप का खिताब अपने नाम कर लोगों को दिखाया था की संसाधन के आभाव होने के बावजूद बिहारी अपनी मेहनत के बदौलत कैसे हर क्षेत्र में कमाल मचा रहे हैं। बधाई केशव ! हमें आप पर गर्व है।
पेश है इस चमकते बाल कलाकार के साथ अपना बिहार की खास बातचीत।

इतनी कम उम्र में इतना बड़ा मुकाम कैसे हासिल हुआ ?

नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है, अभी तो बस सफर की शुरुआत हुई है। वर्ष 2013 की बात है पटना के एसके मेमोरियल में एक म्यूजिक रियलिटी शो हुआ था जिसका मैं विनर था इसी शो के फिनाले तक पहूँचने वाली एक कंटेस्टेंट ने एक दिन मुझे कॉल करके सारे गामा पा के औडिशन के बारे में मुझे बताया, एक महिने तक औडिशन चला और फिर मेरा चयन हुआ और मैने अपना बेस्ट करने का हरसंभव प्रयास किया और मैं इस रियलिटी शो का फर्स्ट रनर अप रहा।

केशव को सम्मानित करते उनकेे गुरु रजनीश कुमार

आप जिस उम्र के हो उस उम्र में बच्चे लोग को अक्सर पैरेंट्स पढाई पर ध्यान केंद्रित करने कहते हैं ऐसे में आप अपना ज्यादा समय म्यूजिक पर कैसे दे पाते हैं ? 

मम्मी, पापा और छोटे भाई के साथ के साथ केशव

नहीं मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मेरे मम्मी – पापा काफी सपोर्ट करते हैं। बचपन से ही मुझे खेलने के लिए खिलौने के जगह पर म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट मिला और खेलते – खेलते सबकुछ सिखा। और जाहिर है सारे गामा पा के ग्रांड फिनाले तक पहुँचने के बाद इनका मेरे ऊपर विश्वास और भी बढ़ा।

अपने गुरु गुलाम मुस्तफा के साथ केशव

म्यूजिक के अलावा पढ़ाई – लिखाई कैसी चल रही है ?

बढ़िया। इस बार दिल्ली पब्लिक स्कूल, पटना से दसवीं 9.6 सीजीपीए अंक के साथ पास किया और आगे की पढाई फिलहाल पटना से ही जारी रहेगी।

आपके इंसपीरेशन

मेरे मम्मी – पापा मेरी इंसपिरेशन है। मेरी मम्मी खुद म्यूजिक फिल्ड से है। वो एक म्यूजिक टीचर है। इसके अलावा मेरा छोटा भाई काफी सपोर्टिव है, हमेशा मेरे साथ रहता है और मेरा हौशला बढ़ाता है।

आप किस सिंगर को अपना आईडल मानते हैं ?

म्यूजिक इंडस्ट्री का कोई ऐसा सिंगर नहीं है जिसका सबकुछ मुझे अच्छा लगता हो। कुछ खामियां तो सबमें होती है। मैं खामियों को हटाकर सब में जो अच्छाइयां है उससे कुछ सिखने का कोशिश करता हूँ।

बिहार सरकार की ओर से कोई मदद मिल रही है ?

बिहार टूरिज्म की ओर से आयोजित होने वाले लाईव शो में अक्सर मौका मिलते रहता है।

बिहार में क्या कुछ कमी महसूस होती है ?

हाँ ये तो सच्चाई है कि बिहार में बहुत कुछ की कमी है और म्यूजिक के फिल्ड के लिए तो यहाँ कुछ भी नहीं है। संसाधन के घोर आभाव हैं वरना किसी का शौक नहीं होता की अपना राज्य छोड़कर मुंबई जाकर सबकुछ करे।

बिहारी होने के कारण अक्सर लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है। क्या आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ ?

हाँ शो में मेरे साथ भी पहले ऐसा ही हुआ। शुरुआत में लोग मुझे अलग नजरिये से देखते थे, मुझे भोजपुरी गाने को कहते थे और वास्तविकता ये है कि मुझे भोजपुरी आती नहीं थी। मैं जब अंग्रेज़ी बोलता था तो वे सब आश्चर्य करते थे उन्हें लगता था एक बिहारी अंग्रेज़ी कैसे बोल सकता था।

आपके फर्स्ट रनरअप बनने के बाद कई बाल कलाकार आपके नक्शे कदम पर चलते हुए म्यूजिक की फिल्ड में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं उनके के लिए कोई खास संदेश ?

जो लोग म्यूजिक की फिल्ड में बेहतर करना चाहते हैं उनको मैं पूरे मेहनत और लगन के साथ तैयारी करने की सुझाव देता हूँ। साथ ही उनको कहूंगा खुद पर भरोसा जरूर रखें क्योंकि जबतक आप अपने उपर भरोसा नहीं करते है तबतक आपको सफलता नहीं मिलती।

मिलिए निफ्ट प्रवेश परीक्षा में देशभर में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली बिहार की इस बेटी से

​बिहार मतलब टॉपर और टॉपर मतलब फर्जी। जी नहीं बिहार मतलब ये नहीं होता है। नजरिया बदलिए बिहार बदल रहा है। बिहार के टॉपर की कहानी सिर्फ रुबी रॉय और गणेश तक ही सीमित नहीं है। बिहार ने देश को हर क्षेत्र टॉपर दिया जो देश और दुनिया के तरक्की में अपनी अहम भुमिका निभा रहे हैं। आईये आज आपको मिलाते हैं निफ्ट प्रवेश परिक्षा में अॉल इंडिया कैटोगरी रैंकिंग एक प्राप्त करने वाली बिहार की बेटी मुस्कान से।

मुस्कान बिहार की राजधानी पटना से है, वह दिल्ली पब्लिक स्कूल, पटना से 12वीं की परिक्षा 93% अंक के साथ उत्तीण की है। मुस्कान को निफ्ट प्रवेश परिक्षा में कैटोगरी रैंकिंग में पहला तथा सामान्य रैंकिंग में देश में 11वां स्थान प्राप्त हुआ है। मुस्कान को नेशनल इंस्टीट्यूट अॉफ डिजाइन प्रवेश परिक्षा में देशभर में कैटोगरी रैंकिंग में 5वां स्थान प्राप्त हुआ है।

1. पटना जैसे छोटे शहर से निफ्ट अॉल इंडिया रैंक एक तक का सफर कैसा रहा ?

इस सफर की शुरुआत उस छोटी सी उम्र से ही हो गयी थी जब मैं अपना पहला ड्राईंग बनायी थी। कला और डिजाइन हमेशा मेरा जुनून था, हमेशा कुछ सिखते रहने में मैं विश्वास करती हूँ और समाज में बदलाव के लिए हमेशा कार्य करूंगी।

2.आजकल अभिभावकों में एक ट्रेंड चल गया है, उन्हें अपने बच्चों का सुनहरा भविष्य मेडिकल या इंजीनियरिंग सेक्टर में ही दिखता है। ऐसे आप अपने अभिभावक को कैसे समझा पाई की आप डिज़ाइन में एक बेहतर कैरियर बना सकती हैं ? 

उन्होंने हमेशा मुझे समर्थन दिया है, वे हमेशा शक्ति स्तंभ जैसे मेरे पीछे खड़े रहे। वे हमेशा यही चाहते थे की मुझे वही करना चाहिए जो मुझे पसंद है। उन्होंने मुझे कभी भी मजबूर नहीं किया वे हमेशा मेरी प्रतिभा में विश्वास करते थे। और वो हमेशा यही चाहते थे कि पहले मैं एक अच्छा इंसान बनूँ।

3.आप अपने इस सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगी ?

मैं अपने मम्मी-पापा, दोस्तों और शिक्षकों को धन्यवाद देना चाहुंगी। आज मैं जो भी उन्हीं के बदौलत हूँ। मुख्यरुप से मैं संजय सिंह को धन्यवाद देना चाहुंगी, शायद उनके बिना ये संभव नहीं था। मुझे और रचनात्मक बनाने वाले संस्थान पहल का धन्यवाद देती हूँ। किसी चीज को सिखना तब मुश्किल नहीं लगता है जब आपके पास एक माहौल है जो पहल के रूप में मुझे मिला।

4.भविष्य में आप क्या करना चाहती हैं ?

मैं बदलाव को नया रुपरेखा देना चाहती हूँ। मैं एक प्रोडक्ट डिजाइनर बनना चाहती हूँ।

बिहार के अंशुमान ने अमेरिका में भारत का नाम किया रौशन, बनाया पनडुब्बी

बिहार के गया जिले के एक पान वाले के बेटे ने अमेरिका के सैनडिएगो शहर में चल रहे रोबोसब प्रतियोगिता में भारत का नाम रोशन किया है। इस प्रतियोगिता में भारत सहित 11 अन्य देश अमेरिका, कनाडा, जापान, चीन, रूस आदि शामिल थे। इस प्रतियोगिता में भारत को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है।

आईआईटी बॉम्बे के छात्रों के साथ बिहार का अंशुमन

आईआईटी बॉम्बे के छात्रों के साथ बिहार का अंशुमन

बिहार गया के अंशुमन के नेतृत्व में इंडियन इंस्टीच्युट ऑफ टेक्नोलॉजी बॉम्बे की टीम ने मिसाल कायम किया है। अमेरिका के सैनडियगो शहर में रोबोसब प्रतियोगिता में भारत समेत विश्व के 11 देशों में अमेरिका, कनाडा,  जापान, चीन, रुस आदि के इंजीनियरों की टीम ने शिरकत किया। प्रतिभागियों को स्वचालित पनडुब्बी बनाना था। पनडुब्बी को समुद्री वातावरण में विभिन्न रंगों के गुब्बारों की पहचान कर उसे छूना था। इसके अलावा कुछ सामग्री को उठाकर उसे एक से दूसरे जगह पर लेकर जाना था। जानिए अंशुमन के बारे में…

– पनडुब्बी का सबसे महत्वपूर्ण काम था छिद्रों की पहचान कर उसमें मिसाइल जैसी वस्तु डालना और विभिन्न आवाजों की पहचान करना।
– भारतीय टीम की बनाई गई पनडुब्बी ‘मत्स्या’ ने इन सभी अपेक्षाओं पर खरा उतर कर प्रतियोगिता में जीत दर्ज की।
– अंशुमन के नेतृत्व में 7 इंजीनियरों की टीम ने दूसरा स्थान हासिल किया। टीम में अंशुमन के अलावा तुषार शर्मा, अंगिता सुधाकर, हरि प्रसाद, जयप्रकाश और संदीप शामिल थे।
– सभी प्रतिभागियों ने अपने-अपने संस्थान से अपने निर्माण को लेकर प्रतियोगिता मे प्रदर्शन किया था।

अंशुमन के पापा चलाते हैं पान की दुकान

– इंडियन इंस्टीच्युट ऑफ बॉम्बे के छात्र अंशुमन कुमार उर्फ सोनू के पिता सुनील कुमार गया में पान की दुकान चलाते हैं जबकि मां मीना गुप्ता गृहिणी है।
– अपने बेटे की उपलब्धि से आह्लादित दोनों ने बताया कि अंशुमन बचपन से ही मेघावी था। अंशुमन तीन भाईयों में दूसरे स्थान पर है और इसका बड़ा भाई अभिराज भी इंजीनियर है।

कई मायनों में अहम हो सकता है पनडुब्बी का उपयोग

– मीडियाकर्मियों से बातचीत के दौरान अंशुमन ने कहा कि हमारा ध्येय भारत को यांत्रिकीकरण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है।
– भविष्य में इस तरह की पनडुब्बी भारतीय नेवी की मदद कर सकती है।
– समुद्र में जिस स्थान पर इंसान का पहुंचना मुश्किल है वहां इस तरह की स्वचालित पनडुब्बी कई तरह का काम कर सकती है जिससे देश रक्षा के क्षेत्र में और आगे बढ़ सकता है।
– इसके अलावा नेवी इसका इस्तेमाल अन्य कार्यों में भी कर सकती है।

डीएवी और क्रेन का छात्र रहा है अंशुमन

– अंशुमन ने गया कैंट एरिया के डीएवी से दसवीं की परीक्षा पास की थी। क्रेन स्कूल से उसने 11 वीं और 12 वीं की परीक्षा पास की थी।
– आईआईटी में चयन के बाद इंडियन इंस्टीच्युट ऑफ टेक्नोलॉजी बॉम्बे में वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है।

बिहार की बेटी प्रणति बनी ‘ इंडियाज नेक्स्ट टॉप मॉडल ‘

बिहार की बेटी प्रणति राय प्रकाश रविवार को मुम्बई में आयोजित टीवी रिएलटी शो ‘ इंडियाज नेक्स्ट मॉडल ‘ सीजन 2 के ग्रैंड फिनाले में कोलकाता की सुभमिता बनर्जी और असम की जानती हजारिका को हराकर ख़िताब अपने नाम की।

राजधानी के एसकेपुरी की रहने वाली प्रणति राय प्रकाश ने टीवी रिएलटी शो ‘इंडियाज नेक्स्ट टॉप मॉडल का खिताब जीता। कॉन्टेस्ट में कुल 13 प्रतिभागी थे जिसमें ग्रैंड फिनाले में तीन लड़कियों ने जगह बनाई थी। शो की जज लीजा हेडेन, डब्बू रत्नानी के साथ मेंटर अनुष्का दांडेकर और नीरज गाबा ने प्रणति के परफॉर्मेस को खूब सराहा।

फैशन डिजाइनर के साथ मॉडलिंग भी

प्रणति के पिता रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर हैं। पूरा परिवार अभी भी पटना के एसकेपुरी में ही रहता है। प्रणति ने भी बोर्ड तक की पढ़ाई पटना से की है। इसके बाद वह फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई के लिए मुंबई चली गई जहां निफ्ट में एडमिशन लिया। प्रणति ने कई सितारों के लिए ड्रेस डिजाइन तो किया ही, खुद भी मॉडलिंग भी हाथ आजमाए। प्रणति ने 2015 में मिस इंडिया कॉन्टेस्ट में भी हिस्सा लिया था और कई सब टाइटल जीतकर टॉप-21 में जगह बनाई थी।

गर्व है कि मैं बिहारी हूं

प्रणति ने शो जीतने के तुरंत बाद एक मीडियाकर्मी  से फोन पर बातचीत की। कहा कि शो जीतने की बहुत खुशी है। पटना से मुंबई में मॉडल हंट का विजेता बनने का सफर इतना आसान नहीं था। लोग बिहार की लड़कियों को फैशन के मामले में पिछड़ा समझते हैं, मगर ऐसा नहीं है। गर्व है कि मैं बिहारी हूं। प्रणति ने अपनी सफलता का श्रेय मम्मी-पापा को भी दिया, जिन्होंने उसे हर कदम पर सपोर्ट किया।

प्रियंका चोपड़ा हैं आदर्श

प्रणति अभी तक कई इंटरनेशनल ब्रांड के विज्ञापन में बतौर मॉडल नजर आ चुकी हैं। मॉडलिंग के अलावा प्रणति की रुचि एक्टिंग में भी है। वह कहती हैं कि प्रियंका चोपड़ा मेरी आइडल हैं। उन्होंने अपने बल पर खुद को स्थापित किया और हर जगह अपने शहर को, अपने देश को रिप्रजेंट किया।

#BihariKrantikari : दिनकर की रचनाओं से घबराती थी अंग्रेजी हुकूमत

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वैसी कविता जो मन को आंदोलित कर दे और उसकी गूंज सालों तक सुनाई दे. ऐसा बहुत ही कम हिन्दी कविताओं में देखने को मिलता है. कुछ कवि जनकवि होते हैं तो कुछ को राष्ट्रकवि का दर्जा मिलता है मगर एक कवि राष्ट्रकवि भी हो और जनकवि, यह इज्जत बहुत ही कम कवियों को नसीब हो पाती है. रामधारी सिंह दिनकर ऐसे ही कवियों में से एक हैं  जिनकी कविताएं किसी अनपढ़ किसान को भी उतना ही पसंद है जितना कि उन पर रिसर्च करने वाले स्कॉलर को.
दिनकर की कविता इस समय भी उतनी ही प्रासंगिक मालूम होती है, जितनी कि उस दौर में जब वह लिखी गई थी. समय भले ही बदल हो लेकिन परिस्थितियां अभी भी वैसी ही हैं.
आजादी से पहले और उसके बाद सालों तक जिनकी कविता गरीबों-आमजनों की आवाज बनकर गूंजती रही. वही राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के मौजूदा बेगुसराय (तब मुंगेर) जिले के सिमरिया घाट में हुआ था.

वर्ष 1935 में रचित रेणुका और वर्ष 1938 में हुंकार जैसी दिनकर  की रचनाओं में वो ताकत थी जिससे अंग्रेजी हुकूमत भी घबराने लगी थी तभी तो अंग्रेजी सरकार दिनकर के खिलाफ फाइलें तैयार करने लगी थी, बात-बात पर उन्हें धमकियां दी जाती थी यहां तक की चार वर्ष में उनका बाइस बार तबादला भी किया गया था.
उनके कविता की पक्तियों ने देशवासियों में राष्ट्रभक्ति का एक नया रक्त संचार किया और दिनकर बन गए राष्ट्रकवि।

1947 में देश आजाद हुआ तो रामधारी सिंह दिनकर बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष बनाए गए. 1952 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दिनकर को राज्यसभा सदस्य बनाया.
1965 से 1971 तक वो भारत सरकार के हिंदी सलाहकार रहे. हिंदी भाषा की सेवा के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया .
उनकी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय को साहित्य अकादमी पुरस्कार और उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला. महाभारत पर आधारित उनके प्रबंध काव्य कुरुक्षेत्र की गिनती दुनिया के सौ सर्वश्रेष्ठ काव्यों में होती है.

कमजोरों के हक में खड़े होकर व्यवस्था की खिलाफ आवाज उठाने के इस तेवर ने दिनकर की कविताओं को जनता की जुबां पर ला दिया.

” आजादी तो मिल गयी, मगर यह गौरव कँहा जुगाएगा

मरभुखे! इसे घबराहट में तू बेच तो न खायेगा “

तुम नगरों के लाल, अमीरों के पुतले
क्यों व्यथा भाग्यहीनों की मन में लाओगे ?
जलता हो सारा देश, किन्तु होकर अधीर तुम दौड़-दौड़कर
क्यों यह आग बुझाओगे

रामधारी सिंह दिनकर की पक्तियों में वो ताकत है जो किसी क्रांति के आगाज के लिए काफी है, तभी तो 70 के दशक में सम्पूर्ण क्रांति के दौर में दिल्ली के रमलीला मैदान में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन सरकार के खिलाफ विद्रोह की शंखनाद दिनकर की इन पंक्तियों ” सिंहासन खाली करो की जनता आती है “ के उद्घोष के साथ किया था।

पत्थर सी हो मांसपेशियां
लौहदंड भुजबल अभय
नस-नस में हो अगर लहर आग की
तभी जवानी जाती जय

24 अप्रैल 1974 को रामधारी सिंह दिनकर जी अपने आपको अपनी कविताओं में जीवित रखकर सदैव के लिए अमर हो गए।