अयोध्या के तर्ज पर सीता जन्मभूमी सीतामढ़ी में भी मनाई जाएगी दीपोत्सव

राम के जन्मस्थान अयोध्या के बाद अब उनके ससुराल और जनक नंदनी माता सीता के जन्मभूमी सीतामढ़ी के भी कायाकल्प की चर्चा चल रही है। दिवाली में दीपों की रौशनी में सजी अयोध्या को काफी पसंद किया गया था। अब खबर है कि अयोध्या के तर्ज पर सीतामढ़ी को भी दीपों से सजाया जाएगा।

बिहार सरकार सीतामढ़ी में सीता जी का जन्मोत्सव मनाने की तैयारी कर रही है। इस मौके पर सीतामढ़ी में त्रेतायुग जैसा माहौल बनाया जाएगा और पूरे नगर को दीपों की रौशनी से नहलाया जाएगा।

इस से संबंधित प्रस्ताव को पयर्टन विभाग ने तैयार करके केंद्र सरकार को भेजा है। हालांकि अभी इसकी तिथि तय नहीं हुई है।

पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार ने कहा है कि कार्यक्रम अयोध्या के तर्ज पर ही होगा। इसको लेकर प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है। केंद्र से मंजूरी मिलते ही इसपर काम शुरू की जाएगी।

कार्यक्रम मुख्य रूप से सीतामढ़ी में ही केन्द्रित होगी मगर इसका आयोजन राम और सीता जी से जुड़े अन्य स्थान पर भी किया जाएगा।

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जैसे दिल्‍ली को लूटियन ने बनाया, बिहार के राजनगर को ब्रिटिश वास्तुकार कोरनी ने बनाया था

मधुबनी शहर से 15 किलोमीटर उत्तर खंडवाला राजवंश की आखिरी डयोढी राजनगर का निर्माण महाराजा महेश्वर सिंह के छोटे बेटे रामेश्वर सिंह के लिए कराया गया था। जिस प्रकार दिल्‍ली को लूटियन ने बनाया, उसी प्रकार राजनगर को ब्रिटिश वास्तुकार डॉ एम ए कोरनी ने मन से बनाया था। कहा जाता है कि कोरनी तिरहुत के कर्जदार थे और कर्ज चुकाने के बदले उन्‍होंने अपने हुनर को यहां ऐसे उकेरा कि वो वास्‍तुविदों के आदर्श बन गये।

दरभंगा राज के कर्जदार कोरनी कर्ज चुकाने के बदले एक ऐसी चीज देने का वादा किया था, जो वो तब तक किसी भी भवन में नहीं प्रयोग किये थे।

उनका दावा था कि यह दुनिया का सबसे मजबूत खंभा है और इसपर टिका महल कभी ध्वस्त नहीं होगा। सबने सुना है टाइटैनिक को बनानेवाले भी उसे कभी न डूबनेवाला जहाज कहा था। वो अपने पहले सफर में ही डूब गया और बचा रहा तो केवल उसका मलबा और इतिहास। इस सचिवालय ने भी 1934 में भूकंप का केंद्र होने का प्रकोप झेला। महल तो ध्वस्त हो गया, लेकिन यह खंभा कोरनी को याद करता हुआ आज भी खडा है।

सचिवालय के दरबाजे पर हाथी की प्रतिमा की कहानी भी कम रोचक नहीं है। दरअसल जब ब्रिटिश वास्तुदविद एमके कोरनी ने रामेश्वेर सिंह को सीमेंट की खूबी यह कहते हुए बतायी कि यह इतना मजबूत ढांचा देगा कि हाथी भी तोड नहीं पायेगा, तो उन्होंने कोरनी से पहले सीमेंट से एक हाथी बनाकर दिखाने को कहा।

कोरनी ने वहीं एक हाथी बनाया, जो भारत में सीमेंट से बना पहला ढांचा है। भारत में सबसे पहले सीमेंट का प्रयोग राजनगर के भवन निर्माण में यहीं हुआ। रामेश्वर सिंह ने इस ढांचे को देखकर कहा कि इसे तोड़ा नहीं जाये, बल्कि सचिवालय का स्वरूप ही इससे जोड़ दिखा जाये। कोरनी ने ऐसा ही किया। यह सीमेंट का हाथी उस सचिवालय का प्रवेश दरबाजा बन गया।

आज सीमेंट खरीदते वक्‍त हम जरूर जर्मन और विदेशी तकनीक पर विश्वास करते हैं और महंगा नहीं सबसे बेहतर का नारा बुलंद करते हैं, लेकिन सीमेंट की तकनीक और इसका इतिहास तो राजनगर में ही देखा जा सकता है।

इस महल के संरक्षण एवं संवर्द्धन के प्रति जहां राज्‍य सरकार उदासीन है, वहीं केद्र सरकार को तो मानो पता भी नहीं है कि इस देश में कोई ऐसी जगह भी है।

Photo Courtesy: दो घुमक्कर

 

पर्यटन के किसी मानचित्र पर राजनगर आज तक नहीं होना अपने आपमे ये बताने को काफी है कि हमारे धरोहरों को कैसे उपेक्षित किया जा रहा और रही हम सबकी बात तो कल ही राजनगर के स्थानीय लोगों से पता चला कि इस महल की दीवालों में से ईंट निकाल कितनों ने अपना घर बनाया है।

साभार: राकेश कुमार झा (लेखक craftvala.com के संस्थापक हैं) 

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देश में भगवान बुद्ध की दूसरी सबसे ऊंची प्रतिमा का बिहार के राजगीर में हुआ अनावरण

बिहार के नालंदा जिले में स्थित राजगीर अपने एतिहासिक कारण और खूबसूरती के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है|  राजगीर की खूबसूरती और इसकी उपलब्धि में अब एक और अध्याय जुड़ गया है|

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को राजगीर महोत्सव का उद्घाटन करने से पहले घोडाकटोरा स्थित भगवान बुद्ध की 70 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया। यह देश में भगवान बुद्ध की दूसरी सबसे ऊंची प्रतिमा है।

इस अवसर पर आयोजित धार्मिक अनुष्ठान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी पहुंचे। मुख्यमंत्री ने अपने हाथों से धार्मिक प्रक्रियाएं पूरी की।

सारनाथ में स्थापित प्रतिमा की प्रतिकृति

भगवान बुद्ध की यह प्रतिमा सारनाथ में स्थापित प्रतिमा की प्रतिकृति है। घोड़ा कटोरा में बुद्ध की प्रतिमा की स्थापना का महत्व इसलिए भी अधिक है कि इसके ठीक पीछे गिरियक की तरफ घोड़ा कटोरा पहाड़ी पर बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य सारिपुत्र की अस्थियां स्तूप में दफन हैं। स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने कराया था। बुद्ध सारिपुत्र को अपने समानांतर मानते थे। सारिपुत्र ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में बड़ी भूमिका निभाई थी।

राजगीर महोत्सव का किया उद्घाटन 

प्रतिमा अनावरण के बाद मुख्यमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में तीन दिवसीय राजगीर महोत्सव का शुभारम्भ किया|  उन्होंने कहा कि राजगीर में पांच धर्म के महान लोगों को प्रेरणा मिली. राजगीर महोत्सव का आयोजन भी शांति, प्रेम, भाईचारा, सद्भाव, अहिंसा और समाज सुधार का संदेश देने के लिए किया गया है|

इस अवसर पर मुख्‍यमंत्री ने कहा, राजगीर पौराणिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक जगह है। इसी को ध्यान में रखकर यहां का विकास किया जा रहा है।  राजगीर के साइक्लोपीयन वॉल का अध्ययन कराया जा रहा है। रिपोर्ट प्राप्त होते ही केंद्र सरकार से बात कर इसे प्राचीन नालंदा विवि के भग्नावशेषों की तरह विश्व धरोहर का दर्जा दिलाया जाएगा।

मुख्‍यमंत्री ने कहा कि बख्तियारपुर में ही रहकर बख्तियार खिलजी ने नालंदा विवि को नष्ट किया था। मैं भी उसी बख्तियारपुर में पैदा हुआ और नालंदा विवि की पुनर्स्थापना करा दी। कहा, हम हर चीज़ को तार्किक परिणति तक पहुंचा रहे हैं। 

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गुप्ताधाम की रोमांचक यात्रा: बिहार के बाहर होती ऐसी जगह तो हो जाती विश्व-विख्यात

आज मन बहुत खुश था। दोस्तों के साथ यात्रा पर जो जाना था। इसे साहसिक यात्रा भी कह सकते हैं। उतार- चढ़ाव, समतल, पहाड़ी, झरने, नदियाँ,जंगल सबकुछ मिलने वाला है इस यात्रा के दौरान।

भूख-प्यास, थकान से इस तरह सामना होगा, मौत को इतने करीब से देख पाउँगा, ये नहीं सोचा था। हमने सोचा कि जैसे सभी जाते हैं, वैसे हम भी जायेंगे और बाबा भोलेनाथ का दर्शन कर के आराम से वापस आएंगे। लेकिन स्थिति बिलकुल उलट गई।
अक्सर कहानियों को ज्यादा दिलचस्प बनाने के लिए उसमें मिर्च-मसाला डाल दिया जाता है। लेकिन ये यात्रा अपने आप में मसालेदार थी।

सावन की शुरुआत हो चुकी थी। महादेव की जयकार के बीच न जाने कितने कावरियों को मैं अपने शहर से आते जाते देखता था। मेरा भी मन हुआ कि मैं भी भोलेनाथ का दर्शन करूँ।
इसी उम्मीद में मैंने अपने घर पर पापाजी से बात की। उन्होंने बताया कि अगर जाना है तो गुप्ताधाम जाओ। वहाँ घूमो, दर्शन करो। ये यात्रा शरीर की परीक्षा ले लेती है। इसके साथ ही प्रकृति की खूबसूरती का दर्शन हो जाता है।
चूँकि मेरे पिता ने संकल्प किया था कि वो लगातार 21 साल गुप्ताधाम जायेंगे। ये तब की बात है जब यात्रा करने वालो की संख्या सीमित होती थी। 100-150 लोग ही पूरे सावन में दर्शन कर पाते थे।

गुप्तेश्वर धाम

खैर! 4 दोस्तों ने एक जगह मुलाकात की, जगह थी मेरे पिताजी का आयुर्वेदिक चिकित्सालय।
हम सभी मित्र वहां शाम में 6 से 7 बजे तक मिला करते थे। ये रोज की रूटीन में शामिल था। इसके बाद आरा के रमना मैदान का चक्कर काटते हुए 8 बजे तक अपने-अपने घर को रवाना हो जाते थे, अगले दिन मिलने का वादा लेकर।
मैंने अपने दोस्तों के बीच ये बात रखी कि क्यों न हम गुप्ता धाम चलें और वहाँ महादेव के भव्य रूप का दर्शन करें। सारे दोस्त तैयार हो गए। चूंकि हमारी उम्र अधिक नहीं थी, सभी तकरीबन 20 से 22 साल के बीच ही थे,इसलिए उत्सुकता के साथ थोड़ा सा डर भी था। लेकिन डर पर हमारी उत्सुकता हावी थी।

जाने की तारीख तय हुई 4 अगस्त 2012। 4 दोस्त- विवेक दीप पाठक (बाबा) ,प्रेमजीत सोनी( संटू),मनोज कुमार( विक्की) और विवेक चंद्रवंशी( झुन्नू)।

 

शनिवार की रात करीब 10 बजे सभी नहाकर भगवा धारण किये भगवान भोलेनाथ का जयकारा लगाते हुए जीप पर सवार हुए। साथ में शहर के कई और लोग भी थे पर ग्रुप अलग-अलग था। आरा में शिवगंज के समीप दुर्गा मंदिर से जीप खुली। चारो दोस्त खुश थे कि अब भगवान भोलेनाथ का दर्शन होकर रहेगा।

3, 4 साल की उम्र में मैं गया था वहाँ, पर मेरी याद से ये मेरी पहली यात्रा थी गुप्ताधाम की। हमारे दोस्तों में प्रेमजीत पहले जा चुके थे और उन्होंने पूरे रास्ते स्पष्ट कर दिया था कि “वहाँ के लिए तुम सब अंजान हो, इधर-उधर न जाना, साथ में रहना। जंगल है, जंगली साँप-बिछु के अलावे बहुत से जानवर हैं, इसलिए समूह में रहना। अकेले कहीं न जाना। जंगल में भटक जाने का डर होगा। दूर-दूर तक, जहाँ तक नज़र जायेगी, बस जंगल और पहाड़ ही दिखेगा। इसलिए हर कदम सतर्क रहना।”

अक्सर हमने लोगो को आते-जाते सही सलामत ही देखा था। इसलिए उसकी बातों को हमने मज़ाक में लिया।

अँधेरे को चीरती हुई हमारी जीप की रौशनी आगे बढ़ती जा रही थी। आरा से जैसे ही लगभग 40 km की दुरी पर हम पहुँचे, अचानक जीप कुछ आवाज़ के साथ बन्द हो गई। जीप ठीक करते-करते सुबह के 3 बज गए और आखिरकार हमलोग सुबह 5 बजे सासाराम पहुँच गए|

सासाराम से लगभग 40km दूर आलमपुर के रास्ते हमलोग पनियारी पहुँचे, जहाँ से हमें सामने पहाड़ी पर चढ़ाई करनी थी।

सामने से इसकी ऊँचाई का आकलन करना मुश्किल था। स्थानीय निवासी से बातचीत के दौरान पता चला कि इसकी ऊँचाई लगभग 3000मीटर के आसपास होगी। वैसे प्रमाणित नहीं, ये ऊँचाई अनुमानित है।

सामने इतने ऊँचे पहाड़ को देख कर हमारी उत्सुकता और बढ़ गई। चढ़ाई से पहले सबने बताया कि यहाँ एक देवी का स्थान है, जिसको लोग पनियारी माई के नाम से जानते है। यहाँ जमीन के नीचे से बारहों महीने पानी निकलता रहता है।
तो हमने भी निश्चित किया कि आगे की चढ़ाई के पहले हमसभी यहाँ स्नान करेंगे और उसके बाद पनियारी माई का दर्शन कर के आगे की यात्रा करेंगे। स्नान करके सुबह के करीब 7 बजे सूर्य की बढ़ती किरणों के साथ हमने भी बढ़ना शुरू किया।

लगभग 2किलोमीटर की सीधी चढ़ाई ने हमारे शरीर की कठिन परीक्षा ली। हम कुछ दूर ऊपर चढ़ते, थक जाते। फिर आराम करते और फिर बढ़ जाते। चढ़ाई के रास्ते में अनेक तरह की आवाज़ें, जीव-जंतु, सुंदर प्राकृतिक छटा मन को मोहित किये जा रही थी। बन्दर और लंगूरों का झुन्ड इस यात्रा को और भी अद्भुत बना रहा था।

हाँ एक बात तो मैं बताना भूल ही गया; हमने अपने साथ जो बैग रखा था उसमें एक जोड़ी कपड़े थे। बाकि खाने का सामान था। तली हुई लिट्टी, नमकीन, बिस्कुट, मिक्चर इत्यादि था। भूख लगने पर हम सभी बैठ कर खाते और फिर आगे बढ़ जाते।

पहाड़ की चढ़ाई इसी तरह से होती रही। मैंने प्रेम को कहा “भाई रास्ता तो दुर्गम है। एक तरफ गहरी खाई है तो दूसरी तरफ घना जंगल। लेकिन जिस तरह तुमने बताया कि ये जानलेवा है, वैसा तो कहीं दिख नहीं रहा।”

खैर! चलते-चलते चढ़ाई करते हुए हमलोग पहुँच गए बघवा खोह के पास। बघवा खोह के बारे में कोई विस्तृत जानकारी किसी को नहीं। जैसे कि नाम से स्पष्ट होता है, शायद पहले यहाँ बाघ की मांद होगी, पर लोगों के आवागमन की वजह से वो दूर जंगल में चले गए हों।
हालांकि वहाँ एक बाबा जरूर दिख जाते हैं। मेरे पिताजी की यात्रा से लेकर अब तक वो वहीं दिखाई देते हैं।

एक गजब का तेज है उनमें। बड़े -बड़े बाल! बाल नहीं, जटा! लगता है कि सालो से कंघी नहीं किया गया है। दुर्बल सा शरीर, लेकिन गज़ब का तेज! वो उसी मांद में बैठे रहते थे। पास में जलता हुआ मोटा-सा पेड़ का तना और उसके भस्म को उन्होंने अपने पूरे शरीर पर लगाया हुआ था। चूँकि शरीर का कुछ भाग कपड़ो से ढंका हुआ था,इससे स्पष्ट था कि वो नागा साधु नहीं बल्कि शिव के भक्त हैं। जिस तरह से भस्म को विभूषित किया हुआ था अपने पूरे तन पर और जिस अंदाज़ में चिलम(गांजा) का कश लगा रहे थे, देखकर अलग ही अनुभव प्राप्त हो रहा था!

उनसे आशीर्वाद लेकर हम सभी ने चढ़ाई की थकान मिटाने के लिए थोड़ी देर आराम करने का निर्णय लिया
और कुछ खाने-पीने की इच्छा से पास की चट्टान पर बैठ बात करते हुए खाने लगे।

वहाँ आराम के दौरान हमने जो नज़ारा देखा वो किसी स्वर्ग से कम नहीं था। हमलोग पहाड़ की चोटी पर थे। दूर-दूर तक घना जंगल और नीचे देखने पर खेत के छोटे- छोटे भाग। इंसान तो न के बराबर नज़र आ रहे थे। पूरा का पूरा दृश्य आनंददायक था। फिर मेरी नज़र मेरे पीछे की पहाड़ पर गई। मन एकदम सिहर उठा उस दृश्य को देखकर। आकाश और जमीन को एक दूसरे से मिलते हुए देखा मैंने पहली बार। और उसे मिला कौन रहा था! बादल! अद्भुत छटा थी हर जगह! मनमोहक, मनोरम,अकल्पनीय!
मुझे ये समझ नहीं आरहा था कि ऐसी जगह हमारे बिहार में है, फिर इतने लोगों के जानने के बावजूद ये छुपी हुई कैसे है? अन्य कोई देश होता तो कब का इसे विश्व ख्याति प्राप्त बना चुका होता। पर भैया ये है तो बिहार ही न! यहाँ राजनीति ज्यादा और विकास कम होता है। खैर! दृश्य ने मुझे पूरी तरह से भावविभोर कर दिया।

इस तरह के मनमोहक दृश्यों से यात्रा के दौरान कई बार दो-चार हुआ। प्रेम ने कहा “विवेक सुंदरता पर मोहित न हो,अभी सबकुछ सुहाना लग रहा पर इसमें खोना मत। कब यहाँ मौसम करवट ले ले, कुछ कहा नहीं जा सकता।” प्रेम पूरे रस्ते हमें समझाता, हिदायतें देता जा रहा था और हम तीनों उसका मजाक उड़ाते आगे बढ़ रहे थे।

10-12 km दूर जाने पर हमें आम के कुछ पेड़ दिखे। बड़े से आम के पेड़! लग रहा था जैसे पीपल और बट की तरह फैले हुए। एक के बाद एक कई। हाँ उन्ही आम के पेड़ की वजह से उस जगह का नाम था अमवाचुवा।
अमवाचुवा का हिंदी में अर्थ होता है आम का गिरना। शायद इसी तरह से इस स्थान का नामकरण हुआ होगा। वैसे तो इसका भी कोई प्रमाण नहीं, पर स्थानीय लोग यही कारण बताते हैं। अमवाचुवा को कुछ लोग अमवाछू भी कहते है,पर इसका प्रमाणित नाम क्या है वो मुझे नहीं पता।

आगे यात्रियों की भीड़ मिलनी शुरू हो गई। एक जगह हनुमान जी और दुर्गा जी का मंदिर है। वहाँ बहुत सी छोटी-छोटी दुकानें हैं। पहले तो कुछ भी मिलना मुश्किल था पर आज वहाँ आधुनिक पेय पदार्थ, खाने वाली चीज़े,पकौड़ी, चावल-दाल, सबकुछ मिलने लगा है। छोटी-छोटी तम्बुनुमा जगह बनाई गई है, जिसमें यात्री आराम करते हैं। आराम करने के लिए कोई शुल्क नहीं देना होता। पर शर्त होती है कि आपको खाने-पीने की चीज़ें उनकी दुकान से ही लेनी पड़ेगी।

ये दुकानें कई गाँव के लोगों की हैं। पर उस स्थान से सबसे नजदीकी गाँव है- कुसमा। वहाँ के लोग बहुत ही दयालु प्रवृति के हैं। जितना भी सामान लाया जाता है,सब पहाड़ी के नीचे से। इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कितनी मुश्किल से ये लोग अपना गुजर-बसर कर रहे हैं।

मैंने भी उस जगह कुछ खाने की इच्छा जाहिर की। तब मुझे पता चला कि वहाँ की दही बहुत ही विख्यात है। हमने भी दही-चुरा लिया और जैसा सुना था उससे कहीं अधिक स्वादिष्ट दही का स्वाद था। मुँह से बस एक ही आवाज़ आई, तृप्ति! मन को तृप्त कर दिया था उस दही की मिठास ने। ऊपर से मलाई,अहा! उसके बाद मैंने बस यही सोचा कि असली जीवन तो यहाँ है, बाकि सब मोह माया है।

वहाँ से खा-पीकर कुछ आराम करने के बाद हमलोग आगे बढ़े। कुछ 3 या 4 km ऊपर-नीचे, समतल चलते हुए आखिर हमलोग पहाड़ के दूसरे छोर की तरफ पहुँचे। मैंने पैर में चप्पल पहना हुआ था। विक्की और प्रेम ने भी स्लीपर पहना हुआ था, पर झुन्नू एकदम खाली पैर। पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े पैर में चुभ रहे थे। चप्पल पहने होने के बावजूद हमें चुभ रहे थे तो वो खाली पाँव ही था।

यहाँ पहुँचते-पहुँचते लगभग 12 बज चुके थे। प्यास से बुरा हाल था। सूर्य अपनी किरणों की प्रचंडता बढ़ाये हुए थे। पत्थरों से टकराकर परावर्तित होती रोशनी गर्मी को और बढ़ा रही थी। पानी का कहीं नामोनिशान नहीं था,और न ही बादलों का। सुंदरता का एहसास तो हो चुका था लेकिन अब दुर्गमता भी साफ दिखने लगी थी। धीरे-धीरे प्रेम की बातें सच सी लगने लगीं।

प्यास से बेहाल हम सभी दोस्त आगे बढ़ रहे थे। पहाड़ी की ढलान पर जब नज़र गयी तो पहली बार मन में ये एहसास हुआ कि कहीं यहाँ आके हमने गलती तो नहीं की। एक तो धूप ऊपर से प्यास! जैसे-तैसे हारते-थकते हमलोग चलते रहे।

समतल भूमि पर आते ही पानी के बहने की आवाज़ कानो में पड़ने लगी। हमलोग खुश हो गए कि शायद इस धूप और गर्मी से राहत मिलेगी। इसी उम्मीद से तन में थोड़ी ऊर्जा का संचार हुआ और हमलोग आ गए नदी के पास।

लोगों ने और प्रेम ने पहले भी आगाह किया था कि पहाड़ी वाली नदी है। संभल कर पार करना। पर हम सभी तो नहाने के मूड में थे। प्रेम मना करता रहा पर हम सभी कूद पड़े पानी में।
हमने पहले भी कई कहानियां सुन रखी थी। बताया गया था कि सुगवा और दुर्गावती नदी में अचानक से बारिश का पानी आ जाता है, जिससे जलस्तर में काफी बढ़ोतरी हो जाती है। नदियाँ उफान मारने लगती हैं। हमें तो तैराकी आती नहीं, पर जलस्तर बढ़ जाने पर कोई तैराक भी इसका मुकाबला नहीं कर सकता। कारण था कि नदी चट्टानों से लबरेज रहती है।

शीतल सी लहर ने जब शरीर को छुआ तो एक अलग ही आनन्द की अनुभूति हुई। मन किया कि अब तो बस इसी में सो जाऊँ। पर ज्यादा देर तक इसमें रहना मौत से टकराने जैसा था। न जाने कितने लोग इस नदी के रास्ते काल के गाल में समा चुके हैं। नदी से बाहर निकल कर हमने अपने गीले कपड़े बदले और एक बार फिर वो कैमूर की घाटी गुप्ताबाबा की जयघोष से गूंज उठी।

वहाँ से 3 या तो4 km दूर चलने पर हम सभी पहुँचे उस जगह जिसके लिए हमने इतनी दुर्गम यात्रा की थी।
बाबा गुप्तेश्वर नाथ की गुफा के पास। वो गुफा जिसमें खुद भोलेनाथ भस्मासुर से बचने के लिए छुपे थे।
जैसे ही हमलोग गुफा के पास पहुँचे, मन हुआ कि एक बार दर्शन कर ले उसके बाद फिर कल सुबह दर्शन कर के हमलोग निकल जाएंगे वापसी के लिए। पर भाग्य से आगे और किस्मत से ज्यादा किसी को न कुछ मिला है,न मिलेगा।

 

मैंने सुन रखा था कि यहां बाबा के गुफा के पास एक झरना है, नाम है सीता कुंड। कहते है,यहाँ का पानी इतना शीतल है कि कुछ लोग इसे शीतल कुंड भी कहते है।
वहाँ जाने की उम्मीद में मैं अपने दोस्तों के साथ गुफा से कुछ दूर पर जाकर बैठ गया। जो बैग में था,निकाल के हम सभी दोस्त खाने लगे।

खाते-खाते मैंने अचानक प्रेम से पूछा कि भाई यहां से शीतल कुंड कितनी दूरी पर है। उसने बताया करीब 2 से 3 km। मैंने कहा कि हम सभी वही चलते हैं। इसके प्रेम ने योजना बनाई “कुछ देर यहाँ बिता लो। वहां चल के नहाया जायेगा और फिर वही से जल लेके गुफा में बाबा का दर्शन करने चलेंगे।”

कुछ ही समय गुज़रा होगा। अचानक से बादल की तेज़ गड़गड़ाहट हुई। आवाज़ से घबराकर लोग इधर-उधर भागने लगे। इस बीच मैं भी उठा और सबसे बोला “चलो हम सभी चलते है शीतल कुंड।” मैं लगभग दौड़ने लगा।
मेरे पीछे विक्की उसके पीछे झुन्नू और सबसे पीछे प्रेम था।

गुफा से शीतल कुंड जाने के वक्त दुर्गावती नदी को 2 बार पार करना पड़ता है। पहली धारा तो हम पार कर गए। पर इसी बीच बारिश बहुत तेज़ हो गई। दूसरी धारा तक पहुँचते-पहुँचते नदी का बहाव काफी तेज़ हो गया। हम सभी कुछ ही फुट के फासले पर थे। मैंने जब नदी को पार किया तब पानी मेरे घुटने तक। मेरे ठीक पीछे विक्की ने पार किया तब तक पानी उसके कमर तक। उसके पीछे झुन्नू पार करने लगा तब तक पानी की तेज़ धार लगभग उसके छाती के उपर बहने लगी। जैसे-तैसे हमने नदी पार कर लिया।
एक तो पहाड़, ऊपर से तेज़ बारिश और काले बादल। पूरी घाटी में घना अँधेरा हो गया। शाम के 4 ही बज रहे थे, लेकिन लगने लगा जैसे अमावस की अँधेरी रात हो, घुप्प अँधेरा।

अब तो डर समाने लगा। मन ही मन में खुद को कोस रहा था “न मैं प्रेम से ज़िद करता और न हम यहां मुसीबत में फँसते। मेरी ही वजह से ऐसा हुआ।” प्रेम का ख्याल मन में आते ही मैंने लगभग चीखते हुए विक्की से पूछा “प्रेम कहाँ है भाई?” विक्की ने बताया, वो तो झुन्नू के पीछे था।

झुन्नू ने कहा “मैंने ध्यान नहीं दिया, मैं खुद डूबने वाला था, किसी तरह पत्थर पकड़ के किनारे आया।” इतना सुनते ही डर और हताशा हमारे दिमाग पर हावी होने लगी।
पानी का स्तर बढ़ने लगा। हम भी धीरे-धीरे पहाड़ी के ऊपर बढ़ने लगे। हम ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे- प्रेम! प्रेम!

बिजली की गड़गड़ाहट, झरने और नदी की गुर्राहट, घना अंधकार, पेड़ के टूटने की आवाज़, बहते हुए पत्थर व चट्टानों को देखा हमने। सबकुछ इतना भयावह कि हमने भोलेनाथ से प्रार्थना की “हे भोलेनाथ आप किसी तरह हमें घर पहुंचा दें। दुबारा कभी वापस नहीं आएंगे।”

4 बजे से इनसब से जूझते हुए रात के 10 बज गए। न बारिश थमने का नाम ले रही थी और ना ही जलस्तर रुक रहा था। इस बीच जब प्रेम नहीं मिला तो हमें ये यकीन हो गया कि प्रेम नदी में बह गया। वो ज़िंदा नहीं है।

हम सोचने लगे कि उसके घर वालो से कैसे कहा जायेगा? कौन बोलेगा? कैसे बोलेगा के प्रेम नदी की बहाव में बह गया! कैसे कहेंगे कि साथ गए थे 4 और अब वापस 3 लोग आये हैं। मन दुःख में डूब रहा था।

एक ओर बारिश की बुँदे कमज़ोर पड़ रही थीं तो दूसरी और हमारे आँखों से आँसू की धारा तेज़ होती जा रही थी। किसी तरह हिम्मत करके हम सभी फिर उसी किनारे पर आये और एकदूसरे का हाथ मजबूती से पकड़ कर टार्च की रौशनी में दूसरी तरफ देखने लगे कि शायद प्रेम वहां बैठा हो। पर हमारी हिम्मत भी अब जवाब देने लगी थी।
वो पल याद आते ही आज भी आँसू आ जाते हैं।

ये समय कटने का नाम नहीं ले रहा था। वक्त जैसे थम सा गया था। बिजली चमकने पर जिस तरफ भी हमारी नज़र जाती थी वहां बस पहाड़ से गिरने वाला झरना ही दिखाई दे रहा था। प्रकृति का ये मनोरम दृश्य हमारे लिए सबसे भयानक अनुभव बन चुका था।

रात के लगभग 12 बजे बारिश रुक गई। बारिश की वजह से सांप और बिच्छू ऊपर की ओर बढ़ रहे थे। हमने वहां से निकलना ही उचित समझा। एक दूसरे का हाथ पकड़ के हमने नदी को पार किया और अँधेरे में गिरते-पड़ते हम आखिरकार वापस गुफा के पास आगए।

4 बजे शाम से 12 बजे रात तक लगातार भींगने के बाद दुबारा नहाने की जरूरत नहीं पड़ी और न ही हिम्मत हुई। ठण्ड से हालत खराब हो रही थी। सर्दी-बुखार, थकान और सबसे बड़ा दुःख प्रेम की मौत की खबर। इन सबसे बेहाल किसी तरह हम एकदूसरे को ढांढस बंधवाते हुए आगे बढ़ रहे थे।

गुफा के पास आके सबने भोलेनाथ का जयकारा लगाया। हमने वहाँ भी प्रेम-प्रेम चिल्लाया। इस उम्मीद में कि शायद वो भीड़ को चीरते हुए हमारे पास आए और पूछे के तुम सब ठीक हो..?

लेकिन न कोई आवाज़ आई, न किसी ने कुछ बताया। पता चला कि उस बहाव में कुछ लोग बह चुके हैं। तब हमें एकदम यकीन हो गया कि प्रेम भी उनमें से एक था।
किसी तरह गुफा में अंदर जाके भोलेनाथ से प्रार्थना की हमने “हे भोलेनाथ किसी तरह प्रेम को घर पहुँचा दीजिये या हमसे मिला दीजिये।”

दर्शन करने के बाद रात को करीब 2 बजे हम तीनों ने फैसला किया कि अब एक पल यहाँ नहीं रुकेंगे, सीधे घर चलेंगे। रात में ही बिना आराम किये हमने पहाड़ की चढ़ाई शुरू कर दी। पूरी रात चलते रहे और लगभग 7 बजे सुबह पहाड़ से उतर चुके थे।

मन तो एकदम हताश हो चूका था कि हमने अपने एक दोस्त को खो दिया है। हम तीनों ही उदास थे। फिर भी हमने सोचा थोड़ा सा प्रसाद ले लेते हैं। आखिर प्रेम के घर जाना है और बताना ही है कि अब वो नहीं रहा। यही सब सोचते प्रसाद लिया हमने।

मन में उदासी छाई थी कि तभी किसी ने मुझे पीछे से खींचा और एक जोर का तमाचा मेरे गाल पर। आवाज़ भी जोर की हुई- चटाक!
मैंने मुड़के देखा तो मेरी आँखों में अचानक आँसुओ का सैलाब आ गया। इस बार आँसू गम के नहीं थे क्योंकि थप्पड़ लगाने वाला कोई दूसरा नहीं बल्कि प्रेम था।

वो वहां जलेबी खा रहा था और उसी जलेबी की रसभरी हाथों से जो गाल पर तमाचा लगाया न, गाल पूरा झन्ना गया और जलेबी का रस लगा सो अलग। हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी ये थी कि हमारा दोस्त ज़िंदा था। अब उसके घर पर मौत की सूचना नहीं देनी पड़ेगी।
मैंने सारी बातें प्रेम को बताई। प्रेम ने कहा “तुम तीनों ने नदी पार किया, मैं भी पार करने वाला था लेकिन एक पेड़ टूट के नदी में गिरा और बहने लगा। मैंने बहुत आवाज़ लगाई कि तुम सब वापस आ जाओ, वहाँ फँस जाओगे, कोई नहीं होगा उधर। पर सुनने से पहले ही तुम तीनों निकल गए। बहाव और बारिश इतनी जोर की थी कि लगा जैसे तुम तीनों बह गए। सब क्या कहेंगे कि प्रेम ये लोग पहली बार आये थे पर तुम तो कई बार आचुके हो। फिर कैसे छोड़ दिया अकेले सबको।”

प्रेम ने आगे बताया “जैसे-तैसे मैं भी वापस आ गया और बाबा का दर्शन करने गुफा में गया। वहाँ मुझे ऐसा लगा कोई जैसे प्रेम- प्रेम चिल्ला रहा। शायद तुमलोग होंगे, पर कोई नहीं दिखा। मैंने दर्शन किया, पहाड़ चढ़ाई की और सुबह यहाँ पहुँच गया। इस दुःख में था कि तुम में से कोई मर ही गया है। अब तुमलोगो को अच्छे से देखकर मूड अच्छा हुआ है।”

फिर हमने मिलकर प्रसाद की खरीददारी की और जीप में अपने-अपने घर को रवाना हुए। हमारी ये दुर्गम यात्रा सफल रही। हर हर महादेव!

याद है वो एक-एक पल जब हमने कहा था “महादेव अगर यहां से हम सभी सही सलामत अपने घर पहुँच जायेंगे तो दुबारा नहीं आएंगे।” पर जब प्रेम से मुलाकात हुई, उसके थप्पड़ में जो प्यार दिखा, जो दर्द दिखा, दोस्तों के प्रति जो स्नेह दिखी, उसके बाद चारों गले लग कर बेतहाशा रोये और भोलेनाथ से कहा “हे प्रभु! धन्यवाद! हम हमेशा आएंगे।”

विवेक दीप पाठक (प्रवक्ता, ऑल इंडिया रिपोर्टर्स एसोसिएशन, भोजपुर)

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बिहार पर्यटन: झारखंड की कुल आबादी से भी अधिक पर्यटक पहुंचे बिहार

बिहार की छवि दिन पर दिन बदल रही है। इसके साथ ही बिहार की सुंदर प्राकृतिक वादियां, धार्मिक स्थलें, एतिहासिक धरोहरें और बिहार संस्कृति भी अब लोगों को खूब लोभा रही है।

सात समुंदर पार से भारी संख्या में लोग बिहार घूमने आ रहे हैं और हर साल एक नया किर्तिमान बन रहा है। इस बार भी वर्ष 2016 की तुलना में रिकॉर्ड पर्यटक बिहार आए। देसी और विदेशी सैलानियों को मिलाकर 3 करोड़ 34 लाख 96 हजार 768 पर्यटक आए। यह 2016 से लगभग 14 फीसदी अधिक है।

आपको यह जानकर खुशी होगी की यह संख्या पड़ोसी राज्य झारखंड की जनसंख्या (3.29 करोड़) से भी अधिक है।

 

विदेशी पर्यटकों की संख्या में भी वृद्धि हुई है।

इस बार पितृपक्ष मेला (गया) में पिछले साल की तुलना में कम श्रद्धालु पहुंचे। पिछली बार जहां 8 लाख 31 हजार से अधिक श्रद्धालु आए थे वहीं इस बार 6 लाख 35 हजार 600 ही आए। यानी लगभग दो लाख कम लोग आए। हालांकि श्रावणी मेले में आने वाले भक्तों की संख्या में इस बार ढाई लाख तक की वृद्धि हुई। इसी तरह सोनपुर मेले में भी इस बार 15 हजार 839 लोग अधिक आए।
विदेशी पर्यटकों की संख्या 70 हजार बढ़ी
विदेशी सैलानियों को भी बिहार लुभा रहा है। वर्ष 2016 की तुलना में 2017 में विदेशी पर्यटकों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। 2016 में जहां 10 लाख 10 हजार 531 सैलानी आए थे, वहीं बीते साल 10 लाख 82 हजार 705 पर्यटक आए। विदेशी पर्यटकों के मामले में गया अव्वल रहा। गया में 3 लाख 13 हजार 817, जबकि बोधगया में 2 लाख 83 हजार 116 पर्यटक आए। अगर 2016 की बात करें तो यहां कुल 5 लाख 30 हजार 428 पर्यटक आए थे। नालंदा इस मामले में दूसरे व वैशाली तीसरे नंबर पर रहा।

14 फीसदी अधिक पर्यटक आए 2016 की तुलना में

2012 से अगर हम बिहार पर्यटन का आंकड़ा देखें तो लगातार बिहार आने वाले पर्यटकों की संख्या हर साल बढ़ रही है। मगर इस साल की वृद्धि सबसे ज्यादा है।

बिहार पहुंचे पर्यटक

2012 – 22544032

2013 – 22354141

2014 – 23373885

2015 – 28952855

2016 – 29528850

2017 – 33496768

Source: Hindustan

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खुशखबरी: राजगीर की तर्ज पर 12 और रोपवे का निर्माण करेेगी सरकार

बिहार में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए और पहारी क्षेत्र में स्थित अनेक शक्तिपीठों के विकास के लिए पर्यटन विभाग ने विशेष योजना तैयार की है| इस योजना के तहत राजगीर की तर्ज पर पहाड़ी क्षेत्र के सुदूरवर्ती शक्तिपीठों में पर्यटन विभाग एक दर्जन रोपवे का निर्माण करेगा। इन रोपवे का निर्माण कर दुर्गम पहाड़ियों तक सैलानियों को लाने ले जाने का काम पर्यटन विभाग करेगा।

इस बात की घोषणा बिहार सरकार के पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार ने मीडिया को दी| उन्होंने कहा कि पीएम मोदी द्वारा घोषणा किये गये बिहार पैकेज के एक लाख 65 हजार करोड़ में से 500 करोड़ रुपये पर्यटन विभाग को मिला है जिससे रोपवे सहित विभिन्न सर्किटों के विकास का काम किया जा रहा है|

मंत्री ने कहा कि पर्यावरण विभाग से एनओसी लेने की प्रक्रिया चल रही है,जिसके बाद रोपवे का काम तेजी से शुरू होगा, जिसमें मंदार पर्वत के अलावा राजगीर में भी एक और रोपवे का निर्माण होगा|

इसके साथ पर्यटन मंत्री ने कहा कि रामायण, बुद्ध, कांवरिया ,गांधी, गुरुगोविन्द सिंह सहित सूफी सर्किट के विकास के लिए काम किया जा रहा है लेकिन संबंधित जिले से डीएम द्वारा भेजे जाने वाले प्रस्ताव में देरी करने से थोड़ी बाधा आ रही है| र्यटन विभाग द्वारा संचालित मुजफ्फरपुर के लिच्छवी बिहार होटल का निरीक्षण करने के बाद मंत्री ने कहा कि सूबे में पीपी मोड में नये होटलों का निर्माण तेजी से किया जाएगा और साथ ही पर्यटकों को अच्छी सुविधा देने के लिए सभी पुराने होटलों का जीर्णोद्धार किया जाएगा|

बिहार के कश्मीर ‘ककोलत’ में बनेगा रोप-वे

नवादा जिले सहित राज्य के लोगों के लिए खुशखबरी है। राजगीर के तरह बिहार का कश्मीर कहे जाने वाले ककोलत में भी रोप-वे का लुप्त उठा सकेंगे। 

अगर सब ठीक रहा तो यहां आने वाले दिनों में रोप-वे बनाने का काम शुरू हो जाएगा। नवादा के अलावा औरंगाबाद, गया, रोहतास, कैमुर और मुंगेर में भी रोप-वे निर्माण कंपनी को पत्र लिखा जा चुका है। वहां से रिपोर्ट मिलते ही आगे का काम शुरू कराया जाएगा। पयर्टन विभाग के संयुक्त सचिव अशोक कुमार सिंह ने रोप-वे बनाने वाली गुड़गांव की कंपनी राइट्स लिमिटेड के उपमहाप्रबंधक को पत्र लिखा है कि नवादा के ककोलत जलप्रपात, गया की गुरुपा पहाड़ी समेत राज्य के अन्य पयर्टन स्थलों पर प्रस्तावित रोप-वे निर्माण स्थल की जांच कर जल्द उपलब्ध कराया जाए, ताकि इन जगहों पर रोप-वे निर्माण कराया जाए।

विदेशों से भी यहाँ पहुंचते है सैलानी

ककोलत की खुबसूरती देखने के लिए यूपी, महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि विदेशों से भी सैलानी पहुंचते हैं। पयर्टन रजिस्टर में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक यहाँ आने वाले सैलानियों में 25 फीसदी लोग दूसरे राज्यों के होते हैं। वहीं ककोलत की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि राजगीर व बोधगया घूमने आने वाले विदेशी पयर्टक यहाँ आना नहीं भूलते। रोप-वे निर्माण होने से यहाँ आने वाले पयर्टकों की संख्या में और बढ़ोत्तरी होगी।

षधीय गुणों से लबरेज है ककोलत

ककोलत क्षेत्र खूबसूरत दृश्यों से भरा हुआ है लेकिन इन खूबसूरत दृश्यों में भी सबसे चमकता सितारा यहाँ स्थित ठंडे पानी का झरना है। इस झरने के नीचे एक विशाल कुंड है। इसमें 80 फुट ऊंचे जलप्रपात से पानी गिरता है। झरने के चारों तरफ जंगल है। यहाँ का दृश्य अद्भुत आकर्षण उत्पन्न करता है। जलप्रपात का पानी औषधीय गुणों से लबरेज है।

प्रकृति की गोद में बसा है ककोलत जलप्रपात

शीतल जलप्रपात व नैसर्गिक छटाओं के लिए मशहूर ककोलत नवादा जिले सहित राज्य का सबसे बड़ा पिकनिक स्पॉट माना जाता है। यहाँ नये वर्ष पर हजारों सैलानी पहुंचते हैं और ककोलत की खूबसूरत वादियों का आनंद उठाते हैं। बता दें कि ककोलत एक बहुत ही खुबसुरत पहाड़ी के पास डेढ़ सौ फुट ऊंचाई पर बसा एक झरना है। प्रकृति की गोद में बसा यह जलप्रपात प्राकृतिक उपहार के अतिरिक्त पुरातात्विक एवं धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। ककोलत से तीन किमी दूर थाली मोड़ से ही जलप्रपात की शीतलता का अहसास होने लगता है। रास्ते के दोनो ओर खेत, पेड़-पौधे की हरियाली यात्रा का मजा कई गुना बढ़ा देती है। यह जिस पहाड़ी पर बसा है, उस पहाड़ी का नाम भी ककोलत है।

बिहार सरकार के इस विभाग में इंजीनियर, क्लर्क, स्टेनो टाईपिस्ट और अन्य पदों पर भर्ती।

बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम ने निकली भारी संख्या में पद।

बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम (BSTDC) ने इंजीनियर, क्लर्क, स्टेनो टाइपिस्ट और अन्य 20 पदों पर भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किया है। इच्छुक और योग्य अभ्यर्थी 17 मार्च, 2017 तक आवेदन कर सकते हैं।

पदों का विवरण: कुल पद 20 क्र.सं. पद रिक्तियां

  1.  एडिशनल जनरल मैनेजर 1 पद
  2. मैनेजर (एडमिन) 1 पद
  3.  मैनेजर (एकाउंट्स) 1 पद
  4.  मैनेजर (ट्रांसपोर्ट) 1 पद
  5. मैनेजर (होटल एंड लॉज) 1 पद
  6. एग्जीक्यूटिव इंजीनियर 2 पद
  7.  सिविल असिस्टेंट इंजीनियर 1 पद
  8. इलेक्ट्रिकल असिस्टेंट इंजीनियर 2 पद
  9.  सिविल जूनियर इंजीनियर 1 पद 1
  10. इलेक्ट्रिकल जूनियर इंजीनियर 4 पद
  11. कंसलटेंट 2 पद
  12. क्लर्क 1 पद
  13.  स्टेनो- टाइपिस्ट 1 पद

शैक्षणिक योग्यता:
इन पदों पर भर्ती के लिए आवेदन करने वाले आवेदक के पास देश के किसी भी बोर्ड, विश्वविद्यालय या संस्थान से ग्रेजुएशन डिग्री/ पोस्ट ग्रेजुएशन डिग्री होनी चाहिए.
वेतनमान:
क्र.सं. पद रिक्तियां

  1. एडिशनल जनरल मैनेजर रुपये 45000- 50000/-
  2.  मैनेजर (एडमिन) रुपये 40000- 50000/-
  3.  मैनेजर (एकाउंट्स) रुपये 40000- 50000/-
  4.  मैनेजर (ट्रांसपोर्ट) रुपये 40000- 50000/-
  5. मैनेजर (होटल एंड लॉज) रुपये 40000- 50000/-
  6.  एग्जीक्यूटिव इंजीनियर
    रुपये 50000- 65000/-
  7.  सिविल असिस्टेंट इंजीनियर रुपये 40000- 50000/-
  8. इलेक्ट्रिकल असिस्टेंट इंजीनियर
    रुपये 40000- 50000/-
  9.  सिविल जूनियर इंजीनियर
    रुपये 25000- 30000/-
  10.  इलेक्ट्रिकल जूनियर इंजीनियर रुपये 25000- 30000/-
  11.  कंसलटेंट रुपये 35000- 45000/-
  12.  क्लर्क रुपये 25000- 30000/-
  13.  स्टेनो- टाइपिस्ट रुपये 20000- 25000/-

ऐसे करें आवेदन:
बिहार स्टेट टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन (Bihar State Tourism Development Corporation – BSTDC) में उपर्युक्त पदों पर आवेदन करने के इच्छुक अभ्यर्थी 17 मार्च, 2017 तक ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। अन्य जानकारियों और के लिए विस्तृत अधिसूचना देखें।

चयन प्रक्रिया:
इन पदों के लिए योग्य अभ्यर्थियों का चयन लिखित परीक्षा और साक्षात्कार में उनके व्यक्तिगत प्रदर्शन और मेधा सूची के आधार पर किया जाएगा।

बिहार के आधा दर्जन पर्यटन सर्किट विकसित होंगे!

बिहार में गाँधी सहित आधा दर्जन पर्यटन सर्किट होंगें विकसित!

इसके लिए राज्य का पर्यटन विभाग डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बनवा रहा। इसे केंद्र सकार को भेजा जाएगा। इन सर्किट के विकास के लिए 50 से 200 करोड़ की राशि केंद्र से मांगी जाएगी।

पर्यटकीय दृष्टि से अति महत्वपूर्ण कांवरिया सर्किट, जैन सर्किट, गांधी सर्किट, अंग प्रदेश सर्किट, रामायण सर्किट और बुद्ध सर्किट के विकास की योजना बनी है। इन सर्किट से जुड़े पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विश्वस्तरीय सुविधाएं मुहैया कराने की दिशा में काम हो रहा है। राज्य सकार अपने स्तर पर तो खर्च कर ही रही है, लेकिन सुविधा और बेहतर हो इसके लिए केंद्र से भी राशि मांगी जा रही है।

अंग प्रदेश सर्किट के विकास के लिए राशि की मांग को लेकर पर्यटन विभाग ने केंद्र को डीपीआर भेज भी दिया है। इसके लिए 50 करोड़ की मांग की गई है। जैन व कांवरिया सर्किट के लिए डीपीआर पहले ही भेजा जा चुका है। इनके लिए 50-50 करोड़ की स्वीकृति मिल गई है। इसके अलावा गांधी सर्किट, रामायण सर्किट, बुद्ध सर्किट के लिए डीपीआर तैयार किया जा रहा है। गांधी सर्किट के लिए 50 करोड़, रामायण सर्किट के लिए 100, जबकि बुद्ध सर्किट के लिए 200 करोड़ मांगने की योजना है। हालांकि राशि में विचार-विमर्श के बाद बदलाव भी हो सकता है।

फिलहाल 6 सर्किट में होगी विशेष काम
बिहार में फिलहाल छह पर्यटन सर्किट हैं। इनमें बुद्ध सर्किट, सूफी सर्किट, जैन, सिख, हिन्दू व ईको सर्किट शामिल हैं। नए सर्किट के रूप में गांधी, अंग प्रदेश, रामायण व कांवरिया सर्किट को विकसित किया जाना है।
बुद्ध सर्किट : गया, नालंदा, भागलपुर, पू. चंपारण, प. चंपारण, वैशाली, जहानाबाद
सूफी सर्किट : जहानाबाद, पटना, मुंगेर, नालंदा, रोहतास
जैन सर्किट : नालंदा, भागलपुर
हिन्दू सर्किट : गया, नालंदा, भागलपुर, औरंगाबाद, बांका, जहानाबाद, कैमूर, सीतामढ़ी

50 से 200 करोड़ तक मांगे जाएंगे सर्किट के लिए केंद्र से 

  • राज्य का पर्यटन विभाग इन सर्किटों का बनवा रहा डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट
  • पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विश्वस्तरीय सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी

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लगातार बढ़ रही है बिहार में आने वाले पयर्टकों की संख्या, टूटा रिकार्ड

राज्य में आने वाले पयर्टकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। विदेशी होंं या घरेलू सबको बिहार के पयर्टन स्थल काफी लुभावने लग रहे हैं। वर्ष 2016 में राज्य में आने वाले सैलानियों की संख्या 3 करोड़ तक पहुंच गया। वर्ष 2015 की तुलना में 10 लाख से भी अधिक पयर्टक 2016 में बिहार आयें। विदेशी पर्यटकों की संख्या में भी काफी इजाफा हुआ है।

अगर घरेलू पर्यटकों की बात करें तो इस मामले में पटना जिला सबसे आगे रहा। यहां नवंबर तक 30 लाख से भी अधिक पर्यटक आए। विदेशी पर्यटकों के मामले में इस बार भी गया अव्वल रहा। नवंबर तक यहां ढाई लाख से अधिक विदेशी पर्यटकों ने विजिट किया। अगर बोध गया का भी आंकड़ा इसमें जोड़ दिया जाए तो यह संख्या चार लाख 60 हजार के पार पहुंच जाती है। पटना, गया के बाद सबसे अधिक पर्यटक राजगीर, भागलपुर, मुजफ्फरपुर व वैशाली आए।

शराब बंदी के बाद भी बढ़ी संख्या

ऐसा कहा जा रहा था कि बिहार में शराबबंदी के बाद पर्यटकों की संख्या घटेगी। लेकिन पिछले वर्ष की तुलना में देखें तो अप्रैल से लेकर नवंबर तक पर्यटकों की संख्या में इजाफा ही हुआ है। इस बीच सितम्बर, अक्टूबर में पटना व गया में पर्यटकों की संख्या में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई। अप्रैल में राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू हुई थी। अगर पटना की ही बात करें तो अप्रैल- 2015 में 2 लाख 60 हजार 5 सौ 83 पर्यटक आए थे। उसकी तुलना में 2016 में 2 लाख 85 हजार 35 पर्यटक आए। यानी 24 हजार 4 सौ 12 का इजाफा हुआ। इसी तरह मई में 20 हजार 223 पर्यटक बढ़े, जून में लगभग बीस हजार, जुलाई में करीब 61 हजार और अगस्त में 642 पर्यटक 2015 की तुलना में अधिक आए। सितंबर में 806 और अक्टूबर में 24 हजार 667 पर्यटक घटे। नंवबर में फिर इसमें वृद्धि हुई और 25 हजार 192 पर्यटक अधिक आए।

पर्यटन विभाग ने नवंबर (2016) तक का आंकड़ा जारी कर दिया है। नवंबर तक लगभग ढाई करोड़ पर्यटकों को बिहारा आना दिखाया गया है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार दिसंबर का भी आंकड़ा जोड़ने के बाद यह तीन करोड़ तक पहुंच गया है। अभी जिलों से दिसंबर का आंकड़ा आना जारी है।

पितृपक्ष मेला में इस साल आए अधिक विदेशी

पितृपक्ष आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में भी भारी इजाफा हुआ है। पिछले साल की तुलना में इस बार विदेशी श्रद्धालु भी अधिक आए। 2015 में जहां मात्र 26 विदेशी श्रद्धालुआए थे वहीं इस साल इनकी संख्या 3895 पहुंच गई। इसी तरह घरेलु श्रद्धालुओं की संख्या भी पौने सात लाख तक की वृद्धि हुई।

पर्यटक आए बिहार

वर्ष कुल पर्यटक

2012 22544032

2013 22354141

2014 23373885

2015 28952855

सज गया पटना साहिब.. पहुंचने लगे श्रद्धालु

दशमेश गुरु श्री गुरु गोविंद सिह के 350वें प्रकाशोत्सव को लेकर सभी तैयारियां पूरी हो गई हैं। इसके लिए तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब को सतरंगी रोशनियों से सजाया गया है। पटना सिटी से लेकर गांधी मैदान रौशनी से जगमगा रहा है। पटना साहिब, पटना घाट, राजेंद्र नगर, पटना जंक्शन, दानापुर और पाटलिपुत्र स्टेशन को भी आकर्षक रोशनी से सजाया गया है। रंग-बिरंगी लाइटिंग में रेलवे स्टेशनों की रंगत निखर रही है।

Patna sahib

देश-विदेश से श्रद्धालु पटना पहुंचने लगे हैं। इनके ठहरने के लिए गांधी मैदान, बाइपास और कंगन घाट में बने टेंट सिटी को भी आकर्षक रूप दिया गया है। तीनों टेंट सिटी रोशनी से जगमगा रही हैं। यहां सभी तरह की अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। गुरु गोविंद सिंह जी महाराज के 350वें प्रकाशोत्सव के लिए पटना घाट स्टेशन तैयार है। आज से ट्रेनें भी चल रही है। हर डेढ़ घंटे पर पटना जंक्शन से पटना घाट के लिए ट्रेन है। प्रकाशोत्सव में श्रद्धालुओं की सुरक्षा व सुविधा के लिए रविवार से पटना साहिब स्टेशन के पास अस्थायी थाना शुरू हुआ। स्टेशन पर मेगा फोन होगा, जिससे लोग एक-दूसरे से जुड़ सकेंगे। महिला आरक्षियों को भी सुरक्षा में लगाया गया है। भाषा को लेकर संगत को कोई कठिनाई न हो, इसके लिए पंजाबी के जानकार जवान केंद्र पर तैनात होंगे।

पहुंचने लगें लोग

पहुंचने लगें लोग

प्रकाशोत्सव में लगभग 12 सौ दंडाधिकारियों और 13 सौ पुलिस पदाधिकारियों की चौबीसों घंटे की ड्यूटी लगाई गई है। टेंट सिटी, गुरुद्वारा के आसपास के इलाके की निगरानी के लिए कुल 85 वाॅच टावर भी बनाए गए हैं, जहां से निगरानी शुरू कर दी गई है। सिर्फ पटना सिटी के लिए अलग से 69 गश्ती दल की नियुक्ति भी की गई है। प्रकाशोत्सव में आने वाले श्रद्धालुओं को किसी तरह की कोई परेशानी न हो इसके लिए विभिन्न स्थलों पर बनाए गए 75 हेल्प डेस्क भी काम करने लगे हैं। भीड़ के नियंत्रण के लिए सीसीटीवी और वीडियो कैमरे की भी मदद ली जा रही है। गांधी मैदान टेंट सिटी, बाइपास टेंट सिटी, गुरुद्वारा के आसपास के क्षेत्र में तैनात कर्मी को हैंड हेल्ड माइक, वायनाकूलर व ड्रेगन लाइट से लैस कर दिया गया है।

गांधी मैदान टेंट सिटी

गांधी मैदान टेंट सिटी

गांधी मैदान में अब गुरुवाणी की गूंज सुनाई देने लगी है। टेंट सिटी गुरुद्वारा-सा चमक रहा है। हर ओर चहल-पहल है। हर गेट पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम है। लोग सड़क पर रुक कर सेल्फी लेना नहीं भूल रहे। पंजाब, अमृतसर, कोलकाता आदि शहरों से आए श्रद्धालु इंतजाम देख गदगद हैं। गांधी मैदान में किसी भी व्यक्ति के प्रवेश पर कोई रोक-टोक नहीं रहेगी। इंट्री के लिए पास की भी जरूरत नहीं होगी। अपने परिवार और बच्चे के साथ आराम से यहां देखने के लिए सकते हैं।

वाच टॉवर

वाच टॉवर

कंगन घाट

कंगन घाट

सभी लोगों की इंट्री सुरक्षा जांच के बाद की जाएगी। सुरक्षा जांच के लिए हर गेट पर डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर है। हर गेट पर मजिस्ट्रेट तैनात किए गए हैं। गांधी मैदान की टेंट सिटी में ठहरने वाले श्रद्धालुओं के साथ- साथ आम लोगों के लिए भी मुफ्त में लंगर की व्यवस्था रहेगी।

Prakash parv

प्रकाशोत्सव में कला संस्कृति विभाग का बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम पंजाबी फिल्मों का प्रदर्शन करेगा। तीन और चार जनवरी को बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स में छह पंजाबी फिल्में दिखाई जाएंगी। इनमें पंजाब की संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी। इस पूर्व दो जनवरी को इस फिल्म प्रदर्शन समारोह का उद्घाटन किया जाएगा। प्रकाशोत्सव के दौरान बिहार म्यूजियम में पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी के सहयोग से एक फोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रदर्शनी में सिख धर्म से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेजों, फोटो आदि को देखा जा सकेगा। इस प्रदर्शनी के माध्यम से पंजाब और सिख संस्कृति को जाना-समझा जा सकता है।

प्रकाश पर्व को लेकर ऑटो की दर में कटौती की गई है। इस बाबत बिहार राज्य ऑटो रिक्शा चालक संघ की बैठक के बाद एक्टू के उपाध्यक्ष नवीन मिश्रा एवं सचिव जगन्नाथ झा के मुताबिक किराए की नई दर 25 दिसंबर से पांच जनवरी तक ही मान्य होगी। प्रकाश पर्व में सिख श्रद्धालुओं को परेशानी न हो, इसके लिए पटना जंक्शन के टाटा पार्क टेंपो स्टैंड में 200 ऑटो शेयर एवं प्री-पेड व कॉल सर्विस के लिए कार्य करेंगे। श्रद्धालु 8409352222 पर कॉल कर ऑटो ले सकते हैं। सभी ऑटो पर संगठन का परिचय पत्र एवं डीटीओ की ओर से जारी स्टीकर लगी रहेगी।

प्रकाशपर्व पर पटना आईये जरूर, समारोह की भव्यता और तैयारी देख दिल खुश हो जायेगा

Prakash parv gandhi maidan

मौंका मिले तो पटना आईए और गुरु गोविन्द सिंह के जंयती समारोह में शामिल होईए क्या तैयारी है दिल खुश हो जायेगा|गांधी मैंदान क्या कहना है लगता जैसे अमृतसर पहुंच गये हैं दरवार हांल क्या भव्यता है एक लाख लोगों के बैंठने कि व्यवस्था कि गयी है। पूरा मैंदान इस कार्यक्रम का मुख्य आयोजन स्थल है पीएम मोदी सहित तमाम बडे नेता इसी दरबार हांल से सम्बोधित करेगे बड़े सास्कृतिक कार्यक्रमों भी इसी दरबार हांल में होगा। अशोक राजपथ पहचान नही पाईएगा पटना साहेब गुरुद्वारा तक पहुंचने वाली सड़कों के दोनों और दो किलोमीटर तक निर्मित भवन उजले रंग से रंगे गये है।

धार्मिक आय़ोजन पटना साहेब गुरुद्वारा

Prakash parv patna sahib

बाल गुरुद्वारा और कंगनघाट के साथ साथ बाग का गुरुद्वारा में हो रहा है। यहां आयेगे तो आपको धार्मिक आस्था के साथ साथ इतिहास को भी महसूस कर सकते हैं। गुरु गोविन्द सिंह से जुड़े कई ऐतिसाहसिक साक्ष्य के साथ साथ उनकी यादे अब भी उसी तरह सुरक्षित और संरक्षित है,,वह कुंआ जहां से पानी लेकर महिलाए जब घर को लौटती थी तो अक्सर गुरु गोविन्द सिंह महिलाओं का मटका फोड़ देते थे ,वो पत्थर तीर और कमान जिससे वो मटका फोड़ते थे सब कुछ मौंजूद है ,उनके बचपन का पलना ,कपड़ा सरिखे कई चीजे आज भी उनके होने का एहसास कराता है ३५० वर्ष पहले उनका जन्म हुआ लेकिन आज भी आप उऩके होने का एहसास कर सकते है जितनी जुवाने उतनी कहानी औऱ साथ में साक्ष्य भी ।

टेंट सिटी

टेंट सिटी

मुख्य कार्यक्रम २ से ५ जनवरी तक होगा लेकिन अभी से ही लोग के आने का सिलसिला शुरु हो गया है। उम्मीद कि जा रही है कि देश और दुनिया से कम से कम पांच लाख सिख इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में शामिल होने आयेगे।बिहार को अपनी छवि बदलने औऱ राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्री स्तर पर अपनी खोयी प्रतिष्ठा फिर से स्थापित करने का इससे बेहतर मौंका नही मिलेगा इसलिए जहां कही भी आप है इस महाउत्सव में किसी ना किसी रुप में भागीदारी जरुर निभाईए। आज काश्मीर पंजाब,लंदन औऱ अमेरिका से आये दर्जनो सिख परिवार से बात करने का मौंका मिला सच कहिए तो इस कार्यक्रम के माध्यम से नीतीश कि पहचान राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय पर एक कुशल प्रशासक और विकास करने वाले राजनेता के रुप में स्थापित हो गया हर किसी के जुवान पर नीतीश कि तारीफ सूनने को मिला। किसी ने भी व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े करते हुए नही दिखे हलाकि इसकी एक वजह बिहार के छवि भी है लोग उम्मीद नही कर रहे थे और यहां उम्मीद से अधिक व्यवस्था देखने को मिल रहा है। रात के एक बजे तक अशोक रात पथ पर लोग घूमते रहते हैं लाईटिंग कि व्यवस्था मौंका मिले तो एक बार जरुर देखने आईए।

Prakash parv

ईश्वर ने मुझे वो दिया है जो दुनिया में किसी के पास नही है बुद्ध,जैन,सिख धर्म का जन्म और कर्मभूमि फिर मेरा ऐतिहासिक विरासत सच कहे तो हमलोग अपने इस विरासत का ही सही तरीके सा मार्केटिंग कर ले तो फिर किसी उधोग कि जरुरत नही है।।।

सभार: (संतोष सिंह, कशिश न्यूज के फेसबुक अकाउंट से लिया गया है)

नोट: प्रकाशपर्व का महा लाईव कवरेज देखने के लिए Aapna Bihar के फेसबुक पेज को लाईक करें । 

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यहाँ बनेगा विश्व का सबसे बड़ा मंदिर, अगले साल होली के बाद शुभ मुहूर्त के बाद होगी शुरुआत

दुनिया के सबसे बड़े मंदिर के निर्माण कार्य की शुरुआत, बिहार में जल्द होगी। इसकी सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।

सूत्रों के मुताबीत पता चला है कि अगले साल होली के त्योहार के बाद मंदिर निर्माण कार्य शुरू करने के मार्ग में अब कोई व्यावधान नहीं बचा है, क्योंकि कंबोडियाई सरकार की आपत्तियों के बाद मूल योजना में संशोधन किया गया है।
पटना स्थित महावीर मंदिर ट्रस्ट के किशोर कुणाल ने आईएएनएस से कहा, “हमारे विराट रामायण मंदिर पर कंबोडिया सरकार की आपत्तियों के बाद हमने मूल याोजना में संशोधन किया है।”
कंबोडिया ने प्रस्तावित मंदिर को अंगकोर वाट मंदिर की प्रतिलिपि बताते हुए आपत्ति जताई थी।
उन्होंने कहा, “हमने होली के बाद निर्माण कार्य शुरू करने की तैयारी कर ली है, जो एक शुभ मुहूर्त होगा.”
भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी कुणाल ने कहा कि प्रस्तावित मंदिर के डिजाइन या वास्तुकला का अंगकोर वाट मंदिर से कोई लेनदेना नहीं है, जहां हर साल लाखों पर्यटक पहुंचते हैं।
कंबोडियाई मंदिर परिसर का निर्माण 12वीं सदी में राजा सूर्यवर्मन के शासनकाल में हुआ था और अब यह यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल है।
प्रस्तावित मंदिर पश्चिमी चंपारण जिले के केसरिया के निकट जानकी नगर में करीब 165 एकड़ भूमि में बनाया जाएगा. प्रथम चरण में निर्माण कार्य पर 200 करोड़ रुपये की लागत आएगी।
प्रथम चरण में रामायण मंदिर, शिव मंदिर और महावीर मंदिर का निर्माण होगा।
मंदिर का मुख्य आकर्षण इसकी 405 फीट ऊंची अष्टभुजीय मीनार होगी. यह अंगकोर वाट मंदिर की मीनार से ऊंची होगी जो 215 फीट ऊंची है. परिसर में 18 मंदिर बनाए जाएंगे।
मंदिर परिसर में 44 फीट ऊंचे और 33 फीट की परिधि वाले शिवलिंग स्थापित करने का प्रस्ताव है, जो दुनिया में सबसे ऊंचा होगा।
कुणाल ने कहा कि जब गत साल मंदिर निर्माण कार्य शुरू होने वाला था तो कंबोडियाई सरकार ने भारत सरकार से यह कहते हुए आपत्ति जताई थी कि यह अंगकोर वाट मंदिर की नकल है।
कुणाल और उनकी टीम ने योजना की पुनर्जाच की. गत साल और इस साल विदेश मंत्रालय के जरिए नॉम नेन्ह को संशोधित योजना भेजी दी गई थी।
नई दिल्ली स्थित कंबोडियाई दूतावास ने कथित रूप से संकेत दिया है कि आपत्तिजनक स्थिति में वह संशोधन का सुझाव देगा।
कुणाल ने कहा, “मुझे सरकार की ओर से सूचित किया गया है कि कंबोडियाई सरकार से कोई जवाब नहीं मिला है.” इसलिए निर्माण कार्य शुरू करने का निर्णय लिया गया है।
पूर्व पुलिस अधिकारी ने कहा कि मंदिर का डिजाइन खास तौर पर इंडोनेशिया व थाईलैंड समेत भारत और दुनियाभर के दर्जनों प्रमुख मंदिरों से प्रभावित है।
कुणाल ने कहा, “कई मुसलमानों ने मामूली दर पर जमीन दी है. बिना उनकी मदद के इस महत्वाकांक्षी परियोजना को शुरू करना मुश्किल था।”
मंदिर के एक हॉल में 20,000 लोगों के बैठने की क्षमता होगी और मुख्य मंदिर में राम, सीता, लव और कुश की प्रतिमाएं लगाई जाएंगी।
मंदिर का निर्माण नामी विनिर्माण कंपनी एल एंड टी इंडिया करेगी।


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एक साधारण शिक्षिका से मंत्री तक का सफर तय करने वाली बिहार के पर्यटन मंत्री अनिता देवी से खास बातचीत

धान के कटोरा कहे जाने वाला रोहतास जिला के नोखा विधानसभा क्षेत्र के महागठबंधन के राजद का नेतृत्व कर विधायक बनी अनिता देवी आज बिहार सरकार के मंत्रिमंडल में पर्यटन मंत्री है। पहली बार में ही इन्हें जीत हासिल हुई एवं पर्यटन मंत्री बनने का अवसर मिला। राजनीति से इनका पुराना नाता है लेकिन राजनीति में आने से पहले ये शिक्षिका थी। इनके पति स्व. आनंद मोहन सिंह रोहतास जिला के वरिष्ठ राजद नेता थे। पर्यटन मंत्री अनिता देवी से “आपन बिहार” की बातचीत:-

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प्रश्न :अपने पहले चुनाव में ही एक वरिष्ठ नेता को हरा विधायक बनीं, साथ ही राज्य मंत्रिमंडल में भी शामिल होने में सफल रहीं। इतने कम समय में एक साधारण सरकारी शिक्षिका से मंत्री बनने की अपनी इस उपलब्धि पर क्या कहेंगी आप?

उत्तर : जनता की माँग पर ही चुनाव में उतरी, जनता ने ही हमें इस लायक समझा और हमें इस मुकाम पर पहुँचाया है। लोगों के इस समर्थन के लिए हम उनके अभारी हैं और लगातार उनकी सेवा करने के लिए तत्पर हैं।

 

प्रश्न: में महागठबंधन सरकार का एक साल पूरा हो गया है। इस एक साल में बिहार टूरिज्म ने क्या-क्या काम किया है?

उत्तर : बिहार टूरिज्म ने इस एक साल में बहुत काम किया है। बिहार पर्यटन बिहार 350 वां प्रकाश पर्व के रूप में अबतक का सबसे बड़ा आयोजन करने जा रहा है।
साथ ही सभी जिलों के डीएम को निर्देश दिया गया है कि जिले के महत्वपूर्ण स्थलों का डीपीआर बना के भेजा जाए। हमारी पहली प्राथमिकता है कि जो एतिहासिक स्थल हैं उन्हें पहले विकसित किया जाये।
राज्य में 8 नये रोप वे का निर्माण किया जायेगा ।
बोध सर्किट, राम सर्किट, शिव सर्किट, महावीर सर्किट और जैन सर्किट सब पर तेजी से काम चल रहा है।

 

प्रश्न: पटना में होने जा रहे 350वें प्रकाश पर्व के लिए क्या-क्या तैयारियाँ कीं जा रहीं हैं? 

 

उत्तर: पर्यटन विभाग इसकी तैयारी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। गुरुद्वारा परिसर की साफ-सफाई की गई है, रूम बनाये गये हैं। गांधी मैदान, कंगन घाट और बाईपास में टेन्ट सीटी बनाया जा रहा है।

 

प्रश्न: लोगों का एक गंभीर आरोप है कि बिहार पर्यटन का विकास सिर्फ पटना, गया और नालंदा तक ही सीमित है। दुसरे जिलों के पर्यटन स्थलों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा? 

उत्तर : ऐसी बात नहीं है। सब जगह बराबर ध्यान और विकास कार्य जारी है। गया-नालंदा के अलावा भी सीतामढ़ी के प्रसिद्ध पुनौरा धाम, सहरसा के उग्रतारा मंदिर, दरभंगा, मधुबनी समेत सभी जगहों पर पर्यटन का विकास हो रहा है। 

 

 

प्रश्न: कुछ ही दिन पहले UNSCO ने नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष को world Heritage Site का दर्जा दिया है। बिहार में एतिहासिक महत्व के ऐसे कई धरोहर मौजूद हैं। इन धरोहरों को सहेजने के लिए सरकार क्या कर रही है?

 

उत्तर : यह सब पुरातत्व विभाग कर रहा है। और भी अन्य एतिहासिक धरोहरों को पहचान दिलाने का प्रयास किया जा रहा है।

 

प्रशन: बीजेपी का आरोप है कि सरकार से जबसे भाजपा गई है तब से बिहार में पर्यटन का विकास रूका हुआ है? 

 

उत्तर : बीजेपी विपक्ष में है तो उनका काम ही है आरोप लगाना । उनकी बातों को कोई गंभीरता से नहीं लेता है।

 

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प्रश्न : पहली बार प्रकाश पर्व को लेकर बिहार पर्यटन का प्रचार-प्रसार राष्ट्रीय टीवी पर भी देखा जा रहा है । क्या यह आगे भी जारी रहेगा और क्या बिहार पर्यटन किसी को ब्रांड एम्बेसडर बनाने पर विचार कर रहा है?

उत्तर: हाँ, यह प्रचार प्रकाश पर्व के बाद भी जारी रहेगा साथ ही इसके लिए बिहार पर्यटन ब्रांड एम्बेसडर बनाने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। अभी किसी के नाम पर चर्चा नहीं हुई है। हम चाहते हैं कि अधिक से अधिक लोग बिहार आएँ, इसके लिए हम लोग जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं।

 

प्रश्न: बिहार पर्यटन के ही साईट के अनुसार बिहार घूमने आए पर्यटकों में मात्र 30-40% पर्यटक ही संतुष्ट होते हैं। ज्यादातर लोग यहाँ की पर्यटन सुविधाओं से असंतुष्ट हैं। ऐसा क्यों?

उत्तर : पर्यटन सुविधाओं को बढ़ाने का काम चल रहा है ताकि पर्यटकों को बहुत सारी सुविधाएं मिल सकें । जल्द ही उनकी शिकायत दूर होगी ।

 

प्रश्न: प्रकाश पर्व के बाद चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी वर्ष भी है। इसके लिए पर्यटन विभाग की क्या तैयारियाँ चल रही हैं?

उत्तर : इसपर हम लोग चाह रहे हैं कि देश और विदेशों से लोग बिहार आएँ और गांधी जी और उनके विचारों से लोग जुड़ें और उसका फायदा उठाएँ और अमन- चैन के उनके संदेश को दुनिया में फैलायें।

 

‘आपन बिहार’ के द्वारा बिहार पर्यटन के लिए किये जा रहे कार्यों पर आप क्या कहेंगी?

‘आपन बिहार’ बहुत अच्छा काम रहा है। लगातार आपलोग 4 सालों से बिहार पर्यटन का सोशल मिडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार कर रहें है। लोगों को इसकी जानकारी दे रहें हैं और बिहार घूमने आने के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रहें है। यह जानकर बहुत खुशी हुई। बिहार पर्यटन के तरफ से ‘आपन बिहार’ को धन्यवाद!

जगत जननी माँ सीता की जन्म भूमि ‘सीतामढ़ी’

जब मिथला के राजा जनक के राज्य में सुखे से नदी-नाले,कूप तालाव,सभी जल विहीन हो गये,सम्पूर्ण आकाश लाल चहूओर दूरभिक्ष से कोहराम,कोलाहल की बिकट स्थिति हो गयी। तब राज पुरोहितों,विधिज्ञों के परामर्श से महाराजा जनक स्वंय हल चलाते हलेश्वर स्थान से चले,पुनौरा धाम,सीतमढ़ी में हलटोन के नोक पर सोने के पात्र में माँते सीता भूमि देवी के गोद से उद्भव हुई। तक्षण नीलेआकाश सेअमृत जल के फुहार में हर्षों उल्ला स से राजपंक्षी मोड़-मयुर के साथ देवगण ऋषि मुनी,मानव, पशु-पक्षी,सभी जीव-जन्तु भाव विहबल होकर नाच उठे।

पुनौरा धाम, सीतामढ़ी

महर्षि वाल्मिकी के अनुसार मिथला के महाराजा शीरध्वज्य उर्फ जनक एवं महा रानी सुनैया(सुनैना) को कोई संतान नहीं थी। वे भूमि पुत्री को गोद लेकर अपनी पुत्री घोषित कर संतान सुख के साथ जग में पापहरणी सीता माँते को पाल कर अंहकारी राक्षषराज रावण का विनाश एवं रामराज्य की कल्पना को साकार किये।

ज्ञातव्य हो हल के नोक को सीता कहा जाता है,जिसके कारण सीता नामित हुई। महाराजा जनक को बिदेह कहा जाता था, जिसके फलस्वरूप बैदेही नामाकरण भी प्रचलित हुई।

हिन्दु धार्मिक पुस्तकों से प्रकट होता है कि दूबारे पुन:जन्म अनुसार रावण एवं मंन्दोद्री पुत्री थी।

पौराणिक कथायों में वेदवती धार्मिक नारी थी,जो भगवान विष्णु से शादी करना चाह रही थी।वह लौकिक जीवन में नदी किनारे तटबंध पर आश्रम निर्माण कर महातप कर तपस्वीनी, सन्यासी जीवन व्यतित कर रही थी।एक रोज ध्यान, चिंतन में मग्न थी। उसकी सौन्दर्य, सम्मोहन से सम्मोहित हो राक्षष राज रावण विमूढ़,दीवानापन में बल प्रयोग से कुक्रीत्य करने का प्रयास किया। वह दैवी शक्ति से उछल कर हवन के लिए बने अग्नी कुंण्ड में कुद गयी।जलने से पहले शाप् दे गयी।आकाश वाणी हुई कि दूसरे जन्म में वह जन्म लेकर रावण के मौत की कारण बनेगी।

तत्पश्चात दूसरे जन्म में रावण पुत्री के रूप में मंदोद्री के गर्भ गृह में जन्म ली।

दार्शनिकों,राजपुरोहितों के कथन अनुसार रावण के मृत्यु की कारण बनने की अाशंकाओं को मूल से विनाश करने के दृष्ट्री कोन से रावण अपने प्राण रक्षार्थ उस अबोध बच्ची को गहरे समुन्द्र की धारा में फेक दीये।बच्ची को समुन्द्री देवता परमेश्वर वरूणी नदीतल में धीरे-धीरे बहते हुए समुन्द्री तटबंध किनारे धरती माँते की गोद मे स्मर्पित कर दी।तत्पश्चात भूदेवी,धरती माँते महराजा जनक को वही बच्ची सुपूर्द कर दी।कालान्तर में यही जगत जननी माँते सीता पापहरणी ,अंहकारी राक्षष राज रावण के विनाश की कारण सिद्ध हुई तथा मर्यादा पुर्षोत्म राम के साथ वन में भटक कर नारी की मर्यादा को गौरवान्वीत की।

साथ ही जन्म स्थली सीतमढ़ी,पालन-पोषन स्थली जनकपुर (नेपाल)में पैत्रिक राजा जनक का महल एवं बिबाह हेतु प्रतिज्ञा शर्त,धनुष यज्ञ स्थल धनुषा जनकपुर बिदाई की (बाट)राह में विश्रामस्थल पंथपाकर,देवकुली,आदी के साथ ससुरालअयोध्या में महाराजा दशरथ के यश पराकर्म की अमर गाथायें चिर संस्मरणीय सदैव पुज्यनीय बना गयी।

  • हलेश्वर स्थान – महाराजा जनक जब दूर्भिक्ष,कोलाहल,कोहराम से त्राण एंव संतान की मनोकामना लेकर हलेश्वर धाम महादेव पूँजा,अर्चना कर हल चलाना प्रारंभ किये। तब पुनौराधाम में भूमिदेवी के गोद में हल के नोक पर सोने की पात्र में एक,बच्ची  मिली।चहूदिशायों में प्रकाश बिखर गया। नीले आकाश से पुष्ष बृष्ट्री के साथअमृत जल फुहार की वर्षा से देव गण,ऋषि-मुनी, मानव,पशु-पक्षी, सभी जीव-जन्तु हर्ष उल्लास से भाव-वभोर  होकर राज पंक्षी मोड़-मयुर के साथ नाच उठे। राजा जनक ,रानी सुनैया(सुनैना) की मनोकामना पूर्ण हुई। यही मान्यताये है कि हलेश्वर स्थान महादेव के पूँजा,अर्चना से मनोकामना पूर्ण होती है।जानकी सर्किट में दर्शणीय स्थल है।
  • जनकपुर धाम,नेपाल – महाराजा जनक का राज दरवार,जहाँ सीतमढ़ी से भूमि देवी पुत्री सीता को राजा जनक गोद लेकर लालन,पालन,पोषण एवं सफल धनुष यज्ञ शर्त पश्चात भगवान राम से व्याह रचा कर अयोध्या के लिए विदा किये।यह विशाल राजमहलआज दर्शणीय भव्य मंदीर है।सीतामढ़ी से भिठ्ठा मोड़ भारत-नेपाल सीमा पार कर सुगम मार्ग से दर्शणीय है।महल में मर्यादा पुर्षोतम भगवान राम एवं माँते सीता विबाह मंडप,हवन कुण्ड,शोभा यात्रा आदी की विस्तृत झांकियाँ दर्शनीय है।

    जनकपुर धाम, नेपाल

  • धनुष – माँते सीता के लिए योग्य पति की तलास में महाराजा जनक के शर्त “भगवान परशुराम के धनुष यज्ञ में महाप्रतापि विजेता”से ही धनुष यज्ञो परान्त सीता की शादी होगी।यही यज्ञ स्थल है।जहाँ आज भी धनुष का अवशेष पुज्यनीय, दर्शनीय है। यह विदेश नेपाल में जनकपुर से निकट है। सभी धार्मिक वृति के लोग पैदल परिक्रमा में दर्शण-पुँजा करते है।
  • अहिल्या स्थान,उचैठ भगवती माँते स्थली,अन्हारी मनोकामना महादेव,देवकुली भुनेश्वरनाथ महादेव धाम आदी माँते सीता एवं भगवान राम के दर्षणीय पुज्यनीय स्थल है।

 

बिहार के इस मंदिर में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग आपसी भाईचारे से पूजा-अर्चना करते हैं

शैलेश कुमार || भगवान भोले की पावन नगरी खुदनेश्वर धाम समस्तीपुर जिला के मोरवा ग्राम में अवस्थित
है। यहाँ की महीमा अदभूत हैं। इस मंदिर की विशेषता है की हिंदु और मुस्लिम दोनो समुदाए के लोग आपसी भाईचारा के साथ पुजा अर्चना करते हैं। हर साल सावन के महीने में लाखों काँवरिया भोले बाबा को जलार्पन करते हैं। यहाँ पे शीष झुकाने वाला कोई भी भक्त खाली नहीं लौटता हैं उनकी हर मुराद पुरी होती हैं।

इतिहास 

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खुदनेश्वर धाम का इतिहास 100-200 वर्ष पुराना हैं यहाँ के स्थायी निवासीयो के अनुसार कहानी हैं कि वर्षों पहले एक मुस्लिम लड़की जिसका नाम खुदनो था रोज अपनी गाय को चराने जंगल में आया करती थी। एक दिन अचानक वापस घर जाने के समय मे उसने देखा गाय एक स्थान पर खड़ी हैं एवं उसके थन से सारा दुध जमीन में गिरता जा रहा हैं । ये सब देख खुदनो को विश्वास ही नहीं हो रहा था। कुछ देर पश्चात गाय वहा से घर की ओर चलने
लगी। खुदनो ने ये सारी बाते अपने अब्बा (पिता) को बताई पर वे इस पर गौर नही किये और खुदनो को ही खुब डाँटा की तुम तो खुद ही सारा दुध पी जाती हो और मुझे झुठी कहानी सुनाती हो।

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अगले दिन फिर से वही सब हुआ खुदनो को अब बहुत डर लगने लगा वह घर जा कर फिर अपने अब्बा को सारी कहानी बताई पर वे मानने को तैयार ही नहीं थे। कुछ दिन के बाद खुदनो का देहांत हो गया।तब सारे लोग उसे दफनाने को जंगल मे उस स्थान पर ले गये जहाँ पे गाय का दुध गिरता था।वहाँ की मिट्टी को कुदाल से हटाया जाने लगा कुछ गहराई तक कुरेदने के बाद एक काला पत्थर मिला। लोग उसे बाहर निकालने के लिए चारो ओर से खुदाई करने लगे पर उस शिव रुपी पत्थर का आकार बहुत बड़ा होने लगा। लोग डर के खुदाई करना बंद कर दिए और अपने घर को चले गये। कहा जाता है कि खुदाई के क्रम में एक कुदाल शिवलिंग पे लग गया जिससे की वहा से खुन निकलने लगा।उसी रात स्वप्न में खुदनो के पिता को शिव का क्रोध से भरा रुप दिखाई दिया । स्वंय भोले नाथ ने मंदिर का निर्माण एवं खुदनो को अपने समीप ही दफनाने का आदेश दिया।

तत्पश्चात रात से ही मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और बाबा भोले के आदेशानुशार खुदनेश्वर धाम का नाम पड़ा।
जय भोलो शंकर का जयकारा तब से लेकर अब तक
हर रोज यहाँ सुबह शाम लगाया जाता हैं। भगवान के समीप रहने से मन में अनवरत् शांति मिलती हैं। सच्चे मन से माँगी मुराद पुरी होती हैं।

मंदिर तक पहुचने का पता

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समस्तीपुर से 16 किमी की दुरी पर मोरवा ग्राम के बीच में खुदनेश्वर धाम हैं। यहाँ आने के लिए बस ,आटो रिकसा , एवं निजी वाहन हर समय उपलब्ध हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन समस्तीपुर हैं। वहाँ हर समय बाबा मंदिर के
लिए गाड़ी मिलती हैं