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विस्थापन, बाढ़ और कोरोना वायरस से जूझता बिहार, चुनाव की ओर अग्रसर क्यों?

बिहार न जाने कितनी ही समस्याओं से लड़ता रहा है। शायद उन्हीं समस्याओं से पार पाने के लिए बिहार के हर दूसरे घर का युवा या तो सरकारी नौकरी की तैयारी करता है। या फ़िर किसी अच्छे रोज़गार की तलाश में बिहार से बाहर किसी दूसरे राज्य, शहर या महानगर का रुख़ करता है। पलायन करने वालों में एक बड़ी संख्या उन लोगो की होती है, जो बिहार से बाहर का रुख़ करके दूसरे शहरों में मज़दूरी करते हैं। ये मज़दूर आपको कश्मीर से कन्याकुमारी, हर क्षेत्र में मिलेंगे जो किसी ना किसी प्रकार से निर्माण कार्यों में अपना योगदान दे रहे होंगे।

साल के तीसरे महीने में कोरोनावायरस के कारण हुई तालाबंदी के बाद शुरू हुए अकस्मात विस्थापन से इन मज़दूरों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। जिन शहरों को इन्होंने अपने हाथों से रचा, उन्हीं शहरों ने उन्हें उस मुश्किल घड़ी में निर्मम होकर सैकड़ों किलोमीटर भूखे-प्यासे पैदल चलने को छोड़ दिया। प्रशासन की आँखें खुलीं तबतक कई मज़दूर अपनी जान गँवा चुके थे। ख़ैर, इस समस्या पर काफ़ी हद तक काबू पाया जा चुका है।  धीरे-धीरे तालाबंदी को कम किया जा रहा है और कई मज़दूर अपनी आजीविका के लिए वापस शहरों की ओर जा चुके हैं।

बाढ़ और महामारी की मार!

बिहार लगभग हर वर्ष बाढ़ की मार झेलता है। खेतों में तैयार खड़ी फ़सलें बाढ़ की भेंट चढ़ जाती हैं। इस वर्ष भी ऐसा ही हुआ। यानि, हर वर्ष आती बाढ़ से प्रशासन ने कोई सीख नहीं ली और बाढ़ का पानी एक बार फिर से किसानों की मेहनत पर पानी फेरने में कामयाब रहा। लेकिन जो मौसम की मार के आगे हार जाए, वो किसान कहाँ? बर्बाद हुए खेतों से कुछ बची-खुची अपनी मेहनत का हिस्सा ढूँढते किसान फिर से खलिहानों को फसलों से सजाने की जद्दोजहद में लग गए हैं।

ध्यान देने वाली बात है कि, मौसम की मार से बेहाल हुए किसान सरकार से मदद की आस तो रखते हैं, लेकिन इस आस पर निर्भर नहीं होते। क्योंकि वह सत्ता की सच्चाई से कतई अनभिज्ञ नहीं हैं।

और इस बार तो बाढ़ ने अकेले कहर नहीं ढाया है। कोरोनावायरस नामक मुसीबत भी तेज़ी से बिहार में पैर पसार रही है। बिहार 12.85 करोड़ की आबादी वाला राज्य है। कोरोनावायरस से बिहार में अबतक करीब 40,000 लोग संक्रमित हो चुके हैं जिनमें से लगभग 26,000 मरीज़ ठीक हो चुके हैं और 250 के करीब मौतें हो चुकी हैं।

यह स्थिति तब है जब, 10 लाख लोंगों पर करीब 4000 सैम्पल का टेस्ट किया जा रहा है और हर 100 में से 7 लोग संक्रमित पाए जा रहे हैं। स्वास्थ्य व्यवस्था का चिर-परिचित हाल तो बच्चों में होने वाली बीमारी एन्सेफलाइटिस के वक़्त सामने आ ही जाता है। लेकिन महामारी को देखते हुए कम से कम थोड़ी बहुत दुरुस्ती की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन प्रशासन ने सफलतापूर्वक इस उम्मीद पर भी पानी फेर ही दिया। कोरोना-काल में स्वास्थ्य सुविधाओं के तैयारी की सच्चाई सोशल मीडिया पर घूमते अस्पताल या मेडिकल स्टोर के बाहर पड़े लोगों वीडियो और तसवीरें बयां करने में सक्षम हैं।

जनता त्रस्त और प्रशासन चुनाव पर अटल

इतनी परेशानियों के बीच एक चीज़ है जो स्थगित तो की जा सकती है। लेकिन की नहीं जा रही। वह है लोकतंत्र का महापर्व “चुनाव”। बिहार में इसी वर्ष के अंत तक विधानसभा चुनावों का आयोजन किया जाना है। राजनीतिक दल चुनाव जीतने की तैयारी भी कर चुके हैं और एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चल रहा है। सत्ता पक्ष (15 वर्ष से सत्तासीन) पूर्व मुख्यमंत्री से राज्य में अस्पताल ना बनवाने का कारण पूछने में भी पीछे नहीं नहीं हट रहा।

ऐसे वक़्त में जब, क्या आम और क्या खास, सभी एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल इलाज की तलाश में चक्कर काट रहे हैं, तब भी प्रशासन के लिए चुनाव महत्वपूर्ण हो चले हैं।

चुनाव करवाने के लिए हर संभव तरीके को तलाशा जा रहा है। स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी खराब क्यों है? इसे ठीक करने के लिए क्या प्रयास किये जा रहे हैं और अगर प्रयास हो ही रहे हैं, तो राज्य में व्यवस्था सुधारने की जगह और बिगड़ क्यों रही है? इसका जवाब शायद ही मिले। क्योंकि परेशान परिजनों की अस्पताल कर्मियों से मरीज़ को अस्पताल में भर्ती करने की गुहार लगाने वाली वायरल वीडियो, हर दावे की सच्चाई को सामने रख देते हैं।

तो इन सब के मद्देनजर, क्या बिहार को विधानसभा चुनाव की ओर धकेलना सही निर्णय होगा? और अगर चुनाव तय वक़्त पर होने जा ही रहे हैं, तो सत्ता पक्ष किन कार्यों के बदले मतदाताओं से वोट माँगेगा? महामारी के काल में प्राथमिकता जनता के स्वास्थ्य की रक्षा होनी चाहिए। मतदाता अगर खुद ही महामारी से भयभीत हो तो वह कैसे उम्मीदवार का चुनाव करेगा? वरना बिहार के अस्पताल और देशभर के सोशल मीडिया बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं की उड़ती धज्जियों से भरमाए हुए हैं। फैसला कुछ आपके और कुछ प्रशासन के हाथ में है। लोगों की ज़िंदगी बचाने के प्रयास या अव्यवस्था के बीच चुनाव!

– खुशबू

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बिहार में बाढ़ के आफ़त के बीच, महिला ने एनडीआरएफ की नाव में दिया बच्ची को जन्म

बिहार के दस जिले बाढ़ की चपेट में हैं। जिला प्रशासन राहत एंव बचाव कार्य में जुटी हुई है। गांव के गांव जलमग्न हो चुके हैं। सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी हैं। ऐसे में राहत और बचाव दल लोगों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। इस बीच बिहार के उत्तरी हिस्से में आई बाढ़ में राहत एवं बचाव में जुटे राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की नौवीं वाहिनी की एक बचाव नौका पर गर्भवती महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया।

एनडीआरएफ की 9वीं बटालियन के रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान उसकी बोट पर एक गर्भवती महिला ने एक बच्ची को दिया जन्म दिया है। महिला का नाम रीमा देवी और उम्र 25 वर्ष बतायी जा रही है। दरअसल यह महिला प्रसव को लेकर बेहद परेशान थी। परिवार के लोग महिला के प्रसव को लेकर काफी परेशान थे।

कैसे किया महिला और बच्चे को रेस्क्यू

मामला बिहार के चंपारण जिले का है। ये जिला भी बाढ़ से ग्रसित है। कई लोगों की तरह यहाँ एक गर्भवती महिला भी बाढ़ में फंसी हुई थी। सूचना मिलने पर एनडीआरएफ की टीम ने महिला का रेस्क्यू किया। महिला बोट के जरिये बाहर नहीं निकल पाई, इससे पहले ही प्रसव पीड़ा हुई और महिला ने बच्चे को जन्म दिया।

महिला की गंभीर स्थिति को देखते हुए एनडीआरएफ रेस्क्यू बोट पर ही प्रसव कराने का फैसला लिया गया।एनडीआरएफ के बचावकर्मी, आशा सेविका और उनके परिवार के महिलाओं के सहयोग से सफल एवं सुरक्षित प्रसव करा लिया गया और इस प्रकार बाढ़ के बीच मजधार में एक नन्हीं बच्ची की किलकारी गूंज उठी।

इसके बाद नवजात शिशु को एनडीआरएफ की टीम द्वारा महिला और बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। महिला और बच्चे की स्थित ठीक बताई जा रही हैं।

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क्या बाढ़ के पानी में फिर डूबेगा उत्तर बिहार?

देश में अलग-अलग हिस्सों में सावन ऐसा झूमकर आया कि कई जगहों पर बारिश और बाढ़ से लोग बेहाल हैं। नदियां उफान पर हैं और अपनी हदें तोड़ने पर आमादा हैं। यूपी से लेकर बिहार, बंगाल से लेकर पूर्वोत्तर, महाराष्ट्र से लेकर मध्य प्रदेश तक और असम से अरुणाचल प्रदेश तक कई इलाकों में बारिश से आफत आई है। उत्तर बिहार और नेपाल में भारी वर्षा का असर नदियों पर दिखने लगा है।

नेपाल में लगातार हो रही बारिश से बिहार में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। उत्तर बिहार की नदियां बागमती, कमला, गंडक के अलावा पहाड़ी नदियों का जलस्तर भी तेजी से बढ़ने लगा है। इससे मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मोतिहारी, मधुबनी, और बेतिया में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। वाल्मीकिनगर झंडु टोला स्थित एसएसबी कैंप में पानी भर गया है।

उत्तर बिहार में 48 घंटे तक भारी बारिश के आसार  

मानसून की अक्षीय रेखा के हिमालय की तराई क्षेत्र की ओर शिफ्ट कर जाने के कारण बिहार के उत्तरी भाग में ज्यादातर जगहों पर भारी बारिश जारी है। इसके अलावा सूबे के दक्षिण और मध्य भाग में एक दो जगहों पर भी भारी बारिश की स्थिति बनी हुई है। अगले 48 घंटे तक उत्तर बिहार के लगभग सभी भागों में भारी बारिश और कुछ जगहों पर अत्यधिक भारी बारिश के आसार हैं। इन इलाकों में वज्रपात की भी चेतावनी जारी की गई है।

मौसम विज्ञान केंद्र पटना के पूर्वानुमान के अनुसार अगले 72 घंटे बाद बारिश की तीव्रता में कमी आएगी। मौसम विज्ञान केंद्र से मिले इनपुट के आधार पर उत्तर बिहार और मध्य बिहार के कुल 19 जिलों में अलर्ट की स्थिति बनी हुई है।

CO कर रहे तटबन्ध की निगरानी

फिलहाल नदियां खतरे निशान से नीचे हैं लेकिन जिले में अलर्ट जारी करते हुये दरभंगा DM त्याग राजन ने तटबंध का निरीक्षण किया है साथ ही सभी को सतर्क रहने की बात कही है।  जिले के 80 प्रतिशत आबादी नदियों के अगल बगल में बसे होने के कारण बाढ़ की खतरा ज्यादा है।

तारडीह प्रखंड के सकतपुर इलाके में कमला नदी का पानी फैलने लगा है।  यहां पानी की बढ़ती रफ़्तार को देखते हुए बांध की सुरक्षा के पूरे उपाय किये जा रहे हैं।  खुद तारडीह प्रखंड के CO अशोक कुमार यादव ने बांध का निरीक्षण किया साथ ही गांव के लोगों को भी अलर्ट किया।

नदियों के जलस्तर में वृद्धि से दहशत में लोग

इलाके के लोगों को बाढ़ का डर अभी से ही सताने लगा है।  रंजीत कुमार झा ने कहा कि पानी जितनी तेजी से बढ़ रहा है अगर यही हाल रहा तो जहां बांध नीचा है वहां से पानी इलाके में फैल सकता है।  मालूम हो कि यह इलाका तारडीह प्रखंड के कैथवाड़ का है जहां पिछली बार दो जगहों से बांध टूटने की वजह से 14 पंचायत बुरी तरह बाढ़ से न सिर्फ प्रभावित हुए था बल्कि कई घर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त भी हो गए थे।  यही वजह है कि बाढ़ की पिछली त्रासदी को झेल चुके ग्रामीणों के बीच अभी से ही डर बना हुआ है।

सुपौल के कई गांवों में घुसा पानी, टूटीं सड़कें

भारी बारिश से कोसी-महानंदा सहित अन्य सहायक नदियों के जल स्तर में उतार-चढ़ाव जारी है।  सुपौल के तटबंध के अंदर के दर्जनों गांवों में बाढ़ का पानी घुस गया है। कटिहार के कई इलाकों में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है।  बारिश के कारण कोसी नदी के जल स्तर में वृद्धि दर्ज की गयी। शुक्रवार को ही कोसी का डिस्चार्ज ढाई लाख क्यूसेक को पार कर चुका था, जो शनिवार की सुबह इस वर्ष के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया।

शुक्रवार एवं शनिवार को कोसी बराज से निकला पानी सुपौल, किसनपुर, सरायगढ़, निर्मली, मरौना के दर्जनों गांवों में पानी प्रवेश कर गया है।  दर्जनों सड़कें ध्वस्त हो गयी हैं. कटिहार में महानंदा के जल स्तर में वृद्धि हुई है।  पिछले 18 घंटे में इस नदी का जल स्तर 30 सेंटीमीटर बढ़ा है।

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हमारे लिए बिहार में बाढ़ है तो बिहार में ही बहार भी है

नमस्कार!

हम बिहारी हैं भाई साहब! वही बिहारी जिसके बारे में सोचते ही आपका ही नहीं, नेताओं का मन भी “कइसन-कइसन” हो जाता है। वही बिहारी जिसको आप पहचान जानने के बाद पहले की तरह नहीं स्वीकार पाते, न जाने क्यों? वही बिहारी जो देश-विदेश के तमाम प्रतियोगिताओं में आपको कड़ी टक्कर ही नहीं देता, विजेता बनकर सामने भी आता है। हम बिहारी हैं भाई साहब! बिहारी, जिसकी भाषाएं तक आपको भाषाएं नहीं लगतीं। बिहारी, जिसके पास पहाड़ तोड़ने भर का सब्र तो है, पर इस सब्र के पीछे की जिजीविषा आप तक कभी पहुँच नहीं पातीं।

जन्म के साथ ही ये बिहारी वाला टैग हमारे साथ चिपक जाता है और हमारे पास एक किलोमीटर लंबी लिस्ट भी होती है महान बिहारियों की। पर… पर… पर! बिहारी होना क्या इतना भर ही होता है?

शायद नहीं! बिहार वह क्षेत्र है जो हर साल 6 महीने बर्बाद होने में और 6 महीने अपने ही देश के अन्य हिस्सों से जूझने में बिताता है। बिहार वह क्षेत्र है जो हर साल बिखर जाने के बाद भी हर साल खड़े होकर देश के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभाता है। बिहार वह क्षेत्र है जो अपने इतिहास पर इठलाता है तो देश के वर्तमान हेतु भागीदारी भी दिखाता है। बिहार वह क्षेत्र है जो प्रकृति के परम् सत्य से परिचित है, यह जानता है “परिवर्तन ही संसार का नियम है” का मर्म!

बिहार की गाथा में नेतृत्वकर्ता से अधिक महत्व है लोक-मानस का, लोक संस्कृति का, लोक-रंग का! यहाँ का नेता होली में आम लोगों की ही तरह कुर्ता फाड़ हुड़दंग करता है, यहाँ के अमीर घर में जमीन पर ही आसन लगाकर खाते हैं। यहाँ के लोगों के लिए भद्दे कमैंट्स तो आप ट्रेन में सीट देते हुए भी कर ही देते हैं और हमारे पास उससे सुनने के अलावा कोई चारा भी नहीं होता। ‘चारा’ सुनकर भी हमपर हंसने वाले हाज़िर हो जाएंगे! पर क्या यह देश कभी समझ पायेगा बिहारियों के चुप रह जाने के पीछे छुपे दर्द को? क्या इस देश के लोग अपने ही साथी राज्य की खामोशी को कभी पढ़ने की कोशिश करेंगे? क्या हम कभी स्वीकार किये जायेंगे इस देश के अभिन्न अंग की तरह?

जानते हैं! बाढ़ और सुखाड़ आपके यहाँ तो कभी-कभी आती है, हम तो बिना इसके साल के गुज़र जाने की कल्पना ही नहीं कर सकते। आपके यहाँ महामारी तो दशकों बाद आती है, हम तो उसमें हर साल जान झोंकने को तैयार रहते हैं। आपके यहाँ अनुकूल परिस्थितयों में आगे बढ़ने के तमाम अवसर हैं, हमारे यहाँ आगे बढ़ने का एक ही मकसद है, अपने लिए परिस्थितयों को अनुकूल करना या परिस्थितयों के अनुकूल हो जाना।

आपकी विकट समस्यायों के लिए देश के पास लाखों की संख्या में बुद्धिजीवी वर्ग खड़ा मिलता है। राजनैतिक पार्टी विशेष तो रोने-धोने को तैयार हो जाती है। बिहार खुद भी आपके दर्द में आपको कंधा देता है, तेल-मालिश का जुगाड़ करता है। इसके बाद बिहार को क्या मिलता है?

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केरल, महाराष्ट्र, उत्तराखंड में शहरी बाढ़ की विपदा हो या किसानों के लिए आकाल की स्थिति, आपको डोनेशन की ज़रूरत पड़ ही जाती है। आप समझने लगते हैं इसके फायदे। पर क्या आप उतने ही तैयार होते हैं बिहारियों के लिए भी?
बिहार आपके डोनेशन की फिक्र करता भी नहीं। यह जनता अपने नेताओं की नीतियों व घोटालों की मारी हुई जनता है, यह जानती है आपके डोनेशन का सिर्फ ‘न’ ही इन तक पहुंचेगा!

इन्हें सम्भलना खुद है! इन्हें अपनी बर्बादी का मंजर भी खुद ही दिखाना है और खुद ही अपने को आबाद भी करना है! इनके पास साधन कम हैं, ये उपलब्ध साधनों में स्थिति सामान्य कर देने का धैर्य लेकर जीते हैं।

आपको लगने लगा होगा कि बिहारियों को जलन क्यों हो रही आख़िर, कि अन्य राज्यों में मदद पहुंचाई जा रही पर यहां नहीं। पर ऐसा नहीं है। हमारे अंदर कोई जलन नहीं। आकर देखिए सब बिहारी अपनी परिस्थितियों, अपनी विवशता से लड़ने, जूझने और झूमने के लिए तैयार बैठा है।

पर साहब! हॉस्पिटल के दो बिस्तर पर दो मरीज़ एक ही तरह की बीमारी से ग्रसित हों। एक के पास सर्वोत्तम व्यवस्था पहुंचाई जा रही हो, उससे मिलने वालों का तांता लगा हुआ हो और दूसरे बिस्तर की तरफ कोई देखे तक नहीं। ऐसे में वो अपने दर्द को ज़ाहिर तो करेगा न! ऐसे में उसके दर्द को थोड़ा और दर्द तो होगा न! ऐसे में उसके दर्द की कीमत उसको पता तो चलेगी न! उसके दर्द में विवशता तो दिखेगी न! बस इत्ती सी बात है!

बाकी हम तो बिहारी हैं भाई साहब! दिल नहीं, जिगरा वाले बिहारी! हम तो रोते भी बरसात में हैं और अपने आंसुओं के बाढ़ का जश्न भी मनाते हैं! हम ज़िंदाबाद हैं, ज़िंदाबाद ही रहेंगे! हमारे लिए बिहार में बाढ़ है तो बिहार में ही बहार भी है! जय बिहार! जय हिंद!

– नेहा नुपुर 

बिहार में बाढ़ पीड़ितों के मदद के लिए आगे आएँ आमिर खान, दिए इतने लाख रूपयें

बिहार में आई भीषण बाढ़ को लेकर देशभर से मदद के हाथ उठ रहे हैं| बालीवुड स्टार आमिर खान की कंपनी आमिर खान प्रोडक्शन प्राइवेट लिमिटेड ने 25 लाख का चेक डाक के माध्यम से मुख्यमंत्री राहत कोष में भिजवाया है| बुधवार को आमिर खान प्रोडक्शन प्राइवेट लिमिटेड की तरफ से भेजा गया चेक डाक के माध्यम से मुख्यमंत्री सचिवालय को मिला|

बिहार के 19 जिले भीषण बाढ़ की मार झेल रहे हैं| नेपाल की तरफ से आई बाढ़ ने जबरदस्त तबाही मचाई. बाढ़ की वजह से जानमाल का नुकसान हुआ और 500 सौ से अधिक लोग इसके शिकार हुए हैं| निजी और सरकारी सम्पति का व्यापक नुकसान हुआ है| रेलवे को भी जबरदस्त खामियाजा भुगतना पड़ा है|

गौरतलब है कि हाल ही में आमिर ने लोगों से राहत कार्यो में मदद के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में योगदान की अपील की थी| आमिर ने कहा था, “प्राकृतिक आपदाओं पर हमारा कोई वश नहीं है। लेकिन हम स्थिति में सुधार के लिए अपना योगदान तो दे ही सकते हैं। मैं हमारे देश के सभी नागरिकों से बिहार के मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में योगदान करने की अपील करता हूं, ताकि हमारी सरकार भी स्थिति में सुधार के लिए काम कर सके।”

आमिर खान का बिहार से लगाव रहा है. सीरियल सत्यमेव जयते के दौरान उन्होंने बिहार के गया में दशरथ मांझी के गांव का दौरा किया था| तब पटना का लिट्टी चोखा उन्हें काफी पसंद आया था| बीजेपी के राज्यसभा सांसद डॉ सीपी ठाकुर ने भी 20 लाख रुपये मुख्यमंत्री राहत कोष में दिए|

बता दें कि दंगल जैसी ब्लॉकबस्टर हिट फिल्म देने के बाद आमिर खान की अगली फिल्म ‘सीक्रेट स्टार’ रिलीज होने जा रही है| इस फिल्म की कहानी एक मुस्लि‍म फैमिली की बच्ची की कहानी है जिसे सिंगर बनना है लेकिन उसके पि‍ता को ये पसंद नहीं| अपने सपनों को सच करने के लिए वो यूट्यूब पर बुर्का पहनकर अपना एक वीडियो अपलोड करती है जिसे लोग पसंद करते हैं|

Alert : बिहार में बाढ़ का खतरा, कई नदीयां उफान पर।

बिहार में लगातार हो रही बारिश और नेपाल के जलग्रहण क्षेत्र से पानी छोड़ने के कारण कोसी व बागमती नदियां उफना गई है। लोगों को सताने लगा बाढ़ का डर।

उफनाई नदियों का पानी अब तटबंध के भीतर इलाके के साथ-साथ दियारा क्षेत्र के मैदानी इलाके में फैलने लगा है। कई स्परों पर दबाव बढ़ना शुरू हो गया है।

कटिहार में महानंदा नदी उफान पर है। हालांकि जहां दबाव बना हुआ है वहां कार्यपालक अभियंता के नेतृत्व में इंजीनियर कैम्प किये हुए है।

 

सुपौल के पूर्वी कोसी तटबंध के 19़.92, 20. 20 और 21. 60 पर मंगलवार को दबाव घटने से अभियंताओं को थोड़ी राहत मिली। पिछले दो दिनों से नदी इन स्परों पर काफी दबाव बना हुआ था। इन स्परों पर जियो बैग, नाइलोन केट द्वारा फ्लड फायटिंग कार्य किये जा रहे है। बीते तीन दिनों से कार्यपालक अभियंता इन्द्रजीत सिंह के नेतृत्व में टीम कैम्प कर रही है।

पश्चिमी कोसी तटबंध के सिकरहट्टा मझारी निम्न सुरक्षा बांध पर 8.20 और 9.40 किलोमीटर पर पानी का दबाव बढ़ने से सुरक्षा बांध पर खतरा मंडराने लगा है। मंगलवार को कोसी नदी का जलस्तर 1 लाख 78 हजार मापा गया।

 

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प्रधानमंत्री मोदी ने मानी सीएम नीतीश कुमार की बात, बिहार में बाढ़ की स्थिति के अध्ययन के लिए पहुंची टीम

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केंद्र सरकार ने बिहार के गंगा में गाद (सिल्ट) का अध्ययन करने के लिए चार सदस्यीय एक टीम बिहार भेजी है। यह टीम बक्सर से लेकर फरक्का तक गंगा में जमे गाद और उससे बिहार में उत्पन्न बाढ़ की स्थिति का अध्ययन कर 10 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंप देगी। केंद्रीय जल आयोग के एक अधिकारी ने गुरुवार को बताया कि गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के सदस्य एके सिन्हा की अध्यक्षता में चार सदस्यीय टीम गुरुवार को बिहार पहुंच गई है। इस समिति में पटना स्थित केंद्रीय जल आयोग के मुख्य अभियंता एस. के साहु, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली के प्रोफेसर एके. के गोसाईं और केंद्रीय आपदा प्रबंध प्राधिकरण के सलाहकार रजनीश रंजन शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की थी। उस दौरान नीतीश ने कहा था कि बाढ़ त्रासदी गंगा में गाद की वजह से है। इसके लिए एक निष्पक्ष विशेषज्ञों की टीम बिहार भेजी जाए जो इसका अध्ययन कर रिपोर्ट सौंपे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है कि बिहार में गंगा में आई बाढ़ का मुख्य कारण फरक्का बैराज है, जिस कारण गंगा में अधिक सिल्ट जमा हो रही है।

बिहार में सभी प्रमुख नदियों के जलस्तर में लगातार गिरावट जारी है। कई बाढ़ प्रभावित इलाकों से बाढ़ का पानी भी उतर रहा है। राज्य में गंगा सहित अन्य नदियों में हाल में आई बाढ़ से पिछले 24 घंटे के दौरान दो लोगों की मौत हो गई, जिससे मरने वालों की संख्या 72 तक पहुंच गई। हाल में आई बाढ़ से 12 जिलों के 2,029 गांवों की 37.70 लाख आबादी प्रभावित है।

राज्य आपदा विभाग के एक अधिकारी ने गुरुवार को बताया कि पिछले 24 घंटे के दौरान राज्य में बाढ़ से दो लोगों की मौत हो गई है, जिससे बाढ़ में मरने वालों की संख्या 72 हो गई है। इनमें भोजपुर जिले में 21, समस्तीपुर में 12, बेगूसराय में 11, वैशाली में सात, खगडिय़ा में छह, सारण में पांच, लखीसराय में पांच, भागलपुर में दो और पटना, बक्सर तथा मुंगेर जिलों में एक-एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है।

आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, अब तक करीब 7.23 लाख लोगों को बाढग़्रस्त इलाकों से बाहर निकालकर सुरक्षित स्थान पर लाया गया है, जिनमें से करीब 3.99 लाख लोगों को 662 बाढ़ राहत शिविरों में रखा गया है। बाढ़ से करीब 3.70 लाख मवेशी भी प्रभावित हुए हैं। मवेशियों के लिए भी 204 शिविर स्थापित किए गए हैं।

इधर, पटना स्थित बाढ़ नियंत्रण कक्ष के मुताबिक, गुरुवार को गंगा नदी पटना के हाथीदह, भागलपुर तथा कहलगांव में और बूढ़ी गंडक नदी खगडिय़ा में खतरे के निशान से उपर बह रही है। प्रदेश की शेष सभी नदियां खतरे के निशान से नीचे बह रही हैं।

वर्तमान समय में भागलपुर, खगडिय़ा और कटिहार जिले बाढ़ से अधिक प्रभावित बताए जाते हैं। बिहार में गंगा नदी के उफान पर होने के कारण बक्सर, भोजपुर, पटना, वैशाली, सारण, बेगूसराय, समस्तीपुर, लखीसराय, खगडिय़ा, मुंगेर, भागलपुर और कटिहार जिलों में अब भी कमोबेश बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। उल्लेखनीय है कि इस मौसम में दो चरणों में अब तक आई बाढ़ से राज्य के कुल 24 जिलों की 72.30 लाख आबादी प्रभावित हुई है।