दिल्ली के सरकारी स्कूलों में होगी भोजपुरी-मैथली भाषा की पढाई

भोजपुरी और मैथली भाषा के लिए बिहार सरकार ने जो अभी तक नहीं किया वह दिल्ली करने का फैसला किया है| दिल्ली सरकार ने मैथिली और भोजपुरी भाषा को बढ़ावा देने के लिए बड़ा फैसला लिया है। सोमवार को दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट कर के बताया कि जल्द ही दिल्ली सरकार के स्कूलों में मैथिली भाषा की पढ़ाई शुरू होगी। उन्होंने बताया कि आठवीं से बारहवीं क्लास तक के बच्चे पंजाबी और उर्दू की ही तरह मैथिली को भी एक ऑप्शनल सबजेक्ट के रूप में पढ़ सकेंगे।

यही नहीं दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के अनुसार मैथली-भोजपुरी अकादमी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराएगी| मैथली का कम्प्यूटर फॉन्ट बनवाया जाएगा| दिल्ली सरकार मैथली-भोजपुरी भाषा के अवार्ड भी शुरू करेगी| सरकार द्वारा कुल 12 अवार्ड दिए जाएंगे|

मनीष सिसोदिया ने बताया कि भोजपुरी को संविधान की आठवीं सूची में शामिल नहीं किया गया है, इस वजह से भोजपुरी भाषा पढ़ाई नहीं जा सकती| इसको संविधान की आठवीं सूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखेंगे|

ये सभी फैसले दिल्ली सरकार की मैथिली भोजपुरी अकादमी ने लिए| इसके अध्यक्ष खुद दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया हैं| मनीष सिसोदिया की अध्यक्षता में हुई बैठक में ये प्रमुख फैसले लिए गायें|

1) 8 वीं से 12 वीं कक्षा के लिए दिल्ली के स्कूलों में मैथिली और भोजपुरी पंजाबी और उर्दू की तरह एक वैकल्पिक भाषा विषय के रूप में उपलब्ध होगा|

2) दिल्ली सरकार की मैथिली और भोजपुरी अकादमी मैथिली / भोजपुरी को एक विषय के रूप में चुनने वाले छात्रों के लिए सिविल सेवा परीक्षा कोचिंग केंद्र चलाएगी।

3) दिल्ली सरकार मैथिली भाषा के लिए कंप्यूटर फ़ॉन्ट के लिए #CDAC तक पहुंच जाएगी, जो इस समय मौजूद नहीं है।

4) एक पत्रकार के रूप में या एक साहित्यकार के रूप में मैथिली भोजपुरी संस्कृति में उल्लेखनीय योगदान देने वालों के लिए कोई पुरस्कार नहीं था। दिल्ली सरकार 12 लाख पुरस्कारों के साथ इन पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित करेगी, दोनों को INR 2.5 लाख की दोनों भाषाओं के लिए ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’।

5) नवंबर में सेंट्रल पार्क में मैथिली और भोजपुरी कलाकारों द्वारा 5 दिवसीय सांस्कृतिक विरासत उत्सव

सांसद रवि किशन को एक भोजपुरिया का खुला ख़त

आदरणीय रवि किशन भिया
परनाम!

का हाल बा? रउआ से सम्पर्क कइल हमनी ख़ातिर त ओतना सुविधाजनक नइखे, पर आपन बात अगर कउनो जरिया से अभिव्यक्त ना कइल जाओ त जियल मुश्किल हो जा ला। हम रउआ के सबसे पहिले देखनी ‘हेलो इंस्पेक्टर’ में। हमार उमिर आ समझ अइसन रहे कि हम रउआ के ‘इंस्पेक्टरे’ बुझत रहीं। बाकी फिर फिलिम में देखनी त एहसास भइल कि रउआ त अभिनेता हईं।

बाद में अखबार से मालूम भइल रउआ स्टारडम के चरम प बानी भोजपुरिया इंडस्ट्री में। ‘सुर-संग्राम’ शो में जज बनत भी देखनी आ फिर एक नेता बनत भी। हमरा समझ से रउआ अभिनेता से स्टार अभिनेता आ फिर नेता से स्टार नेता के सीढ़ी चढ़े ख़ातिर जेतना मेहनत कइले होखम, ओतने मेहनत अब भोजपुरी माई ख़ातिर करे के जरूरत बा।

हम आपन पहिला भोजपुरी खुला चिट्टी रउआ नामे लिखत बहुत गर्व अनुभव करत बानी। राउर वीडियो बारंबार देखत हम समझ पयिनी कतना मुश्किल बा अबहियों संसद में भोजपुरी जइसन भाषा ख़ातिर आवाज़ उठावल। राउर प्रयास न सिर्फ सराहनीय बा बल्कि अनुकरणीय भी बा।

लोग आपन भाषण के एगो सम्बोधन लाइन भोजपुरी में बोल के भोजपुरिया के दिल-जिगर-गुर्दा के साथे भोट भी लूट लेवे ला त इहे समझ जायीं रउआ त निजी विधेयक लावे के बात कइले बानी, भोजपुरिया आपन जानो लुटावल कमे समझिहन।
हमरा ना बुझाए आखिर 25 करोड़ जनता के बोली, समृद्ध साहित्य से धनी एगो मौलिक भाषा में कवन खोंट बा जे हर बार ई आठवीं अनुसूची के दुआर प से खाली हाथ लउटा दिहल जा ला?

आखिर काहे एकर बदहाली प सरकार के निःशब्दता झेले के मिलेला? दुनिया में आगे रहला के बावजूद आखिर काहे भारत के जन-मानस भोजपुरी के नाम प नाक-भौं सिकोड़े लागल बा? लोग काहे बाध्य बाड़न आपन बच्चन के आपने मातृभाषा के विधिवत शिक्षा ना दिवा पावे ख़ातिर? काहे वंचित भइल जा तानि जा हमनी के एह सब के सही कारण आ निवारण जाने से?

कुलमिला के एगो वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी में भोजपुरी के पढ़ाई चलत रहे, ओकरो बन्द कर दिहल गइल। जब कवनो भाषा से अर्थ ना जुड़ी, त ओकर प्रचार-प्रसार प असर त पड़बे करी। अंग्रेजी भाषा काहे हमनी के सीखी ला? काहे हर गली-चौराहा प “तीस दिनों में अंग्रेजी सीखें” के बोर्ड लउक जा ला? काहे कि एह भाषा से अर्थ जुड़ल बा, सम्मान जुड़ल बा। एकरा में सभके फायदा लउकेला। लोग अपन लइकन के भविष्य एकरे में जोहे के मजबूर बाड़न।

आज ले बस बतकुच्चन भइल बा भोजपुरी के नाम प। केतना लोग त अपना के भोजपुरी के ठेकेदारो घोसित क देले बाड़न। बाकी अब समय फिरल बा। भोजपुरिया के मय आंदोलन के उम्मीद राउर एक मिनट के उहे संसदिया भाषण से जुड़ गइल बा। देखब रउआ भिखारी के बोली, मिसिर के गीत, विवेक दीप पाठक के त्याग व्यर्थ न जाये। सभके सपोर्ट बा। सभके उम्मीद बा। राउर एक कदम भोजपुरी के दामन से सब दाग धो सकेला।

ज़िन्दगी झंड रहे त रहे, भाषा के झंड होखे से बचा लिहिं त घमंड होखी।

नेहा नूपुर
संयोजक
हमार भोजपुरी हमार सम्मान

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जबले बिहारी म्यूट, तबले बिहारी क्यूट; जभिए मुंह खोलते थे सामने वाला बूझ जाता कि बिहारी है

हाँ ठीक है हम बिहारी हैं.. बचपने से अइसे इस्कूल में पढ़े हैं, जहाँ बदमाशी करने पर माट साब “ठोठरी पकड़ के खिड़की दने बीग देने” का धमकी देते थे. बचपने से हम हिंदी के नाम पर मैथिलि-मगही का खिचड़ी बोले हैं.

ता का हुआ जो हम शाम को साम बोलते हैं, ता का हुआ जो हम टॉपिक को टापिक बोलते हैं, ता का हुआ जो हम सड़क को सरक बोलते हैं. समझ में आ जाता है ना..? बस हो गया.. भाषा का मतलबे ईहे है कि सामने वाला को अपना बात समझा दो..

दवाई दोकान पर जाते हैं तो का कहते हैं हम.? भईया पेट झड़ने का दवाई दीजिए.. तो ऊ पेट ठीक होने का ही दवा देता है ना जी! बात समझ गया ना कि हम का बोलना चाह रहे थे.. जब नउमा पास एगो दवाई दोकानदार इतना बात समझ जाता है ता आप पढ़ल-लिखल लोग काहे बेमतलब बतकुच्चन करते हैं!

तीन साल दिल्ली रहे. जभिए मुंह खोलते थे सामने वाला बूझ जाता कि बिहारी है. जबले बिहारी म्यूट, तबले बिहारी क्यूट. दिल्ली वाला दोस्त सब हंस देता था.

अबे झगरा नहीं होता है, झगड़ा होता है भाई. गज़ब चौपट आदमी हो महराज, इधर हमको सोंटाई पड़ने वाला है आ तुमको अइसा क्रूशियल टाइम में हमारा परननसिएशन सुधरवाना है. बहुत कोशिश किए कि साम को शाम बोले, इस चक्कर में सुंदर भी शुन्दर निकल जाता था.

बहुत कोशिश किए सरक को सड़क बोलें, इस चक्कर में आरा-बक्सर को भी आड़ा-बक्सड़ कर देते थे! बहुत हुज्जत हुआ.. लेकिन दिल्ली छोड़ते-छोड़ते भाषा ठीक हो गया.. अब हिंदी बोलते है ता सामने वाला कहता है बुझैबे नहीं करता है आप बिहारी हैं! इसलिए हम इस भाषा में लिखते हैं कि हमारा बिहारी वाला पहचान बचा रहे!

हाँ, ता शुद्ध हिंदी सीखते-बोलते जीवन का तेइस बसंत बीत गया. ता अब सोसाइटी कहता है हिंदी वाला नहीं चलेगा. वी वांट फ़्लूएंट इंग्लिश.. आ अंग्रेजी में भी साला दू अलग-अलग क्लास है. इंटरप्रेनुएर वाला मिडिल क्लास आ आंत्रप्रेन्यर वाला एलिट क्लास.

अरी दादा, सरक से सड़क पर आने में तेइस साल लग गया. अब हम कहाँ से इतना जल्दी शशि थरूर बन जाएं.

अभी तो चार साल पहले तक दोकान के बाहर टंगाए SALE-SALE-SALE को साले-साले-साले पढ़ते थे..! अब हमको ईहो डर लगने लगा है कि तीस साल तक होते-होते रो-धो के अंग्रेजी सीख भी जाएं ता कहीं सोसाइटी फिर ना कहीं बोले – “ब्रो, इंग्लिश इज आउटडेटेड.. अब जावा, c++ आ पायथन चलता है!”

– अमन आकाश

फोटो: Once Upon A Time In Bihar

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जानिए विश्व की सबसे मीठी और अपनेपन वाली बोली भोजपुरी के बारे में

आज हम भोजपुरी भाषा के बारे में बात करेंगे जिसे कई विद्वान, दुनिया की सबसे मीठी बोली मानते है. यह एक ऐसी बोली है जो दुनिया के कई देशो में बोली जाती है|

भोजपुरी भाषा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जो इसे समझते है उनको तो मज़ा आता ही है| मगर जिसे समझ में नहीं आता है वो भी इसके मिठास से दूर नहीं रह पाते हैं|

भोजपुरी भाषा का उद्गम और विकास

भोजपुरी भाषा का नामकरण बिहार राज्य के आरा (शाहाबाद) जिले में स्थित भोजपुर नामक गाँव के आधार पर हुआ है. पहले आरा और बक्सर जिला एक ही था| जिसे भोजपुर के नाम से जाना जाता था. मध्य काल में मध्य प्रदेश के उज्जैन से भोजवंशी परमार राजा आकर आरा में बस गए. उन्होंने अपनी इस राजधानी को अपने पूर्वज राजा भोज के नाम पर रखा था. इसी वजह से यहां बोले जाने वाली भाषा का नाम “भोजपुरी” पड़ गया.

भोजपुरी भाषा का इतिहास सातवीं सदी से प्रारंभ होता है। भोजपुरी साहित्यकारों की मानें तो सातवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय के संस्कृत कवि बाणभट्ट के विवरणों में ईसानचंद्र और बेनीभारत का उल्लेख है| जो भोजपुरी कवि थे। नवीं शताब्दी में पूरन भगत ने भोजपुरी साहित्य को आगे बढ़ाने का काम किया। नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ ने सैकड़ों वर्ष पहले गोरख बानी लिखा था। बाबा किनाराम और भीखमराम की रचना में भी भोजपुरी की झलक मिलती है।

भोजपुरी भाषा के शेक्सपियर -भिखारी ठाकुर

भोजपुरी भाषा का जिक्र हो और भिखारी ठाकुर की बात न हो ये भी भला हो सकता है. 18 दिसंबर 1887 को छपरा के कुतुबपुर दियारा गांव में एक निम्नवर्गीय नाई परिवार में जन्म लेने वाले भिखारी ठाकुर ने विमुख होती भोजपुरी संस्कृति को नया जीवन दिया। भिखारी ठाकुर ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे, उसके बावजूद उन्होंने कई कृतियों की रचना की। उनके द्वारा रचित नाटक बिदेसिया, गबरघिचोर, बेटी-बेचवा बेटी-बियोग, बिदेसिया की प्यारी सुंदरी, नशाखोर पति आदि आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितना पहले हुआ करते थे।

हिंदी की एक छोटी बहन है भोजपुरी

भोजपुरी एक आर्य भाषा है जो बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में प्रमुखता से बोली जाती है . आधिकारिक और व्यवहारिक रूप से भोजपुरी हिन्दी की एक उपभाषा या बोली है। भोजपुरी अपने शब्दावली के लिये मुख्यतः संस्कृत एवं हिन्दी पर निर्भर है कुछ शब्द इसने उर्दू से भी ग्रहण किये हैं। भोजपुरी बहुत ही सुंदर, सरस, तथा मधुर भाषा है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के सभी हिस्सों में भोजपुरी बोलने वाले मिल जाएंगे. बिहार की तिन बोलिया भोजपुरी ,मगही और मथिली में विस्तार क्षेत्र के हिसाब से भोजपुरी को सबसे उच्च स्थान प्राप्त है .

विश्व के आठ देशो में है इस भाषा का विस्तार

भोजपुरी का विस्तार न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व के कई महाद्वीपों तक है| आपको यह जानकर थोडा आश्चर्य जरुर होगा की विश्व में करीब 8 देश ऐसे हैं, जहां भोजपुरी धड़ल्ले से बोली जाती है और सुनी भी जाती है. भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, फिजी, मॉरिशस, अमेरिका, त्रिनिनाद और टोबैगो तथा सुरीनाम आदि देशो में भोजपुरी भाषा बोली जाती है. परिस्थितियों के कारण बिहार के लोगों को अन्य देशों में जाना पड़ा| ऐसे में वे वहीं के हो गए, मगर अपनी बोली को अपने साथ सदैव बनाए रखा| भोजपुरी बोलने वालो की  जनसंख्या 20 करोड़ से भी ज्यादा है। ये लोग भारत ही नहीं बल्कि विश्व के विभिन्न हिस्सों मे अपना विशेष प्रभाव भी रखते हैं। संख्या के हिसाब से भोजपुरी विश्व की 10वीं सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है|

‘एक मारिशस की हिन्दी यात्रा’

मारिशस के हिन्दी विद्वान सोमदत्त बखोरी ने अपनी पुस्तक ‘एक मारिशस की हिन्दी यात्रा’ मे लिखते हैं कि भोजपुरी केवल घर कि भाषा नहीं थी, ये सारे गाँव कि भाषा थी| भोजपुरी के दम पर लोग हिन्दी समझ लेते थे और हिन्दी सीखना चाहते थे| वह सहायक सिद्ध होती थी| मॉरीशस ने जून, 2011 में ही भोजपुरी भाषा को संवैधानिक मान्यता दे दी थी| भोजपुरी की लोकप्रियता की मिठास का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि संगम नगरी में मारिशस से आयी एक विदुषी ने कहा था कि भोजपुरी की मिठास की प्रगाढ़ता ही है कि उसने मारिशस जैसे टापू को भी स्वर्ग बना दिया| आज हम निःसंकोच कह सकते हैं कि इस देश मे बहुत जगह हिन्दी फली फुली है तो भोजपुरी के प्रतापों से|

भोजपुरी भाषा को राष्ट्रिय दर्जा नहीं पाने का नुकसान

भोजपुरी भाषियों की संख्या भारत की समृद्ध भाषाएँ- बँगला, गुजराती और मराठी आदि बोलनेवालों से कम नहीं है। फिर भी अभी तक इस भाषा को संविधान की आठवी अनुसूची में नहीं शामिल किया जा सका है| अपने देश में संवैधानिक दर्जा नहीं मिल पाने के कारण भोजपुरिया लोगो को बहुत सारी सुविधाओ से वंचित रखा जाता है| भोजपुरी रचनाओ को साहित्य पुरस्कार, फिल्मों को राष्ट्रीय अवार्ड, भोजपुरी लेखकों को राष्ट्रीय पुरस्कारों की श्रेणी से बाहर रखा जाता है|

संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओ में भोजपुरी को परीक्षा का आधार नहीं बनाया जा सकता| इस भाषा और साहित्य के विकास के लिए सरकार से आर्थिक सहायता प्राप्त नहीं की जा सकती| भोजपुरी फिल्मे देश के राष्ट्रिय चैनल दूरदर्शन पर नहीं दिखाई जा सकती है| जो की भोजपुरी के 20 करोड़ जनमानस के साथ अन्याय है।

“ना बोलला के मतलब इनकार ना होखेला,
हर नाकामयाबी के मतलब हार ना होखेला,
का होगइल भोजपुरी के भाषिक दर्जा ना मिलल त,
खाली दर्जा पावल ही भाषा से प्यार ना होखेला”

भोजपुरी और हिन्दुस्तान

भारत में राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के बाद सबसे ज्यादा बोले जाने वाली बोलियों मे भोजपुरी है। समय समय पर इसको भाषा बनाने की मांग उठती रही है ।1969 से ही अलग-अलग समय पर सत्ता में आई सरकारों ने भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का आश्वासन दिया था। लेकिन दशकों गुजर जाने के बाद भी भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है। इसके लिए विभिन्न आंदोलन भी हुये लेकिन ये आंदोलन तुच्छ राजनीति का शिकार हो गए। अगर भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है तो निसंदेह उसके सुखद परिणाम होंगे। एक तो भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा हासिल हो जाएगा और दूसरे, भोजपुरी भाषा से जुड़ी ढेरों संस्थाएं अस्तित्व में आएंगी जिससे क्षेत्रीय भाषा का विकास होगा और साथ ही कला, साहित्य और विज्ञान को समझने-संवारने में मदद मिलेगी। संवैधानिक दर्जा मिलने से भोजपुरी भाषा की पढ़ाई के लिए बड़े पैमाने पर विश्वविद्यालय, कालेज और स्कूल खुलेंगे जिससे कि रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी।

अंतर्राष्ट्रीय होती भोजपुरी

हिन्दुस्तान में भोजपुरी महज एक बोली नहीं, बल्कि एक इंडस्ट्री है| व्यवसाय, मनोरंजन और साहित्य में भोजपुरी ने पूरे हिन्दुस्तान में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है| ये भोजपुरी बाज़ार का ही आकर्षण है कि अब यहाँ पर चैनल भी आने लगे हैं| महुआ चैनल की सफलता एवं लोकप्रियता के बाद अनेक भोजपुरी चैनल आ गए हैं। जिसमे गंगा, हमार टीवी जैसे चैनल प्रमुख हैं।

भोजपुरी को इंटरनेट फ्रेंडली बनाने का भी प्रयास किया जा रहा है। बीएचयू के भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान व भोजपुरी अध्ययन केंद्र मिलकर इंटरनेट फ्रेंडली बनाने मे जुटे हैं।

खबरिया पत्रकारों मे भी बड़े नाम हैं रवीश कुमार, पुण्य प्रसून, उर्मिलेश जैसे पत्रकार भी भोजपुरी भाषी हैं जो आज हिन्दी पत्रकारिता की रीढ़ बन चुके हैं। आज भोजपुरी सिनेमा करीब 20,000 करोड़ रुपये की हो गई है| टीवी के 52 चैनल सिर्फ़ भोजपुरी के ही हैं| इस आधार पर हम कह सकते हैं कि भोजपुरी के बिना हिन्दुस्तानी बोली की कल्पना ही नहीं की जा सकती है|

कुछ अफ़सोस भी है

जितना ज्यादा विकास भोजपुरी भाषा का हुआ है उतना विकास किसी भाषा का नहीं हुआ है| बहुत सारी हिंदी फिल्मो में भोजपुरी भाषा या भोजपुरी भाषा से जुड़े किसी पात्र को जगह दी जा रही है ताकि फिल्म को मजेदार बनाया जा सके| टेलीविजन जगत में भी भोजपुरी का बोलबाला हो गया है|

चाहे वो निमकी मुखिया का कैरक्टर हो या भाभीजी घर पर है की अंगूरी भाभी का| सभी जगह इनकी चुलबुली और मीठी  भोजपुरी भाषा को पसंद किया जा रहा है| लेकिन बहुत सारे लोग फिल्मो में भोजपुरी बोलने वालो को अनपढ़, गवार या गुंडा दिखाते है| जबकि ऐसा नहीं है| बिहार के बाहर अगर किसी से भोजपुरी में बोल दिया जाए तो वो ऐसे देखने लगता है जैसे हम किसी दुसरे ग्रह से आये है|

भोजपुरी भाषा की सबसे बड़ी दुश्मन भोजपुरी इंडस्ट्री बन चुकी है| आज कल भोजपुरी गानों के नाम पर केवल फूहड़ता परोसी जा रही है| और इनकी कमाई भी काफी हो रही है| इसे जल्द से जल्द रोकना होगा और लोगों को ऐसी अश्लीलता का बहिष्कार करना चाहिए|

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झारखंड में बिहारी लोकभाषा भोजपुरी, मैथिली, मगही और अंगिका को द्वितीय भाषा का मिला दर्जा

झारखंड सरकार ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में लंबे समय से अनेक समुदायों की चल रही मांग को पूरा करते हुए भोजपुरी, मैथिली, मगही एवं अंगिका को राज्य की दूसरी भाषा का दर्जा दे दिया. मुख्यमंत्री रघुवर दास की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय का फैसला लिया गया.

ज्ञात हो कि ये सभी भाषाएँ बिहार राज्य की प्रमुख भाषाएँ हैं, जो की बिहार के अलग-अलग हिस्सों में बोली जाती है| राज्य में इन चार भाषाओं को बोलने वालों की संख्या काफी है| आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में 18.36 लाख लोग मगही बोलते हैं, जो कुल आबादी का 6.82% है|

मंत्री परिषद की बैठक में मगही, भोजपुरी, मैथिली तथा अंगिका को झारखंड राज्य की द्वितीय भाषा घोषित करने के लिए बिहार राजभाषा (झारखंड संशोधन) अध्यादेश 2018 के प्रारूप को स्वीकृति दी गई. ज्ञात हो कि इससे पूर्व झारखंड राज्य में 12 भाषाओं उर्दू, संथाली, मुंडारी, हो, खड़िया, कुरुख(उरांव), कुरमाली, खोरठा, नागपुरी, पंचपरगनिया, बांग्ला और उड़िया भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया जा चुका है.

झारखंड में 6.82 फीसदी लोग बोलते हैं मगही

– 2001 की जनगणना को आधार बनाकर इन भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का दर्जा देने का फैसला लिया गया है। जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में 18.36 लाख लोग मगही बोलते हैं, जो कुल आबादी का 6.82% है। इसी तरह 6.56 लाख यानी 2.44% लोग भोजपुरी, 1.41 लाख यानी 0.52% लोग मैथिली बोलने वाले हैं।

– अंगिका जनगणना सूची में शामिल नहीं है, लेकिन संथाल के लगभग सभी जिलों में अंगिका भाषियों की बहुलता है। इसके पीछे तर्क दिया गया है कि राज्य में यह बहुलता में बोली जाती है। पुलिस नियुक्ति नियमावली और शिक्षक नियुक्ति नियमावली में भी इन भाषाओं को वैकल्पिक विषय के रूप में मान्यता दी गई है।

इन जिलों में ये भाषाएं ज्यादा

मगही : लातेहार, पलामू और गढ़वा।
भोजपुरी: लातेहार, पलामू और गढ़वा।
मैथिली : जमशेदपुर, दुमका, देवघर, गोड्डा एवं साहेबगंज।
अंगिका : दुमका, जामताड़ा, देवघर, गोड्डा, साहेबगंज एवं पाकुड़।

इन जिलों में ये भाषाएं ज्यादा

प्रस्ताव में कहा गया है कि झारखंड भाषाई दृष्टिकोण से विविध भाषा-भाषी प्रदेश है। राज्य की सामाजिक और सांस्कृतिक बहुलता की अभिव्यक्ति विभिन्न भाषाओं द्वारा होती है। सामाजिक समरसता और भाषाओं के बहुमुखी विकास के लिए पहले 12 भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया गया था। अब मगही, भोजपुरी, मैथिली और अंगिका भाषाओं से जुड़ी जनभावनाओं को देखते हुए सरकार ने यह फैसला लिया है।

 

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भोजपुरी के सेक्सपियर भिखारी ठाकुर की आज 130वीं जयंती है

​भिखारी शब्द सुनते ही हमारे सामने एक छवि उभरती है। आधुनिक युग में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो मेहनत के बल पर कुछ ऐसा कर जाते हैं जिससे लोग सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। उन्होंने भोजपुरी संस्कृति को एक नई पहचान दी। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया। बिदेशिया, गबर- घिचोर, बेटी- बियोग, बेटी बेंचवा आदि नाटकों में गजब की सामाजिक चेतना दिखती है। वे इन नाटकों से मनोरंजन के साथ सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने का प्रयास करते थे। जिनकी समाज में आज भी जरूरत है। भिखारी ने बालविवाह, काम के लिए पलायन, नशाखोरी जैसी सामाजिक कुरितियों पर उस समय प्रहार किया, जब कोई बोलने को तैयार नहीं था।

देश-दुनिया में भोजपुरी भाषा को एक अलग पहचान दिलाने वाले भिखारी ठाकुर की आज 130वीं जयंती है। यह अलग बात है की भोजपुरी के सेक्सपियर भिखारी ठाकुर के अथक प्रयास से पुरे विश्व में प्रसिद्ध भोजपुरी भाषा को आज अपने देश में ही पूर्ण सम्मान नही मिला है। सात समंदर पार तक बोली जाने वाली इस भाषा को अब तक सातवीं अनुसूची में शामिल नही किया गया।

भिखारी ठाकुर अपने नाटकों के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ भी जमकर प्रहार किया।

दयनीय थी आर्थिक स्थिति

छपरा के कुतुबपुर दियरा में 18 दिसंबर 1887 को एक निम्न वर्गीय परिवार में भिखारी ठाकुर का जन्म हुआ। भिखारी ठाकुर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका संपूर्ण जीवन संघर्ष में बीता। जब उनका जन्म हुआ उस समय पढ़ने और लड़ने को हक सभी को नहीं था। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को नजदीक से समझा। उसके बाद अपने नाटकों के माध्यम से उस पर प्रहार किया। उनका बचपन गायों की चरवाही में बीता। माता- पिता उनसे पुश्तैनी धंधा नाई का काम करवाना चाहते थे। वे कमाने के लिए असम गए। वहां जाने के लिए भी उनके पैसे नहीं थे। गांव के बाबू राम एकबाल नारायण से  कर्ज लेकर भिखारी असम गए। वहां इनके रिश्तेदार समेत अन्य ग्रामीण रहते थे। वे वहां से मनीआर्डर भेजकर कर्ज चुकाए।

पंडित से सीखा चिट्ठी लिखना – पढ़ना

असम में एक पंडित थे। वे रात में कथा कहते थे। जिसे भिखारी ठाकुर रुचि लेकर सुनते थे। उसी पंडित ने चिट्ठी लिखने और पढ़ने के लिए सिखाया। वे रामायण के भी कुछ- कुछ बातें जानने लगे। असम से घर लौट गए और कुछ दिन बाद कोलकाता चले गए। वहां भी पुश्तैनी कार्य के बाद फिर गांव लौटे।

रामलीला का पड़ा प्रभाव

भिखारी के पड़ोसी गांव महाजी में रामलीला मंडली आई थी। रात में जब रामलीला होता था तो गांव के लोगों के साथ भिखारी भी जाते थे। उन पर रामलीला का गहरा प्रभाव पड़ा। वे तुकबंदी करने लगे। रामलीला मंडली के जाने के बाद गांव में रामलीला करने लगे। जिसमें नाच भी होने लगा। भिखारी इसमें प्रमुख थे। वे शादी- विवाह में भी नाच करने लगे। इसके बाद अपना काम छूट गया।

उनकी प्रमुख कृतियां एक नजर में

सामाजिक कुरीतियों पर नाटकों की रचना की। समाज की समस्याओं पर अपनी प्रस्तुतियों से प्रहार किया। प्रमुख नाटकों में विदेसिया, बेटी बेचवा, गबर घिचोड़, बहरा- बहार, भाई विरोध, गंगा स्नान, विधवा विलाप, पुत्र वधु, ननद भौजाई, राधे श्याम बहार, पिया निसइल आदि है। जब भिखारी ठाकुर मंच पर आते थे तो लोग सिक्के फेंक कर उनका स्वागत करते थे। 10 जुलाई 1971 को भिखारी ठाकुर सदा के लिए अमर हो गए।

भोजपुरी भाषा को संवैधानिक मान्यता के लिए फिर गूंजा संसद, सभी ने किया जोरदार समर्थन

भोजपुरी भाषा देश और दुनिया में 25 करोड़ से भी ज्यादा लोगों की आवाज़ है। भोजपुरी न सिर्फ बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों की प्रमुख भाषा है बल्कि दुनिया के कई देशों में भोजपुरी बोली जाती है । इसमें कोई दो राय नहीं की दिन पर दिन इस भाषा की लोकप्रियता बढ़ रही है मगर यह भोजपुरी भाषा का दुर्भाग्य कहिये या देश के नीति निर्माताओं की उदासीनता कि आज तक भोजपुरी भाषा को अपने देश में ही संवैधानिक मान्यता नहीं मिल पाया है।

 

देश की संसद में एक बार फिर यह मुद्दा उठा । जदयू ने गुरुवार को एक बार फिर से भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठा दी। बिहार कैबिनेट की ओर से केन्द्र सरकार से की गई सिफारिश के बाद जनतादल यूनाइटेड ने इस मामले को राज्यसभा में उठाते हुए भोजपुरी भाषा को मान्यता देने के लिए तत्काल कदम उठाने को कहा। भोजपुरी भाषा की मिठास से सदन को रुबरू कराने की उपसभापति पीजे कुरियन की बात पर जदयू सांसद अली अनवर ने अपनी बातों की कुछ पंक्तियां भोजपुरी में भी रखीं।

 

अली अनवर ने कहा कि बीते सालों में पूर्व और मौजूदा सरकारों ने चार मौकों पर संसद में भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर इस भाषा को मान्यता देने का आश्वासन दिया। मगर इस दिशा में सरकार ने अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाना निराशाजनक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीते लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भोजपुरी के कुछ शब्दों के बोलने की ओर इशारा करते हुए अनवर ने कहा कि चुनाव में वोट के लिए भी भोजपुरी भाषियों को लुभाया गया। इसलिए सरकार को त्वरित कदम उठाते हुए चुनाव के दौरान दिए भरोसे को पूरा करना चाहिए।

 

भोजपुरी भाषा की पहुंच को लेकर अनवर ने कहा कि उत्तरप्रदेश और बिहार की बड़ी जनसंख्या ही नहीं विदेशो में भी इसके बोलने वालों की संख्या बहुतायत है। मारीशस, सूरीनाम, फिजी, त्रिनिदाद आदि देशों में भी भोजपुरी बोलने वाले भारतीय मूल के लोग हैं। अनवर ने कहा कि वास्तव में बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही देनी चाहिए। भोजपुरी के प्रति महापंडि़त राहुल सांस्कृतायन की सकारात्मक टिप्पणियों के साथ स्वाधीनता आंदोलन के बलिदानी बाबू वीरकुंअर सिंह के जुड़ावका भी उन्होंने जिक्र किया। भोजपुरी को आठवीं अनसूची में शामिल करने की इस मांग का विपक्ष के साथ सत्ता पक्ष के भी कई सांसदों ने जोरदार समर्थन किया।

भोजपुरी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए खुले रूप से मैदान में उतरी नीतीश सरकार

भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की सियासी कसरत में सूबे के मुखिया नीतीश कुमार भी अब खुले रूप से मैदान में उतर गये हैं। इस दिशा में अहम फैसला करते हुए बिहार कैबिनेट ने भोजपुरी को मान्यता देने की प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दी है।

गृह मंत्रालय को भोजपुरी के समर्थन में भेजे अपने प्रस्ताव के साथ राज्य सरकार ने महाकवि तुलसीदास, कबीर से लेकर बाबा नागार्जुन की इस भाषा के प्रति अपार लगाव का हवाला भी दिया है। वहीं भोजपुरी के माटी के लाल व देश के पहले राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और संपूर्ण क्रांति के नायक लोकनायक जयप्रकाश नारायण की मातृभाषा को उचित सम्मान देने की सिफारिश की गयी है।

भोजपुरी को आठवें अनुसूची में शामिल करने की बिहार कैबिनेट की सिफारिश को राज्य के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने शनिवार को केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भेज दिया।

इस सिफारिश के साथ नीतीश सरकार ने भोजपुरी को मान्यता देने की मांग के औचित्य को भाषा के इतिहास, गौरव और इसकी माटी के विभूतियों का अपनी भाषा से जुड़ाव के तथ्यों से भी केन्द्र सरकार को रूबरू करवाया है। बिहार सरकार का मानना है कि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की बड़ी आबादी एवं झारखंड के अलावा सुरिनाम, त्रिनिदाद एंड टूबैगो, फीजी व मारीशस आदि देशों में भी भोजपुरी एक महत्वपूर्ण भाषा है। भोजपुरी के करीब साढ़े तीन करोड़ लोगों की मातृभाषा होने की दलील देने के साथ राज्य सरकार ने इसके ऐतिहासिक गौरव से भी गृह मंत्रालय को अवगत कराया है।

राज्य सरकार के इस निर्णय की पुष्टि जदयू के राष्ट्रीय महासचिव संजय झा ने किया। संजय झा ने कहा कि राज्य सरकार के इस प्रस्ताव पर केंद्र ने जल्द ध्यान नहीं दिया तो दिल्ली में जदयू भोजपुरी को लेकर बङा आंदोलन करेगा जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद शिरकत करेंगे।

भोजपुरी को आठवें अनुसूची में शामिल करने की नीतीश सरकार की मांग की तात्कालिक सियासी वजह अप्रैल में दिल्ली में होने वाले नगर निगम चुनाव को माना जा रहा है। दिल्ली के नगर निगम चुनाव में जदयू मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। 

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भोजपुरी भाषा के शेक्सपीयर भिखारी ठाकुर का 129वीं आज

भिखारी शब्द सुनते ही हमारे सामने एक छवि उभरती है। आधुनिक युग में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो मेहनत के बल पर कुछ ऐसा कर जाते हैं जिससे लोग सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। उन्होंने भोजपुरी संस्कृति को एक नई पहचान दी। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया। बिदेशिया, गबर- घिचोर, बेटी- बियोग, बेटी बेंचवा आदि नाटकों में गजब की सामाजिक चेतना दिखती है। वे इन नाटकों से मनोरंजन के साथ सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने का प्रयास करते थे। जिनकी समाज में आज भी जरूरत है। भिखारी ने बालविवाह, काम के लिए पलायन, नशाखोरी जैसी सामाजिक कुरितियों पर उस समय प्रहार किया, जब कोई बोलने को तैयार नहीं था।129वीं जयंती आज

देश – दुनिया में भोजपुरी भाषा को एक अलग पहचान दिलाने वाले भिखारी ठाकुर का आज 129 वां जयंती है। यह अलग बात है की भोजपुरी के सेक्सपियर भिखारी ठाकुर के अथक प्रयास से पुरे विश्व में प्रसिद्ध भोजपुरी भाषा को आज अपने देश में ही पूर्ण सम्मान नही मिला है। सात समंदर पार तक बोली जाने वाली इस भाषा को अब तक सातवीं अनुसूची में शामिल नही किया गया। 

भिखारी ठाकुर अपने नाटकों के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ भी जमकर प्रहार किया।

दयनीय थी आर्थिक स्थिति
छपरा के कुतुबपुर दियरा में 18 दिसंबर 1887 को एक निम्न वर्गीय परिवार में भिखारी ठाकुर का जन्म हुआ। भिखारी ठाकुर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका संपूर्ण जीवन संघर्ष में बीता। जब उनका जन्म हुआ उस समय पढ़ने और लड़ने को हक सभी को नहीं था। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को नजदीक से समझा। उसके बाद अपने नाटकों के माध्यम से उस पर प्रहार किया। उनका बचपन गायों की चरवाही में बीता। माता- पिता उनसे पुश्तैनी धंधा नाई का काम करवाना चाहते थे। वे कमाने के लिए असम गए। वहां जाने के लिए भी उनके पैसे नहीं थे। गांव के बाबू राम एकबाल नारायण से  कर्ज लेकर भिखारी असम गए। वहां इनके रिश्तेदार समेत अन्य ग्रामीण रहते थे। वे वहां से मनीआर्डर भेजकर कर्ज चुकाए।

पंडित से सीखा चिट्ठी लिखना – पढ़ना 

असम में एक पंडित थे। वे रात में कथा कहते थे। जिसे भिखारी ठाकुर रुचि लेकर सुनते थे। उसी पंडित ने चिट्ठी लिखने और पढ़ने के लिए सिखाया। वे रामायण के भी कुछ- कुछ बातें जानने लगे। असम से घर लौट गए और कुछ दिन बाद कोलकाता चले गए। वहां भी पुश्तैनी कार्य के बाद फिर गांव लौटे।
रामलीला का पड़ा प्रभाव

भिखारी के पड़ोसी गांव महाजी में रामलीला मंडली आई थी। रात में जब रामलीला होता था तो गांव के लोगों के साथ भिखारी भी जाते थे। उन पर रामलीला का गहरा प्रभाव पड़ा। वे तुकबंदी करने लगे। रामलीला मंडली के जाने के बाद गांव में रामलीला करने लगे। जिसमें नाच भी होने लगा। भिखारी इसमें प्रमुख थे। वे शादी- विवाह में भी नाच करने लगे। इसके बाद अपना काम छूट गया।

उनकी प्रमुख कृतियां एक नजर में

सामाजिक कुरीतियों पर नाटकों की रचना की। समाज की समस्याओं पर अपनी प्रस्तुतियों से प्रहार किया। प्रमुख नाटकों में विदेसिया, बेटी बेचवा, गबर घिचोड़, बहरा- बहार, भाई विरोध, गंगा स्नान, विधवा विलाप, पुत्र वधु, ननद भौजाई, राधे श्याम बहार, पिया निसइल आदि है। जब भिखारी ठाकुर मंच पर आते थे तो लोग सिक्के फेंक कर उनका स्वागत करते थे। 10 जुलाई 1971 को भिखारी ठाकुर सदा के लिए अमर हो गए।

भोजपुरी एक मजबूत भाषा है जो काफी दुत्कार के बाद भी जिंदा है : कुणाल सिंह | पटना फिल्म फेस्टिवल

वही गुरुवार को रविन्द्र भवन में आयोजित ओपेन हाउस डिबेट में अभिनेता कुणाल सिंह ने कहा कि भोजपुरी एक मजबूत भाषा है, जो काफी दुत्कार के बाद भी जिंदा है। हिंदी सिनेमा में एक दौर ऐसा था कि उन्होंने भोजपुरी को बाजार बनाकर उपयोग किया, लेकिन हम पिछड़ गए।भोजपुरी सिनेमा की दूसरी बड़ी समस्या थियेटर भी है जो निम्न स्तर के होते हैं। इसलिए एक बड़ा वर्ग भोजपुरी फिल्मों के लिए थियेटर की ओर नहीं जाता है।

अंजनी कुमार के कहा कि मगर भोजपुरी फिल्मों के विकास के लिए आज साहित्य, थियेटर और सिनेमा पर विशेष ध्यान देना होगा। युवा फिल्म मेकर शॉट और डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाकर यूटयूब के जरिए भी भोजपुरी सिनेमा को आगे ले जा सकते हैं।

अंत में सभी अतिथियों को बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार और फिल्म फेस्टिवल के संयोजक कुमार रविकांत ने शॉल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस दौरान बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम की विशेष कार्य पदाधिकारी शांति व्रत भट्टाचार्य, अभिनेता विनीत कुमार, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम, फिल्म फेस्टिवल के संयोजक कुमार रविकांत, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा मौजूद रहे।
आज शाम पटना फिल्म फेस्टिवल का समापन समारोह के दौरान पद्म विभूषण डॉ सोनल मानसिंह बिहार में 20 साल बाद परफॉर्म करेंगीं। इसके अलावा फिल्म विकास में उत्कृष्ट योगदान के लिए बिहार राज्य फिल्म विकास एंव वित्त निगम द्वारा गणमानीय लोगों को सम्मानित भी किया जाएगा।

भोजपुरी में अच्छी स्क्रिप्ट पर फ़िल्म बनाये तो हर फिल्म 100 करोड़ से ऊपर पहुंच सकती है!

पटना के रीजेंट और रविन्द्र भवन में ही रहे पटना फिल्म फेस्टिवल में बुधवार को रविन्द्र भवन में भोजपुरी एक्ट्रेस तेजल चौधरी शिरकत की। तेजल चौधरी महाराष्ट्र की निवासी है जो मराठी के कई फिल्म में काम कर चुकी है। अभी तेजल भोजपुरी फिल्म की शूटिंग कर रही है। तेजल चौधरी ने परिचर्चा में कहा कि सबसे पहले मैं बिहार की पावन धरती को प्रणाम करती हूँ। तेजल पटना फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा बनने के लिए फिल्म एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार को शुक्रिया अदा की।

Film festival

तेजल ने भोजपुरी फिल्म पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हर चीज के दो पहलू होते है एक नेगेटिव और एक पोस्टिव आप किस श्रेय से देखते है आप पर डिपेंड करता है। मराठी में बनी सैराड भोजपुरी में भी बन सकती है। अगर हम भोजपुरी में अच्छी स्क्रिप्ट और फ़िल्म बनाये तो हर फिल्म 100 करोड़ से ऊपर पहुंच सकती है। मौके पर फिल्म एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार, डायरेक्टर अभिलाष सिंह, अवधेश प्रीत, फिल्म विशेषज्ञ राहुल कपूर, रंजन जी आदि मौजूद थे।

https://youtube.com/watch?feature=youtu.be&v=s4esc8tt7wo

 

वही रीजेन्ट में हो रहे पटना फिल्म फेस्टिवल में फिल्म हैदर, फोर्स – 2 और मोहनजोदारो जैसी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ चुके मधुबनी निवासी नरेन्द्र झा मौजूद रहे।

नरेन्द्र झा ने कहा कि बिहार विविधताओं का प्रदेश है। फिल्म क्षेत्र में भी वही बात है। हिन्दी, मगही, भोजपुरी मैथिली और अंगिका इतनी भाषाओं में फिल्में बन रही है कि वह एक जगह नहीं ले पा रही है। जरूरत है सबको एक साथ चलने की। हम एक साथ चलेंगे, तब ही हमारा विकास होगा। उन्होंने बिहार की प्रशंसा करते हुए कहा कि यहां से हर साल हर क्षेत्र में टॉपर्स निकलते हैं। हमें इसे प्रचारित करना चाहिए। बिहार को प्रचारित करने के लिए बिहार का नाम ही काफी है। हमारी मिट्टी में एक अलग ही खास बात है।

Patna film festival
बिहार में फिल्मों का विकास बड़े स्तर पर होगा। बिहार में इतनी कहानियां है जिस पर फिल्म बने तो इंटरनेशनल लेवल पर जाएंगी। बस जरूरत है सबको इकट्ठा होकर काम करने की। एकजुट होकर विचार करने की। इसकी शुरुआत फिल्म फेस्टिवल से हो गई है।

भोजपुरी भाषा भारत के इतिहास का पसीना और बिहारीपन की आत्मा है

जहाँ एक तरफ भोजपुरी भाषा को सम्मान दिलाने के लिए लोग संघर्ष कर रहें हैं और भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की बात की जा रही है तो वहीं आरा के विर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में इस भाषा की पढाई पर रोक लगा दी गई है।  इस फैसले के खिलाफ भोजपुरी भाषी लोगों के बिच में जबरदस्त आक्रोश है, लोग सड़कों पर उतड़ इसका विरोध कर रहें है तो 5 सितम्बर को आरा बंद किया गया था।  भारतीय मिडिया के जाने माने एंकर और पत्रकार रविश कुमार ने भी इस फैसले के खिलाफ अपनी भरास अपने ब्लोग पर लिखकर निकाली है।  पढिए रविश कुमार ने क्या कहा..

” इ के ह जे डिसिजन ले ले बा कि भोजपुरी के कोर्स न चली। पढ़ाई न होई। भाई जी अइसन मत करी। भीसी बनल बानी त राउर एक काम भाषा के विकास और समर्थनों करेके बा। दुकान समझ के विश्विद्यालय मत चलाईं। ढेबुआ कमाए के ई अड्डा न ह। कौनो चूक भइल बा त ठीक कराईं।

सुननी ह कि पचीस साल से भोजपुरी के पढ़ाई चलत रहल। वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय में। कुँवर सिंह ज़िंदाबाद। बताईं उनकर नाम पर बनल विश्वविद्यालय में भोजपुरी न पढ़ावल जाईं त कैंपसवे बंद कर दीं। जे भी दोषी बा ओकरा के खोजीं। लोग भोजपुरी नइखे पढ़त त रउआ प्रोत्साहित करीं। रिसर्च करवाएँगे। जे छात्र जीवन में नइखे ओकरा के भोजपुरी पढ़ाईँ। गृहस्थों त पढ़ सकेला। ई इंटरनेशनल भाषा ह।भोजपुरी बोले वाला लोग मजूरी करत रह गईल। ऐसे हमनी के कापी किताब कम छपनी सन लेकिन इ भाषा के मज़ा कहीं न मिली दुनिया में। विश्वविद्यालय में नौजवाने पढ़िहें सन, इ कौनो बात न भइल। केहू पढ़ सकेला।

ऐसे खिसियाईं जन। गभर्नर साहब से कहीं कि कोर्स के मान्यता देस। मान जाईं। गभर्नर साहब कहले भी बाड़न कि विचार होता। हमार मातृ भाषा ह भोजपुरी। ऐसे रउआ कोर्स चलाईं। लोग नइखे आवत त कोर्स के दर दर ले जाईं। बाकी हमरा डिटेल नइखे मालूम, ऐसे कौनों बात बेजाएं लिख देनी त माफ कर दीं लेकिन बात सही बा कि भोजपुरी के राज्य के समर्थन चाहीं। हम इ मांग के व्यक्तिगत समर्थन दे तानी। हम त चैनल के एंकर बानी लेकिन भोजपुरी हमार निज भाषा ह। स्व ह। ऐसे भोजपुरी के साथ अन्याय मत करीं। हमनी के अकेले नइखीं। ढेर लोग बा। कशिश चैनल पर भोजपुरी पर बहस देख के आँख से लोर गिरे लागल। मातृ भाषा नू है जी मेरी। एतना निर्मोही कैसे हो गइनी रउआ जी। बंद करे ला भोजपुरी मिलल ह।

आ हो लइकन लोग, आंदेलन कर सन लेकिन सरकारी संपत्ति के नुक़सान जन पहुँचावअ। जे लोग नवजुवक बा उनकरो से व्यक्तिगत अनुरोध करतआनी। आंदोलन में भोजपुरी के नीमन गीत बजालव जाव। भोजपुरी गीत बहुत बेकार होत जाता। अश्लील भी। लुहेंड़ा खानी गावता लोग। इहो बात के आंदोलन चलो कि भोजपुरी में निमन लिखल जाओ। गवर्नर साहब के शारदा सिन्हा के गीत सुना द लोग, उ मान जइहें। केहू के बेजाएं कहला के ज़रूरत नइखे। राज्य सरकार के चाहीं कि बिहार के बोली पर शोध ला एक ठो सेंटर खोल दे। बीस एकड़ ज़मीन में हर बोली के सेंटर एक्केगो कैंपस में। कइसन रहीं इ बिचार।

भोजपुरी का सम्मान, इतिहास का सम्मान है ।भोजपुरी भारत के इतिहास का पसीना है। ऐसी भाषा है जो मज़दूरी करती है। इस पसीने को सूखने मत दीजिये। यह भाषा बिहारीपन की आत्मा है। कृपया ध्यान दें।

 

रविश कुमार