Devdas, Sarat Chand Chattoupadhyay

बिहार के भागलपुर से शुरू हुआ ‘देवदास’ रचयिता कथाशिल्पी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का सफ़र

‘विराज बहु’, ‘बिंदु का लल्ला’, ‘राम की सुमति’, ‘देवदास’, ‘चरित्रहीन’, आदि के रचयिता कथाशिल्पी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म भले ही बंगाल में हुआ हो परन्तु कहानियां गड़ने का उनका सफर बिहार के भागलपुर की गलियों से होता हुआ गुज़रा.
शरत के पिता मोतीलाल यायावर प्रकृति के स्वपनदर्शी व्यक्ति थे इसलिए जीविका का कोई भी धंधा उन्हें कभी बांधकर नहीं रख सका. नौकरी मिलती भी तो अचानक बड़े साहब से झगड़कर उसे छोड़ बैठते. ऐसा होना स्वाभाविक भी था. मोतीलाल को चित्रकला, कहानियां, उपन्यास, नाटकल सभी कुछ लिखने का शौक था. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. ऐसे में उनके पास जो कुछ भी शरत को देने के लिए था वो यही था. शरत भी ऐसा ही था. एक साथ वीरता और बांसुरी की विद्या में निपुण, मधुर कंठ स्वर और हारमोनियम, क्लेयरनेट सभी कुछ बजाना जनता था. याद होगा ‘चरित्रहीन’ का सतीश भी तो इन विद्याओं में दक्ष है.
मगर भूके पेट को कब तक सुलाए रख सकते हैं. हालातों से हारकर शरत की माँ भुवनमोहिनी एक दिन सबको लेकर भागलपुर अपने पिता केदारनाथ के यहाँ रहने चली गयी. मोतीलाल वहां घर- जंवाई होकर रहने लगे.
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भागलपुर आने पर शरत को एम. ई. स्कूल की छात्रवृत्ति क्लास में भर्ती करा दिया गया. यहाँ उसे ‘सीता- बनवास’, ‘चारु पाठ’, ‘सदभाव- सतगुरु’, और ‘प्रकांड व्याकरण’ पढ़ना पड़ता था. ये सब उसके लिए नया भी था और मुश्किल भी. उसे केवल ये पढ़ना ही नहीं था बल्कि रोज़ सुबह पंडितजी के समक्ष खड़े होकर परीक्षा देना भी था. स्कूल में एक छोटा सा पुस्तकालय  हुआ करता था. वहीं बैठे बैठे शरत ने सभी प्रसिद्द लेखकों की पुस्तकें पढ़ डाली. शरत केवल पढता ही नहीं था. वो हमेशा कहता था, “इस दुनिया में जो विभिन्न प्रकार की चीज़ें देखते- सुनते हैं उन्हें क्या कोई रूप नहीं दिया जा सकता?” पर वो प्रतिभाशालियों के वंश में पैदा हुआ था.
देखते ही देखते वो अपने सहपाठियों को पीछे छोड़ अच्छे बच्चों की श्रेणी में गिना जाने लगा. मोटा मोटा कह सकते हैं की शरत का साहित्य से प्रथम परिचय भागलपुर मे हुआ.
स्कूल में शरत ना केवल पढाई लिखाई में आगे रहता था बल्कि शरारतों में सबका लीडर था. स्कूल की घडी का समय ठीक करके चलाने का भार अक्षय पंडित पर था. परन्तु ड्यूटी से थककर वो स्कूल के सेवक जगुआ की पानशाला पर तम्बाकू खाने चला जाता था. इसी समय शरत की प्रेरणा से दूसरे छात्र उस घडी को दस मिनट आगे कर देते. कई दिन पकडे ना जाने के कारण उनका साहस प्रबल होने लगा. अब घडी का काँटा आधे घंटे आगे चलने लगा. अभिभावकों के मन मे संदेह उठा पर पंडितजी का कहना था, “मैं स्वयं घडी की देख- रेख करता हूँ.”
एक दिन पंडित पानशाला से असमय लौट आया. क्या देखता है की बच्चे एक- दुसरे के कंधे पर चढ़कर घडी को आगे कर रहे हैं. पंडित को देख सभी बच्चे वहां से भागने लगे लेकिन इस सारे नाटक का निदेशक शरत पर तोह अच्छे बच्चे की छवि को बनाए रखने का भार था. वो भले लड़के का अभिनय करता वही बैठा रहा. किसीको शक भी नहीं हुआ और काम भी हो गया.
शरत बाग़ से फल चुराना भी खूब जनता था. मालिक लोग शक भी करते और पेड़ पर लगे अमरूदों की गिनती भी रखते. पर अगर मालिक दाल- दाल  तो शरत पात- पात. शरत के सभी प्रसिद्द पात्र देवदास, श्रीकांत और सव्यसाची भी तोह इस कला में सिद्ध हैं.
नाना के घर अब और अधिक दिन रुकना बालक शरत के लिए संभव नहीं था. मोतीलाल ना केवल स्वपनदर्शी थे, बल्कि हुक्का पीना, बच्चों के साथ  बराबरी का व्यवहार करना जैसे अन्य दोष भी वो समाय हुए थे. तीन वर्ष नाना के घर भागलपुर रहने के बाद शरत वापस बंगाल के देवानंदपुर आ गया और यही उनका जन्मस्थान भी था. भागलपुर में नाना की संगती में रहते उसने हमेश भला लड़का बने रहने का प्रयत्न किया. शरारतों में उसकी मास्टरी थी परन्तु दया-दीन के कामों में भी वो आगे रहता.  पतंगबाज़ी में जितनी गोलियां और लट्टू जीतता, संध्या को वह उन सबको छोटे बच्चों में बाँट देता.
शरत जब भागलपुर वापस लौटा तो उसके पुराने दोस्त प्रवेशिका परीक्षा पास कर चुके थे और देवानंदपुर के स्कूल से ट्रांसफर सर्टिफिकेट जुगाड़ने के उनके पास पैसे नहीं थे.
सौभाग्य से स्कूल के एक शिक्षक श्री पंचकौड़ी बंदोपाध्याय के पिता श्री बेनीमाधव बंदोपाध्याय शरत के नाना के मित्र थे. इस बदौलत शरत को दाखिला मिल गया. उन दिनों भागलपुर का खंजरपुर क़र्ज़ लेने का अड्डा हुआ करता था. विप्रदास सरकारी नौकर गुलजारीलाल से चार पैसे रूपए माह की दर पर क़र्ज़ लिया गया. इसी रूपए के सहारे शरत परीक्षा में बैठ सका.
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भागलपुर लौटने के साथ ही शरत के पुराने मित्र राजू और नीला भी उसके पास लौट आए. इनकी मित्रता में कोई लेन देन या व्यक्तिगत लाभ नहीं छिपा था. शरत पढाई मे चतुर था पर सही समय पर आँख ना खुल पाना उसकी कमज़ोरी थी. इसलिए नीला एक दिन चुपचाप  शरत के लिए टाइमपीस ले आया. भागलपुर आने के बाद शरत का ज़्यादातर समय राजू की छात्रोचाया में बीता करता था. घर में पैसे की कमी के चलते शरत पढ़ना- लिखना छोड़ लड़की के कारखाने में काम करने जाता था. एक बार शरत को सांप ने काट लिया था. तब वो राजू ही था जो तूफानी गंगा में नाव लेकर ओझा को बुलाने गया था. अगर राजू समय रहते ना आता तो कुछ भी हो सकता था.
उन दिनों भागलपुर का नाम चोरी- डकैती की घटनाओं में आगे रहता था. सभी रात को हथियार पास रखकर सोते थे. एक रात राजू के बड़े भाई मणीन्द्रनाथ परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. उनका कमरा गंगा- तट पर वट वृक्ष के पास था. वहां तक पहुँचने के लिए आस- पास कांस के जंगलों से होकर गुज़ारना पड़ता था. सांप और रीछ दिख जाना तोह आम बात थी. मणीन्द्र की नज़र खिड़की के बहार पड़ी. उन्होंने देखा कि किसी मनुष्य का सिर उभर रहा है. उन्होंने डर में बन्दूक संभाली लेकिन वे दागने ही वाले थे की तभी आवाज़ आई, “मणि, मणि क्या करते हो? बन्दूक मत चलाओ. ये मैं हूँ शरत.” रात के दो बज रहे थे. न सांप काटने का डर न चोरों द्वारा मारे जाने का भय.
आगे चलकर राजू और नीला के साथ भागलपुर में बिताए ये दिन बच्चों के लिए लिखी शरत कि कई कहानियों का आधार बने. ‘देवदास’ में तोह जैसे उसने अपने बचपन को सजाया है.
भागलपुर में खोला थिएटर
शरत भागलपुर कि गलियों में भटकता उस समय को जी रहा था जब लोगों को थिएटर पसंद हुआ करता  था. तभी भागलपुर के बंगाली समाज में थिएटर का उदय हुआ. शरत ने अपने दल के साथ मिलकर एक थिएटर खोला जिसमे पहला नाटक बंकिमचंद्र का ‘मृणालिनी’ प्रस्तुत किया गया. इसमें मृणालिनी का अभिनय स्वयं शरत ने किया जिसे देखकर दर्शकों के हाथ तालियां बजा बजाकर थक गए. राजा शिवचंद्र का बेटा कुमार सतीशचंद्र इस दल का प्राण था. कुमार सतीश के अन्नप्राशनोत्सव के अवसर पर कलकत्ता के प्रसिद्द मिनर्वा थिएटर के अभिनेता भागलपुर पधारे थे और राजबाड़ी में बढ़ी धूमधाम से उन्होंने ‘अलीबाबा’ नाटक खेला था. शरत ने इस नाटक में मुस्तफा की अदाकारी की थी.
भागलपुर में रहते रहते उनका पहला उपन्यास ‘बासा या काकबासा’ तैयार हो चुका था. पर पढ़ने के बाद उन्हें वो पसंद नहीं आया.
‘कोरेल ग्राम’ कहानी का पहला अक्षर देवानंदपुर में लिखा जा चुका था लेकिन वह कभी प्रकाशित नहीं हो सका. उसे दोबारा लिखने कि प्रेरणा उन्हें भागलपुर से मिली. कहना गलत नहीं होगा यदि बंगाल के चौराहे शरतचंद्र कि जन्मभूमि थे तो भागलपुर के जंगल और खुले मैदानों में उसके प्राण बसते थे.

DIG बनते एक्शन में आये विकास वैभव, पूर्व विधायक पर FIR का दिया आदेश

चर्चित आईपीएस अधिकारी और भागलपुर के डीआईजी विकास वैभव ने बड़ी कार्रवाई करते हुए एक पूर्व विधायक पर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया है। पूर्व विधायक संजय यादव पर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश बांका एसपी को दिया गया है। बताया जा रहा है कि उक्त विधायक पर मोबाइल टावर लगाने वालों से रंगदारी मांगने का आरोप है।

गौरतलब है विकास वैभव पटना एसएसपी के कार्यकाल के दौरान घंटों में बाहुबली विधायक अनंत सिंह को अरेस्ट कर लिया गया। अपने टर्म में पटना पुलिस के एक पुराने मर्ज को ठीक करने की कोशिश की।एफआईआर नहीं लिखने वाले थाना के अधिकारियों को ठीक कर दिया।जनता से संवाद होने लगा।पटना पुलिस का अपना फेसबुक पेज बना, जो उनके ट्रांसफर के बाद अब एक्टिव नहीं है। इस फेसबुक एक्टिविटी से तब पटना के वांटेड कई अपराधियों को दूसरे प्रदेशों में टीम भेजकर गिरफ्तार कराया गया था।

आईपीएस अधिकारी विकास वैभव को हाल ही में भागलपुर डीआईजी के पद पर पदस्थापित किया गया है। डीआईजी के रुप मे विकास वैभव की यह पहली पोस्टिंग है। पोस्टिंग होते ही उन्होंने कहा था कि वो किसी भी अपराधी को, चाहे वो कितनी भी रसूख वाला क्यों न हो, बख्शेंगे नहीं। उन्होंने कहा था कि नई जिम्मेवारी के निर्वहन में मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता यह रहेगी कि पुलिस पूरी तटस्थता और निष्पक्षता के साथ बिना किसी राग—द्वेष के “रुल ऑफ लॉ ” का समुचित निष्पादन सुनिश्चित कर सके।

विकास वैभव ने कहा था कि ऐसा कोई मामला जिसमें प्रभारी पदाधिकारी की पक्षपात पूर्ण भूमिका सामने आती है, अगर वह मामला मेरे संज्ञान में लाया जाता है तब संबंधित व्यक्ति पर स्वाभाविक तौर पर जो कार्रवाई की जाएगी, वह पुलिस अधीक्षक/ आरक्षी उप महानिरीक्षक द्वारा तत्काल प्रभाव से उसका निलंबन होगा और बिना किसी सुलह-समझौते के संबंधित व्यक्ति पर अग्रतर उचित विभागीय कार्रवाई की जाएगी।

आज भागलपुर DIG का पदभार ग्रहण करेंगे विकास वैभव, तय किये अपने टास्क

बिहार के चर्चित आईपीएस विकास वैभव आज भागलपुर डीआईजी का पदभार ग्रहण करेंगे। विकास वैभव न सिर्फ एक ईमानदार अधिकारी हैं, बल्कि आमलोगों की ताकत बनकर, पुलिसिंग का एक आदर्श रूप, सबके सामने रखते हैं। विकास वैभव की खासियत यह है की, पुलिसिंग के बाद जो समय थोड़ा बचता है, उस समय का भी जमकर सदुपयोग इतिहास को खंगालने में करते है। विकास वैभव ‘साइलेंट पेजेज’ नाम की एक ब्लॉग पर अपनी जी-तोड़ मेहनत से अर्जित किये गए ज्ञान को शेयर करते हैं।

वही विकास वैभव भागलपुर के डीआईजी बनते ही अपने टास्क निर्धारित कर लिए हैं। उन्होंने कहा है कि नई जिम्मेवारी के निर्वहन में मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता यह रहेगी कि पुलिस पूरी तटस्थता और निष्पक्षता के साथ बिना किसी राग—द्वेष “रुल ऑफ लॉ” का समुचित निष्पादन सुनिश्चित कर सके।

उन्होंने कहा कि बतौर फील्ड पुलिस आॅफिसर अपने पूरे कैरियर में मैंने प्राथमिकी दर्ज न करने एवं आम जनता को गुमराह करने, पुलिस केस दर्ज करने में अपराध की गंभीरता को कम आंक कर दर्ज करने, किसी भी अपराध के बारे में पुलिस अधीक्षक एवं वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को सूचना तत्क्षण न देने, रिश्वरखोरी, शिकायतकर्ता के साथ कार्य निष्पादन के क्रम में तटस्थता न बरतने जैसे मामलों में मैंने हमेशा जीरो टॉलरेंस की नीति का अनुपालन किया है।

विकास वैभव ने कहा कि ऐसा कोई मामला जिसमें प्रभारी पदाधिकारी की पक्षपात पूर्ण भूमिका सामने आती है, अगर वह मामला मेरे संज्ञान में लाया जाता है तब संबंधित व्यक्ति पर स्वाभाविक तौर पर जो कार्रवाई की जाएगी ,वह पुलिस अधीक्षक/ आरक्षी उप महानिरीक्षक द्वारा तत्काल प्रभाव से उसका निलंबन होगा और बिना किसी सुलह-समझौते के संबंधित व्यक्ति पर अग्रतर उचित विभागीय कार्रवाई की जाएगी।


उन्होंने कहा कि मेरी प्राथमिकता में प्रभावपूर्ण तरीके से आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण होगा जिसमें प्राथमिकता संपत्ति संबंधी अपराध, रात्रिकालीन पुलिस गश्ती में मुस्तैदी, भूमि विवादों के निष्पादन में समुचित भूमिका, जांच के लंबित मामलों एवं प्रक्रियाओं का निष्पादन, अतिक्रमण से मुक्ति एवं यातायात संबंधी मामलों का समाधान, अवैध शराब संबंधी मामलों पर कार्रवाई, यातायात एवं मार्ग बाधित करने वालों के प्रति कोई सहिष्णुता नहीं शामिल है। भले ही कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो, सभी थानों में वरिष्ठ नागरिक प्रकोष्ठ की स्थापना एवं जनता व पुलिस के बीच सप्ताह में एक दिन विशेषतौर पर शनिवार को थाना क्षेत्राधिकार में खुली जगह पर संवाद होगा।

उन्होंने अपने तय टास्क की चर्चा करते यह भी कहा है कि पुलिस थानों का रात्रिकालीन औचक निरीक्षण किया जाएगा जिसमें हाजत की जांच की जाएगी और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि रकम उगाही के लिए किसी को पकड़कर तो नहीं रखा गया है। इसके साथ ही पुलिसिंग के बुनियादी ढांचों एवं नियमित पुलिस गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। मेरे वश में जो भी होगा उसके अनुरूप कल्याणार्थ तमाम कोशिशें की जाएंगी। मैं जन शिकायतों की सुनवाई के लिए हमेशा उपलब्ध रहूंगा और आशा करता हूं कि अपनी क्षमता के अनुसार भागलपुर की जनता की अपेक्षानुरूप सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश कर पाउंगा।

पूर्व बिहार की यह पहली सुपर फास्ट कैटेगरी की ट्रेन होगी, जिसमें यह सुविधा होगी

भागलपुर: अगले साल जनवरी 2017 से जब आप विक्रमशिला एक्सप्रेस में यात्रा करेंगे तो ट्रेन राजधानी जैसी फील देगी। राजधानी एक्सप्रेस के तर्ज पर इस ट्रेन में एलएचबी (लिंक हॉफमैन बुश) कोच लगाए जाएंगे। इससे जहां ट्रेन की स्पीड तो बढ़ेगी ही साथ ही झटके भी कम लगेंगे। पूर्व बिहार की यह पहली सुपर फास्ट कैटेगरी की ट्रेन होगी, जिसमें यह सुविधा होगी यानी 160 किमी की रफ्तार में भी नहीं लगेंगे झटके।

इसके लिए भागलपुर में कोच लगाने की तैयारी में वाशिंग पिट, रैक प्वाइंट व यार्ड की तैयारी की जा रही है।

 

160 किमी की रफ्तार में भी नहीं लगेंगे झटके

– एलएचबी कोच की खासियत यह है कि यह अधिकतम 160 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड में चल रही ट्रेन के लिए फिट है।
– इतनी स्पीड के बावजूद यात्रियों को तेज झटके का एहसास नहीं के बराबर होता है।
– हालांकि पटना से मुगलसराय के बीच अधिकतम 130 किमी की स्पीड में ही विक्रमशिला एक्सप्रेस को चलाने का अादेश पिछले सप्ताह मुख्य संरक्षा आयुक्त (सीआरएस) ने दिया था।
– अभी आईसीएफ कोच के साथ ट्रेन अधिकतम 110 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से ही चल सकती है।

 

टॉयलेट में होगा जंजीर, खींचने पर बंद हो जाएगा दरवाजा, गार्ड आकर खोलेंगे

– रेल अधिकारियों ने बताया कि एलएचबी कोच में जंजीर खींचना आसान नहीं होगा। क्याेंकि टॉयलेट में ही जंजीर लगे होंगे।
– जंजीर खींचने पर टॉयलेट का दरवाजा बंद हो जाएगा। जिसे गार्ड या आरपीएफ स्टाफ आकर खोलेंगे। इन दोनों के पास एक पासवर्ड होगा।
– जिसकी मदद से लॉक टायलेट को खोला जाएगा। टॉयलेट में फंसे यात्री से जंजीर खींचने की वजह पूछी जाएगी।
– वजह सही नहीं होने पर तुरंत रेलवे एक्ट के तहत गिरफ्तार किया जाएगा।
– इससे बार-बार वैक्यूम से अवरुद्ध परिचालन को सुचारू करना आसान हो जाएगा।
चलती ट्रेन में सिर्फ चाय

– एलएचबी कोच लगाए जाने के बाद पैंट्रीकार सुविधा खत्म कर दी जाएगी। ई-कैटरिंग सुविधा इसमें दी जाएगी।
– यात्री से आर्डर लिये जाएंगे। यात्री स्वयं भी मोबाइल से कॉल कर या एसएमएस कर खाने का ऑर्डर कर सकते हैं।
– चलती ट्रेन में सिर्फ चाय की सुविधा ही उपलब्ध हो सकेगी।

सीटों की संख्या बढ़ेगी

– रेल अधिकारियों ने बताया कि नई तकनीक आधारित एलएचबी कोच लगाए जाने से एक स्लीपर कोच में सीट की संख्या 72 से बढ़कर 76 हो जाएगी।
– थर्ड एसी में 64 से बढ़कर 72, सेकंड एसी में 46 से बढ़कर 58 और फर्स्ट एसी में 18 से बढ़कर 24 हो जाएगी। हालांकि एलएचबी कोच लगने से इसकी रैक में कमी हो जाएगी।
– अभी विक्रमशिला एक्सप्रेस में अधिकतम 24 कोच तक लगाए जा सकते हैं। लेकिन एलएचबी कोच अधिकतम 22 ही लगाए जा सकेंगे।

 

आईसीएफ के कारण विक्रमशिला में कंपन होती है तेज

– रेल अधिकारियों ने बताया कि आईसीएफ कोच सामान्य श्रेणी की है। इसमें सफर करने पर कोच में कंपन ज्यादा होती है।
– ट्रेन की गति के साथ अंदर शोर जैसा महसूस होता है। कोच के अंदर बर्थ की संख्या कम यानी 72 होती है।
– लेकिन इसमें अधिकतम 24 कोच लगते हैं। इसमें एक साथ 3 अनारक्षित कोच लगाए जाते हैं।

 

अभी किस ट्रेन में यह सुविधा

– बिहार से दिल्ली जाने वाली ट्रेनों में एलएचबी कोच की सुविधा सिर्फ राजधानी एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस व दुरंतो में ही पहले दी गई थी।
– लेकिन रेलवे बोर्ड ने कुछ प्रमुख ट्रेनों में भी इस सुविधा का ऐलान किया था।
– जिसके तहत शुरुआती दौर में महाबोधि एक्सप्रेस, पूर्वा एक्सप्रेस, संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस और पुरुषोत्तम एक्सप्रेस ट्रेनों के आईसीएफ कोच को एलएचबी कोच में बदल दिया गया है।

बिहार के इन दो शहरों के स्मार्ट सिटी की दौड़ में शामिल होने का रास्ता साफ हो गया है

भागलपुर के बाद बिहारशरीफऔर मुजफ्फरपुर के स्मार्ट सिटी की दौड़ में शामिल होने का रास्ता भी साफ हो गया है।  मंगलवार को मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह की अध्यक्षता में गठित हाई पावर कमेटी ने दोनों शहरों के प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी। 

 

इस प्रस्ताव को 30 जून तक केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय को भेज दिया जाएगा। शहरी विकास मंत्रालय द्वारा पहली सूची की मंजूरी के बाद केंद्र ने मुजफ्फरपुर और बिहारशरीफ के लिए संशोधित प्रस्ताव भेजने का निर्देश दिया था।

 

गौरतलब है कि दुसरे सूची में बिहार के भागलपुर को पहले ही स्मार्ट सिटी  के दौर में शामिल किया जा चुका है।

 

राज्य में मुजफ्फरपुर, भागलपुर व बिहारशरीफ को स्मार्ट सिटी के रूप में चयन किया गया है. सौ शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से प्रस्ताव मांगा था. इसमें बिहार के तीन शहर मुजफ्फरपुर, भागलपुर व बिहारशरीफ का चयन किया गया है. तीनों शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए अलग-अलग एजेंसियों को प्रस्ताव तैयार करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी.

नागरिक सुविधाओं का होगा विकास :

-स्मार्ट शहर बनाने के लिए शहर की नागरिक सुविधाओं का विकास किया जाना है.

इसमें सभी नागरिकों के लिए

-पर्याप्त जलापूर्ति

-सुनिश्चित विद्युत आपूर्ति

-ठोस कचरा प्रबंधन

-शहरी गतिशीलता के लिए सार्वजनिक परिवहन की सुदृढ़ व्यवस्था

-गरीबों के लिए किफायती आवास की सुविधा

-आइटी कनेक्टिविटी व डिजिटेलाइजेशन

-इ-गवर्नेंस व नागरिक भागीदारी, महिलाओं, बच्चों व वृद्ध नागरिकों की सुरक्षा के अलावा स्वास्थ्य व शिक्षा का व्यस्था की जानी है.

स्मार्ट शहर में किसी तरह की नागरिक सुविधाओं की कमी नहीं होगी और सभी तरह की सेवाओं के लिए आइटी के उपयोग की सुविधा दी जायेगी.

खुशखबरी : मोदी सरकार ने बिहार को दिया फिर एक तोहफा !

स्मार्ट सीटी के पहली लिस्ट में बिहार के एक भी शहर का नाम नहीं था।  मगर कल जारी हुए 13 शहरों के दुसरे लिस्ट में एक नाम बिहार के शहर का भी है।  

भागलपुर स्मार्ट सिटी

भागलपुर स्मार्ट सिटी

 

सिल्क सिटी भागलपुर बनेगा बिहार का पहला स्मार्ट सिटी।  केंद्र सरकार ने मंगलवार को लखनऊ, भागलपुर, रांची, इंफाल तथा वारंगल सहित 13 और शहरों को स्मार्ट सिटी के रुप में विकसित करने की घोषणा की।

 

सभी शहरों का चयन फास्ट ट्रैक कंपटीशन के आधार पर किया गया है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने फास्ट ट्रैक स्मार्ट सिटी के लिए चुने जाने वालों शहरों की घोषणा की।

गौर हो कि केंद्र सरकार ने देश के 100 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा किया था। इस योजना के तहत दूसरे चरण में 23 शहरों की दावेदारी में से 13 के नामों का ऐलान कर दिया गया। अगले दो सालों में इस योजना के तहत 40-40 शहरों का चयन रैंकिंग के आधार पर होगा। फास्ट ट्रैक कंपटीशन के जरिए सभी शहरों को अपनी रैकिंग सुधारने का मौका दिया जा रहा है।

 

13 शहरों की सूची इस प्रकार है:
1- लखनऊ, 2- वारंगल, 3- धर्मशाला, 4- चंडीगढ़, 5- रायपुर, 6- न्यू टाउन कोलकाता, 7- भागलपुर, 8- पणजी, 9- पोर्ट ब्लेयर, 10- इंफाल, 11- रांची, 12- अगरतला, 13- फरीदाबाद