शराबबंदी से बिहार को हुआ बहुत फायदा, नहीं हुआ राजस्व नुकसान| पूरे देश में शराबबंदी की उठी मांग

पिछले साल 5 अप्रैल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की तो इस फैसले से असहमत लोगों ने हर स्तर पर इसका जमकर विरोध किया, वहीं फैसले के पक्षधर लोगों की भी धारणा थी कि इसका लागू हो पाना कठिन है। सशक्त शराब लॉबी ने हर संभव तरीके से इस फैसले का विरोध किया, इसके क्रियान्वयन की राह में कांटे बिछाए, हर स्तर के कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बावजूद राज्य में अच्छे नतीजों और संकेतों के साथ पूर्ण शराबबंदी ने एक साल पूरा कर लिया। इसके पिछले साल भर के सफर पर नजर डालें तो इसका संदेश स्पष्ट है, विषय जन आकांक्षा के अनुरूप हो तथा इसके पीछे दृढ़ एवं ईमानदार राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं।

राज्य में घर के आंगन से लेकर चौक-चौराहे तक लड़ाई-झगड़े कम हुए हैं, मुख्यमंत्री का दावा है कि शराबमुक्त हुए लोगों की सेहत और खुशहाली वापस आ गई है। नशाजन्य अपराधों में गिरावट आई है। बिहार की शराबबंदी की पूरे देश में न सिर्फ चर्चा है बल्कि कई अन्य राज्यों में बिहार के तर्ज पर शराबबंदी लागू करने की मांग उठ रही है।

 

शराबबंदी के समर्थन में बना दुनिया का सबसे बड़ा मानव श्रंखला

इस सब के अलाव जो सबसे बड़ी चिंता राज्य के भारी राजस्व नुकसान की थी । शराबबंदी से जहां सरकार को करीब पांच हजार करोड़ रुपये के नुकसान का अंदाजा लगाया जा रहा था, वह कोरा साबित हुआ। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि सरकार के खजाने में पूर्व की तरह इस साल भी उतनी ही रकम जमा हुई, जैसे पिछले साल हुआ करती थी। उलटे शराब के कारण लोगाें की जेब से निकल जाने वाले सालाना दस हजार करोड़ रुपये की बचत हुई। लोगों ने इस पैसे का उपयोग दूध, मिठाई खाने में और अपना जीवन स्तर बेहतर बनाने में किया। पहली अप्रैल से प्रदेश में शराब बनना भी बंद हो गया।

रिपोर्ट के अनुसार इस एक साल की अवधि में दूध की खपत 28.4 प्रतिशत बढ़ गयी. शहद की खपत करीब चार गुनी अधिक हो गयी, मट्ठा की खपत चालीस प्रतिशत बढ़ गयी. रसगुल्ला 16.3 प्रतिशत, दही 19 प्रतिशत,पेड़ा साढ़े 15 प्रतिशत, गुलाब जामुन 15 प्रतिशत और दूध से बने उत्पादों की खपत साढ़े 17 प्रतिशत तक बढ़ गयी. यह परिणाम 2016 के अप्रैल से सितंबर तक की रिपोर्ट पर आधारित है.

किराना और फर्नीचर के सामान की बिक्री में भी इजाफा

 

शराबबंदी का असर लोगों के आम जीवन पर भी पड़ा है. शराब पीने के रूप में जो पैसे घर से बाहर जा रहे थे, उन पैसाें का उपयोग अब घरेलू सुविधाएं जुटाने में हो रहा है. किराने और फर्नीचर की दुकानों में भीड़ बढ़ी है. शराब पीकर पत्नी और बच्चों के संग मारपीट करने वाले अब महंगी साड़ियां खरीद रहे हैं. दो हजार से अधिक कीमत वाली साड़ियों की खरीद 2016-17 में 17 सौ गुनी अधिक बढ़ गयी.पांच सौ रुपये मीटर कीमत वाले कपड़े की खरीद भी बढ़ी है. इसका मतलब यह हुआ कि शराबबंदी का असर मध्यम वर्गीय परिवारों पर भी साफ दिखा है. होजियरी और रेडिमेड कपड़ों की बिक्री में 44 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. किराना सामग्री की बिक्री में 30.7 प्रतिशत, सब्जी, बिस्किट,मेवा, इलेक्ट्रीकल सामान, कार, ट्रैक्टर और दो पहिया व तिपहिया वाहनों की खरीद में 31.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

 

अपराध की घटनाओं में आयी कमी

 

शराबबंदी का दुर्घटना और आपराधिक घटनाओं पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है. पूर्ण शराबबंदी लागू करने के पहले और बाद के छह महीने की तुलना में हत्या की घटना में 28.3 प्रतिशत की कमी अायी है.बलात्कार की घटना में 10.1 प्रतिशत, महिलाओं के खिलाफ अपराध में 2.3 प्रतिशत, अनुसूचित जाति और जन जाति के लोगों के खिलाफ अपराध में 14.8 प्रतिशत की कमी आयी है. सड़क दुर्घटना में 19.8 प्रतिशत, सड़क दुर्घटनाओं में लोगों के मारे जाने की घटना में भी 19.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी. इसी प्रकार डकैती, छिनतई और सांप्रदायिक तनाव आदि के मामले में भी भारी गिरावट दर्ज की गयी है.

 

शराबबंदी की मांग उठी दूसरे राज्यों में भी

 

बिहार में शराबबंदी के बाद इसकी मांग दूसरे प्रदेशों में भी उठने लगी है. सीएम को प्रतिदिन सैकड़ों पत्र आते हैं, खासकर महिला संगठनों के जिसमें उनसे शराबबंदी के पक्ष में चल रहे सामाजिक आंदोलनों की अगुवाई करने का अनुरोध होता है. अभी तक मुख्यमंत्री झारखंड, यूपी, हरियाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ में शराबबंदी मुहिम को संबोधित कर चुके हैं.

 

2016-17 में बढ़ गयी खपत (अप्रैल से सितंबर)

 

सामान प्रतिशत

शहद 380%

मठ्ठा 40%

फ्लेवर्ड दूध 28.4%

सूधा दूध 20.5%

लस्सी 19.7%

सामान प्रतिशत

रसगुल्ला 16.3%

पेड़ा 15.5%

गुलाबजामुन 15.2%

मिल्क केक 9.2%

दूध के उत्पाद कुल 17.5%

िकराना सामान की भी बढ़ गयी खपत

सामान प्रतिशत

किराना 30.7%

बिस्किट 21.3%

स्टेशनरी 30.7%

इंनटरटेनमेंट टैक्स 29.2%

फर्नीचर 20.1%

सामान प्रतिशत

सेविंग मशीन 18.8%

फूट वीयर 17.2%

कार व चार पहिया 29.6%

दो व तीन पहिया 31.6%

ट्रैक्टर 29%

निश्चय यात्रा पर निकले नीतीश कुमार के नाम सोचने को मजबूर कर देने वाला एक खुला पत्र।

​नीतीश बाबु,

सादर प्रणाम

बचपन में जब चिट्ठी लिखना सिखाया जाता था, तब ऐसे ही लिखना शुरू किये थे। भूल-चूक की माफ़ी की गुहार लगा रही हूँ। लोग एगो-दुगो परिवार से परेशान हो जाते हैं, आप तो इतने सारे परिवारों के मुखिया हैं, आपकी परेशानी का आलम हम तो कब्बो सोचियो नहीं सकते हैं।

खैर, सुनने में आया कि आप ‘निश्चय यात्रा’ पर निकले हैं। अब इसका मतलब तो हम जैसा आमआदमी को समझ में आवे से रहा, मगर एतना जरूर लग रहा है कि जैसे पहिले के जबाना में राजा लोग निकलता था अपने प्रजा का हाल-चाल जानने, वैसे ही शायद आपहुँ निकले हैं।

जानते हैं नीतीश बाबु, राजा जब महल से निकलने वाला होता है न, तो उससे ज्यादा मेहनत उसके सिपाहियों को करनी पड़ती है, उसके प्रजा को करनी पड़ती है। ना-ना! राजा के स्वागत के लिए नहीं, बल्कि अपना दर्द राजा से छुपाने के लिए।

आप तो निकले होंगे हाल-चाल जानने, अपने शासन का प्रभाव जानने, मगर आप वही जान पाएँगे जो आपको जनवाया जायेगा। परजा अपने राजा के लिए एतना तो करिये सकती है न!

ये खाली आपके साथ नहीं हो रहा है, सब राजा लोग के साथ हुआ है, अतः इसको अपने ऊपर तो लेबे मत कीजियेगा।

आपका निश्चय यात्रा ‘आरा’ आ रहा है। इहें हमारा घर पड़ता है। आप आ रहे हैं, सब स्टेट रोडवा चकचकाता हुआ मिलेगा। स्कूल-कॉलेज मस्त, एकदम लीपा-पोता हुआ। अस्पताल में रोज़ से जादे मरीज दिखेंगे, स्कूल में रोज़ से जादे लइकन। पार्क-सार्क बनल मिलेगा। पेड़-वेड़ रंगल मिलेगा। ट्रैफिक तो एकदम सरसरा के भागेगा। पुलिस अंकल ना वर्दी में पैसा लेते दिखेंगे, ना ही बिन वर्दी वाला से लिवाते दिखेंगे। हमलोग का वश चला तो एककगो चिरईं को भी दाना दे दें, ताकि कम से कम आपके आने पर सुनर से चहचहाये। गऊ माता जो एन्ने-उन्ने चरती दिखती हैं, सब एक लाइन में चरेगी। एकदम खुशनुमा ना दिखे समां तो कैसा स्वागत! है कि नै!

ई शराबबंदी वाला जो हुआ न, मानव सृंखला जो बना, बहुते गज़ब था। मतलब मज़ा आ गया। सही चीज़ हुआ है बिल्कुल। बाकिर जानते हैं, अंदर के बात तो ई है कि नशा का खाली रूप बदला है, बन्द थोड़े हुआ है। दवा दुकान वाले बताते हैं अचानक से कोरेक्स पीने वाले लोग बढ़ गए हैं, अल्प्राजोलम से नींद पाने वाले बढ़ गए हैं। पहले गुमनामी की ज़िंदगी जीने वाली दवाएं जैसे एक्सटेसी, हैश, एलएसडी, आइस, एफड्रइन, मारीजुआना, हशीश कैथामिन, चरस, नारफेन, लुफ्रिजेसिक, एमडीएमएस अचानक से मशहूर हो गईं हैं। बड़े-बड़े लोग कोकीन के सहारे और मध्यम वर्गीय लोग कैथामिन के सहारे पर टिक गये हैं। गरीब भी नशा करने में अमीरों की बराबरी करने से नहीं चूकते, उनके लिए तो एक्सटेसी, एसिड, स्पीड, हेरोइन आदि एैसे नशीले पदार्थ भी तो उपलब्ध हैं ही। न्यूज़ वाले कहते हैं “पहले बिहार नशीले पदार्थों का उत्पादक हुआ करता था, अब बिहार ही इसका बाज़ार बन चूका है”। नेपाल, बांग्लादेश के रास्ते से आसानी से इसकी तस्करी हो रही है।

गुटखा-सिगरेट तो लॉन्ग टर्म में जान लेते हैं नीतीश बाबु, मगर ई खतरनाक दवाओं से जान तो आजे-कल में न जायेगा।

आप भी कहेंगे कि क्या हँसुआ के बियाह में खुरपी के गीत गाने लगे हम भी। अब नशाबंदी के समर्थन में पूरा बिहार से 3 करोड़ से जादे लोग लाइन लगा के खड़ा हो गया, तब भी हमको नशा ही नशा दिख रहा है। अँधेरे की तरफ मुड़ चुके युवा ही दिख रहे हैं। बाकी कलाम बाबा कह के गये हैं न “सफल होना बड़ी बात नहीं, उसे बरकरार रखना बड़ी बात है”। और जब आप सफल हो रहे हैं तो इस सफलता को बनाये रखने की उम्मीद भी तो आपसे ही की जायेगी न।

खैर! एगो-दुगो और बात है! कह दें?

पिछले साल रोड बनाने में बिहार भारत का नंबर वन राज्य रहा। लेकिन राष्ट्रीय राजमार्गों की हालत खास अच्छी नहीं दिखती। अब देखिये न, NH30 तो जेतना बना नहीं है उतना टूटा ही हुआ है। आप कहेंगे ये बिहार सरकार के जिम्मे नहीं, मगर लाखों लोगों का राह है ये साहेब! कमर भी सड़क जैसा ही टूटने लगा है लोगों का!

पटना बिहार की राजधानी है। बड़ी खुस हैं हमलोग, परकासपर्ब में आये लोगों ने पटना की बड़ी तारीफ करी। मगर पटना से बाहर निकलते ही ये छवि धुमिल हो गयी न साहेब।

खाली पटना, गया और राजगीर ही तो बिहार का हिस्सा नहीं है न! इतना कुछ है और भी जिलों भभुआ, वैशाली, भागलपुर, मिथिलांचल, बेगुसराय आदि में, उसका कुच्छो सोच रहे हैं का साहेब? ऊ का है कि हमको भी तो लगना चाहिए न, हमपर भी नज़र है हमारे राजा की!

बिहार की तरक्की से मन गदगद है वैसे, इसको बनाये रखने की गुज़ारिश के साथ

भारतीय गणतंत्र की जान
आपकी विश्वसनीय एवं मासूम प्रजा

आपन बिहार से आपकी जनता!

नोट- अशुद्धियाँ जानबूझ के की गईं हैं। क्षमा करते हुए भावसंगत होने की कृपा करें।

इससे पहले भी हुआ था शराबबंदी मगर बिहार में नीतीश की शराबबंदी है सबसे ज्यादा असरदार

बिहार में शराबबंदी 2016 का सबसे चर्चित फैसला है। ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी सरकार ने शराबबंदी का फैसला लिया है। इससे पहले भी दो बार शराबबंदी दो नाकाम कोशिश हो चुकी । मगर नीतीश कुमार की शराबबंदी तमाम शुरुआती आशंकाओं और पुराने अनुभवों को नकारते हुए एक नया मिसाल कायम कर रहीं है। ऐसा सिर्फ़ इसलिए संभव नहीं हो पाया कि इस फैसले के पिछे सरकार ईमानदारी से प्रयास कर रहीं है बल्कि इसलिए संभव हो रहा क्योंकि पहली दो कोशिशों को राजनीतिक दलों और आम लोगों का आज जैसा व्यापक समर्थन नहीं था।

 

पहले भी लागू हो चुकी है शराबबंदी

इस बीच के दशकों में शराब की बुराइयों के भयंकर कुपरिणाम खुल कर सामने आए. 1938 में डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की सरकार ने और 1978 में कर्पूरी ठाकुर सरकार ने आंशिक शराबबंदी लागू की थी. 1978 में केंद्र की मोरारजी देसाई सरकार ने पूरे देश में चरणबद्ध तरीके से शराबंदी लागू की थी. उसी अभियान को सफल बनाने की कोशिश बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की सरकार कर रही थी.

 

मोरारजी देसाई

मोरारजी देसाई

1978 के अभियान के पीछे गांधीवादी मोरारजी थे तो 1938 के फैसले के पीछे राज्य के तत्कालीन आबकारी मंत्री जगलाल चौधरी. लेकिन कांग्रेस के अंदर शराबबंदी के सवाल पर एकमत नहीं था. लेकिन चौधरी नशाबंदी के खिलाफ अपने कड़े रुख पर कायम रहे.

 

कांग्रेस ने जब चौधरी को 1952 में मंत्री नहीं बनाया तो तब बिहार में आम चर्चा थी कि शराबबंदी के खिलाफ अपने कठोर निर्णय के कारण चौधरी को मंत्री पद गंवाना पड़ा. याद रहे कि जिस सरकार में दलित नेता जगलाल चौधरी कैबिनेट मंत्री थे, उसी सरकार में जगजीवन राम मात्र संसदीय सचिव थे.

 

यानी उस समय वे बाबू जगजीवन राम से तब बड़े नेता थे, पर उनकी जिद के कारण कांग्रेस का केंद्रीय हाईकमान भी नाराज हो गया.

 

1946 की अंतरिम सरकार में भी चौधरी मंत्री बनाए गए, पर उनका विभाग बदल दिया गया था.1952 में तो कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें मंत्री तक नहीं बनने दिया. गांधी जी ने तब कहा था कि यह देख कर पीड़ा होती है कि जो कांग्रेसी आजादी की लड़ाई में शराब की दुकानों पर धरना दे रहे थे, वे कांग्रेसी भी अब बदल गए.

 

कलकत्ता में मेडिकल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर जगलाल चौधरी असहयोग आंदोलन में कूद पड़े थे. नशाबंदी लागू करके चौधरी जी गांधीजी के विचारों का ही पालन कर रहे थे. गांधीजी आबकारी राजस्व को पाप की आमदनी मानते थे.

 

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जब गांधीजी से यह कहा गया कि इसी आमदनी से सरकारी स्कूलों का खर्च चलता है तो गांधी ने कहा कि ‘यदि इस आमदनी के बंद होने से सभी पाठशालाओं को भी बंद कर देना पड़े तो उसे भी मैं सहन कर लूंगा. पर पैसे के लिए कुछ लोगों को पागल बनाने की इस प्रकार की नीति एकदम गलत है.’

 

जगलाल चौधरी गांधी की यह उक्ति दुहराते रहते थे.

याद रहे कि 1946 में गठित अंतरिम सरकार में भी चौधरी नशाबंदी लागू करने की जिद करते रहे. याद रहे कि चौधरी पासी परिवार से आते थे. नशाबंदी से सबसे अधिक आर्थिक नुकसान उसी जातीय समूह को हो रहा था. इसके बावजूद उन्होंने नशाबंदी पर अपना विचार कभी नहीं बदला. उन्हें आज की तरह जनसमर्थन व पार्टी का सहयोग मिला होता तो शायद वे लागू करने में सफल होते.

 

वहीं जब मोराजी देसाई ने शराबबंदी लागू की तो पहले साल में एक चौथाई दुकानें बंद करने का फैसला किया. फसले के बाद मोरारजी देसाई पटना आए तो उनकी प्रेस कांफ्रेंस में मैं भी था.

एक संवाददाता ने सवाल पूछा,‘पूर्ण शराबबंदी कब तक लागू करेंगे ? प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं तो आज ही लागू कर दूं,पर तुम लोग ही शराबबंदी का विरोध कर रहे हो.’ इस पर लंबा ठहाका लगा.

 

दरअसल मीडिया का एक बड़ा हिस्सा तब शराबबंदी के विरोध को हवा दे रहा था. खैर मोरारजी सरकार पांच साल पूरा नहीं कर सकी. बाद की सरकारों ने भी नशाबंदी की कोशिश तक नहीं की. नई सरकारों ने शराबबंदी की जरूरत नहीं समझी.

बिहार क्रांति की भूमि है यहां से प्रायः राजनितिक क्रांति की शुरुआती होती रहीं है और देश को दिशा देती रही है। मगर इस बार बिहार से समाजिक क्रांति की शुरुआत हुई है। उम्मीद है कि शराबबंदी के जरिए नशामुक्ति का जो सबसे बड़ा क्रांति बिहार से शुरु हुआ है वह पूरे देश में फैलेगा ।

मध्यप्रदेश सरकार बिहार में शराबबंदी के बाद क्राइम रेट पर रिसर्च कर रही है

दुनिया भर में बिहारी के शराबबंदी पर बात हो रही है और जल्द ही शराबबंदी कानून को लेकर लोगों को जागरुक करने के लिए मानव श्रृंखला बना विश्व रिकार्ड बनाने जा रहा है। शराबबंदी के बाद बिहार में क्राइम और रोड दुर्घटना में भारी कमी आने के बाद अब दुसरे राज्य भी शराबबंदी पर विचार करने लगें है।

 

मध्यप्रदेश सरकार ने नर्मदा नदी के किनारे से पांच किमी के दायरे में आनेवाली शराब की सभी दुकानों को अगले वित्त वर्ष से बंद करने का फैसला किया है. वहीं, राज्य सरकार ने अब शराब की दुकानों को लगातार खरीदारी करनेवालों का रेकॉर्ड रखने को कहा है. मध्य प्रदेश सरकार बिहार में शराबबंदी के बाद क्राइम रेट पर रिसर्च कर रही है, ताकि इस बारे में सही फैसला लिया जा सके.

विश्व रिकार्ड बनाने की ओर बढ़ रहा अपना बिहार ..

बिहार। प्रकाशोत्सव के सफल आयोजन के बाद अब
बिहार सरकार का पूरा ध्यान केंद्रित 21 जनवरी को शराबमुक्त बिहार के समर्थन में बनने वाले मानव श्रृंखला पर है।इस आयोजन में २ करोङ लोगों की भागीदारी होगी जो वैश्विक स्तर पर भी एक बङा आकङा होगा।

बिहार सरकार ने मानव श्रृंखला के मार्ग की दूरी दो गुनी से अधिक कर दिया है। पहले 5000 किमी में ह्यूमन चेन बनना था, लेकिन अब 11 हजार 292 किमी की मानव श्रृंखला बनेगी।वही सभी जिलाधिकारियों से विडियो कान्फ्रेंसिंग के बाद मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने यह नया लक्ष्य तय कर सभी जिलों को जवाबदेही सौंपी है।

मुख्य सचिव ने बताया कि एक किमी में 2000 लोग एकजुट होकर हाथों में हाथ पकड़कर शराबबंदी की मुहिम को अपना समर्थन देगें। उन्होंने कहा कि जिलाधिकारियों ने जानकारी दी कि एक कि०मी० में एक हजार लोग ही खड़े हो सकते हैं, इसलिए टारगेट बड़ा किया गया है। हालांकि लक्ष्य बदलने के बाद भी मानव श्रृंखला के मुख्य मार्ग की दूरी पूर्ववत 3007 किमी ही है। अलबत्ता जिलों के अंदर उपमार्ग – सबरूटों की दूरी 11292 किमी हो गयी है। उन्होंने जिलों को सख्त हिदायत दी है कि कहीं भी मानव श्रृंखला टूटने न पाए।

प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने जिलाध्यक्षों के साथ मानव श्रृंखला की तैयारी को लेकर पार्टी कार्यालय में कई घंटे कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए बैठक की। उन्होंने बाद में पत्रकारों से कहा कि नशाबंदी के खिलाफ बिहार के इस अद्भुत कार्यक्रम में पूरी एकजुटता बरती गई है। पार्टी कार्यकर्ता सभी जिलों में इसके लिए मुश्तैद है। बिना पार्टी के झंडे और बैनर के सभी कार्यकर्ता इस अभियान में हिस्सा लेंगे।आशार लगायें जा रहें हैं कि इस कार्यक्रम को सफल बनाने में महिलाओं का भूमिका सर्वाधिक रहेगा।

नाशाबंदी पर अपना बिहार का नारा-
महिलाओं का हुआ सपना साकार।
शराब मुक्त हुआ अपना बिहार।

 

शैलेश कुमार

राजनीति: शराबबंदी को लेकर देशभर में घूम रहें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर मोदी का जोरदार हमला

पटना: पूरे देश में शराबबंदी के प्रचार में घूम रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने जोरदार हमला किया है। 

 

पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि पूरा बिहार अराजकता की चपेट में है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी के देशव्यापी अभियान में जुटे हुए हैं। सूबे के सवा तीन लाख पंचायत शिक्षकों के साथ ही 10 विश्वविद्यालयों के हजारों शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मी पिछले चार महीने से वेतन का इंतजार रहे है।

 

मोदी ने कहा कि लाखों पंचायत शिक्षकों को होली के बाद से वेतन नहीं मिल पाया है। विश्वविद्यालयों से लेकर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षक भी पिछले चार महीने से वेतन से वंचित हैं। यदि सरकार शिक्षकों को हर महीने वेतन देने में सक्षम नहीं है तो उसे घोषणा कर देनी चाहिए कि वह एक पर्व के बाद दूसरे पर्व पर ही वेतन देगी। वैसे प्रदेश के लाखों शिक्षकों को ईद के मौके पर भी वेतन मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। टॉपर घोटाला शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त अराजकता की महज एक बानगी है।

 

टॉपर घोटाले के साइड इफैक्ट के बाद इंटर और मैट्रिक के 85 हजार छात्रों की पौने दो लाख कॉपियों की स्क्रूटनी बीएसईबी के लिए चुनौती बनी हुई है,वहीं मगध विश्वविद्यालय स्नातक तृतीय वर्ष के छात्र परीक्षा परिणाम में गड़बड़ियों को लेकर वीसी के घेराव के लिए विवश हो रहे हैं तो दूसरी ओर बीपीएससी मुख्य परीक्षा की तिथि बढ़ाने को लेकर सैकड़ों छात्र आत्मदाह की चेतावनी दे रहे हैं। पिछले दो महीने से पटना आर्ट कालेज के छात्र आंदोलनरत हैं मगर नीतीश कुमार इन सबसे बेखबर हैं।

 

मैट्रिक और इंटर के 85 हजार छात्रों ने अपनी 1.72 लाख कॉपियों की जांच के लिए बोर्ड को आवेदन दिया। बार-बार तिथि तय करने के बावजूद जेईई पास करीब साढ़े आठ हजार छात्रों की ही आधी-अधूरी स्क्रूटनी हो पाई है। इससे हजारों छात्रों का भविष्य अधर में है। सरकार के अंतिम समय में नौंवी की परीक्षा लेने से हाथ खड़ा करने से लाखों छात्रों की 10वीं की पढ़ाई तीन महीने तक बर्बाद हो चुकी है।