बिहार न थका है न रुका है, न डरा है, न शर्मिंदा है: #फील प्राउड टू बी बिहारी

अगर किसी कन्नड़ को अपनी एसेंट के साथ किसी भाषा में बाेलने में कोई दिक्क्त नहीं होती,किसी बंगाली को अपने ऐसेंट से दिक्कत नहीं होती, न तमिल न उड़िया को तो फिर कई बिहारी को क्यों?

क्यों आर्टिफिशिसल अावरण ओढ़ते हैं? एक परिचित बिहारी मुझसे इस कारण दिल्ली में नाराज हो गये कि उनके साथ एक खास बड़े लोग जो मेरे भी परिचित थे, के सामने बिहारीपन में बात कर दी। देशी अंदाज के साथ। उनका मानना था कि उनके सामने उनकी इमेज सॉफिस्टिकेटेड है और बिहारी लिंक से इसपर असर पड़ सकता है। यह अलग बात है कि वह खास आदमी हमसे अक्सर उनका मजाक उड़ाते हैं जबकि मैं हमेशा 24 कैरेट बिहारी बना रहा हूं, बिना किसी गिल्ट के साथ।

क्यों हम में कई बिहार के सफर के साथ खुद को नहीं जोड़ते? क्या यह हीन भावना है? यह अपराध बोध है। अपराध बोध इस बात का कि ऐसा करने वाले वही हैं जो बाद में कई कारणों से बिहार को बदनाम करने की पटकथा लिखते हैं। इसमें सैडिस्टिक मजा लेते हैं।

इनके कारण एक चोरी की तस्वीर पूरी बिहार की तस्वीर बन जाती है। उस तस्वीर को बिहार के ही लोग ‘हें हें ‘कर बिहार से पूरे विश्व में फ़ैलाते हैं। उन्हें बिहार की एक तस्वीर से मजाक उड़ाने में आत्मीय ख़ुशी होती है। एक क्राइम की खबर से उन बिहारियों का सर झुक जाता है और पूरे विश्व में उस खबर के साथ लोगों को डराते हैं कि बिहार घुसने पर लोगों का गला काट दिया जाता है।
लेकिन वे खामोश रहते हैं जब एक साल में सीमा पर सबसे अधिक बिहारी अपनी जान देते हैं। एक आनंद कुमार अकेले चुपचाप सैकड़ों बच्चों को आईआईटी भेज देता है। चुपचाप पूरे देश में भाषणो से दूर पंचायत में महिलाओं को एक तहिाई आरक्षण देने वाला पहला राज्य बन जाता है। बिहार के बारे में बोलये। गलत पर गलत बोलये। लेकिन यही ताकत अपनी सफतला पर भी बाेलये। नहीं तो न घर के रहेंगे न घाट के। राजनीति कभी काम नहीं देगी। नेता,दल,सरकार आती-जाती रहेगी। घर,मिट्टी आपकी स्थायी रहेगी।

बिहार को समझिये। जानये। मैं टिपिकल रिटोरिक अशोक की मिसाल या हर साल आईएएस पैदा करने के आंकड़े नहीं बताऊंगा। मैं बिहारी की सहन क्षमता बताऊंगा।

Bihari, I am bihari, bihar news, apna bihar, aapna bihar, jai Bihar, bihar diwas, proud bihari, Feel a proud bihari

पिछले कई सालों दशक से बिहार और बिहारी की चर्चा बिहार के बाहर मजा, जंगलराज और खराब दशा के लिए होती रही है। इसमें कोई दो राय नहीं रही कि बिहार डवलपमेंट अजेंडा से पीछे हटा। ला एंड आर्डर के इशु रहे। ऐसे समय,जब बाकी दूसरे स्टेट ने बेहतर विकास किया,बिहार पीछे रहा। एजुकेशन सिस्टम खराब हुई। बिहारी अपमार्केट स्मार्ट नहीं बने। यह सारी बात सही है। छिपाना भी नहीं चाहिए। गलत है तो गलत है।

इसी राज्य में कई ऐसी खूबी है कि अगर उसे वे देश-विदेश को बताते तो राजनीति से इतर बिहार को लोग अधिक करीब से, अधिक प्रेम से देखते। लेकिन जब खुद के लोग ही तो फिर दूसरों से इज्जत की अपेक्षा क्यों रखें।

कभी एक गरीब बिहारी की जिंदगी देखी है? बाढ़-सूखा-पलायन से जूझता गरीब न हारा न झुका। वह खुश रहा। आप चैती गीतों को सुनये। बिहार का समाज शास्ऋ दिखेगा। सदियों से बिहारी संघर्ष करते रहे हैं। बिहारी मजबूर बने। लेकिन कायर नहीं। बिहार में किसानों की आत्म हत्या की समस्या सुनी है? बिहार में लोनमाफी के लिए आंदोलन को देखा? क्या उन्हें जरूरत नहीं थी? बिहारी सालों पे अपने संघर्ष को रहमोकरम नहीं,मेहनत से जोड़ा। जिसका आप कभी-कभी बिहार के बाहर मजदूरों की भीड़ देखकर उड़ाते हैं। लेकिन उसके दूसरे पहलू को आप नहीं जानते।

बिहार में हर साल सितंबर-अक्तूबर में बडृा हिस्सा बाढ़ में डूब जाता है। घरबार-फसल डूब जाता है। लेकिन दावा करता हूं, जब भी त्योहार के मौसम में आप उन इलाकों का दौरा करें। सभी के हंसते चेहरे आपको भनक नहीं लगने नहीं देखें कि अभी पहले उन्होंने अपना सब कुछ खोया है। कितना पांव पसारना चाहिए,यह यहां के लोगों को आता है।

आज जिस एनसीआरबी के आंकड़ों से बिहार के जंगलराज की बात करते हैं, उसी एनसीआरबी के हिसाब से आप इस बात को नहीं बताते कि बिहारी आत्महत्या नहीं करते। वे टूटते कम हैं। आप बिहारी पर जोक बनाते हैं तो आपके साथ् बिहारी भी हंसता है। यह ऐसा गुण है जिसे अभी पूरे विश्व को सीखने की सख्त जरूरत है। आप जिसे डाउन मार्केट कहते रहे वही तो आर्ट आॅफ लिविंग बिहारी की है। बिना बाबा के झान वाला।

रोने की आदत नहीं रही। फिनिक्स की तरह बार-बार उभरना बिहारी की ताकत रही।
#फील प्राउड टू बी बिहारी।।

साभार – नरेन्द्र नाथ (लेखक ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया में कार्यरत हैं)

Search Article

Your Emotions