बिहार का अवदान, योग का वरदान

बिहार का अवदान, योग का वरदान

योग के सूर्य का हुआ उदय, बिहार की पुण्य धरा पर।
गायत्री मन्त्र की गूँज उठी, इसी विद्या-वसुंधरा पर।।
षडंग योग, अष्टांग योग, सबने यहीं पाया आकार।
हठयोग हो, शव साधना हो, सबके बने यहीं संस्कार।।
इसी धरा पर सत्यानन्द ने, योग विद्यालय किया स्थापित। 
बना प्रथम यह विश्वविद्यालय, पूरा भारत इस पर गर्वित।।
योग दिवस के इस अवसर पर, स्मरण करें उनका अवदान।
इस बिहार को, इसके जन को, करता है यह कवि प्रणाम।।
अविनाश कुमार सिंह

जहाँ की हवाओं में पहली बार पवित्र गायत्री मन्त्र के गायन ने संगीत की हृदयस्पर्शी तान छेड़ी, उसी बिहार की पावन धरा पर योग का अभ्युदय हुआ। षडंग योग (छह अंगों वाला योग—प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, तर्क और समाधि) के प्रवर्तक एवं मैत्रायणी उपनिषद के रचनाकार शाकायन्य बिहार से सम्बंधित थे। अष्टांग योग के द्रष्टा, योग दर्शन के प्रणेता और ‘योगसूत्र’ के रचयिता ‘महर्षि पतंजलि’, मौर्यकालीन प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य और अष्टाध्यायी के रचयिता ‘पाणिनि’ (मनेर/पटना) के ही शिष्य थे। पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों को चंचल होने से रोकना (चित्तवृत्तिनिरोधः) ही योग है। पहले बौद्ध सिद्ध कवि एवं सहज योग के समर्थक सरहपा या सरहपाद (750 ई० के आसपास) नालंदा विश्वविद्यालय के छात्र एवं अध्यापक थे। षटचक्रों वाले योगमार्ग की साधना-पद्धति के प्रवर्तक एवं नाथ-संप्रदाय के संस्थापक गुरु गोरखनाथ (13 वीं सदी) की कर्मभूमि बिहार रही। इन्होंने हठयोग को अपनी साधना-पद्धति का अनिवार्य अंग माना और बताया कि हठयोगी साधना द्वारा शरीर और मन को शुद्ध करके शून्य में समाधि लगाता है और वहीं ब्रह्म का साक्षात्कार प्राप्त करता है। उन्होंने लिखा है कि धीर वह है जिसका चित्त विकार साधना होने पर भी विकृत नहीं होता–

‘नौ लख पातरि आगे नाचैं, पीछे सहज अखाड़ा।
ऐसे मन लै जोगी खेलै, तब अंतरि बसै भंडारा।। ’

बिहार की धरती पर प्रथम योग विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। मुंगेर जिले में पतितपावनी गंगा के पावन तट पर स्थित ‘बिहार योग विद्यालय’ योग शिक्षण-प्रशिक्षण का अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त मानद विश्वविद्यालय है, जो योग की अति-प्राचीन पद्धति को विज्ञान-सम्मत और वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करता है। गंगा आत्मा के परमात्मा में पुनर्मिलन की यात्रा अर्थात योग का सशक्त सलिल प्रतीक है। 1964 में गुरुवर स्वामी शिवानन्द (वेदांत के प्रखर विद्वान एवं दिव्य जीवन संघ के संस्थापक) के योग्य शिष्य स्वामी सत्यानन्द सरस्वती द्वारा प्रतिष्ठित यह संस्थान अभी भी गुरुकुल शैली की परम्परा को जीवंत रखे हुए है। संस्थान के अनुसार वर्तमान में यहाँ से प्रशिक्षित लगभग 30000 लोग देश-विदेश में योग ज्ञान की गंगधार बहा रहे हैं और योग संस्कृति को पुष्पित-पल्लवित कर रहे हैं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति मिसाइलमैन डा० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम ने बिहार के मुंगेर को ‘योग नगरी’ की संज्ञा दी थी। तमाम प्रसिद्ध नेताओं, अभिनेताओं, वैज्ञानिकों के अलावा योग गुरु बाबा रामदेव ने भी इस योग विद्यालय की प्रशंसा की थी।
स्वामी सत्यानन्द के शिष्य एवं बिहार योग विद्यालय के वर्तमान कर्ता-धर्ता स्वामी निरंजनानन्द द्वारा 1994 में मुंगेर में ही स्थापित बिहार योग भारती भारत की ऋषि परम्परा, वैदिक जीवन पद्धति एवं योग की सनातन संस्कृति को समर्पित केंद्र है। नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालयों की तर्ज पर स्थापित यह संस्थान योग पर शोध कार्य को भी आगे बढ़ाने को प्रतिबद्ध है। आज बिहार की धरती से योग का आध्यात्मिक आलोक 100 से अधिक देशों में प्रसरित हो रहा है। ऐसे बिहार की पुण्य धरा प्रातःस्मरणीय है।

 

 

–अविनाश कुमार सिंह, राजपत्रित पदाधिकारी, गृह मंत्रालय, भारत सरकार

योग दिवस : बिहार के पावन भूमी से ही पूरी दुनिया में योग का विस्तार हुआ

पटना: 21 जून विश्व योग दिवस है।  पूरी दुनिया आज योग के रंग में रंगा है।  योग भारत की पहचान है मगर क्या आपको पता है बिहार के पावन धरती से ही विश्व भर में योग का प्रसार हुआ।  बिहार में ही विश्व का पहला अंतराष्ट्रीय योग स्कूल है।  

 

बिहार के मुंगेर में स्थित ‘गंगा दर्शन’ योगाश्रम ने योग को विश्व पटल पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसके माध्यम से स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा दिया। उन्होंने बिहार में जिस योग क्रांति का सूत्रपात किया, उसका प्रभाव आज पूरी दुनिया पर दिख रहा है।

 

ज्ञान की इस रोशनी के बल पर यह संस्थान योग के प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय योगदान कर रहा है। अपने परम गुरु परमहंस स्वामी शिवानंद की स्मृति में अखंड दीप प्रज्वलित कर वर्ष 1964 में वसंत पंचमी के दिन इसकी शुरूआत की थी।

21 जून को विश्व योग दिवस के अवसर पर भी यहां विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।

 

गुरु व संन्यासी का मिलन स्थल ‘गंगा दर्शन’
गंगा दर्शन आश्रम कोई मठ-मंदिर नहीं, बल्कि यह गुरु व संन्यासी का वह मिलन स्थल है, जहां नि:स्वार्थ सेवा व सकारात्मक प्रवृत्ति का विकास किया जाता है।

स्वामी सत्यानंद ने गंगा तट पर डाली नींव
मुंगेर में गंगा तट पर स्थित एक पहाड़ी पर असामाजिक तत्वों का अड्डा था। यहां लोग दिन में भी जाने से डरते थे। यहां के ऐतिहासिक कर्णचौरा व प्राचीन जर्जर भवन पर शासन-प्रशासन की नजर नहीं थी। इस उपेक्षित स्थल पर वर्ष 1963-64 में स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने अपने गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती की प्रेरणा से ‘शिवानंद योगाश्रम’ की स्थापना की।
योग की यह हल्की किरण 1983 में ‘गंगा दर्शन’ की स्थापना तक वैश्विक विस्तार पा चुकी थी। इसी गंगा दर्शन में वह योगाश्रम स्थित है, जिसे 20वीं सदी में एक बार फिर भारत में योग क्रांति का सूत्रधार बनने का गौरव प्राप्त है। इसका आध्यात्मिक प्रकाश आज भारत सहित विश्व के 40 से अधिक देशों में फैल रहा है।

 

गंगा दर्शन वर्तमान में योग शिक्षा का एक आधुनिक गुरुकुल है। यहां एक महीने के प्रमाण पत्र से लेकर डॉक्टरेट तक के योग पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं।

 

साधकों व श्रद्धालुओं के लिए सख्त नियम
आश्रम में आने वाले साधकों व श्रद्धालुओं को यहां के सख्त नियमों का पालन करना पड़ता है। आश्रम में प्रतिदिन प्रात: चार बजे उठकर व्यक्तिगत साधना करनी पड़ती है। इसके बाद निर्धारित रूटीन के अनुसार कक्षाएं आरंभ होती हैं। सायं 6.30 में कीर्तन के बाद 7.30 बजे अपने कमरे में व्यक्तिगत साधना का समय निर्धारित है। रात्रि आठ बजे आवासीय परिसर बंद हो जाता है।

 

यहां खास-खास दिन महामृत्युंजय मंत्र, शिव महिमा स्तोत्र, सौंदर्य लहरी, सुंदरकांड व हनुमान चालीसा का पाठ करने का नियम है। वसंत पंचमी के दिन हर साल आश्रम का स्थापना दिवस मनाया जाता है। इसके अलावा गुरु पूर्णिमा, नवरात्र, शिव जन्मोत्सव व स्वामी सत्यानंद संन्यास दिवस पर भी विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

 

फ्रांस की शिक्षा पद्धति में शामिल है सत्यानंद योग
आज इस विशिष्ट योग शिक्षा केंद्र से प्रशिक्षित करीब 15 से 20 हजार शिष्य व करीब 13 से 15 सौ योग शिक्षक देश-विदेश में योग ज्ञान का प्रसार कर रहे हैं।
यही नहीं आज फ्रांस की शिक्षा पद्धति में भी मुंगेर योग संस्थान के संस्थापक सत्यानंद के योग की पढ़ाई हो रही है। स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग रिसर्च सेंटर की स्थापना कर जिसकी अनुशंसा की थी और योग को आम लोगों तक पहुंचा कर विश्व में योग क्रांति का जो सूत्रपात किया था उसी का परिणाम है कि आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग स्थापित हुआ है।

 

विश्व योग सम्मेलन का आयोजन
स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने 1973 में मुंगेर में प्रथम विश्व योग सम्मेलन के माध्यम से देश व दुनिया का ध्यान योग की ओर केंद्रित किया था। 20 वर्षों बाद फिर 1993 में बिहार योग विद्यालय की स्वर्ण जयंती के अवसर पर द्वितीय विश्व योग सम्मेलन का आयोजन किया गया। पुनः स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने 2013 में मुंगेर में विश्व योग सम्मेलन के माध्यम से दुनिया में योग को स्थापित किया। आज भी यह परंपरा निर्बाध गति से चल रही है। देश- विदेश से लोग यहां योग की शिक्षा लेने आ रहे हैं।

 

 


योग विद्या के प्रचार-प्रसार के लिए आश्रम की व्यापक सराहना होती रही है। इससे प्रभावित होने वालों में शामिल न्यूजीलैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लिथ हालोस्की, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी व मोरारजी देसाई तो केवल उदाहरण मात्र हैं।

 

राजनीतिज्ञों के अलावा योग गुरु बाबा रामदेव भी योगाश्रम से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके थे। उन्होंने आश्रम के प्रमुख स्वामी निरंजनानंद सरस्वती को खुद से अधिक ज्ञानी बताते हुए कहा था कि 21वीं सदी योगज्ञान की होगी और भारत इसका मार्गदर्शक होगा।
बाबा रामदेव ने कहा कि स्वामी सत्यानंद महाराज ने योग का जो अलख जगाया, उसे ही वह घर-घर तक पहुंचने में लगे हैं। योग को वैज्ञानिक प्रमाणिकता के साथ दुनिया में स्थापित करने वाले स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने कहा था कि योग विद्या भारत की सबसे प्राचीन संस्कृति एवं जीवन पद्धति है, इसी विद्या के बल पर मनुष्य सुखी, समृद्धि एवं स्वास्थ्य जीवन बिता सकते हैं। इसलिए हर व्यक्ति को योग करना चाहिए।
परमहंस मेंहीं दास ने भी योगाश्रम की सराहना की थी।

 

खुद कर सकते योग।
योगाश्रम ने लोगों से अपील की है कि सुबह छह बजे से एक घंटे के लिए अपने घर या सामुदायिक केंद्र की छत, बरामदे, आंगन या अन्य खुली जगह पर आसन और प्राणायाम करें। योगाश्रम के संदेश के अनुसार कोई भी व्यक्ति बिना किसी योग शिक्षक के भी इसे कर सकता है। सबसे पहले दो बार ‘ओम’ मंत्र का उच्चारण कर इसकी शुरूआत करें और अंत पांच चक्र ‘सूर्य नमस्कार’ से होगा।

 

आज पूरी दुनिया जिस योग का कायल है,  भारत जिस योग पर गर्व करता है, उस योग का सबसे बडा केंद्र बिहार है।  बिहार क्रांतिओं का भूमी रहा है।  अनेक क्रांतिओं के साथ योग क्रांति भी बिहार के इसी पावन भूमी से शुरू हुआ था।  बिहार की भूमी महान है।