मैं बिहार का विक्रमशिला हूं, मुझे मेरे शिक्षक व शिष्य वापस दो

मैं बिहार का विक्रमशिला हूं। मुझे फिर से मेरे शिष्य और शिक्षक वापस चाहिए जिन्हें मैं पढ़ाई की नयी तकनीक और जानकारी दे सकूं। मुझे पाल शासकों ने बनाया था। मेरे शिक्षकों और छात्रों ने ख्याति फैलायी। दुनिया भर में मेरी महत्ता स्थापित की। फिर मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने मुझे विध्वंस कर दिया।

इतिहास के पन्नों से निकलकर खुदाई में अब तो मेरे अवशेष भर बचे हैं। मगर मेरे अंदर की चिनगारी अब तक सुलग रही है। यह मेरे अंदर की आग ही थी जो देश के राष्ट्रपति को भी यहां खींच लायी हैं। हालांकि चिनगारी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अंदर भी थी। तभी तो अपने संबोधन में प्रणब दा ने बार-बार कहा कि छात्र जीवन से ही वो मेरे पास आना चाहते थे मगर वक्त अब मिला है। उम्मीद मेरे अंदर अब भी बाकी है और उनके अंदर भी। साथ ही उन लोगों के अंदर भी जो मंच और दिल से यह कहते हैं कि उन्हें गर्व है कि मैं विक्रमशिला में पैदा हुआ हूं। मेरी खुशी उस समय दुगुनी हो गयी जब राष्ट्रपति ने कहा, यहां पर उच्च स्तरीय विश्वविद्यालय बनेगा।

मैं भी इस मूरत भर की दीवार से तंग आ चुका हूं। मुझे फिर से मेरे शिष्य और शिक्षक वापस चाहिए।

 

मेरे कैम्पस में आए राष्ट्रपति प्रणब दा

मेरी इच्छा पूरी हो गई

आपने आज सिर्फ प्रशासनिक तैयारी भर ही देखी है। आपने देखा नहीं राष्ट्रपति के स्वागत के लिए मुझे किस तरह से सजाया-संवारा गया था। जैसे पहले मेरे प्रांगण में छात्रों का कौतूहल हुआ करता था। आज भी कुछ वैसा ही नजारा था। मैं देख रहा था जैसे कि मेरे छात्र फिर से वापस आ गए हैं। पूर्व की तरह मेरे प्रांगण के स्तूप पर मेरे शिक्षक और छात्र मंत्रोच्चारण कर रहे हैं। कक्षाएं शुरु हो गयी हैं। ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे 208 छात्रावास फिर से भर गए हैं। मेरे चेहरे पर खुशी थी क्योंकि मेरी वर्षो दबी इच्छा पूरी जो हो गयी।

इंतजार कब पूरा होगा

आज राष्ट्रपति प्रणब दा के आने के बाद मेरी उम्मीदों को पंख लगे हैं कि अब मेरा पुराना गौरव वापस लौटेगा। आज सभी अतिथियों ने आश्वासन तो दिया है। अब देखना है कि मेरा इंतजार आखिर कब पूरा होगा।

 

साभार – हिन्दुस्तान 

मेरी दिली इच्छा है कि बिहार के विक्रमशिला में बने यूनिवर्सिटी – राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी

बिहार के भागलपुर में कहलगांव यात्रा के दौरान मंच पर से लोगों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बिहार वासियों के मन की बात कह दी ।

राष्ट्रपति ने विक्रमशिला में यूनिवर्सिटी बनाने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा कि विक्रमशिला में सिर्फ म्यूजियम बनाने से काम नहीं चलेगा। यहां एक बड़ा यूनिवर्सिटी बनना चाहिए। ये मेरी भी दिली इच्छा है।

इस दौरान जब प्रणब दा ने विक्रमशिला में यूनिवर्सिटी बनाने की बात कही तो मंच पर बैठे सभी नेताओं ने भी अपना समर्थन जताया साथ ही भीषण गर्मी के बावजूद उन्हें सुनने को मौजूद हजारों की भीड़ ने जमकर तालियाँ बजाई ।

अपने संबोधन में प्रणब दा ने कहा- जब मैं कॉलेज की पढ़ाई कर रहा था कि उसी समय से मेरी अभिलाषा थी कि मैं विक्रमिशला महाविहार को देखूं। आज मेरी ये इच्छा पूरी हुई।

की कमजोरी को बताते हुए कहा कि मुझे हिंदी बोलने में कठिनाई हुई। इसके लिए भागलपुर की जनता से माफी मांगते हुए कहा कि मैं सही से नहीं बोल पाया लेकिन मुझे जो भी टूटी-फूटी हिंदी आती थी मैंने बोला।

बिहार में आने पर हर बार यहां की धरती से प्रेरणा मिलती है – राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी

इस महीने में दूसरी बार देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी फिर आज बिहार दौरे पर थे। पटना में एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्‍टीच्‍यूट (आद्री) की ओर से अायोजित अंतरराष्‍ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी विशेष विमान से आज पटना पहुंचे थे।

इस विशेष मौके पर राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रपति ने कहा कि बिहार का बड़ा एतिहासिक महत्व रहा है। यह बुद्ध और महावीर की भूमि है। इससे पहले भी कई मौकों पर बिहार आया हूं। बिहार में आने पर हर बार यहां की धरती से प्रेरणा मिलती है।

सम्मेलन का थीम ‘बिहार और झारखंड : साझा इतिहास से साझा दृष्टि तक’ है। पांच दिनों के इस सम्मेलन में 52 सत्र होंगे, जिन्हें देश-विदेश से आए विशेषज्ञ संबोधित करेंगे। बिहार एवं झारखंड के ऐतिहासिक, आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षिक पहलुओं पर विशेषज्ञ अपनी राय रखेंगे। 26 मार्च को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर और 27 मार्च को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा भाग लेंगे। अंतिम दिन 28 मार्च को समापन समारोह में झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे।

 

 

 

वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय एक सपना साकार होने जैसा है : राष्ट्रपति

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आज बिहार के लिए बहुत एतिहासिक दिन था।  800 वर्षों बाद फिर बिहार ने इतिहास को दोहराया है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अंतरराष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह में शामिल हुए और विश्वविद्यालय के पहले सत्र के कुल बारह छात्रों को सम्मानित किया । इसमें दो छात्र, शशि अहलावत और साना सालाह को गोल्ड मेडल से नवाजा। इसके साथ ही 10 अन्य को सर्टिफिकेट दिए गए।

इस एतिहासिक मौके पर राष्ट्रपति ने कहा कि पुराने नालंदा विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक महत्व रहा है। बिहार में नालंदा और विक्रमशिला जैसे ऐतिहासिक महत्व के विश्वविद्यालय रहे हैं। वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय एक सपना साकार होने जैसा है।

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साथ ही राष्ट्रपति ने पर्यावरण असंतुलन पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “धरती हमारे लिए बहुत कुछ करती है और आज हम धरती के लिए क्या कर रहे हैं, यह सभी को सोचना चाहिए।” उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय की योजना खुद बिजली पैदा करने की है, यह प्रणाली अन्य शिक्षण संस्थानों को भी लागू करनी चाहिए।

 

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने शुक्रवार को कहा कि विश्वविद्यालयों को अभिव्यक्ति की आजादी का केन्द्र होना चाहिए तथा इनमें असहिष्णुता, पूर्वाग्रह और नफरत के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
मुखर्जी ने इस विशेष मौके पर कहा कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय उच्च स्तरीय वाद-विवाद और चर्चाओं के लिए विख्यात रहा है। यह महज एक भौगोलिक संरचना नहीं था बल्कि विचारों एवं संस्कृति को प्रतिङ्क्षबबित करता है। नालंदा मित्रता, सहयोग, वाद-विवाद, चर्चा और बहस का संदेश देता है। वाद-विवाद एवं चर्चा हमारे व्यवहार और जीवन का हिस्सा है।

विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा संस्थान वाद-विवाद, चर्चा और विचारों के आदान-प्रदान के सर्वश्रेष्ठ मंच हैं। उन्होंने कहा बदलावों को आत्मसात करने के लिए हमें अपनी खिड़कियां खुली रखनी चाहिए लेकिन हवा के साथ बहना भी नहीं चाहिए। हमें पूरी दुनिया से हवाओं को अपनी ओर आने देना चाहिए और उनसे समृद्धि हासिल करनी चाहिए।

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राष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारत विश्व को ज्ञान की रोशनी देता आ रहा है। यहां तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और कई अन्य विश्वविद्यालय थे जहां उच्च शिक्षा के लिए देश-विदेश से लोग आते थे। उन्होंने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय से कई विद्वान और बौद्ध भिक्षु चीन गये थें लेकिन यह सिर्फ एकतरफा नहीं था । चीन से भी कई विद्वान यहां आयें।

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इस मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि 2006 में इस विश्वविद्यालय की शुरूआत हुई। नालंदा विश्वविद्यालय को बिहार सरकार पूरी मदद दे रही है। इसके लिए 70 एकड़ जमीन इनडाउनमेन्ट के लिए उपलब्ध कराई गई है ताकि विश्वविद्यालय राज्य और केंद्र सरकार पर आश्रित ना होकर आत्मनिर्भर हो जाए। मैं चाहता तो यह जल्द से जल्द इसे अपनी बिल्डिंग में शिफ्ट हो जाता। मुख्यमंत्री ने कहा कि नालंदा को विश्व धरोहर में शामिल किया जाना गौरव की बात है। अब तेल्हाड़ा और विक्रमशिला को भी विकसित करना है।

 

इस मौके पर नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन, डॉ़ मेघनाथ देसाई, राज्यपाल रामनाथ कोविंद, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित राज्य के कई मंत्री और गणमान्य लोग उपस्थित थे। नालंदा विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह में आठ देशों के प्रतिनिधिमंडल और राजदूत भी शामिल हुए।