अंग्रेजों की धरती पर अपनी मातृभाषा हिन्दी की ज्योत जला रही है बिहार की यह बेटी

हिन्दुस्तान में हिन्दी भाषा को माँ का दर्जा प्राप्त है । हिन्दी सिर्फ एक भाषा नहीं है बल्कि एक ऐसी मजबूत धागा है जो लोगों को एक-दुसरे से जोड़ती है ।

हिन्दी को राष्ट्रभाषा, राजभाषा, सम्पर्क भाषा और जनभाषा होने का गौरव प्राप्त है साथ ही अब इन सबको पार कर हिन्दी विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है । इसी सपने को हकीकत में बदलने के मकसद से बिहार की एक बेटी अनुपमा कुमार ज्योति विदेशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में लगी है, वह भी अंग्रेजी धरती ब्रिटेन में जो अंग्रेजी भाषा की जन्मभूमि है।

 

ब्रिटेन में युवा वर्ग को हिन्दी लेखन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए लंदन की युवा लेखक व बिहार की बेटी अनुपमा कुमार ज्योति और उनकी टीम ने हाल ही में लंदन में एक कार्यशाला का आयोजन किया । जिसमें मुख्य अतिथि के तौर पर प्रख्यात लेखिका और गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा थी और मशहूर कथाकार तेजेन्द्र शर्मा उपस्थित थे।

 

कार्यशाला में मृदुला सिन्हा ने अपने शुरूआती लेखन की बातों को बहुत ही रोजक ढंग से लोगों को सुनाया साथ ही राजनीतिक जीवन की जानकारी दी ।

Anupama Kumar jyoti

17 नवम्बर 2016 को ब्रिटेन की संसद में (हाउस ऑफ़ कॉमन्स )तीन दिवसीय प्रवासी सम्मेलन के पहले दिन कथा यू.के. ने प्रवासी संसार पत्रिका के एक दशक पूरा होने का जश्न मनाया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि गोवा की राज्यपाल महामहिम श्रीमती मृदुला सिन्हा ने ब्रिटेन में सक्रिय संस्थाओं और अध्यापकों, लेखकों को उनके उल्लेखनीय कामों के लिए ब्रिटेन की संसद (हाऊस अॉफ कॉमन्स) में सम्मानित किया । इनमें प्रो. डॉ. कृष्ण कुमार (गीतांजलि), दिव्या माथुर (वातायन), रवि शर्मा (मिडिया), अनुपमा कुमार ज्योति( लेखक व कवि)आदि लोग शामिल थे।

 

“आपन बिहार” से बातचीत में अनुपमा कुमार ज्योति ने बताया कि हम यहाँ अभी बहुत सारे योजनाओं पर काम कर रहें हैं जिसमें भारतीय उच्चायोग लंदन से भी काफी सहयोग मिल रहा है । हिन्दुस्तान में तो हिन्दी लोकप्रिय है ही, हम लोग का मकसद है कि हिन्दी विदेशी धरती पर अपनी धाक जमाए और इसका विश्वस्तर पर विस्तार हो।

 

बिहार के बारे में उन्होंने कहा कि भले वह अपने मातृभूमि से बहुत दूर रहती है मगर अभी भी वह दिल से पक्का बिहारी है ।

जानें कौन है अनुपमा कुमार ज्योति

Anupama kumar gupta
अनुपमा कुमार ज्योति बिहार के मुजफ्फरपुर की रहने वाली है और अभी वर्तमान में लंदन में रहती है । उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई प्रभात तारा विद्यालय मुज़फ़्फ़रपुर से की। उसके बाद स्नातक की शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की। यूनिवर्सिटी ओफ ससेक्स से पोस्ट ग्रैजूएशन करने के बाद वह समाज सेवा, हिंदी लेखन व ब्रिटेन की राजनीति में सक्रिय हो गयीं। वर्तमान में लंदन में हिन्दी भाषा में छपने वाली एकमात्र पत्रिका पुरवाई के संपादक मंडल में शामिल हैं। ब्रिटेन में कनजरवेटिव पार्टी की वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ता भी है।

गोवा की राज्यपाल और बिहार की बेटी डाॅ मृदुला सिन्हा से खास बातचीत

सरल व्यक्तित्व, उच्च विचार एवं अपने लेखनी के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध वर्तमान में गोवा राज्य की राज्यपाल डॉ मृदुला सिन्हा बिहार के ही पावन भूमि मिथिला के मुजफ्फरपुर की रहने वाली हैं। उनकी पहचान एक प्रखर महिला नेता के साथ हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध लेखिका के तौर पर तो है ही साथ ही मिथिला लोक संस्कृति के ध्वजवाहक के तौर पर भी होता है और साथ ही बिहार के प्रति उनका प्रेम जगजाहिर है।

हाल ही में बिहार दौरे पे आई गोवा की राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा ने ‘आपन बिहार’ से बातचीत की और बिहार से संबंधित विषयों पर अपना विचार दिया।

पढ़िए उनका एक्सक्लूसिव इंटरव्यू…

Mridula sinha

प्रश्न:  प्रायः लोग सफलता मिलने के बाद अपने गाँव और समाज को भूल जाते हैं, मगर आप राज्यपाल जैसे प्रतिष्ठित पद पर जाने के बाद भी अपने गाँव, समाज और राज्य के सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं। लोग आपको बिहार की पहचान और मिथिला की ब्रांड एम्बेसडर भी कहते है. इसपर आपकी प्रतिक्रिया

 

मृदुला सिन्हा: यह मेरी धारणा है कि अधिकांश लोग, बिहारी भी, जो अपने राज्य से बाहर जाते हैं या बड़े पद पर पहुँच जाते हैं, वे गाँव-देहात को नहीं भूलते। ये मृदुला सिन्हा की ख़ासियत नहीं है। ज्यादातर लोग याद किया करते हैं| कुछ लोग किसी परिस्थिति वश नहीं याद कर पाते हैं। सबको गाँव और समाज खींचता है इसलिए उसमें से एक मैं भी हूँ और मुझे ऐसा लगता है कि लोक संस्कृति ने मुझे बहुत जकड़ रखा है, बाँध रखा है| मुझे उसमें ख़ासियत महसूस होती है|

जितने लोकगीत हैं, लोक कथाएँ हैं, वे बहुत सारे संदेश देते हैं। वे लोकगीत मनोरंजन के लिए नहीं हैं, वे बहुत कुछ सिखाते हैं और लोक गीतों में वेद के मंत्रों का अनुवाद, जो ख़ासियत है, वही भारतीयता है, भारतीय संस्कृति है| बिहार की संस्कृति कोई अलग नहीं है। तो उन चीजों को दूसरी जगह बताना, दूसरी संस्कृतियों से तुलना करना और वहाँ भी जा के बता पाना मुझे उसमें खुशी होती है। तो मैं न लोकगीतों को भूला पाई हूँ और न ही लोक संस्कार को।

कल्चर है, पर्व-त्योहार है, सबका विशेष महत्व है और वो इस तरह से मेरे अंदर समा गया है कि मैं चाहूँगी तो भी नहीं निकाल पाऊँगी ।

प्रश्न: आप बिहार से सम्बन्ध रखती हैं। लेखिका भी हैं। लिखने वाले अक्सर छोटी-छोटी चीजें ऑब्जर्व करते हैं। आपको बिहार में किस तरह के बदलाव नज़र आते हैं?

मृदुला सिन्हा: बहुत बदलाव है। ऊपरी या अंदरूनी दोनों तौर पर बहुत बदलाव है| पहले की सोच और आज की सोच में बहुत अंतर है,  हर चीज में।

पहले बिहार के लोग खोजी प्रवृत्ति के थे और खोजी में से कहाँ जॉब मिलेगा, नौकरी मिलेगी सूंघते चलते थे और सब जगह भागे जा रहें थे नौकरी के लिए।

आजकल इंटरनेट के कारण नवयुवकों में जानकारी बहुत बढ़ी है। मेरी एक कहानी में गाँव में एक महिला है जो खेतों में मूंग तोड़ने जाती है| मूंग तोड़ के टोकरी में रखते जाती है और नीचे उसका मोबाइल बजता है। बेटा दिल्ली से फोन किया है। बेटा माँ को सबसे पहले मोबाइल खरीद के दिया है, साड़ी नहीं लाया ताकि हम तुमको फोन करते रहेंगे।

प्रश्न: बिहार में 10-15 साल पहले तक महिलाएँ जल्दी घर से निकलती नहीं थी। लड़कियों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं जाने दिया जाता था मगर अब गाँवों में भी लड़कियाँ सुबह-सुबह  साइकिल की घंटी बजाती हुई स्कूल को जाती हैं और महिलाएँ तो आज मुखिया बन पंचायत चला रहीं हैं। 

क्या इन 10 सालों में महिलाओं के प्रति हमारे समाज की सोच बदली है?

मृदुला सिन्हा: बहुत सोच बदली है और इन सबका कारण आरक्षण मिलना है। यह बहुत बड़ी भागीदारी हो गई। पुरुषों ने अपनी पत्नियों को आगे कर दिया, उसमें तो भाव उनका दूसरा था। पत्नियों को बढ़ावा नहीं, मकसद था कि महिला आरक्षित सीट है चलो मेरी पत्नी को मिल जायेगा मगर एक बार बन गई तो पति को अब बोलने नहीं देती।

आज से 40 साल पहले सरपंच पति एक शब्द था, अब नहीं लिखता कोई पत्रकार। अब तो पत्नी ही अपने पति की सरपंच है। पति से विचार लेना, सहयोग लेना, ये कोई बुरी बात नहीं है लेकिन बहुत बातों की जानकारी और समझ बढ़ गई है।

बेटियों को पढ़ाने में पुरुषों ने बहुत बढ़ावा दिया है। पहले साइकिल पर बैठाकर पिता बेटी को स्कूल छोड़ते थे और अब वह साइकिल पर बैठती है और पिता को पीछे कैरियर पर बैठा लेती है। सीट पर पिता बैठते थे कैरियर पर बेटी, अब सीट पर बेटी बैठती है कैरियर पर पिता| कितना बड़ा परिवर्तन आया है!

प्रश्न: तमाम प्रयासों के बावजूद साहित्य से लेकर खेल तक, बिहार की महिलाओं की भागीदारी का ग्राफ उतनी तेजी से बढ़ता हुआ नहीं दिखता। आप इसके लिए किन कारणों को जिम्मेदार मानती हैं?

मृदुला सिन्हा: निराश मत होइए, बढ़ा तो। तेजी से ग्राफ बढ़ना भी नहीं चाहिए । पैर थाम-थाम के रखना चाहिए हर जगह पर। बढ़ने दीजिये धीरे-धीरे । ग्राफ बहुत बढ़ गया है।

प्रश्न: सोशल मीडिया के जरिये आज कोई बात मिनटों में वायरल हो जा रही है, इसका सीधा असर समाज और खास कर युवाओं पर है, आपका क्या कहना है इसपर?

मृदुला सिन्हा: उसमें थोड़ी सी कमी आनी चाहिए। पहले तो मैं समाचार पत्रों के बारे में कहा करती थी कि सुबह-सुबह अखबार देख लो तो भयभीत हो जाओ| घर में सब सुख शांति है मगर सुबह उठते खबर पढ़ लीजिए या न्यूज देख लीजिए तो लगता था यह दुनिया जीने लायक नहीं है जबकि चारों ओर घर में देखो तो शांति है| क्योंकि खबर क्या बनती है,  उसको मारा, उसको पिटा, उसको उठा के ले गया, उसका अपहरण कर लिया। तो उसी तरह से जो इंटरनेट है, फेसबुक है, सोशल मीडिया है वह लोगों को भयभीत ज्यादा कर रहा है। अच्छी खबरें नहीं दे रहा है। उपलब्धियों की खबरें नहीं दे रहा है। उपलब्धियों की खबरें कम आती हैं।

तो जनमानस को ज्ञान तो देना है, भयभीत नहीं करना है। जानकारी तो देना है, न्यूज तो देना है मगर भयभीत नहीं करना है। तो थोड़ा सा इसका भी प्रभाव पड़ रहा है।

प्रश्न: आपन बिहार के द्वरा दुनिया भर में फैले बिहार के लोगों को क्या संदेश देंगी

मृदुला सिन्हा: जो बिहारी जहाँ पर हैं और जहाँ तक भी बिहारी गये हैं,  वह अपनी छवि वहाँ बनाएँ| उनको वहाँ अपने बिहार को प्रदर्शित करना चाहिए| अपने संस्कार को वहाँ दिखाना चाहिए| सारा भारत हमारा है, यह मानकर डट के रहना चाहिए| वह जहाँ हैं उसके विकास के लिए काम करना चाहिए ।

प्रश्न: आपन बिहार बिहार का सबसे बड़ा सोशल पोर्टल है जो चार वर्षों से लगातार बिहार की सकारात्मक खबरों को प्रमुखता से उठाता है और दुनिया को बिहार का सकारात्मक पक्ष भी दिखाता है और साथ ही लोगों में अपने बिहार के प्रति गर्व की भावना जगा रहा है।

आपन बिहार के लिए आपका कोई सुझाव या संदेश??? 

मृदुला सिन्हा: आपन बिहार जो काम कर रहा है। वह निश्चित उद्देश्य के लिए कर रहा है, सकारात्मक भाव, सकारात्मक सोच, सकारात्मक व्यवहार के लिए।

बहुत खुशी की बात है। इसको जारी रखना चाहिए और जहाँ-जहाँ अच्छी बातें थी जो दूसरे क्षेत्रों के लिए भी भलाई का काम कर सकती हैं, उनको, और जहाँ आज अच्छी बात हो रही हैं उन चीजों को प्रकाशित करना चाहिए और आगे ले जाना चाहिए ताकि लोग उस रूप में बिहार को समझें जैसा यह है।