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क्या कन्हैया कुमार महागठबंधन के टिकट पर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे?

पिछले साल का लोकसभा चुनाव याद ही होगा कि कैसे कन्हैया कुमार के बेगूसराय सीट पर उम्मीदवारी को लेकर तेजस्वी ने वामदल के साथ गठबंधन नहीं किया था| यही नहीं, राजद ने उस सीट पर एक मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देकर कन्हैया को हरवा दिया था| मगर इस साल आने वाले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार एक मंच पर दिख सकते हैं|

खबर है कि सत्ताधारी पार्टी को विधानसभा चुनाव में पटखनी देने के लिए महागठबंध में वामदलों का सामिल होना तय है| इसको लेकर सीपीआइ के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय और राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की दूसरे चरण की बातचीत हो चुकी है| राम नरेश पाण्डेय ने कहा है कि कन्हैया कुमार को जरूरत पड़ी, तो विधानसभा चुनाव में उतारा जा सकता है| प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने भी कहा कि कम्युनिस्ट दल हमारे स्वाभाविक सहयोगी हैं| हम लोग मतभेद भुला कर मिल कर चुनाव लड़ेंगे|

कन्हैया कुमार सीपीआई की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं, इसलिए पार्टी के तरफ से उनका स्टार प्रचारक बनना तय है| इसी कारण से कहा जा रहा है कि कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव एक मंच पर दिख सकते हैं| ज्ञात हो कि अब तक तेजस्वी यादव कन्हैया के साथ मंच शेयर करने से परहेज करते आयें हैं| राजनितिक गलियारों में कहा जाता है कि तेजस्वी यादव मानते हैं कि भविष्य में कन्हैया कुमार उनके प्रतिद्वंदी के तौर पर उभर सकते हैं|

तेजस्वी यादव और कन्हैया, दोनों फेमस नेता हैं| दोनों की प्रतिक्रिया मिडिया में जगह बनाती है| इन दोनों नेता के साथ आने से महागठबंधन को फायदा होना तय है मगर सवाल है कि एक म्यान में दो तलवारें कब तक रहेगी?

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फोर्ब्स पत्रिका ने दुनिया के 20 प्रभावशाली लोगों में 2 बिहारियों को दी जगह

विश्व की प्रतिष्ठित मैगजीन फोर्ब्स ने 2020 के दुनिया के टॉप-20 प्रभावशाली लोगों की एक लिस्ट जारी किया है| फोर्ब्स लिस्ट में सामिल दुनिया के 20 लोगों में दो बिहारियों ने भी जगह बनाये हैं| वो दोनों हैं- जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष सह सीपीआई नेता कन्हैया कुमार।

फोर्ब्स ने कन्हैया कुमार के बारे में कहा है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 32 वर्षीय नेता कन्हैया कुमार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति का चेहरा उस समय बन गये, जब 2016 में देशद्रोह के आरोपों का जवाब दिया था। उन्होंने जेएनयू से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है. बिहार के बेगूसराय निर्वाचन क्षेत्र से सीपीआई के टिकट पर साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पहली लड़ाई लड़ी. हालांकि, वह बीजेपी के गिरिराज सिंह से 4.2 लाख वोटों से हार गये, लेकिन वह 22.03 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रहे. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनके लिए शुरुआती दिन हैं. कन्हैया कुमार देश और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए सक्रिय रूप से देश भर में घूम-घूम कर विचार प्रकट करते रहे हैं. वह भविष्य में भारतीय राजनीति में शक्तिशाली पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

फोर्ब्स ने इन दोनों को साल 2020 के दुनिया के टॉप-20 शक्तिशाली लोगों में जगह देते हुए बताया है कि ये आगामी दशक के निर्णायक चेहरे हो सकते हैं।

फोर्ब्स मैगजीन की दुनिया के टॉप-20 शक्तिशाली लोगों में कन्हैया कुमार को 12वें और प्रशांत किशोर को 16वें स्थान पर रखा है|

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प्रशांत किशोर के बारे में मगज़ीन ने लिखा है कि 42 वर्षीय प्रशांत किशोर साल 2011 से एक राजनीतिक रणनीतिकार हैं. उन्होंने बीजेपी को गुजरात विधानसभा चुनाव जीतने में मदद की. इसके बाद उनकी राजनीतिक रणनीति फर्म सिटीजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस के तहत बीजेपी के लिए उन्होनें साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत में मददगार साबित हुए. बाद में ‘कैग’ का नाम बदलकर आईपीएसी (भारतीय राजनीतिक कार्रवाई समिति) कर दिया गया. प्रशांत किशोर अब संगठन के संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं. साल 2019 में आईपीएसी ने तेलंगाना में वाईएसआर जगन मोहन रेड्डी और महाराष्ट्र में शिवसेना के लिए रणनीतिक अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. चुनाव जीतने में दोनों पार्टियों को फायदा हुआ. प्रशांत किशोर तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को आगामी विधानसभा चुनावों के लिए 2020 में सलाह दे रहे हैं. एक को छोड़ कर, आईपीएसी ने उन सभी अभियानों को जीत लिया है, जिनमें राजनीतिक दलों के लिए उन्होंने रणनीति तैयार की है. उन्होंने पूरी भारतीय राजनीतिक रणनीतिक पारिस्थितिकी तंत्र को बदल दिया है. साल 2018 में प्रशांत किशोर एक राजनीतिज्ञ के रूप में जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गये. हालांकि, उन्हें अभी तक किसी भी सीट से चुनाव नहीं लड़ा है.

कन्हैया कुमार और प्रशांत किशोर के अलावा पांच भारतीयों को भी इस सूची में स्थान मिला है। इनमें भारतीय मूल के यूरोप निवासी आर्सेलर मित्तल के ग्रुप सीएफओ व सीईओ, गोदरेज परिवार, हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा और थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में शेफ भारतीय मूल की गरिमा अरोड़ा शामिल हैं। इस मैगजीन में पहले स्थान पर राजनीतिक टिप्पणीकार व कॉमेडियन हसन मिन्हाज हैं।

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आखिर कन्हैया से इतना गुस्सा, नफरत और घृणा क्यों?

कन्हैया से गुस्सा, कन्हैया से नफरत, कन्हैया से घृणा मेरे समझ से पड़े था आखिर इस छोरा में रखा क्या है। माँ आंगनवाड़ी सेविका, भाभी और बहन से मिले पहनवा और रहन सहन हमारे इलाके में काम करने वाली इससे अच्छे तरीके से रहती है।

छोटे भाई का क्या कहना है विशुद्ध गाँव का बच्चा है नाम प्रिंस है आज के युवा कि तरह टू टाइट और हाथ में बड़ा सा एनरोइड मोबाइल कि चाहत वाली संस्कृति में पला बढ़ा नहीं लगता है । सामने मिल गया पैर छू कर प्रणाम भैया ,कहाँ बैठाये ,क्या खिलाये तब तक परेशान रहता है जब तक आप एक ग्लास पानी भी पी नहीं लेते।

मतलब गाँव में भी कोई हैसियत नहीं है बेगूसराय कि तो बात ही छोड़ दिजिए । लेकिन आज इसके नामंकन में महसूस हुआ कन्हैया से नफरत ,घृणा, गुस्सा और घबराहट क्यों ह्रै, बिहार के हर गरीब युवा का आज कन्हैया आइकॉन है उत्तर बिहार के अधिकाश जिले से दर्जनों कि संख्या में युवा अपनी सवारी से बेगूसराय पहुँचा हुआ था ।

कन्हैया का काफिला जैसे ही डीएम आँफिस पहुंचने वाला था तभी आसमान से पानी के साथ ओला गिरने लगा क्या कहना है युवा नाचता रहा कन्हैया जिंदावाद का नारा लगता रहा हमलोग दुकान में घूस गये लेकिन वो लोग डटा रहा।


जब मौंसम ठिक हुआ तो फिर काफिला में आये युवा से बातचीत करना शुरू किया । इस दिवानगी कि क्या वजह है हर किसी के जुबान पर एक ही बात था कन्हैया बदलाव का प्रतीक है ,देश में जाति और धर्म से इतर एक नयी तरह की राजनीत का प्रतीक कन्हैया है जहां युवाओ को महसूस हो रहा है कि कन्हैया कि राजनीत चली तो फिर देश की फिजा बदल जायेगी|

युवा देश ,युवा सोच और युवा नेतृत्व यही मेरा नारा है इसतिए मोदी से लेकर तेजस्वी तक घबराये हुए है। देख रहे हैं युवा मुस्लमान ,युवा यादव, युवा पिछड़ा और युवा गरीब सवर्ण सब कुन्हैया के साथ है, बस मुझे बेगूसराय चाहिए मोदी को कन्हैया ही सम्भाल लेगा|

– संतोष सिंह (यह लेख उनके फेसबुक प्रोफाइल से ली गयी है| वे बिहार के एक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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महागठबंधन के रथ पर सवार होकर बीजेपी के राष्ट्रवाद के खिलाफ बेगूसराय से चुनाव लड़ेंगे कन्हैया

दो साल पहले जेएनयू कैंपस में एक विवादास्पक घटना घटी| कैंपस के अंदर ही बुलाए गए एक सभा में राष्ट्र विरोधी नारें लगायें गए| मीडिया में खबर आते ही इस मुद्दे ने तूल पकड़ लिया| चुकी यह मामला राष्ट्र हित से जुड़ा था और केंद्र में एक राष्ट्रवादी विचारधारा की सरकार थी, इस घटना का राजनीतिकरण तो होना ही था|

12 फरवरी 2016 को दिल्ली पुलिस ने जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया| हालाँकि कन्हैया कुमार ने अपने उपर लगे आरोप को बेबुनियाद बताया और जेल से निकलते ही जेएनयू कैंपस में देश की आजादी पर एक एतिहासिक भाषण दिया|

इस घटना ने कन्हैया कुमार की किस्मत बदल दी| जेएनयू के कैंपस राजनीति से बाहर निकलकर वे देश के मुख्यधारा के राजनीति में छा गयें और विपक्ष का एक मुखर आवाज बनकर उभरे| हालांकि कन्हैया कुमार को एक तरफ जितने पसंद करने वाले लोग हैं, दुसरे तरफ लोगों का एक बड़ा तबका कन्हैया को अभी भी देशद्रोही मानता है| (कोर्ट से बेगुनाह साबित होने के बाद भी)

हालांकि बहुत पहले से ही यह कयास लगाया जा रहा था कि कन्हैया बिहार के बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे, मगर मीडिया और सूत्रों से आ रही खबरों के अनुसार अब यह पक्का हो गया है|

कन्हैया कुमार 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार के बेगूसराय से मैदान में उतरेंगे| सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, कन्हैया कुमार बेगूसराय से महागठबंधन के उम्मीदवार बनेंगे| हालांकि औपचारिक तौर पर कन्हैया कुमार सीपीएम के केंडिडेट होंगे, लेकिन  उन्हें महागठबंधन के आम उम्मीदवार के रूप में पेश किया जाएगा| बिहार में महागठबंधन में आरजेडी समेत कांग्रेस, एनसीपी, हम(एस), शरद यादव की एलजेडी के अलावा लेफ्ट पार्टियां भी शामिल हैं|

ज्ञात हो कि जेल से रिहा होने के बाद पटना दौरे पर आये कन्हैया कुमार तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव दोनों से मिले थे| उस समय लालू प्रसाद यादव को पैर छू कर प्रणाम करने पर उनके विरोधियों ने जमकर निशाना भी साधा था| सूत्रों के मुताबिक लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव कन्हैया कुमार को टिकट को राजी हैं और कांग्रेस के साथ बातचीत के बाद बेगूसराय सीट से कन्हैया कुमार को मौका दिया जा रहा है|

सीपीएम लीडर सत्य नारायण सिंह ने एक प्रमुख अंग्रेजी अख़बार से बातचीत के दौरान इस बात कि पुष्टि की है| उन्होंने कहा कि महागठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर अभी औपचारिक तौर पर कोई बात नहीं हुई है, लेकिन इतना निश्चित है कि बेगूसराय से कन्हैया कुमार को ही उतारा जाएगा| उन्होंने बताया कि एक बार खुद लालू प्रसाद यादव ने भी बेगूसराय के लिए कन्हैया कुमार का नाम सुझाया था|

कन्हैया मूल रूप से बेगूसराय के रहने वालें हैं

कन्हैया मूल रूप से बेगूसराय जिले के बरौनी ब्लॉक में बीहट पंचायत के रहने वाले हैं| उनकी मां मीना देवी एक आंगनबाड़ी सेविका हैं और उनके पिता जयशंकर सिंह यहीं एक किसान थे|

अभी वर्तमान में बेगूसराय लोकसभा सीट पर बीजेपी के भोला सिंह काबिज़ है| बिहार में बेगूसराय को लेफ्ट विचारधारा का गढ़ माना जाता रहा है| गढ़ भी ऐसा कि बेगूसराय को लेनिनग्राद यानी लेनिन की धरती तक कहा जाने लगा। लेकिन इसी बेगूसराय में सामाजिक न्याय की फसल भी खूब लहलहायी और और अब यहां जातिवादी फसलों की बहार है। महागठबंधन के तरफ से कन्हैया कुमार उम्मीदवार के तौर पर अगर उतरते हैं तो मुकाबला वाकई दिलचस्प होगा| एक बार फिर बिहार का बेगूसराय राजनितिक प्रयोगशाला का केंद्र होगा| उनके उम्मीदवारी में लेनिनवाद और जातिवाद दोनों का छौंक है|बेगूसराय लेनिनवाद-जातिवाद के साथ राष्ट्रवाद का मुकाबला देखना दिलचस्प होगा|