Story of Bihari Women: दिल्ली में दंगों को रोकने की जिम्मेदारी निभा रही है बिहार की यह बेटी

सेना, लड़ाई या सुरक्षा जैसे शब्द जब हम सुनते हैं तो प्राय: हमारे मन में मर्दों के तस्वीर आते हैं। मगर पिछले कुछ सालों में बिहार की बेटियों ने घर से निकलकर देश के सुरक्षा का जिम्मा उठाना शुरू कर दिया है। लड़ाकू विमान को उड़ाने से लेकर दिल्ली में दंगों को रोकने की जिम्मेदारी लेने तक, बिहार की बेटियों ने महिलाओं के प्रति बने पुराने धारणाओं को तोड़ने का काम किया है।

वैसी से ही बिहारी महिलाओं में से एक है पूर्वी चम्पारण के मेहसी कस्बा की मनोरमा सिंह। मनोरमा सीआरपीएफ की असिस्टेंट कमांटेंट है और अभी Central Reserve Police Force (सीआरपीएफ) की स्पेशल विंग Rapid Action Force (RAF) में तैनात है और दिल्ली में दंगों को रोकने में अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रही है।

बचपन से है होनहार

मनोरमा को बचपन से पढाई में तेज रही है| माता-पिता के सहयोग से वो अपनी सफलता के तरफ कदम बढाती चली गयी| 1993 में बोर्ड में अपने जिला में टॉप किया, कॉलेज में मैथमेटिक्स ऑनर्स में डिस्टिंक्शन लाने वाली पहली महिला बनी और फिर एसएससी परिक्षा पास कर 2003 में सीआरपीएफ ज्वाइन की|

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कोयम्बटूर में एक वर्ष की सख्त ट्रेनिंग के बाद देश के विभिन्न क्षेत्रों में तैनात रही, और ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया, (अमरनाथ यात्रा में अमरनाथ गुफा में तैनाती, सिलचर, मुज़फ़्फ़रपुर, पटना, अजमेर, नागपुर,अहमदाबाद, दिल्ली, जालन्धर, अमृतसर, यहां तक कि अपनी काबिलियत के बल पर (Special Protection Group) एसपीजी में भी तैनात रही, और देश से विदेशों तक विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा की ड्यूटी को पूरे ईमानदारी से निभाया|

मनोरमा यह कर पायी क्योंकि उसे अपना सपना चुनने और उसे पूरा करने की आजादी दी गयी| उनके माता-पिता ने उसका साथ दिया| मनोरमा जैसे महिला की कहानी हमारे समाज में बार-बार दोहराने की जरुरत है ताकि महिलाओं को सामान अधिकार सुनिश्चित किया जा सके| 

केंद्र सरकार महिला आरक्षण बिल लाये, हम करेंगे समर्थन :  नीतीश कुमार 

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रविन्द्र भवन, पटना में जदयू के महिला प्रकोष्ठ की ओर से आयोजित राज्यस्तरीय महिला सम्मेलन को संबोधित करते हुए सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने कहा की महिलाओं का और सशक्तीकरण करने की जरूरत है. इसके लिए केंद्र सरकार संसद और विधानमंडलों में महिला आरक्षण से संबंधित विधेयक को जल्द लाये, हम उसका समर्थन करेंगे. वह धित कर रहे थे.
मुख्यमंत्री ने जदयू के महिला प्रकोष्ठ की सदस्यों को टास्क देते हुए कहा कि शराबबंदी, नशामुक्ति के साथ अब वे घर-घर जागरूकता अभियान चलाएं और लोगों को समझाएं कि बेटा हो या बेटी, किसी प्रकार की बीमारी होने पर उन पर एक समान ध्यान दें और समय पर उनका इलाज कराएं. मुख्यमंत्री ने 15 दिनों में इस अभियान की कार्ययोजना तैयार करने का निर्देश दिया. उन्होंने कहा कि जहां तक बाल विवाह रोकने और दहेज प्रथा बंद करने का सवाल है, तो इसके लिए भी चेतना जगानी होगी. महिलाएं जगी रहेंगी, तभी यह संभव है. बच्चों का टीकाकरण, रजिस्ट्रेशन, आधार कार्ड निर्माण, सरकार की सहायता, जो सीधे खातों में जाती है, उसकी भी जानकारी दें.

 

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में शिशु मृत्यु दर घटी है, खासकर बच्चों की. नवजात अगर लड़का है और वह वजन से कमजोर है या सांस में तकलीफ है, तो अभिभावक इलाज करवा लेते हैं, लेकिन अगर नवजात लड़की है, तो अभिभावक उसका इलाज नहीं कराते हैं. जदयू इसे जागरूकता अभियान के रूप में चलायेगा और घर-घर जाकर लोगों को इस मानसिकता से निकलने की अपील करेगा. 

 

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में शराबबंदी लागू करने से पहले सशक्त अभियान चलाया. इसमें जीविका समेत अन्य ने सशक्त काम किया. 21 जनवरी को मानव शृंखला का विश्व रिकॉर्ड बना. अनुमान दो करोड़ का था, लेकिन चार करोड़ लोग शामिल हुए. इधर, कुछ धंधेबाज हैं, जो शराबबंदी में बाधा डाल रहे हैं. उन्हें बीच-बीच में पुलिस पकड़ भी रही है. इसके लिए लोगों को भी जागृत रहना होगा. साथ ही दूसरे मादक पदार्थों की ओर लोग न जाये, इस पर भी नजर रखनी होगी. 

 

जो महिला शक्ति को नहीं पहचान रहें, यह उनकी गलती

नीतीश कुमार ने कहा कि जदयू राजनीतिक पार्टी है, लेकिन दूसरों से अलग है. जदयू  सिर्फ चुनाव ही नहीं लड़ता, बल्कि सामाजिक बदलाव के लिए अभियान भी चलाता  है. जदयू ने महिलाओं की शक्तियों को पहचाना है. स्कूली लड़कियों को पोशाक योजना, साइकिल योजना, पंचायत व नगर निकाय चुनाव में महिलाओं को 50% आरक्षण, नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति में 50% आरक्षण, पुलिस की नौकरी में महिलाओं को 35% आरक्षण दिया जा रहा है# जो लोग महिला शक्ति को नहीं पहचान रहे हैं, यह उनकी गलती है.

 

शिक्षा से प्रदेश में आया अहम बदलाव

मुख्यमंत्री  ने कहा कि 2005-06 में नवजात शिशु मृत्यु दर 61 प्रति हजार थी, जो 2015-16 में घट कर 48 हो गयी है. वहीं, पांच साल तक के बच्चों की मृत्यु दर पहले 84 थी, जो अब 58 हो गयी है. लिंगानुपात में भी  सुधार हुआ है. प्रति 1000 नवजात लड़कों पर 893 लड़कियां होती थीं, जो अब 934  हैं. यह राष्ट्रीय औसत 919 से बेहतर है. प्रजनन दर भी 3.9 थी,  जो अब घट कर 2.2 हो गयी है. यह सब शिक्षा की वजह से ही संभव हो सका है.