‘पालनपीठ’ के रूप में प्रसिद्ध है। गया बिहार का माँ मंगलगौरी मंदिर।

मान्यता यह है की यहां माँ सती का वक्ष स्थल (स्तन) गिरा था, जिस कारण यह शक्तिपीठ ‘पालनहार पीठ’ या  ‘पालनपीठ’ के रूप में प्रसिद्ध है। पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, भगवान भोले शंकर जब अपनी पत्नी सती का जला हुआ शरीर लेकर तीनों लोकों में उद्विग्न होकर घूम रहे थे तो सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने मां सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काटा था। इसी क्रम में मां सती के शरीर के टुकड़े देश के विभिन्न स्थानों पर गिरे थे, जिसे बाद में शक्तिपीठ के रूप में जाना गया। इन्हीं स्थानों पर गिरे हुए टुकड़े में स्तन का एक टुकड़ा गया के भस्मकूट पर्वत पर गिरा था।

मंगलागौरी शक्तिपीठ के पुजारी कहते हैं कि इस पर्वत को भस्मकूट पर्वत कहा जाता हैं। इस शक्तिपीठ को असम के कामरूप स्थित मां कमाख्या देवी शक्तिपीठ के समान माना जाता है। कालिका पुराण के अनुसार, गया में सती का स्तन मंडल भस्मकूट पर्वत के ऊपर गिरकर दो पत्थर बन गए थे। इसी प्रस्तरमयी स्तन मंडल में मंगलागौरी मां नित्य निवास करती हैं जो मनुष्य शिला का स्पर्श करते हैं, वे अमरत्व को प्राप्त कर ब्रह्मलोक में निवास करते हैं। इस शक्तिपीठ की विशेषता यह है कि मनुष्य अपने जीवन काल में ही अपना श्राद्ध कर्म यहां संपादित कर सकता है।

पुराणों में भी है इस मंदिर का उल्लेख
मंदिर के एक अन्य पुजारी संजय गिरी बताते हैं कि इस मंदिर का उल्लेख, पद्म पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण और अन्य लेखों में मिलता है। तांत्रिक कार्यो में भी इस मंदिर को प्रमुखता दी जाती है। हिंदू संप्रदाय में इस मंदिर में शक्ति का वास माना जाता है उपा शक्ति पीठ भी है, जिसे भगवान शिव के शरीर का हिस्सा माना जाता है। शक्ति पोषण के प्रतीक को एक स्तन के रूप में पूजा जाता है।

हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं माँ…
मान्यता है कि इस मंदिर में आकर जो भी सच्चे मन से माँ की पूजा व अर्चना करते हैं, माँ उस भक्त पर खुश होकर उसकी मनोकामना को पूर्ण करती है। यहां पूजा करने वाले किसी भी भक्त को माँ मंगला खाली हाथ नहीं भेजतीं। इस मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। यहां गर्भगृह में ऐसे तो काफी अंधेरा रहता है, परंतु यहां वर्षो से एक दीप प्रज्वलित हो रहा है। कहा जाता है कि यह दीपक कभी बुझता नहीं है।

 

इस मंदिर में सिर्फ यहां के नहीं, बल्कि विदेशी भी आकर मााँ मंगला गौरी में पूजा अर्चना करते हैं। मां मंगला गौरी मंदिर में पूजा करने के लिए श्रद्धालुओं को 100 से ज्यादा सीढ़ी चढ़कर ऊपर जाना पड़ता है।

गयाजी: सात समंदर पार से पहुंचे विदेशी, कर रहे पूर्वजों को पिंडदान

इन दिनों गया जिले में चल रहे पितृपक्ष मेले में रूस, स्पेन और जर्मनी से आये विदेशी भी पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण कर रहे हैं।

बीते शुक्रवार को विष्णुपद के देव घाट पर विदेशी पर्यटकों ने अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया। विदेशी पर्यटक पूर्वजों के पिंडदान और तर्पण के लिए रूस, स्पेन और जर्मनी से 18 विदेशियों का एक जत्था गया पहुंचा है। अगले तीन दिनों तक यहां रुक कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके मोक्ष के लिए तर्पण एवं पिंडदान करेंगे।

 

विदेश से आने वाले इन श्रद्धालुओं ने कहा कि ‘वे गया में पिंडदान के बारे में बहुत कुछ सुन रखा है और उससे प्रभावित होकर अपने पूर्वजों को सम्मान देने के लिए यहां आये हैं।’

रूस से आयी क्रिकोव अनंतोलल्ला ने कहा कि “मैं अपने पति, परिवार और देश में शांति के लिए यहां आयी हूं। गया में पूर्वजों को लेकर होने वाले इस अनुष्ठान के बारे में मैंने सुन रखा था जिससे यहां आने के लिए प्रेरित हुईं।”

जर्मनी की अन्ना बैरोन ने कहा कि “उनके परिवार और घर में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है, इसलिए वह अपने इस दुर्भाग्य से छुटकारा पाने के लिए यहां आयी हैं।”

मगध प्रक्षेत्र के आयुक्त जितेंद्र श्रीवास्तव के निर्देश पर जिला प्रशासन ने पितृपक्ष मेला के अवसर आये इन विदेशियों का स्वागत गया रेलवे स्टेशन पर फूल-माला पहना कर किया।

इस वर्ष पितृपक्ष मेला 5 सितंबर से शुरू हुआ था और आगामी 20 सितंबर तक जारी रहेगा। इसको लेकर जिला प्रशासन द्वारा व्यापक इंतजाम किये गये हैं और मेले इस बार 10 लाख श्रद्धालुओं के भाग लेने की संभावना जतायी गयी है।

 

जानिए फल्गू नदी के तट पर राजा दशरथ के पिंडदान के बाद सीता जी ने क्यों दिया फल्गू नदी को श्राप?

वाल्मिकी रामायण में सीता द्वारा पिंडदान देकर दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है। वनवास के दौरान भगवान राम लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे। वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए। उधर दोपहर हो गई थी। पिंडदान का समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढती जा रही थी। अपराहन में तभी दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग कर दी। गया जी के आगे फल्गू नदी पर अकेली सीता जी असमंजस में पड़ गई। उन्होंने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया।


थोडी देर में भगवान राम और लक्ष्मण लौटे तो उन्होंने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया। बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है, इसके लिए राम ने सीता से प्रमाण मांगा।

तब सीता जी ने कहा कि यह फल्गू नदी की रेत केतकी के फूल, गाय और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं। इतने में फल्गू नदी, गाय और केतकी के फूल तीनों इस बात से मुकर गए। सिर्फ वटवृक्ष ने सही बात कही। तब सीता जी ने दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की।

 

दशरथ जी ने सीता जी की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की कि ऐन वक्त पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया। इस पर राम आश्वस्त हुए लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीता जी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दिया कि फल्गू नदी- जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी, तुझमें पानी नहीं रहेगा। इस कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी रहती है। गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी। और केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढाया जाएगा। वटवृक्ष को सीता जी का आर्शीवाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी।

यही कारण है कि गाय को आज भी जूठा खाना पड़ता है, केतकी के फूल को पूजा पाठ में वर्जित रखा गया है और फल्गू नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है।

धार्मिक दृष्टि से गया न सिर्फ हिन्दूओं के लिए बल्कि बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए भी आदरणीय है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे महात्मा बुद्ध का ज्ञान क्षेत्र मानते हैं जबकि हिन्दू गया को मुक्तिक्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हूं। इसलिए हर दिन देश के अलग-अलग भागों से नहीं बल्कि विदेशों में भी बसने वाले हिन्दू आकर गया में आकर अपने परिवार के मृत व्यकित की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान करते दिख जाते हैं।

 

साभार- शशि झा

बिहार बोर्ड के स्कूली किताबों में दिखेंगे माउंटेनमैन दशरथ मांझी : मुख्यमंत्री

पर्वत पुरुष कहे जाने वाले दशरथ मांझी को वर्ष 2006 में अपनी कुर्सी पर बिठाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शनिवार को पहली बार गेहलौर पहुंचकर उनके काम को देखा। सीएम नीतीश कुमार ने दशरथ मांझी महोत्सव में आये लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि  मैं पहली बार गेहलौर आया हूं। आज दशरथ मांझी के किए कार्यों को प्रत्यक्ष रुप से देखने का मौका मिला है। पहले सिर्फ इनके कार्यों के बारे में जानकारी थी। बाबा दशरथ मांझी मगध की की पावन धरती पर जन्मे हैं। इसे ज्ञान की भूमि से लोग जानते थे। लेकिन पर्वत पुरुष के संकल्प से अब यह कर्म की भूमि भी बन गई है।

मांझी के द्वारा बनाए गये रास्ते को और बनाया जाएगा सुगम
मगध ऐसा क्षेत्र है जहां ज्ञान, मोक्ष और निर्माण सभी कुछ का संगम है । दशरथ मांझी ने 22 वर्षो तक पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया। हालांकि इस रास्ते की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण लोगों को आने-जाने में परेशानी होती है। इसलिए इस रास्ते को काटकर और नीचे किया जाएगा। ताकि दोनों तरफ से आवागमन सुगम हो सके।

दशरथ मांझी की जीवनी पाठ्क्रम में होगा शामिल

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार सरकार ने तय किया है कि वह अपने स्कूलों में चलनेवाले टेक्स्ट बुक में दशरथ मांझी पर एक अध्याय जोड़ा जायेगा| माउंटेनमैन दशरथ मांझी से जल्द ही बिहार के तमाम स्टूडेंट्स परिचित हो जायेंगे. उनके बारे में ढेर सारी जानकारियां पाने लगेंगे|

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह छात्र-छात्राओं के लिए प्रेरक होगा| इसके अतिरिक्त श्री कुमार ने गेहलौर में प्रखंड मुख्यालय बनाने, गेहलौर पहाड़ पर दशरथ मांझी द्वारा बनाये गये ऐतिहासिक रास्ते की ऊंचाई कम करने तथा गेहलौर गांव की मौजूदा तस्वीर को बदलने पर काम करने के बाबत पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के प्रस्तावों से भी सहमति जतायी| उन्होंने कहा कि गेहलौर गांव की तस्वीर बदलने के लिए काम जल्द शुरू किया जायेगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि गेहलौर को प्रखंड बनाने का प्रस्ताव है| इस पर काम होगा| जल्दी ही इस प्रस्ताव को मूर्त रूप दिया जायेगा|

दशरथ मांझी की प्रतिमा का हुआ अनावरण 
मुख्यमंत्री ने गेहलौर में लगी उनकी आदमकद प्रतिमा का अनावरण भी किया| ऐतिहासिक गेहलौर घाटी मार्ग के पास लगी इस प्रतिमा के करीब ही मुख्यमंत्री ने पीपल का एक पौधा भी लगाया| ज्ञात हो कि स्वर्गीय मांझी के समाधिस्थल के सौंदर्यीकरण के लिए प्रशासन ने पहले चरण में 61 लाख रुपये और दूसरे चरण में 23.85 लाख खर्च किये है।
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पितृपक्ष मेले में व्यवस्था ऐसी हो कि आने वाले खुश होकर जाएं: मुख्यमंत्री

गया: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पितृपक्ष मेला की तैयारी के संबंध में निर्देश देते हुए कहा है कि व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि पिंडदान करने आने वाले श्रद्धालु खुश होकर जाएं।

आगे मुख्यमंत्री ने कहा साफ-सफाई की बेहतर व्यवस्था हो। सरोवरों में स्वच्छ पानी का प्रवाह बना रहे। ड्रेनेज सिस्टम को दुरूस्त करें। घाटों पर पड़ी रहने वाली पूजा सामग्रियों के समुचित निष्पादन की व्यवस्था सुनिश्चित कराएं।

मुख्यमंत्री शनिवार को गया सर्किट हाउस में पितृपक्ष की तैयारी की समीक्षा करते हुए कहा कि मेला क्षेत्र में बिजली के तार न लटकें इसकी व्यवस्था कर ली जाए। मेला हर वर्ष होता है। स्कूलों में ठहराने की व्यवस्था करनी पड़ती है। शहर के संक्रामण रोग अस्पताल के परिसर में साढ़े चार एकड़ भूमि खाली है। यहां आधुनिक प्रकार की धर्मशाला या आवासन स्थल का विकास किया जाए। संक्रामक अस्पताल को यहां से हटाकर किसी किनारे स्थान पर स्थानांतरित कर दें।

सीएम ने कहा कि पितृपक्ष मेला में आंतरिक परिवहन के लिए ई-रिक्शा को प्रोत्साहित करें। सीएम ने बताया कि प्रकाश पर्व के मौके पर बिजली के तार को व्यवस्थित करने, ड्रेनेज और साफ सफाई की व्यवस्था कराने से उत्साहित लोगों ने भी सहयोग करना शुरू कर दिया था। गया में भी ऐेसा हो सकता है।

सड़को की मरम्मत के संबंध में सीएम ने पथ निर्माण विभाग के प्रधान सचिव को एनएच 83, मसौढ़ी पुनपुन रोड आदि को प्राथमिकता के आधार पर दुरूस्त कराने का निर्देश दिया। इस मौके पर डीएम कुमार रवि ने तैयारी की पूरी जानकारी दी।

पूरे पितृपक्ष मेला क्षेत्र को 38 जोन में बांटा गया है। हर जोन पर एक दंडाधिकारी प्रतिनियुक्त किए गए हैं। 14 कार्य समिति बनाए गए हैं। साफ सफाई के लिए मेला क्षेत्र को 52 जोन में बांटा गया है।

 

 

उत्तरी बिहार के बाढ़ पीडि़तों के सहायतार्थ आगे आए बौद्ध भिक्षु

गया : उत्तर बिहार में आई प्रलयंकारी बाढ़ से प्रभावित लोगों की मदद के लिए सोमवार को बौद्ध भिक्षुओं सहित अन्य संगठन आगे आए।

बोधगया के बुद्घिस्ट थाई भारत सोसाइटी वट-पा के महासचिव भंते रत्‍‌नेश्वर चकमा, कोषाध्यक्ष एससी लामा, भंते निदान व थाईलैंड से आए अनुराग कुमार ने गया जिलाधिकारी कुमार रवि को संयुक्त रूप से 50 हजार रुपये का चेक मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए प्रदान किया।

मुख्य पुजारी भिक्षु फ्रा बोधिनंदा मुनि ने जिला प्रशासन को आश्वस्त किया कि बिहार के इस विभिषिका में सोसाइटी और थाईलैंड के श्रद्धालु तन-मन-धन से सरकार की मदद को तैयार हैं। वहीं, गया जिला के रेड क्रास सोसाइटी द्वारा राहत कोष के लिए एक लाख और मगध एजुकेशनल ट्रस्ट के संजीव कुमार ने 50 हजार रुपये का चेक डीएम को सौंपा।

गया के डीएम कुमार रवि ने कहा कि इस नेक मानवीय कार्य में जिले के अनेकों संस्था, संगठन व व्यक्ति मदद के लिए बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। राहत कोष में सहयोग करने वालों को उन्होंने साधुवाद दिया।

इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़, अब कर रहा सब्जी की खेती | 1 SMS से करता है सिंचाई

एक क्लीक पर सिंचाई…

गया : गया जंक्शन से सटे पश्चिम की ओर लगे छोटकी डेल्हा के निवासी इंजीनियर प्रभात कुमार सरकारी नौकरी छोड़कर ड्राप सिंचाई तकनीक से 64 किस्म की सब्जी और फलों की खेती कर रहे हैं। प्रभात ने खेती के साथ ही 27 गांवों के कई किसानों को इस विधि से खेती का गुर सिखाया। सब्जियों की सिंचाई एक एसएमएस करने से हो जाती है।

 

प्रभात ने बताता कि मोबाइल के एक विशेष ऐप्स और एसएमएस के सहारे पौधों की सिंचाई की जाती है। जब मैं किसी काम से घर से बाहर चला जाता हुँ तो एसएमएस के सहारे पौधों की सिंचाई कर लेेता हुँ। पौधों की सिंचाई सिस्टम कोडर और डिकोडर प्रणाली से जुड़ा है। जो अपने आप 10 मिनट सिंचाई के बाद रुक जाता है।
टाइमर के जरिये भी पौधों की सिंचाई होता है। टाइमर के जरिये उसमे टाइम फिक्स किया जाता है और उसी फिक्स टाइम पर पौधों में सिंचाई होनी शुरू हो जाती है।
 इसके लिए सभी पौधों में पानी का पाइप लाइन बिछाया गया है। जो बूंद-बूंद कर पौधों को सींचता है। टपक विधि से खेती करने पर यह विशेषता है कि कम पानी में अच्छी खेती की जा सकती है।
27 गांवों के कई किसानों को सिखा रहे खेती के गुर
प्रभात अपने इंजीनियर दोस्तों के सहयोग से माइक्रो एक्स फाउंडेशन संस्था के माध्यम से गया के दूर दराज इलाकों के किसान इस टपक विधि से खेती की जानकारी देते हैं। वह अपनी देखरेख में सैकड़ों किसानों को टपक विधि से खेती कराकर उन्हें नई दिशा दे रहे हैं। प्रभात पिछले 3 वर्षो से इस विधि से खेती कर रहे है। अपने घर की छत पर 64 प्रकार की सब्जी और फल की खेती कर रहे है। प्रभात का कॉन्सेप्ट है कि सड़ी सब्जी से लेकर हरी सब्जी को फेंकना नहीं है। सड़ी गली सब्जियों और बेकार पौधों को गलाकर वह खाद के रूप फिर खेतों में डालकर खेतों को पैदावार को बढ़ाने के उपयोग करते है। ये पौधे थर्मोकोल के बक्से में मिट्टी डालकर लगाए गए हैं।
इंजिनीरिंग में सरकारी पद पर थें प्रभात
प्रभात ने बंगाल से इंजियनरिंग की पढ़ाई के बाद गुजरात में पोएसयू विभाग में सरकारी नौकरी की। कई देशों के भृमण के दौरान उन्होंने देखा की गांव के किसानों की दशा आज भी वैसे ही है।
प्रभात का पूरा परिवार खेती पर निर्भर है। जिसके कारण एक-एक समस्या से अवगत थे। इसलिए वह खेती के मॉडल पर सोचने को मजबूर हो गए और नौकरी छोड़ दी। वह नई तकनीक का इजाद किया और सफल होने के बाद वह किसानों के लिए आदर्श बन गए।

बिहार का यह गाँव जिसने देश को दिये 300 आईआईटियन

​खराब शिक्षा व्यवस्था के लिए बदनाम बिहार में इन दिनों हर कोई टॉपर घोटाले की चर्चा कर रहा है. बिहार में छात्रों को टॉप कराने के लिए बकायदा घोटाला किया जा रहा है. लेकिन इसी बिहार में ऐसे भी बच्चे हैं जो अपनी मेहनत से मुकाम पाते हैं और उन लोगों के सामने बड़ा उदाहरण पेश कर रहे हैं जो हमेशा बिहार कि मेधा का मजाक बनाते हैं।

बिहार के गया जिले का पटवा टोली गांव ‘IIT हब’ बनकर उभरा है. रविवार को आए IIT इंट्रेंस के रिजल्ट में तमाम सुविधाओं से महरूम इस गांव के एक-दो नहीं, बल्कि एक बार फिर 20 छात्रों ने कामयाबी पाई है. एक गांव से इतने स्टूडेंट का एक साथ IIT में सफल होना दूसरों के लिए भले सुखद हैरानी पैदा करता हो.
इन गांव वालों के लिए यही चुनौती बन जाती है कि वे अगले साल इससे बेहतर परिणाम दिखाएं. दरअसल, हाल के वर्षों में गांव के अंदर ही लोगों ने ऐसा सिस्टम बनाया है और यही कारण है कि 10 हज़ार की कुल आबादी वाला ये गाँव पीछले 25 वर्षों में देश को 300 आईआईटियन दिया है.

92 में एक बुनकर के बेटे जितेंद्र सिंह ने IIT में सफलता पाई. IIT मुंबई में दाखिला मिला.जितेंद्र अपने गांव का रोल मॉडल बने. सभी जितेंद्र जैसा बनने की चाहत रखने लगे.और यहीं से शुरू हुई साल-दर-साल गांव के बच्चों के IIT में कामयाब होने की कहानी. जो इस साल भी बदस्तूर जारी रही. इस गाँव से कई लोग दुनिया के अलग-अलग देशों की बड़ी कंपनियों में बड़े पदों पर काम भी कर रहे हैं. वे अपने गांव के बच्चों को स्टडी मटीरियल से लेकर हर तरह के संसाधन तो उपलब्ध कराते ही हैं, उन्हें टिप्स भी देते हैं.

लगभग 10 हजार की आबादी वाले पटवा टोली गांव में लोगों का पेशा बुनकरी ही था. गांव में अधिकतर पटवा जाति के लोग है. सालों से बुनकर का काम करने वाले इस समुदाय के सामने नब्बे के दशक में रोजी-रोटी का संकट आया. तभी उस पीढ़ी के बुनकरों ने अपने बच्चों को इस पेशे से हटकर पढ़ाने और कुछ नया करने की सोची. 1992 से चली इस कोशिश ने आज पूरे गांव को नई दिशा दे दी है.

बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर बोधगया से निकली बुद्ध प्रतिमा के साथ झांकी, राज्यपाल ने किया कार्यक्रम का उद्घाटन

विश्वप्रसिद्ध स्थल और बौद्ध धर्मों का केंद्र बोधगया में गौतम बुद्ध की 2561वीं जयंती को लेकर महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के तत्वावधान में 80 फीट विशाल बुद्ध प्रतिमा दाईबुत्सु से आकर्षक झांकी के साथ शोभा यात्रा निकाली गई।

शोभा यात्रा में बौद्ध भिक्षु, प्रशासनिक अधिकारी, बीटीएमसी सदस्य, स्कूली बच्चे समेत श्रद्धालुगण शामिल रहे। मुख्य कार्यक्रम का आयोजन विश्वप्रसिद्ध महाबोधी मंदिर की पिछे स्थित कई वर्ष पुराना पवित्र बोधिवृक्ष की छांव में आयोजित किया गया।

राज्यपाल ने किया कार्यक्रम का उद्घाटन

कार्यक्रम उद्घाटन बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविद ने धम्म दीप प्रज्वलित कर किया। वहीं अतिथियों का स्वागत गया जिला के जिलाधिकारी कुमार रवि ने किया। इसके पहले हीनयान, महायान व थेरवादी बौद्ध भिक्षुओं ने बारी-बारी से सूत्त पाठ किया। समारोह की अध्यक्षता संघनायक ऊं न्यानिंदा महाथेरा, मंच संचालन किरण लामा व डा. कैलाश प्रसाद ने किया।

कार्यक्रम में शामिल भिक्षुओं व श्रद्धालुओं ने बाबा साहब व अनागारिक धम्मपाल के प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। उसके बाद विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर के प्रदक्षिणा पथ से परिक्रमा किया।

बुद्ध जयंती को लेकर महाबोधि मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। मंदिर के गर्भगृह के बाहर श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी रही। लेकिन राज्यपाल के आगमन को लेकर मंदिर परिसर को खाली करा दिया गया और लगभग एक घंटे तक प्रवेश पर रोक लगा रहा। जिससे श्रद्धालुओं में निराशा का भाव बना रहा।

 

मगध क्षेत्र के लोगों के लिए ऐतिहासिक दिन. 129 किमी लंबी किउल-गया रेलखंड दोहरीकरण का हुआ उद्घाटन

मगध क्षेत्र के लोगो के लिए आज का दिन ऐतिहासिक रहा। आज रेल राज्यमंत्री मनोज सिंहा ने नवादा में 129 किमी लंबी किऊल-गया रेलखंड के दोहरीकरण का शिलान्यास किया।
 1950 के बाद से कई रेलमंत्तरी बिहार के हुये, लेकिन किऊल-गया रेलखंड की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई लेकिन अब इस  रेलखण्ड के दोहरीकरण के बाद किऊल-गया रुट में पड़ने वाली सभी स्टेशनों की समस्या दूर होगी।  

                                              

नवादा में जनता को संबोधित करते हुए मनोज सिंहा ने कहा कि वर्तमान की नरेंद्र मोदी की सरकार काफी अच्छा काम कर रही है। पहले की केंद्र सरकारों में 1100 करोड ही बिहार को मिलते थे। अब 3 हजार करोड़ से ज्यादा दिया जा रहा है। 48 हजार करोड़ की परियोजना बिहार में चल रही है। बिहार के विकास की प्रतिबद्धता मोदी  सरकार की है।

नवादा में किउल-गया (केजी) रेलखंड के दोहरीकरण व विद्युतीकरण कार्य शिलान्यास करने के बाद रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि मैं खुद इस रेल खंड पर कई बार पैसेंजर ट्रेन से सफर कर चुका हूं।आज यह काफी बदला है। पहले यहां पानी का काफी संकट था।

 

रेलराज्यमंत्री गो एयर के विमान से पटना पहुंचे। उसके बाद नवादा स्टेशन पहुंचकर उन्होंने शिलान्यास कर इसकी आधारशिला रखी। कार्यक्रम में केंद्रीय राज्य मंत्री सह सांसद गिरिराज सिंह और लोजपा सांसद चिराग पासवान भी शामिल हैं। 

रेल विभाग के जनसंपर्क पदाधिकारी पीके मिश्रा ने बताया कि रेल राज्यमंत्री केजी रेलखंड के दोहरीकरण व तिलैया से किउल तक विद्युतीकरण कार्य का शिलान्यास किया। इसके अलावा रिमोट के जरिए नरहट, खनवां व शेखपुरा जीपी में एनओएफएन सेवा का भी शुभारंभ किया। 

रेल यात्रियों में खुशी की लहर

दोहरीकरण व विद्युतीकरण कार्य के शिलान्यास को लेकर रेल यात्रियों में भी काफी खुशी देखी जा रही है। केजी रेलखंड पर सफर करने वाले कई रेल यात्रियों ने बताया कि दोहरीकरण व विद्युतीकरण हो जाने के बाद काफी सुविधा होगा। फिलहाल सिंगल लाइन रहने के चलते सफर के दौरान परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

लोगों को है काफी उम्मीदें

रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के पहली बार नवादा आगमन को लेकर लोगों में उम्मीदों की नई किरण जगी है। संभावना जताई जा रही है कि मंच से कई घोषणाएं की जा सकती हैं। खासकर लोग दिल्ली के लिए ट्रेन मिलने की आस लगाए बैठे हैं।

लोगों का कहना है कि अगर विक्रमशिला एक्सप्रेस का किउल वाया नवादा होते दिल्ली तक परिचालन शुरु हो तो काफी हद तक जरूतें पूरी हो सकती है। वहीं कई रेल यात्रियों का कहना है कि महाबोधि एक्सप्रेस का परिचालन नवादा से कराया जाए। 

सुरक्षा के होंगे पुख्ता इंतजाम

रेल राज्यमंत्री के आगमन को लेकर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। नवादा एसपी विकास बर्मन ने बताया कि पर्याप्त संख्या में पुलिस पदाधिकारियों व सशस्त्र बलों की तैनाती की गई है। महिला बल की भी तैनाती की गई है। इधर, आरपीएफ कमांडेंट ने भी सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया। रेल थानाध्यक्ष ने बताया कि आरपीएफ व जीआरपी की तैनाती रहेगी। 

केंद्रीय मंत्री गिरिराज ने नवादा से दिल्ली के लिए ट्रेन की परिचालन की मांग की

किऊल-गया रेलखंड के दोहरीकरण के उद्घाटन के मौके पर जिलावासियों को संबोधित करते हुए नवादा संसदीय क्षेत्र से सांसद व केंद्रीय राज्य मंत्री गिरिराज सिंह ने रेलमंत्री मनोज सिंहा से नवादा के लिए बड़ी मांग की, उन्होंने कहा की नवादा से दिल्ली के लिए एक ट्रेन का परिचालन करवाया जाये। 

देखिये वीडियो https://www.youtube.com/watch?v=FO3tJSbhAgs&feature=youtu.be

आइये आज जाने मोक्ष प्राप्ति स्थल गया कि प्रसिद्ध विष्णुपद नगरी को..!

बिहार के राजधानी पटना से दक्षिण की ओर लगभग 100 की.मी. दूर गया में फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित विष्णुपद मंदिर पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु के पदचिन्हों पर किया गया है। यह मंदिर 30 मीटर ऊंचा है जिसमें आठ खंभे हैं। इन खंभों पर चांदी की परतें चढ़ाई हुई है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु के 40 सेंटीमीटर लंबे पांव के निशान हैं। इस मंदिर का 1787 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई ने नवीकरण करवाया था। पितृपक्ष के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटती है।

यह भी देखें

गया का उल्लेख महाकाव्य रामायण में भी मिलता है। गया मौर्य काल में एक महत्वपूर्ण नगर था। खुदाई के दौरान सम्राट अशोक से संबंधित आदेश पत्र पाया गया है। मध्यकाल में यह शहर मुगल सम्राटों के अधीन था। मुगलकाल के पतन के उपरांत गया पर अनेक क्षेत्रीय राजाओं ने राज किया। 1787 में होल्कर वंश की साम्राज्ञी महारानी अहिल्याबाई ने विष्णुपद मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था।

कहा जाता है की गयासुर नामक दैत्य का बध करते समय भगवान विष्णु के पद चिह्न यहां पड़े थे जो आज भी विष्णुपद मंदिर में देखे जा सकते हैं।

गया के ऐतिहासिक विष्णुपद मंदिर में हाई स्पीड 5 जी वाई – फाई सेवा शुरू

गया के ऐतिहासिक विष्णुपद मंदिर में गुरुवार से हाई-स्पीड 5जी वाई-फाई सेवा शुरू हो गयी है, गया में चल रहे विश्वप्रसिद्ध पितृपक्ष मेला में आये तीर्थयात्रियों को अब इसका लाभ मिलेगा।

गुरुवार को बीएसएनल के प्रधान महाप्रबन्धक बीएन सिंह व जिलाधिकारी कुमार रवि ने संयुक्त रूप से ऐतिहासिक विष्णुपद मंदिर में बीएसएनल के हाई-स्पीड 5 जी वाई-फाई सेवा का शुभारंभ किया।
विश्व प्रसिद्ध राजकीय पितृपक्ष मेला-2016 में आए हुए पिंडदानियों के साथ ही गयावासियों अब विष्णुपद मंदिर क्षेत्र में वाईफाई सेवा का आनंद ले रहे हैं।
डीएम ने कहा कि पितृपक्ष मेला में वाईफाई सेवा शुरू करने से तीर्थयात्रियों को बहुत ही ज्यादा सहायता मिलेगी। बहुत से पिंडदानियों के पास स्मार्ट फोन होते है। परंतु, इंटरनेट बैलेंस नहीं रहने के कारण कई महत्वपूर्ण जानकारी का लाभ नहीं उठा पाते है। इसके शुरू होने से तीर्थयात्री कई प्रकार की जानकारी हासिल करने के साथ ही अपने-अपने परिवार के सदस्यों के साथ चैटिंग भी कर सकते हैं। वाईफाई सुविधा एक सिम पर सिर्फ 15 मिनट ही मिलेगी। बीएसएनएल के प्रधान महाप्रबंधक बीएन सिंह ने कहा कि बहुत ही जल्द बोधगया स्थित भगवान बुद्ध के विशाल प्रतिमा के पास व बाराचट्टी में भी वाईफाई सेवा की जाएगी। साथ ही गया में 50 से अधिक जगहों पर बीएसएनएल वाईफाई की सुविधा दी जाएगी। मौके पर एनआईसी के तरूण कुमार सिन्हा, बीएसएनएल के कई पदाधिकारी आदि मौजूद थे।

बिहार की यह अनाथ बेटी अब अमेरिकन घर की लक्ष्मी बनेगी

नालंदा: अमेरिका की एक दंपती ने दो वर्षीय एक अनाथ बिहारी बच्ची सरस्वती कुमारी को गोद लिया है। 

नालंदा के समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित मदर टेरेसा अनाथ सेवा आश्रम से सरस्वती को अमेरिकी दंपती बेसली मोन मैथ्यू व मिन्नी सिली अन्न मैथ्यू ने गुरुवार को गोद लिया. सरस्वती सात माह की थी तब इस अनाथ आश्रम में आयी थी. बाल कल्याण समिति गया के द्वारा भेजी गयी. यह अबोध यहां रह कर पल और बढ़ रही थी.

 

गुरूवार को पुलिस कप्तान कुमार आशीष ने अनाच् बच्ची को अमेरिकी दंपती वेसली मोन मैथ्यू एवं उनकी पत्नी मिन्नी सीली अन्न मैथ्यू को सारी कागजी प्रक्रिया पूरी करने के बाद सौंप दिया। इस अवसर पर एसपी ने कहा कि सरस्वती आज के बाद भारतीय से अमेरिकन हो गई है। वे उसके सुखमय जीवन की कामना करते हैं। उन्होंने अनाथ आश्रम की प्रशंसा करते हुए कहा की यहां की कर्मियों की जितना भी प्रशंसा की जाए कम होगी। उन्होंने कहा कि अनाथ और लावारिश्च् बच्चों की देख भाल करना सबसे बड़ा पुण्य का काम है।

 

सरस्वती के नये पिता अमेरिका में कम्प्यूटर इंजीनियर है। पत्नी नर्स हैं। आश्रम के अध्यक्ष अमित कुमार पासवान ने कहा कि यह बिहार की नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए सौभाग्य की बात है कि नि:संतान माता-पिता इस संस्थान के माध्यम सच् बच्चों एवंच्बच्चियों को गोद लेकर पुत्र एवं पुत्रियों की कमी को दूर कर रहे हैं।

यह बच्ची बाल कल्याण समिति गया से आयी थी। इस संस्था से विदेश जाने वाली यह छठ बच्ची है।

यह बहुत सराहनीय काम है जिसका स्वागत होना चाहिए।  यह इंसानियत की मिशाल है।  यह संस्था द्वारा भी जो काम किया जा रहा, उसकी जितनी भी तारिफ किया जाए कम है।  इनके प्रयासों से अनाथों को भी माता-पिता का प्यार मिलेगा और उनको अच्छी परिवरीस मिलेगी।

बिहार के इस गाँव के हर घर में एक IITians पैदा लेता है, इस बार फिर 50 छात्रों ने किया आइआइटी मेन्स परीक्षा क्रैक किया।

गया: प्राचीन काल में बिहार विश्व गुरू के नाम से प्रसिद्ध था।  पूरे विश्व से लोग ज्ञान प्राप्ति के लिए बिहार आया करते थे।  बिहार ज्ञान की भूमी रही है।  समय के साथ बिहार की वह पहचान कायम नहीं रह सका मगर बिहार ज्ञान की भूमी आज भी है।  बिहारी लोगों के काबलियत इसका प्रमाण है। 

जिस गया के पावन भूमी पर बुद्ध को ज्ञान मिला था उसी गया जिले एक गाँव  मानपुर के पटवाटोली बस्ती के बच्चे फिर शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का नाम हर साल रौशन कर रहें है।

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लगभग साढ़े तीन दशक पूर्व से शिक्षा जगत में विख्यात बिहार का मैनचेस्टर के नाम से मशहूर पटवाटोली मोहल्ले में पूर्व के भांति इस बार भी 50 छात्रों ने आईआईटी मेन्स में सफलता हासिल किया है।

 

बुनकरों की इस बस्ती की एक खासियत इसे देश में खास बनाती है। अभावों में जी रही इस बस्ती की नई पौध सपने देखती है तथा उन्हें पूरा करने का हुनर भी जानती है। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि यहां हर साल आइआइटियंस पैदा हो रहे हैं। वर्ष1992 से शुरू हुआ यह सिलसिला आज तक जारी है। यहां से इस साल भी 11 बच्चों ने आइआइटी की प्रवेश परीक्षा में अच्छी रैंकिंग पाई है। पटवा टोली के बच्चों ने इस साल भी अपना रिकॉर्ड कायम रखा है। इससे इलाके में खुशी का माहौल है।

 

गाँव के पूर्व छात्रों द्वारा गठित नव प्रयास नामक संस्था के मदद से गाँव में स्टडी सेंटर चलाये जा रहें है।  पूर्व छात्र जो आइआइटी में सफल हो चुके है वह समय निकाल गाँव आ कर बच्चों को पढाते हैं,  उनकी प्रोबलेम सोल्व करते है, उनका मार्गदर्शन करते है तथा उनको प्रोत्साहित भी करते रहते हैं।

 

अभी पटवा टोली में पांच स्टडी सेंटर चल रहे हैं। यहां के बच्चों के सफलता के पीछे उनकी काबिलियत और मेहनत के साथ-साथ ऐसे सेंटर्स का भी अहम योगदान है। यहां पढने वाले छात्रों का कहना है, ‘‘यहां पढ़ाई करते हुए एक रुचि पैदा होती है। एक प्रतियोगी माहौल मिलता है। इससे पढ़ाई में निखार आता है।’’

 

आज पटवा टोली के सफल छात्र माइक्रोसॉफ्ट, ओरेकल, सैमसंग, हिंदुस्तान एयरनॉटोकिल लिमिटेड जैसी प्रमुख देशी-विदेशी कंपनियों में काम कर रहे हैं।

 

सीमित संसाधनों के वाबजूद ये बच्चे सफलता के मिशाल कायम कर रहें है।  यह बिहार की वही पावन भूमी है जहां बुद्ध को ज्ञान मिला था,  दशरथ मांझी ने अपने मेहनत, जूनून और हिम्मत के दम पर अकेले पहाड़ तोड़ दिया था।  आज उसी भूमी पर एक बार फिर इतिहास दोहराया जा रहा है।  मेहनत, जूनून और हिम्मत तो बिहारी के DNA में है।

बडी खबर: जीतनराम मांझी को जान से मारने की कोशिश करने वाले का खुलासा हुआ…?

गया: इस बात का लगभग खुलासा हो गया कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी पर हमला किसने किया था।  

 

खबर आ रही है कि गया में दोहरे हत्याकांड के बाद उपद्रव और आगजनी नक्सलियों की उस रणनीति का हिस्सा था, जिसका अंजाम इलाके के अलावा सूबे के एक बड़े नेता की हत्या से पूरा होना था और वह नेता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी थे।  नक्सलियों को यह पता था की जीतनराम मांझी का  पीड़ित परिवार के काफी करीबी रिश्ता है।

नक्सलियों की मंशा यह थी कि जंगल में जिस स्थल पर शव पड़े थे, वहां मांझी पहुंच जाएं। थोड़ी दूर उन्हें पैदल चलकर जाना पडे और उन पर जानलेवा हमला किया जाए।

 

डुमरिया में लोजपा नेता सुदेश पासवान और उनके भाई सुनील की हत्या पूर्व नियोजित थी।

नक्सली संगठन की शीर्ष कमेटी ने तीन माह पहले ही इसकी स्वीकृति दे दी थी। बस इंतजार था ‘बड़े सरकार’ के ग्रीन सिग्नल का।
समय, तिथि और तरीका ‘बड़े सरकार’ को ही तय करना था। यहां से इशारा मिलते ही नक्सलियों ने घटना को अंजाम दे दिया।

हालांकि डुमरिया बाजार में पहुंचते ही अनियंत्रित युवा उपद्रवियों ने सड़क पर अवरोध पैदा कर आगजनी कर रखी थी।

पूर्व सीएम का काफिला पहुंचते ही उस पर पथराव शुरू हो गया और वे बच निकले। डुमरिया कांड के बाद यह बात सब चर्चाओं से छनकर सामने आ रहीं हैं।

 

मांझी के बच जाने के बाद अब नक्सलियों के निशाने पर उनको  बचाने बाले है।  पूर्व सीएम जीतनराम मांझी को फोन कर लगातार रौशन मांझी बुला रहे थे। इसकी पुष्टि स्वयं मांझी ने भी की है।
भाजपा से जुड़े एक नेता जो डुमरिया में मौजूद थे, लगातार उन्हें फोन पर मना कर रहे थे। संभवत: उन्होंने स्थिति को भांप लिया था।

माओवादियों को इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी है। अब उक्त भाजपा नेता सहित कुछ अन्य लोग माओवादियों द्वारा चिह्नित किए जा रहे हैं।

 

डुमरिया कांड की जिम्मेवारी लेते हुए भाकपा माओवादी की ओर से शुक्रवार को इमामगंज, डुमरिया, बांकेबाजार इलाके में पोस्टर चस्पां किया गया था।

 

पूर्व सीएम जीतनराम मांझी, सांसद चिराग पासवान के साथ पूर्व एमएलसी सिंह को भी घड़ियाली आंसू नहीं बहाने को नक्सलियों  ने चेतावनी दी है और पुलिस को दमन करने बाज आने को कहा है।