बिहार रेजिमेंट में मर मिटने का जज्बा- जनरल सुहाग

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भारतीय सेना के अध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह सुहाग बिहार रेजिमेंट सेंटर की 75 वीं वर्षगांठ पर आयोजित हीरक जयंती समारोह में भाग लेने शनिवार को दानापुर सैन्य छावनी पहुंचे. इस दौरान सेनाध्यक्ष ने कहा कि देश की सेना और आर्मी के जवान हमेशा देश की सुरक्षा के लिए तत्पर और तैनात हैं.

1941 ई. में हुआ था ‘बिहार रेजिमेंट’ का गठन

15 सितंबर,1941 को 11वीं व 19वीं हैदराबाद रेजिमेंट को मिलाकर जमशेदपुर में बिहार रेजिमेंट की पहली बटालियन बनी। आगरा में 1 दिसंबर 1942 को दूसरी बटालियन का गठन हुआ। 1945 में आगरा में बिहार रेजिमेंटल सेंटर बना। 2 मार्च 1949 को बिहार रेजिमेंटल सेंटर को दानापुर में स्थानांतरित किया गया।

बिहारी योद्धाओं की वीर गाथा
बिहारी योद्धाओं की वीरगाथा 1758 में शुरू हुई थी। कैप्टन टर्नर इस बटालियन की कमान संभालने वाले पहले अधिकारी थे। जून 1763 में मीर कासिम ने पटना पर हमला बोला तो बिहारी योद्धाओं ने मीर कासिम की विशाल सेना को पीछे धकेल दिया। पर अंग्रेजी सेना द्वारा मदद नहीं मिलने पर मीर कासिम की सेना विजयी रही। जुलाई 1857 में दानापुर के सैनिकों ने विद्रोह का बिगुल फूंकते हुए अंग्रेजों पर गोलियां बरसाई। हथियार और ध्वज लेकर सैनिक जगदीशपुर चले गएऔर बाबू कुंवर सिंह के साथ शामिल हो गए। इन सैनिकों के साथ मिल कर बाबू कुंवर सिंह ने अंग्रेजों की सेना को शिकस्त देकर आरा पर कब्जा कर लिया।
शहीदों के पत्नियों को मदद का आश्वासन 
जनरल सुहाग ने शहीद सैनिकों की पत्नियों से मुलाकात की और उन्हें हरसंभव मदद का आश्वासन दिया। सैनिकोंं के परिजनों,पूर्व सैनिकों और छात्र-छात्राओं से भी मिले। सेनाध्यक्ष ने स्पेशल कवर का विमोचन किया और तीनों बटालियनों के कमान अधिकारियों को दो-दो लाख रुपए का चेक प्रदान किया।
इससे पहले रेजीमेंट में पहुंचने पर उन्हें जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया. सेनाध्यक्ष ने ड्रील मैदान में हीरक जयंती समारोह पर आयोजित मोटरसाइकिल डिस्प्ले, कलर प्रजेंटेशन व मिलन परेड में भाग लिया.
18वीं बिहार रेजिमेंट:कैप्टन राहुल राहिल,नायब सूबेदार अजीत कुमार दुबे,सिपाही एस टोके,सिपाही कृष्ण कुमार,सिपाही मुरारी झा।
19वीं बिहार रेजिमेंट: मेजर एपीएस रंधावा,नायब सूबेदार भोलानाथ प्रसाद,लांस नायक मदन प्रसाद यादव,सिपाही विकास कुमार यादव,सिपाही निशिकांत साहू।
20वीं बिहार रेजिमेंट:मेजर उपेन्द्र सिंह,नायब सूबेदार अरविंद कुमार झा,हवालदार विजय गिरि,सिपाही मनीष कुमार पासवान,सिपाही संग्राम किशोर दलाई।
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बिहारियों में इतनी इतनी क्षमता है कि अकेले पहाड़ का भी सीना चीर दे ..

“बिहार और बिहारी” यह शब्द भारत के इतिहास में, वर्तमान में और भविष्य में अपना एक अलग ही महत्व रखता था, रखता है और रखता रहेगा।

मगर समय  के साथ इस शब्द के मायने बदलते गए मगर यह शब्द भारतीय पटल पर हमेशा ही छाया रहा है चाहे वह सकारात्मक वजहों रहे या नकारात्मक वजहों से। यह बात भी सच है कि जो जितना प्रसिद्ध होता है उसकी बदनामी भी उतना ही होता है।

 

एक समय था जब बिहार देश का गौरव था , बिहारी देश का शासक था (सम्राट अशोक) और हमारा पाट्लीपुत्रा देश की राजधानी।

अगर कभी हमारा देश हिन्दुस्तान सोने की चिड़ियाँ थी तो हमारा बिहार देश का चमकता सितारा  था। आज भी बिहार के इतिहास के बिना देश का इतिहास अधूरा है।

 

एक समय वह भी आया जब बिहार की पहचान सबसे पिछरे राज्यों में आने लगा। गर्व से बिहारी करने वाले लोग शर्म करने लगे। जिस बिहार में दुनिया भर से लोग रोजी – रोटी के लिए और पढ़ने के लिए आते थे , उसी बिहार से लोग रोजी-रोटी और पढ़ने के लिए दुनिया भर में जाने लगे। निराशा के बादल  बिहार के आसमान में छा चुका था। लोग हार मानने लगे थे। बिहार और बिहारी ब्रांड खत्म हो रहा था देश में बिहार और बिहारी की गलत छवि बनने लगी कुछ लोग अपना राजनीतिक हीत देख बिहार को और बदनाम करने लगे ।

 

मगर कहा जाता है बिहारी जल्दी हार नहीं मानते । बिहार में फिर परिवर्तन की बयार चली । लगातार पिछले 10 सालों से बदलाव की यह मुहिम जारी है और यह सिर्फ एक व्यक्ति के कारण नहीं हुआ बल्कि सभी बिहारी लोगों के हार न मानने के जज्बा के कारण हुआ है। हम फिर अपना खोया हुआ स्वाभिमान को पाने के लिए चल चुके हैं। हालात बदल रहे हैं। फिर से बिहारी ब्रांड चमक रहा है। बिहारियों के प्रति देश लोगों में फैले गलतफैमी भी दूर हो रहे हैं। अब लोग बिहारियों को समझ रहे हैं कि”एक बिहारी सौ बीमारी” नहीं “एक बिहारी सब पर भारी होता है”

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जो लोग बिहारियों को सही में समझते हैं वह जानते हैं कि जल्दी बिहारी से अच्छा दोस्त, साथी और इंसान नहीं मिल सकता। यही कारण है कि बिहारी विरोध की राजनीति करने वाले लोग आज खुद नकारे जा चुके है। शिवसेना ने बिहारी विरोध छोड़ दिया तो नफरत की राजनीति करने वाले राज ठाकरे को तो महाराष्ट्र की जनता ने ही औकात दिखा दी।

हाँ बिहारियों में काबलियत कुछ जाता है, समय से पहले समझ आ जाता है और मेहनत करना तो हमारे DNA में है इसलिए कुछ लोग हम से जलते जरुर है।

 

अभी हमें बहुत मेहनत करना है अपना पुराना रुतवा लाने के लिए। वह दिन फिर आएगा जब हम रोजी – रोटी कमाने बिहार से बाहर नहीं बल्कि दुनिया से लोग बिहार आएंगे और हम उन लोगों का दिल खोल कर स्वागत करेंगे क्योंकि हम दुनिया को शांति का संदेश देने वाले लोग हैं, नफरत फैलाने वाले नहीं।

और अपना यह विकसित बिहार का सपना जरुर ही सच होगा कि क्योंकि हम बिहारियों में वह क्षमता और काबलियत है कि पहाड़ का भी सीना चीर सकते हैं।

लौटेगा खोया स्वाभिमान,

अब जाग चुके तेरे सपूत …

जय बिहार!!