पूरे पुलिस विभाग में हड़कंप, नीतीश कुमार ने एक साथ दस थानेदार को किया सस्पेंड व् 6 को किया बरखास्त

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यह पहले ही कह चुके है कि वे किसी भी किमत पर शराबबंदी के अपने फैसले से पीछे नहीं हटेंगे, उसके लिए उन्हें चाहे जो भी किमत चुकाना पडे।  सरकार शराबबंदी पर सख्त है।

बिहार में शराब पीने वाले, बेचने वाले और यहां तक की रखने वालों को भी सरकार खोज खोज कर जेल में डाल रही है।

अब बिहार में शराबबंदी की नीति को कारगर ढंग से लागू नहीं करने वाले थानेदारों पर गाज गिरनी शुरू हो गई है।  इस क्रम में सरकार ने एक साथ दस थानेदारों समेत 16 पुलिसकर्मियों को दोहरा झटका दिया है।

 

अपने-अपने इलाके में शराब की बिक्री और उत्पादन पर अंकुश लगाने में नाकाम रहने वाले ऐसे दस थानेदारों को निलंबित करने के साथ ही सरकार ने उनके प्रोमोशन पर भी रोक लगा दी है. सरकार ने जिन थानेदारो को सस्पेंड किया है उनमें पटना से सटे फुलवारीशरीफ और मसौढ़ी, जहानाबाद जिले के मखदुमपुर के अलावा चांद, डिहरी, मरंगा, रूपौली, सुल्तानगंज, मोतिहारी मुफ्फसिल, रून्नीसैदपुर और बैरगनिया थानों के थानेदार शामिल हैं.

प्रेस ब्रीफ करते एडीजी सुनील कुमार

प्रेस ब्रीफ करते एडीजी सुनील कुमार

जिन थानेदारों को सस्पेंड किया गया है वे अगले 10 सालों तक न तो किसी प्रोमोशन के हकदार होंगे और न हीं किसी थाने में थानेदार बनाय जायेंगे।  पुलिस एडी़जी सुनील कुमार ने बताया कि इसके अलावा सरकार ने छह ट्रेनी पुलिसकर्मी जो की सिपाही रैंक के हैं को भी लापरवाही बरतने के कारण बर्खास्त किया है.

सरकार के इस कारबाई से पूरे पुलिस विभाग में हरकंप है।  इस कारबाई के बाद बिहार में शराब के खिलाफ पुलिस की और आक्रामक कारबाई दीख सकती है।

गौरतलब है कि शराबबंदी के नये कानून लागू करने के दौरान ही सीएम नीतीश कुमार ने चेतावनी देते हुए कहा था कि जिन इलाकों में शराब की बिक्री या उत्पादन के मामले सामने आएंगे तो इसकी गाज वहां के थानेदारों पर गिरेगी.

 

क्या तालिबानी है शराबबंदी का नया कानून?? पढि़ए…

Nitish kumar for liquor ban

पिछले 10 दिनों से यू कहे तो बिहार की पूरी मीडिया,राजनीतिज्ञ और वैसे खास लोग जो किसी ना किसी रुप में प्रभावशाली है नये शराबबंदी कानून को लेकर काफी चिंतित दिख रहे हैं।।
स्वभाविक है कानून के प्रावधान इतने कड़े हैं कि तालिबानी कानून कहे तो कोई बड़ी बात नही होगी ये भी सही है कि इस कानून से सबसे अधिक प्रभावित हमारे समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लोग ही होगे,,, इस कूनान में पुलिस को खुली छुट मिल गयी है जो करना चाहे वह कर सकता है।।हलाकि इस नये कानून को लागू होने में कम से कम छह सात माह का समय लग ही सकता है।
राज्यपाल के पास जायेगा वहां से फिर कैबिनेट में आयेगा वैसे राज्यपाल भी संशोधन कि सलाह दे सकते हैं लेकिन ऐसा होता कम ही है,,,लेकिन एक प्रावधान है कानून के बिल को कितने समय में लौटाना है इसकी कोई सीमा निर्धारित नही है ऐसे में राज्यपाल इसको खीच भी सकते हैं लेकिन इस कानून को लेकर जितनी हाईतौबा मचायी गयी पुलिस तो अभी से भी इस कानून के आर में गुंडागर्दी शुरु कर दिया होगा।।।
लेकिन सवाल ये उठता है कि राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू हो इस पर हर कोई कहता है लागू होना चाहिए,,,,इसको लेकर जो नये कानून बने उसको सभी ने समर्थन किया लेकिन स्थिति सामने है शहर छोटा हो या बड़ा राशी जितनी लगे शराब उपलब्ध है रोज पकड़े जा रहे हैं। सरकार अब वैसे गांव को चिंहित कर रहा है जहां बार बार शराब पकड़ा जा रहा है उस गांव को सामूहिक जुर्वाना कि बात हो रही है,,,,
चार माह में 9637 लोग पकड़े गये हैं लेकिन शराब बिकना जारी है ये सही है कि पुलिस इस खेल में माल बना रहा है लेकिन बस इऩते से ही आप अपनी जिम्मेवारी से तो भाग नही सकते हैं।।
सरकार पूर्ण शराबबंदी लागू करना चाहती है आप भी कहते हैं लागू होना चाहिए फिर आप बताये सरकार क्या कर सकती है,,,,,,सरकार के पास सख्त कानून बनाने के अलावा कोई और विकल्प हो तो बताये,,,,,,
हा पुलिस गलत फंसाये नही इसके लिए भी कठोर कानून बनाये गये हैं गलत फंसाने पर नौकरी के साथ साथ पूरी कमायी जप्त हो जायेगी कानून इतना सख्त है,,,,, फिर आप कहते हैं पुलिस गलत किया है इसको तो कोई पुलिस अधिकारी ही कहेगा फिर आप कहेगे पुलिस तो आपस में मिले रहते हैं,,,,,, तो आप रास्ता बताये क्या किया जाये,,,,,, समाज को जागरुक बनाया जाये ये काम सरकार का नही है,,, पुलिस गलत व्यक्ति को ना फंसाये जुल्म ना करे इसको रोकने का काम सिर्फ सरकार ही करे ऐसा सम्भव नही है,,,,, तो कही ना कही कानून कितना भी कठोर क्यों ना बने सब कुछ जनता के चाल और चरित्र पर ही निर्भर करता है,,,,,
मुझे लगता है कड़े कानून कि बात एक बहाना है और इस बहाने के पीछे पूरी शराब माफिया लगा हुआ है अगर ये सही है कि शराबबंदी के कानून लागू होने के बाद महिलाओं पर होने वाली हिंसा में कमी आयी है या फिर गांव औऱ शहर के चौक चौराहे पर रोजना होने वाले गुंडागर्दी में कमी आयी है तो मेरा मानना है कि इस कानून को लेकर जो सबसे ज्य़ादा हायतौबा मचा रहा है मीडिया,राजनीतिज्ञ और वो खास लोग जो किसी ना किसी रुप में प्रभावशाली है कमर कस ले तो पुलिस गलत कर लेगा सपने में भी सोचा नही जा सकता है,,लेकिन हमलोग तो बस सवाल खड़े करने के लिए ही बने हमारे एक सीनियर पत्रकार मित्र कहते हैं मैं तो पीउगा सरकार भेजे जेल वही बैंठकर स्टोरी लिखेगे ये सर अंग्रेजी के पत्रकार है पूरी सिस्टम अंगूली पर नचाने का दंभ भरते हैं मैने सलाह दिया सर चलिए इस कानून के खिलाफ सड़क पर उतरा जाये लेकिन वो पीछे हट गये कहा कोई कहता है शराब छोड़ दो तो कोई कहता है गौ मांस छोड़ दो क्या क्या छोडेगा हाहाहहाहाह चलिए सोचिए क्या होना चाहिए

 

सभार- संतोश सिंह के पेज से

बिहार में शराबबंदी का साइड इफेक्ट्स….

बिहार में शराबबंदी के साइडइफेक्‍ट्स के कई किस्‍से रोज सुनता रहता हूं । बड़े इवेंट्स नहीं हो रहे/लांचिंग शिफ्ट हो गई/बड़ी शादियां भी दूसरे शहरों में जा रही – पहले दिन से सुन रहा हूं । लेकिन बुधवार को मेरे हजाम राजेश ठाकुर की आपबीती अलग किस्‍म की थी ।

मोरल आफ स्‍टोरी को कैसे समझें,मैं तो नहीं समझ पा रहा । अंत में,आप समझिएगा ।
राजेश ठाकुर पुराना हजाम है । राजधानी पटना के एलिट क्‍लास में कई बड़े लोगों की सेवा करता है । बाल-दाढ़ी बनाने को बुधवार को मैं सैलून में गया हुआ था । कंघी-कैंची लगाने के कुछ देर बाद ही उसने कहा-सर,अब नीतीश कुमार को वोट नहीं देंगे । वह अब तक नीतीश कुमार को ही वोट देता आया है । गुस्‍से की इनसाइड स्‍टोरी को हमने तुरंत समझा । कहा-दारु बंद हो गया,इसलिए न । खैर,तुम्‍हारी पत्‍नी वोट देगी । वह तुम्‍हारी लत छूटने से खुश होगी । उसने कहा-नहीं,अब वह भी नहीं देगी । मैं चौंका-ऐसा कैसे । फिर तो नीतीश कुमार की सभी केमिस्‍ट्री खराब हो जाएगी । सपाट सा जवाब ठाकुर ने दिया-अब रात को घर जाता हूं,तो पॉकेट में पैसे कम होते हैं,पत्‍नी उदास रहने लगी है ।
शराबबंदी से हजाम राजेश ठाकुर की आमदनी कैसे कम हो गई,मेरे लिए पहेली थी । वह दारु दुकान के पास दालमोठ-भूंजा-अंडा थोड़े बेचता है । पर,उसने तुरंत सीधे-सीधे समझा दिया । कहा,सर – बाल व दाढ़ी बनाने के डेढ़ सौ रुपये लगते हैं । शराबबंदी के पहले शाम सात बजे के बाद आने वाले कस्‍टमर ‘हैप्‍पी आवर’ में होते थे । दो-तीन पेग लगाये रखते थे । बाल-दाढ़ी बनाने के बाद धीरे-से कहता था- हेड मसाज कर दें क्‍या । तुरंत ‘हां’ जवाब में मिलता था । फिर फेशियल करने की अनुमति भी मिल जाती थी । इस तरह टोटल बिल डेढ़ सौ रुपये से बढ़कर नौ सौ रुपयों का हो जाता था । कस्‍टमर हजार रुपये का नोट देता और सौ रुपये वापस न लेकर ‘टिप्‍स’ में हमें दे देता । इधर,नौ सौ रुपयों की सर्विस के बदले दुकान से नब्‍बे रुपयों का कमीशन मिलता । ऐसे में,शाम को दो-तीन सर्विस भी कर लिया,तो घर की रेलगाड़ी चलाने में कोई दिक्‍कत नहीं होती थी ।
रोज की आमदनी को जोड़ ही बेटे को जयपुर में इंजीनियरिंग में पढ़ा रहा हूं,पर अब आमद अचानक कम हो गई,इसलिए परेशानी हो रही है । आमदनी कैसे कम हुई,राजेश ने कहा-कस्‍टमर अब ‘हैप्‍पी आवर’ के मूड में नहीं आते । सो,एक्‍स्‍ट्रा सर्विस के ऑफर को कबूल नहीं किया जाता । नौ सौ की सर्विस अब मुश्किल हो गई है,डेढ़-दो सौ की सर्विस ही होती है ।
मैंने समझाने की कोशिश की । कहा-फिर भी तुम्‍हारी सेहत शराब छूटने से ठीक हो जाएगी । उसने जवाब दिया- शराब कितना पी लेता था मैं ,महीने में तीन-चार सौ रुपयों का । इस कारण कोई दिक्‍कत नहीं थी ।

 

अब इस स्‍टोरी को खत्‍म कर घंटों तक मैं ‘मोरल ऑफ स्‍टोरी’ के वाक्‍य को तलाशता रहा । पर वाक्‍य मिल नहीं रहे । वजह कि राजेश की स्‍टोरी के दो पक्ष हैं । जहां राजेश की आमदनी बढ़ रही थी,वहीं नशे में आया कस्‍टमर अधिक खर्च कर रहा था । कौन-कितना सही,जवाब आप सब भी तलाशें ।
इस राजेश ठाकुर की स्‍टोरी में ही छोटी-सी एक और सप्‍लीमेंटरी स्‍टोरी जोड़ देता हूं । यह किस्‍सा पटना में रेडीमेड कपड़ों के एक बड़े ब्रांडेड शॉप का है । रोज की बिक्री लाखों में होती थी । पर इन दिनों सेल्‍स कम हो गया । पिछले दिनों दो दिनों तक कोई कस्‍टमर नहीं आया था,तो दुकान मालिक ने मन की टीस हमें बताई थी । कहा-सच है,मार्केट में नकदी का संकट है । पर, दो दिनों तक कोई कस्‍टमर नहीं,यह तो सोच भी नहीं सकता था । फिर वे निष्‍कर्ष पर निकले । कहा-हुआ यह है कि उनकी पहचान ब्रांडेड शॉप की है । ब्रांड्स महंगे मिलते हैं । चुनिंदा कस्‍टमर ही पहले भी आते थे । अब जब से शराबबंदी हुई है,ये कस्‍टमर्स शराब की भूख मिटाने दिल्‍ली-कोलकाता जाने लगे हैं । निश्चित तौर पर,इन शहरों में ब्रांड्स की रेंज अधिक होती है । सो,ये कस्‍टमर पटना को भूलने लगे हैं । पर,ऐसे में हम दुकान वाले दूसरा कौन-सा रास्‍ता तलाशें,समझ से परे है । सुनकर बस मैं भी इतना कह सका कि आपके सवाल का जवाब तो अपुन के पास भी नहीं है ।

 

(सभार: ज्ञानेश्वर जी के फेसबुक पेज से)

बिहार: अब ना रहा वो प्यारा हाला, ना ही रही वो मधुशाला

पटना: सूखा लातूर और देश के दूसरे हिस्सों में है लेकिन प्यास क्या होती है, इसका दर्द तो बिहार वालों से पूछिए, बिहार के शराब प्रेमियों से पूछिए।

 

वे अपनी प्यास बुझाने के लिए हर तरकीब अपना रहे हैं. आज कल उनका यूपी, झारखण्ड और नेपाल जाना बढ़ गया है।

 

 पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।

ये हरिवंश राय बच्चन की है जो कुछ दिन पहले बिहार का हालात बताने के लिए काफी था मगर अब बिहार का हालात अलग है अब यहा मंदिर और मस्जिद तो मिल जाती है मगर मधुशाला नही मिलती।

बिहार के शराब प्रेमी परेशान हैं. आखिर उन्हें सबसे बड़ा धोखा मिला है! नीतीश कुमार चुनाव से पहले शराबबंदी की बात कर रहे थे. सभी को लग रहा था कि महिलाओं को लुभाने के लिए यह नीतीश कुमार का चुनावी जुमला होगा. ऐसा कुछ होगा नहीं. सरकार क्यों चाहेगी कि उसके राजस्व मे करोडों की कमी आए। मगर उनके अरमानों पर पानी फिर गया।

सूखा तो लातूर और देश के दूसरे हिस्सों में है लेकिन प्यास क्या होती है, इसका दर्द बिहार के शराब प्रेमियों से पूछिए.

 

शराबबंदी के बाद बिहार के मौजूदा हालात पर मधुशाला के तर्ज पर अमित शाण्डिलय ने एक कविता लिखा है जो वर्तमान स्थिति को बताती है।

 

amit_shandilya_poem_madhushala

 

 

कौन चलेगा डगमग-डगमग
कौन उठाएगा प्याला
अब ना रहा वो मय का हाला
ना ही रही वो मधुशाला ।

मधुशाला मिलती ही नहीं तो
मन्दिर मस्जिद जातें है ,
मेल कराते मन्दिर मस्जिद
जेल कराती मधुशाला ।

प्रेम जिन्हें मय से प्रगाढ़ था
वो मुश्किल से जीतें हैं ,
कुछ तो झारखण्ड, बंगाल में जाकर
मस्त ख़ुशी से पीतें हैं ।

साक़ी को चिंता है बहुत
मय के अस्तित्व खोने का,
सच पूछो तो ख़ुशी मनाओ
‘मैं’ का अस्तित्व होने का ।

डूब रही थी जिनकी कश्ती
बच गया वो मतवाला
अब ना रहा वो प्यारा हाला
ना ही रही वो मधुशाला ।

 

© Aapna Bihar E Media

शराबबंदी का बिहार में ठीक वैसा ही स्वागत हो रहा है जैसा घर में नये आये दामाद का होता है

बिहार को बदनाम करने वालो के नाम एक जबरदस्त खत लिख चर्चा में आई नेहा नूपुर ने बिहार में शराबबंदी पर भी कुछ लिखा है जो शराबबंदी पर बिहार की जनता के राय को भी बताती है। आपको भी इसे एक बार पढ़ना चाहिए। हम उनकी सहमती से इसे यहां पोस्ट कर रहे है।


नेहा नापुर

नेहा नूपुर

बिहार और शराबबंदी …

“उस दिन चौथी कक्षा में पढ़ाते समय एक सवाल आया था “आपको पेड़-पौधों से क्या-क्या प्राप्त होता है?” मैंने सीधा सवाल बच्चों से किया और बहुत सारे जवाब मिले जो आप भी देंगे, मसलन फल, फूल, जलावन, लकड़ी, ऑक्सीजन वैगेरह-वैगेरह| लेकिन हमेशा शांत रहने वाला वो बच्चा पहली बार कुछ बोला था- “शराब”| मैं समझ गयी गाँव में आसानी से उपलब्ध “महुआ” से बनने वाली इस चीज़ को इसने बहुत करीब से जाना है| मैंने कोशिश की तो पता चला उसका परिवार इसी शराब के सहारे चलता है, असल में घर-खर्च और घर में झगड़े का एक यही बहाना है| उसे भी स्कूल के बाद शाम में शराब बेचना होता है| ये एक वजह थी कि सभ्य घर के बच्चों को उस से दूर रहने की हिदायत मिलती थी| काश लोग इतनी ही नफरत उसके द्वारा बेचे जाने वाले वस्तु से करते तो शायद उसके परिवारवाले घर-खर्च के लिए किसी और रास्ते पर होते| खैर, मैंने पूछा “तुम बड़े हो कर क्या करोगे” तो उसने दो टुक जवाब दिया “मिस कुछुओ करेंगे, शराब नहीं बनायेंगे|” मुझे ख़ुशी हुई और उसके उत्साहवर्धन के लिए पूरी कक्षा में तालियाँ भी बजीं|

बिहार में शराबबंदी डॉन को पकड़ने जितना ही मुश्किल मुहीम है, जानते हुए भी एक कदम जो इस ओर उठाया गया है, किसी “मिशन इम्पॉसिबल” से कम तो नहीं| भविष्य की कहानी तो वक्त कहेगा लेकिन अभी इस शराबबंदी का बिहार में ठीक वैसा ही स्वागत हो रहा है जैसा घर में नये आये दामाद का होता है| दामाद की तारीफ के साथ-साथ कुछ जो खोट निकालने की कोशिशें लगातार होती रहतीं हैं ठीक वैसे ही| कई लोगों की आखिरी दारू पार्टी हो रही है तो कई लोगों की पहली दारू पार्टी करने का अरमान धुआं हो रहा है|

हाल ही में बस से आना हुआ| ड्राईवर साहब बस को आगे बढ़ाने के अलावा एक ही मुद्दे पर अडिग थे “बिहार में शराबबंदी”| वहाँ मौजूद सभी नौजवान-बूढ़े इस बात से खुश थे कि देर से ही सही “शराबबंद” तो हुआ| कई कह रहे थे “ई काम 15-20 साल पहले हुआ रहता तो आज हम भी काम के आदमी रहते| देखिये न अब रोज मजदूरी का 150 रुपिया बचा लेते हैं”| किसी ने ऑब्जेक्शन किया “काश भईया ये बंदी चलते रहता, हमरा बचवा पढ़-लिख जाता कम-से-कम| जैसे हम बर्बाद हुए, कहीं लड़का भी बर्बाद ना हो जाये| ये चलते रहेगा तब न!” तभी ड्राइवर साहब भड़के “ऐसे-कैसे अब शराबबंदी बंद होगा भाई, औरत सब मिल के हरवा भी सकती है, जैसे जितवाई है”| ये मुद्दा ट्रेंड में था, ट्विटर पर नाहीं जी, बसवा में|

कुछ लोगों की परेशानी ये है कि गाँव का एक मात्र मनोरंजन मंगरुआ अब चुप ही हो गया है एकदम से| बेचारे का मुँह तो तब ही खुलता था जब दो पाउच अंदर जाता था| तब ही होश में आता था और वो सब सुनाता-दिखाता था जो कॉमेडी नाइट्स विथ कपिल में दिखाना बाकी रह गया| सारे सरकारी नौकरों की खबर भी लेता था चुन-चुन के|

और वो मुन्नीलाल जी अभी-अभी बाल-बाल बचे हैं| बिहार-यूपी के बॉर्डर पर गये थे दो घूंट की तलाश में| चांस लग भी गया था| दो घूंट मिल भी गये थे| लेकिन वापस आते वक्त वो जो सिपाही जी एगो मशीन मुँह में घुसा के देखने लगे थे न कि मुँह में अल्कोहल की मात्र कितनी है, कसम से जान-प्राण मुँह में ही आ गया था| भगवान् भला करे, 20% अल्कोहल ही पाया गया और

मुन्नीलाल जी बच के घर आ गये| दहशत में हैं बेचारे, किसी को कुछ बता नहीं रहे हैं|

बताइए ऐसे एक्के बार देसी-विदेसी सब बंद कर दिए हैं, मेहमानों का स्वागत कैसे होगा अब| मुर्गा तो अब भी है… लेकिन उसका साथी दारू!! ओह !! यही “व्यवस्था” करना अब भारी पड़ेगा लड़की वालों को, और आप तो जानते ही हैं, इसका नहीं होना मतलब कोई सेवा-सत्कार नहीं होना| एक-एक बोतल भी छीन लिए गये हैं| कौन समझाये उनको! अरे! बोतल का और भी इस्तेमाल होता है भाई!

गाँवों में जहाँ “देशी” का विकल्प ढूँढने की कोशिश हो रही है वहीं शहरों में “विदेशी” की दुकान अब मिल्क पार्लर बन चुकी है।

मेरी सोच से तो वो शक्स नहीं जा रहा, जो पी-पा के सड़क किनारे लुढ़का रहता था| कोई उसे नाली में ठेल देता तो फिर कोई नाली से निकाल के सड़क पर वापस लुढ़का देता| अब जब वो होश में आएगा तो? क्या उसे अपने गंदे, लम्बे बालों को देखकर घिन आएगी? क्या अब वो अपने घर जायेगा? घर कहाँ है, क्या याद है उसे अब भी? क्या वो फिर से अपने पीने की व्यवस्था कर पायेगा? अगर कर पाया और जेल में पाया गया तो? वो जेल की राह जायेगा या “नशा मुक्ति केंद्र” की राह? भगवान् भला करे!!

लोग कहते हैं “बिहार में शिक्षकों का वेतन शराब से ही बनता है”| कई शिक्षकों की चिंता का विषय ये भी है, नीतिश बाबु को बहुत नुकसान होने वाला है, कहीं शिक्षकों को साल में दो बार मिलने वाली “त्योहारी” अब हर “हैप्पी न्यू इयर” की मोहताज न हो जाये|

 

खैर मैं भी शिक्षक हूँ| लेकिन खुश हूँ, बल्कि बहुत खुश हूँ| विद्यालय प्रांगण में आ कर तमाशा करने वाला वो पियक्कड़ अब नहीं देखा जा रहा| विद्यालय के पीछे चलने वाली शराब-भट्ठी जिसके गंध से ठंडी हवा भी नशीली लगती थी, अब बंद हो चुकी है| और अब उस बच्चे को वाकई शराब बनाने-बेचने में परिवार का हाथ बनने की जरूरत नहीं पड़ेगी| अब वो “कुछुओ” करेगा लेकिन शराब से दूर रह पायेगा, वैसे ही जैसे पहले उसके दोस्त दूर रहते थे उस से। “

शराब के बाद बिहार में अब गुटखा और पान मसाला पर भी पूर्ण रुप से प्रतिबंध..

बिहार में शराब के बाद अश्लील गानों को बजाने पर रोक लगा और अब गुटखा और पान मशाला पर भी पूर्ण रुप से प्रतिबंध लगा दिया गया है। 

 

 

 

 

जनहित के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए खाद्य संरक्षा आयुक्त आरके महाजन ने यह आदेश जारी किया है कि शराब पर पूर्ण प्रतिबंध के डेढ़ महीने बाद राज्य सरकार ने गुटखा व पान मसाला के उत्पादन, बिक्री, ढुलाई, प्रदर्शन व भंडारण पर भी एक साल तक पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।

 

प्रतिबंध 21 मई से प्रभावी होगा। शराब के तरह सरकार इस पर भी सख्ती से पेश आने की मूड में है
आदेश को लागू करने के लिए सभी अभिहित अधिकारी (लाइसेंसी अधिकारी) व खाद्य संरक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया गया है। साथ ही जिला प्रशासन को भी इस कार्य में सहायता के लिए अनुरोध किया गया है।

 

 

लाइसेंसी अधिकारी व खाद्य संरक्षा अधिकारी पूरे बिहार में गुटखा एवं पान -मसाला (तम्बाकू व निकोटीन युक्त) पर रोक के लिए छापेमारी करेंगी। निरीक्षण व छापेमारी के दौरान दोषी पाए गए संबंधित व्यक्तियों पर खाद्य संरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 की धाराओं के तहत कार्रवाई की जाएगी।