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खुशखबरी: बिहार के दरभंगा में बनेगा राज्य का दूसरा AIIMS

कुछ दिन पहले ही पटना के एक बड़े मंच से मिथिला में एम्स और आईआईटी जैसी संस्था नहीं होने का मामला उठा था| अब खबर आ रही है कि मिथिला को जल्द ही एम्स का तोहफा मिल सकता है| दरभंगा स्थित डीएमसीएच को अपग्रेड कर AIIMS बनाया जा सकता है. इसके लिए बिहार सरकार ने पहल शुरू कर दी है| इसी के तहत सोमवार को चीफ सेक्रेटरी दीपक कुमार की अध्यक्षता में स्वास्थ्य विभाग की अहम बैठक हुई| बैठक में बिहार में प्रस्तावित दूसरे एम्स को दरभंगा में बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजने का फैसला लिया गया|

केंद्र सरकार की अनुमति मिलते ही एम्स के निर्माण की प्रक्रिया जल्द शुरू कर दी जाएगी|

ज्ञात हो कि 2015-16 के बजट में ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बिहार के हिस्से दूसरे एम्स की घोषणा की थी| जगह को लेकर बिहार सरकार को फैसला लेना था, जो कि लगभग दो वर्षों से लंबित था|

दरभंगा में एम्स निर्माण के फैसले पर खुशी जताते हुए जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के राष्ट्रीय महासचिव संजय झा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति आभार प्रकट किया है| उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार लगातार इस बात का जिक्र करते रहे हैं कि मिथिला के विकास के बिना बिहार का विकास अधूरा है| दरभंगा में एम्स हो, यह उनकी भी भावना रही है|

मिथिला का हृदय क्षेत्र है दरभंगा
बड़ी बात ये है कि दरभंगा ,उत्तर बिहार के केंद्र में है और केंद्र सरकार द्वारा अन्य एम्स जो बनाए जा रहे हैं उससे बिल्कुल दूर है| ज्ञात हो कि एम्स गोरखपुर, एम्स पटना और बनारस कैंसर संस्थान और सुपर-स्पेसियलिटी सेंटर से उत्तर बिहार दूर पड़ता है और उन केंद्रों का लाभ पश्चिमी, मध्य और केंद्रीय बिहार को मिलेगा| उत्तर बिहार की सघन आबादी के लिए दूर-दूर तक ऐसा कोई केंद्रीय अस्पताल नहीं है| साथ ही दरभंगा, मिथिलांचल का हृदय क्षेत्र भी है, जिसका फायदा नेपाल के मिथिला क्षेत्र के मरीजों को भी मिलेगा|

इसके साथ ही रेलवे, फोर लेन सड़क के बाद अब बहुत जल्द ही यहां से हवाई जहाज की सुविधा भी मिलने जा रही है| आपात स्थिति में यहां से एयर एंबुलेंस तक की सुविधा मिल सकती है|

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के एक पत्र के मुताबिक, एम्स के लिए लगभग 200 एकड़ जमीन की आवश्यक्ता है| डीएमसीएच के पास लगभग 240 एकड़ के आसपास जमीन है| सरकार को एम्स के लिए अलग से जमीन अधिग्रहण करने की आवश्यक्ता नहीं पड़ेगी|

 

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बिहार के दरभंगा एअरपोर्ट शुरू करने की मिली मंजूरी, रक्षा मंत्रालय से मिला एनओसी

अगले साल से दरभंगा एअरपोर्ट को फिर से शरू करने का सपना साकार होने लगा है|  रक्षा मंत्रालय ने दरभंगा एयरबेस के रनवे के मजबूतीकरण, टर्मिनल बिल्डिंग सहित अन्य विभिन्न निर्माण कार्य करने के लिए एनओसी जारी कर दी है|

इस बात की जानकारी जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव संजय झा ने दी|  उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्रालय के इस एनओसी के बाद दरभंगा एयरपोर्ट पर निर्माण कार्य की प्रक्रिया बहुत जल्द शुरू हो जाएगी| इसी साल 19 सितंबर को दिल्ली की एक कंपनी को रनवे के मजबूतीकरण के लिए टेंडर फाइनल हो चुका है|

गौरतलब है कि केंद्र सरकार की उड़ान योजना के तहत दरभंगा एयरपोर्ट के जीर्णोद्धार का काम होना है| नरेंद्र मोदी की सरकार ने क्षेत्रीय एयरपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए 2016 में उड़ान स्कीम को लॉन्च किया था| इसके बाद ही पटना में तत्कालीन उडड्यन मंत्री और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच करार हुआ था|

दरभंगा एअरपोर्ट का रनवे दुरुस्त हो जाने के बाद दरभंगा में 180 सीटर या उससे अधिक क्षमता वाले हवाई जहाज भी उतर पायेंगे|

संजय झा ने बताया कि दरभंगा एयरपोर्ट पर निर्माण कार्य में तेजी लाने के लिए बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने भी दिल्ली में नागरिक उड्डयन मंत्री और विभागीय सचिव के साथ बैठक की थी| मुख्यमंत्री का सचिवालय भी केंद्र सरकार के लगातार संपर्क में है|

संजय झा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दरभंगा एयरपोर्ट के प्रति प्रतिबद्धता का जिक्र करते हुए कहा कि दिल्ली में पिछले साल 24 दिसंबर को हुए मिथिला समाज के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि जल्द ही दरभंगा से लोग उड़ान सेवा का लाभ उठा पाएंगे| तब मुख्यमंत्री ने कहा था कि भूमि अधिग्रहण में पैसे की दिक्कत नहीं आएगी| उसके अगले ही दिन 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के कार्यक्रम में वित्त मंत्री अरुण जेटली जी ने कहा था कि उड़ान योजना में दरभंगा पर विशेष ध्यान है| इसे प्राथमिकता दी जा रही है|

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खुबसूरत मिथिला पेंटिंग से सजाई गयी बिहार संपर्क क्रांति एक्स्प्रेस

मधुबनी रेलवे स्टेशन को मिथिला पेंटिंग से सजाने के बाद अब धीरे-धीरे रेलवे मिथिला की सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत, मिथिला पेटिंग के रंग में रंगता जा रहा है| दरभंगा से नई दिल्ली जाने वाली बिहार संपर्क क्रांति एक्सप्रेस के नौ डिब्बों को मधुबनी पेंटिंग के रंग में रंगा गया है। बिहार की संस्कृति को समेटे दरभंगा से चलकर नौ डिब्बों के साथ यह ट्रेन जब शुक्रवार को नई दिल्ली पहुंची तो हर कोई इसकी खूबसूरती निहारने लगा।

बोगियों पर मिथिला पेंटिंग को पिछले एक महीने में 50 से अधिक महिला कलाकारों ने मिल कर बनाया है| हालांकि, अभी पूरी ट्रेन पर यह पेंटिंग नहीं हुई है| लेकिन, धीरे-धीरे ट्रेन की सभी कोचों पर यह पेंटिंग किया जा रहा है|

मीडिया से बात करते हुए DRM रविंद्र जैन ने कहा कि यह ट्रेन जिस रेल रूट से गुजरेगी, उधर ही मिथिला पेंटिंग का प्रचार -प्रसार होगा| इससे न सिर्फ मिथिला पेंटिंग को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि ट्रेन की खूबसूरती भी बढ़ गयी है| वहीं, ट्रेन में सफर करने वाले लोग अपने आप को गौरवान्वित भी महसूस कर सकते है| उन्होंने बताया कि रेलवे ने इसे एक प्रयोग के रूप में शुरू किया है| इसके परिणाम अच्छे आने पर, आने वाले दिनों में और भी ट्रेनों की बोगियों पर मिथिला पेंटिंग की जायेगी| इधर उद्घाटन के पहले दिन इस ट्रेन में सफर करनेवाले लोग भी न सिर्फ खुशकिस्मत मान रहे है| तो वहीं, रेलवे के इस प्रयास की प्रशंसा भी कर रहे है| पहली बार मिथिला पेंटिंग से सजी ट्रेन के पहली बार पटरी पर आने से मिथिला पेंटिंग करने वाले महिला कलाकार काफी उत्साहित नजर आये|

मधुबनी स्टेशन पर की गई थी पेंटिंग
बिहार संपर्क क्रांति की बोगियों को सजाने का काम महिला कलाकारों ने किया है। बता दें कि इससे पहले भारतीय रेलवे द्वारा ‘रेल स्वच्छ मिशन’ के तहत मधुबनी स्टेशन की दीवारों पर भी इसी तरह की पेंटिंग बनाई गई थी। इस स्टेशन में सफाई अभियान चलाया गया था, जिसमें कलाकारों ने वेतन की मांग न करते हुए 14 हजार वर्ग फीट की दीवार तो ट्रेडिशनल मिथिला स्टाइल में पेंट किया था।

इस स्टेशन की दीवारों और फुटओवर ब्रिज पर यहां की परंपरागत मधुबनी पेंटिंग बनाई गई है। इस वजह से अब मधुबनी स्टेशन यात्रियों के आकर्षण का खास कारण बन गया है। दूर-दूर से लोग इस पेंटिंग को देखने आते हैं।

 

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कभी देवघर के बाबा धाम मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित था, जानिए कैसे मिला प्रवेश का अधिकार

देवघर के बाबा धाम मंदिर के लिए वर्षों बाद सरदार पंडा का चुनाव हो रहा है। सरदार पंडा की बात चली तो दरभंगा महाराज और सरदार पंडा के बीच हुए एतिहासिक समझौते की कहानी याद आयी। बात उस जमाने की है जब दलितों को मंदिर में प्रवेश नहीं था।

श्रीकृष्ण सिंह ने दरभंगा महाराज से मंदिर में दलितों के प्रवेश को लेकर चल रहे आंदोलन को समर्थन देने का आग्रह किया। कामेश्वर सिंह ने कहा कि दलितों को समान दर्जा देने की हमारी कुलनीति रही है। जैसा कि आप जानते हैं कि हमारे पिता महाराजा रमेश्वर सिंह ने इलाहाबाद कुंभ में दलितों को स्नान का अधिकार दे चुके हैं, हम चाहेंगे कि दलितों को शिवालय में प्रवेश का अधिकार मिले। श्रीकृष्ण सिंह ने कहा कि सरदार पंडा विरोध कर रहे हैं।

महाराजा ने कहा कि मैं उनसे बात करता हूं, वो मंदिर के स्वामी हैं, लेकिन मंदिर के दरबाजे पर दरभंगा लिखा है और दरभंगा का दरबाजा किसी के लिए बंद नहीं होता…वो दलितों के लिए खुल जायेगा। मंदिर में लगे चांदी के दरबाजे पर लिखे वाक्य आज भी इसके गवाह हैं। गौरतलब है कि बाबा मंदिर का दरबाजा जहां दरभंगा महाराजा का लगाया हुआ है वही परिसर का गेट बनैली राज परिवार का बनाया हुआ है। यह इलाका गिद्धौर में आता है लेकिन इस मंदिर का स्वामित्व दरभंगा के पास रहा है।

मंदिर को दलितों के लिए खोलना आसान नहीं था। 1934 में गांधी के विरोध से लेकर 1953 में बिनोबा भावे की पिटाई तक का इतिहास बताता है कि यह समझौता कितना कठिन था।

क्यों कि वहां पंडा संस्कृति थी और सरदार पंडा ही मंदिर का स्वामी होता था। सरदार पंडा अपने इकलौते पुत्र विनोदानंद के भविष्य को सुरक्षित करना चाहते थे। महाराजा ने उनके राजनीतिक संरक्षण का वायदा किया। विनोदानंद झा को कांग्रेस की सदस्यता दिलायी गयी। संविधानसभा का सदस्यो बनाया गया। 1949 में इस मंदिर को महाराजा कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के तहत निबंधित किया गया था। इसके बाद भी सरदार पंडा राजी नहीं हुए। अंतत: बिनोदानंद को श्रीबाबू का उत्तराधिकारी बनाने पर समझौता हुआ…।

वैसे दलितों के प्रवेश के लिए शैव संप्रदाय के इस मंदिर को साक्त संप्रदाय की देवी मंदिर से गंठबंधन किया गया। पहले दोनों मंदिर के बीच फीता नहीं तना होता था।

श्रीबाबू और दरभंगा महाराज के निरंतर प्रयास से ही यह सब सभव हो सका। गौरतलब है कि श्रीबाबू के उत्तराधिकारी बनाने की बात जब आयी तो बिनोदानंद झा का नाम सबसे ऊपर रखा गया…यह सब अचानक नहीं हुआ…

– कुमुद सिंह (लेखक इसमाद की संपादक है)

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खुशखबरी: अब इंतज़ार होगा खत्म, बस अगले कुछ ही महीनों में शरू हो जायेगा दरभंगा एयरपोर्ट

पटना एयरपोर्ट से भी पहले निर्मित दरभंगा एअरपोर्ट का आखिरकार फिर से अच्छे दिन आने वाला हैं| एक बार फिर से दरभंगा एअरपोर्ट से हवाई सेवा शुरू होगी| दरभंगा स्थित वायु सेना केंद्र को मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘UDAN’ में शामिल किया गया है, जिसको लेकर कवायद तेज हो गई है|

 सिविल एविएशन मंत्रालय के हालिया ट्वीट के अनुसार जनवरी 2019 तक दरभंगा से हवाई सेवा फिर से शरू हो जाने की उम्मीद है| यही नहीं, हाल ही में दरभंगा एयरपोर्ट के रनवे के जीर्णोद्धार के लिए टेंडर जारी किया गया है|

इस संबंध में एक समीक्षा बैठक की गई है| जिसकी अध्यक्षता नागर विमानन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने की| मिली जानकारी के मुताबिक दरभंगा से मुंबई, दिल्ली और बैंगलोर के लिए विमान उड़ान भरेंगे|

ज्ञात हो कि दरभंगा में एयरपोर्ट की बात भारत सरकार के उड़ान योजना से संबंधित ह| दिल्ली में पिछले साल 24 दिसंबर को हुए मिथिला समाज के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि जल्द ही दरभंगा से लोग उड़ान सेवा का लाभ उठा पाएंग| इसके बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 93वें जन्मदिन पर दिल्ली में आयोजित अटल-मिथिला सम्मान कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि कहा था कि बहुत जल्द दरभंगा में एयरपोर्ट बनने की दिशा में केंद्र सरकार आगे बढ़ेग|

दरभंगा के एयरपोर्ट का इतिहास

दरभंगा के एयरपोर्ट का इतिहास बहुत पुराना रहा है|दरभंगा महाराज के समय 1962 से 1972 तक यहां से हवाई जहाज उड़ान भरते थे| जवाहर लाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, मदन मोहन मालवीय जैसे कई कद्दावर नेता दरभंगा महाराज के हवाई जहाज में यात्रा कर दरभंगा पहुंचे थे| 1972 के लंबे अरसे के बाद फिर एकबार यहां से हवाई परिचालन शुरू होने जा रही है|

खुशखबरी: बिहार के दरभंगा हवाई अड्‌डे से वायु सेवा जल्द होगा बहाल

एक बार फिर बिहार के दरभंगा शहर से हवाई सेवा शुरु होने की उम्मीद बढ़ गई है। विमानन कंपनियों द्वारा रूची दिखाने के बाद केंद्र सरकार ने भी दरभंगा हवाई अड्‌डे से वायु सेवा बहाल करने की कवायद तेज कर दी है।

शुक्रवार को एयरपोर्ट पर हवाई सेवा की शुरुआत के लिए एयरपोर्ट ऑथोरिटी ऑफ इंडिया और डीजीसीए की चार सदस्यीय टीम ने दरभंगा एयरफोर्स के कमांडेंट के साथ जायजा लेकर बैठक करते हुए अपनी रिपोर्ट तैयार की है जिसे वह जल्द ही सरकार को सौंपेगी। इसके तहत दरभंगा एयरपोर्ट के विकास लिए सौ करोड़ रुपये केंद्र सरकार खर्च करेगी।

हवाई अड्डा में बैठक करते एयरपोर्ट ऑथोरिटी ऑफ इंडिया और डीजीसीए की चार सदस्यीय टीम।

एयरपोर्ट ऑथोरिटी ऑफ इंडिया (एएआइ) की ओर से हाल ही में आरसीएस या उड़ान योजना के लिए जो 141 रूट की सूची जारी की है, उसमें दरभंगा से दिल्ली और बैंगलोर रूटेें भी शामिल है। रूट का चयन विमानन कंपनियों की ओर से डाले गये शुरुआती प्रस्ताव के आधार पर किया गया है। हालांकि, दरभंगा एयरपोर्ट से जिन दो रूटों में हवाई सेवा शुरू करने का प्रस्ताव रखा गया है, वे गैर आरसीएस योजना के तहत आयेंगे। इस योजना में अधिकतम एक घंटे तक की उड़ान सेवाओं को शामिल किया जाना है।

दरभंगा स्थित हवाई अड्डे को सिविल इन्क्लेव के तौर पर तैयार करने की कवायद भी शुरू हो गई है। वहीं, बिजली पानी की व्यवस्था को दुरुस्त करने पर टीम ने गहन विचार विमर्श किया। मुख्यद्वार को तत्काल चालू रखने पर टीम ने सहमति जताई है लेकिन प्रदेश सरकार को भूमि अधिग्रहण के लिए भी रिपोर्ट भेजने की बात सामने आई है।

टीम के सदस्यों में इंजीनियरिंग सिविल पटना एयरपोर्ट के उप महाप्रबंधक नागेंद्र कुमार चौधरी, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर पटना एयरपोर्ट के एजीएम यूके राय, एजीएम संतोष कुमार कोलकाता एयरपोर्ट से एके मंडल के साथ ही स्थानीय दरभंगा एयरपोर्ट के स्टेशन कमांडर कैप्टन दीपक नेरकर ने निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट मुख्यालय भेजने की प्रक्रिया शुरू की है। इसमें रनवे को और बेहतर करने की कवायद के बीच इसकी लंबाई बढ़ाने पर भी विचार किया गया। तत्काल रनवे को ही उपयोग करने पर ही सहमति बनी है। यात्रियों के आने जाने ठहरने के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए राज्य सरकार को रिपोर्ट भेजी जा रही है। यात्री सुविधा के लिए तत्काल एयरफोर्स के ही टर्मिनल को उपयोग में लाया जाएगा। भूमि अधिग्रहण के साथ यात्रियों को प्लेन तक लाने-ले-जाने के लिए बस की सुविधा भी बहाल होगी।

 

एक जमाना था जब रॉल्‍स के अलावा दूसरी गाडी खरीदना दरभंगा की शान के खिलाफ था

रॉल्स एक गाडी नहीं है, यह समृद्धता की पहचान है. पिछले सौ साल से यह पहचान बदली नहीं है। आजादी के पहले भी रॉल्स का होना उतनी ही समृद्धता को दर्शाती थी, जितनी आज। व्यक्ति से शहर और शहर से प्रदेश की समृद्धता देखी जाती है। बेशक दरभंगा के प्रवासी के पास आज भी राल्स हैं, लेकिन दरभंगा में आज एक भी रॉल्स नहीं है. दरभंगा के प्रवासी समृद्ध हैं, लेकिन दरभंगा अब समद्ध नहीं रहा|
वो जमाना था, जब तिरहुत सरकार की बात तो छोडिए दरभंगा मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य हो या शिवनंदन प्रसाद अग्रवाल जैसे दरभंगा के बडे कारोबारी, सबके पास थी तो केवल रॉल्‍स..।

उस वक्‍त रॉल्‍स के अलावा दूसरी गाडी खरीदना दरभंगा की शान के खिलाफ था| नैनो खरीद कर विकास का पाठ पढानेवाले आज रॉल्‍स को पूरी तरह भूल चुकें हैं|

तिरहुत सरकार महाराजा कामेश्‍वर सिंह की कंपनी वाल्‍डफोड न केवल भारत में रॉल्‍स की वितरक थी, बल्कि उनके पास रॉल्‍स की एक से एक गाडिया थी। बेंटली ने सौ साल से अधिक पुराने अपने इतिहास में केवल तीन स्‍पोर्टस कार बनायी, जिनमें से दो भारत के लोगों ने खरीदा। तीन में से एक कार दरभंगा की सडकों पर चलती थी। 1951 में जब भारत के राष्‍ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद दरभंगा आये थे तो उनके काफिले में 34 रॉल्‍स गाडियां शामिल थी, जो उस वक्‍त का सबसे समृद्ध निजी काफिला माना गया था।

भारत के राष्‍ट्रपति जब पिछले दिनों दरभंगा आये थे तो उनके काफिले में रॉल्‍स की बात तो दूर 14 एम्‍बेसडर भी प्रोटोकॉल के तहत उपलब्‍ध नहीं हो पाया।

दरभंगा के आयुक्‍त पडोसी प्रमंडलों से गाडी की भीख मांगते रहे। किसी एक व्यक्ति की दरिद्रता ने शहर को दरिद्र बना दिया, प्रदेश को दरिद्र बना दिया. यह भारत के दूसरे शहरों में आपको शायद ही देखने को मिले।


सवाल ये नहीं है कि महाराजा कामेश्‍वर सिंह की वो कंपनी बंद हो गयी, सवाल ये भी नहीं है कि महाराजा कामेश्‍वर सिंह की सभी गाडिया बिक गयीं, सवाल है कि आज दरभंगा में एक भी रॉल्‍स क्‍यों नहीं है..। दरभंगा के दूसरे समृद्ध परिवारों की बात तो छोड दीजिए,

महाराजा कामेश्‍वर सिंह ने अपनी वसीयत के तहत 10 रॉल्‍स तिरहुत की जनता को देने को कहा था…पता नहीं वो किसे मिला..जिला प्रशासन भी इस पर खामोश है।

शहर का विकास हो रहा हैं..हम विकास कर रहे हैं। रॉल्‍स इसी देश में किसी दूसरे शहर में दरभंगा का उपहास कर रहा है, बिहार का उपहास कर रहा है |


लेखक: कुमुद सिंह, सम्पादक, इस्माद 

तहखाने से मिथिला यूनिवर्सिटी तक : बदलते रहे हम मौसम की तरह —

तिरहुत सरकार के तहखाने से मिथिला यूनिवर्सिटी तक का सफर करीब 210 साल पुराना है। इसका इतिहास शुरु होता है 1806 के आसपास से।

राजा नरेंद्र सिंह के दत्‍तक पुत्र प्रताप सिंह भी नि:संतान थे और उन्‍होंने माधव सिंह को दत्‍तक पुत्र बनाकर तिरहुत का युवराज घोषित किया था। राजा नरेंद्र सिंह की रानी पद्मावती प्रताप सिंह के इस फैसले से नाराज हुई और उन्‍होंने माधव सिंह को तत्‍कालीन राजधानी भौडागढी में प्रवेश प्रतिबंध लगा दिया। कहा जाता है कि माधव सिंह की हत्‍या की साजिश भी रची गयी और माधव सिंह इस दौरान बनैली राज घराने में पनाह पाये थे। अपने दत्‍तक पुत्र माधव सिंह के लिए प्रताप सिंह ने तिरहुत की राजधानी भौडा गढी से दरभंगा स्‍थानांतरित किया। रामबाग स्थित परिसर को नूतन राजधानी क्षेत्र के रूप में विकसित किया। सिंहासन संभालने के बाद माधव सिंह ने न केवल राज्‍य की सीमा का विस्‍तार किया, बल्कि खजाना भी बडा किया। रानी पद्मावती के निधन के बाद भौडागढी से राज खजाना दरभंगा स्‍थानांतरित हुआ, लेकिन खजाने के लिए ढाचागत आधारभूत संरचना महाराजा छत्र सिंह के कार्यकाल में ही बन पाया।
महाराजा छत्र सिंह डच वास्‍तुशिल्‍प से अपने लिए छत्र निवास पैलेस, एक तहखाना और 14 सौ घुरसैनिकों के लिए एक अश्‍तबल का निर्माण कराया। 1934 के भूकंप में तहखाना क्षतिग्रस्‍त हो गया।

तत्‍कालीन महाराजा डाॅ सर कामेश्‍वर सिंह ने मोतिबाग स्थित तहखाने की जगह नूतन सचिवालय का निर्माण कराया। करीब 7 हजार कर्मचारियों वाले सरकार ए तिरहुत का यह सचिवालय मुगल और राजस्‍थानी वास्‍तुशैली का अदभुत मिश्रण है।

कामेश्‍वर सिंह ने इस नूतन सचिवालय को पुराने तहखाने से कुछ बडा आकार दिया, क्‍योंकि वो इसे एक स्‍वतंत्र राज्‍य के सचिवालय के साथ ही विधायिका के लिए भी ढाचागत संरचना तैयार करना चाहते थे। इस लिए पटना की तरह सचिवालय के पूर्व विधायका के लिए ढाचा तैयार कराया गया, जो एक दूसरे से इंटर कनेक्टे है। हेड आफिस के नाम से विख्यात इस कार्यालय में प्रधान सचिव और वित्‍त सचिव का कार्यालय कक्ष अाज भी सुविधा और सुंदरता के मामले में बिहार सचिवालय से बेहतर साबित होता है। इतना ही नहीं, इसका प्रोसिडिंग रूम को गैलरी से देखने पर अाज भी उसकी सुंदरता आंखों मेंं जम जाती है।

कहा जाता कि कोलकाता के रिजर्व बैंक के बाद संयुक्‍त बंगाल का यह सबसे बडा तहखाना था। तिरहुत सरकार की अकूत संपत्ति से भडा यह तहखाना 1962 तक भारत का सबसे समृद्ध व्‍यक्तिगत खजाना था।

तहखाने का लॉकर लंदन से खास तौर पर मंगाया। 1950 में जमींदारी जाने के बाद तिरहुत सरकार का यह सचिवालय, राज दरभंगा नामक कंपनी का मुख्‍यालय में बदल गया। बिहार के सबसे बडे कारोबारी रहे पूर्व सांसद डा कामेश्‍वर सिं‍ह की करीब 34 कंपनियोें का संचालन इसी परिसर से हुआ करता था। महाराजा कामेश्‍वर सिंह की मौत के बाद जहां एक एक कर कंपनियां बंद होती गयी, वहीं 1963 में इस तहखाने को भी लगभग खाली कर दिया गया। 15 सौ किलो जेवरात महज 2 लाख 80 हजार रुपये में तत्‍कालीन वित्‍तमंत्री मोरारजी दसाई के करीबी मुंबई के एक कारोबारी को बेच दिया गया।

1975 में इस पूरे परिसर को बिहार सरकार ने अधिग्रहण किया। तिरहुत सरकार के तहखाने, सचिवालय और कंपनी मुख्‍यालय का सफर तय करते हुए यह परिसर एक विश्‍वविद्यालय के रूप में आज हम सबके सामने है। 1972 में तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री केदार पांडेय ने दरभंगा के मोहनपुर में मिथिला विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना की थी। 1976 में जगन्‍नाथ मिश्रा की इच्‍छा से मिथिला विश्‍वविद्यालय मोहनपुर से इस परिसर में स्‍थानांतरित हुआ और पूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र का नाम इसमें जोडा गया। अधिग्रहण के समय किये गये वादे के तहत सरकार ने पूरे परिसर का नाम कामेश्‍वर नगर रखा।

इस प्रकार वर्तमान में यह ललितनारायण मिथिला विश्‍ववद्यालय का मुख्‍यालय, राज तहखाना और बिहार राज्‍य अभिलेखागार भवन है, जो कामेश्‍वर नगर में स्थित है। मिथिला में आये हर बदलाव को इस परिसर के इतिहास में महसूस किया जा सकता है।

जब यह इलाका राजवारों का था तो ये तहखाना था। जब ये इलाका कारोबारियों का था जो यह कंपनी का मुख्‍यालय था, जब यह इलाका केवल शिक्षा का केंद्र रह गया तो यह विश्‍वविद्यालय का मुख्‍यालय बना दिया गया..

अब तो मिथिला मे केवल राजनीति बची है, तो यह राजनीति का सबसे बडा अड्डा बन चुका है।


लेखक – कुमुद सिंह, संपादक, इस्माद

पटना से भागलपुर, दरभंगा और पुर्णियां समेत पांच जिलों के लिए हवाई यात्रा जल्द होगी शुरू

बिहार के पांच जिलों के लिए बहुत ही अच्छी खबर आ रही है ।

भागलपुर समेत राज्य की पांच हवाई पट्टी क्षेत्रीय एयरपोर्ट के रूप में विकसित होंगी। यहां से शीघ्र उड़ानें शुरू होंगी। रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम के तहत पूर्णिया, भागलपुर, दरभंगा, वाल्मीकि नगर और सहरसा का चयन किया गया है। ये हवाईपट्टी फिलहाल गया और पटना एयरपोर्ट से जुड़ी रहेंगी।

 

आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नागर विमानन मंत्री अशोक गणपति राजू की मौजूदगी में स्कीम पर हस्ताक्षर होंगे। केंद्रीय नागर विमानन मंत्री आज सुबह 10 बजे पटना एयरपोर्ट पर पहुंचेंगे और दोपहर 12 बजे संवाद भवन में आयोजित एमओयू कार्यक्रम में भाग लेंगे।

बिहार सरकार लैंडिंग पार्किंग और नाइट हाल्ट का शुल्क नहीं लेगी। क्षेत्रीय एयरपोर्ट पर नन शिड्यूल परिचालन होगा। हवाई पट्टी पर बिजली, पानी और पार्किंग सहित मूलभूत एं बिहार सरकार उपलब्ध कराएगी।

बिहार सरकार की तरफ से कैबिनेट सचिव ब्रजेश मेहरोत्र और नगर विमानन मंत्रलय की तरफ से संयुक्त सचिव उषा पाडी मौजूद रहेंगी। नगर विमानन मंत्रलय के सचिव आरएन चौबे, एयरपोर्ट अथॉरिटी के चेयरमैन डा. जीपी महापात्र भी पटना पहुंच गए हैं।