उगते सूर्य को ही नहीं डूबते सूर्य को भी हमारा समाज करता है नमस्कार

“छठ पर्व” नाम सुनने मात्र से मन में उमंग का छा जाना स्वभाविक है। यह पर्व अब केवल बिहार व यूपी का ही नहीं अपितु अन्य जगहों पर भी मनाया जाने लगा है। छठ पर्व से एक मास पूर्व ही छठ के गीत कानों को आनंद व मन को सुकून प्रदान करने में अहम भूमिका निभाने लगते हैं। छठ गीत मन को जितना सुकून देता है उतना ही वातावरण में आनंद का संचार करता है। छठ पर्व का असल आनंद गाँव में देखने को प्राप्त होता है, जब छठ व्रती छठ घाट पर चलने के लिए क़दम बढ़ाती हैं तो यूं लगता है कि छठी माई भी उनके संग क़दम से कदम मिलाकर चल रही हैं। पूरे वातावरण में आनंद का रंग बिखर जाता है।

चाहे धनवान हो या अति निर्धन सबके माथे पर बाँस की टोकरी में प्रसाद के रुप में ठेकुआ, पिड़िकिया व भाँति-भाँति के फल अवश्य ही मौजूद रहते हैं।

निर्धन परिवार के मुख्य सदस्य बेशक स्वयं के लिए नवीन कपड़े न खरीदें परंतु अपने परिवार के सदस्यों के लिए निश्चित ही खरीदते हैं चाहे इसके लिए उन्हें छठ से पूर्व कठिन श्रम अधिक ही क्यों न करनी पड़े। छठ घाट जाने से पूर्व जब गाँव के बच्चे नये कपड़े पहनकर घर से बाहर दोस्तों के बीच आते हैं तो उनके चेहरे पर ख़ुशी देखते बनती है। बच्चों के चेहरे पर ख़ुशी की मात्रा सर्वाधिक होती है छठ पूजन के दिन।

जहाँ एक ओर विश्व के अन्य हिस्सों में उगते सूरज को सभी बारम्बार नमस्कार किया जाता है वहीं हमारा भारत एक मात्र ऐसा देश है जहाँ छठ पूजन के दिन न केवल उगते सूर्य को बल्कि डूबते सूर्य को भी हाथ जोड़कर बारम्बार प्रणाम किया जाता है।

छठ व्रती संतान की दीर्घायु व परिवार की ख़ुशी हेतु सूर्य देव से प्रार्थना करती हैं तो उनके चेहरे पर सुकून की लकीर खींच जाती है उस क्षण। यूं लगता है छठ व्रती स्वयं छठी माई से वार्तालाप कर रही हैं।

लोक आस्था के इस पावन पर्व की खूबसूरती का बखान जितना किया जाए कम है। इस पावन पर्व में छठ व्रती निर्जला उपवास करती हैं। विविध नियमों का पालन करते हुए छठ व्रती स्वयं को सौभाग्यशाली समझती हैं। नहाय खाये के अगले दिन खरना व ठीक उसके अगले दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य व अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करती हैं छठ व्रती।

कुमार संदीप

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छठ महापर्व आस्था के साथ सामाजिक कुरीतियों को बदलने का भी है प्रतीक

  आज पूरे विश्व में छठ महापर्व हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह पर्व भारत के मुख्यतः बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, तथा नेपाल के कुछ जिलों में मनाया जाता है। वैश्वीकरण के युग में बिहारी डायस्पोरा ने इसे भारत के साथसाथ विश्व के भी हरेक कोने में फैला दिया है।

छठ पूजा का उदय

यदि हम बात करे कि छठ पूजा की शुरुआत कब हुई थी तो यह पता लगाना बहुत ही मुश्किल है। हमारे समाज में छठ पूजा को लेकर अन्य दन्त कथाएं प्रचलित है। कुछ लोग यह मानते हैं कि यह पूजा सबसे पहले सीता ने किया था जब राम ने रामराज्य की स्थापना की थी।

कुछ यह मानते हैं कि इसके साक्ष्य महाभारत में भी मिलते है, यह पूजा कुंती ने तब किया था जब वह अपने पांचों बच्चों के साथ लाख गृह से सही सलामत वापस आ गयी थी। कुछ इसे ऋगवेद से जोड़ते हैं और कहते हैं कि सूर्य को पूजने की परंपरा की शुरुआत तब से ही हुई थी। लेकिन एक तपका यह भी है जो इसे हिंदू पर्व न मानते हुए कहते है कि इस पर्व की शुरुआत आदिवासियों ने की थी, सूर्य, अग्नि, जल की पूजा आदिवासी शुरू से करते आ रहे हैं जिसे समाज के हिंदूओं ने एडाप्ट कर लिया है। हमारे बीच ऐसे भी तथ्य आते है कि इस पूजा का संबंध कृषि से है और अच्छी फसल होने पर हम प्रकृति का धन्यवाद ज्ञापन करते है।

बहरहाल यह बताना बहुत ही कठिन है कि छठ पूजा की शुरुवात कहाँ से हुई लेकिन यह बात तो साफ है कि लोग प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त करते है।

छठ पूजा अलग क्यों है?

छठ पर्व बहुत ही चर्चित मिथक को तोड़ने में सफल रहा है कि ‘डूबते हुए सूरज को कौन सलाम करता है?’ छठ पूजा में लोग सूर्यास्त और सूर्योदय दोनों को सलाम करते हैं। छठ पूजा के लिए घाट सार्वजनिक होते है जहां पर समाज के हर वर्ग के लोग आ कर अपना त्योहार मना सकते है। यह पर्व पूरे समाज में भाईचारा और सुखसौहार्द को बढ़ावा देता है। 

छठ पूजा सामाजिक कुरीतियों को तोड़ने में सहायक

हर साल की तरह इस बार भी बिहारी गायक छठ पूजा और नएनए गीत लेकर आए, लेकिन इस बार यदि हम बहुचर्चित गायक अक्षरा सिंह का गाना सुनते हैं तो उन्होंने बिहार के डोम जाति पर गाना बनाया है और समाज में यह सन्देश दिया है कि जिस डोम के हाथ का बना हुआ सूप में अर्घ देते है वही डोम समाज में अछूत कैसे हो सकते हैं। वही दूसरी ओर महामंडलेश्वर कनकेश्वरी नन्दगिरी, किन्नर अखाड़ा की ओर से एक गीत यूट्यूब पर धूम मचाए हुए हैं जो यह सन्देश देता है कि समाज में किन्नर समुदाय भी आम जनता का हिस्सा है उन्हें भी इस पूजा में शामिल होने का उतना ही अधिकार है जितना बाकी लोगों को।

वास्तविकता में यह बात कितना सही है यह पता लगाना मुश्किल है लेकिन इस तरह के गाने समाज पर जरूर ही सकारत्मक प्रभाव छोड़ते हैं।

इस पर्व को सभी लिंग के लोग मनाते हैं यह पर्व केवल महिलाओं तक सीमित नही है। इसके अनुष्ठान को पुरुष भी सपन्न कर सकते है। अन्य पर्वों में मूर्ति पूजा को प्रधानता दी गयी है लेकिन इस पर्व में प्रकृति को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसी पर्व के कारण ही लाख आधुनिकता आने के बाद भी हमारे बीच चूल्हा, ठेकुआ, लौकीभात को जिंदा है। यह पर्व समाज को और लोगो को अपने घर से जुड़े रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

ऋतु

शोधार्थी (दिल्ली विश्वविद्यालय)

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कोरोना और बाढ़ ने न जाने कितने ख्वाब डूबा दिए मगर नहीं डूबी बिहारियों की छठ को लेकर आस्था

 “कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय
होई ना बलम जी कहरिया बहंगी घाटे पहुंचाय
कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय…”

ये छठ गीत सुनते ही आप भी गुनगुनाने लगे ना?

यही तो छठ है, यही तो है जो इस महापर्व को जीवन्त बनाता है| सालभर मेहनत करके कटने वाली जिंदगी में छठ के ये चार दिन होते हैं, जब हर बिहारी जिंदगी काट नहीं रहा होता है अपितु खुलकर जी रहा होता है।

छठ के बारे में क्या कहें, कितना कहें और कैसे कहें? छठ तो भावनाओं का सैलाब है| फिर भी हम सफेद कागज पर कलम की नोक के नीचे छठ के किस्सों को दबाने का दुस्साहस कर रहे हैं।

कितने जिद्दी होते हैं ना हम बिहारी!

हम देश के उस हिस्से से हैं, जिसके वैश्विक महामारी कोरोना के विष को पीने के साथ बाढ़ की विभीषिका में तबाह होने के ताजा किस्सों में एक ओर जहां दुनिया गोता लगा रही थी, वहीं हम लोग इस डरावने ख़्वाब से निकलकर छठ की तैयारियों में पूरे उल्लास के साथ फिर से जुट गए। इस साल कॉरोना और बाढ़ ने न जाने कितने गांव,कितने शहर,कितने मोहल्ले, कितनी ज़िंदगियाँ और न जाने कितने ख्वाब डूबा दिए, पर जो नहीं डूबा,वह हम बिहारियों की छठ को लेकर आस्था|

छठ ‘मैं’ नहीं, ‘हम’ का पर्व है| यह हमारे अंदर के अहम को मारता है और हम को जिंदा करता है| छठ एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें उगते और डूबते सूर्य दोनों को पूजा जाता है। डूबते सूर्य को हम इसलिए पूजते हैं क्योंकि हम परिस्थितियों के उतार-चढ़ाव को समझते हैं, संघर्षों को पूजते हैं|

डूबता सूर्य जीवन के संघर्ष का प्रतीक है| वहीं उगते सूर्य की लालिमा में संघर्ष के बाद की जो सफलता मिलती है, हम उसे पूजते हैं।

मालूम नहीं दुनिया में जात-पात का विष कब खत्म होगा, पर छठ एक ऐसा पर्व है जो इन बेड़ियों को तोड़ता है। छठ में उपयोग की जाने वाले सूप को बनाने वाले लोग समाज के ऐसे वर्ग के होते हैं, जिन्हें लोग हेय की दृष्टि से देखते हैं। जब कार्तिक मास के ठंडे पानी में छठ व्रती अपने हाथों में उसी सूप को ऊंचाई पर रखकर अर्ध्य दिलाती है, तो महापर्व के लिहाज से यह सूप बनाने वाली जाति कितनी ऊंची है यह भी पता चलता है| साथ ही छठ के पीछे के अनगिनत खूबसूरत संदेश भी एहसासों में बस जाते हैं।

छठ स्त्री प्रधान पर्व है, ये लिंगभेद को बिना ‘फेमिनिस्ट बैनर’ के सदियों से तोड़ते आ रहा है

लाल-पीला पार वाली साड़ी और नाक पर सिंदूर का श्रृंगार करके घाट के किनारे खड़े होने वाली माओं को देवियों के रूप में पूजी जाती है। यह पर्व जितना सूर्यदेव का है, उतना ही छठ माई का है| न जाने कितनी बेड़ियां टूटती हैं इस पर्व में!

उन्होंने सदियों पहले नदियों को बचाने के लिए हमारी संस्कृति को उपहार के रूप में छठ पर्व दिया, हमने भी पीढियों से श्रद्धा के साथ इस पर्व को महापर्व रूप में बनाए रखा और “आज दुनिया में छठ,छठ का ‘ठेकुआ’ बिहारियों की पहचान है।”

बाहरी लोग अक्सर बोलते हैं कि हम बिहारी छठ पर ओवररिएक्ट करते हैं, अब कौन समझाए उन्हें छठ तो महज़ बहाना है, दुनिया भर की खुशियों को माई के आंचल में समेट लाने का…..❤

– शशांक शुभम (छात्र, कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)

छठ एकमात्र ऐसा महापर्व है जिसमें महिलाएं अपने खानदान के लिए बेटी मांगती है

देश में शायद बिहार एकलौता राज्य है जहां की महिलाएं साल भर में कम से कम एक दिन अपने खानदान के लिए बेटी मांगती है। छठ पर्व के पावन अवसर पर गाए जाने वाले गीतों में वे गाती हैं|

रूनकी झुनकी बेटी मांगीला,
पढ़ल पंडितवा दामाद, ए छठी मईया दर्शन दिहिन न अपान।

मतलब हमें घर में सिमटी-सकुचाई रहने वाली बेटी नहीं चाहिए बल्कि हमें ऐसी बेटी चाहिए जिनके कदमों की आवाज से सब कुछ गुंजता रहे और इन बेटियों के लिए जो वर मिले व पैसे वाला हो या नहीं पर पढ़ा-लिखा जरूर हो। केवल प्रार्थना गीतों में ही नहीं छठ पर्व के कई मौके पर बिहार के संस्कृति में महिलाओं के लिए समान प्रतीक देखने को मिलता है।

छठ के गीतों से भी यह साबित होते हैं। हमारे समाज में देवी के पूजा की पंरपरा है। छठ एक ऐसा त्योहार है जिसमें बेटियां मांगी जाती है। सदियों से स्त्री को शक्ति का रूप माना जाता रहा है। छठ भी इसी का ही एक उदाहरण है।

यानी पुरुष प्रधान समाज में सृष्टि की सृजनकार बेटियों को समर्पित है यह पर्व। आज जहां बेटियां न हों इसके लिए भ्रूण हत्याएं तक की जा रही हैं, उस दौर में छठ माई से बिहार ऐसी बेटियां मांगता है जो रुनकी झुनकी हो। अर्घ्य के साथ बेटी होने का वरदान मांगा जा रहा है। साथ ही इस बिहार को ऐसे बेटे चाहिए जो भले धनाढ्य न हों लेकिन पढे लिखे चाहिए। यानी पढे लिखे बेटे के साथ सरस्वती होगी तो लक्ष्मी झक्ख मारकर आएगी और जब ऐसे बेटे छठ माई से मंगी गई बेटियों के वर बनेंगे तो वह बेटी और दामाद तो सुखी होंगें ही।

यह एकमात्र ऐसा महापर्व है, जिसमें बेटियों के महत्व के बारे में बताया जाता है। एक और गीत है

’सांझ के देबई अरघिया, और किछु मांगियो जरूर,
पांचों पुत्र एक धिया (बेटी), धियवा धियवा मंगियो जरूर ’।

इस गीत में भी भगवान सूर्य से एक बेटी मांगी जा रही है।

छठ इन्हीं भिन्नताओं के कारण हम बिहारियों को आदर्श नागरिक बनने के लिए प्रेरित करता है। छठ में जहां डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हुए हम यह स्वीकारते हैं कि डूबना जीवन का सत्य है लेकिन पुनः उदय होना भी सच्चाई है, वैसे ही छठ के लोकगीतों में बेटियों के जन्म के लिए प्रार्थना करना यह दर्शाता है कि हम देवी पूजक हैं। बेटियों को भी वही स्थान मिला हुआ है जो पुरुष प्रधान समाज में बेटों को है। बेटियां भी ऐसी चाहिएं जो तेज तर्रार और दुनिया से कदम से कदम मिलाकर चले लेकिन वह अपनी सारी सफलताओं के बाद भी गर्व से कहे, हम बिहारी हैं और हमारी अस्मिता छठ है।

साभार: प्रियदर्शन शर्मा (संपादक, राजस्थान पत्रिका)

Chhath Puja: 5 Less-Known Facts About The Festival

Chhath Puja is one of the most awaited festivals for the Hindus living in the states of Bihar and Uttarpradesh. Considered as the most eco-friendly Hindu festival, Chhath Puja is quite tough to perform and the rituals have strict rules and regulations associated with them. Also known as Suryasasthi, the festival is dedicated to the sun and has great importance.

Some International places where Chhath Puja is celebrated include Fiji, Mauritius, South Africa, Guyana, Trinidad & Tobago, Suriname, Jamaica, the US, UK, Ireland, Australia, New Zealand, Malaysia, Japan, Macau, and Indonesia.

If you are totally unaware of the rituals of Chhath Puja, here are some of the less-known facts about the festival.

History of Chhath Puja

Chhath is a festival which is all about purity, devotion and offering prayer to Sun God; the exact origin of this festival is ambiguous but there are certain believes which connects to Hindu epics. Ramayana and Mahabharata are the two epics which are associated with Chhath Puja.

Chhath Puja’s Association with Ramayana

It is believed that Lord Rama is associated with the inception of Chhath Puja. It is said that when Lord Rama returned to Ayodhyana then he and his wife Sita observed a fast in honor of the Sun god and broke it only with the setting sun. It is one such ritual which is subsequently evolved in Chhath Puja.

Chhath Puja’s Association with Mahabharata

Famous Mahabharata character Karna is said to be the child of Sun god and Kunti. It is said that Karna usually use to offer prayer while standing in the water. However, there is another story which mentions how Draupadi and the Pandavas also performed the similar puja to get their kingdom back.

Scientific Significance of Chhath Puja

Chhath Puja is the best way to get your body detoxified as taking dips in water and exposing the body to sun increases the flow of solar bio electricity which improves the functionality of human body. It is also said that Chhath Puja helps to kills the harmful bacteria and prepares the body for the upcoming winter season.

Chhath Puja’s special Prasad

Parvaitin is required to offer special Prasad to the Lord Sun. Holy food includes Kheer, Thekua, rice laddu, dates, and fruits. Notably, during the festival, other family members cannot eat food with onions and garlic.

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Amidst the Dying Cultures, The Rising Culture of Chhath Puja  

In India, every state has a specific culture and they are different from each other. Yet, the unity among people from different cultures, depict the ‘unity in diversity’. Chhath Puja is one of those festivals.

It is celebrated in Bihar, Jharkhand, and Uttar Pradesh. As boundaries never bound the faith, so this festival is celebrated in the Madhesh region of Nepal also.

This festival is celebrated on the 6th day of Diwali and dedicated to Lord Sun and his sister Chhathi Maiyya. It is a way of thanksgiving to the sun for bestowing the bounties of life on earth along with celebration of homecoming of Chhati Maiyya.

The Vrati (people who fast for Chhath) keep the fast of 36 hours and it is a festival of 4 days, which starts on the 4th day after Diwali with “Nahaye Khaye”. After “Nahaye Khaye” next day is “Kharna” and then 1st Arag to the setting sun on “Shasti” (6th day) and 2nd Arag to rising sun on “Saptami” (7th day). The festival is celebrated twice a year, 1st in Chaitra (March or April) and then in Kartik (October or November, 6th day after Diwali).

Call for Homecoming

The festival is always linked with Bihar and most of the people from the state live outside, mostly to earn a livelihood and to pursue their higher studies. Be it to serve politics or any other reason, the state has lesser opportunities so, and people migrate from Bihar. Those who cannot take their family along live outside and send their earnings from time to time. But, it is considered that the entire family should be present to help Vrati and contribute their part in the rituals of Chhath Puja.

So, this festival becomes one of the reasons to unite the families in their hometown. It is very common to see people saying that, “Chhath par gaon nahin gaye, toh tyohaar waali feel nahi aati” (If don’t visit our hometown on Chhath Puja, it doesn’t feel like a festival). So, whenever there is Chhath Puja, people book their tickets to celebrate “Gaon Ka Chhath” (Chhath of Hometown).

Indian Railway and Govt. play their own role by running special trains to Bihar, Jharkhand and Uttar Pradesh during the festival. Also, they make special arrangements on stations as well as on the trains so, the people going to celebrate Chhath Puja, won’t face the problem.

High Media Coverage And Communal Harmony

Today in the time when cultures are dying and most of the festivals are celebrated just for the formalities, Chhath Puja is one of the cultures which are kept on rising.

Being children, we were very curious to know about, why Mom is keeping fast for so long? Why she cooks using the woods, even though we have LPG facilities?

Well, confusion started to set aside by the time as parents helped us to know the importance of all the rituals, performed in this festival. Media understood the nerves of the audiences, who celebrate this festival, and the government realized the value so, there is a holiday on Chhath Puja in many states. Be it any reason, targeting audiences or vote bank, but the way Chhath Puja has become so important that no one can ignore it.

Communal harmony is another reason which is indispensable to this puja and a reason for its popularity. Chhath Puja is not only celebrated by the Hindus, but Muslims take part equally with the same feeling of devotion and dedication, either they help the Hindus with their contribution in making Chhath Ghats.

Crossing borders of states

People do not migrate alone but, with their culture. The same goes for Chhath Puja. At one point of time, the festival was limited to fewer states and now, it is celebrated almost across India.

Now, people consider it divine to be a part of this great and pious festival. So, they contribute by decorating Chhath Ghats or by donating money to Chhath Puja Samitis.

Festivals are meant for unity and Chhath Puja does it in all the ways.

Happy Chhath Puja!

– Khushboo Kumari (She is a 3rd year journalism student at University of Delhi.)

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100 साल से महापर्व छठ की पूजा समाग्री बना रहा है छपरा का मुस्लिम परिवार

छठ पूजा वैसे तो मुख्यतः बिहार का पर्व है मगर यह पुरे देश-विदेश में मनाया जाता है| जहाँ-जहाँ बिहारी लोग काम करने गए हैं, वहां वे लोग अपने साथ छठ पूजा को भी साथ ले गयें हैं| वर्षों से बनाये जा रहे इस पर्व के प्रति लोगों की आस्था कमने के जगह और बढती जा रही है|

इस पर्व ने बिना अपना असली स्वरुप बदले एक लम्बा सफ़र तय किया है| इसने खुद को जाती-धर्म के दायरे से भी बाहर निकालने में सफल रही है| इसके कई उदाहरण आसानी से आपको मिल जायेंगें| उन्हीं उदाहरण में से एक है बिहार के छपरा जिले के एक गाँव का उदाहरण|

छठ पूजा में कई तरह के सामग्रियों का इस्तेमाल होता है| उसमें अरता का पात एक जरुरी समाग्री है| आपको जानकर हैरानी होगी कि इसका निर्माण ज्यादातर मुस्लिम (Muslim) परिवार करते हैं| छपरा के झौवां गांव के कई मुस्लिम परिवार पिछले 100 साल से छठ पूजन के लिए अरता पात बनाने में लगे हुए हैं| 

इस गाँव में अरता पात का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है और यहां से बिहार के साथ-साथ देश के कई अन्य जिलों में भी जाता है| इस गांव के रहने वाले शमीम अहमद बताते हैं कि उनका परिवार पिछले कई पीढ़ियों से इस काम में लगा रहा है और उनकी घर के बच्चे महिलाएं सभी मिलकर अरता का पात बनाते हैं|

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इस गांव में लोग 100 साल से इस काम को कर रहे हैं| अरता पात के साथ मजबून खातून| Photo Courtesy: News 18

छठ एक ऐसा पर्व है, जिसमें सभी धर्म के लोगों का सहयोग दिखता है| अब झौवां गांव के शमीम भाई को ही लीजिए| इनका परिवार पिछले 100 साल से अरता पात बनाने में लगा हुआ है| हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण पर्व में इन परिवारों की भूमिका काफी अहम होती है|

छोटे से गांव झौंवा की एक बड़ी आबादी इस काम में सालों भर लगी रहती है| वैसे तो कई अन्य पूजन कार्यों में भी सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन छठ के दौरान अरता पात की खपत काफी बढ़ जाती है| जिसके कारण इस वक्त यहां इसे बड़े पैमाने उत्पादन किया जाता है और यहां से बनने वाले पात देश के साथ-साथ विदेशों में भेजे जाते हैं|

इसे बनाने वालों का जीवन काफी कठिन
छपरा जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है झौंवा गांव, जहां छठ आते ही व्यापारियों की चहल-पहल बढ़ जाती है| व्यापारी अनिल बताते हैं कि यहां बनने वाले आरता पात को खरीदने के लिए दूसरे जिलों के लोग भी झौंवा गांव में पहुंचते हैं और यहां के लोगों को आर्थिक फायदा भी होता है| लेकिन, इस उद्योग के साथ एक काला सच भी जुड़ा हुआ है जो यहां के लोगों की जिंदगी को काफी कठिन बना देता है| अकवन के रुई से बनने वाला अरता पात यहां के लोगों में सांस संबंधित बीमारियां बढ़ा रहा है| इस गांव में टीवी के मरीज सबसे अधिक पाए जाते हैं|

बहरहाल, छठ को लेकर झौंवा गांव फिर सुर्खियों में है| यहां का बना अरता पात एक बार फिर बिहार के बाजारों में पहुंचने लगा है| आज परंपरा के साथ जुड़ा यह उद्योग कठिनाइयों के दौर से गुजरते हुए भी इस गांव का पहचान बन गया है और सांप्रदायिक सौहार्द्र का अनोखा मिसाल भी पेश कर रहा है|

रिपोर्ट: संतोष गुप्ता | श्रोत: न्यूज़ 18 हिंदी 

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‘सविता’ का ही दूसरा नाम है ‘छठी मैया’ जो बच्चों को अकाल मृत्यु से बचाती है

हर देवता जनमानस में संकट की घडी में लहर लेता एक महाभाव है। हर देवी-देवता का चेहरा एक महाभाव के मूर्तन की तरह पढना चाहिए – वीरता, सोंदर्य, न्याय और करुणा की मूर्तन की तरह।

हर देवता की एक शक्ति के साथ पूजा होती है। सूर्य की शक्ति का नाम ‘सविता’ भी है ।बिहार की लोक – परम्परा में ‘सविता’ का ही एक नाम ‘छठी मइया’ भी है।

सूर्य की किरणे ‘चर्म रोग’ का निवारक मानी जाती है और हड्डियो को विटामिन – डी पहुचाने का सबसे प्रमाणिक स्त्रोत है। बिहार में चेचक एक महामारी के रुप में आता था और बडी संख्या में बच्चे काल-कवलित हो जाते थे। छठी मइया या सूर्य शक्ति उसी के निवारक के रुप में मूर्तिमान है।

आज भी गांवो में ‘चेचक’ को ‘माई’ का ही स्थान दिया जाता है।

पुरुष सतात्मक समाज मे इतने बडे स्तर पर किसी शक्ति (सविता) का पूजा होना ‘नारी’ के अस्तितव को स्थापित करती है। वर्तमान में यह पर्व न केवल बिहार बल्कि प्रत्येक राज्य तथा विदेशो में भी बडे स्तर पर मनाया जा रहा है। हमारे समाज में अधिकतर पर्व महिलाओं के द्वारा किया जाता है। परन्तु ‘छठ पर्व’ बडी संख्या में पुरुषो के द्वारा भी किया जा रहा है, यह पर्व न केवल एक त्योहार के रुप में है बल्कि यह पर्व प्रकृति के अधिक अनुकूल लगता है, क्योंकि इसमे अराध्य देवता सूर्य की उपासना की जाती है, जो प्रकृति देवता के रुप में विद्यमान है।

बिना किसी पंडित, पुरोहित आदि के मदद लिए बिना सूर्य देवता की अराधना की जाती है। जल स्त्रोतों से मानव का जुडाव और उन पर निर्भरता का भी परिचायक है यह पर्व। किसानो के लिए यह पर्व खुशियां लेकर आता है, फसलो की कटाई और मौसमी फलों का प्रसाद के रुप में वितरण आदि।

यह पर्व बिना किसी भेद-भाव के चाहे वह प्राकृतिक स्तर पर हो, समाजिक स्तर पर हो पुरुष-स्त्री का भेद भाव आदि के बिना ही यह पर्व एक साथ एक ही स्थान पर मनाया जाती है। शायद इसीलिए इस पर्व को महापर्व कहा जाता है। छठ गीतों में ‘छठी मइया’ के अतिरिक्त दीनानाथ अर्थात दीनो के नाथ को सर्वाधिक संबोधित किया जाता है।

प्रत्येक गीतों में पुत्रों के साथ पुत्रियों को समान रुप से संबोधित किया जाता है। यह पर्व प्रकृति के अनुकूल समभाव के साथ मनाया जाता है। यह महापर्व पुरुष सतात्मक समाज में ‘शक्ति रुपी देवी सविता, छठी मइया’ का पूजा होना समाज में ‘स्त्री शक्ति’ के महत्व को बताता है। तथा मानव की प्रकृति से गहरा संबंध को दर्शाता है। यह पर्व समाज में शक्ति का अस्तितव किस प्रकार विद्यमान है यह बताता है। अभी भी यह पर्व अपनी मूल भावना के साथ मनाया जाता है। आस्था का यह पर्व अपनी अनेक विशेषताओं के साथ बहुत बडे स्तर पर मनाया जा रहा है ।

– निधि तिवारी (लेखिका बीएचयू में इतिहास की छात्रा है) 

दुनिया के सबसे कठिन साधना होला छठ महापर्व

दुनिया के लोग जब कबो सबसे कठिन साधना के चर्चा करेला त ओइमे छठ पूजा के नाम सबसे पहिले आवेला। छठ पूजा के नाम सुनते ही समस्त भोजपुरी भाषी समाज के रोम-रोम में जवन खुशी प्रकट होला ओके शब्दन में बतावल मुश्किल बा छठ बिहारी अस्मिता के पहिचान ह। प्रारम्भ में ई एगो आंचलिक पर्व के रूप में बिहार तक ही सीमित रहे बाकिर अब एके स्वरुप विस्तार होखत बा अउर झारखंड पूर्वांचल सहित भारत के कई हिस्सा में बड़ी आस्था के साथ मनावल जाता।

छठ के रउआ अगर एक शब्द में परिभाषित करेब त – ई प्रकृति प्रेम अउर लोक आस्था के एगो अनूठा संगम हवे जवन 4 दिन तक चलेला और ऐमे व्रत करे वाला लोग 36 घंटा के निर्जल साधना बड़ी नेक धर्म से करेला लो।

छठ पूजा के शुरुआत के बारे में कई गो लोक कथा प्रचलित बा जेइमे कहल बा की लंका विजय के बाद जब प्रभु राम माता सीता सहित अयोध्या लौटल लो तब उ अपना राज के सुख समृद्धि खातिर भगवान सूर्य के उपासना करके वरदान मंगले राहेलो। महाभारत कालीन सबसे बड़ योद्धा कर्ण के बारे में कहल गइल ह की उ कंधा तक पानी मे डूब के भगवान भाष्कर के अर्घ देत रहले ऐहपे प्रस्सन होके भगवान उनके कवच कुंडल प्रदान कइले रहले।

जूआ में राज पाट हारला के बाद माता कुंती अउर द्रोपति भी सूर्य उपासना करके कौरवन पर विजय खातिर आशीर्वाद मंगले रहे लो। माता छठी के व्रत के एगो अउर अति प्रसिद्ध कथा ई ह की जब राजा प्रियवद के संतान के मृत्य हो गइल तब उ माता षष्ठी के कठिन साधना कइले माता उनकर तपस्या से खुश होके उनकर पुत्र के दोबारा जीवित क दिहनी।

आज भी अइसन मान्यता ह की नि:संतान दंपति माता छठी के व्रत के पूरा आस्था से करे त उनकरा संतान के प्राप्ति अवश्य होखेला। छठ एगो अइसन पर्व ह जेइमे भगवान भाष्कर के पूरा परिवार के मनावे खातिर कठोर साधना कइल जाला। भगवान सूर्य अउर उनकर पत्नी षष्ठी से व्रती लो सुख समृद्धि आ संतान प्राप्ति के वरदान माँगेला लोग त साथ ही भगवान भास्कर के पुत्र यमराज से अकाल मृत्यु से बचावे के प्रार्थना भी करे ला लोग।

छठ पर्व साल में दु बार आवेला पहिला चैत्र में अजर दूसरा कार्तिक में छठ मनावे वाला लोग सालों भर ए पर्व के इंतजार में रहेला लोग, घर से बाहर रोजी-रोजगार के खातिर गईल लोग भी छठ के समय घरे जरूर लौट आवेला लोग, गांव- मोहल्ला सगरो गुलजार भईल रहेला जवन ए पर्व के ख़ुसी में चार-चांद लगा देबे ला।

छठ में साफ-सफाई के बहुते महत्व रहेला एहीसे महीना भर पहिले से घर,छठ घाट के सफाई सुरु होजाला ,दीपावली के बाद से छठ के तैयारी और जोर पकड़ लेला एह समय लड़िका कुल छठ घाट पर जाके विशेष साफ- सफाई करेले उहाँ मिट्टी भरल जाला, मिट्टी के सीढ़ी तैयार कइल जाला साथ ही बैठे के भी बढ़िया से इंतजाम कइल जाला ।

छठ घाट के बगल में ईंट चाहे मिट्टी के बनल सिरसोबिता के रंगे के काम भी बड़ी तेजी से होला। गोवर्धन पूजा के बितते ही छह व्रती लोग ला प्रसाद जुटावे के काम सुरु कइल जाला, प्रसाद जुटावे में विशेष मेहनत ना करे के पड़ेला काहे की उ सब सामान अपना आस- पास ही उपलब्ध रहेला, जेकरा प्रसाद जुटावे में कठिनाई होला उ बाजार से खरीदे ला काहे कि छठ के सारा सामान बाज़ार में उपलब्ध रहेला जहा सब सामान मात्र कुछ खर्च में ही मिल जाला छठ के समय बाजार में बड़ी चहल- पहल रहेला, छठ माई के प्रसाद में विशेष रूप से हल्दी, अदरक, सुथनी, केला ,निमुआ, नारियल,मूली औऱ कुछ विशेष पकवान ठेकुआ,पुआ होला जवना के व्रती लोग मीठा(गुण) से तैयार करेली।

चार दिन तक चले वाला ई महापर्व नहाय- खाय से सुरु होला जेइमे व्रती लोग बगल के कौनो घाट पर गंगा स्नान करेली आ फिर मिट्टी के चूल्हा पर बड़ी ही स्वच्छता से चावल, चना के दाल अउर लौकी(कद्दू) के सब्जी पकावेळी। खाना तैयार भईला के बाद सबसे पहिले व्रत करे वाला लोग ओके ग्रहण करेला लोग।

अगिला दिन खरना के दिन होखेला जेइमे व्रती लोग स्नान के पश्चात व्रत के सुरुआत करे ला लोग। व्रती बिना अन्न- जल के रात तक उपवास कईला के बाद मीठा से बनल रसियाव के ग्रहण करे ला लोग औऱ मिट्टी पर ही रात गुजारे ला लोग। तीसरा दिन अर्घ्य के और कोसी भरे के दिन होखेला जेहमें व्रती लोग 24 घण्टा उपवास रहेला लोग पूरा छठि माई खतिर ठेकुआ, पूड़ी तैयार करे ला लोग सगरो पूजा के सामान के अच्छा से धो के दौरा में सजावे ला लोग साम के समय व्रती के साथ पूरा परिवार निकले ला लोग, केहू दौरा अपना सिर पर उठावे ला त केहू ईंख के हाथ मे ले के व्रती के साथे- साथे घाट पर पहुँचे ला लोग घर के लोग के एक -साथ देख के मन के परम आनन्द के प्राप्ति होला ।

घाट पर बैठ के व्रत करे वाला स्त्री – पुरूष हाथ मे सिपुलि (बाँस के बनल एगो पात्र) ले के डूबत सूरज के अर्घ्य देबे ला लोग जवन हिन्दू धर्म मे अपना आप मे एगो अनूठा दृश्य होखेला काहे की आप के ज्ञात बा कि हिन्दू धर्म में डूबत सूरज के पूजा ना होला । एह मामला में छठ पर्व भारत के धार्मिक एकता के प्रदर्षित करेला ।

सूर्य के अर्घ्य दिहला के बाद व्रती अपना घर लौट के कोसी भरे के तैयारी करे ला लोग कोसी माटी के बनल एगो बर्तन ह जेहिमे प्रसाद से भर के चारों तरफ दिया जलावल जाला । कोसी के बगल में पूजा खातिर आईल गन्ना के भी सजा के रखल जाला रात भर व्रती लोग छठि माई के प्रसन्न कर खातिर गीत मंगल गावे ला लो अउर फिर रात में ही उ उहे घाट पर पहुँच जाला लोग जहाँ उ शाम के अर्घ्य देहले रहे ला लो। छठ पर्व के ई अंतिम दिन होखेला जेइमे उगत सूर्य के अर्घ्य दिहल जाला।

सुबह के समय काफी ठंढा लागेला पानी त अउर ठंढा रहेला लेकिन व्रत करे वाला स्त्री/पुरूष ओतना ठंढा पानी मे भी कंधा तक पानी में डूब के हाथ जोड़ के भगवान भाष्कर से जल्दी दर्शन देबे के प्रार्थना करे ला लोग। 36 घंटा से लगातार बिना अन्न जल ग्रहण कइले जब व्रती लोग ओतना ठंढा पानी मे प्रवेश करेले त एक बार फिर हम सब नि:शब्द हो जाईले अउर उनकरा सम्मान में ई सिर नतमस्तक हो जाला। भगवान भाष्कर के पहिला किरण से जब सगरो जहान अजोर होला तब इहा व्रती लोके चेहरा भी खिल जाला उ पूरा आस्था के साथ भगवान के अर्घ्य समर्पित करेली।अउर अपना पति और के पुत्र के सुख समृद्धि तथा लंबा उम्र के प्रार्थना करेली ।

एह प्रकार से चार दिन से चलल आ रहल लोक आस्था के महापर्व अपना समापन के ओर बढ़े ला व्रती लोग घर पहुँच के प्रसाद वितरण करे ला लोग सभे लोग एक दूसरा के प्रसाद देली जवन सामाजिक एकरूपता के मिसाल होखेला । छठ पूजा में लोकगीतन के बड़ी महत्व होला छठ के नजदीक आवते ही घरे-घरे मंगल चार सुनाई देबे लागेला छठ के लोकगीत जहाँ एक तरफ प्रकृति अउर पर्यावरण के रक्षा के उपदेश देला त साथे ही ई लोकगीत आपन संस्कृति अउर पूर्वज के याद दिआवेला ।

छठ घाट पर जब कबो शारदा सिन्हा, मनोज तिवारी अउर कल्पना के गीत सुनेके मिलेला त उ एगो भक्ति के अलग रूप ही मन मे उत्पन्न करेला।

शारदा सिन्हा के गावल गीतन के बिना त छठ के रंग फीका लागेला। अनुराधा पौडवाल के गावल गीत -केरवा जे फरे ला घवद से त छठ के पहिचान बन गइल बा एके रउआ जब सुनी तब ई नया ही लागेला।ई गीत ना जाने कब से गवात बा अउर पता नाही हम अउर आपसब रहब की ना रहब बाकी ई गीतिया कबो ना ओराई इ निरतंर चलत रही ।

– संकेत पाण्डेय

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एही से छठ पर्व “महापर्व” कहाला

काँच ही बांस के बहंगिया बहँगी लचकत जाये
पहनी ना देवर जी पियरिया बहँगी घाटे पहुचाये”!!

ई गीत सुनते ही मनवा मे एगो लहर उठेला, दिल खुश हो जाला, छठ महापर्व के आगमन हो जाला। सभे बिहारी, परदेसी चाहे विदेसी छठ में अपना देस जरुर आवेला लोग भले एकरा खातीर ट्रेन के भीड़-भडा़का मे कुचलाए के पडे़।

छठ महापर्व के लीला ऐतना अपरंपार होला की तीवईया तीन दिन के निर्जला व्रत बिना कोउनो परेसानी के सारा विधि-विधान से ई पर्व खुशी-खुशी मनावेली।

नहाए-खा से शुरु होखे वाला ई पर्व तीन दिन तक चलेला।

माई गेहूं धो के दू दिन तक धूप मे सुखावेली फेर बाबूजी जाता मे पिसवाएनी।
नहाए-खा वाला दिन के घी वाला घीया के तरकारी और रोटी, और खरना (दूसरका दिन) के चुल्हा पर के गुड़ के खीर मनवा के और जीभ के मोह लेला।

नहाय खाय से शुरू होती है छठ महापर्व

दऊरा सजावल जाला तरह-तरह के फल-फुल, ठेकुआ, खजूर और दीयरी से| माई के ओठ प्यासल रहेला लेकिन छठी मईया के गीत झूमझूम के गावेली। बाबूजी पियरी पहिन दउरा घाटे लेकर जाएनी और माई, चाची, मौसी आपन आपन सिंदूरा लेकर, अलता से सजावल आपन पैर के पैजनीया रुनझून बजावत चलेली। साथ ही भईया के कांधे लचकत ऊखीया बडा़ निमन लागेला। घाट के खुबे शोभा बढे़ला जब सभे वरती पानी बीच खडा़ होकर सुर्य देवता के अरघ देवेले। बाबा जी घाटे बारहो बाजा बजवावेनी और खूब थपरी पीट-पीट के ठुमकेनी।

छठ महापर्व के एतना गुणगान होला की हर कोई जाने के चाहेला आखिर ई पर्व ‘महापर्व’ काहे कहाला?

हमहु ई जाने खातिर अपना माई से पूछनी। ऊ बतइली की –

“ई पर्व बिहार और हर बिहारीवासी खातिर सबसे बड़ पर्व होखेला काहे से की ई धारणा बा की ई पर्व के शुरूआत सबसे पहिले अंगराज कर्ण से भइल। अंग प्रदेश वर्तमान मे भागलपुर ह, जउन ब‌िहार में स्‍थ‌ित बा।

कर्ण के माता कुंती और सुर्य देवता के पुत्र मानल जाला। कर्ण सूर्य देवता के भक्त रहनी और नियम से कमर तक पानी मे खडा़ होकर सूर्य देव के पूजत रहनी और गरीबन के दान देत रहनी। कार्तिक शुक्ल षष्ठी और सप्तमी के दिने कर्ण सूर्य देव के विशेष पूजा करत रहनी। आपन राजा के सूर्य भक्ति से प्रभावित होके अंग देश के सभे निवासी सूर्य देव के पूजा करे लागल|

धीरे-धीरे सूर्य पूजा पूरा बिहार और पूर्वांचल मे फैल गइल। शुरू मे ई पर्व बिहार और उत्तर प्रदेश में ही मनावल जात रहे फेर धीरे-धीरे बिहार के लोग विश्व में जहां भी रहेला लोग ओजा ई पर्व के ओ ही श्रद्धा और भाव-भक्ति से मनावेला लोग।

ई पर्व से जुड़ल एगो और पौराण‍िक कथा बा कि कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री के जन्म भइल रहे. प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न भइली षष्ठी माता बालकन सब के रक्षा करे वाली विष्णु भगवान द्वारा रचल गइल माया रहली।

….वैसे और भी कथा छठ पर्व से जुड़ल बा।”

तबही पीछा से मौसी कहली “ए बबुनी छठी मईया के महिमा अपरंपार बा, कब्बो खाली हाथ न जाए देवेली अपना तीवईया लोग के, सभे लोग के सपना पूरावेली त काहे न ई पर्व ‘महापर्व’ कहाई।”

शाम के अरघ के बाद रात मे कोसी भराला, सोहर गवाला, सभे गीत गावेला, जगमग दीयरी जरेला। माई के सिंदुरवा आज बडा़ सोहाला काहे से की आज ई नाक पर से माथा तक लागेला। ई सिंदुर बतावेला की माई छठी मईया से आपन सुहाग के लंबा उमर मांगत बारी।
छठ के सुबह वाला अरघ खातिर सुबह ३ बजे से ही चहलकदमी शुरु हो जाला, कल्पना और शारदा सिन्हा के गीत गूंजे लागेला। ठंडी मे रजाई छोड़कर उठे के पडे़ला, लेकिन घाटे जाए के खुशी के आगे नींद भी न सुहावन लागेला। सब लोग के उठे से पहिले माई तीन-चार खल के तरकारी बना देवेली।

घाटे के कमर तक के ठंडा पानी मे खडा़ होके, कप-कपाइल हाथ मे सूप लेकर, किटकिटाइल दांत और आँख मे एगो आस लिए सभे वरती सुर्य देव के राह ताकेला। ए दिन सुर्य देवता भी तनी नखरा दिखाएनी और ऊगे मे देर करेनी। पीछा से कल्पना अपना गीत मे कहेली की “ऊग हो सुरूज देव, भइल भिनुसरवा,अरघ के रे बेरवा,पुजन के रे बेरवा नू हो”

और सुर्य देवता के पहिला किरण लौकते ही सभे अरघ देकर आपन व्रत सफलतापुर्वक खत्म करेला लोग। और गरम पानी से आपन तीन दिन के व्रत पे विराम लगा देवेला लोग।

छठ महापर्व के महिमा पूरा जगजाहिर बा। यहा तक कि बिहार के मुस्लिम लोग भी ई महापर्व के मनावेला लोग और धीरे-धीरे पूरा विश्व मे धूमधाम से मनावल जाला।

जय घठी मईया

– शिल्पा कुंवर

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चाहे टिकट वेटिंग हो चाहे कन्फर्म, दिवाली में घरे जाना ज़रूरी होता है..

दिवाली में घरे जाना ज़रूरी होता है. बहुत ज़रूरी होता है.. चाहे टिकट वेटिंग हो चाहे कन्फर्म.. चाहे ट्रेन के जनरल डिब्बा में चौबीस घंटा बिना हिले, बिना टॉयलेट-बाथरूम किए जाना पड़े.. आ चाहे ट्रेन के फर्श पर दस आदमी के बीच में दबा-चिपा के अखबार बिछा के सोना पड़े.. पटना से घरे के लिए जब बस पकड़ते हैं ना आ गांधी सेतु पर बस में “मांगी ला हम वरदान हे गंगा मैया” सुनते हैं ता पिछला चौबीस घंटा के कष्ट भुला जाते हैं.. ट्रेन में दिन भर के धक्कम-धुक्की से टूटल शरीर आ रात भर के जगरना से फूलल ललियाइल आँख, सब ठीक हो जाता है.. परदेश से आबे में चौबीस घंटा लगे चाहे अड़तालीस, दिवाली में घरे जाना ज़रूरी होता है.. बहुत ज़रूरी होता है..
🚆दिवाली में घरे जाना जरूरी होता है. बहुत जरूरी होता है.. एतना बड़का घर माई-बाबू अकेले कैसे साफ़ करेंगे..! माई के गोर-हाथ में दरद रहता है आ बाबूजी को अब आँख से देखाना भी कम हो गया है.. गाँव में हमारा कमरा आजो खालिए रहता है.. हम इधर शहर में किराया के मकान में जीवन काट रहे हैं आ उधर हमारा अपना घर हमारा बाट जोह रहा है.. बूढ़ माई, बीमार बाबूजी आ हमर माटी के भीत वाला घर, बुझाता है इनकरा के किस्मत में जीवन भर हम्मरे बाट जोहना लिखाया हुआ है.. एकरे खातिर दिवाली में घरे जाना ज़रूरी होता है.. साल भर बाद हमरा देख के हमारा घर एक्क्दम्म से हरिया जाता है, बूढ़ माई के हड्डी में नया जान आ जाता है आ बाबूजी के आँख का रोशनी एकाएक बढ़ जाता है.. ईहे ता है हमारा दिवाली..!
🏡दिवाली में घरे जाना ज़रूरी होता है.. काहे से कि बहिनिया का शिकायत भी ता दूर करना होता है.. भईया, रक्षाबन्धन में नहीं आए, हमारे बियाह में भी ठीक सिन्दूरदान के टाइम पर पहुंचे थे.. भैयादूज में हम आ रहे हैं मायका, तुम भी अपने घर आ जाओ.. हाथ में पान का पत्ता, सुपारी, चांदी का सिक्का देकर बहिनिया यम-यमुना से हमारा लमहर जिनगी मांगती है.. एहू खातिर दिवाली में घरे आना ज़रूरी होता है..
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दिवाली में घरे जाना ज़रूरी होता है.. बहुत ज़रूरी होता है.. काहे कि आबे वाला होता है हमारा छठ..

बहिनिया के बियाह में गाँव नहीं आए, दादी के सराध में घरे नहीं आए सब माफ़ है.. लेकिन छठ में घरे नहीं आए! इसका कोई माफ़ी नहीं है.. चाहे हम जहाँ रहते हों शारदा दीदी का “सोना षटकोणिया हो दीनानाथ” सुनकर हमारा रोआँ खड़ा होबे लगता है.. जैसे जन-गण-मन सुनकर सच्चे भारतीय का रोआँ खड़ा होता है ठीक वोइसे ही छठ का गीत सुनकर हम बिहारी लोग का रोआँ खड़ा हो जाता है.. ईहे एहसास के खातिर दिवाली में घरे जाना ज़रूरी होता है कि हमरा भीतर के बिहार आ बिहारी बचल रहे..
🌟चाहे हम अमेरिका में इंजिनियर हैं आ चाहे दुबई में मनेजर, अगर हमारा दोस-यार सब घाट बनाबे के लिए बोल दिया ता हम लुंगी लपेट के, माथा पर गमछा बान्ह के आ कन्धा पर कुदारी टांग के पोखरी के तरफ चल देते हैं..! बड़का-बड़का बाबू साहब को माथा पर टोकरी आ केला के घौदा लेकर खालिए पैर घाट का बाट पकड़ना पड़ता है.. अपन माटी, अपन संस्कृति के खातिर दिवाली में घरे जाना ज़रूरी होता है.. अपन परिवार, अपन दोस-यार सब के खातिर दिवाली में घरे जाना ज़रूरी होता है. एक बार फेर कहते हैं, दिवाली में घरे जाना एही खातिर ज़रूरी होता है कि हमारे भीतर का बिहार आ बिहारी कभियो मरे नहीं..!
🍌टिकट लिए हैं कि नहीं.? इंतज़ार रहेगा आपका.. आपके गाँव को, बूढ़ी माई को, बीमार बाबूजी को आ आपके बिहार को…

अमन आकाश

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खुशखबरी: बिहार के लिए चलेगी दिवाली-छठ स्पेशल ट्रेनें, इस बार नहीं घर जाने में परेशानी

दिवाली और छठ की छुट्टी सभी बिहारियों के लिए खास होता है| पुरे साल किसी छुट्टी में वो घर गया हो या नहीं गया हो, मगर छठ की छुट्टी में वह पूरी कोशिश करता है की वह घर जरुर जाए| मगर हर साल काफी संख्या में लोग ट्रेन का टिकट नहीं मिलने के कारण घर नहीं जा पाते हैं| इस साल फिर छठ पूजा आ रहा है मगर महीनों पहले ही बिहार के लिए पहले से मौजूद सभी टिकटे बुक हो चुकी है|

इस बार भी रेलवे स्पेशल ट्रेन चलाने का फैसला किया है| रेलवे की माने तो इसबार तैयारी पूरी है| पूजा में घर जाने में किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी|

र्व-मध्य रेल के जीएम एलसी त्रिवेदी ने सोमवार को आयोजित प्रेस वार्ता में की। उन्होंने कहा कि रेलवे की परीक्षाओं के लिए एक करोड़ से अधिक परीक्षार्थी अलग-अलग शहरों में जा रहे हैं। लेकिन ईसीआर के स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था के कारण कहीं से परेशानी की कोई शिकायत नहीं मिली।ऐसी ही व्यवस्था पूजा स्पेशल ट्रेनों की होगी।

उन्होंने कहा कि बिहार में रेल परियोजनओं के विकास पर अभी कुल 40 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसके तहत कई महत्वपूर्ण कार्य जिसमें मोकामा में नया रेल पुल, जेपी रेल पुल पर पाटलिपुत्रा-पहलेजा रेल लाइन का दोहरीकरण, हाजीपुर-बछवारा, हाजीपुर-रामदयालुनगर, समस्तीपुर-दरभंगा, किऊल-गया लाइन का दोहरीकरण किया जा रहा है।

अगले एक से डेढ़ साल में ईसीआर में 100 प्रतिशत तक रेल लाइन विद्युतीकरण का कार्य पूरा कर लिया जाएगा। इससे ट्रेनों की गति के साथ परिचालन समय में भी सुधार होगा। सामरिक रूप से महत्वपूर्ण भारत-नेपाल सीमा तक ट्रेनों का परिचालन शुरू हो गया है। दोनों देशों के विदेश मंत्रालय से काठमांडू तक रेल परिचालन पर सहमति बनी है। इसके लिए इरकॉन को सर्वे का काम दिया गया है। ईसीआर जल्द ही काठमांडू तक रेल सेवा का विस्तार करने में सफल होगा।

एक प्रश्न के जवाब में जीएम ने कहा कि कुहरे के कारण ट्रेनें बहुत ज्यादा लेट नहीं होगी। उत्तर भारत जानेवाली महत्वपूर्ण ट्रेनों में फॉग सेफ डिवाइस लगाया जाएगा। इससे ट्रेनों की गति पर फॉग का असर कम होगा। बताया कि यात्रियों की सुरक्षा सर्वोपरि है। इस कारण थोड़ी लेटलतीफी स्वीकार की जा सकती है।

ईसीआर ने 7370 करोड़ रुपये की आय अर्जित की
मौके पर जीएम ने चालू वित्तीय वर्ष की प्रथम छमाही के दौरान ईसीआर की उपलब्धियों को भी गिनाया। कहा कि अगस्त तक ईसीआर ने 7370 करोड़ रुपये की आय अर्जित की है जो पिछले वर्ष की तुलना में रिकॉर्ड 18.27 प्रतिशत अधिक है। ईसीआर में यात्री सुविधाओं में भी सुधार हुआ है। मोबाइल से जेनरल टिकट की सुविधा, 21 रेलवे स्टेशन पर रविवार को भी आरक्षण टिकट की सुविधा, 5 जोड़ी नई ट्रेनों का परिचालन आदि कार्य किए गए।

RRB Group C and D Exam Date 2018, Admit Card, Railway Recruitment 2018 Group C, D Exam Date and Admit Card:

खुशखबरी: छठ बाद बिहार से बाहर जानें वालो लोगों के लिए 43 जोड़ी स्पेशल ट्रेनें, देखें पूरी लिस्‍ट

दिवाली से छठ तक बिहार आने-जाने वाली सभी ट्रेनें हाउसफुल तो रहती ही है साथ ही छठ बाद भी बिहार से बाहर जाने के लिए भी ट्रेन के टिकटों को लेकर भी वही हालत होते हैं| फिलहाल, पटना से बाहर आने-जाने वाली किसी रेगुलर ट्रेन में जगह नहीं है. मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों में तो लंबी वेटिंग है, लेकिन रेलवे बिहार से बहार जाने वाले यात्रियों के लिए बड़ी खुशखबरी दिया है|

भारतीय रेलवे दीपावली व छठ पूजा के के बाद से वापस लौटने वाले लोगों की सुविधा के लिए दो दर्जन से अधिक स्पेशल ट्रेन चला रहा है। इस कड़ी में नई दिल्ली, दिल्ली व आनंद विहार टर्मिनल से पटना, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, जयनगर, सहरसा एवं कटिहार के लिए स्पेशल ट्रेनों का शिड्यूल पूर्व मध्य रेल ने जारी किया है।

इसमें 01658 पटना से हबीबगंज, 07640 सिकंदराबाद एवं 09042 उधना के लिए स्पेशल ट्रेन चलाई गई। इसके साथ ही दरभंगा से दिल्ली, गया से आनंद विहार, सहरसा से आनंद विहार, दरभंगा से सिकंदराबाद, रक्सौल से सिकंदराबाद तथा रक्सौल से हावड़ा के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई गईं।

पूर्व-मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि 28 अक्टूबर को पूर्व-मध्य रेल क्षेत्र से 12 स्पेशल ट्रेनों का परिचालन किया जा रहा है। इसमें पटना से भगत की कोठी के लिए 04866, पटना से भुवनेश्वर के लिए 08450, पटना से उधना के 09042 नंबर की स्पेशल ट्रेन चलाई जाएगी।

इसके साथ ही बरौनी से नई दिल्ली, रक्सौल से आसनसोल, बरौनी से सिकंदराबाद, मुजफ्फरपुर से हावड़ा, सहरसा से अंबाला, सहरसा से आनंद विहार, दरभंगा से आनंद विहार व दरभंगा से नई दिल्ली के लिए स्पेशल ट्रेनों का परिचालन किया जा रहा है। जबकि 29 अक्टूबर को 03512 पटना से आसनसोल व पटना से आनंद विहार के लिए 02365-66 एवं 04003 स्पेशल ट्रेन के परिचालन का निर्णय लिया गया है। यह पटना जंक्शन से रविवार व गुरुवार को 14.20 बजे 9 नवंबर तक प्रस्थान करेगी।

आनंद विहार से यह सोमवार व शुक्रवार को 18.45 बजे रवाना होगी। 30 अक्टूबर को जयनगर से आनंद विहार, सहरसा से आनंद विहार, पटना से हबीबगंज, उधना व इंदौर के लिए, दरभंगा से अंबाला, आनंद विहार व दिल्ली के लिए, सहरसा और सिंगरौली से चोपन के लिए 03303 व 03304 नंबर की ट्रेन 26 अक्टूबर तक चलेगी। 31 अक्टूबर को 6 ट्रेनें चलाई जाएंगी। जिनमें पटना से उधना व आनंद विहार के स्पेशल ट्रेनें भी चलेगी। एक नवंबर को 6 स्पेशल ट्रेनों में दानापुर से न्यू जलपाईगुड़ी के लिए 03252-51 स्पेशल ट्रेन दानापुर से बुधवार व न्यू जलपाईगुड़ी से गुरुवार को चलेगी।

जबकि दो नवंबर को 6 स्पेशल ट्रेनों का परिचालन किया जाएगा। इसमें पटना से रांची व आनंद विहार के लिए स्पेशल ट्रेन चलेगी। तीन नवंबर को 9 स्पेशल ट्रेनों का परिचालन होगा जिसमें पटना से उधना के लिए भी ट्रेन चलेगी। 05228-27 नंबर स्पेशल ट्रेन मुजफ्फरपुर-हावड़ा-मुजफ्फरपुर 30 अक्टूबर तक चलेगी। 04404-03 नंबर की टे्रन नई दिल्ली से बरौनी के बीच एक नवंबर से चलेगी।

दिल्ली से यह प्रत्येक मंगलवार व शुक्रवार तथा बरौनी से बुधवार व शनि को चलेगी। 04406-05 नंबर की स्पेशल ट्रेन दरभंगा से आनंद विहार के लिए 31 अक्टूबर तक चलेगी। यह सप्ताह में दो दिन चलेगी। 04041-42 आनंद विहार-जयनगर-आनंद विहार स्पेशल ट्रेन आनंद विहार से बुधवार व शनिवार तथा जयनगर से गुरुवार व सोमवार को 31 अक्टूबर तक चलेगी। 04974-73 फिरोजपुर दरभंगा-फिरोजपुर स्पेशल ट्रेन दो नवंबर तक चलेगी।

04044-43 आनंद विहार गया स्पेशल ट्रेन गुरुवार को आनंद विहार से एवं शुक्रवार को गया से चलेगी। 04424-23 आनंद विहार सहरसा स्पेशल ट्रेन 30 अक्टूबर तक चलेगी। 03043-44 नंबर की ट्रेन हावड़ा से शुक्रवार एवं रक्सौल से शनिवार को 28 अक्टूबर तक चलेगी। 03511-12 नंबर की ट्रेन आसनसोल से पटना के बीच 29 अक्टूबर तक चलेगी। 08611-12 पटना-रांची-पटना के लिए 30 अक्टूबर तक चलाई गई है।

रांची से यह बुधवार एवं पटना से गुरुवार को चलेगी। 07005-06 हैदराबाद-रक्सौल-हैदराबाद 3 नवंबर तक चलाई जाएगी। 07007-08 सिकंदराबाद दरभंगा स्पेशल ट्रेन 1 नवंबर तक चलेगी। 01657-58 हबीबगंज-पटना-हबीबगंज 30 अक्टूबर तक चलाई जाएगी। 04865 भगत की कोठी पटना स्पेशल ट्रेन 28 अक्टूबर तक चलेगी। 07091-92 सिकंदराबाद रक्सौल तीन नवंबर तक चलेगी।

09305-06 इंदौर पटना इंदौर स्पेशल ट्रेन 27 अक्टूबर तक चलेगी। 04004-03 आनंद विहार पटना स्पेशल ट्रेन एक नवंबर तक चलेगी। 08449 भुवनेश्वर पटना स्पेशल ट्रेन 24 नवंबर तक चलेगी। 07009-10 सिकंदराबाद बरौनी स्पेशल ट्रेन 29 नवंबर तक चलेगी। 03041-42 हावड़ा रक्सौल 3 नवंबर तक चलेगी।

इसके साथ ही पटना से रांची, हबीबगंज, सिकंदराबाद, उधना, भगत की कोठी, भुवनेश्वर, आसनसोल, आनंद विहार, इंदौर, अहमदाबाद, एवं न्यू जलपाईगुड़ी के लिए ट्रेनें चलेंगी। 09411-12 अहमदाबाद-पटना 29 नवंबर तक चलेगी। 02791-92 सिकंदराबाद बरौनी 28 अक्टूबर तक चलेगी। 07639-40 सिकंदराबाद पटना स्पेशल ट्रेन 27 अक्टूबर तक चलेगी।

09041-42 उधना पटना 7 नवंबर तक, 04022-21 आनंद विहार जयनगर, 04024-23 नई दिल्ली दरभंगा, 04026-25 नई दिल्ली-पटना एवं 04028-27 नई दिल्ली-सहरसा के लिए चलाई जा रही है। इसी तरह 04030-29 आनंद विहार-मुजफ्फरपुर, 04036-35 नई दिल्ली-दरभंगा, 04452 आनंदविहार-मुजफ्फरपुर-आनंदविहार एवं सरङ्क्षहद-सहरसा के लिए स्पेशल ट्रेनों का परिचालन किया जा रहा है। इसी तरह 23 जोड़ी ऐसी भी ट्रेनें चलाई जा रही हैं, जो दूसरे स्टेशनों से खुलती तो हैं परंतु पूर्व-मध्य रेल क्षेत्र होकर गुजरती है।


Source: Dainik Jagran

धर्म के उस पार से आस्था का परचम लहराता कल्पना का छठपर्व का ये वीडियो

बिहार का लोकपर्व जो ‘छठ महापर्व’ है, सिर्फ नाम से महापर्व नहीं है। इसकी महानता का अंदाज़ा लगाने के लिए हमें छठ की महान परंपरा को समझना होगा। हमें समझना होगा कि क्यों इस व्रत के लिए लाखों व्रती निर्जला रहकर भी सक्रिय रह पाते हैं। हमें आस्था के उस चरम को समझना होगा जिसकी प्राप्ति के लिए व्रती के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज दिवाली से छठ तक एक पैर पर खड़ा दिखाई देता है। आपसी सहयोग की ये भूमिका निभाकर लोग खुद को पुण्य का भागी कैसे बना लेते हैं, हमें समझना होगा। हमें जानना होगा कि इस महान परंपरा में ऐसा क्या खास है जो एक पर्व को उत्सव बना देता है।

ये एक ऐसा पर्व है जो धर्मों के बंधन से पूरी तरह से मुक्त है। यूँ तो किसी पर्व का धर्म से जोड़ा जाना महज एक दुर्भावना को ही दिखाता है, पर छठ में ये बात स्पष्टतः सामने आती है कि कैसे विभिन्न धर्मावलंबी इस पर्व में खुद को सम्मिलित करते हैं। कई मुस्लिम भी इस पर्व को उसी श्रद्धा से मनाते हैं जिससे हिन्दू।

भोजपुरी की मशहूर गायिका, कल्पना पटवारी ने एक वीडियो के जरिये छठपर्व की महिमा दर्शाते इस दृश्य की खूबसूरती दिखाने की सफल कोशिश की है।

इस वीडियो के सिलसिले में, कल्पना पटवारी ने ये बात पब्लिकली कबूल की है कि कैसे वो अबतक इस महापर्व की महिमा से अनभिज्ञ थीं और इसके बारे में जानना कितना सुखद अनुभव रहा।

कल्पना ने अपने अनुभव को यूँ शब्द दिए- 

“पिछले साल तक मुझे पता नहीं था कि महात्मा गाँधी का सत्याग्रह आन्दोलन बिहार की पावन धरती चम्पारण से शुरू हुआ था। यह बात पता लगने पर मैं सांगीतिक श्रद्धांजलि के रूप में ‘चम्पारण सत्याग्रह’ नामक ऑडियो-विजुअल तैयार करना जरूरी समझी। महज दो महीने पहले प्रख्यात निर्देशिका और मेरी प्यारी सहेली श्रुति वर्मा से मुझे पता लगा कि बिहार में कई वर्षों से सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि मुसलमान भी छठ व्रत करते हैं। यह सुनकर मैं चकित और हैरान रह गयी। बिहार के उन मुस्लिम महिलाओं को चरण स्पर्श करने को जी चाहा और एक स्त्री के रूप में यह सहज एहसास हुआ कि एक बांझ की कोई जाति या धर्म नहीं होता है। ये समाज की दी हुई एक ऐसी असहनीय गाली है जो हर जाति-धर्म की स्त्री को आस्था के अलग-अलग दरवाजों के सामने नतमस्तक होने को मजबूर कर देती है और छठ मैया हर धर्म की स्त्री की व्यथा को सुन भी लेती हैं। बहुतों की गोद भी भर देती हैं। मेरा बिहार सर्वधर्म सम्मेलन का पावन स्थान है, देश के लिए एक अनोखा मिसाल है। मेरा बिहार ही मेरे जीवन का आधार है।”

मिट्टी का चूल्हा, धुप में सूखता हुआ गेंहू, छठ का गीत और बगल में कोलहाल करता हुआ हमारा बचपन

झुण्ड में मिट्टी को सानती हुई औरते, धुप में सूखता हुआ गेंहू, बगल में कोलहाल करता हुआ बचवन सब का झुण्ड!

“माई जी हमरा चुल्ह्वा में माटी लगा दी न”, भौजी की सुरीली धुन गूंजी| चाची भी छमक के चूल्हे में मिटटी लगा के पोत-पात करने लगी| शाम होते ही खरना के लिय केला के पत्ता पर नेवज के लिए सरियाती हुई चाची बडबडाने लगी –“रे सोनुआ रे धुप डाल के गोड लाग ले छठी मईया के और गाय माता के ईगो नेवज खिला दे”|

लेकिन सोनुआ तो खचड़ा नम्बर वन ,उसको तो सिर्फ इस बात का इंतजार था कि कब पूजा खत्म हो और एक नेवज उठा के केला, नारंगी, खीर रोटी को घेप ले|

अब अगली सुबह उठते ही नदी के किछाड़े घाट में सफाई करता हुआ झुण्ड, सोनुआ लंगटे नदी में घुसा हुआ चिल्लाया – “रे साला सब इहवा बड़का गरई मछली है”,
“रे साला सोनुआ आज छठ है तुमको बुझाता नहीं है काs रे, छोड़ मछलिया को” मोनू झिड़क दिया|

घाट का सफाई कार्यक्रम पूर्ण हो चूका था| दोपहर में चाची ठेकुआ छानती हुई चिल्लाई – “सोनू! कपड़ा खीच दिए है, धोबी से आयरन करवा लेना”
“माई हमको नया कपड़ा चाहिए ,चाहिए तो बस चाइये,बहुत सारा पटाखा भी चाहिए” सोनू जिद करने लगा| चाची अपने लाडले को गोद में रख ली – “कितना दिक्कत से छठ का सामान जुगताs पाए है, नया कपडा कहाँ से लाये तुम्हारे लिए? बाबू जी तुम्हारे जिन्दा होते तो ये दिन नहीं देखना पड़ता, छठी मईया सब ठीक कर देंगी” चाची की आँखे छलक पड़ी | सोनू मान गया|

पुराने कपडे को ही पहने घाट पर पहुंचा, सारे रंग-बिरंगे कपड़ो में बच्चो को एक टक मायूसी और मासूमियत से देखने लगा| जब सारे बच्चे पटाखा छोड़ देते तो वो उन कागज के टुकडो को उठा के खुश होता और तालिया बजाने लगता, तभी मोनू उसके पास आया और उसके हाथ में दो बिड़िया पटाखा थमा दिया।

 

बिहार की एक आवाज जिसके बिना छठ गीतों का बजना बेमानी है, जिसे सुन परदेसी घर आने लगते हैं

दिवाली जाते ही बिहार का महापर्व सबका ध्यान अपनी तरफ खींचना शुरू कर देता है| महिलाओं और पुरुषों, दोनों की तैयारियों और जिम्मेदारियों की लिस्ट लगभग बराबर होती है|

यही नहीं, जिसके यहाँ छठ पूजा हो रहा हो और जिसके यहाँ पूजा न हो रहा हो, उन दोनों की तैयारियाँ और जिम्मेदारियाँ भी लगभग बराबर चलती हैं| बिहार में छठ मतलब एक उत्सव, एक उत्साह का माहौल| छठी माँ की महिमा है ही अपरम्पार! इस समय बिहार की हर गली में वातावरण इतना शुद्ध और पवित्र होता है कि श्रद्धा खुद-ब-खुद जागृत हो जाती है|

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दशहरा बीतते ही छठ के गीत बजने शुरू हो जाते हैं| जिनके यहाँ व्रत होना हो, उनके यहाँ महिलायें छठी माँ के लोकगीत गाने शुरू कर देती हैं| ये तैयारियाँ जब जोर-शोर से चल रहीं हों, और कान में छठ गीत के नाम से नये-नये आये गानों के धुन जाने लगते हैं तब सबसे ज्यादा याद आती है एक आवाज|

एक आवाज जो यूँ तो लोक परम्परा के हर रंग के लिए बनी है, मगर छठ गीत अब उनकी घोषित पहचान बन चुकी है| एक आवाज जिसके बिना छठ गीतों का बजना बेमानी है| एक आवाज जिसे सुनकर परदेसी घर वापिस आने लगते हैं| एक आवाज जो छठपर्व के सजे-धजे माहौल में मन्त्र का काम करती है|

इन इशारों से अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि यहाँ बात हो रही है लोकगीत गायिका शारदा सिन्हा जी की उसी आवाज की, जिसकी मधुरता में घुलने के लिए उनके गीतों की पहली पंक्ति ही काफी है| हाँ, ये भी सच है कि इनके गीतों का पूरा एल्बम सुनने से आप अपने आप को रोक ही नहीं पाते, खासकर इस छठ महापर्व के दौरान।

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सन् 1986 का वो साल था जब शारदा जी का पहला छठ गीतों का एल्बम आया था| तब से आज 3 दशक, जी हाँ, ये लगातार 30वाँ साल है, जब आप इन्हीं गानों को अपने आस-पास बजता पायेंगे| सच तो यह है कि हम सभी को आदत सी हो चुकी है, इस आवाज की| 1 अक्टूबर 1952 को जन्मीं शारदा जी समस्तीपुर, बिहार की मूल नागरिक हैं| पद्मश्री सम्मान से नवाजी जा चुकीं शारदा जी मैथिलि, भोजपुरी और मगही को बड़े ही आत्मीयता से आवाज देती हैं| ये समस्तीपुर महिला महाविद्यालय में संगीत की शिक्षिका हैं| हजारों बच्चियों को न सिर्फ इन्होंने संगीत की शिक्षा दी है वरन् नई पीढ़ी को भी अपने गीतों के जरिये परम्पराओं-संस्कृतियों से जोड़ती आई हैं| इनके लगभग सभी गाने मशहूर हुए हैं, मगर छठ पर्व के गीत पिछले 3 दशक से छठ महापर्व के श्रद्धा वाले माहौल के पूरक बनते आये हैं|

 

ऐसा नहीं कि शारदा ताई के पुराने एल्बम में ही संस्कृति की झलक मिलती हैं, इन्होंने इस साल छठ के शुभ अवसर पर व्रतिओं को एक खास तोहफा दिया है| घर आने की बुलाहट के साथ इनके दो गीत इस साल छठ महापर्व पर रिलीज़ हो रहे हैं| इन्हें सुनकर कानों में मधुरस घुलेगा ही, साथ ही आँखें भी अपना अपनापन तलाशते हुए गाँव-घर लौट आएँगी| सही मायने में यही हैं बिहार के आवाज की शान!

 

नये गायकों के बीच दशकों पुरानी आवाज को पुरानी संस्कृतियों को जागृत करते हुए नये अवतार में आप भी यहाँ सुन सकते हैं-