सीतामढ़ी की सुभ्रा पेरिस में लोगों को सिखाती है बिहार की क्षेत्रीय भाषा

हैदराबाद से लेकर फ्रांस तक बिहार की क्षेत्रीय भाषाओं की अलख जगा रही है सुभ्रा। पेरिस में ‘ल सन्तर द जुर’ यानि Singer of the Day से सम्मानित हो चुकी है।सीतामढ़ी के डुमरा निवासी शिवप्रकाश सिंह और रेणु सिंह की सुपुत्री सुभ्रा प्रकाश एक सिंगर,मॉडल और लैंग्वेज एक्सपर्ट है। जल्द ही दक्षिण भारतीय फिल्मों में अभिनेत्री के रूप में इंट्री करेंगी।

हैदराबाद से ही फ्रेंच भाषा में मास्टर्स डिग्री प्राप्त सुभ्रा को 2013 में गूगल के लैंग्वेज एक्सपर्ट के रूप में फ्रांस के पेरिस जाने का मौका मिला। प्रोजेक्ट कार्य के अलावा जब भी उसे समय मिला, वह पेरिस में ही विदेशी बच्चों को भारतीय क्षेत्रीय भाषा सीखाने लगी।

स्कूल कॉलेज के दिनों से ही संगीत में विशेष रुचि रखनेवाली सुभ्रा पेरिस में विदेशी भाषा और भारतीय भाषाओं को मिलाकर नए गीत बनाने लगी। वहाँ उनका सम्पर्क एक यूरोपियन बैंड से हुआ। पेरिस में एक भव्य कार्यक्रम में सुभ्रा ने संगीत की शानदार प्रस्तुति दी। सुभ्रा को सिंगर ऑफ द डे का सम्मान मिला। अब सुभ्रा की चर्चा सीतामढ़ी, बिहार और हैदराबाद से लेकर फ्रांस तक होने लगी। बिहार की इन क्षेत्रीय भाषाओं को एक नई पहचान दिलाने के लिए सुभ्रा और अधिक कार्यशील हो गयी ।

आज हैदराबाद में सुभ्रा प्रकाश की खुद की म्यूजिक बैंड है। वह कई युरोपियन बैंड से भी जुड़ी हुई है। हैदराबाद से लेकर फ्रांस के पेरिस तक वह दर्जनों म्यूजिक शो, लाईव कंसर्ट आदि कर चुकी है।

कॉलेज के एनुअल डे में भी सुभ्रा प्रकाश अपने शानदार संगीत प्रस्तुति से सबक मन मोह लिया था। IIM में सांस्कृतिक कार्यक्रम में उसे प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया गया। शुभ्रा वहाँ भी अपने जलवे दिखाए। हैदराबाद में बिहार की इस बेटी की चर्चा तो थी ही, अब यह गूंज सांत समुंदर पार भी सुनने को मिला ।

वर्तमान में सुभ्रा आधे दर्जन बंग्ला, तमिल, तेलुगु फ़िल्म प्रोजेक्ट पर भी कार्य कर रही है। जल्द ही वह अभिनेत्री के रूप में इंट्री करेंगी। हालाकि सुभ्रा कहती है कि पहले बिहार की क्षेत्रीय भाषाओं जैसे भोजपुरी, मैथिली आदि के लिए कुछ और काम कर लूं। इन भाषाओं को एक नई पहचान स्थापित करना सुभ्रा का लक्ष्य है। और वह उस लक्ष्य प्राप्ति के लिए मेहनत भी कर रही हैं।

– रंजीत पूर्बे

बिहार के एक दसवीं के छात्र ने बनाया दुनिया का सबसे सस्ता AC

बिहार के पूर्णिया जिले के दसवी कक्षा के छात्र मोहम्मद आसिफ रजा ने ऐसा एसी तैयार किया है जो बहुत कम कीमत में तैयार हो सकता है और एसी का मजा गरीब लोग भी ले सकते हैं।
मो. आसिफ रजा ने ऐसा AC तैयार किया है, जिसको एक बार चलाने पर कमरा दो से तीन घंटे तक COOL रह सकता है।

बता दें कि इसे बहुत कम खर्च में तैयार किया गया है, ताकि गरीब भी एसी का मजा ले सकें। इस एसी को गुरुवार को आसिफ ने जिला स्कूल में आयोजित डिस्ट्रिक्ट लेवल इंस्पायर अवार्ड कॉम्पिटिशन में प्रदर्शित किया।
इसे बनाने में एक प्लास्टिक की बाल्टी, एक छोटा सा पंखा, पीवीसी पाइप और होल कटर का यूज किया गया है। बाल्टी में बर्फ और पानी को रखने के बाद ढक्कन की जगह पंखा को सेट किया गया है।

ठंडी हवा निकलने के लिए बाल्टी के बॉडी में तीन जगहों पर छेद कर उसमें पीवीसी पाइप लगी है। पंखा को बिजली या बैट्री की मदद से चला दिया जाता है।
आसिफ ने बताया कि यह AC उर्जा की बचत के साथ-साथ गरीबों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।

कभी पिता ने पढ़ाई करने से रोका था और अब इस बिहारी बेटी को यूरोपियन यूनिवर्सिटी से मिला स्कॉलरशिप

यह बिल्कुल सत्य और प्रमाणित है की जितनी कम सुविधाओं में अच्छा करने की ललक बिहारी छात्र-छात्राओं में है उतना किसी में नही।
बिहार इ नवादा जिले की खगड़िया की बेटी शिल्पी जिसे कभी उसके पिता ने दसवीं के बाद पढ़ाई करने से मना किया था आज वो बेटी यूरोप के देशों में रिसर्च करने जा रही है।
शिल्पी को ग्रेनेडा यूनिवर्सिटी से इसके लिए 40 लाख का स्कॉलरशिप भी मिला है।

– शिल्पी बिहार के नवादा जिले की खगड़िया की रहने वाली हैं।
– करीब 2006 में शिल्पी ने फर्स्ट डिविजन से दसवीं पास की थी।
– वह आगे पढ़ना चाहती थी। लेकिन उनकेे पापा इसके लिए तैयार नहीं थे।
– वे जल्द से जल्द उनकी शादी कर देना चाहते थे। शादी भी तय कर दी थी।
– लेकिन दहेज की भरपाई नही कर पाए इसलिए शादी टूट गई। तब शिल्पी बमुश्किल 16 साल की थी।

पिता से झगड़ कर पहुंची थी दिल्ली

– दसवीं के बाद किसी तरह शिल्पी ने इंटर साइंस किया। इसके बाद जब उन्होंने JNU में एडमिशन के लिए इंट्रेंस एग्जाम दिया और वे सफल हुई।
– शिल्पी ने जब घर में ग्रैजुएशन की पढ़ाई की बात की तो सबने विरोध किया।
– इसके बाद ग्रैजुएशन की पढ़ाई के लिए शिल्पी पिता की मर्जी के खिलाफ दिल्ली पहुंच गई।
– यहां स्काॅलरशिप के चार हजार रुपए मिले। उनकी फैमिली को लगा कि जब पैसे खत्म हो जाएंगे तो वह वापस लौट आएगी। लेकिन शिल्पी ने हिम्मत नहीं हारी।
– यहां उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया, पैसे जोड़े और दिल्ली में जम गई।
– दिल्ली से ही शिल्पी ने स्पेनिश लैंग्वेज से पीजी तक पढ़ाई की। फिर एम फिल की।
– तभी यूनिवर्सिटी आॅफ ग्रेनाडा ने रिसर्च के लिए विश्व स्तर पर 100 लोगों को चुना। इनमें दस का आखिरी रूप से चयन हुआ, जिसमें शिल्पी भी है।

वुमन एंड जेंडर स्टडी पर करेंगी रिसर्च

– यूनिवर्सिटी आॅफ ग्रेनाडा ने यूरोपियन मास्टर्स डिग्री इन वुमन एंड जेंडर स्टडीज के लिए शिल्पी का चयन किया है।
– शिल्पी को दो साल में 49 हजार यूरो (करीब 40 लाख रुपए) की स्कॉलरशिप मिली है। पहले साल स्पेन में स्टडी करेगी।
– फिर रिसर्च के लिए कई यूरोपीय देश जाएगी। इसमें स्पेन, इटली, हंगरी, यूके, पोलैंड, नीदरलैंड और न्यूजर्सी यूनिवर्सिटी आॅफ ग्रेनाडा के पार्टनर है।

शिल्पी ने दो बहन और भाई की संवारी जिंदगी

– शिल्पी के परिवार में कोई पढ़ा-लिखा नहीं था। पिता संजय गुप्ता नाॅन मैट्रिक, मां अनुप्रिया देवी साक्षर, दादा साक्षर जबकि दादी निरक्षर थीं।
– शिल्पी के मुताबिक, बेटियों को इंगलिश स्कूल में भी नहीं भेजा जाता था। मैट्रिक की पढ़ाई आखिरी थी। इसके लिए सिर्फ पापा जिम्मेदार नहीं थे।
– सामाजिक परिवेश ही ऐसा था। लेकिन दादा शिल्पी के पक्षधर थे। शिल्पी ने इस परंपरा को तोड़ा। वह खुद आगे बढ़ी। दो बहनों और एक भाई की भी मददगार बनी।
– दिल्ली में रहकर शिखा बीएससी, जबकि शिवानी फ्रेंच से ग्रेजुएशन कर रही है। भाई आकाश बंगलुरू की निजी कंपनी में एकाउंटेंट है।

दहेज न मांगने की शर्त पर अपनी पंसद से की शादी

– शिल्पी ने 2015 में अपनी पसंद से नवादा के सुशांत गौरव से बिना दहेज के परिवार की सहमति से शादी की।
– सुशांत स्पेनिश लैंग्वेज के प्रोफेसर हैं। शिल्पी के पिता संजय गुप्ता कहते हैं कि बेटी की सफलता पर उन्हें गर्व है।
– शिल्पी की सास प्रो. प्रमिला कुमारी भी खुश हैं। वे कहती हैं कि उनकी बहू ने उनके परिवार का मान बढ़ाया।

बिहार के बेटे द्वारा निर्मित तेजस विमान वायुसेना में शामिल

आखिर वह खुशी का क्षण आ ही गया, जब बिहार के लाल द्वारा निर्मित लड़ाकू एवं देश में निर्मित विमान तेजस को वायु सेना में शामिल कर लिया गया। आपको बताते चले कि तेजस लड़ाकू विमान का निर्माण दरभंगा के घनश्यामपुर प्रखंड के बाउर गांव निवासी एवं प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. मानस बिहारी वर्मा के नेतृत्व में बनाया गया था। आज जब विधिवत इस विमान को एयर फोर्स में शामिल किया गया तो एक बार फिर बिहार का सर गर्व से उंचा हो गया। जानकारी हो की भारत के राष्ट्रपति रह चुके स्व. डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के साथ काम कर चुके डा. मानस बिहारी वर्मा दोनों अच्छे मित्र थे, और डॉ एपीजे अब्दुल कलाम अपने बिहार दौरा के दौरान कई बार उनसे मिलने भी आये थे।

वायुसेना को स्वदेश में निर्मित लड़ाकू विमान तेजस की ताकत मिल ही गई। बेंगलूरु में हुए एक कार्यक्रम में तेजस वायुसेना के स्कॉव्ड्रन में लाइट कॉम्बेट एयरकाफ्ट यानि एलसीए शामिल हो गया। करीब 60 फीसदी देसी विमान का शामिल होना इस मायने में भी बड़ी बात है कि दुनिया में गिनती के ही देश हैं जो खुद लड़ाकू विमान बनाते हैं। करीब तीन दशक के लंबे इंतजार के बाद ये लड़ाकू विमान शामिल हो पाया। फ्लाइंग ड्रैगर स्कॉव्ड्रन में फिलहाल दो तेजस होंगे और अगले साल मार्च तक छह और आ जायेंगे। इसके बाद और आठ तेजस इस स्कॉव्ड्रन में शामिल होंगे। आगले दो साल ये स्कॉड्रवन बेंगलूरु में ही रहेगा इसके बाद ये स्कॉड्रवन तामिलनाडू के सलूर में चला जाएगा। 12 टन वजनी इस विमान की जब शुरुआत की गई थी तब लागत 560 करोड़ बताई गई थी लेकिन आज बढ़ते बढ़ते 55 हजार करोड़ तक पहुंच गई है। जनवरी 2001 में पहली प्रोटोटाइप एलसीए ने उड़ान भरी और तब से लेकर आज तक 3000 घंटे से ज्यादा ये उड़ान भर चुका है और अभी तक इसका रिकार्ड अव्वल है। दिसंबर 2013 में इसको इन्सियल ऑपरेशनल क्लियरेन्स मिल चुका है और इस साल के अंत तक फाइनल ऑपरेशनल क्लियरेन्स भी मिल जाएगा। इसका मतलब ये है कि एफओसी मिलने के बाद ये लड़ने के लिए तैयार हो जाएगा।

भारतीय वायुसेना ने हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड को 120 तेजस का ऑर्डर दिया है। यकीनन  देर से सही इसके वायुसेना में शामिल होने से वायुसेना की ताकत कई गुना बढ़ जायेगी और देसी होने की वजह से इसके किसी भी चीज के लिये किसी दूसरों का मोहताज नहीं होना होगा।

क्या है तेजस  ?

– लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) प्रोग्राम को मैनेज करने के लिए 1984 में एलडीए (एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी) बनाई गई थी।

– एलसीए ने पहली उड़ान 4 जनवरी 2001 को भरी थी।

– अब तक यह कुल 3184 बार उड़ान भर चुका है।

– तेजस 50 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है।

– तेजस के विंग्स 8.20 मीटर चौड़े हैं। इसकी लंबाई 13.20 मीटर और ऊंचाई 4.40 मीटर है। वजन 6560 किलोग्राम है।

-देश में बना पहला लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट है तेजस।

-सर्फ 2 प्लेन के साथ एयरफोर्स इसे अपने बेड़े में शामिल कर चुकी है।

-सफलतापूर्वक तेजस का किया जा चुका है टेस्ट, एयर मार्शल जसबीर वालिया और हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड (एचएएल) के ऑफिसर्स की देख-रेख में पूर्ण हुआ टेस्ट।

-तेजस की पहली स्क्वाड्रन को 2 साल तक बेंगलुरू में ही रखा जाएगा।

-तमिलनाडु के सलूर में इसके बाद इसे शिफ्ट किया जाएगा।