बिहार रेजिमेंट ने देश को गुलामी से मुक्त कराने वालों में अपना नाम अपने रक्त से लिखा है

बिहार रेजिमेंट सेंटर का भारतीय थल सेना में नामांकरण वैसे तो बहुत ही नवीन है. फिर भी इतिहास में जब से सिंकदर महान ने भारत पर आक्रमण किया. तब से इसका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है. इस रेजिमेंट के रण बांकुरे जवान उसी प्राचीन मगध साम्राज्य से संबंधित है. जिसका नाम सुनकर महान से महान योद्धा भी थर्रा उठते थे. बिहारियों ने हमेशा ही जननी जन्मभूमि की बलि वेदी पर अपना शीर्ष अर्पण किया है. मातृभूमि को दासता और गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने वालों में इन्होंने अपना नाम अपने रक्त से लिखा है. आतंकियों में इस बटालियन का खौफ है। बिहार रेजीमेंट के जवान जब जय बिहार रेजीमेंट सेना हिन्दुस्तान की… गाने के साथ लड़ाई में कूदते हैं तो दुश्मनों के दिल दहल उठते हैं।

सोमवार को गलवान घाटी में चीन के सैनिकों ने भारतीय सेना के बिहार रेजिमेंट के सैनिकों पर ही धोखे से वार किया है| चीन के इस कायराना हरकत में देश के 20 जवान शहीद हो गयें| बिहार रेजिमेंट के जवानों का देश के लिए दिए क़ुरबानी पर पूरा देश नाज कर रहा है|

बटालियन के नाम हैं कई सम्मान

एक अक्टूबर 1963 को बटालियन की स्थापना की गई थी। प्रथम कमांडेंट ले. कर्नल जेडीबी गन्नावलीव थे। बटालियन में बिहार-झारखंड से 50 प्रतिशत, ओडिशा व उत्तरप्रदेश से 25 प्रतिशत और एमपी, चंडीगढ़, गुजरात, पश्चिम बंगाल व महाराष्ट्र के जवान भर्ती किए जाते हैं। बटालियन के अधिकारियों व जवानों ने समय-समय पर अपनी बहादुरी का परिचय दिया है। बटालियन ने अब तक एक वीरचक्र, एक सेना मेडल, 11 एसएम, 4 एम इन डी, 11 कोस सीसी, 2 वीसीओएएस, जीओसी व सीसी 18 विभिन्न पदक हासिल किए हैं।

बीआरसी स्थापना काल से ही लिख रही विजय गाथा

बिहार रेजिमेन्ट कैंट (बीआरसी) की स्थापना 1945 को एक नवंबर को आगरा में ले. कर्नल आरसी मुल्लर ने की थी। उन्हीं के कमांड में यह अप्रैल 1946 में आगरा से रांची स्थानातंरित किया गया। नवम्बर 1946 में यह बिहार के गया में स्थानांतरित हुआ और मार्च 1949 को यह कैंट दानापुर आ गया। बिहार रेजीमेंट अपनी स्थापना काल से ही विजय गाथा लिख रही है। सैन्य कुशलता का परिचय देते हुए बीआरसी के सैनिकों ने द्वितीय विश्वयुद्ध, 1965 और 1971 के युद्ध में कई मोर्चों पर तिरंगा फहराया और दुश्मन सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए। 1965 में भारत-पाक युद्ध के समय रेजीमेंट के जवानों ने बेदौरी, हाजीपीर दर्रा पर कब्जा किया। बांग्लादेश युद्ध के समय अखौरा पर कब्जा किया। करगिल युद्ध के समय बीआरसी के जांबाजों ने जुबैर पहाड़ी और प्वाइंट 4268 को एक दिन के अंदर ही दुश्मनों से छीन लिया। इसके अलावा यूएन मिशन, सीआई ऑपरेशन, ऑपरेशन विजय, ऑपरेशन ब्लैंक समेत अन्य लड़ाइयों में भी बीआरसी ने अपनी वीरता की छाप छोड़ी है। बिहार रेजीमेंट के ही मेजर संदीप उन्नकृष्णनन ने मुंबई हमलों के समय शहादत दी।

सम्मान सुनाते हैं वीरता की गाथा

बिहार रेजीमेंट को 3 अशोक चक्र, 7 परम विशिष्ट सेवा मेडल, 2 महावीर चक्र, 14 कीर्ति चक्र, 8 अति विशिष्ट सेवा मेडल, 15 वीर चक्र, 41 शौर्य चक्र, 5 युद्ध सेवा मेडल, 153 सेना मेडल, 3 जीवन रक्षक पदक, 31 विशिष्ट सेवा मेडल और 68 मेंशन इन डिस्पैच मेडल मिले हैं।

इन लड़ाइयों में लिया भाग

वर्मा युद्ध, ऑपरेशन जीपर, इंडो-पाक युद्ध-1947, इंडो पाक युद्ध 1965, इंडो-पाक युद्ध 1971, यूएनओएसओएम, करिगल युद्ध, एमओएनयूसी।

पुरस्कार:महावीर चक्र : कैप्टन गुरजिंदर सिंह सुरी, एमवीसी,12 बिहार, करगिल युद्धवीर चक्र : मेजर मरीअप्पन सारावनम, 1 बिहार, कारगिल युद्ध, कर्नल एम रवि,10 बिहार,1971 बांग्लादेश, लेफ्टिनेंट कर्नल केपीआर हरि, 1 बिहार, लेफ्टिनेंट कर्नल पीसी साहनी ,10 बिहार, 1971 बांग्लादेश, मेजर जनरल (स्वर्गीय) डीपी सिंह,10 बिहार, 1971 बांग्लादेश अशोक चक्र लेफ्टिनेंट कर्नल हर्ष उदय सिंह, गोर,10 बिहार, बारामुला 1994, लेफ्टिनेंट कर्नल शांति स्वरूप राणा, 3 बिहार, कुपवारा 1997, मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, 7 बिहार, ऑपरेशन ब्लैक टोरनेडो

एक साथ गए थे देश के लिए लड़ने, उड़ी हमले में दोनों दोस्त हुए शहीद

कश्मीर के उड़ी हमले में शहीद हुए अशोक सिंह और आरा के पीपरपांती गांव के रहने वाले शहीद राजकिशोर सिंह की दोस्ती मिसाल है। वे दोनों पक्के दोस्त थे। दोस्ती ऐसी थी कि उसे पूरा देश याद रखेगा। दोनों एक साथ छुट्टी पर आए थे। एक साथ ही गए और देश की रक्षा के लिए दोनों शहीद हो गए।

बिहार रेजिमेंट के शहीद जवान राजकिशोर सिंह और शहीद अशोक सिंह दोस्त थे। सेना में जाने के बाद दोनों में दोस्ती हुई थी। दोनों साथ-साथ लंबे समय तक पोस्टिंग में भी रहे थे। जुलाई 2016 में राजकिशोर सिंह अशोक सिंह एकसाथ एक महीने की छुट्टी पर अपने घर आए थे। 30 जुलाई को दोनों दोस्त एकसाथ आरा से ट्रेन पकड़कर जम्मू-कश्मीर के लिए गए थे।

 

एक ही दिन दोनों को लगी थी गोली

दोनों उड़ी सेक्टर में कार्यरत थे। 18 सितंबर को जब आतंकवादियों का हमला हुआ था। तब दोनों को एकसाथ गोली लगी थी। अंतर सिर्फ इतना हुआ कि घटना के दिन ही अशोक सिंह शहीद हो गए थे। गोली से घायल राजकिशोर सिंह भी जिंदगी और मौत से जूझते हुए गुरुवार को वीरगति को प्राप्त हो गए।

इनकी दोस्ती की हो रही चर्चा

शुक्रवार को विजय नगर स्थित आवास पर दोनों दोस्तों की शहादत की कहानी हर किसी के जुबां पर छाई हुई थी।उनके चाचा श्रीनिवास सिंह ने बताया कि 30 जुलाई को रकूट टोला निवासी अशोक सिंह आरा आए थे। यहां से दोनों दोस्त बार्डर पर जाने के लिए घर से निकले थे। शहीद अशोक सिंह की पत्नी संगीता ने ही उन्हें फोन कर राजकिशोर सिंह के गोली लगने की सूचना दी थी।