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बिहार की मछलियों का चाेइंटा गंगा नदी और समुन्द्र के रास्ते जापान होगा निर्यात

बिहार से मछली का चाेइंटा (फिश स्कैल) जापान भेजा जाएगा। इससे राज्य के मछुआरों को सालाना 50 करोड़ से अधिक मिलने की उम्मीद है। बिहार में उत्पादित होने वाली मछलियों के चाेइंटा को खरीदने में जापान की कई कंपनियां उत्साह दिखा रही है। इसके लिए बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ (कॉफ्फेड) ने जापानी कंपनी निजोना कारपोरेशन से करार किया है। रोहू, कतला, मृगल, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प का चाेइंटा भेजा .जाएगा। इन मछलियों में 2 प्रतिशत सूखा चाेइंटा निकलता है। 70 रुपए प्रति किलो की दर से जापानी कंपनी खरीदेगी।

जुलाई से कोलकाता की जगह पटना के गायघाट से सीधे नदी और समुद्र के रास्ते मछली के चोइंटा को जापान भेजा जाएगा। व्यापारियों को कोलकाता तक माल भेजने के लिए अलग से किराया देना पड़ता था। लेकिन अब बिहार से सीधे जापान के लिए माल बुक होने पर व्यापारियों को प्रति किलो 10 रुपए की बचत होगी। जलमार्ग से परिवहन पर जीएसटी नहीं लगती है इसलिए किराए के साथ-साथ पानी वाले जहाज से माल भेजने पर कोरोबारियों को प्रतिकिलो 40 रुपए की अतिरिक्त बचत होगी। बिहार के 38 जिलों के मछली कारोबार से जुड़े लोगों को इसका लाभ मिलेगा।

“कॉफ्फेड के एमडी ऋषिकेष कश्यप ने कहा कि मछुआरों से मछली का चाेइंटा लेकर जापानी कंपनी को बेचने का करार हुआ है। जापानी कंपनी प्रति किलो 70 रुपए देगी। इसमें मछुआरों को लगभग 53 रुपए प्रति किलो कीमत मिलेगी।”

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जापानी कंपनी नीजोना से हुआ करार

बिहार की मछली के चोईया से प्रोटीन का निर्माण किया जाता है। जापान सरकार मछली के चोइयां से प्रोटिन बनाएगी जो कि स्कीन के लिए काफी काफी फायदेमंद होता है। रोहू, कतला, मृगल, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प का चोइयां भेजा जाएगा। इन मछलियों में 2 प्रतिशत सूखा चोइयां निकलता है। हृदय, फेफड़ा, स्कीन आदि की दवा इससे बनाई जाती है। जापान में लोग मछली की चोइयां से बने खाद्य पदार्थ का उपयोग बहुत चाव से करते हैं। जापान में मछली की चोइयां की कीमत लगभग 1000 रुपए किलो है।

2019-20 में रिकॉर्ड 6.42 लाख टन मछली उत्पादन

बिहार मछली की जरूरत पूरा करने में लगभग आत्मनिर्भर हो गया है। 2019-20 में राज्य में मछली का रिकॉर्ड 6.42 मछली उत्पादन हुआ है। 2018-19 की तुलना में 40 हजार टन अधिक मछली उत्पादन हुआ। मत्स्य निदेशालय ने मछली उत्पादन का राज्य भर से आंकड़ा लेकर तैयार कर लिया है। पिछले साल राज्य में मछली की खपत 6.42 लाख टन अनुमानित था, लेकिन इस साल खपत बढ़ सकती है। पिछले 5-6 साल में राज्य में मछली उत्पादन लगभग दोगुना हो गया।

हर माह चार कार्गो जहाज से चोइंटा जापान भेजा जाएगा

कॉफ्फेड हर महीने जापान भेजेगा मछली का चोइंटा। इस 15 से 18 के सफर में जहाज पहले यह पटना गायघाट जाएगा फर गंगा और फरक्का के रास्ते कोलकाता पहुंचेगा, जहां से हावड़ा होते हुए समुद्र के रास्ते जापान पहुंचेगा। पटना से कोलकाता का सफर जहाज 3 से 4 दिन में तय करेगा।


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UPSC RESULT: इस साल भी UPSC में बिहारियों का दबदबा, बक्सर के अतुल को चौथा रैंक हासिल

संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा परीक्षा 2017 का फाइनल रिजल्ट आज शाम आयोग की आधिकारिक वेबसाइट upsc.gov.in पर जारी कर दिया गया. इस साल भी बिहार के होनहारों का दबदबा देखने को मिल रहा है.

शुक्रवार को जारी किये गये इस रिजल्ट में बक्सर के राजपुर प्रखंड के रहने वाले अतुल प्रकाश ने ऑल इंडिया लेबल पर चौथा रैंक हासिल कर पूरे बिहार को गौरवान्वित किया है. अतुल प्रकाश दिल्ली में रहकर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. अतुल प्रकाश के पिता अशोक राय पूर्व मध्य रेलवे के समस्तीपुर डिवीजन में चीफ इंजीनियर हैं और फिलहाल हाजीपुर में कार्यरत हैं.

अभी तक मिली जानकारी के अनुसार बिहार के सफल अभ्‍यर्थियों में सहरसा के सागर झा को 13वां तो पटना की अभिलाषा अभिनव को 18वां स्‍थान मिला है. भागलपुर की ज्‍योति 53वें, मातीउर्ररहमान 154वें स्‍थान पर रहे हैं. बेगूसराय के योगेश गौतम ने 172वां रैंक हासिल किया है. नवादा जिले के मयंक मनीष ने 214वां स्‍थान हासिल किया है. भोजपुर की श्रेया सिंह 538वें स्‍थान पर हैं.

सागर झा को 13वां रैंक

यूपीएससी फाइनल परीक्षा 2017 में कुल 990 अभ्यर्थी सफल हुए हैं. सामान्य वर्ग के 476, अति पिछड़ा वर्ग के 275, अनुसूचित जाति के 165, अनुसूचित जनजाति के 74 उम्मीदवार पास हुए हैं. भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए 180 उम्मीदवारों का चयन हुआ है. भारतीय विदेश सेवा के लिए 42, आईपीएस के लिए 150, केंद्रीय सेवा ग्रुप (क) 565, ग्रुप (ख) सेवाओं के लिए 121 उम्मीदवार पास हुए हैं.

 

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विशेष राज्य के दर्जे पर पहला हक बिहार का है, आंध्रप्रदेश से ज्यादा जरुरत बिहार को है

हमारी संसद इस सत्र में भी नहीं चल सकी. इस बार इसकी वजह यह मांग रही कि विभाजन के बाद के शेष बचे आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिया जाये. बिहार के लिए भी काफी दिनों से ऐसी ही मांग की जा रही है, जिसकी स्थिति आंध्र प्रदेश से बहुत भिन्न है. किसी राज्य को विशेष दर्जा देने की अवधारणा देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच समानता लाने के लिए ही आयी.

इसी अवधारणा से साल 1952 की भाड़ा समानीकरण की नीति पैदा हुई, ताकि भारत के सभी हिस्से में स्टील समान लागत पर उपलब्ध हो सके. लेकिन, इस नीति का नतीजा यह हुआ कि बिहार और भी गरीब होता गया. आज स्थिति यह है कि पंजाब और केरल जैसे समृद्ध राज्यों की प्रति व्यक्ति आय बिहार की 34 हजार रुपये प्रति व्यक्ति वार्षिक आय से छह गुनी अधिक है.

अविभाजित आंध्र प्रदेश के लिए दुधारू गाय के समान लाभप्रद हैदराबाद से वंचित होने के बावजूद प्रति व्यक्ति आय के राष्ट्रीय औसत 1,12,764 रुपये की तुलना में अपनी प्रति व्यक्ति आय 1,42,054 रुपये के साथ वर्तमान आंध्र प्रदेश आर्थिक रूप से देश के संपन्न हिस्सों में एक है. वहीं दूसरी ओर, अविभाजित बिहार के लिए उसके लाभप्रद हिस्से झारखंड से अलगाव के बाद वर्तमान बिहार की प्रति व्यक्ति आय मात्र 34,168 रुपये वार्षिक ही है.

जहां विशेष राज्य के दर्जे के लिए बिहार की मांग अपने पिछड़ेपन पर आधारित है, वहीं आंध्र अपने लिए इस दर्जे की मांग अपने विभाजन के वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा संसद में दिये एक आश्वासन के आधार पर कर रहा है.

अपनी संपन्नता के बल पर हैदराबाद की प्रति व्यक्ति आय 2.99 लाख रुपये वार्षिक है, जबकि इसके पड़ोसी और अधिकतर शहरी रंगारेड्डी जिले में यह 2.88 लाख रुपये है.

इसके बाद वारंगल, निजामाबाद, आदिलाबाद और महबूबनगर जैसे अन्य ग्रामीण जिलों की औसत प्रति व्यक्ति आय दक्षिण या पश्चिम भारत के अन्य ग्रामीण जिलों के ही समान 80 हजार रुपये के आसपास पहुंचती है, जो फिर भी बिहार से ढाई गुनी अधिक है. बिहार इस स्थिति में कैसे पहुंच गया, इस प्रश्न का उत्तर पाना अधिक कठिन नहीं है. राज्यों के आर्थिक प्रदर्शन और उनकी आबादी की खुशहाली पर केंद्रीय सरकार द्वारा खर्च की जानेवाली धनराशि का सीधा असर होता है.

प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही शुरू होकर बिहार तथा यूपी केंद्रीय सरकार द्वारा अल्पनिवेश के शिकार रहे हैं. प्रत्येक योजनावधि में यदि कोई प्रति व्यक्ति विकास व्यय था, तो इसमें बिहार हमेशा सबसे दूरस्थ रहा.

जब मैंने प्रत्येक योजना के अंतर्गत बिहार में हुए निवेश की इस कमी की गणना की, तो उसका योग 1 लाख 80 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया. आज भी बिहार प्रति व्यक्ति विकास व्यय तथा औद्योगिक और ढांचागत निवेश के हिसाब से अंतिम पायदान पर ही है, जबकि उच्चतम पायदानों पर स्थित राज्यों को प्रति व्यक्ति की दर से बिहार की तुलना में छह गुना ज्यादा तक मिल रहा है.

कारण चाहे जो भी हो, एक अरसे में हम कुछ पिटी-पिटाई बातें स्वीकार कर चुके हैं, जैसे पंजाब की समृद्धि वहां के मेहनती तथा कुछ नया करने को उद्यत किसानों के बल पर आयी है, जबकि बिहार की निर्धनता की वजह इसके समाज के गहरे विभाजन, भ्रष्टाचार एवं कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति रही है. सभी सामान्यीकरणों की ही भांति ये सारी मान्यताएं भी गंभीर ढंग से दोषपूर्ण रही हैं.

पंजाब के समृद्ध होने की वजह यही है कि भारत ने उस राज्य में विशाल निवेश किया है, जो प्रायः देश के अन्य क्षेत्रों की कीमत पर हुआ. यदि वर्ष 1955 को लें, तो उस वर्ष सिंचाई के लिए कुल राष्ट्रीय परिव्यय 29,106.30 लाख रुपये था, जिससे पंजाब को 10,952.10 लाख रुपये या 37.62 प्रतिशत मिला.

इसके विपरीत, बिहार ने 1,323.30 लाख रुपये पाये, जो कुल केंद्रीय सिंचाई परिव्यय का 4.54 प्रतिशत था. नेहरू की महत्वाकांक्षी परियोजना भाखरा नंगल बांध के लिए 1,323.30 लाख रुपये का परिव्यय नियोजित था, जिससे अकेले पंजाब के 14.41 लाख हेक्टेयर कृषिभूमि की सिंचाई होती है. इसे छोड़कर भी, सिंचाई के लिए पंजाब का नियोजित परिव्यय बिहार का ढाई गुना था.

नतीजा यह हुआ कि बिहार के पास जहां पंजाब की 3.5 गुनी अधिक कृषियोग्य भूमि थी, वहीं उसकी सिंचित कृषिभूमि का रकबा 36 लाख हेक्टेयर, यानी पंजाब के बराबर ही है.

बिहार को पीछे छोड़कर भारत आगे नहीं जा सकता. पर दुर्भाग्यवश, हम यही करने की कोशिश करते रहे हैं. न केवल हमारे राष्ट्रीय सियासतदानों ने बिहार को निराश किया, बल्कि स्वयं बिहार के राजनेतागण राज्य की पीड़ा और उसके प्रति की गयी नाइंसाफी को उजागर करने में असफल रहे.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री द्वारा यह मुद्दा बार-बार उठाया जाता रहा है. उन्होंने तो केवल 60 हजार करोड़ रुपयों की मांग की, जो बिहार के जायज हक का सिर्फ एक तिहाई ही है, पर उसे भी पूरा नहीं किया जा सका है. यह भरपाई कब और कैसे हो सकेगी, यह देखना अभी बाकी है.

साभार: मोहन गुरुस्वामी (प्रभात खबर)

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बिहार तुम बता दो कि तुम्हारा होना हिन्दू मुसलमान दोनों का होना है

सुनो बिहार,

सारे शोर के बीच ये कभी मत भूलना कि तुम बिहार हो। दिल्ली,मुम्बई और बंगलौर में बैठे लोग सोशल मीडिया पर सुबह जगते ही तुम्हे जला दे रहे हैं। जिसे देखो, बिहार जल रहा है की घोषणा कर चुके हैं। सोशल मीडिया पे आ के देखो तो लोग जले बिहार को राख़ कर चुके हैं और उसका भस्म लगा पोस्ट पे पोस्ट ठेल रहे हैं।

ये तुम्हारे घर के चूल्हे की आग में बारूद फेंक उससे घर जला दे रहे हैं।ये लोग चूल्हे की आग से निकलते धुएं को चिता की आग का धुँआ बता देंगे। यहां हर कोई अभी बिहार सेंक रहा है। महानगरों में इतनी गर्मी और उमस है लेकिन फिर भी हर हाथ में जला हुआ बिहार ताव में है। इन महानगरों के घरों के बच्चे सुबह-सुबह हल्के स्टीम पे सेंके हुए ब्रेड सैंडविच खा, हल्की आंच पे पका मैगी टिफिन में पैक कर स्कूल को निकल गए होंगे और अब इनके माँ बाप इत्मीनान से जला हुआ बिहार खोर-खोर के देख रहे होंगे सोशल मीडिया पे।

इनके लिए तो अब बिहार बचा हुआ कोयला भर है जिस पर दिल्ली इंडिया गेट में भुट्टा सेंकेगी। इनको इस बात से कोई मतलब नही कि तुम्हारे यहां के झोपड़ी और फूस के घरों में रहने वाले बच्चे अभी सुबह जग के गुल्ली खेल रहे होंगे, खेत गये होंगे या किसी दूकान ये होटल पे कमाने चले गए होंगे। अगर इनमें कुछ नहा-धोआ के स्कूल जाने वाले भी होंगे तो ये भद्र लोग दिल्ली बम्बई में बैठे जलता हुआ बिहार दिखा तुम्हारे बच्चों को वापस घर भेज देने को तैयार बैठे हैं सोशल मीडिया पे। ये तुमसे पूछेंगे भी नही कि तुम हिन्दू थे या मुस्लिम।

सोशल मीडिया इंटरनेट और डाटा से नही बल्कि खून और आग से चल रहा है। ये लोग हर सुबह एक आग खोज रहे, लहू जमा कर रहे दिन भर नेट चलाने के लिए, फेसबुक पे सक्रियता के लिए सामान चाहिए इनको। अबकी बिहार तुम्हारा नंबर है। तुम नही होते तो यूपी में आग खोज लेते, बंगाल में तो परमानेंट एक भट्टी रखा हुआ है सोशल मीडिया के लिए। पर इस बार चूँकि उपयोग में तुम लाये गए हो इसलिए तुमसे कह रहा हूँ, सुनो बिहार।

तुम बिहार हो ये बताने के लिए समय तुम्हे बार बार अवसर नही देगा। लेकिन जब कभी भी ये अवसर मिला है तुम्हे ये बताने से नही चूकना चाहिए कि, हाँ तुम बिहार हो।

तुम आज बताओ इस दुनिया को कि जिस वक़्त दिल्ली बम्बई के कूल लोग अपने अपने राष्ट्रीय दायित्व का निर्वाहन कर तुम्हे जलता हुआ दिखला रहे हैं ठीक उसी वक़्त कटिहार से लेकर भागलपुर तक गंगा माता के किनारे पे अभी कई दाढ़ी वाले मुसलमान ने वजू कर लिया होगा। उन्हें रास्ते में गंगा नहा के घर जाता हुआ कोई हिन्दू मिला होगा जिससे किसी मुसलमान ने झट से खैनी बनाने को कहा होगा और दोनों ने जल्दी जल्दी खैनी खा अपने अपने घर का रास्ता पकड़ लिया होगा।

सुनो बिहार, तुम इस दुनिया को बता दो कि बुद्ध को अहिंसा की छांव देने वाला पीपल शशांक गौड़ के काटने के बाद भी कटा नही है और वो केवल बुद्ध के जीवन का इतिहास नही है बल्कि वो बिहार का वर्तमान भी है जहां बिहार में तो हर गांव के पास एक पीपल का पेड़ है, उसके नीचे का चौपाल है जहां भोरे भोर न जाने कितने बुद्ध पलथी मार बैठ गए होंगे रेडियो ले के। उनमें कितने हिन्दू होंगे और कितने मुसलमान ये काम पे निकलने वाले के समय के अनुपात पर निर्भर होगा। राजमिस्त्री का काम करने वाला 7 बजे निकल गया होगा,मास्टर साब 8 बजे निकले होंगे, दर्जी आराम से नौ बजे तक जा के खोलेगा दूकान, किराना दुकान वाले को चिंता नही, जब मन होगा तब खोलेगा। ये सब इस बात से तनिक भी नही धधके होंगे कि बिहार जल रहा है।
बिहार सुबह जगता होगा और शाम तक कमा के घर लौट आ रहा है, जा के राशन लाता है, खाना बनता है, तावे पे सेंकी जा रही रोटी को पता भी नही कि वो हिन्दू के तावे पे है या मुसलमान के तावे पे|

बिहार तुम बता दो कि तुम्हारा होना हिन्दू मुसलमान दोनों का होना है। ये चार दिन की राजनीति और इसके गिद्ध तुमसे तुम्हारी दोनों आँखे नही नोच सकते। ये दो कौड़ी की राजनीती और इसके क्षणिक बवाल से तुम्हारा ताना बाना नहीं उघड़ेगा मेरे बिहार, ये जोरदार भरोसा दो दुनिया को।

इसे बताओ कि नालंदा जल के ख़ाक होने के बाद भी आई आई टी के आर्यभट तुम कैसे पैदा कर लेते हो। इसे बताओ कि तुम्हारा हिन्दू बेटा ग़दर की कहानी में बाबू वीर कुंवर सिंह के शौर्य और पीर अली के शहादत दोनों पे कैसे गर्व करता है। इसे इतिहास नही, अपना वर्तमान बताओ मर्दे कि आज भी मनेर के लड्डू को मनेर के दरगाह पे हिन्दू भी चढ़ा के आता है। इन्हें बताओ कि जब भागलपुर और सुल्तानगंज से डाक बम का जत्था गंगाजल ले के निकलता है तो मुसलमानों की टोली रसगुल्ला और शर्बत लेके खड़ी रहती है। ये सब हवाबाज़ी और किसी कवि की कविता या शायर की रूहानी कल्पना नही, बिहार का सच है, इसे बताओ यार बिहार।

ये बिहार को कब का जला समझ उसे छोड़ आए और देश के कोने-कोने जा बसे बिहारी जो बड़े अधिकार के साथ बड़े ऑथेंटिक हो के तुम्हारे जलने की खबर दे रहे हैं इनसे कहो कि तुम्हारे छोटे मोटे फफोलों को जला हुआ बिहार न समझें। कायदे से तो चाहिए ये था कि ये तुम्हारे लिए कुछ मलहम लाते, लगाते लेकिन नही, सबको जलता बिहार दर्ज करना है। जिसके आंगन में दस चूल्हे जल रहे हों और खाने बनाने वाले इतने हों तो भला किसी के हाथ या किसी का पल्लू तो कभी कभार जल ही जाता है, उसे कितनी जल्दी बुझा लेने की तलब होनी चाहिए न कि घर को जला हुआ राख़ का ढेर कह देने की हड़बड़ी होनी चाहिए।

ये सच है कि आज कई जगह छिटपुट गुंडे मवाली राम और रसूल के नाम पर नियम और वसूल तोड़ रहे हैं। ये तलवार पे राम लिख और खंजर पे अल्लाह लिख धर्म निभा रहे हैं। पर बिहार तुम इन्हें जवाब देना, बताना कि ये वो बिहार है जहां बेलपत्र पे अबीर से राम-राम लिख कई बुढ़िया शिवलिंग पूज चुकी होगी। यहां कण कण विद्यापति के पद गाता है, डुमरांव के बिस्मिल्लाह खान की शहनाई उत्तर प्रदेश जा के बाबा विश्वन्नाथ को पूज आती है।

बिहार सुनो, हम बिहारी जब घर से दूर रोजी रोटी खोजने निकलते हैं तब हमसे कोई हमारी जात, हमारा धर्म नही पूछता। हम बिहारी हैं, यही हमारा परिचय होता है। आज हमारे घर में ही कैसे हमसे कोई हमारा धर्म पूछ लेगा और तुम सह लोगे? नही, तुम बिहार हो और बस यही तुम्हारी पहचान है, और हम बिहारी हैं। ये जो किसी दिल्ली हाट टाइप मेले में मधुबनी पेंटिंग देख के बिहार के रंग और चित्रकारी को समझ लेने का दावा ठोंकने वाले जो दिल्ली मुंबई छाप बुद्धिजीवी हैं न ,इनको बताओ कि तुम्हारे घर के दुल्हिन के कोहबर में कोई आग नही, कोई आग नही तुम्हारे भनसा घर में, सब निर्मल हैं और पवित्र हैं।

इनको बताना कि बिहार के रंग में पटना कलम भी है जो विकसित तो मुग़ल दरबार में होता है पर बिहार आते चटख लाल चंद्र और गोपाल चंद्र की कूची से होता है। इन्हें बताओ कि, सोशल मीडिया की बारूद से भगलपुरिया सिल्क थोड़े जल जाएगा। अभी मेरे गाँव घूम-घूम जो ढाड़ी वाला मुसलमान बौंसी का पतरका पियरका खद्दर वाला चादर बेच रहा होगा उसे बिना धर्म पूछे भर चैत ओढ़ के सोयेगा हिन्दू का गांव। इन दोनों को पता भी नही होगा कि बिहार जल चूका है। बिहार, अपने सामान की रक्षा स्वंय कर लो। किसी बहकावे में मत आओ। दस लफंगे मवाली हर तरफ हैं, इनसे यहीं निपट लो। ये हिन्दू मुस्लिम कर के तुम्हारे बच्चे से शिक्षा और तुमसे रोजगार छीनेंगे। इनसे यही दोनों मांगो, वापस कर दो राम और अल्लाह का नारा।

इनसे कह दो कि वे हमारे मन के मंदिर और इबादतखाने में हैं। नकली राम, नकली रहीम लौटा दो। असली राम अपने घर के बुढ़िया के तुलसी माला में खोजो। गांव जलेगा तो आदमी जलेंगे, आग तुमसे हिन्दू मुस्लिम नही पूछेगी। सुनो बिहार, इतना पानी है तुम्हारे पास, सारा पानी छोड़ दो इन आग लगती खबरों पर। एक फफोला भी न दो देखने इन मक्कारों को।
ये मक्कार हिन्दू मुसलमान नही, तुम्हारा घर जलाने आये हैं, तुम्हारी रोजी रोटी जलाने आये हैं।

राजनीती भूखी गिद्ध हो चुकी है। इसे शहर तंदूर दिखने लगा है, कोई हिन्दू टिक्का सेंकेगा, कोई मुस्लिम कबाब सेंक के खायेगा। किसी पे भरोसा न करो..रहबर तो रहबर, रहनुमा पे भी नही। आग लगी है न, हिन्दू मुस्लिम बाल्टी ले के निकलो, तलवार लेकर नही। भजन और अजान की ध्वनि बढ़ा दो, भीड़ का नारा मत सुनो। तुम सदियों से साथ हो, यही जलोगे, यहीं दफ़न होना है। फिर किसके बहकावे में हो। राम या अल्लाह क्या पार्टियों के झोले में हैं? इन ठगों को ठेलो पीछे।अभी मैं तीन दिन पहले कटिहार में था, दिन भर उर्दू के मंच पर मौलवी और उलेमाओं के बीच..कितना शीतल और घर के आंगन जैसा तो था सब कुछ।

अब तीन दिन में क्या वो बिहार बदल गया होगा, जल गया होगा? सब झूठ है।तीन दिन में तो आदमी लुंगी धोती नही बदलता हमारे यहां, बिहार का समाज बदल गया होगा और आग लग गया होगा? ये साजिश समझो मेरे बिहार। हिन्दू मुसलमानों एक दूसरे का हाथ पकड़ के डट जाओ, देखते हैं कौन तुम्हारा घर जलाता है।क्योंकि तुम बिहार हो। जय हो।

– साभार: नीलोत्पल मृणाल (डार्क हॉर्स के लेखक)

बिहार के आधा दर्जन पर्यटन सर्किट विकसित होंगे!

बिहार में गाँधी सहित आधा दर्जन पर्यटन सर्किट होंगें विकसित!

इसके लिए राज्य का पर्यटन विभाग डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बनवा रहा। इसे केंद्र सकार को भेजा जाएगा। इन सर्किट के विकास के लिए 50 से 200 करोड़ की राशि केंद्र से मांगी जाएगी।

पर्यटकीय दृष्टि से अति महत्वपूर्ण कांवरिया सर्किट, जैन सर्किट, गांधी सर्किट, अंग प्रदेश सर्किट, रामायण सर्किट और बुद्ध सर्किट के विकास की योजना बनी है। इन सर्किट से जुड़े पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विश्वस्तरीय सुविधाएं मुहैया कराने की दिशा में काम हो रहा है। राज्य सकार अपने स्तर पर तो खर्च कर ही रही है, लेकिन सुविधा और बेहतर हो इसके लिए केंद्र से भी राशि मांगी जा रही है।

अंग प्रदेश सर्किट के विकास के लिए राशि की मांग को लेकर पर्यटन विभाग ने केंद्र को डीपीआर भेज भी दिया है। इसके लिए 50 करोड़ की मांग की गई है। जैन व कांवरिया सर्किट के लिए डीपीआर पहले ही भेजा जा चुका है। इनके लिए 50-50 करोड़ की स्वीकृति मिल गई है। इसके अलावा गांधी सर्किट, रामायण सर्किट, बुद्ध सर्किट के लिए डीपीआर तैयार किया जा रहा है। गांधी सर्किट के लिए 50 करोड़, रामायण सर्किट के लिए 100, जबकि बुद्ध सर्किट के लिए 200 करोड़ मांगने की योजना है। हालांकि राशि में विचार-विमर्श के बाद बदलाव भी हो सकता है।

फिलहाल 6 सर्किट में होगी विशेष काम
बिहार में फिलहाल छह पर्यटन सर्किट हैं। इनमें बुद्ध सर्किट, सूफी सर्किट, जैन, सिख, हिन्दू व ईको सर्किट शामिल हैं। नए सर्किट के रूप में गांधी, अंग प्रदेश, रामायण व कांवरिया सर्किट को विकसित किया जाना है।
बुद्ध सर्किट : गया, नालंदा, भागलपुर, पू. चंपारण, प. चंपारण, वैशाली, जहानाबाद
सूफी सर्किट : जहानाबाद, पटना, मुंगेर, नालंदा, रोहतास
जैन सर्किट : नालंदा, भागलपुर
हिन्दू सर्किट : गया, नालंदा, भागलपुर, औरंगाबाद, बांका, जहानाबाद, कैमूर, सीतामढ़ी

50 से 200 करोड़ तक मांगे जाएंगे सर्किट के लिए केंद्र से 

  • राज्य का पर्यटन विभाग इन सर्किटों का बनवा रहा डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट
  • पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विश्वस्तरीय सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी

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क्या कारण है, जो गरीब, किसान, और मजदुर के बच्चे सफल हो जाते है

किसान और गरीब परिवार के बच्चे इतनी अधिक संख्या में कैसे IAS बन जाता है?

ये आप बखूबी जानते होंगे की किसान कितने मेहनती होते हैं। और बिहार की अधिकतर लोग किसान ही हैं, और वो कृषि पर आश्रित होते हैं। जब वो दिन-रात मेहनत करके फसल उपजाते हैं और फसल के कटाई के समय किसी कारण बस उनका फसल नष्ट हो जाता है चाहे नष्ट होने कारण बारिश हो या जानवर हो, तब वो किसानों पर क्या बीतती है ये कोई अमीर लोग अंदाज नही लगा सकता। किसानों के साथ साथ किसानों के बच्चे भी कड़ी मेहनत करता है चाहे कड़ी धूप हो, बारिश हो, या कप-कापती ठण्ड। उस बच्चे को अगर इस कड़ी मेहनत के बदले पढाई करने को कहा जाये तो ये बच्चा क्यों नही पढाई करेगा अगर उस मेहनत का 30%भी पढाई में मेहनत करदे तो उसे सफल बनने से कोई नही रोक सकता।

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पढाई में मेहनत करना तय है क्योंकि बच्चा जानता है किसान और खेती का हाल वो समझ सकता है कि खेती एक जुए जैसा है ‘मिली तो मिली नही तो जय सिया राम’ लेकिन यदि मैं पढाई करूँ तो सफलता जरूर मिलेगी।

और वो पढ़ाई में मेहनत करने लगते हैं, उनका सबसे बड़ा डर रहता है कि माँ-बाप कितनी मेहनत करके हमें पढ़ा रहे है उनको मुझसे कई उम्मीदें है

यही सबसे बड़ी कारन है गरीब, किसान और मजदुर बच्चे के पीछे की सफलता का कारण…

बिहार के इस बेटे ने किया कमाल, बनाया रोबोट

जी हाँ, अगर आप बिहार के प्रतिभा के मजाक बनाने के आदि हैं तो आपको लगेगा झटका क्योंकि बिहार के सुपौल जिले के वीरपुर गांव के इंजिनीरिंग के छात्र बिट्टू मिश्रा ने तकनीक के कमाल से ऐसा मानव रोबोट बनाया जिसकी तारीफ देश में ही नही वल्कि विदेशों में भी यह आश्चर्य का विषय बन गया है।

बिट्टू मिश्रा अपने रोबोट के साथ

बिट्टू मिश्रा अपने रोबोट के साथ

ग्रेटर नोएडा स्थित जीडी बजाज कॉलेज के इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष के छात्र ने एक ऐसा रोबोट तैयार किया है जो आपके घर में आपका हर एक काम कर सकता है।

बिट्टू बताते हैं की उन्हें बचपन से ही रोबोट में काफी दिलचस्पी थी और बचपन से इसके प्रति आर्कषित थे।

बिट्टू ने अपने रोबोट का नाम B2 रखा है वो लोगों के जरूरत के अनुसार रोबोट तैयार करते हैं इसके तहत उन्होंने अपनी एक कंपनी ” Wow Instrument ” खोला है।

बिट्टू के इस कारनामे के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले हैं। उन्हें इंडस्ट्रियल रोबोट पर रिसर्च करने जर्मनी से बुलावा भी आया है।

उन्हें ” Innovation Idea Generation Award ” से भी सम्मानित किया जा चूका है।

बिट्टू का ये रोबोट आपके घरेलू काम में भी सहायता करेगा, ये रोबोट लोगों को सुरक्षा भी प्रदान करता है, बिट्टू का ये रोबोट होटल, रेस्टोरेंट में वेटर का भी कर सकता है।

 

बिट्टू अपने कंपनी ‘wow Instrument’ के माध्यम से इसका व्यावसायिक रूप देना चाह रहे हैं, लोगों के ऑर्डर के अनुसार अलग-अलग तरह के रोबोट बनाने के कार्य में जुटे हैं।

बिट्टू के इस कारनामे से ‘मेक इन इंडिया ‘ योजना को भी मजबूती मिलेगी।