मातृत्व ममता का एहसास है या औरतों की मजबूरी?

आर्थिक सर्वक्षण 2018 के अनुसार भारतीय समाज बेटे कि चाह में तब तक बच्चा पैदा करता है जब तक उसे बेटा ना हो जाए

बीते हुए 10 तारीख को पूरे विश्व भर में मदर्स डे मनाया गया। सोशल मीडिया पर सभी अपनी -अपनी मां के लिए पोस्ट डाल रहे थे. यह देखकर काफी अच्छा लगा कि अब समाज में लोग केवल खास महिलाओं को ही नहीं बल्कि आम महिलाओं के  संघर्ष को भी समझने लगे हैं.

लेकिन जब पूरा विश्व मदर्स डे मना रहा था तब किसी ने  एक बार भी उन महिलाओं के बारे में सोचा कि समाज में कई स्त्रियां ऐसी भी हैं जो मां नहीं बनना चाहती थी लेकिन पारिवारिक और सामाजिक दबाव के कारण उन्हें मां बनना पड़ा.

यह वाक्य पढ़ते हुए आपको अजीब लग रहा होगा कि भला कौन सी स्त्री ऐसी होगी जिसे मां नहीं बनना है? मां बनना तो स्त्री का धर्म है और ऐसा करने पर स्त्रियों को गर्व महसूस होता है। लेकिन हम इस बात पर कभी गौर ही नहीं किए हैं कि क्या मां बनते वक़्त सभी स्त्रियों की रजामंदी शामिल होती हैं? हमने इस प्रश्न को कभी जाना ही नहीं और जिन्होंने जाना उन्होंने इस पर कभी गौर करने का सोचा ही नही. क्योंकि हमारा पितृसत्तात्मक समाज कभी भी ऐसे प्रश्नों को महत्व देने नहीं देता।

हमारे देश में बहुत सी ऐसी भी महिलाएं है जो कि मां बनना चाहती है लेकिन उन्हें मां बनने नहीं दिया जाता है क्योंकि भारत में मां बनने के लिए आपको शादी के प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है. हालांकि सुस्मिता सेन, एकता कपूर जैसे लोगो ने इस प्रमाण पत्र को नहीं दिखाया है लेकिन ये समाज सबको एकता कपूर कहां बनने देता है। इस देश में मां बनने के कुछ मापदंड है जिसमें सबसे पहले आपको विवाहित स्त्री  होना जरूरी है, ताकि आपके बच्चे को पिता का नाम मिल सके दूसरा यदि आप अविवाहित है तो यह विचार आप भूल जाइए क्योंकि यह समाज ताने मार -मार कर आपको जीने नहीं देगा, यदि आप ट्रांसजेंडर है तो आपको तो बिल्कुल भी अधिकार नहीं है कि आप अभिभावक बन सके।


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क्या आप यह जानते हैं कि भारत में मातृत्व धारण करने का निर्णय सिर्फ पति- पत्नी का ना हो कर पूरे परिवार और समाज का होता है? यदि किसी स्त्री को पुत्र प्राप्ति नहीं होती हैं तो सामाजिक और पारिवारिक दबाब के कारण उसे निरंतर बच्चा पैदा करना पड़ता है और इस तथ्य कि पुष्टि आर्थिक  सर्वक्षण 2018 भी करता है।

आर्थिक सर्वक्षण 2018 के अनुसार भारतीय समाज बेटे कि चाह में तब तक बच्चा पैदा करता है जब तक उसे बेटा ना हो जाए।

औरतों को मां बनाने की चाहत में हम इस बात को बिल्कुल भी भूल जाते हैं कि गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य कितना ज़रूरी है. गर्भ के दौरान कितनी महिलाओं और बच्चो का निधन हो जाता हैं. यूनिसेफ इंडिया (Unicef India) और विश्व बैंक (world bank) 2019आंकड़े के मुताबिक विश्व में सबसे ज्यादा गर्भवती महिलाओं का निधन भारत में होता है. पूरे साल में भारत में लगभग 45000 महिलाओं की मृत्यु होती हैं अर्थात यहां हर 12 मिनट पर एक गर्भवती महिला की मौत होती हैं.

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फोटो साभार: लाली

जब मैंने अपने पड़ोस की लड़की मुनरी कुमारी से पूछा कि आखिर 19-20 कि उम्र में तुमने बच्चा पैदा क्यों किया, तुम्हे नहीं लगता कि तुम्हारी उम्र अभी भी छोटी है तो वह बताती हैं कि “इस पर हमारा बस कहां चलता है, परिवार वालो ने कहां कर लो बच्चा तो कर लिया।“ वहीं विमला देवी से सवाल पूछा कि आखिर आपने 4 बच्चे क्यों किए तो बोली कि “अब जब पति के साथ रहेंगे तो बच्चा तो होगा ही।“इन दोनो महिलाओं को कोंडोम का अर्थ नही पता नाहि इनके पति ने कभी इस्तेमाल किया है।


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यह आंकड़े बताते हैं की बहुत सी महिलाओ को गर्भ के रोकथाम कि जानकारी नहीं है उन्हें ऐसा लगता है कि बच्चा पैदा करना उनका कर्तव्य है और वह इस कर्तव्य का निर्वहन कर रही हैं। अनेक महिलाओं को उचित इलाज़ नहीं मिल पाता है जिस वजह से गर्भधारण के दौरान उनकी मौत हो जाती हैं बहुत सी महिलाएं छोटे उम्र में गर्भधारण कर लेती हैं जिनसे उनकी मौत हो जाती है और कई स्त्रियां बार- बार बच्चा पैदा करने से कमजोर हो जाती हैं।

आज भारत आधुनिकता की हर सीढ़ी को चढ़ रहा है लेकिन अभी भी महिलाओं को स्वेच्छा से बच्चा पैदा करने का अधिकार नहीं है। गर्भ के दौरान उनका उचित ख्याल नहीं रखा जाता है, कई महिलाओं का बार- बार गर्भपात कराया जाता है, क्योंकि उनके गर्भ में एक लड़की पल रही होती हैं।

मैंने कई और स्त्रियों से भी बात की और उनसे पूछा कि मातृत्व कैसा एहसास है तो उन्होने यह बताया कि यह बहुत ही नयाब अधिकार स्त्रियों को मिला है कि वह एक नया जीवन दे सके, कुछ ने कहां की मां बनना उनकी जिंदगी का सबसे सुनहरा पल था। यदि वास्तव में एक अनूठा एहसास है तो इस एहसास को हम स्त्रियों पर छोड़ दे ताकि वह निर्णय ले सके कि उन्हें इस अधिकार का इस्तेमाल करना है  की नहीं. मां बनना किसी भी स्त्री का स्वयं का निर्णय होना चाहिए ना की किसी भी परिवार और समाज का।

– ऋतु (शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय)

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