माह-ए-मुहब्बत 13: दोस्तों की मदद से पूरी हुई ये प्रेम कथा।

मैं एकदम सीधा-साधा सा लड़का हूँ। मेरी कोई gf नहीं थी। पढ़ने में भी अच्छा खासा था। लेकिन कभी लड़कियों में उतना इंटरेस्ट नहीं दिखाया करता था।

बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं बोर्ड का पढ़ाई पूरी करने के बाद 12वीं की पढ़ाई के लिए एक कोचिंग संस्थान ज्वाइन किया था। कुछ महीने बीते थे, मैं अपने दोस्तों के साथ अपने क्लास में बैठा था, तभी एक सुंदर-सी, सुशील-सी लड़की ने न्यू अड्मिशन के साथ इंट्री मारी।
दोस्तों ने मुझसे कहा- “भाई ये कैसी है?”
मैंने कहा, “ठीक ही है, सूंदर है, सुशील है।”
दोस्त- “तो बात आगे बढ़ाओ यार!”
मैं- “मतलब?”
दोस्त- “मुझे भाभी चाहिए अब।”
मैं- “हट पगले! ये सब अभी नहीं करना।”

समय ऐसे ही बिताता गया। एक दिन जब क्लास की छुट्टी हुई, सर ने हमेशा की तरह लड़कों को पहले निकाल दिया। हमलोग किसी कारणवश बाहर रुके हुए थे।
वो लड़की आई तो दोस्त ने मुझसे बोला, “जा भाई! जाकर बोल दे। मैं जानता हूँ, तेरे दिल में उसके प्रति कुछ है।”
ये भी सच ही था, मेरे दिल में उसके लिए कुछ-कुछ होने लगा था।
दोस्त- “जा-जा यार! कुछ बात कर!”
मैं – “नहीं जाऊँगा। मुझे उसका नाम तक नहीं पता।”
दोस्त- “जा! जाकर नाम ही पूछ ले।”
मैं- “दम है तो तू जा कर पूछ कर दिखा।”
मेरा दोस्त जिगर वाला है। वो गया, जाकर पूछा,
“हेल्लो आपका नाम क्या है?”
Girl- “क्यों?क्या हुआ? किसलिए? क्या काम है?”

दोस्त डर गया और दबे पाव वापस आ गया।
फिर कुछ दिनों बाद मेरा एक दिन क्लास अब्सेंड हो गया था। उसके बाद वाले दिन मैं क्लास गया था। और उस दिन fee देना था तो मैं लास्ट तक रुका, फिर मैंने पाया कि वो भी fee देने के लिए रुकी हुई है।
मैंने उससे बात करनी चाही और मौका भी अच्छा था।
मैं- “कल क्लास आयी थी?”
वो- “यस”
मैं- “मैं कल नहीं आ पाया था, क्या अपनी नोट्स दे सकती हो?”
वो- “मुझे होमवर्क करना है।”
मैं- “वो मैं कर दूँगा।”
वो एक smile दे कर नोट्स दे दी। उसपे एक ऐसा नाम था जो मैं सार्वजनिक स्थान पर नही ले सकता था। (वैसा नाम जो boys और girls में comman होता है मैक्सिमम boys के होते हैं।) नाम को देखकर दोस्तों ने बोला “ये नाम उसके भाई का होगा”।
कुल मिलाकर, नाम जानकार भी हम confused थे। दोस्तों ने suggetion दिया उसे प्रोपोज़ करने का ये अच्छा मौका है। उसे प्रोपोज़ कर दे यार। दोस्तों के बहुत मानाने पर मान गया।
मैं कभी किसी को ₹5 का ग्रीटिंग नहीं दिया था, दोस्तों ने मुझसे ₹250 का ग्रीटिंग खरीदवा दिया। मुझे तजुर्बा नहीं था, इसीलिए उनलोगों ने खुद शायरी वगैरह लिखा। क्या लिखा, मुझे अब तक नहीं मालूम।
दोस्त मेरा मोबाइल नंबर डाल रहा था मैं डर गया और कहा मेरा मोबाइल नंबर मत डालो।
दोस्त ने कहा चलो मैं मोबाइल नंबर डाल देता हूँ। कुछ गड़बड़ हुई तो मैं संभाल लूंगा।
मैं अगले दिन उसको कॉपी देने गया। उसे महसूस हुआ कि कॉपी में कुछ है। उसने पूछा तो
मैं एक ही रट लगाए जा रहा था, “कुछ गलत नहीं है, कुछ गलत नहीं है, घर जाकर पढ़ना।” वो घर चली गई।
मैं रात भर अपने दोस्त को फ़ोन करता रहा कि कोई कॉल आया क्या?

फिर कुछ दिन बाद मेरे दोस्त ने अपनी GF से उस लड़की का नंबर मंगवाया और मुझे दिया। मैंने कॉल किया और बताया कि मैं कौन बोल रहा हूँ और कहा “प्लीज पूरी बात सुनकर फोन काटना, क्या तुमने उसे पढ़ा था?”
“दिमाग खराब है तुम्हारा, क्या लिखे थे?” उसने कहा।
मैं और डर गया कि क्या लिखा हुआ है क्योंकि मुझे पता भी नहीं था कि उसमें क्या लिखा हुआ था , तो मैंने पूछ दिया “क्या था?” वो बोली “मुझे नहीं पता, मैं फाड़ कर फेंक दी थी।”
मुझे बहुत कसके झटका लगा कि ₹250 गया पानी में।
उसने कहा मुझे इन सब चीजों से बहुत डर लगता है। लेकिन धीरे-धीरे हम दोस्त बने। शायद उसे मेरी सच्चाई का यकीन था और मुझे उसके व्यक्तित्व पर भरोसा।
बातें होने लगीं हमारी। ऐसे ही बातें करते-करते हम दोनों जीवन भर के साथी बन गए।

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