माह-ए-मुहब्बत 13: दोस्तों की मदद से पूरी हुई ये प्रेम कथा।

मैं एकदम सीधा-साधा सा लड़का हूँ। मेरी कोई gf नहीं थी। पढ़ने में भी अच्छा खासा था। लेकिन कभी लड़कियों में उतना इंटरेस्ट नहीं दिखाया करता था।

बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं बोर्ड का पढ़ाई पूरी करने के बाद 12वीं की पढ़ाई के लिए एक कोचिंग संस्थान ज्वाइन किया था। कुछ महीने बीते थे, मैं अपने दोस्तों के साथ अपने क्लास में बैठा था, तभी एक सुंदर-सी, सुशील-सी लड़की ने न्यू अड्मिशन के साथ इंट्री मारी।
दोस्तों ने मुझसे कहा- “भाई ये कैसी है?”
मैंने कहा, “ठीक ही है, सूंदर है, सुशील है।”
दोस्त- “तो बात आगे बढ़ाओ यार!”
मैं- “मतलब?”
दोस्त- “मुझे भाभी चाहिए अब।”
मैं- “हट पगले! ये सब अभी नहीं करना।”

समय ऐसे ही बिताता गया। एक दिन जब क्लास की छुट्टी हुई, सर ने हमेशा की तरह लड़कों को पहले निकाल दिया। हमलोग किसी कारणवश बाहर रुके हुए थे।
वो लड़की आई तो दोस्त ने मुझसे बोला, “जा भाई! जाकर बोल दे। मैं जानता हूँ, तेरे दिल में उसके प्रति कुछ है।”
ये भी सच ही था, मेरे दिल में उसके लिए कुछ-कुछ होने लगा था।
दोस्त- “जा-जा यार! कुछ बात कर!”
मैं – “नहीं जाऊँगा। मुझे उसका नाम तक नहीं पता।”
दोस्त- “जा! जाकर नाम ही पूछ ले।”
मैं- “दम है तो तू जा कर पूछ कर दिखा।”
मेरा दोस्त जिगर वाला है। वो गया, जाकर पूछा,
“हेल्लो आपका नाम क्या है?”
Girl- “क्यों?क्या हुआ? किसलिए? क्या काम है?”

दोस्त डर गया और दबे पाव वापस आ गया।
फिर कुछ दिनों बाद मेरा एक दिन क्लास अब्सेंड हो गया था। उसके बाद वाले दिन मैं क्लास गया था। और उस दिन fee देना था तो मैं लास्ट तक रुका, फिर मैंने पाया कि वो भी fee देने के लिए रुकी हुई है।
मैंने उससे बात करनी चाही और मौका भी अच्छा था।
मैं- “कल क्लास आयी थी?”
वो- “यस”
मैं- “मैं कल नहीं आ पाया था, क्या अपनी नोट्स दे सकती हो?”
वो- “मुझे होमवर्क करना है।”
मैं- “वो मैं कर दूँगा।”
वो एक smile दे कर नोट्स दे दी। उसपे एक ऐसा नाम था जो मैं सार्वजनिक स्थान पर नही ले सकता था। (वैसा नाम जो boys और girls में comman होता है मैक्सिमम boys के होते हैं।) नाम को देखकर दोस्तों ने बोला “ये नाम उसके भाई का होगा”।
कुल मिलाकर, नाम जानकार भी हम confused थे। दोस्तों ने suggetion दिया उसे प्रोपोज़ करने का ये अच्छा मौका है। उसे प्रोपोज़ कर दे यार। दोस्तों के बहुत मानाने पर मान गया।
मैं कभी किसी को ₹5 का ग्रीटिंग नहीं दिया था, दोस्तों ने मुझसे ₹250 का ग्रीटिंग खरीदवा दिया। मुझे तजुर्बा नहीं था, इसीलिए उनलोगों ने खुद शायरी वगैरह लिखा। क्या लिखा, मुझे अब तक नहीं मालूम।
दोस्त मेरा मोबाइल नंबर डाल रहा था मैं डर गया और कहा मेरा मोबाइल नंबर मत डालो।
दोस्त ने कहा चलो मैं मोबाइल नंबर डाल देता हूँ। कुछ गड़बड़ हुई तो मैं संभाल लूंगा।
मैं अगले दिन उसको कॉपी देने गया। उसे महसूस हुआ कि कॉपी में कुछ है। उसने पूछा तो
मैं एक ही रट लगाए जा रहा था, “कुछ गलत नहीं है, कुछ गलत नहीं है, घर जाकर पढ़ना।” वो घर चली गई।
मैं रात भर अपने दोस्त को फ़ोन करता रहा कि कोई कॉल आया क्या?

फिर कुछ दिन बाद मेरे दोस्त ने अपनी GF से उस लड़की का नंबर मंगवाया और मुझे दिया। मैंने कॉल किया और बताया कि मैं कौन बोल रहा हूँ और कहा “प्लीज पूरी बात सुनकर फोन काटना, क्या तुमने उसे पढ़ा था?”
“दिमाग खराब है तुम्हारा, क्या लिखे थे?” उसने कहा।
मैं और डर गया कि क्या लिखा हुआ है क्योंकि मुझे पता भी नहीं था कि उसमें क्या लिखा हुआ था , तो मैंने पूछ दिया “क्या था?” वो बोली “मुझे नहीं पता, मैं फाड़ कर फेंक दी थी।”
मुझे बहुत कसके झटका लगा कि ₹250 गया पानी में।
उसने कहा मुझे इन सब चीजों से बहुत डर लगता है। लेकिन धीरे-धीरे हम दोस्त बने। शायद उसे मेरी सच्चाई का यकीन था और मुझे उसके व्यक्तित्व पर भरोसा।
बातें होने लगीं हमारी। ऐसे ही बातें करते-करते हम दोनों जीवन भर के साथी बन गए।

माह-ए-मुहब्बत12:अमीरी-गरीबी के बीच की खाई बन जाती है प्रेम कहानियों की विलेन

यह कहानी सामान्य ब्राह्मण परिवार की है। लड़की पढ़ने में तो खास नहीं मगर दुनियादारी में काफी तेज-तर्रार थी, अभी भी है। वहीं लड़का भी पढ़ने में खास नहीं, मगर दुनियादारी में तेज-तर्रार था। दोनों ही अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे। दोनों के ही ऊपर खास जिम्मेदारियाँ नहीं, मौज वाली ज़िन्दगी।
दिन अच्छे गुज़र रहे थे, हँसी-मज़ाक में।
दोनों पहली बार अपने कॉमन रिलेटिव के यहाँ शादी में मिलते हैं। बस मिलते ही हैं। शादी के लंबे कार्यक्रम के बीच शब्दों और भावों को टकराने के कई अवसर मिले। दोनों के उम्र का वो पड़ाव था कि विचारों में जितना विरोध होता, एक-दूजे की परवाह भी उतनी ही बढ़ती जाती।
अक्सर मिलने लगे दोनों। मिलने का एक ही बहाना होता, किसी कॉमन रिलेटिव के यहाँ कोई फंक्शन। कोई ये मुलाकात तय नहीं करता, मगर मुलाकात शायद ऊपरवाले ने तय कर रखी थी।
वो मिलते रहे, फ़ोन पर बातें करते रहे, लड़ते-झगड़ते कब प्रेम का अंकुर फूट पड़ा, किसी को कानों-कान खबर न हुई। फिर वही, जो लगभग सभी जोड़ों के बीच होता है, वादे साथ जीने-मरने के, रोना-धोना, रूठना-मनाना। सबकुछ हुआ।
लड़की को पहले शादी कर के दूर जाने का मन था, शान-ओ-शौकत में रहने का मन था। मगर इस शान-ओ-शौकत का रंग फीका पड़ता गया ज्यों ही प्रेम का रंग चढ़ना शुरू हुआ। उसे उसी लड़के में अपनी सारी ख़ुशी और अभिमान दिखा जिसके नाकारी को लेकर वो खिल्ली उड़ाया करती थी।
इधर लड़के के भी अरमान थे मिल्की वाइट लड़की मिले, जबकि ये लड़की तो देखने में एवरेज थी। फिर भी प्रेम अपना रंग चढ़ा चुका था दोनों की आँखों पर। उन्हें एक-दूसरे में परफेक्ट जीवनसाथी दिखने लगा था।
वो कहते हैं न, प्रेम की जगह और प्रेम कहानियों के पात्र भले ही बदल जाएँ, प्रेम वही होता है, हर प्रेमी जोड़े के बीच। कोई जोड़ा बिना बड़ों के आशीर्वाद के आगे की जिंदगी नहीं देखता। अपनों के ख्वाब उजाड़ कोई अपना घर बसाने के ख्वाब नहीं देखता।
बस यही सब बातें उनके बीच भी होती रहीं। परिवार वालों को भनक लगी और लड़के वाले ख़ुशी से उछल पड़े। दरअसल उन्हें भी लड़की और लड़की का परिवार हमेशा से पसंद था। मगर लड़की वालों के यहाँ मामला बिगड़ चूका था। लड़का घर चलाने के क़ाबिल नहीं, दिन-रात दूसरों में व्यतीत कर देता है, ऐसे कैसे अपनी बेटी उन्हें सौंप दें। अपनी बेटी का भविष्य तो सभी देखते हैं। उन्होंने रिश्ता न करने का फैसला किया। लड़की के भाई और पिता ने प्रेम कहानी का रूख ही मोड़ दिया।
एक ही कास्ट और शादी के लिए उपयुक्त सारी औपचारिकताओं के अनुकूल होते हुए भी, इसबार विलेन बना लड़के का कमाऊ न होना। एक चैलेंज था इस जोड़े के लिए कि लड़का कमाए। इस चैलेंज के साथ, घर से कभी दूर न रहा लड़का अकेला निकल पड़ता है, अपनी पहचान बनाने और अपनी चाहत को पूरा करने का सामान जुटाने।
वो पटना से नागपुर जाता है, ये वो जगह थी, जहाँ दोनों में से किसी की भी जान-पहचान नहीं थी। वहाँ जॉब की तलाश करता है। दो साल कड़ी मेहनत के बाद लड़के की सैलरी अपने रिश्तेदारों के बीच चर्चा का केंद्र बन गई। इस बीच लड़की के लिए कई रिश्ते आये, अमीर घरों से भी, जिससे खुद लड़की ही भागती रही। उसे अब अमीरी की बजाय इश्क़ की फ़कीरी ज्यादा रास आ गयी थी। पूरा विश्वास था अपने प्यार पर। हालाँकि इस दौरान उनकी बातें नहीं के बराबर हुईं, मुलाकातें हरगिज़ नहीं हुईं, पर भरोसा अपनी जड़ें जमाता चला गया।
आखिरकार दोनों के विश्वास ने प्रेम में जीत हासिल की। बेटी के बाप को भी लड़के का समर्पण भा ही गया। भाई को बहन के आँसुओं ने तोड़ दिया।
मगर इतना काफी नहीं था। अब जंग लड़के वालों की तरफ से लड़ा जाना था। दहेज़ की मांग चढ़ने लगी। ऐसी मांग जो लड़की वाले देने में असमर्थ थे।
इनसब घटनाओं के साथ-साथ समय निकलता जा रहा था। 5 साल से अधिक हो गए थे उनके प्रेम को परवान चढ़े। दोनों ने हर मंदिर की चौखट पर मन्नतें माँगी, मत्थे टेके। हँसी-ख़ुशी से रहने वाले दो परिवार लगातार तनाव में जी रहे थे। ईश्वर को भी अपना फैसला बदलना ही पड़ा।
लाख मिन्नतों के बाद, गरीबी-अमीरी की दीवार पाट कर, दो दिल-दो परिवार एक हुए। पटना के रहने वाले दोनों परिवारों की रजामंदी से धूम-धाम से शादी हुई। आज दोनों ही परिवार इन दोनों के प्रेम की मजबूती के सामने नतमस्तक हैं, खुश हैं और जब भी भरोसे की मिशाल दी जाती है, एक उदाहरण इनका भी सामने रखा जाता है।

माह-ए-मुहब्बत 11: हाजीपुर से पटना तक ऐसे पहुँची टीनएजर की प्रेम कहानी- पार्ट 3

माह-ए-मुहब्बत में हिमांशु द्वारा भेजी गई कहानी का आज तीसरा और आखिरी भाग आपके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है। अब तक आपने पढ़ा है कि शुभम और कृति, जो एक ही स्कूल में पढ़ते थे, ने अपने-अपने प्यार का इज़हार कर दिया है। आगे क्या हुआ इस प्रेम कहानी में, आइये पढ़ते हैं-


एग्जाम्स खत्म हो गए थे और नया सेशन शुरू हो चुका था। शुभम और कृति दोनों अब 10th में आ चुके थे और रिलेशनशिप में भी। दोनों का ही पहला-पहला प्यार था और पहली-पहली ही बार था।
नए नए जोड़ों की जो ख़ुशी होती है वो दोनों के ही चेहरे से साफ़-साफ़ देखी जा सकती थी। कृति के गाल अब बात-बात पर ग़ुलाबी हो जाते थे और शुभम अब बिना बात भी हँसता था। शुभम अब पूरे हक़ से दिन भर कृति की आँखों में देखता रहता और कृति भी अब जान-बूझ कर बालों को कान के पीछे ले जाती रहती। शुभम के दोस्त अब खुलेआम कृति को भाभी कहने लगे थे और कृति की सहेलियाँ भी उसे शुभम के नाम से छेड़ने लगी थीं।

दोनों प्यार में इस कदर डूबे हुए थे कि अब स्कूल में एक दूसरे को देख कर बिताया पूरा दिन भी कम लगने लगा था। दोनों ने तीन-तीन कोचिंग भी एक ही साथ पकड़ लिया था ताक़ि ज़्यादा से ज़्यादा समय एक दूसरे के साथ बिताएँ। बाक़ी समय में दोनों कभी SMS से चैट करते तो कभी फोन पर लगे रहते। 24 घंटे में एक सेकंड भी ऐसा ना बीतता जिसमें दोनों ने एक दूसरे की ख़बर ना ली हो।

इसी तरह एक दूसरे में डूबे-डूबे कब 3-4 महीने निकल गये दोनों में किसी को भी पता नहीं चला। अब दोनों एक दूसरे के इतने करीब थे जितने पहले कभी किसी के नहीं थे। दोनों की हरेक बात एक दूसरे को पता थी। दुनिया भर के सारे जोड़ों की तरह इन दोनों ने भी फ्यूचर प्लानिंग करने में कोई क़सर नहीं छोड़ी थी। शादी कहाँ करेंगे से लेकर हनीमून पर कहाँ जाएंगे, सब कुछ तय हो चुका था। यहाँ तक कि होने वाले बच्चों के नाम भी आपसी सहमति से सोचे जा चुके थे। कुछ अगर बाक़ी था तो वो था दोनों का एक दूसरे को किस करना, जिसकी चर्चा भी रोज़ ही होती पर मौके के अभाव में दोनों बस चर्चा तक सीमित थे। फ़िर एक रोज़ शुभम ने कृति को कोचिंग थोड़ा जल्दी आने कहा और कृति भी शुभम के कहे अनुसार समय से पहले कोचिंग पहुँच गयी। शुभम वहाँ पहले से ही मौजूद था। उस वक़्त वहाँ शुभम और कृति के सिवा और कोई न था। दोनों लव-बर्ड्स इस बार अकेले थे। पूरी तरह अकेले। मौका भी था और दस्तूर भी। दोनों कोचिंग के अंदर बैठ बात करने लगे। बातों-बातों में शुभम ने कृति के हाथों को हल्के से छुआ। कृति के हाथों ने जब कोई हरक़त नहीं की तब शुभम ने पूरे हक़ से उसका हाथ पकड़ा। धड़कने दोनों की ही तेज़ हो गयी थीं पर शुभम के चेहरे पर जहाँ उसके दिल की घबराहट साफ़ ज़ाहिर हो रही थी वहीं कृति पूरी तरह शांत थी। पर धीरे-धीरे कृति शुभम का हाथ पकड़ के उसकी बाहों में सिमटते जा रही थी। शुभम के लिए इस से ख़ुशनुमा एहसाह और कुछ नहीं था। दोनों ने ऐसे ही थोड़ा समय बिताया फ़िर कोचिंग शुरू होने का समय हो गया और बाक़ी बच्चे भी आने लग गए। कोचिंग खत्म हुई, दोनों घर गए। दोनों प्रेमियों को आज अकेले में बिताए लम्हें गुदगुदा रहे थे। बातें हुई और अगले दिन फिर समय से पहले आ जाने का प्लान बना।
दोनों अपने समय के हिसाब से पहुँच गए और उनकी खुशकिस्मती से आज भी बस वो दोनों ही थे। पर आज एक चीज़ अलग थी। शुभम आज बिलकुल भी घबराया हुआ नहीं था पर कृति आज शुरू से ही गुलाबी हुए जा रही थी। जब-जब कृति ब्लश करती और उसके गाल गुलाबी हो जाते तब-तब शुभम को उस पर कुछ ज्यादा ही प्यार आता। आज कृति के आते ही शुभम उसे हाथ पकड़ कर अंदर ले गया। दोनों ने खूब बातें कीं। बातों के बीच में ही शुभम ने ऊँगली से किसी चीज की ओर इशारा किया।
“अरे वो देखो.. वो देखो.. क्या है!”
“कहाँ? क्या है? मुझे तो कुछ भी नहीं दिख रहा!”
“अरे वहाँ देखो ना ऊपर”
कृति हैरान नजरों से ऊपर देखने लगी। शुभम के लिए सब कुछ फिर स्लो-मोशन में हो गया था। उसने थोड़ी देर कृति को ऊपर की ओर देखते देखा और फ़िर हल्के से उसके गालों को चूम लिया।
कृति को अचानक हुए इस हमले की बिलकुल भी भनक नहीं लगी थी और शुभम ने विजय का पताका लहरा दिया था। कृति अब शर्म से गुलाबी की जगह पूरी लाल हो चुकी थी। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि अब क्या बोले। उसने शुभम की ओर मुड़ कर हल्के से नजरें उठा कर उसे देखा। शुभम ने उसे अपने और पास खींच लिया और उसे गले से लगा लिया। ये उन दोनों का पहला हग था। कृति की गर्म साँसें शुभम को अपने सीने पर महसूस हो रही थीं। उसके बालों से आती मेहंदी की ठंडी-ठंडी खुशबू उसके साँसों में समा रही थी। कृति आँखें बंद कर के बस शुभम से लिपटी थी। उसे अब कुछ नहीं कहना था। थोड़ी देर बाद कृति ने अपना चेहरा उठाया तो शुभम ने उसके माथे को चूम लिया। कृति की आँखें स्वीकृति में बंद हो चलीं। शुभम कुछ देर उसके मासूम चेहरे को कुछ देर अपलक निहारता रहा। फिर उसने उसके दोनों आँखों को चूम कर खुद से उसको अलग किया। फ़िर दोनों चुप रहे, जो बातें होनी थी आँखों से ही हुईं। फिर सबके आने का समय हो गया और दोनों कोचिंग पढ़ के अपने-अपने घर चले गए। दोनों के सीने में आज की ये मुलाक़ात हमेशा-हमेशा के लिये एक बेहद हसीन याद छोड़ गयी थी।

इसी तरह स्कूल और कोचिंग की बदौलत उनका प्यार हर रोज़ बढ़ता रहा। पर समय पंख फैलाये उड़ रहा था और देखते ही देखते 10th क्लास भी खत्म होने को आ गया। भविष्य को लेकर चिंताएँ अब बढ़ने लगी थी। एक तो 10th का इतना महत्वपूर्ण एग्जाम सर पे था और तैयारी दोनों की ही कुछ खास नहीं थी ऊपर से 10th के बाद कैरियर की टेंशन। कृति को उसके पापा इंजीनियरिंग की तैयारी करने कोटा भेजना चाहते थे, वहीं शुभम पटना के किसी स्कूल में एडमिशन लेकर 12th करना चाहता था। दोनों रोज़ एक दूसरे से इसी बारे में बात करते। शुभम कृति से कोटा ना जाने कहता तो कृति शुभम से हर महीने कोटा मिलने आने की बात मनवाती। धीरे-धीरे 10th के बोर्ड्स खत्म हो गए और एडमिशन लेने का समय आ गया था। कृति ने तब तक अपने पापा से उसे कोटा ना भेजने को मना लिया था और शुभम भी इस कोशिश में लगा था कि दोनों का एडमिशन एक ही स्कूल में हो जाए। कृति के पापा उसके एडमिशन के लिए पटना, रांची, बोकारो हर जगह फॉर्म भरने में लगे थे वहीं शुभम भी हर उस जग़ह जा कर फॉर्म डाल आता जहाँ कृति का फॉर्म भरा जाता। शुभम घर से ज्यादा दूर जाना नहीं चाहता था इसीलिए उसकी इच्छा थी कि उन दोनों का एडमिशन पटना के ही किसी स्कूल में हो जाए। ऊपरवाले ने एक बार फ़िर शुभम की दुआ क़ुबूल कर ली थी पर इस बार आधी ही दुआ क़ुबूल हुई। शुभम और कृति दोनों का एडमिशन पटना में हुआ पर स्कूल अलग-अलग थे।

कुछ दिनों में छुट्टियां बीत गईं और नए स्कूल का नया सेशन शुरू हो गया। दोनों नए क्लास में नए लोगों के बीच थे।

अब दोनों एक ही शहर में थे पर पहले जैसी बात नहीं रह गयी थी। कृति साइंस स्ट्रीम में थी और शुभम आर्ट्स में इसीलिये अब कोचिंग भी साथ-साथ संभव नहीं थे। कृति के ऊपर सिलेबस का पहाड़ टूट पड़ा था। स्कूल और इंजीनियरिंग की कोचिंग के कारण शुभम से मिलने का समय भी नहीं मिल पाता था। रात को पढ़ाई के एक्स्ट्रा-बोझ के कारण फ़ोन पर भी बात ना के बराबर ही हो पाती थी।

शुभम फिर से उदास रहने लगा। शुभम के लिए पटना बिलकुल ही मातम सा हो गया था। ना घरवाले थे, ना ही पुराने स्कूल के बचपन के वो सारे दोस्त और ना ही कृति। शुभम के लिए नया स्कूल कुछ ख़ास अच्छा नहीं बीत रहा था। वही दूसरी ओर कृति को पटना शहर भा गया था। नया स्कूल भी उसे जम गया था और उसके खूब नए दोस्त भी बन गए थे। कृति को नयी आज़ादी मिल गयी थी और आज़ादी से बढ़ कर कोई सुख नहीं होता ये बात भी कृति को अब समझ आने लगी थी। जहाँ शुभम भूत काल में फंसा था वहीं कृति अपने भूत-भविष्य को किनारे रख अपने वर्तमान में खुल के जी रही थी।

दोनों के बीच इस बढ़ती दूरी ने दोनों में गलतफहमियाँ भी बढ़ा दी थी। अब कृति जब भी फ़ोन करती बस अपने नए दोस्तों की ही बातें करती। किसने उसे क्या बोला, कौन कैसा दिखता है, नए स्कूल में कितने लड़कों ने उसे प्रोपोज़ किया, इन सब बातों में ही समय बीत जाता। शुभम के पास वैसे भी कुछ नया कहने को नहीं था, इसीलिये वो चुपचाप बस सुनता रहता। धीरे-धीरे शुभम का मन अस्थिर रहने लगा। उसके मन में इस डर ने घर कर लिया कि अब उन दोनों का रिलेशनशिप ज्यादा दिन नहीं चलेगा और शायद कृति उसको छोड़ देगी। धीरे-धीरे ये डर शक़ का रूप लेने लगा। दोनों की बातों में भी अब पहले वाली गर्माहट बाक़ी नहीं रह गयी थी। शुभम को ऐसा लगता जैसे कृति बस उस पर तरस खा कर उससे बात कर लेती है, वहीं कृति को इन सब की कोई ख़बर ही नहीं थी। वो बस नए लोगों में ही मशगुल होती जा रही थी। कई दिन कई बातों पर दोनों की नोकझोंक भी हो गयी थी। फ़ोन काट कर दोनों ही रोये भी थे। फ़िर बाद में दोनों एक दूसरे को सॉरी बोल के मना भी लेते थे। पर वो कहते हैं ना “रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय/टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय,” उसी तरह उन दोनों के रिश्ते में भी दरार आ चुकी थी। कृति की उसके क्लास के एक लड़के के साथ नज़दीकी बढ़ती जा रही थी, जिसके कारण शुभम अक्सर उससे झगड़ लेता था। दोनों फ़िर रोते, फिर मनाते पर ये रोज की बात हो गई थी। शुभम के रोज झगड़ने के कारण कृति उस लड़के के और ज्यादा क़रीब होने लगी।

एकदिन शाम को कोचिंग से आते समय शुभम ने कृति को बोरिंग रोड में उस लड़के के साथ घूमते देख लिया था। उस दिन दोनों की खूब भयंकर लड़ाई हुई। शुभम ने कृति पर तमाम तरह के आरोप लगाए। खूब भला-बुरा कहा। कृति शुरू में तो खूब रोई पर, शुभम को समझाने की कोशिश की कि वो दोनों बस दोस्त हैं पर शुभम मानने को तैयार नहीं था। उसका कहना था कि कृति शुभम के हिस्से का समय उस लड़के को दे रही है। लड़ते-लड़ते बात ज्यादा आगे बढ़ गयी। कृति भी खुद्दार लड़की थी, कब तक शुभम की डांट सहन करती। उसने भी शुभम से उसकी हद में रहने को कह दिया। बात यहाँ से इतनी बिगड़ी कि ब्रेकअप तक पहुँच गयी। कृति के मुँह से ब्रेकअप की बात सुनते ही शुभम का सारा गुस्सा गायब हो गया। उसे अब अपने किये पर अफ़सोस हो रहा था। अब रोकर बात समझाने की बारी उसकी थी पर अब कृति सुनने के मूड में नहीं थी। कृति ने गुस्से में फ़ोन काट दिया। उस रात जैसी काली रात शुभम के ज़िन्दगी में आज तक नहीं आयी थी। कृति ने भी रात भर रो-रो कर आँखें सूजा लीं। अगले दिन सुबह होते ही शुभम ने कृति से मिल कर माफ़ी मांगने की सोची। उसने कृति को शाम में S.K. Puri Park में मिलने के लिए SMS किया। कृति ने भी कुछ घंटों बाद हाँ का रिप्लाई भेज दिया।

शाम होते ही शुभम S.K. Puri Park पहुँच गया। घास पर बैठकर उसने इंतेज़ार करना शुरू ही किया था कि कृति आती दिखाई दी उसे। कृति का चेहरा पूरा बुझा-बुझा सा था। कृति शुभम के पास आ कर बैठ गयी और उस से पूछा, “बोलो, क्या बात है.. क्यूँ बुलाया है मिलने?”
शुभम से कुछ बोला न गया। थोड़ी देर खुद पर काबू रखने के बाद वो कृति को पकड़ कर रोने लग पड़ा। कृति ने शुभम को चुप कराया। थोड़ी देर बाद जब शुभम शांत हुआ तो उसने कृति को सॉरी बोला। कृति ने बस इतना कहा, “अब बहुत देर हो चुकी है शुभम। अब कोई फायदा नहीं है सॉरी बोलने का। हमारा ब्रेकअप हो चुका है और अब कोई फायदा नहीं है रोने का।”
शुभम के पास बोलने को कुछ नहीं था। इतना कह कर कृति भी वहाँ से उठ कर चली गयी।
उस दिन के बाद से कृति ने शुभम के किसी मैसेज का ज़वाब नहीं दिया, उसका एक भी कॉल नहीं उठाया। और कुछ दिनों बाद कृति ने अपना नंबर बदल लिया।
कुछ महीनों बाद शुभम को फेसबुक पर कृति के नए रिलेशनशिप स्टेटस का अपडेट दिखा। नई क्लास का वो नया लड़का अब कृति का नया बॉयफ्रेंड था। उस दिन के बाद से शुभम ने सारी उम्मीदें छोड़ दी बस कृति से प्यार नहीं छोड़ पाया।

“वापस वर्तमान समय में..”

शुभम आज फिर S.K. Puri Park में उसी जगह बैठा है जहाँ उस शाम बैठा था। आज भी वो रो रहा है बस अब उसके आँसुओं ने बहना छोड़ दिया था। कृति जिंदगी में आगे बढ़ चुकी है, शुभम वही अटका पड़ा है। कृति की पसंदीदा जगह है बोरिंग रोड। सारे पटना को बोरिंग रोड से प्यार है पर शुभम को बोरिंग रोड और पटना, दोनों से ही नफ़रत है। कृति अपनी आज़ादी खुल के जी रही है। शुभम आज भी कृति की यादों की जंजीरों में कैद है।

थोड़ी देर बाद उसी दिन की तरह आज भी शुभम उठ कर उस पार्क से अपने रास्ते की ओर चला जाता है, अकेला, सिगरेट का कश लगाते हुए, कृति के तरह ही मूव ऑन कर जाने की उम्मीद में।

नोट- यह कहानी हिमांशु के दोस्त की है। आप भी अपनी या अपनों की कहानी हमें भेज सकते हैं 13 फरवरी तक। हमारा पता है- [email protected]

माह-ए-मुहब्बत 6: ‘अनाम’ प्रेयसी की याद में कुछ यूँ बेकरार है ये प्रेमी

‘माह-ए-मुहब्बत’ सिर्फ उनके लिए नहीं जिनकी प्रेयसी या प्रेमी है, ये उनके लिए भी है जिनके मन-मष्तिष्क में कहीं एक अमिट छाप है किसी की। ये खुद उस अजनबी से अंजान हैं पर उसी परछाई के पीछे भागते जा रहे हैं, जिसमें ये अपना जीवनसाथी ढूंढ रहे हैं। भूमिका में ज्यादा नहीं, बस इतना कि ये कहानी गद्द रूप में लिखी गयी है, किसी अनजाने को याद करते हुए लिखी गयी है, किसी छवि से बेइंतहां प्रेम में लिखी गयी है।

 

“दिल्लगी में मैं उनके मरता रहा,

मन ही मन मैं उनसे प्यार करता रहा,

कहीं खो न दूँ एक अच्छी दोस्त,

इसी डर से उनसे कहने को डरता रहा।
काश कि वो हमें भी पढ़ पाते,

हम भी उनके प्यार में आगे बढ़ पाते,

इश्क़ की सीढियाँ चढ़नी आती नहीं मुझे ऐ दोस्त,

अगर होता हाथो में हाथ उनका ,

तो उन सीढ़ियों को भी हम चढ़ जाते।
बचपन की वो यादें, वो पल मस्ताने,

मैं तो तभी से था शामिल उनमें,

जिनमें होते उनके दीवाने।
मेरी चाहत की गहराई को जब उन्होंनेे था जाना,

तब समाज की सच्चाई ने हमें नहीं पहचाना।
जैसी चाहे मज़बूरी हो, चाहे  जितनी  भी दुरी  हो,

सिर्फ एक ही इच्छा जाहिर है भगवान तुम्हारे चरणों  में,

उनकी सारी मांगे पूरी हों, उनकी सारी मांगे पूरी हों।
नोट- यह कहानी हमें लिखी है ब्लॉगर विपुल श्रीवास्तव जी ने। आप भी अपनी या अपने आसपास की कोई प्रेम में डूबी कहानी/रचना साझा करें, पढ़ेगा पूरा बिहार। हमारा पता- [email protected]