जानिए मदर टेरेसा का बिहार कनेक्शन

रविवार को वेटिकन के सेंट पीटर्स स्क्वायर में पोप फ्रांसिस ने कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी की स्थापना और फिर दशकों वहां काम करने वाली मदर टेरेसा को संत की उपाधि दी. लांकि मदर टेरेसा को कोलकाता की संत के नाम से जाना जाता है, लेकिन उन्होंने गरीबों के लिए काम करने से पहले पटना में मेडिकल ट्रेनिंग ली थी.

साल 1948 में मदर टेरेसा ने पटना सिटी में होली फैमिली अस्पताल में मेडिकल ट्रेनिंग ली थी. पटना में ये अस्पताल पादरी की हवेली (सेंट मेरी चर्च) से सटा है. वो तीन महीनों की इस ट्रेनिंग के दौरान हवेली में एक छोटे से कमरे में रहती थीं.
इस कमरे को अब तक एक निशानी के तौर पर संभाल कर रखा गया है.

18 साल की उम्र में नन बनने की ख्वाहिश लिए गोंक्ज़ा एग्नेस ने 1928 में अपना घर छोड़ा था. वो आयरलैंड स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ब्लेस्ड वर्जिन मेरी (सिस्टर्स ऑफ लोरेटो) के साथ जुड़ गईं. यहां उन्हें नया नाम मिला- सिस्टर मेरी टेरेसा और वे कोलकाता के लिए निकल पड़ीं.

वर्ष 1931 में वे कोलकाता की लोरेटो एन्टाली कम्यूनिटी से जुड़ीं और लड़कियों के सेंट मेरी स्कूल में पढ़ाने लगीं. बाद में वे प्रिंसिपल बनीं. 1937 के बाद से उन्हें मदर टेरेसा के नाम से पुकारा जाने लगा.

वेटिकन के अनुसार, ये प्रचलित है कि उन्हें 1941 में एक ट्रेन यात्रा के दौरान ईश्वर ने गरीबों के लिए काम करने को प्रेरित किया. इसके बाद वे लोरेटो से इजाज़त लेकर 1948 मे मेडिकल ट्रेनिंग के लिए पटना गईं.
टेरेसा ने यहीं से अपने ‘मिशन ऑफ़ लव’ की शुरुआत की थी.
इसके बाद ही उन्होंने मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी की स्थापना की थी.

Search Article

Your Emotions

    %d bloggers like this: